सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/वितीय समावेशन

विकिपुस्तक से
  • वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council - FSDC) का गठन दिसंबर 2010 में किया गया था। परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा की जाती है।

इसके सदस्यों में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, वित्त सचिव, आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव, मुख्य आर्थिक सलाहकार, वित्त मंत्रालय, सेबी के अध्यक्ष, इरडा के अध्यक्ष, पी.एफ.आर.डी.ए. के अध्यक्ष को शामिल किया जाता है।

  • इन्वेस्ट इंडिया वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के आंतरिक व्यापार एवं संवर्द्धन विभाग के अंतर्गत आधिकारिक निवेश संवर्द्धन एवं सुविधा प्रदाता एजेंसी है, जिसे देश में निवेश को सुविधाजनक बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। यह देश में संभावित वैश्विक निवेशकों के लिये सबसे पहला केंद्र है। ‘इन्वेस्ट इंडिया’ का मुख्य उद्देश्य उद्यमों को व्यावहारिक निवेश सूचनाएँ सुलभ कराते हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को सुविधाजनक बनाना और संबद्ध देशों के आर्थिक विकास में सकारात्मक योगदान करने वाले अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने वाली कंपनियों को आवश्यक सहयोग प्रदान करना है।
  • विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Right) अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं की एक ऐसी टोकरी है (Basket of currencies)जिसमें अमेरिकी डॉलर, जापानी येन, चाइनीस युआन यूरो और पाउंड स्टर्लिंग शामिल हैं।
  • विशेष डेटा प्रसार मानक (SDDS) जनता के बीच व्यापक आर्थिक आँकड़े जारी करने हेतु एक वैश्विक मानक/बेंचमार्क है,जिसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वर्ष 1996 में तैयार किया गया था।

IMF ने सदस्य देशों की डेटा पारदर्शिता को बढ़ाने और देशों की आर्थिक स्थितियों का आकलन करने के लिये पर्याप्त जानकारी के साथ वित्तीय बाज़ार सहभागियों की सहायता हेतु इस पहल की शुरुआत की थी।

भारत ने 27 दिसंबर,1996 को SDDS को अपनाया।
  • सरकार ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों और सूचीबद्ध फर्मों द्वारा डिबेंचर जारी करने के लिये डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व (Debenture Redemption Reserve- DRR) के नियमों में परिवर्तन किया है। डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करता है क्योंकि डिबेंचर किसी परिसंपत्ति या संपार्श्विक द्वारा समर्थित नहीं होते हैं।

इस प्रकार के प्रावधान की वजह से कंपनी की लागत साथ ही इससे भारत में व्यापार सुगमता भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही थी। अंततः इससे भारत की ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में गिरावट आ रही है। सरकार इस प्रकार के प्रावधानों के माध्यम से कंपनियों द्वारा जुटाई जा रही पूंजी की लागत को कम करने का प्रयास कर रही है जिससे भारत में व्यापार करना आसान हो सके। यह प्रावधान भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 में एक संशोधन के माध्यम से वर्ष 2000 में शामिल किया गया था।

  • स्वर्ण मुद्रीकरण योजना(Gold Monetization Scheme-GMS) की शुरुआत वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी।

इसके तहत कोई भी व्यक्ति, चैरिटेबल संस्था, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सरकारी संस्थान, सामाजिक संस्थान आदि अपना सोना बैंक में जमा कर सकते हैं। इस पर उन्हें 2.25% से 2.50% तक ब्याज मिलता है एवं परिपक्वता अवधि के पश्चात् वे इसे सोना अथवा रुपए के रूप में प्राप्त कर सकते हैं।

  • कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, जिन कंपनियों का लाभ 5 करोड़ रुपए या अधिक हो, कारोबार 1000 करोड़ रुपए या अधिक हो और निवल संपदा 500 करोड़ रुपए या अधिक हो उन्हें उनके तीन साल के वार्षिक औसत शुद्ध लाभ का कम-से-कम 2% CSR गतिविधियों में खर्च करना होगा।

कंपनी संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत नागरिक देयता के दायरे में लगभग 16 कॉरपोरेट अपराधों को शामिल किया गया है, जिसमें वार्षिक रिटर्न दाखिल करने में विफलता और निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर वित्तीय विवरण और डिस्काउंट पर शेयरों को जारी करना शामिल है। इन अपराधों पर पहले आपराधिक कार्यवाही होती थी लेकिन अब जुर्माना लगाया जाएगा। CSR प्रावधानों के किसी भी उल्लंघन के मामले में, कंपनी को न्यूनतम 50,000 रुपए तथा 25 लाख रुपए तक का जुर्माना देना होगा। इसके अलावा चूक करने वाला कंपनी का हर अधिकारी तीन साल तक की कैद, या 5 लाख रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों के लिये पात्र हो सकता है।

