सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/MSME क्षेत्रों के विकास के लिए नीतियाँ

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सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम(Micro,Small and Medium Enterprise- MSME)की स्थापना ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम 2006’ के तहत की गई है,जिसे दो श्रेणियों में बाँटा गया है:-

विनिर्माण उद्यम (Manufacturing Enterprise):-
  1. सूक्ष्म (Micro): जिनकी स्थापना के लिये 25 लाख रुपए से अधिक के निवेश की आवश्यकता न हो।
  2. लघु (Small): निवेश की सीमा 25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए के बीच।
  3. मध्यम (Medium): निवेश की सीमा 5 से 10 करोड़ रुपए के बीच ।
सेवा उद्यम (Service Enterprise):
  1. सूक्ष्म (Micro): जिनकी स्थापना के लिये आवश्यक उपकरणों में कुल निवेश 10 लाख रुपए से अधिक न हो।
  2. लघु (Small): निवेश की सीमा 10 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए के बीच।
  3. मध्यम (Medium): निवेश की सीमा 2 से 5 करोड़ रुपए के बीच।
  • उच्चतम रोज़गार लोच वाले उपक्षेत्रक हैं:-रबर और प्लास्टिक उत्पाद> इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पाद> परिवहन उपकरण> बिजली, गैस और जल आपूर्ति> लकड़ी और लकड़ी के उत्पाद। रोज़गार की दृष्टि से आर्थिक विकास में वृद्धि हेतु इस तरह के उच्च रोज़गार लोचदार क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • MSME कृषि क्षेत्र के बाद सबसे बड़ा रोज़गार प्रदान करने वाला क्षेत्र है। हालाँकि कृषि क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान MSME से कम है। यह विनिर्माण क्षेत्र में लगभग 45% और आयात में लगभग 40% का योगदान देता है। यह भारत में रोज़गार क्षेत्र में उच्चतम हिस्सा रखता है,रोज़गार में लगभग 69% का योगदान देता है।

प्राथमिकता क्षेत्रक उधारी में प्राथमिक रूप से केवल वे क्षेत्र शामिल हैं जो आबादी के बड़े वर्गों,कमज़ोर वर्गों और उन क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं जो रोज़गार प्रधान हैं जैसे- कृषि,सूक्ष्म एवं लघु उद्योग। उत्पादन में कार्यरत MSME अथवा उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट एवं सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित वस्तु उत्पादन में संलग्न उद्योगों को प्राथमिक क्षेत्रक के अग्रिमों के लिये मान्यता प्रदान की जाती है।

  • ‘बौनी फर्मों (Dwarf Firms)' कम विकास के कारण दस वर्षों से पुरानी और छोटी (100 से कम नियोजित श्रमिकों वाली) दोनों हैं।

संख्या के मामले में संगठित विनिर्माण क्षेत्र में इनका हिस्सा आधे से भी अधिक है। संगठित विनिर्माण क्षेत्र में बौनी फर्मों की संख्या कुल फर्मों की संख्या की आधे से भी अधिक होने पर है किंतु रोज़गार में इनका हिस्सा केवल 14.1% है। निवल वर्द्धित मूल्य (NVA) में इनका हिस्सा बहुत ही कम (7.6%) है।

इसके विपरीत युवा बड़ी फर्में (जिनमें 100 से अधिक कर्मचारी हैं और 10 वर्ष से कम पुरानी हैं) संख्या के हिसाब से केवल 5.5% हैं और रोज़़गार में 21.2% का योगदान देती हैं तथा NVA में इनका योगदान 37.2% है। जिन फर्मों में समय के साथ वृद्धि करने की क्षमता होती हैं, उनका अर्थव्यवस्था में रोज़गार और उत्पादकता के मामले में सबसे ज़्यादा योगदान होता है। इसके विपरीत, पुरानी होने के बावजूद बौनी फर्में छोटी बनी रहती है और अर्थव्यवस्था में रोज़गार एवं उत्पादकता में सबसे कम योगदान देती हैं।

