भारतीय इतिहास का विकृतीकरण/निष्कर्ष

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पूर्व पृष्ठों में किए गए विवेचन से भारत और उसके इतिहास के संदर्भ में पाश्चात्यों विशेषकर अंग्रेजों की मानसिकता का पूरा-पूरा परिचय मिल जाता है। यही नहीं, तत्कालीन सत्ता द्वारा इस देश में सप्रयास पैदा किए गए उनके समर्थकों ने अपने तात्कालिक लाभ के लिए स्वार्थवश भारत और भारतीयता (देश, धर्म, समाज, इतिहास और संस्कृति) के साथ कैसा व्यवहार किया, इसका भी ज्ञान हो जाता है। ऐसा करने वालों में कोई एक वर्ग विशेष ही नहीं, शासक, रक्षक, शिक्षक, पोषक, संस्कृतज्ञ, इतिहासज्ञ, साहित्यकार आदि सभी वर्ग सम्मिलित रहे हैं। सभी ने अपने-अपने ढंग से भारतीय इतिहास को बिगाड़ने में सत्ता का पूरा-पूरा सहयोग दिया किन्तु गहराई मेंजाने पर पता चलता है कि सबके पीछे मूल कारण देश की पराधीनता ही रही है।

पराधीनता एक अभिशाप[सम्पादन]

पराधीन व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र अपना स्वत्त्व और स्वाभिमान ही नहीं अपना गौरव और महत्त्व भी भूल जाते हैं। भारत ने भी परतंत्रता काल में अपनी उन सभी विशिष्टताओं और श्रेष्ठताओं को विस्मृति के अन्धकार में विलीन कर दिया था, जिनके बल पर वह विश्वगुरु कहलाया था। यहाँ पहले मुस्लिम राज्य आया और फिर अंग्रेजी सत्ता, दोनों ने ही अपने-अपने ढंग से देश पर अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया। दोनों ने ही भारत के हर कथ्य और तथ्य को अत्यन्त हेय दृष्टि से देखकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का अपमूल्यांकन करकेउसे कम से कम करके आंका।

अंग्रेजों की दृष्टि में भारतवासियों का मूल्यांकन[सम्पादन]

भारत में अंग्रेजी सत्ता के आने पर हर अंग्रेज अपने को भारत का राजा समझने लगा था। वह हर भारतवासी को एक गुलाम से अधिक कुछ भी नहीं समझता था, फिर चाहे वह भारत में प्रशासन से सम्बंधित हो या इंग्लैण्ड में सत्ता से अथवा इंग्लैण्ड के साधारण परिवार से। उस समय भारतीयों के बारे में अंग्रेजों के विचार सामान्य रूप में बहुत ही घटिया स्तरके थे। वे भारतीयों को बड़ी तिरस्कृत, घृणास्पद, उपेक्षित और तुच्छ दृष्टि से देखते थे।

ऐसी मानसिकता वाले लोगों की छत्रछाया में पोषित और प्रेरित विद्वानों द्वारा आधुनिक ढंग से लिखा गया भारत का इतिहास, उस भारत को, जो अपनी आन, बान और शान के लिए, अपनी योग्यता, गरिमा और महिमा के लिए, अपने गुरुत्व, गाम्भीर्य और गौरव के लिए प्राचीन काल से ही विश्व के रंगमंच पर विख्यात रहा था, एक ऐसी धर्मशाला के रूप में प्रस्तुत करता है कि जिसमें, जिसने, जब और जहाँ से भी चाहा घुस आया, यहाँ कब्जा जमाया और मालिक बनकरबैठ गया तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं लगती।

भारत का आधुनिक रूप में लिखित इतिहास विजित जाति का इतिहास[सम्पादन]

भारत का आधुनिक रूप में लिखित इतिहास विजित जाति का इतिहास भारत का आधुनिक रूप में लिखित इतिहास विजित जाति का इतिहास भारत का आधुनिक रूप में लिखित इतिहास विजित जाति का इतिहास वर्तमान में सुलभ भारत का इतिहास अंग्रेजों के शासनमें अंग्रेजों के द्वारा या उनके आश्रय में पलने वाले अथवा उनके द्वारा लिखित इतिहासों को पढ़कर इतिहासज्ञ बने लोगों के द्वारा रचा गया है। जब भी विजेता जातियों द्वारा पराधीन जातियों का इतिहास लिखा या लिखवाया गया है तो उसमें विजित जातियों को सदा ही स्वत्त्वहीन, पौरुषविहीन, विखण्डित और पतित रूप में चित्रित करवाने का प्रयास किया गया है क्योंकि ऐसा करवाने में विजयी जातियों का स्वार्थ रहा है। वे विजित जाति की भाषा, इतिहास और मानबिन्दुओं के सम्बन्ध में भ्रम उत्पन्न करवाते रहे हैं अथवा उन्हें गलत ढंग से प्रस्तुत करवाते रहेे हैं क्योंकि भाषा, साहित्य, इतिहास और संस्कृति विहीन जाति का अपना कोई अस्तित्व ही नहीं होता। अतः पराधीनता के काल में अंग्रेजों द्वारा लिखा या लिखवाया गया भारत का इतिहास इस प्रवृत्ति से भिन्न हो ही नहीं सकता था।

भारत का वास्तविक इतिहास तो मानव जाति का इतिहास[सम्पादन]