  • किसी ‘पूंजीगत परिसंपत्ति’ की बिक्री से हमें जो भी लाभ प्राप्त होता है उसे ‘पूंजीगत लाभ’ कहा जाता है।

आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार, इस लाभ को ‘आय’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ‘पूंजीगत लाभ कर’ अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक दोनों प्रकार का हो सकता है।

  • फिनटेक (FinTech) Financial Technology का संक्षिप्त रूप है। वित्तीय कार्यों में टेक्नोलॉजी के उपयोग को फिनटेक कहा जा सकता है।

फिनटेक स्टार्ट-अप बैंकों के लिये पेमेंट, कैश ट्रांसफर जैसी सेवाओं में काफी मददगार साबित हो रहे हैं। साथ ही ये देश के दूरदराज़ के इलाकों तक बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं। बैंकों द्वारा फिनटेक के माध्यम से मोबाइल वॉलेट सर्विस लॉन्च की जा रही है।

  • करेंसी डेरिवेटिव (Currency Derivatives)मुद्रा विनिमय दरों के आधार पर डेरिवेटिव भविष्य का एक अनुबंध है,जो उस दर को निर्धारित करता है जिस पर किसी मुद्रा को किसी अन्य मुद्रा के लिये भविष्य की तारीख में आदान-प्रदान किया जा सकता है।

भारत में कोई भी व्यक्ति डॉलर, यूरो, यूके पाउंड और येन जैसी मुद्राओं के खिलाफ बचाव के लिये ऐसे डेरिवेटिव अनुबंधों का उपयोग कर सकता है। विशेष रूप से आयात या निर्यात करने वाले कॉर्पोरेट इन अनुबंधों का उपयोग किसी निश्चित मुद्रा के जोखिम के खिलाफ बचाव के लिये करते हैं। नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (National Commodity and Derivatives Exchange-NCDEX) एक ऑनलाइन कमोडिटी एक्सचेंज है जो मुख्य रूप से कृषि संबंधी उत्पादों में व्यवहार करता है। यह सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी (Public Limited Company) है, जिसे कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 23 अप्रैल, 2003 को स्थापित किया गया था। इस एक्सचेंज की स्थापना भारत के कुछ प्रमुख वित्तीय संस्थानों जैसे- ICICI बैंक लिमिटेड, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक आदि द्वारा की गई थी। NCDEX का मुख्यालय मुंबई में स्थित है, लेकिन व्यापार की सुविधा के लिये देश के कई अन्य हिस्सों में भी इसके कार्यालय हैं।

  • मर्चेंट डिस्काउंट रेट (Merchant Discount Rate- MDR) वह शुल्क जो कार्ड से भुगतान स्वीकार करने वाले व्यापारी बैंक को चुकाते हैं।इसे बैंक और व्यापारी के बीच एक पूर्व निर्धारित अनुपात में साझा किया जाता है एवं लेन-देन के प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने डेबिट कार्ड, BHIM UPI या आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली के माध्यम से दिसंबर 2020 तक किये जाने वाले 2,000 रुपए तक के लेन-देन पर MDR शुल्क वहन करने का निर्णय लिया।

  • मसाला बॉन्ड भारत के बाहर जारी किये गए बॉन्ड होते हैं, लेकिन स्थानीय मुद्रा की बजाय इन्हें भारतीय मुद्रा में निर्दिष्ट किया जाता है।

केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में 2,150 करोड़ रुपए का मसाला बॉन्ड जारी किया है। डॉलर बॉन्ड के विपरीत (जहाँ उधारकर्त्ता को मुद्रा जोखिम लेना पड़ता है) मसाला बॉन्ड में निवेशकों को जोखिम उठाना पड़ता है। नवंबर 2014 में विश्व बैंक के इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन द्वारा पहला मसाला बॉन्ड जारी किया गया था।

  • किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card-KCC) योजना का उद्देश्य ऋण के लिये अनौपचारिक स्रोतों पर किसानों की निर्भरता को कम करना है, जो अक्सर आकर्षक होने के साथ बहुत महंगा होता है।

