कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/रसखान का जीवन परिचय

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बृजभाषा के प्रसिद्ध मुसलमान कवि रसखान के जन्म-संवत ,जन्म-स्थान आदि के विषय में तथ्यों के अभाव में निश्चित रूप से कुछ कह सकना सम्भव नहीं है। अनुमान किया गया है कि सोलहवीं शताब्दी ईसवी के मध्य भाग में उनका इनम हुआ होगा। (हिन्दी साहित्य :डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी :पृष्ठ २०७ ) रसखान ने अपनी कृति प्रेमवाटिका के रचना काल का उल्लेख निम्न दोहे में किया है :

विधु सागर रस इंदु सुभ बरस सरस रसखानि।
प्रेमवाटिका रचि रुचिर चिर-हिय-हरष बखानि।।
(प्रेमवाटिका :दोहा ५१ )

सम्भवतः इसी दोहे के आधार पर डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने प्रेमवाटिका का रचना-काल वि० सं० १६७१ अर्थात ईसवी सन १६१४ स्वीकार किया है (हिन्दी साहित्य :पृष्ठ २०६ )उक्त मान्यता में दोहे के सागर शब्द का अर्थ सात लिया गया है। किन्तु सामान्यतः छन्दशास्त्रों में सागर का अर्थ चार का सूचक है और तदनुसार प्रेमवाटिका का समय वि०सं० १६४१ सिद्ध होता है। रसखान और गो० विट्ठलनाथ की भेंट को सम्मुख यह संवत अधिक संगत प्रतीत होता है। 'दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता 'में रसखान की भी वार्ता सम्मिलित है। इस वार्ता के अनुसार ये गोस्वामी विट्ठलनाथ के बड़े कृपापात्र शिष्य थे। गोस्वामी विट्ठलनाथ का परलोकगमन १६४२ विक्रमी संवत में हुआ था। अतः यह निश्चित है कि इस समय तक रसखान गोस्वामी जी का शिष्यत्व स्वीकार कर चुके होंगे। इसी आधार पर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इनका कविता काल वि ० सं ० १६४० के उपरांत स्वीकार किया है। (हिन्दी साहित्य का इतिहास :पृष्ठ १९२ )

  • रसखान अथवा रसखानि कवि का उपनाम है। इनका वास्तविक नाम क्या था आज तक निश्चित नहीं है। शिवसिंह सरोज में इन्हें सैयद इब्राहीम पिहानी वाले लिखा गया है। किन्तु दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता में रसखान दिल्ली के पठान कहे गए हैं। स्वयं रसखान ने भी इसी बात का संकेत निम्न पंक्तियों में किया है।
देखि ग़दर हित साहिबी दिल्ली नगर मसान।
छिनक बाढ़सा-बंस की ठसक छोरि रसखान।।
प्रेम निकेतन श्री बनहि आय गोवर्धन-धाम।
लह्यो सरन चित चाहिकै जुगल सरूप ललाम।।

इस कारण डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'रसखान 'नाम के दो कवियों का उल्लेख किया है।

  1. सैयद इब्राहीम पिहानी वाले
  2. गोसाईं विट्ठलनाथ जी के कृपापात्र शिष्य सुजान रसखान :(हिन्दी साहित्य :पृष्ठ २०६ )

दूसरी ओर विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने अनुमान के आधार पर 'पिहानी वाले ' और दिल्ली के पठान रसखान की एकता बताते हुए लिखा है : यदि पिहानी से इनका सम्बन्ध रहा हो तो यही अनुमान करना पड़ेगा कि हुमायूँ की अनुकूलता और अकबर के अनुग्रह से सैयदों को दिल्ली में भी कुछ आश्रय स्थान अवश्य मिला होगा। संभव है ये पिहानी से दिल्ली चले गए हों और वहीं रहने लगे हों। (रसखानि ग्रन्थावली :पृष्ठ २५ ) इस प्रकार रसखान के जन्म-स्थान के विषय में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। किन्तु रसखान की ऊपर उद्धृत पंक्तियों से यह सर्वथा स्पष्ट है कि इनका सम्बन्ध शाही खानदान से था और यह उस समय जब सिंहासन के लिए ग़दर होने के कारण दिल्ली श्मशानवत हो रही थी तब दिल्ली और बादशाह बंश की ठसक छोड़कर वृन्दावन में आगये और यहीं कृष्ण-माधुरी का पान एवं गान करते हुए निवास करने लगे। इस ग़दर का काल भी इतिहास के आधार पर अकबर के राज्य-काल में संवत १६४० विक्रमी के आसपास स्वीकार किया जा सकता है। (रसखानि ग्रंथावली :पृष्ठ २७ )

  • दिल्ली छोड़कर प्रेम-धाम आने उक्त राजनैतिक कारण के अतिरिक्त अन्य कुछ कारणों का उल्लेख ' दो सौ चौरासी वैष्णवों की वार्ता 'एवं किम्बदन्तियों में मिलता है। इनके अनुसार पहले रसखान किसी साहूकार के पुत्र अथवा स्त्री के रूप पर इतने मुग्ध थे कि एक क्षण के लिए भी उसे देखे बिना न रह सकते थे। श्रीकृष्ण की रूप-छवि देखकर इनके प्रेम का विषय और ही हो गया। रसखान के निम्न दोहे से भी यही सूचित होता है।
तोरि मानिनी ते हियो फोरि मोहिनी मान।
प्रेमदेव की छबिहिं लखि भए मियां रसखान।।