सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रक

विकिपुस्तक से
  • जब कोई कंपनी लक्षित कंपनी के शेयरधारकों को अपने शेयर जारी करके अधिग्रहण के लिये उनका भुगतान करती है, तो इसे शेयर स्वैप के रूप में जाना जाता है। सरल शब्दों में कहें तो विलय या अधिग्रहण के सौदों द्वारा किसी कंपनी को खरीदने के लिये जब शेयरों को 'करेंसी' की तरह इस्तेमाल किया जाता है तो इसे शेयर स्वैप कहते हैं।

शेयर स्वैप में नकदी में भुगतान की आवश्यकता नहीं होती है। अगर शेयर स्वैप डील यानी शेयरों की अदला-बदली के ज़रिये एक कंपनी दूसरी कंपनी को खरीदना चाहती है तो पहली कंपनी दूसरी कंपनी के शेयरधारकों को अपने कुछ शेयर देती है और ये शेयर दूसरी कंपनी के प्रत्येक शेयर के बदले में दिए जाते हैं।

  • ग्रीन-शू विकल्प को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने वर्ष 2003 में मुख्य रूप से शेयरों की बाज़ार की कीमतों को स्थिरता प्रदान करने के लिये पेश किया।

इसे ओवर-अलॉटमेंट प्रावधान भी कहते हैं। इसका उपयोग आईपीओ के समय या किसी भी स्टॉक की लिस्टिंग के लिये किया जाता है, जिससे सफल शुरुआती मूल्य सुनिश्चित किया जा सके। उपरोक्त विकल्प एक मूल्य स्थिरीकरण तंत्र के रूप में कार्य करता है। निवेशक के दृष्टिकोण से, यह विकल्प यह सुनिश्चित करता है कि सूचीबद्ध शेयर की कीमत जारी कीमत से कम न होने पाए।

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश(मालिकाना हक ) कहलाती है। बनाए रखती है।
जबकि रणनीतिक बिक्री में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के शेयर्स के साथ ही प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी किया जाता है अर्थात् स्वामित्व और नियंत्रण को किसी निजी क्षेत्र की इकाई को स्थानांतरित कर दिया जाता है।

साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक बिक्री एक प्रकार से निजीकरण है।

  • गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स कार्य और एक निश्चित अवधि के लिये प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल हैं।

इकॉनमी में किसी व्यक्ति की सफलता उसकी विशिष्ट निपुणता पर निर्भर करती है। असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या प्रचलित कौशल प्राप्त श्रम-बल ही ‘गिग इकॉनमी’ में कार्य कर सकता है। गिग श्रमिकों को सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि उन्हें पारंपरिक श्रमिकों के इतर किसी भी प्रकार की बुनियादी सुविधाएँ जैसे- न्यूनतम मज़दूरी और बेरोज़गारी बीमा आदि नहीं मिल पाती हैं।

  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी।

मुद्रा योजना के तहत तीन प्रकार के ऋणों-शिशु (50,000 रुपए तक के ऋण), किशोर (50,001 से 5 लाख रुपए तक के ऋण), तरुण (500,001 से 10 लाख रुपए तक के ऋण) की व्यवस्था है। इसका उद्देश्य सूक्ष्म वित्त को आर्थिक विकास के एक उपकरण के रूप में उपयोग करना है जो कमज़ोर वर्ग के लोगों, छोटे विनिर्माण इकाइयों आदि को लक्षित करने, खाद्य सेवा इकाइयों, दुकानों, मशीन ऑपरेटरों, कारीगरों और खाद्य उत्पादकों को आय सृजित करने का अवसर प्रदान करने में मदद करता है।