किसान क्रेडिट कार्ड को अगस्त 1998 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य किसानों को त्वरित और समय पर सस्ता ऋण उपलब्ध कराना है। इसे नाबार्ड और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा लॉन्च किया गया था।

  • टोकनाइजेशन में कार्ड के संवेदनशील विवरण को एक अद्वितीय कोड वाले टोकन में बदल दिया जाता है। प्वाइंट-ऑफ सेल (Point Of Sale-POS) टर्मिनल्स, क्विक रिस्पांस (Quick Response-QR) कोड के ज़रिये संपर्क रहित भुगतान करने के लिये कार्ड की वास्तविक जानकारी के स्थान पर टोकन का प्रयोग किया जाता है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी(NBFC)[सम्पादन]

कंपनी अधिनियम,1956 के तहत पंजीकृत। यह सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा जारी किये जाने वाले ऋण/शेयरों/बांड/डिबेंचर/प्रतिभूतियों या अन्य बिक्री योग्य प्रतिभूतियों के अधिग्रहण से संबंधित हैं। NBFC मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकती है।

  • टाइप I - NBFC-ND (Non Deposit TAKING) इकाइयाँ LCR मानदंडों के अंतर्गत नहीं आती हैं। ये इकाइयां सार्वजनिक जमाओं को स्वीकार नहीं करती।

संरचनात्मक तरलता (Structural Liquidity) को बनाये रखने के लिए देनदारियों के लिए 1 से 30 दिन के समय अंतराल (Time Bucket) को 1 से 7 दिन, 8 से 14 दिन और 15 से 30 दिन के समय अंतराल में बाँट दिया गया है।

वित्तीय समावेशन[सम्पादन]

पी-नोट्स या पार्टिसिपेट्री नोट्स के ज़रिये विदेशी निवेशक अप्रत्यक्ष रूप में भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं। भारतीय बाज़ार में किया जाने वाला यह निवेश सेबी के पास पंजीकृत विदेशी ब्रोक्रेज़ हाउस के ज़रिये किया जाता है। पी-नोट्स को विदेशी निवेशकों के लिये शेयर बाज़ार में निवेश करने का दस्‍तावेज़ भी कहा जाता है। पी-नोट्स का इस्‍तेमाल ‘हाई नेटवर्क इंडीविजुअल्‍स’ (एचएनआई), हेज फंडों एवं अन्‍य विदेशी संस्‍थानों के ज़रिये किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, जो निवेशक सेबी के पास पंजीकरण करवाए बिना शेयर बाज़ार में पैसा लगाना चाहते हैं वे पी-नोट्स का इस्‍तेमाल करते हैं। क्‍योंकि, निवेशकों को भारतीय शेयर बाज़ार में पी-नोट्स के ज़रिये निवेश करने में सुविधा दी जाती रही है। निवेशकों को पी-नोट्स सेबी के पास पंजीकृत विदेशी ब्रोक्रेज़ हाउस ही जारी करता है। ऐसे में निवेशकों को निवेश के समय अलग से पहचान बताना और सेबी को पूरा ब्यौरा देना ज़रूरी नहीं होता है। विदित हो कि 1992 में सेबी ने भारतीय शेयर बाज़ार में पंजीकृत विदेशी ब्रोक्रेज़ हाउस को पी-नोट्स के ज़रिये निवेश करने की इज़ाज़त दी थी।

  • एक उच्चस्तरीय समिति ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को सौंपे गए अपने रिपोर्ट में एलिफैंट बॉण्ड लाने की सिफारिश की है। इस एलिफैंट बॉण्ड का इस्तेमाल कालेधन को वैध बनाने के लिये किया जा सकेगा। इसमें लगाई गई आधी रकम सरकार को प्राप्त होगी, अर्थात् यदि कोई व्यक्ति इसके तहत एक करोड़ रुपए के कालेधन को वैध करना चाहता है तो उसे बदले में 50 लाख रुपए ही मिलेंगे, लेकिन वह वैध धन होगा।
  • केरल में कुदुम्बश्री (Kudumbashree) और गुजरात में सेल्फ एम्प्लॉइड वुमन एसोसिएशन ( Self Employed Women’s Association- SEWA) जैसे स्वयं-सहायता समूह माइक्रोफाइनेंस के लिये बनाए गए थे।

इसी प्रकार 15 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश में एक महिला विकास परिषद नामक स्वयं-सहायता समूह का गठन किया गया था।

