समसामयिकी 2020/स्वास्थ्य

विकिपुस्तक से
  • एक प्रमुख जेनेरिक दवा कंपनी हेटेरो (Hetero) ने COVID-19 के उपचार के लिये ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (Drug Controller General of India- DCGI) से जाँच संबंधी एंटीवायरल दवा ’रेमडेसिविर’ (Remdesivir) के विनिर्माण एवं विपणन के लिये अनुमोदन प्राप्त किया है। रेमडेसिविर के जेनेरिक संस्करण को भारत में ब्रांड नाम ‘कोविफोर’ (COVIFOR) के तहत बेचा जाएगा। इससे पहले ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (DCGI) ने ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स को वैश्विक महामारी COVID-19 से पीड़ित मरीज़ों पर फैवीपिराविर एंटीवायरल टेबलेट्स (Favipiravir Antiviral Tablets) के चिकित्सीय परीक्षण करने की अनुमति दी है।

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया(Drug Controller General of India- DCGI) भारतीय दवा नियामक संस्था केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) का प्रमुख होता है। CDSCO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है। देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय, चार सब-ज़ोनल कार्यालय, तेरह पोर्ट ऑफिस और सात प्रयोगशालाएँ हैं। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

  • भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India-SoI) ने सरकारी एजेंसियों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को COVID-19 के प्रकोप के दौरान महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करने के लिये अनिवार्य आँकड़ों की आवश्यकता को ध्यान में रहते हुए बुनियादी ढाँचे पर डेटा एकत्र करने हेतु एक नया प्लेटफॉर्म तैयार किया है। इस प्लेटफॉर्म पर बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोज़ल, COVID-19 समर्पित अस्पतालों, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की परीक्षण प्रयोगशालाओं और क्वारंटाइन शिविरों के संबंध में जानकारी एकीकृत की जाएगी। इस प्लेटफॉर्म का समर्थन करने के लिये ‘सहयोग’ (SAHYOG) नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन भी बनाई गई है। यह एप सामुदायिक कार्यकर्त्ताओं की मदद से स्थान विशिष्ट डेटा एकत्र करने में मदद करेगा। सरकार द्वारा आवश्यक सूचना मापदंडों को ‘सहयोग’ (SAHYOG) एप में शामिल किया गया है, जो संपर्क ट्रेसिंग, जन जागरूकता और स्व-मूल्यांकन उद्देश्यों के मामले में सरकार के आरोग्य सेतु एप (Aarogya Setu) में इज़ाफा करेगा।

चर्चित वायरस या जीवाणु[सम्पादन]

  • लीशमैनियासिस (Leishmaniasis) एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी है। यह लीशमैनिया (Leishmania) नामक एक परजीवी के कारण होता है जो रेत मक्खियों (Sand Flies) के काटने से फैलता है।मानव शरीर में आंत की लीशमैनियासिस को आमतौर पर भारत में कालाज़ार (Kala-azar) के रूप में जाना जाता है। लीशमैनियासिस की चपेट में भारत सहित लगभग 100 देश हैं। लीशमैनियासिस के निम्नलिखित तीन मुख्य रूप हैं:
  1. आंत का (Visceral) लीशमैनियासिस: यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करती है और यह रोग का सबसे गंभीर रूप है।
  2. त्वचीय (Cutaneous) लीशमैनियासिस: यह बीमारी त्वचा के घावों का कारण बनता है और यह बीमारी का आम रूप है।
  3. श्लेष्मत्वचीय (Mucocutaneous) लीशमैनियासिस: इस बीमारी में त्वचा एवं श्लैष्मिक घाव होते हैं।

लीशमैनियासिस के इलाज के लिये उपलब्ध एकमात्र दवा मिल्टेफोसिन (Miltefosine) इस बीमारी के लिये ज़िम्मेदार परजीवी (लीशमैनिया) के अंदर इसके संचयन में कमी के कारण उभरते औषधि प्रतिरोध की वजह से तेज़ी से अपनी प्रभावशीलता खो रही है जो परजीवी को मारने के लिये आवश्यक है। ट्रांसपोर्टर प्रोटीन (Transporter Protein) के रूप में विख्यात विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन अणु इस परजीवी के शरीर में एवं उसके बाहर मिल्टेफोसिन को ले जाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। लीशमैनिया परजीवी एक कोशिकीय होता है। ‘P4ATPase-CDC50’ नामक प्रोटीन परजीवी द्वारा दवा के सेवन के लिये ज़िम्मेदार है और पी-ग्लाइकोप्रोटीन (P-glycoprotein) नामक एक अन्य प्रोटीन इस दवा को परजीवी के शरीर के भीतर से बाहर फेंकने के लिये ज़िम्मेदार है। ‘P4ATPase-CDC50’ प्रोटीन की गतिविधि में कमी और पी-ग्लाइकोप्रोटीन प्रोटीन की गतिविधि में वृद्धि से परजीवी के शरीर में कम मात्रा में मिल्टेफोसिन दवा जमा होती है। ऐसे में इस दवा के लिये औषधि प्रतिरोध की स्थिति बनती है।

  • यारावायरस (Yaravirus):- ब्राज़ील की एक झील में खोजे गए वायरस का नाम। इस वायरस का नामकरण एक पज़लिंग ओरिजिन एंड फिलोजेनी (Puzzling Origin And Phylogeny) के साथ अमीबा वायरस का एक नई वंशावली के रुप में किया गया है।

इसे यारावायरस नाम ब्राज़ील की देशज जनजाति टूपी-गुआरानी (Tupi-Guarani) की पौराणिक कहानियों में ‘मदर आफ वाटर्स’ (Mother Of Waters) जिसे ‘यारा’ (Yara) कहा जाता है, की याद में दिया गया है। यारावायरस के छोटे आकार के कारण यह अन्य वायरस से अलग है। यह अमीबा (Amoeba) को संक्रमित करता है और इसमें ऐसे जीन होते हैं जिनका उल्लेख पहले नहीं किया गया है। यारावायरस के जीनोम का 90% से अधिक हिस्से को पहले नहीं देखा गया, शोधकर्त्ताओं ने आनुवंशिक विश्लेषण के लिये मानक प्रोटोकॉल का उपयोग करने तथा किसी भी ‘क्लासिकल वायरल जीन्स’ को खोजने में असमर्थ होने के बाद इसके बारे में बताया। शोधकर्त्ताओं का कहना है कि अमीबा को प्रभावित करने वाले अन्य विषाणुओं में कुछ समानताएँ हैं जो यारावायरस में नहीं हैं। यह वायरस मानव कोशिकाओं को संक्रमित नहीं करता है।

स्वास्थ के क्षेेत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल[सम्पादन]

स्वास्थ्य के क्षेेत्र में राज्य सरकारों की पहल[सम्पादन]

  • कर्नाटक सरकार ने 27 मार्च, 2020 को बंगलूरु में 31 फीवर क्लीनिक (Fever Clinic) शुरू करने की घोषणा की है जिसमें उन लोगों की जाँच की जाएगी जिनको COVID-19 लक्षण होने की आशंका है। फीवर क्लीनिक लोगों का आकलन, परीक्षण, उपचार एवं उनको आश्वस्त करने के लिये समर्पित सुविधाएँ प्रदान करता हैं और जहाँ आवश्यक हो स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के माध्यम से उन्हें चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करता है। COVID-19 महामारी से निपटने के लिये कर्नाटक सरकार ट्रेस (Trace), टेस्ट (Test) और ट्रीट (Treat) के दृष्टिकोण को अपना रही है। इस तरह के एहतियाती कदम उठाने वाला कर्नाटक भारत का पहला राज्य है। यह न केवल पारंपरिक चिकित्सीय सेवाओं की मांग को कम करता है बल्कि संभावित रूप से बीमार लोगों एवं बुजुर्गों के बीच बीमारी के प्रसार को सीमित करता है।
  • पश्चिम बंगाल सरकार ने आर्सेनिक प्रतिरोधी चावल की नई किस्म मुक्तोश्री (Muktoshri) के व्यवसायीकरण की अनुमति दी है। मुक्तोश्री को आईईटी 21845 (IET 21845) नाम से भी जाना जाता है। इसे पश्चिम बंगाल के कृषि विभाग के अंतर्गत आने वाले राइस रिसर्च स्टेशन, चिनसुराह और राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। चावल की इस नई किस्म को वर्ष 2013 में विकसित किया गया था जबकि पश्चिम बंगाल सरकार ने वर्ष 2019 में मुक्तोश्री के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दी थी।

