हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/दोहे/(2)खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
सन्दर्भ
[सम्पादन]प्रस्तुत 'दोहा' खड़ी बोली के प्रवर्तक आदिकालीन कवि अमीर खुसरो द्वारा रचित हैं।
प्रसंग
[सम्पादन]खुसरो रैन सुहाग की...दोउ भए एक रंग॥
इसमें कवि ने माया-ग्रस्त होकर संसार में भटक रही आत्मा के ज्ञान होने पर अपने पिता परमात्मा के घर जाने का भी संकेत दिया है। इसी को कवि ने इसमें व्यक्त किया है। वह कहता है-
व्याख्या
[सम्पादन]खुसरो रैन सुहाग की...दोउ भए एक रंग॥
जब मैं जागी तो मुझे प्रतीत हुआ कि दिन निकल आया है। खुसरो कहते हैं कि रात के बाद दिन निकलता है। तब मैंने अपने को प्रिय ब्रह्म के साथ पाया। यह जानकर मेरे मन में खुशी का अनुभव हुआ। परमात्मा, जो मेरे पिता हैं, को भी पाकर मानो दोनों की खुशी में अपने को रंगा हुआ पाया। अर्थात् मैंने ब्रह्म तथा परमात्मा दोनों को अपने नज़दीक पाया, जो मेरे मन को खुशी देने लगा। मेरे लिए तो दोनों एक ही हैं। ब्रह्म और परमात्मा दोनों ही पिता हैं। ये मेरे सुहाग के प्रतीक हैं।
विशेष
[सम्पादन]समें खड़ी बोली, उर्दू, तथा अद्वैत भावना के दर्शन होते हैं। इसमें रहस्य-भावना का चित्रण है। प्रसाद गुण है। खुसरो निर्गुणोपासक हैं। प्रतीकात्मकता, आध्यात्मिकता तथा शांत रस है।
शब्दार्थ
[सम्पादन]पी - प्रियतम (ब्रह्म)। दोउ = दोनों। भए = हो गए। रंग = रंगना। पीउ = पिता। संग = साथ में।