भाषा शिक्षण/जे.एस. ब्रूनर की भाषा शिक्षण संबंधी संकल्पना/

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जेरोम ब्रूनर (Jerome Seymour Bruner ; 1 अक्टूबर, 1915 – 5 जून, 2016) अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे जिन्होने मानव के संज्ञानात्मक मनोविज्ञान तथा संज्ञानात्मक अधिगम सिद्धान्त (cognitive learning theory) पर उल्लेखनीय योगदान दिया।

ब्रूनर का सिद्धान्त (Bruner’s Cognitive Development Theory) ब्रूनर ने मुख्य रूप से दो बातों पर ध्यान दिया। पहला, यह कि शिशु अपनी अनुभूतियों को मानसिक रूप से किस प्रकार व्यक्त करता है और दूसरा यह कि शैशवावस्था और बाल्यावस्था में बालक चिन्तन कैसे करता है।

ब्रूनर के अनुसार शिशु अपनी अनुभूतियों का मानसिक रूप से तीन तरीकों से अभिव्यक्त करते हैं-

(1) सक्रियता विधि (Enactive Mode)-इस विधि में शिशु अपनी अनुभूतियों को शब्दहीन क्रियाओं के द्वारा व्यक्त करता है। जैसे -भूख लगने पर रोना, हाथ-पैर हिलाना आदि इन क्रियाओं द्वारा बालक वाह्य वातावरण से सम्बन्ध स्थापित करता है।

(2) दृश्य प्रतिमा विधि (Iconic Mode) इस विधि में बालक अपनी अनुभूति को अपने मन में कुछ दृश्य प्रतिमांए ;टपेनंस पउंहमेद्ध-बनाकर प्रकट करता है। इस अवस्था में बच्चा प्रत्यक्षीकरण के माध्यम से सीखता है।

(3) सांकेतिक विधि (Symbolic Mode) इस विधि में बालक अपनी अनुभूतियों को ध्वन्यात्मक संकेतो (भाषा) के माध्यम से व्यक्त करता है। इस अवस्था में बालक अपने अनुभवों को शब्दों में व्यक्त करता। इस प्रकार बालक प्रतीकों (Symbols) का उनके मूल विचारों से सम्बन्धित करने की योग्यता का विकास करता है।

Note : ब्रूनर के अनुसार जन्मे से 18 माह तक सक्रियता विधि , 18 से 24 माह तक दृश्य प्रतिमा विधि 7 वर्ष की आयु से आगे सांकेतिक विधि की प्रधानता रहती है |

ब्रूनर ने सीखने की प्रक्रिया व कक्षा शिक्षण का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया व निम्नलिखित तथ्य पाये-

सीखने सिखाने की प्रक्रिया में अन्तदर्शी चिन्तन अधिक उपयोगी है। हर विषय की संरचना होती है, उनके मूल सम्प्रत्यय, नियम व विधियां होती है, उसको सीखे बिना विषय का ज्ञान सम्भव नही। जो ज्ञान स्वयं खोज द्वारा प्राप्त किया जाता है, वो ही उसके लिए सार्थक व टिकाऊ होता है। ब्रूनर के अनुसार जो कुछ पढ़ाया सिखाया जाये उसका व्यक्ति व समाज दोनों से सम्बन्ध हो। इस प्रकार ब्रूनर ने दो प्रकार की सम्बद्धता पर बल दिया। (1) व्यक्तिगत सम्बद्धता (Personal Relevance) (2) सामाजिक सम्बद्धता (Social Relevance) ब्रूनर के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करके बच्चों को सीखने की लिए तत्पर करें। सीखने की परिस्थिति में बच्चे सक्रिय रूप से भाग लें। ब्रूनर के सिद्धान्त की विशेषताएं (Characteristics of Bruner’s Cognitive Development Theory)

ब्रूनर का सिद्धान्त बालक के पूर्व अनुभवों तथा नये विषय वस्तु में समन्वय के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने पर बल देता है। विषय वस्तु की संरचना ऐसी हो, कि बच्चे सुगमता व सरलता से सीख सकेें। इस सिद्धान्त के अनुसार विषयवस्तु जो सिखाई जानी है, ऐसे अनुक्रम व बारम्बारता से प्रस्तुत की जाये, जिससे बच्चे तार्किक ढंग से एवं अपनी कठिनाई स्तर के अनुसार सीखते हैं। यह सिद्धान्त सीखने में पुनर्बलन, पुरस्कार व दण्ड आदि पर बल देता है। इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षा बालक में व्यक्तिगत व सामाजिक दोनो गुणों का विकास करती है।


ब्रूनर के सिद्धान्त की शिक्षा में उपयोगिता

ब्रूनर के संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए। ब्रूनर ने मानसिक अवस्थाओं का वर्णन किया। इन अवस्थाओं के अनुसार शिक्षण विधियों व प्रविधियों का प्रयोग करना चाहिये। इनकी अन्वेषण विधि द्वारा छात्रों में समस्या समाधान की क्षमता का विकास किया जा सकता है। ब्रूनर ने सम्प्रत्यय को समझने पर बल दिया अतः शिक्षक को विषय ठीक से समझाने चाहिये। इसके ज्ञान से छात्र पर्यावरण को समझ कर उसका उपयोग कर सकता है। इन्होंने वर्तमान अनुभवों को पूर्व ज्ञान एवं अनुभव से जोड़ने पर बल दिया। इससे छात्रों के ज्ञान को समृद्ध एवं स्थाई बनाया जा सकता है। ब्रूनर की संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं के अनुसार शिक्षक, अपने नियोजन (Planning) क्रियान्वयन (Execution) एवं मूल्यांकन (Evaluation) प्रक्रिया में संशोधन कर बालकों के बौद्धिक विकास में सहायक हो सकते हैं। इस प्रकार ब्रूनर का सिद्धान्त वर्तमान कक्षा शिक्षण के लिए बहुत उपयोगी है।