महत्त्व: पश्चिम बंगाल भूजल में आर्सेनिक की उच्चतम सांद्रता वाले राज्यों में से एक है जिसके सात ज़िलों के 83 ब्लॉकों में आर्सेनिक का स्तर सामान्य सीमा से अधिक है। कई अध्ययनों से पता चला है कि भूजल और मिट्टी के द्वारा आर्सेनिक धान के माध्यम से खाद्य शृंखला में प्रवेश कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार लंबे समय तक आर्सेनिक-युक्त जल के पीने एवं खाना पकाने में उपयोग करने से विषाक्तता हो सकती है। आर्सेनिक के कारण त्वचा क्षतिग्रस्त एवं त्वचा कैंसर जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की पहल (MoHFW)[सम्पादन]

  • COVID-19 के परीक्षण की सुविधा प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाने के लिये भारत का पहला मोबाइल आई-लैब (Mobile I-LAB) लॉन्च किया। यह एक संक्रामक रोग नैदानिक प्रयोगशाला है जिसे देश के सुदूर, आंतरिक एवं दुर्गम क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा।

इस लैब की क्षमता सीजीएचएस (Central Government Health Scheme) दरों पर प्रतिदिन 25 COVID-19 आरटी-पीसीआर परीक्षण, 300 एलिसा परीक्षण के अतिरिक्त टी.बी. एवं HIV परीक्षण की है। संक्रामक रोग नैदानिक प्रयोगशाला (I-LAB), COVID कमांड रणनीति के तहत केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Union Ministry of Science & Technology) के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) द्वारा समर्थित है। इस प्रकार सरकारी प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़कर 699 एवं निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ कर 254 हो गई है।

  • MoHFW ने CSIR और FSSAI के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान और खाद्य एवं पोषण के बारे में सूचना प्रसार के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि 'ईट राइट इंडिया' मूवमेंट (‘Eat Right India’ Movement) सुरक्षित, स्वस्थ एवं टिकाऊ भोजन की संस्कृति बनाने पर ज़ोर देता है। CSIR और FSSAI के बीच यह समझौता ज्ञापन भारत में पौष्टिक भोजन एवं उपभोक्ता सुरक्षा समाधान के क्षेत्र में एक उज्जवल भविष्य का निर्माण करेगा।

यह जलवायु-अनुकूल खाद्य उत्पादन प्रणालियों और भूमि एवं जल संसाधनों के संरक्षण पर एक विस्तारित ध्यान केंद्रित करेगा। वर्ष 2050 की परिकल्पित नई खाद्य प्रणाली में स्वस्थ, पौष्टिक, हरी साग-सब्जियों पर आधारित, स्थानीय, मौसमी एवं स्वदेशी खाद्य पदार्थों की मांग में वृद्धि देखी जाएगी। ‘ईट राइट इंडिया' आंदोलन (‘Eat Right India’ Movement)9 अगस्त, 2020 को भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के 'ईट राइट इंडिया' आंदोलन को नौ अन्य फाइनलिस्ट के साथ-साथ 'फूड सिस्टम विज़न पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।‘ईट राइट इंडिया’ आंदोलन खाद्य पर्यावरणीय परिदृश्य में सभी हितधारकों द्वारा किया गया एक सामूहिक प्रयास है। इसमें विनियामक क्रियाएँ एवं खाद्य व्यवसायों तथा उपभोक्ताओं की लक्षित पहल शामिल हैं।

  • मंत्री ने 14 मई, 2020 को ‘राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र‘ का दौरा किया और ‘सीओबीएएस 6800 परीक्षण मशीन’ (COBAS 6800 Testing Machine) राष्ट्र को समर्पित की। यह पहली ऐसी परीक्षण मशीन है जिसे केंद्र सरकार द्वारा COVID-19 मामलों के परीक्षण के लिये खरीदा गया है और इसे राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र में स्थापित किया गया है।

‘सीओबीएएस 6800 परीक्षण मशीन’ 24 घंटों में लगभग 1200 नमूनों का सटीक परीक्षण कर सकेगी। यह परीक्षण प्रक्रिया में कमी लाने के साथ जाँच क्षमता में व्यापक वृद्धि करेगी। इसमें रोबोटिक्स तकनीकी का प्रयोग किया गया है जो संदूषण की संभावना को कम करता है तथा स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं में संक्रमण के जोखिम को न्यूनतम करता है क्योंकि इसे सीमित मानव हस्तक्षेपों के साथ दूर से संचालित किया जा सकता है। चूँकि मशीन को परीक्षण के लिये न्यूनतम ‘बायोसेफ्टी लेवल टू प्लस’ (BSL2+) नियंत्रण स्तर की आवश्यकता होती है इसलिये इसे किसी भी विशेष सुरक्षा के साथ ही प्रतिस्थापित किया जा सकता है। यह अन्य रोगजनकों जैसे- वायरल हेपेटाइटिस B&C, HIV, MTB (रिफैम्पिसिन एवं आइसोनियाज़ाइड रेसिस्टेंस), पैपिलोमा, CMV, क्लैमाइडिया, नैसेरेईया आदि का पता भी लगा सकती है।

  • केंद्र सरकार ने ‘आरोग्य सेतु एप’ को उपयोगकर्त्ताओं को ‘ओपन-सोर्स’ (Open-Source) के रूप में उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। आईओएस (iPhone Operating System- iOS) संस्करण अगले दो सप्ताह में जारी किया जाएगा तथा सर्वर कोड बाद में जारी किया जाएगा। आरोग्य सेतु एप के 98% उपयोगकर्त्ता एंड्रॉयड फोन का उपयोग करते हैं।'सार्वजनिक-निजी साझेदारी' के जरिये तैयार इस एप का मुख्य उद्देश्य COVID-19 से संक्रमित व्यक्तियों एवं उपायों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराना है। एक बार स्मार्टफोन में इन्स्टॉल होने के पश्चात् यह एप नज़दीक के किसी फोन में आरोग्य सेतु के इन्स्टॉल होने की पहचान कर सकता है
ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता है जिसमें डेवलपर्स द्वारा; जिसने सॉफ्टवेयर का निर्माण किया है, सॉफ्टवेयर के सोर्स कोड (वह कोड जिससे प्रोग्राम बनता हैं) को एक लाइसेंस के साथ सभी के लिये सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराया जाता है। जिसमें अन्य सॉफ्टवेयर डेवलपर्स तथा एप उपयोगकर्त्ता आवश्यक सुधार कर सकते हैं।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ ‘ई-संजीवनी’ और ‘ई-संजीवनी ओपीडी’ प्लेटफॉर्मों (राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवा प्लेटफॉर्मों) की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए इन टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों को लोकप्रिय बनाने में राज्यों के योगदान की सराहना की। सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (Centre for Development of Advanced Computing: C-DAC) द्वारा विकसित किया गया है।

नवंबर, 2019 के बाद बहुत कम समय में ही ‘ई-संजीवनी’ और ‘ई-संजीवनी ओपीडी’ द्वारा टेली-परामर्श कुल 23 राज्यों (जिसमें देश की 75 प्रतिशत आबादी रहती है) द्वारा लागू किया गया है और अन्य राज्य इसको शुरू करने की प्रक्रिया में हैं। तमिलनाडु (32,035 परामर्श) और आंध्रप्रदेश (28,960 परामर्श) आदि शामिल हैं।

ई-संजीवनी:-डॉक्टर-टू-डॉक्टर टेली-परामर्श संबंधी इस प्रणाली का कार्यान्वयन आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AB-HWCs) कार्यक्रम के तहत किया जा रहा है। इसके तहत वर्ष 2022 तक ‘हब एंड स्पोक’ (Hub and Spoke) मॉडल का उपयोग करते हुए देश भर के सभी 1.5 लाख स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में टेली-परामर्श प्रदान करने की योजना बनाई गई है।