छोटी फर्मों की तुलना में नई फर्में रोज़गार और निवल वर्द्धित मूल्य में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। इस प्रकार नई फर्मों की रोज़गार और उत्पादकता में असंगत हिस्सेदारी होती है। यह देखा गया है कि समय बढ़ने के साथ-साथ फर्मों के रोज़गार एवं निवल वृद्धित मूल्य में हिस्सेदारी कम होती जाती है। नई फर्मों का आकार पुरानी फर्मों से औसतन छोटा होने के बावजूद भी ऐसा होता है। फर्मों की परिपक्वता और उनके द्वारा दिये गए रोज़गार एवं उत्पादकता में व्युत्क्रमानुपाती संबंध होता है। फर्मों के समय के साथ परिपक्व होने से उनकी उत्पादकता और उनमें रोज़गार कम होने लगते हैं। भारत में केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर ही कई श्रम कानून, नियम, और विनियम हैं जो कर्मचारी एवं नियोक्ता के बीच संबंधों को नियंत्रित करते हैं। इनमें से प्रत्येक कानून के अंतर्गत छोटी फर्मों को अनुपालन के संदर्भ में छूट दी गई है। उदाहरण के लिये औद्योगिक विवाद अधिनियम (IDA), 1947 कंपनियों को कर्मचारियों की नियुक्ति से पहले सरकार से अनुमति प्राप्त करने के लिये बाध्य करता है। हालाँकि यह प्रतिबंध केवल 100 से अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों पर ही लागू होता है। इस प्रकार 100 से कम कर्मचारियों वाली फर्मों को कर्मचारियों को नियुक्त करने से पहले सरकार से अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता से छूट दी गई है। इस प्रकार के नियमों के अनुपालन में निहित लागत को देखते हुए, स्वाभाविक रूप से अधिकतर फर्में 100 कर्मचारियों की सीमा से नीचे रहना पसंद करेंगी। संगठित विनिर्माण क्षेत्र में संख्या के हिसाब से बौनी फर्मों की संख्या कुल फर्मों की संख्या की आधी है, रोज़गार में इनका हिस्सा केवल 14.1 प्रतिशत तथा उत्पादकता में केवल 8% है। इसके विपरीत बड़ी फर्में (100 से अधिक कर्मचारी) संख्या में लगभग 15 प्रतिशत होने के बावजूद रोज़गार में तीन चौथाई तथा उत्पादकता में लगभग 90 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती हैं। MSME के रूप में संदर्भित छोटी फर्मों के लिये नीतियों में प्राथमिकता क्षेत्र उधारी, प्रोत्साहन/छूट शामिल हैं जब तक कि वे संयंत्र और मशीनरी में निवेश के मामले में निर्धारित ऊपरी सीमा तक नहीं पहुँचते हैं।

सारणी 1. प्रमुख श्रम क़ानूनों से स्थापित आकार आधारित सीमाएं
क्रम संख्या श्रम कानून शीर्ष पाठ प्रतिष्ठानों में अनुप्रयोज्यता
1 औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947 जो हड़तालों, लॉकआउट, छंटनी और नौकरी से मुक्त करने से संबंधित है।100 और उससे अधिक कामगार जहाँ नियोजित हों।
2 श्रम संघ अधिनियम, 2001 श्रम संघों का पंजीकरण10 प्रतिशत की सदस्यता या 100 कामगार जो भी कम हो।
3 औद्योगिक रोज़गार(स्टैंडिंग ऑर्डर्स) अधिनियम,1946 100 या अधिक कामगार
4 कारख़ाना अधिनियम, 1948 ऊर्जा सहित 10 या अधिक कामगार और बिना ऊर्जा के 20 या अधिक कामगार
5 संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 संविदा श्रमिक के रूप में 20 या अधिक मज़दूर कार्यरत
6 न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 अनुसूची जहाँ राज्य में 1000 से अधिक श्रमिक हैं, में रोज़गार
7 कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948-ई. एस. आई. योजना 10 या अधिक श्रमिक या कर्मचारी तथा मासिक मज़दूरी रु. 21000 से अधिक न हो
8 कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम,1952 20 या अधिक श्रमिक