भारत के पुराणों तथा अन्य प्राचीन ग्रन्थों में सुलभ विवरणों के आधार पर ही नहीं, पाश्चात्य जगत के आज के अनेक प्राणीशास्त्र के ज्ञाताओं, भूगर्भवैज्ञानिकों, भूगोल के विशेषज्ञों, समाजशास्त्रियोंऔर इतिहासकारों के मतानुसार भी सम्पूर्ण सृष्टि में भारत ही मात्र वह देश है जहाँ मानव ने प्रकृति-परमेश्वर के अद्भुत, अनुपम और अद्वितीय करिश्मों को निहारने के लिए सर्वप्रथम नेत्रोन्मेष किया था, जहाँ जन्मे हर व्यक्ति ने कंकर-कंकर में शंकर के साक्षात दर्शन किए थे, जहाँ के निवासियों ने सर्वभूतों के हित में रत रहने की दृष्टि से प्राणी मात्र के कल्याण के लिए ‘सर्वेभवन्तु सुखिनः‘, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘, ‘आत्मवत सर्वभूतेषु‘ जैसे महान सिद्धान्तों का मात्र निर्माण ही नहीं किया, सहस्रानुसहस्र वर्षों तक उनपर आचरण भी किया और जहाँ के साहित्य-मनीषियों ने वेदों, ब्राह्मणों, आरण्यकों उपनिषदों जैसे आध्यात्मिक ग्रन्थों, पुराणों, रामायणों और महाभारत जैसे ऐतिहासिक ग्रन्थों और गीता जैसे चिन्तन प्रधान ग्रन्थों के रूपमें पर्याप्त मात्रा में श्रेष्ठतम ऐसा साहित्य दिया, जिसमें सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक का पूरा इतिहास सुलभ है, जिसमें मानव के उद्भव और विकास के क्रम कीविभिन्न सीढ़ियों के साथ-साथ उसके आज की विकसित स्थिति तक पहुँचने का पूरा ब्योरा सुलभ है अर्थात उनमें पूरी मानवता का इतिहास विद्यमान है। यही कारण है कि विश्व के किसी भी क्षेत्र के साहित्य या वहाँ की सभ्यता को लें तो उस पर किसी न किसी रूप में भारत की छाप अवश्य ही मिलेगी। इसीलिए तोभारत के इतिहास को मानव जाति का इतिहास कहा जाता है।

भारतीय परम्पराओं और तथ्यों के विपरीत लिखा गया इतिहास भारत का इतिहास नही[सम्पादन]

भारतीय परम्पराओं और तथ्यों के विपरीत लिखा गया इतिहास भारत का इतिहास नही भारतीय परम्पराओं और तथ्यों के विपरीत लिखा गया इतिहास भारत का इतिहास नही भारतीय परम्पराओं और तथ्यों के विपरीत लिखा गया इतिहास भारत का इतिहास नहीं किसी भी देश विशेष का इतिहास उस देश से सम्बंधितऔर उस देश में सुलभ साक्ष्यों के आधार पर ही लिखा जाना चाहिए और ऐसा होने पर ही वह इतिहास उस देश की माटी से जुड़ पाता है। तभी उस देश के लोग उस पर गर्व कर पाते हैं किन्तु भारतवर्ष का आधुनिक रूप में लिखा गया जो इतिहास आज सुलभ है वह भारत के आधारों को पूर्णतः नकारकर और उसके प्राचीन साक्ष्यों को बिगाड़ कर, यथा- कथ्यों की मनमानी व्याख्या कर, उसकी पुरातात्विक सामग्री के वैज्ञानिक विश्लेषणों से निकले निष्कर्षों के मनचाहे अर्थ निकालकर, मनवांछित विदेशीआधारों को अपनाकर लिखा गया है। इसीलिए उसमें ऐसे तत्त्वों का नितान्त अभाव है, जिन पर सम्पूर्ण देश के लोग एक साथ सामूहिक रूप में गर्व कर सके।

आज भारत स्वतंत्र है। यहाँ के नागरिक ही देश के शासकहैं। अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि देश के हर नागरिक के मन में भारतीयता की शुद्ध भावना जागृत हो। भारतीयता की शुद्ध और सुदृढ़ भावना के अभाव में ही आज देश को विकट परिस्थितियों में से गुजरना पड़ रहा है। कम से कम आज भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक को यह ज्ञान तो हो ही जाना चाहिए कि वह इसी भारत का मूल नागरिक है, उसके पूर्वज घुमन्तु, लुटेरे और आक्रान्ता नहीं थे। वह उन पूर्वजों का वंशज है जिन्होंने मानव के लिए अत्यन्त उपयोगी संस्कृति का निर्माण ही नहीं किया, विश्व को उदात्त ज्ञान और ध्यान भी दिया है और उसके पूर्वजों ने विश्व की सभी सभ्यताओं का नेतृत्व किया है। साथ ही उन्होंने अखिल विश्व को अपने-अपने चारित्र्य सीख लेने की प्रेरणा भी दी है -

एतद्देश प्रसूतस्य सकाशदग्र जन्मनः ।
स्वं स्वं चरित्र शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्व मानवाः ।। (मनु 2.20)

इतिहास घटित होता है निर्देशित नहीं, जबकि भारत के मामले में इतिहास निर्देशित है। इसलिए आधुनिक ढंग से लिखा हुआ भारत का इतिहास, इतिहास की उस शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, जो भारतीय ऋषियों ने दी थी, इतिहास है ही नहीं। अतः आज आधुनिक रूप में लिखित भारत के इतिहास पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है और वह भी भारतीय साक्ष्यों के आधार पर क्योंकि वर्तमान में सुलभ इतिहास निश्चित ही भारत का और उस भारत का, जो एक समय विश्वगुरु था, जो सोने की चिड़िया कहलाता था और जिसकी संस्कृति विश्व-व्यापिनी थी, हरगिज नहीं है।