इस मॉडल में राज्यों द्वारा पहचाने एवं स्थापित किये गए चिकित्‍सा कॉलेज तथा ज़िला अस्पताल ‘हब’ (Hub) के रूप में कार्य करेंगे और वे देश भर के स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों यानी ‘स्पोक’ (Spoke) को टेली-परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराएंगे। ई-संजीवनी ओपीडी:-इसकी शुरुआत COVID-19 महामारी के दौर में रोगियों को घर बैठे डॉक्टरों से परामर्श प्राप्त करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से की गई थी, इसके माध्यम से नागरिक बिना अस्पताल जाए व्यक्तिगत रूप से डॉक्टरों से परामर्श कर सकते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह एंड्रॉइड मोबाइल एप्लीकेशन के रूप में सभी नागरिकों के लिये उपलब्ध है। वर्तमान में लगभग 2800 प्रशिक्षित डॉक्टर ई-संजीवनी ओपीडी (eSanjeevaniOPD) पर उपलब्ध हैं, और रोज़ाना लगभग 250 डॉक्टर और विशेषज्ञ ई-स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं। इसके माध्यम से आम लोगों के लिये बिना यात्रा किये स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ प्राप्त करना काफी आसान हो गया है। टेलीमेडिसिन का अर्थ? टेलीमेडिसिन स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की एक उभरती हुई शैली है, जो कि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को दूरसंचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए कुछ दूरी पर बैठे रोगी की जाँच करने और उसका उपचार करने की अनुमति देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, टेलीमेडिसिन का अभिप्राय पेशेवर स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (IT) का उपयोग करके ऐसे स्थानों पर रोगों की जाँच, उपचार तथा रोकथाम, अनुसंधान और मूल्यांकन आदि की सेवा प्रदान करना है, जहाँ रोगी और डॉक्टर के बीच दूरी एक महत्त्वपूर्ण कारक हो। टेलीमेडिसिन का सबसे शुरुआती प्रयोग एरिज़ोना प्रांत के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे लोगों को आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रदान करने के लिये किया गया। गौरतलब है कि राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) ने टेलीमेडिसिन के शुरुआती विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं भारत में इसरो ने वर्ष 2001 में टेलीमेडिसिन सुविधा की शुरू पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर की थी, जिसने चेन्नई के अपोलो अस्पताल को चित्तूर ज़िले के अरगोंडा गाँव के अपोलो ग्रामीण अस्पताल से जोड़ा था।

  • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना पॉलिसी ब्रिफ (8): पीएमजेएवाई अंडर लॉकडाउन: एविडेंस ऑन यूटिलाइज़ेशन ट्रेंड’ (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana Policy Brief (8): PMJAY Under Lockdown :Evidence on Utilization Trends) के अनुसार, देश भर में लॉकडाउन के कारण प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana) का लाभ उठाने वाले मरीज़ों की देखभाल पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है।

इस विश्लेषण में 1 जनवरी से 2 जून 2020 तक 22 सप्ताह के डेटा को शामिल किया गया । संपूर्ण देश में 25 मार्च से लॉकडाउनको शुरू हुआ जो 1 जून तक था। प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना ट्रांज़ेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (Transaction Management System- TMS) से लिये गए आँकड़ों पर आधारित है। इस प्रक्रिया में, नियोजित सर्ज़री जैसे-मोतियाबिंद के ऑपरेशन और संयुक्त प्रतिस्थापन (Joint Replacements) में 90% से अधिक की कमी देखी गई है , जबकि हेमोडायलिसिस (जिसे डायलिसिस भी कहा जाता है जो रक्त को शुद्ध करने की एक प्रक्रिया है) में केवल 20% की कमी आई है। कुल मिलाकर, लॉकडाउन के 10 सप्ताह के दौरान औसत साप्ताहिक दावा परिणाम (Weekly Claim Volumes) लॉकडाउन से पहले 12 सप्ताह के साप्ताहिक औसत से 51% कम रहा है। इस योजना के लाभार्थियों की संख्या में असम में सबसे अधिक कमी (75% से अधिक) देखी गई, उसके बाद महाराष्ट्र और बिहार में, जबकि उत्तराखंड, पंजाब और केरल में बहुत कम गिरावट, लगभग 25% या उससे कम देखी गई है। बच्चों के जन्म तथा ऑन्कोलॉजी (ट्यूमर का अध्ययन और उपचार) के लिये अस्पतालों में भर्ती होने वालों की संख्या में महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई है। नवजात शिशुओं के संदर्भ में 24% की गिरावट देखी गई है। नवजात शिशुओं की देखभाल के संदर्भ में सार्वजनिक से निजी अस्पतालों में थोड़ा परिवर्तन देखा गया है जिसके तहत तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में सर्वाधिक परिवर्तन रहा है। संपूर्ण देश के कुछ राज्यों में ऑन्कोलॉजी के परिणामों (Oncology Volumes) में 64% की कमी देखी गई है। सार्वजनिक क्षेत्र जो PMJAY के तहत ऑन्कोलॉजी देखभाल में एक छोटी भूमिका निभाता है, जिसमे महाराष्ट्र में 90% एवं तमिलनाडु में 65% की कमी आई है।

  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन चार पिलर यानि कि स्तंभ पर काम करेगा। आइए जानते हैं कि वो चार स्तंभ क्या होंगे...
  1. हेल्थ आईडी:-हर नागरिक को एक यूनिक हेल्थ आईडी दी जाएगी और विकल्प दिया जाएगा कि वो उसे अपने आधार से लिंक करवाए या नहीं। ये आईडी राज्यों, अस्पतालों, पैथालॉजिकल लैब और फार्मा कंपनियों में उपयुक्त होगी। ये आईडी पूरी तरह से स्वैच्छिक तरीके से काम करेगी। 
  2. डिजिडॉक्टर:-इस प्लेटफॉर्म के जरिए देश के हर डॉक्टर को यूनिक पहचानकर्ता दिया जाएगा। ये नंबर रजिस्ट्रेशन नंबर से अलग होगा। रजिस्ट्रेशन नंबर राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद की ओर से हर डॉक्टर को दिया जाएगा। डॉक्टर को डिजिटल हस्ताक्षर दिया जाएगा, जिसकी मदद से वो मरीजों को प्रिसक्रिप्शन लिखा जाएगा।
  3. स्वास्थ्य सुविधा पहचानकर्ता:-डॉक्टर और मरीज की तरह ही हर स्वास्थ्य सुविधा जो एक यूनिक इलेक्ट्रॉनिक पहचान दी जाएगी। ये सुनिश्तित करेगा कि सभी सुविधाएं अप्रयुक्त रूप से मैप की गई है और अपने पहचानकर्ता सुविधा के जरिए अपने सभी क्लीयरेंस और ऑडिट के लिए इस्तेमाल की जाएगी।
  4. निजी स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स:-इन निजी रिकॉर्ड्स में नागरिक की सारी स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों सम्मिलित होंगी। इसमें जन्म से लेकर प्रतिरक्षा, सर्जरी, प्रयोगशाला टेस्ट तक सारी जानकारी होंगी। इसे हर नागरिक की हेल्थ आईडी से लिंक किया जाएगा। इस निजी हेल्थ रिकॉर्ड इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसमें अपने डाटा का स्वामित्व किसी व्यक्ति के पास ही होगा। [१]
  • दिल्ली पुलिस की आवासीय कॉलोनियों में संरक्षणकारी और संवर्द्धनकारी स्वास्थ्य सेवाओं की आयुर्वेदिक पद्धति पहुँचाने के लिये दिल्ली पुलिस और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान ने एक MoU पर हस्ताक्षर किये हैं। ये सेवाएँ ‘धन्वंतरि रथ’ नामक एक चलती-फिरती इकाई तथा पुलिस कल्याण केंद्रों के माध्यम से प्रदान की जाएंगी।

धन्वंतरि रथ और पुलिस कल्याण केंद्रों की पहुँच AIIA की OPD (OutPatient Department) सेवाओं तक होंगी और इनका लक्ष्य आयुर्वेदिक निवारक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के माध्यम से दिल्ली पुलिस के परिवारों को लाभान्वित करना है। धन्वंतरि रथ- आयुर्वेद स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की चलती-फिरती इकाई में डॉक्टरों की एक टीम शामिल होगी जो नियमित रूप से दिल्ली पुलिस की कॉलोनियों का दौरा करेगी। इन आयुर्वेदिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से विभिन्न रोगों के प्रसार और अस्पतालों में रेफरल की संख्या को कम करने में सहायता मिलेगी, जिससे रोगियों की संख्या के साथ-साथ स्वास्थ्य प्रणालियों की लागत में भी कमी आएगी। इससे पहले, AIIA और दिल्ली पुलिस के एक संयुक्त उपक्रम के रूप में आयुरक्षा-AYURAKSHA की शुरुआत की गई थी, इसे आयुर्वेदिक प्रतिरक्षा बढ़ाने के उपायों के माध्यम से दिल्ली पुलिस के कर्मियों जैसे फ्रंटलाइन कोविड योद्धाओं के स्वास्थ्य को सही बनाए रखने के लिये शुरू किया गया था।

आयुर्वेद तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित कर व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार करता है। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्त्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परन्तु यदि इनका संतुलन बिगड़ता है, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है। अतः आयुर्वेद में इन्हीं तीनों तत्त्वों के मध्य संतुलन स्थापित किया जाता है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने पर भी बल दिया जाता है, ताकि व्यक्ति सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो।