  • सागर (Security And Growth for All in the Region- SAGAR) कार्यक्रम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मॉरीशस यात्रा के दौरान वर्ष 2015 में नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने हेतु शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि भी सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है। इस कार्यक्रम का मुख्य सिद्धांत; सभी देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री नियमों और मानदंडों का सम्मान, एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता, समुद्री मुद्दों का शांतिपूर्ण समाधान और समुद्री सहयोग में वृद्धि इत्यादि है।
  • 4 नवंबर 2011 को जारी राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP)का उद्येश्य एक दशक में जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का अंश बढाकर 25% करना और 10 करोड़ से अधिक रोजगार का सृजन करना।(chh.pcs16)
  • 25 सितम्बर,2014 को मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत।
  • भारतीय गुणता परिषद(Quality Council of india,QCI) 1997 में भारत सरकार और भारतीय उद्योग के साथ संयुक्त रूप से की गई थी।इसमें भारतीय उद्योग का प्रतिनिधित्व तीन प्रमुख उद्दोग संघ जैसे-एसोचैम(ASSOCHAM),सीआईआई(CII)फिक्की(FICCI) द्वारा किया जाता है।यह भारतीय उत्पादों एवं सेवाओं की गुणवत्ता प्रतिस्पर्धात्मकता बढाने के उद्देश्य से अनुरूपता मूल्यांकन प्रणाली जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई है,की स्थापना करके देश में गुणवत्ता संबंधी अभियान को एक नीतिपरक दिशा देता है।[IAS-17]

38 सदस्यों की परिषद द्वारा संचालित जिसमें सरकार उद्दोग तथा उपभोक्ताओं का समान प्रतिनिधित्व है।इसके अध्यक्ष की नियुक्ति उद्दोग द्वारा सरकार को की गई संस्तुतियों पर प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 19-सितम्बर, 2014 को श्री आदिल जैनुलभाई को क्यूसीआई का नया चेयरमैन मनोनीत किया.

  • 1929 का व्यापार विवाद अधिनियम 5वर्षों के लिए लागू किया गया था।

जिसके तहत व्यापार विवादों के जांच एवं समाधान हेतु समझौता बोर्ड(Board of conciliation)तथा जांच न्यायालय(court of inquiry)

  • कंपनी अधिनियम, 2013 भारत में 30 अगस्त 2013 को लागू हुआ था।

यह अधिनियम भारत में कंपनियों के निर्माण से लेकर उनके समापन तक सभी स्थितियों में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। कंपनी अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण की स्थापना हुई है। कंपनी अधिनियम, 2013 ने ही ‘एक व्यक्ति कंपनी’ की अवधारणा की शुरुआत की।


क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) जिनके साथ आसियान का मुक्त व्यापार समझौता है, के बीच होना है।

संविधान के अनुच्छेद 270 में केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को उपकर लगाने की शक्ति दी गई है। उपकर सरकार द्वारा जनता से बड़े पैमाने पर एकत्र किया गया एक अनिवार्य योगदान है और इसका उपयोग एक विशिष्ट सार्वजनिक उद्देश्य के लिये किया जाता है। केरल सरकार 1 जून, 2019 से राज्य में 5% से अधिक GST वाली वस्तुओं पर 1% का अतिरिक्त कर आरोपित करेगी। इसके साथ ही केरल आपदा सेस (Flood cess) लगाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।


भारत की राष्ट्रीय विनिर्माण नीतिवाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत ‘औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग’ (DIPP) ने 4 नवंबर, 2011 को भारत की राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (National Manufacturing Policy-NMP) को अधिसूचित किया था। इके प्रमुख लक्ष्य: वर्ष 2022 तक GDP में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक करना विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार के वर्तमान अवसरों को दोगुना करना घरेलू मूल्‍य संवर्द्धन को बढ़ाना विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्‍मकता को बढ़ाना देश को विनिर्माण क्षेत्र का अंतर्राष्‍ट्रीय हब बनाना


बजट तैयार करने का ज़िम्मा आर्थिक मामलों के विभाग का है।

12 फरवरी, 2018 को आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी ज़िले में भीमावरम मंडल के टुंडुरू गाँव में गोदावरी मेगा एक्वा फूड पार्क (Godavari Aqua Mega Food Park) का उद्घाटन किया गया। यह आंध्र प्रदेश राज्य में मछली और अन्य समुद्री उत्पादों के प्रसंस्करण के लिये विशेष रूप से स्थापित पहला मेगा एक्वा फूड पार्क है।

  • गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (Gujarat International Finance Tec-City-IFSC), घरेलू अर्थव्यवस्था के अधिकार क्षेत्र से बाहर के निवेशकों को अपने क्षेत्र के अंतर्गत लाता है। जैसे- केंद्र सरकार अपनी सीमाओं के बाहर वित्त, वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं के विस्तार से संबंधित है।
  • औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (IIP) एक सूचकांक है जो अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के विकास का विवरण देता है, जैसे कि खनिज खनन, बिजली, विनिर्माण आदि।

