"कार्यालयी हिंदी/टिप्पण लेखन ( Noting)": अवतरणों में अंतर

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Banwari Lal
Kamta parsad

===टिप्पण लेखन ( Noting)===
===टिप्पण लेखन ( Noting)===



१४:३६, ७ सितम्बर २०२१ का अवतरण

. Hamari ma ki dimki halat thik nahi hai bagar ham dono bahi ki ijajat ke bagar baenama na Kiya jaye


Banwari Lal Kamta parsad

टिप्पण लेखन ( Noting)

टिप्पण:- प्रशासनिक पत्राचार में टिप्पण तथा आलेखन का विशेष महत्व होता है। कार्यालय में आएँ पत्र पर अथवा कार्यालय की स्वतंत्र आवश्यकताओं की संपूर्ति के लिए टिप्पणी तैयार की जाती है। टिप्पणी का अर्थ है- पत्र अथवा पत्र-संदर्भ के बारे में आवश्यक जानकारी तथा टिप्पणीकार का कार्यालय के विधिविधान के अन्तर्गत उस पर अपना सुझाव देना। इन्हीं सुझावों के आधार पर आलेखनकार पत्रोत्तर का प्रारूप तैयार करता है। अर्थात, सरकारी कार्यप्रणाली में विचाराधीन कागज या मामले के बारे में उनके निपटान हेतु सुझाव या निर्णय देने के परिणामस्वरूप जो अभ्युक्तिया (Remarks) फाइल पर लिखी जाती है, उन्हें टिप्पण या टिप्पणी(Noting) कहते हैं। टिप्पणी में सन्दर्भ के रूप में इससे पहले पत्रों का सार, निर्णय आदि हेतु प्रश्न तथा विवरणादि सब कुछ अंकित किया जाता है। वास्तव में सभी प्रकार की टिप्पणियाँ सम्बन्धित कर्मचारी-अधिकारियों द्दारा विचाराधीन मामले के कागज पर लिखी जाती है। कार्यालयीन आवश्यकता के अनुसार अत्याधिक महत्व प्राप्त मामलों में अनुभाग अधिकारी आदि के स्तर से टिप्पणी आरम्भ होती है अन्यथा मामले के स्वरूप के अनुसार परम्परागत रूप से टिप्पणी लिपिक अथवा सहायक (Assistant) के स्तर में शुरू की जाती है। मंत्री, प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति आदि के द्दारा लिखी गई विशेष टिप्पणियाँ 'मिनट' (Minute) कही जाती है। टिप्पण को बनाते समय कुछ उदेश्य को ध्यान में रखना पड़ता है जैसे, सभी तथ्यों को स्पष्ट रूप में तथा संक्षेप में अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना और अगर किसी मामले में दृष्टांत अथवा विशिष्ट निर्णय उपलब्ध हो तो उनकी ओर संकेत करना। दूसरा- वांछनीय विषय अथवा पत्र-व्यवहार पर अपने विचारों को स्पष्ट करना। तीसरा- यह स्पष्ट करना कि 'आवती' के अंतिम निर्वाण के लिए क्या कार्यवाही की जानी चाहिए। इससे अधिकारी को निर्णय करने में सहायता मिल जाती है।

टिप्पणी के प्रकार

प्रकार:- कार्यालयों में टिप्पणी का उपयोग अनेक स्तरों पर किया जाता है। मामलों का स्वरूप, अधिकार की स्थिति तथा कार्यालय की आवश्यकतानुसार अनेक प्रकार की टिप्पणियाँ लिखी जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं- नेमी टिप्पण, सामान्य टिप्पण, अनुभागीय टिप्पण, सम्पूर्ण टिप्पण तथा अनौपचारिक टिप्पण आदि।

१) प्रशासनिक(नेमी) टिप्पण:- कार्यालयीन कामकाज के एक भाग के रूप में नेमी टिप्पण लिखे जाते हैं। ये टिप्पण रोजमर्रा के कार्य का एक अंग होने के कारण संक्षिप्त रूप में छोटी-छोटी बातों के लिए लिखे जाते हैं। इनका महत्व केवल कार्यालयीन अभिलेख और औपचारिकता के निर्वाह तक ही सीमित होता है।