अथर्ववेद मुख्य रूप से व्यापक आयुर्वेदिक जानकारी से संबंधित है। इसीलिये आयुर्वेद को अथर्ववेद की उप-शाखा कहा जाता है। आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) मंत्रालय का गठन वर्ष 2014 में स्वास्थ्य देखभाल की आयुष प्रणालियों के इष्टतम विकास और प्रसार को सुनिश्चित करने के लिये किया गया था।

अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (All India Institute of Ayurveda)आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है।

इसकी कल्पना आयुर्वेद के लिये एक शीर्ष संस्थान के रूप में की गई है। इसका लक्ष्य आयुर्वेद के पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक उपकरणों एवं प्रौद्योगिकी के बीच एक तालमेल स्थापित करना है। यह संस्थान आयुर्वेद के विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट पाठ्यक्रम प्रदान करने के साथ-साथ आयुर्वेद, औषधि विकास, मानकीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण, सुरक्षा मूल्यांकन और आयुर्वेदिक चिकित्सा के वैज्ञानिक सत्यापन के मौलिक अनुसंधान पर केंद्रित है।यह नई दिल्ली में स्थित है।

  • इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (eVIN) 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक पहुँच चुका है और शीघ्र ही शेष राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों- अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, लद्दाख और सिक्किम में पहुँच जाएगा।

इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (eVIN)एक नवीन तकनीकी समाधान है जिसका उद्देश्य देश भर में टीकाकरण आपूर्ति श्रृंखला प्रणालियों को मज़बूत करना है। इसका कार्यान्वयन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत किया जा रहा है। eVIN का लक्ष्य देश के सभी कोल्ड चेन पॉइंट्स पर वैक्सीन के भंडार तथा बाज़ार में उपलब्धता एवं भंडारण तापमान पर रियल टाइम जानकारी देना है। COVID-19 महामारी के दौरान अपेक्षित अनुकूलन के साथ आवश्यक प्रतिरक्षण सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने और बच्चों एवं गर्भवती माताओं के टीकाकरण के लिये इस प्रणाली का उपयोग किया गया है। eVIN के घटक: -eVIN देश भर में कई स्थानों पर रखे गए टीकों के स्टॉक और भंडारण तापमान की रियल टाइम निगरानी करने के लिये एक मज़बूत आईटी अवसंरचना और प्रशिक्षित मानव संसाधन को आपस में जोड़ती है। वर्तमान में 22 राज्यों और 5 केंद्रशासित प्रदेशों के 585 ज़िलों में 23,507 कोल्ड चेन पॉइंट्स नियमित रूप से कुशल वैक्सीन लॉजिस्टिक्स प्रबंधन के लिये eVIN तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। eVIN का लाभ: इससे एक बड़ा डेटा आर्किटेक्चर बनाने में मदद मिली है जो आँकड़ों के आधार पर निर्णय लेने और खपत आधारित योजना बनाने को प्रोत्साहित करने वाले क्रियात्मक विश्लेषण सृजित करता है जिससे कम लागत पर अधिक टीकों के भंडारण में मदद मिलती है। eVIN के कारण भारत के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों में प्रत्येक समय टीके की उपलब्धता होने की संभावना बढ़कर 99% हो गई है। जबकि वैक्सीन स्टॉक में कमी होने की संभावना को 80% तक घटाया गया है और स्टॉक को फिर से भरने का समय भी औसतन आधे से अधिक घट गया है। इससे यह सुनिश्चित हो गया है कि टीकाकरण स्थल पर पहुँचने वाले प्रत्येक बच्चे का टीकाकरण किया जाता है और टीकों की अनुपलब्धता के कारण उन्हें वापस नहीं भेजा जाता है।

  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम1940 की धारा-3 के अनुसार,1अप्रैल 2020 से चिकित्सीय उपकरणों को‘औषधि (Drugs)’का दर्जा प्राप्त। धारा-3 के अनुसार,चिकित्सा उपकरणों में इम्प्लांटेबल चिकित्सीय उपकरणों जैसे घुटने के प्रत्यारोपण (Knee Implants),सीटी स्कैन (CT Scan),MRI उपकरण (MRI Equipment), डीफिब्रिलेटर (Defibrillators),डायलिसिस मशीन (Dialysis Machine),पीईटी उपकरण (PET Equipment),एक्स-रे मशीन (X-ray Machine) आदि शामिल हैं। अधिसूचना के अनुसार,सभी चिकित्सा उपकरणों के निर्माताओं को अब आयात और बिक्री के लिये केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ( Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO)[MoHFW] से इन उपकरणों को प्रमाणित करवाने की आवश्यकता होगी।

औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम,1940

  1. यह औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण,बिक्री तथा संवितरण को विनियमित करता है।
  2. इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति या फर्म राज्य सरकार द्वारा जारी उपयुक्त लाइसेंस के बिना औषधियों का स्टाॅक,बिक्री या वितरण नहीं कर सकता।
  3. वर्ष 1940 में इस कानून की धारा-26 को संशोधित कर मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संस्थाओं को औषधि तथा प्रसाधन सामग्री का नमूना परीक्षण तथा विश्लेषण करने के लिये अधिकृत किया गया।
  4. इस अधिनियम के अंतर्गत तकनीकी मामलों पर केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को परामर्श देने के लिये औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया।
  • हाल ही में ‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय’ ( Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा वर्चुअल कार्यक्रम के माध्यम से वार्षिक तपेदिक (टीबी) रिपोर्ट, 2020 (Annual Tuberculosis Report, 2020) जारी की गई है। इंडिया टीबी रिपोर्ट, 2020 के अनुसार, वर्ष 2019 में लगभग 24.04 लाख टीबी (क्षय) मरीज़ों को अधिसूचित/चिन्हित किया गया है जो वर्ष 2018 की तुलना में 14% अधिक हैं। रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में टीबी-एचआईवी से एक साथ होने वाली मौतों की संख्या में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है जिसमे कुल 9% मरीज़ शामिल हैं।

तपेदिक के कुल मामलों में आधे से अधिक वाले पाँच शीर्ष राज्य:-उत्तर प्रदेश (20%), महाराष्ट्र (9%), मध्यप्रदेश (8%) राजस्थान (7%) और बिहार (7%) हैं। देश में तपेदिक के कुल आधे से अधिक मामले उपर्युक्त पाँच राज्यों में देखे गए हैं। तपेदिक नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन करने वाले बड़े राज्य:-गुजरात, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश 50 लाख आबादी वाले राज्यों की श्रेणी में तपेदिक नियंत्रण के लिये शीर्ष तीन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं। तपेदिक नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन करने वाले छोटे राज्य: नागालैंड और त्रिपुरा 50 लाख से कम आबादी वाले शीर्ष राज्यों की श्रेणी में तपेदिक नियंत्रण के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2000 में ‘हाथीपाँव उन्मूलन के लिये वैश्विक कार्यक्रम’ (Global Programme to Eliminate Lymphatic Filariasis- GPELF) शुरू किया गया था।

हाथीपाँव रोग के उन्मूलन की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2018 में ‘हाथीपाँव रोग के तीव्र उन्मूलन की कार्य-योजना’ (Accelerated Plan for Elimination of Lymphatic Filariasis- APELF) नामक पहल की थी। यह एक वेक्टर जनित रोग है, जिसका प्रसार उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में होता है।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तपेदिक के निदान के लिये भारत के स्वदेशी उपकरण ट्रूनाट (TrueNat) को सार्वजनिक करने की स्वीकृति दी। ट्रूनाट टीबी परीक्षण (TrueNat TB test) एक नया आणविक परीक्षण है जो एक घंटे में टीबी की जाँच कर सकता है और साथ ही यह रिफैम्पिसिन (Rifampicin) से उपचार के प्रति प्रतिरोध की भी जाँच कर सकता है। रिफैम्पिसिन (Rifampicin) एक एंटीबायोटिक है जिसका उपयोग कई प्रकार के जीवाणु संक्रमणों जैसे-तपेदिक का इलाज करने के लिये किया जाता है।
गोवा की मोलबायो डायग्नोस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड (MolBio Diagnostics Pvt Ltd) कंपनी द्वारा विकसित किया गया है।

