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हिंदी कविता आधुनिक काल छायावाद तक/नए जमाने की मुकरी

विकिपुस्तक से

सब गुरुजन को बुरो बतावै। अपनी खिचड़ी अलग पकावै॥

भीतर तत्व न झूठी तेज़ी। क्यों सखि सज्जन नहिं अंग्रेज़ी॥

तीन बुलाए तेरह आवैं। निज निज बिपता रोइ सुनावैं॥

आंखों फूटे भरा न पेट। क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रैजुएट॥

सुंदर बानी कहि समुझावै। बिधवागन सों नेह बढ़ावै॥

दयानिधान परम गुन-आगर। सखि सज्जन नहिं विद्यासागर॥

सीटी देकर पास बुलावै। रुपया ले तो निकट बिठावै॥

ले भागै मोहिं खेलहिं खेल। क्यों सखि सज्जन नहिं सखि रेल॥

धन लेकर कछु काम न आवै। ऊंची नीची राह दिखावै॥

समय पड़े पर साधै गुंगी। क्यों सखि सज्जन नहिं सखि चुंगी॥

भीतर भीतर सब रस चूसै। हंसि हंसि कै तन मन धन मूसै॥

जाहिर बातन में अति तेज। क्यों सखि सज्जन नहिं अंगरेज॥

मुंह जब लागै तब नहिं छूटै। जाति मान धन सब कुछ लूटै॥

पागल करि मोहिं करे खराब। क्यों सखि सज्जन नहीं सराब॥