२) सामान्य टिप्पण:- सरकारी कार्यालयों में जो पत्र/मामले पहली बार प्राप्त होते हैं, उन्हें प्रस्तुत करने की एक प्रक्रिया के रूप में जो टिप्पण लिखे जाते हैं, उन्हें सामान्य टिप्पण कहते हैं। ऐसे टिप्पणों में पत्र का पूर्ववर्ती सन्दर्भ अथवा प्रसंग का उल्लेख नहीं होगा।

३) अनुभागीय टिप्पण:- इसे विभागीय टिप्पण भी कहा जाता है। कुछ मामलों पर सरकारी आवश्यकता के अनुसार विभिन्न विभागों अथवा अनुभावों से अनुदेश प्राप्त करना जरूरी होता है। ऐसी स्थिति में मामलों के स्वरूप के अनुसार टिप्पण कर्ताओं को प्रत्येक मामले पर स्वतन्त्र टिप्पण लिखना आवश्यक होता है और वे ऐसे स्वतन्त्र टिप्पणों पर अलग से अनुदेश प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के टिप्पणों को विभागीय अथवा अनुभागीय टिप्पण कहते हैं।

४) सम्पूर्ण टिप्पण:- विस्तृत टिप्पणों को सम्पूर्ण टिप्पण कहा जाता है।कार्यालयों में बहुत बार मामलों की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए उनके पूरे इतिवृत, तर्कवितर्क, प्रसंग आदि को सम्रग रूप से फाइल में रखना होता है ताकि उसके आधार पर उच्चाधिकारी उचित निर्णय लेकर आदेश जारी कर सके। इस प्रक्रिया में टिप्पण में सम्पूर्ण इतिवृति के साथ-साथ पूर्व संदर्भ, पूर्ववर्ती फाइलों के संदर्भ, पुराने फैसले आदि भी देना होते हैं। इस प्रकार मामले के बारे में पूरे अध्ययन के साथ विश्लेषणात्मक पध्दति से जो टिप्पण लिखा जाता है उसे सम्पूर्ण टिप्पण कहते हैं।

५) सूक्ष्म टिप्पण:- सूक्ष्म टिप्पण अत्यंत संक्षिप्त रूप में लिखे जाते हैं। कुछ पत्रों पर अनुभाग अधिकारी अथवा सम्बन्धित अधिकारी पत्र के हाशिये पर बाईं ओर निर्देश देता है जो सामान्यतया संक्षिप्त वाक्यों के रूप में होता है उसे ही सूक्ष्म टिप्पण कहा जाता है। सूक्ष्म टिप्पण में सामान्यत: 'सम्मति हेतु', 'स्वीकृति के लिए', 'अवलोकनाथ्' आदि वाक्य लिखे जाते हैं। बाद में सम्बन्धित फाइल वरिष्ठ अधिकारी के पास आवश्यक कार्यवाही हेतु भेज देने पर वह अधिकारी भी सूक्ष्म टिप्पण के रूप में 'स्वीकृत', 'अनुमोदित', 'देख लिया, ठीक है', 'मैं सहमत हूँ' आदि वाक्य लिखता है।

६) अनौपचारिक टिप्पण:- एक कार्यालय से किसी दूसरे कार्यालय अथवा एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय को कुछ कार्यालीन जानकारी देने के लिए अनौपचारिक टिप्पण सीधे भेजे जाते हैं। अनौपचारिक टिप्पण में सभी कार्यालयीन नियमों तथा शर्तों आदि का सही-सही अनुपालन नहीं किया जाता है। इन टिप्पणों के उत्तर में जो टिप्पणादि प्राप्त होते हैं, उनका स्वरूप भी अनौपचारिक टिप्पण का ही होता है।

टिप्पण की विशेषताएँ

१) संक्षिप्तता:- टिप्पण का उद्देश्य ही कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक आशय व्यक्त करना होता है। अत: टिप्पण संक्षिप्त तथा सुस्पष्ट होना चाहिए। अधिकारियों के पास समय की कमी रहती है और इस बात को ध्यान में रखकर आवश्यक हो उन बातों को ही सीधे ढ़ग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि पढ़ने वालों को अपना निर्णय तुरन्त देने में कठिनाई महसूस न हो।