वर्ष 2018 में लगभग 10 मिलियन लोग टीबी से प्रभावित थे जिनमें 1.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि हर वर्ष कम-से-कम एक लाख बच्चे इस बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं। मल्टीड्रग2 (Multidrug2) और रिफैम्पिसिन प्रतिरोधी तपेदिक (Rifampicin Resistant Tuberculosis- MDR/RR-TB) के लगभग 5,00,000 नए मामले प्रतिवर्ष सामने आते हैं किंतु वर्ष 2018 में निदान एवं उपचार के दौरान तीन में से केवल एक मामले का पता लगाया जा सका था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि वर्ष 2010 में Xpert MTB/RIF के आने के बाद मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस और रिफैम्पिसिन प्रतिरोधी तपेदिक के प्रारंभिक परीक्षण में सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं। Xpert MTB/RIF एक न्यूक्लिक एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्ट (Nucleic Acid Amplification Test- NAAT) है जो मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium Tuberculosis-MTB) और रिफैम्पिसिन (RIF) के प्रतिरोध की पहचान कर लेता है।

  • केंद्र सरकार ने बल्क ड्रग और मेडिकल डिवाइस पार्क (Scheme for promotion of Bulk Drug Parks) के विकास के लिये दिशा-निर्देशों की घोषणा की है।

इस योजना के अंतर्गत राज्यों की भागीदारी के साथ अगले पाँच वर्षों में 3 बल्क ड्रग और मेडिकल डिवाइस पार्क स्थापित किये जाएंगे।केंद्र सरकार राज्यों को अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। अनुदान राशि उत्तर-पूर्व और पहाड़ी राज्यों के लिये परियोजना की लागत का 90 प्रतिशत तथा अन्य राज्यों के मामले में 70 प्रतिशत होगी। इन पार्कों में आम सुविधाएँ जैसे-सॉल्वेंट रिकवरी प्लांट, डिस्टिलेशन प्लांट, पावर एंड स्टीम यूनिट्स, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट आदि होंगी। योजना का प्रभाव:-इस योजना से देश में थोक दवाओं की विनिर्माण लागत में कमी और थोक दवाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता में कमी होने की उम्मीद है। इसके अलावा दवा विनिर्माण से संबंधित सामान्य बुनियादी सुविधाएँ भी मज़बूत होंगी। कार्यान्वयन:-इस योजना का कार्यान्वयन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा स्थापित राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों (State Implementing Agencies- SIA) द्वारा किया जाएगा। पृष्ठभूमि: भारतीय दवा उद्योग विश्व का तीसरा दवा उद्योग है, इसके बावजूद भी भारत दवाओं के निर्माण हेतु आवश्यक कच्चे माल के लिये काफी हद तक आयात पर निर्भर है। यहाँ तक कि कुछ बल्क ड्रग्स के निर्माण के लिये आयात निर्भरता 80 से 100% है।

  • 1-7 मार्च, 2020 तक देश भर में जन औषधि सप्‍ताह मनाया गया। इस दौरान स्वास्थ्य जाँच शिविर, ‘जन औषधि परिचर्चा’ एवं ‘जन औषधि का साथ’ जैसी विभिन्‍न गतिविधियाँ चलाई जा रही हैं।

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा आयोजित। इस दौरान देश भर में रक्‍तचाप, मधुमेह की जाँच, डाक्‍टरों द्वारा निशुल्‍क चिकित्‍सा जाँच एवं दवाओं का मुफ्त वितरण किया जा रहा है।

‘प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना’ भारत सरकार के फार्मास्यूटिकल्स विभाग की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना है जो सस्‍ती दरों पर गुणवत्‍तापूर्ण दवाएँ उपलब्‍ध करा कर आम जनता को लाभ पहुँचा रही है।

वर्तमान में ऐसे केंद्रों की संख्या 6200 से अधिक हैं और 700 ज़िलों को इस योजना के दायरे में लाया जा चुका है। वित्‍त वर्ष 2019-20 के दौरान फरवरी 2020 तक इन केंद्रों से 383 करोड़ रुपए से अधिक की दवाएँ बेची गईं। औसत बाज़ार कीमतों पर बेची जाने वाली दवाओं की तुलना में 50-90% तक सस्ती होने के कारण इससे आम जनता को करीब 2200 करोड़ रुपए से अधिक की बचत हुई।

  • आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध चिकित्सा पद्धति एवं शब्दावली के मानकीकरण पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (International Conference on Standardisation of Diagnosis and Terminologies in Ayurveda, Unani and Siddha Systems- ICoSDiTAUS-2020) का आयोजन नई दिल्ली में 25-26 फरवरी, 2020 के दौरान आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।

इस सम्मेलन में पारंपरिक चिकित्सा को महत्त्व देने वाले श्रीलंका,मॉरीशस,सर्बिया,कुराकाओ,क्यूबा,म्याँमार,इक्वेटोरियल गिनी,कतर,घाना,भूटान,उज़्बेकिस्तान,भारत,स्विट्ज़रलैंड,ईरान,जमैका और जापान समेत 16 देशों ने भाग लिया।

ICoSDiTAUS-2020 अब तक के सभी महाद्वीपों को कवर करने वाली व्यापक स्तर की भागीदारी के संदर्भ में पारंपरिक चिकित्सा के निदान एवं शब्दावली के मानकीकरण के लिये समर्पित सबसे मुख्य अंतर्राष्ट्रीय पहल है।

सभी देशों द्वारा पारंपरिक चिकित्सा निदान डेटा के संग्रह और वर्गीकरण पर नई दिल्ली घोषणा (New Delhi Declaration on Collection and Classification of Traditional Medicine (TM) Diagnostic Data) को अपनाया गया। नई दिल्ली घोषणा में स्वास्थ्य देखभाल के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पारंपरिक चिकित्सा के लिये देशों की प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया गया। इस सम्मेलन में आयुर्वेद, यूनानी एवं सिद्ध जैसे पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भविष्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है।

  • कोरोनावायरस की चुनौती से निपटने हेतु समन्वित शोध कार्यक्रमों के संचालन के लिये एक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है। जिसकी अध्यक्षता नीति आयोग के एक सदस्य और भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Adviser) द्वारा की जाएगी।

देश में COVID-19 के नियंत्रण और इसके परीक्षणों की मात्रा में वृद्धि की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान और विकास पर तेज़ निर्णय लेने के लिये इस समिति में अनेक महत्त्वपूर्ण संस्थानों के व्यक्तियों और भारत सरकार के कई विभागों के सचिवों के साथ अन्य विशेषज्ञों को भी जोड़ा गया है। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ( Department of Science & Technology- DST)
  2. जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology- DBT)
  3. वैज्ञानिक और औद्योगिकी अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR)
  4. इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय
  5. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO)
  6. विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी)
  7. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) और भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) आदि

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, यह समिति विभिन्न विज्ञान एजेंसियों, वैज्ञानिकों, नियामकीय संस्थाओं और औद्योगिक क्षेत्र के बीच संपर्क और अन्य मामलों में सहायता प्रदान करने का कार्य करेगी। उद्देश्य:- पहले से उपलब्ध ऐसी दवाओं के बारे में जानकारी जुटाना जिनका उपयोग COVID-19 के नियंत्रण के लिये किया जा सके तथा इस प्रक्रिया के कानूनी पहलुओं पर विचार करना। COVID-19 के प्रसार की निगरानी और चिकित्सा उपकरणों तथा अन्य सहायक ज़रूरतों का अनुमान लगाने के लिये गणितीय मॉडल तैयार करना। भारत में COVID-19 परीक्षण किट और वेंटीलेटर के विनिर्माण में सहयोग करना। COVID-19 पर नियंत्रण के अन्य प्रयास: स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित लोगों और उनके संपर्क में आए अन्य व्यक्तियों की पहचान सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों के सहयोग से कड़े कार्यक्रम चलाए जा रहें हैं। साथ ही COVID-19 की चुनौती से निपटने में आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों जैसे- मास्क (Mask), वेंटीलेटर (Ventilator) आदि की उपलब्धता की निगरानी की जा रही है। आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिये स्वास्थ्य मंत्रालय सभी राज्यों, कपड़ा मंत्रालय (Ministry of Textiles) और उपकरण निर्माता कंपनियों तथा फैक्टरियों से समन्वय बनाए हुए है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा वेबसाइट के माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत एएनएम (ANM), आशा (ASHA), आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आयुष चिकित्सकों और नर्सों आदि को COVID-19 से संक्रमित मामलों में क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। इसके तहत COVID-19 से संक्रमित मरीजों के पर्यवेक्षण, प्रयोगशाला परीक्षण, चिकित्सीय ​​प्रबंधन, अलगाव सुविधा (Isolation facility) प्रबंधन , गहन देखभाल (Intensive Care) आदि से संबंधित जानकारी को शामिल किया गया है। इस पहल के तहत 30 मार्च, 2020 को स्वस्थ्य मंत्रालय द्वारा दो वेबिनार (webinar) के आयोजन के माध्यम से लगभग 15,000 नर्सों को ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया।

  • राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (National Deworming Day) केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 30 करोड़ बच्चों और किशोर-किशोरियों को लाभान्वित करने के उद्येश्य से आयोजित किया। इसके 10वें चरण का आयोजन किया गया।

कृमि मुक्ति दिवस वर्ष में दो बार 10 फरवरी और 10 अगस्त को सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में मनाया जाता है। इस अभियान के तहत सरकारी स्कूलों, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों, आँगनवाड़ियों, निजी स्कूलों तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों में 1-19 वर्ष की आयु के बच्चों और किशोर-किशोरियों को कृमि से बचाव हेतु सुरक्षित दवा अलबेंडेज़ौल (Albendazole) दी जाती है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य मिट्टी के संक्रमण से आंतों में उत्पन्न होने वाले परजीवी कृमि को खत्म करना है। राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस सभी स्वास्थ्य कर्मियों, राज्य सरकारों और दूसरे हितधारकों को मिट्टी-संचारित कृमि संक्रमण के खात्मे के लिये प्रयास करने हेतु प्रेरित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 14 वर्ष से कम आयु के लगभग 22 करोड़ से अधिक बच्चों को मिट्टी-संचारित कृमि संक्रमण का खतरा है। कृमि मुक्ति अभियान वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। अब तक इसके नौ चरण पूरे हो चुके हैं, यह 10वाँ चरण है। इस वर्ष 19 राज्यों की 9.35 करोड़ आबादी तक पहुँचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से कार्यान्वित राष्ट्रीय कृमि निवारण दिवस का मुख्य लक्ष्य एनीमिया मुक्त भारत का निर्माण करना है। इस मिशन की सफलता और प्रभाव स्वच्छ भारत मिशन के अनुरूप है।
  • चित्रा एक्रीलोसोर्ब सेक्रेशन सालिडिफिकेशन सिस्टम (Chitra Acrylosorb Secretion Solidification System) का विकास श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। यह संक्रमित श्वसन स्रावों के सुरक्षित प्रबंधन तथा शरीर के अन्य द्रवों को ठोस में बदलने एवं उनका कीटाणुशोधन करने के लिये एक अत्यधिक कुशल सुपर एब्सॉरबेंट (Superabsorbent) सामग्री है। यह वजन की तुलना में कम-से-कम 20 गुना अधिक वजन वाले तरल पदार्थ को अवशोषित कर सकता है और इसमें स्व-स्थानीय विसंक्रमण के लिये एक विसंदूषण (Decontamination) भी होता है।
तरल पदार्थ के छलकाव से बचने के लिये इस सामग्री से भरे कंटेनर दूषित तरल पदार्थ को ठोस में बदल कर उसे स्थिर करेंगे जिससे संक्रमित/दूषित तरल पदार्थ को फैलने से रोका जा सकेगा और इसको कीटाणुरहित भी किया जा सकेगा।

ठोस रूप में परिवर्तित होने के बाद इसे भस्मीकरण द्वारा अन्य बायोमेडिकल अपशिष्ट की तरह ही विघटित किया जा सकता है। सक्शन कैनिस्टर्स (Suction Canisters), डिस्पोज़ेबल स्पिट बैग्स (Disposable Spit Bags) की डिज़ाइन ‘एक्रीलोसोर्ब प्रौद्योगिकी’ द्वारा किया गया है। जिनके अंदर एक्रीलोसोर्ब सामग्री भरी हुई है। एक्रीलोसौर्ब सक्शन कनस्तर आईसीयू रोगियों या वार्डों में उपचारित प्रचुर तरल श्वसन स्त्राव पदार्थ का संग्रह करेगा। यह कंटेनर स्पिल-प्रूफ होगा और इसे बायोमेडिकल अपशिष्टों की तरह सामान्य भस्मीकरण प्रणाली के जरिये निपटान के लिये सुरक्षित एवं अनुकूल बनाते हुए उपयोग के बाद सील किया जा सकता है।

श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी (SCTIMST) भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्तशासी संस्थान है।
  • दूरस्थ रोगी स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली(Remote Patient Health Monitoring System) का विकास COVID-19 संक्रमण के गंभीर मामलों से निपटने के लिये भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान द्वारा किया गया है। इस प्रणाली को COVID-19 संक्रमित व्यक्ति के घरों या अस्पतालों में स्थापित किया जा सकता है जिससे स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कर्मचारियों को संक्रमित होने से बचाया जा सके।

इस प्रणाली के विकास से व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment) और लाजिस्टिक्स की बढ़ती मांग में कमी आयेगी। इस प्रणाली में ऐसे नान- इनवेसिव सेंसर का प्रयोग किया गया है जो COVID-19 संक्रमित व्यक्ति की पहचान करने में सक्षम हैं। जिसके तहत ये व्यक्ति के तापमान, पल्स रेट, SPO2 या संतृप्त ऑक्सीजन स्तर तथा श्वसन दर की जाँच करते हैं। भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा प्रदान किये गए इनपुट के आधार पर इस प्रणाली का विकास प्रूफ ऑफ कांसेप्ट (Proof of Concept) माडल के तहत किया गया हैं। इस प्रणाली की क्रिया विधि: लोगों में COVID-19 के लक्षण दिखने के बाद ऋषिकेश स्थित एम्स में भर्ती होने के लिये एक मोबाइल एप और वेब ब्राउज़र विकसित किया गया है। एम्स रोगी के लक्षणों का अध्ययन करेगा और चिकित्सीय ​​विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन के आधार पर महत्त्वपूर्ण मापदंडों के साथ आवधिक निगरानी के लिये एक स्वास्थ्य निगरानी किट रोगी को सौंपी जाएगी। रोगी के मोबाइल फोन या इंटीग्रल जीएसएम सिम कार्ड का उपयोग करके रोगी की अवस्थिति के साथ उसके स्वास्थ्य मापदंडों को नियमित रूप से क्लाउड स्टोरेज पर एक केंद्रीकृत कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (command & control centre- CCC) पर अपलोड किया जाता है। यदि रोगी में संक्रमण फैलने के मापदंड एक निश्चित सीमा से अधिक है तो डेटा एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर चिकित्सा अधिकारियों एवं स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों को संदेश के रूप में सतर्क करेगा। यह विभिन्न रंग के कोड के माध्यम से रोगी की गंभीरता की स्थिति को भी दर्ज करेगा। कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के डेटा एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर की मदद से राज्य में COVID-19 के संदिग्ध व्यक्तियों या संक्रमित व्यक्तियों के भू-वितरण का रेखांकन भी किया जा सकेगा।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में अन्य देशों की पहल[सम्पादन]

  • 07 मई, 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने ‘आयुष संजीवनी एप’ और ‘दो आयुष आधारित वैज्ञानिक अध्ययन’ शुरू किये। आयुष मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा विकसित ‘आयुष संजीवनी एप’ से लोगों के बीच आयुष से संबंधित सिफारिशों एवं विभिन्न कदमों की स्वीकार्यता तथा उपयोग के साथ COVID-19 के उन्मूलन में इनके प्रभाव से जुड़ी जानकारियाँ जुटाने में मदद मिलेगी।
दो आयुष आधारित वैज्ञानिक अध्ययन:-
  1. रोग निरोधक के रूप में और COVID-19 के मानक उपचार में आयुर्वेद के उपयोग पर सहयोगात्मक नैदानिकी अनुसंधान अध्ययन: यह ‘भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (Indian Council of Medical Research's- ICMR) के तकनीक सहयोग से ‘वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (CSIR) के माध्यम से आयुष मंत्रालय, ‘केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय’ और ‘केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ की संयुक्त पहल होगी।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वाइस चेयरमैन डा. भूषण पटवर्धन की अध्यक्षता वाली ‘इंटरडिसिप्लिनरी आयुषआरएंडडी टास्क फोर्स’ (Interdisciplinary AYUSH R&D Task Force) ने अश्वगंधा, यशतीमधु, गुदुची-पीपली और एक पॉलि हर्बल फॉर्मूलेशन (आयुष-64) जैसी चार विभिन्न औषधियों के अध्ययन के लिये देश के विभिन्न संगठनों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की समीक्षा एवं परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से COVID-19 पॉज़िटिव मामलों में रोग निरोधक अध्ययन एवं मानक उपचार के लिये नैदानिकी प्रोटोकॉल तैयार किये गए हैं। इसमें निम्नलिखित दो शामिल हैं: COVID-19 महामारी के दौरान ज्यादा जोखिम वाले मामलों में SARS-COV-2 के उपचार के लिये अश्वगंधा। ‘निम्न से मध्यम’ COVID-19 के उपचार के लिये सहायक ‘उपचार के मानक’ के रूप में आयुर्वेद के प्रभावों का अनुसंधानमूलक परीक्षण करना।

