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हिंदी कविता आधुनिक काल छायावाद तक/सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

विकिपुस्तक से

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की प्रसिद्ध कविता "स्नेह-निर्झर बह गया है" उनके गहन भावनात्मक अनुभवों और व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों का परिचायक है। यह कविता मानवीय संवेदनाओं, प्रेम और त्याग का अद्भुत चित्रण करती है। कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

स्नेह-निर्झर बह गया है राग का उन्माद कह लो, शांत अब वह वह गया है।

अब न वह उन्माद भारी, तन-बदन पर छा रहा है, अब न वह शृंगार-भार, अलंकरण पर छा रहा है।

अब न वह हँसने-हँसाने, खेलने का भाव आता, अब न वह आँसू बहाने, रुलाने का भाव पाता।

कह एक प्रतिकार केवल, अब विदित परिणाम सब है, अब न आशा, अब न निराशा, शांत दोनों, समान सब है।

यह कविता निराला के जीवन में आए विषाद और आत्म-संयम का दार्शनिक वर्णन करती है। इसमें स्नेह के निर्झर के सूखने का प्रतीकात्मक उल्लेख है, जो उनके आत्मसंयम और शांतचित्तता का संकेत है।