  • बाह्य वाणिज्यिक उधार का आशय उस ऋण या उधार से है जो भारतीय कंपनी द्वारा किसी विदेशी कंपनी से लिया जाता है।

इस प्रकार का ऋण भारतीय मुद्रा में भी हो सकता है एवं विदेशी मुद्रा में भी। ECB के माध्यम से कोई भी भारतीय कंपनी रियायती दर पर किसी विदेशी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त कर सकती है।

  • रिज़र्व ट्रेन्च (Reserve Tranche) वह मुद्रा होती है जिसे प्रत्येक सदस्य देश द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) को प्रदान किया जाता है। इसका उपयोग देश अपने स्वयं के प्रयोजनों के लिये भी कर सकते हैं। इसका प्रयोग सामान्यतः आपातकाल की स्थिति में किया जाता है।
  • बैंक ऑफ बड़ौदा,देना बैंक और विजया बैंक के हालिया विलय के पश्चात यह भारतीय स्टेट बैंक और आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के बाद विलय की गई यह इकाई देश का तीसरा सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा।

एकीकरण की इस घोषणा के साथ सरकार संरचनात्मक सुधारों पर नरसिम्हम समिति (1998) की सिफारिश को लागू करती हुई प्रतीत हो रही है। इस समिति ने भारतीय बैंकों के विलय की सिफारिश की थी। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR)एक अर्द्धवार्षिक प्रकाशन है जो भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करती है। FSR वित्तीय स्थिरता के लिये जोखिम, साथ ही वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council-FSDC) की उप-समिति के समग्र आकलन को दर्शाती है। यह रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा करती है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI)[सम्पादन]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल, 1935 को इसकी स्थापना हुई थी। शुरुआत में रिज़र्व बैंक का केंद्रीय कार्यालय कोलकाता में स्थापित किया गया था जिसे वर्ष 1937 में स्थायी रूप से मुंबई में स्थानांतरित कर दिया गया। केंद्रीय कार्यालय वह कार्यालय है जहाँ RBI का गवर्नर बैठता है और जहाँ नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं। यद्यपि प्रारंभ में यह निजी स्वमित्व वाला था, वर्ष 1949 में RBI के राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।

गठन:-सरकारी निदेशक
पूर्ण:कालिक :-गवर्नर और अधिकतम चार उप गवर्नर

गैर:सरकारी निदेशक सरकार द्वारा नामित :-विभिन्न क्षेत्रों से दस निदेशक और दो सरकारी अधिकारी अन्य : चार निदेशक - चार स्थानीय बोर्डों से प्रत्येक से एक

  • वार्षिक रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की सांविधिक रिपोर्ट (Statutory Report) है और इसे हर वर्ष अगस्त में जारी किया जाता है।

गिल्ट फंड[सम्पादन]

वे म्यूचुअल फंड जो सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी की गई सरकारी प्रतिभूतियों (G-sec) में निवेश करती हैं। इन सरकारी प्रतिभूतियों में केंद्र सरकार की दिनाँकित प्रतिभूतियाँ, राज्य सरकार की प्रतिभूतियाँ और ट्रेजरी/राजस्व बिल शामिल होते हैं। गिल्ट फंड्स में निवेश करने के बाद निवेशकों को किसी तरह का क्रेडिट रिस्क नहीं होता है, क्योंकि इन प्रतिभूतियों की गारंटी केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है। ये फंड्स दीर्घावधिक सरकारी प्रतिभूति पत्रों में निवेश करते हैं।[१] सामन्यतः गिल्ट म्यूचुअल फंड दो प्रकार के होते हैं-

  1. लघु अवधि के म्यूचुअल फंड-अगले 15-18 महीनों में परिपक्व हो जाते हैं।इनकी कम अवधि में परिपक्वता के कारण ब्याज दरों में बदलाव का कम जोखिम होता है।
  2. दीर्घ अवधि के म्यूचुअल फंड-परिपक्वता अवधि 5 साल से 30 साल तक होती है।

गिल्ट फंडों में सरकारी प्रतिभूतियों की परिपक्वता अवधि जितनी अधिक होती है, उतनी ही अधिक ब्याज दर में बदलाव की संभावना होती है। कुछ मामलों में दीर्घकालीन गिल्ट फंड अल्पकालिक गिल्ट फंड्स की तुलना में ब्याज दरों में बदलाव के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया देते हैं।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. https://www.etmoney.com/mutual-funds/debt/gilt/66