  1. उच्च जोखिम वाली आबादी में COVID-19 संक्रमण की रोकथाम के लिये आयुष आधारित रोगप्रतिरोधी प्रभावों पर पारंपरिक अध्ययन: इस अध्ययन के मुख्य उद्देश्यों में COVID-19 के लिये आयुष हस्तक्षेपों की निवारक क्षमता का आकलन एवं भारी जोखिम वाली आबादी में जीवन की गुणवत्ता में सुधार का आकलन करना शामिल है।
  • विश्व भर में अप्रत्याशित एवं अभूतपूर्व महामारी COVID-19 के कारण अब ‘प्रशामक देखभाल’ (Palliative Care) जैसी अवधारणा पर चर्चा होने लगी है। प्रशामक (Palliative) देखभाल उन लोगों की स्वास्थ्य देखभाल का एक विशेष रूप है जिनको गंभीर बीमारी है। इस तरह की देखभाल आमतौर पर तनाव एवं कुछ बीमारियों के लक्षणों से राहत प्रदान करने के लिये होती है। यह देखभाल रोगियों द्वारा उनकी एवं उनके परिवार की आजीविका में सुधार करने के लिये की गई है।

COVID-19 महामारी के कारण न केवल लोगों को शारीरिक नुकसान हुआ है बल्कि उनकी भावनात्मक एवं सामाजिक पीड़ा में भी वृद्धि हुई है। प्रशामक देखभाल (Palliative Care)'पल्लिएट’(Palliate) शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘भौतिक एवं भावनात्मक दर्द को कम करना’ है अर्थात् ‘दुख से राहत’। यहाँ 'दुख' का शाब्दिक अर्थ है 'कष्ट, संकट या कष्ट के दौर से गुजरना'। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो रोगियों एवं उनके परिवारों में बीमारी से जुड़ी समस्या का सामना कर रहे सदस्यों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है। इसमें शुरुआती पहचान एवं दर्द के मूल्यांकन तथा दर्द के उपचार के माध्यम से कष्टों की रोकथाम व राहत शामिल है। यह एक प्रकार की चिकित्सा प्रक्रिया है जिसमें दर्द, सांस लेने में कठिनाई एवं पुरानी बीमारियों के कारण दिखाई देने वाले शारीरिक लक्षणों के उपचार शामिल हैं। यह किसी भी रोगी में स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये एक 'संपूर्ण व्यक्ति' (Whole Person) दृष्टिकोण है। प्रशामक देखभाल प्रशिक्षित डॉक्टरों, विशेषज्ञों एवं नर्सों द्वारा प्रदान की जाती है जो इस क्षेत्र में विशिष्ट हैं। यह उपचार ‎किसी गंभीर बीमारी से गुजरने के बाद किसी भी अवस्था में उपलब्ध है या इसे उपचार के साथ-साथ ‎प्रदान भी किया जाता है। ‘प्रशामक देखभाल’ COVID-19 प्रकोप के मनोसामाजिक (Psychosocial) प्रभावों का मुकाबला करने के लिये एक आशाजनक दृष्टिकोण है। इसका उपयोग भारत में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढाँचे में सुधार हेतु आवश्यक उपायों को निर्धारित करने के लिये एक उदाहरण के रूप में कर सकते हैं।

  • COVID-19 जैसी अन्य वैश्विक महामारी के प्रसार को रोकने के लिये डॉ. इग्नाज़ सेम्मेल्वेईस (Dr Ignaz Semmelweis) द्वारा किये गए शोध कार्यों का सम्मान करते हुए गूगल कंपनी ने एक एनिमेटेड डूडल (Doodle) प्रस्तुत किया। इन्होंने COVID-19 सहित कई बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिये सबसे प्रभावी तरीकों में से एक ‘साबुन एवं पानी से हाथ धोने’ की सिफारिश करने वाला पहला डॉक्टर माना जाता है।
इग्नाज़ फिलिप सेम्मेल्वेईस (1818-1865) एक हंगेरियन चिकित्सक एवं वैज्ञानिक थे जिन्हें अब एंटीसेप्टिक प्रक्रियाओं के शुरुआत करने वाले अग्रदूत के रूप में जाना जाता है। ‘माताओं का उद्धारकर्त्ता’ (Saviour of Mothers) के रूप में प्रसिद्ध सेम्मेल्वेईस ने पाया कि प्रसवजन्य बुखार [जिसे ‘प्रसूति बुखार’ (Childbed fever) भी कहा जाता है] की बीमारी को हाथ कीटाणुशोधन द्वारा काफी हद तक कम किया जा सकता है। वर्ष 1847 में सेम्मेल्वेईस ने क्लोरीनयुक्त चूना विलयन से हाथ धोने की प्रथा शुरु की थी। सेम्मेल्वेईस ने अपने निष्कर्षों पर आधारित एटिओलॉजी (Etiology) की एक पुस्तक ‘कॉन्सेप्ट एंड प्रोफाइलैक्सिस ऑफ चाइल्डबेड फीवर’ (Concept and Prophylaxis of Childbed Fever) प्रकाशित की।

जब लुई पाश्चर (Louis Pasteur) ने रोगों के जीवाणु सिद्धांत (Germ Theory of Disease) की पुष्टि की तब सेम्मेल्वेईस की हाथ धोने की प्रथा ने उनकी मृत्यु के पश्चात व्यापक स्वीकृति अर्जित की।

  • जनवरी माह में जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी पर आरोप लगाया गया है कि इसके बेबी पाउडर (Talcum Powder) में एस्बेस्टस होता है जो एक प्रकार के दुर्लभ कैंसर ‘मेसोथेलियोमा’ (MESOTHELIOMA) का कारण बन सकता है।

टेल्कम (Talcum) पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला खनिज है जिसे नमी अवशोषित करने की क्षमता के कारण बेबी पाउडर के रुप में प्रयोग किया जाता है। टेल्कम के खनन के दौरान एस्बेस्टस भी मिलता है जिसे मेसोथेलियोमा (Mesothelioma) और एस्बेस्टॉसिस (Asbestosis) जैसे स्वास्थ्य जोखिमों से जोड़ा गया है। मेसोथेलियोमा (Mesothelioma) कैंसर का एक आक्रामक एवं घातक रूप है जो ऊतक की पतली परत में होता है और आंतरिक अंगों (Mesothelium) के अधिकांश हिस्से को कवर करता है। इसे आंतरिक अंगों (Mesothelium) के हिस्से को प्रभावित करने के आधार पर अलग-अलग प्रकारों में विभाजित किया गया है। प्लयूरल मेसोथेलियोमा (Pleural Mesothelioma)- फेफड़े (Lung) को घेरने वाले ऊतक को प्रभावित करता है। पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा (Peritoneal Mesothelioma)- उदर (Abdomen) में ऊतक को प्रभावित करता है। पेरिकार्डियल मेसोथेलियोमा (Pericardial Mesothelioma)- हृदय (Heart) के आसपास के ऊतक को प्रभावित करता है। ट्यूनिका वागिनालिस का मेसोथेलियोमा (Mesothelioma of Tunica Vaginalis)- अंडकोष (Testicles) के आसपास के ऊतक को प्रभावित करता है। एस्बेस्टॉसिस (Asbestosis): एस्बेस्टस एक खनिज है जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप में पाया जाता है। एस्बेस्टोस फाइबर (Asbestos Fibre) ऊष्मा का कुचालक होता है इसका उपयोग इन्सुलेशन, चर्म रोगों, फर्श बनाने के सामान और कई अन्य उत्पादों में किया जाता है। एस्बेस्टोस इन्सुलेशन की खनन प्रक्रिया के दौरान एस्बेस्टोस धूल का निर्माण होता है जो साँस लेने के दौरान फेफड़ों में या निगलने के दौरान पेट में जमा हो जाता है। इससे शरीर में चिड़चिड़ाहट होती है जो मेसोथेलियोमा और एस्बेस्टॉसिस का कारण बनता है। एस्बेस्टोस एक्सपोज़र के बाद मेसोथेलियोमा के विकास में 20-60 वर्ष या उससे अधिक समय लग सकता है। हालाँकि वैज्ञानिक अभी भी इसकी सटीक प्रक्रिया का पता नहीं लगा पाए हैं। एस्बेस्टॉसिस एक पुरानी बीमारी है इसमें फेफड़ों में सूजन आ जाती है। यह बीमारी एस्बेस्टस एक्सपोज़र के कारण होती है। एस्बेस्टोस एक्सपोज़र वाले अधिकांश लोगों में कभी भी मेसोथेलियोमा का विकास नहीं होता है, जो यह दर्शाता है कि कैंसर की बीमारी में सिर्फ मेसोथेलियोमा ही एकमात्र कारण नहीं है बल्कि कुछ अन्य कारक भी ज़िम्मेदार होते हैं।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा COVID-19 को ऑर्फन रोग या दुर्लभ रोग (Rare Disease) घोषित किया गाया। अमेरिका में किसी रोग के 2 लाख से ज्यादा व्यक्तियों को होने पर उसे दुर्लभ रोग माना जाता है। यह एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति है जिसका प्रचलन लोगों में प्रायः कम पाया जाता है या सामान्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं।
दुर्लभ बीमारियों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है तथा अलग-अलग देशों में इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ हैं।80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ मूल रूप से आनुवंशिक होती हैं, इसलिये बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
भारत की दुर्लभ रोगों हेतु राष्ट्रीय नीति-2020 के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों में आनुवंशिक रोग ( Genetic Diseases), दुर्लभ कैंसर (Rare Cancer), उष्णकटिबंधीय संक्रामक रोग ( Infectious Tropical Diseases) और अपक्षयी रोग (Degenerative Diseases) शामिल हैं।
नीति के तहत, दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियाँ हैं:-
  1. एक बार के उपचार के लिये उत्तरदायी रोग (उपचारात्मक)।
  2. ऐसे रोग जिनमें लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता होती है लेकिन लागत कम होती है।
  3. ऐसे रोग जिन्हें उच्च लागत के साथ दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता है।