इसे केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।

  • राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद1958 में भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय द्वारा स्थापित, यह एक स्वायत्त, बहुपक्षीय, गैर-लाभकारी संगठन है। भारत में उत्पादकता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है। NPC अपने ग्राहकों के साथ मिलकर उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धा, लाभ, सुरक्षा तथा विश्वसनीयता बढ़ाने एवं इनकी बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने के लिये समाधान उपलब्ध कराता है।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (National Statistics Commission-NSC) सांख्यिकीय मामलों पर सर्वोच्च सलाहकारी निकाय है क्योंकि इसका गठन सांख्यिकीय मामलों में नीतियों, प्राथमिकताओं और मानकों को विकसित करने के लिये ही किया गया था।

भारत सरकार ने रंगराजन आयोग की सिफारिशों पर 1 जून, 2005 को राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) की स्थापना की थी।

मई 2016 में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003 की समीक्षा के लिये गठितएन.के. सिंह समितिने सरकार के ऋण के लिये GDP के 60 फीसदी की सीमा तय की है यानी केंद्र सरकार का कर्ज़ GDP का 40 फीसदी और राज्य सरकारों का सामूहिक कर्ज़ 20 फीसदी होगा। क्षित ऋण जीडीपी अनुपात 2023 तक प्राप्त किये जाने चाहिये।

भारत में चालू खाता घाटा (CAD) में वृद्धि के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं- अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि। रुपए के अवमूल्यन या कमज़ोर पड़ने से आयात महंगा हो जाता है, जिससे चालू खाता घाटा (CAD) में बढ़ोतरी होती है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था[सम्पादन]

  • बंद परिपथ (Closed loops) आधारित एक आर्थिक प्रणाली जिसमें कच्चे माल,घटकों और उत्पादों के मूल्य को न्यूनतम करने का प्रयास तथा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जाता है।
  • इसके भीतर पोषक तत्त्वों के प्रवाह के प्रोत्साहन और मृदा एवं अन्य जीवित प्रणालियों के पुनरुद्धार के लिये परिस्थितियों का निर्माण करके प्राकृतिक पूंजी को बढ़ावा देती है।
  • यह तकनीकी और जैविक दोनों चक्रों में,हर समय अपनी उच्चतम उपयोगिता पर उत्पादों, घटकों और सामग्रियों को परिचालित करके संसाधन उत्पादकता को इष्टतम बनाती है। यह उत्पादों,घटकों और सामग्रियों को चक्रीकृत रखने और अर्थव्यवस्था में योगदान देने हेतु नवीनीकरण,पुनर्विनिर्माण एवं पुनर्चक्रण के लिये डिज़ाइनिंग पर ज़ोर देती है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था नकारात्मक बाह्यताओं की पहचान करने और उन्हें न्यूनतम करके तंत्र की प्रभावशीलता में वृद्धि करती है।
  • आर्थिक गतिविधियों की नकारात्मक बाह्यताओं में भूमि क्षरण,वायु,जल एवं ध्वनि प्रदूषण,विषाक्त पदार्थों का निस्तारण और GHG उत्सर्जन शामिल हैं। दूसरे शब्दों में, चक्रीय अर्थव्यवस्था इन बाह्यताओं की लागत को उजागर कर, इनके जोखिम और संभावित आर्थिक प्रभाव को रेखांकित करती है।


औद्योगिक क्षेत्रक[सम्पादन]

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी या RCEP एक मुक्त व्यापार समझौता है, जो कि 16 देशों के मध्य किया जा रहा था। विदित हो कि भारत के इसमें शामिल न होने के निर्णय के पश्चात् अब इसमें 15 देश शेष हैं। इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार बनाना एवं सभी 16 देशों में फैले हुए बाज़ार का एकीकरण करना है।

  • राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र (NIMZ) राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, 2011 के महत्त्वपूर्ण उपकरणों में से एक है। जिसका उद्देश्य 2022 तक GDP में विनिर्माण के योगदान को बढ़ाकर 25% तक करना और 100 मिलियन रोज़गारों का सृजन करना है। वैश्विक स्तर की विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु अपेक्षित पारिस्थितिकी तंत्र सहित आर्थिक विकास के अधिकेंद्र के रूप में NIMZ की परिकल्पना की गई है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) से अंतिम अनुमोदन प्राप्त होने पर राज्य सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 243Q(1)(c) के तहत NIMZ को एक औद्योगिक टाउनशिप के रूप में घोषित किया जाता है। प्रत्येक NIMZ को आधिकारिक गजट में DPIIT (पूर्व DIPP) द्वारा अलग से अधिसूचित किया जाता है।

