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हिंदी कविता आधुनिक काल छायावाद तक/स्नेह निर्झर

विकिपुस्तक से
स्नेह निर्झर कविता

स्नेह-निर्झर बह गया है।

रेत ज्यों तन रह गया है।

आम की यह डाल जो सूखी दिखी,

कह रही है—“अब यहाँ पिक या शिखी

नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी

नहीं जिसका अर्थ—

जीवन दह गया है।”

“दिए हैं मैंने जगत् को फूल-फल,

किया है अपनी प्रभा से चकित-चल;

पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल—

ठाट जीवन का वही

जो ढह गया है।''

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,

श्याम तृण पर बैठने को, निरुपमा।

बह रही है हृदय पर केवल अमा;

मैं अलक्षित हूँ, यही

कवि कह गया है।