  • 2007 में ओ.ई.सी.डी.(OECD) द्वारा किया गया राज्यस्तरीय सर्वेक्षण जिसे 2013-14 में अद्यतन किया गया,राज्यों को श्रम क़ानूनों में लचीलेपन के आधार पर वर्गीकृत करता है।
  • श्रम क़ानूनों में लचीलापन विकास और रोज़गार सृजन के लिये एक सहायक वातावरण तैयार करता है।
  • लचीले राज्य श्रम,पूंजी और उत्पादकता में अनुपात से अधिक योगदान करते हैं जबकि लोचहीनता श्रम को पूंजी से प्रतिस्थापित करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
  • लोचहीन राज्य लगभग सभी आयामों में बुरी तरह प्रभावित हैं चाहे यह रोज़गार हो,पूंजी आकर्षण हो,उत्पादकता या मज़दूरी हो।

2014-15 के श्रम सुधारों से पहले राजस्थान के विकास की कहानी भी शेष भारत के समान थी। लेकिन सुधारों के बाद बड़ी फ़र्मों की संख्या और संयोजित सालाना विकास दर में महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई। असम, झारखंड, केरल, बिहार, गोवा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल गैर लचीले राज्य हैं जबकि उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात और हरियाणा को लचीले राज्यों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

लघु क्षेत्र आरक्षण नीति[सम्पादन]

लघु उद्योग (एसएसआई) आरक्षण नीति 1967 में रोज़गार में वृद्धि और आय पुनर्वितरण के लिये शुरू की गई थी।
यह नीति आकार के आधार पर फ़र्मों के लिये उत्पादों का विनिर्माण आरक्षित करती है।
सारणी 2. लघु क्षेत्र की फर्मों को प्राप्त प्रोत्साहन (चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो)
क्रमांक संख्या योजना उद्देश्य
1 प्राथमिकता क्षेत्र उधार सहायतित ब्याज दर पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वित्त में सभी सूक्ष्म और लघु उद्यमों को दिया गया ऋण शामिल होगा भले ही उनकी आयु कुछ भी हो।
2 क्रेडिट गारंटी फ़ंड स्कीम यह योजना सूक्ष्म और लघु उद्यमों,भले ही उनकी आयु कुछ भी क्यों न हो,को संपार्श्विक मुक्त ऋण प्रदान करती है।
3 खरीद प्राथमिकता नीति वस्तुओं का एक समूह (समूह IV) विशिष्ट रूप से लघु क्षेत्र की इकाइयों,भले ही उनकी आयु कुछ भी क्यों न हो, से खरीद के लिये आरक्षित है। समूह V के आइटम उनकी आवश्यकता का 75 प्रतिशत तक सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों, भले ही उनकी आयु कुछ भी क्यों न हो, से खरीदा जाना है।
4 कीमत प्राथमिकता नीति कुछ चयनित वस्तुएँ जिन्हें लघु और बड़े क्षेत्र दोनों प्रकार की इकाइयों में बनाया जाता है, कीमत प्राथमिकता लघु क्षेत्र को दी जाएगी चाहे उनकी आयु कुछ भी क्यों न हो। यह कीमत प्राथमिकता बड़े क्षेत्र के न्यूनतम कोटेशन से ऊपर 15 प्रतिशत प्रीमियम होगी।

महत्त्वपूर्ण प्रवृत्तियाँ और तथ्य

  • संगठित विनिर्माण में लघु फ़र्मे 85 प्रतिशत (संख्या की दृष्टि से) हैं लेकिन ये कुल रोज़गार और एनवीए का क्रमशः केवल 23 प्रतिशत और 11.5 प्रतिशत योगदान करती हैं।
  • बौनी फ़र्में संख्या की दृष्टि से संगठित विनिर्माण में सभी फ़र्मों का आधा हिस्सा हैं लेकिन कुल रोज़गार और एनवीए का क्रमशः केवल 14.1 प्रतिशत और 7.6 प्रतिशत योगदान करती हैं।
  • संगठित विनिर्माण में बड़ी फ़र्मे 15 प्रतिशत (संख्या की दृष्टि से) हैं लेकिन कुल रोज़गार और एनवीए का क्रमशः केवल 77 प्रतिशत और 88.5 प्रतिशत योगदान करती हैं।
  • 10 वर्ष से कम अवधि की फ़र्में रोज़गार का लगभग 30 प्रतिशत और एनवीए का लगभग आधा प्रदान करती हैं, यह फर्म की आयु में वृद्धि के साथ-साथ अधोमुख प्रवृत्ति को दर्शाता है।

सन्दर्भ[सम्पादन]