पहली श्रेणी के कुछ रोगों में ऑस्टियोपेट्रोसिस (Osteopetrosis) और प्रतिरक्षा की कमी के विकार शामिल हैं। भारत में 56-72 मिलियन लोग दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित हैं।

संयुक्त राज्य ऑर्फन ड्रग अधिनियम, 1983 के अनुसार यदि किसी रोग को ऑर्फन रोग घोषित कर दिया जाता है तो उस रोग के लिये जो कंपनी औषधि बनाती है उसे कई प्रकार के प्रोत्साहन प्रदान किये जाते हैं। जैसे-

  1. उसे खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) द्वारा कम समय में स्वीकृति मिल जाती है।
  2. अनुसंधान और विकास के लिये सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  3. इसके अलावा उसे 7 वर्षों के लिये विपणन विशिष्टता (Market Exclusivity) मिल जाती है।

भारत के संदर्भ में: भारत के पेटेंट अधिनियम, 2005 में यह प्रावधान है कि भारत जेनरिक ड्रग के उत्पादन के लिये किसी तीसरे पक्ष (Third Party) को लाइसेंस दे सकता है। ताकि आवश्यकता पड़ने पर ऐसी दवाओं का उत्पादन किया जा सके। मुद्दे: कोविद -19 दुर्लभ बीमारी नहीं- ऑर्फन ड्रग अधिनियम COVID-19 के लिये संभावित दवाओं पर लागू होता है जो कि दुनिया भर में 800,049 मामलों की पुष्टि के साथ एक दुर्लभ बीमारी के अलावा कुछ भी नहीं है। इसके अलावा दुर्लभ रोगों के लिये विकसित की गई दवाओं की कीमत साधारण दवाओं की तुलना में अधिक होती है। आगे की राह: भारत ने अभी तक पेटेंट अधिनियम, 2005 के प्रावधान का उपयोग नही किया है परंतु COVID-19 से निपटने के लिये इसका उपयोग किया जा सकता है।

  • 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) =====
  • इस वर्ष की थीम है-वयस्कता का संक्रमण।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अप्रैल, 2007 को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस की घोषणा की थी।[२]
  • इस दिवस पर ऑटिज़्म से ग्रस्त बच्चों और बड़ों के जीवन में सुधार के लिये कदम उठाने के साथ ही उन्हें सार्थक जीवन बिताने में सहायता दी जाती है।
  • भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार प्रति 110 में से एक बच्चा ऑटिज़्म से ग्रस्त होता है और हर 70 बालकों में से एक बालक इस बीमारी से प्रभावित होता है।
  • इस बीमारी की चपेट में आने की बालिकाओं के मुकाबले बालकों की ज़्यादा संभावना होती है।
  • इस विकार को पहचानने का कोई निश्चित तरीका नहीं है, लेकिन शीघ्र निदान किये जाने की स्थिति में इसमें थोडा-बहुत सुधार लाया जा सकता है।
  • ऑटिज़्म क्या है?
  • ऑटिज़्म (Autism) या आत्मविमोह/स्वलीनता, एक मानसिक रोग या मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला एक गंभीर विकार है।नीले रंग को ऑटिज़्म का प्रतीक माना गया है।
  • इस विकार के लक्षण जन्म या बाल्यावस्था (पहले तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है। यह विकार व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है।
  • इस विकार से पीड़ित बच्चों का विकास अन्य बच्चों से अलग होता है।
  • इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है, जैसे- एक ही काम को बार-बार करना।
  • जर्मन साइबरसिटी फर्म ग्रीनबोन सस्टेनेबल रेज़िलिएंस द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 120 मिलियन से अधिक भारतीय रोगियों का चिकित्सा विवरण लीक हुआ। लीक हुए चिकित्सीय विवरण को इंटरनेट पर स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया गया है।
रोगियों के चिकित्सा विवरण से संबंधित डेटा के लीक होने के मामले में महाराष्ट्र देश में शीर्ष पर है।कर्नाटक>प.बंगाल>तेलंगाना और गुजरात

प्रथम रिपोर्ट अक्तूबर,2019 में प्रकाशित की गई थी जिसमें बड़े पैमाने पर डेटा लीक का खुलासा किया गया था,इनमें सीटी स्कैन(CT scans), एक्स-रे, (X-rays) एमआरआई (MRIs) और यहाँ तक कि रोगियों की तस्वीरें भी शामिल थीं।

पिक्चर आर्काइविंग एंड कम्युनिकेशंस सिस्टम्स सर्वर,जहाँ विवरण संग्रहीत होता हैं,सुरक्षित नहीं है।साथ ही यह बिना किसी सुरक्षा के सभी सार्वजनिक इंटरनेट से जुड़ा है।अतः किसी भी गलत तरीके से डेटा तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।

अतीत में प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर भी यह तथ्य सामने आया है कि PACS सर्वर किसी भी सर्वर आक्रमण के प्रति सुभेद्य है।

रिपोर्ट के आधार पर देशों का वर्गीकरण
  • नवंबर में प्रकाशित इसकी एक फॉलो रिपोर्ट विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा डेटा लीक की घटनाओं को रोकने के लिये की गई कार्यवाही के आधार पर देशों को अच्छा (Good),बुरा (Bad) और बदसूरत (Ugly) तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करती है।
  • भारत को रिपोर्ट में ‘बदसूरत’ श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है जो कि अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि अक्तूबर में प्रकाशित पहली रिपोर्ट के 60 दिनों बाद ही मरीज़ों के बारे में सूचना देने वाले डेटा ट्रावरों (Data Troves) की संख्या 6,27,000 से बढ़कर 1.01 मिलियन हो गई है तथा मरीज़ों के विवरण का आँकड़ा 105 मिलियन से बढ़कर 121 मिलियन हो गया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मौजूदा सिस्टम जो डेटा संग्रहण के लिये उत्तरदायी हैं डेटा के 100% अभिगमन (Access) की अनुमति देते हैं।
  • रिपोर्ट चिकित्सा डेटा लीक से प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र को सबसे ऊपर रखती है। जिसकी उपलब्ध ऑनलाइन डाटा ट्रावरों (Data Troves) की सर्वाधिक संख्या है। महाराष्ट्र में 3,08,451 ट्रॉव्स 6,97,89,685 छवियों (Images) तक पहुँच प्रदान करते हैं।
  • चिकित्सा डेटा लीक के मामले में कर्नाटक दूसरे स्थान पर है, जहाँ 1,82,865 डेटा ट्रावरस 37,31,001 छवियों तक पहुँच प्रदान करते है।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. https://www.amarujala.com/channels/downloads?tm_source=text_share
  2. https://www.un.org/press/en/2007/gashc3899.doc.htm