NIMZ के लिये प्रस्तावित कुल भूमि के कम-से-कम 30% भाग का उपयोग विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिये किया जाएगा। NIMZ में अन्य सामाजिक बुनियादी ढाँचे के लिये भी क्षेत्र शामिल है।

SEZ और NIMZ के बीच अंतर

NIMZ की स्थापना राष्ट्रीय विनिर्माण नीति 2011 के तहत की जाती है, जबकि SEZ की स्थापना SEZ अधिनियम, 2005 के तहत की जाती है। NIMZ आकार, अवसंरचनात्मक नियोजन, विनियामक प्रक्रियाओं से संबंधित शासन ढाँचे और निकास नीतियों के मामले में SEZ से भिन्न होते हैं। 50 वर्ग किलोमीटर से लेकर 900 वर्ग किलोमीटर तक का प्रत्येक NIMZ एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) से बहुत बड़ा होता है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों का मुख्य उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना है, जबकि NIMZ राज्यों के साथ साझेदारी में औद्योगिक विकास के सिद्धांत पर आधारित है और विनिर्माण विकास एवं रोज़गार सृजन पर केंद्रित है। अतः कथन 3 सही है। SEZ अधिनियम के मुख्‍य उद्देश्‍य है:

  • अतिरिक्‍त आर्थिक कार्यकलापों का सृजन।
  • वस्‍तुओं एवं सेवाओं के निर्यात का संवर्द्धन।
  • घरेलू एवं विेदेशी स्रोतों से निवेश का संवर्द्धन।
  • रोज़गार अवसरों का सृजन।
  • अवसंरचना सुविधाओं का विकास।

कृषि क्षेत्रक[सम्पादन]

  • बाज़ार हस्तक्षेप मूल्य योजना (Market Intervention Price Scheme):-

यह एक मूल्य समर्थन तंत्र है जिसका कार्यान्वयन केंद्र सरकार राज्य सरकारों के अनुरोध पर करती है. जब बाजार में किसी नष्ट हो जाने वाली सामग्री एवं बागबानी की सामग्री का मूल्य गिर जाता है तो सरकार उस सामग्री का क्रय किया करती है. इस योजना का कार्यान्वयन तब होता है जब पिछले सामान्य वर्ष में वस्तु का जो दाम चल रहा था उसमें कम से कम 10% का ह्रास हुआ हो अथवा उस वस्तु का कम से कम 10% उत्पादन बढ़ गया हो। यदि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकार नुकसान का 50% (पूर्वोत्तर राज्यों के मामले में 25%) खर्च करने के लिये तैयार है। योजना हेतु आवंटित वित्त में से केंद्र और राज्य क्रमशः 50%- 50% का सहयोग करते हैं।

खाद्यान्न जिंसों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित खरीद तंत्र के समान ही कार्य करता है लेकिन यह एक अस्थायी तंत्र (Adhoc Mechanism) है। यह राज्य सरकारों के विशेष अनुरोध पर बनाई जाती है।

जिस मौसम में किसी अनाज या फल बड़े पैमाने पर पैदा होते हैं तो उनके दाम तेजी से गिरने लगते हैं और किसान हड़बड़ा कर उनको कम दामों पर बेचने लगता है. किसान को इस स्थिति से उबारना ही इस योजना का ध्येय है. इस योजना का कार्यान्वयन कृषि एवं सहकारिता विभाग करता है. MARKET INTERVENTION PRICE SCHEME का वित्तपोषण MIPS योजना के अंतर्गत राज्यों को धनराशि आवंटित नहीं की जाती. इसके विपरीत राज्यों से प्राप्त विशेष प्रस्तावों के आधार पर घाटे का केंद्र सरकार का अंश राज्य सरकारों को निर्गत किया जाता है. इसके लिए योजना के अंतर्गत दिशा-निर्देश निर्धारित हैं. जिन सामग्रियों के लिए MIPS का प्रावधान है, वे हैं – सेब, कीनू/माल्टा, लहसुन, नारंगी, गलगल, अंगूर, कुकुरमुत्ता, लौंग, काली मिर्च, अनानास, अदरक, लाल मिर्च, धनिया आदि.