२) भाषा:- टिप्पण की भाषा सुस्पष्ट हो और उसमें वर्णनात्मकता के बजाय भावों को अभिव्यक्ति देने की तीव्र शक्ति हो। सम्प्रेषण का उचित माध्यम भाषा को बनाया जाना चाहिए। टिप्पणी में कहावतों तथा मुहावरों का प्रयोग न करके विचारों तथा तथ्यों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए । टिप्पण में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए जिसे कि अर्थ-विषयक भ्रम पैदा हो। टिप्पण की भाषा सरल, स्पष्ट तथा संयत होनी चाहिए।

३) क्रमबध्दता:- टिप्पण लिखते समय विषय या तथ्यों को असम्बध्द तरीके से प्रस्तुत न करके क्रम के साथ विचारों की श्रृंखल को रखना चाहिए। आशय के आकलन के लिए टिप्पण में क्रमबध्दता होना बहुत ही आवश्यक बात है। इसी प्रकार टिप्पण यदि विस्तृत है तो उसके प्रथम अनुच्छेद को छोड़कर अन्य अनुच्छेदों को क्रम संख्या में बाँट देना चाहिए। इससे टिप्पण के निर्णय लेने वाले प्राधिकारी को विषय के आकलन में काफी सहायता मिलती है।

४) स्पष्टता:- कार्यालयी टिप्पण प्राय: स्पष्ट ढंग से लिखे जाने चाहिए। टिप्पण लेखन में शब्दों या वाक्यों का अनुचित और भ्रामक इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अतिशय उलझनपूर्ण, जटिल तथा कठिन विषय अथवा मामले को भी स्पष्टता के साथ बोधगम्य रीति से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

५) तटस्थता:- किसी भी उत्कृष्ट टिप्पण के लिए तटस्थता का होना भी निहायत जरूरी है। टिप्पण लिखते समय पदाधिकारी व्यक्ति को चाहिए कि व्यक्तिगत भावों, विचारों, अनुभूतियों तथा अच्छे बुरे पूर्वाग्रहों से नितान्त दूर रहकर केवल आवश्यक बातों एवं तथ्यों को ही टिप्पण में प्रक्षेपित करें।

६) प्रभावान्विति:- टिप्पण का संक्षिप्त एवं बोधागम्य होना आवश्यक होता है और साथ ही साथ उसे जहाँ आवश्यक हो अनुच्छेदों में विभाजित किया जाना चाहिए। परन्तु ऐसा करते समय इस बात की ओर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि शब्द, विचार, अनुच्छेद आदि के प्रभाव की अन्विति अस्त-व्यस्त न होकर ठीक ढ़ग से सुगठित रूप में होना चाहिए। पूरे टिप्पण का सकल प्रभाव स्पष्ट होना चाहिए।

७) शैली:- टिप्पण लेखन में शैली की अपनी स्वतन्त्र सत्ता और महत्ता होती है। वैसे, प्रत्येक व्यक्ति की लेखन की अपनी एक विशिष्ट शैली होती है किन्तु इसके बावजूद, शैली के बारे कुछ सामान्य एवं सर्वमान्य बातों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। एक बात विशेष ध्यान में रखी जानी चाहिए कि हिन्दी लेखन की शैली अंग्रेजी लेखन शैली से भिन्न होती है। अत: अंग्रेजी में सोचकर हिन्दी में अनुवाद के रूप में टिप्पण नहीं लिखा जाना चाहिए। जैसे-- Necessary action may kindly be taken at the earliest-- इसे हिन्दी में लिखते समय "कृपया तुरन्त आवश्यक कार्रवाई करें।" लिखा जाना चाहिए।

संदर्भ

१. प्रयोजनमूलक हिन्दी: सिध्दान्त और प्रयोग--- दंगल झाल्टे। पृष्ठ-- १६२-१६५

२. प्रयोजनमूलक हिन्दी--- विनोद गोदरे। पृष्ठ--१६१