हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल) सहायिका/सूरदास की कविताओं में चित्रित बाल जीवन

विकिपुस्तक से

सूरदास जी कृष्ण काव्य धारा के महान कवि थे वह अपने भागवान की लीलाओं का वर्णन किया करते थे ।उन्होंने अपनी रचना सूरसागर मे कृष्ण की बाल लीला का वर्णन से लेकर किशोरावस्था का वर्णन ऐसे किया है कि जैसे उन्होंने वह सारी घटनाओ को खुद अपनी आँखों से देखा हो। वह चित्रण बहुत ही मनोहर और प्रभावशाली है ।सूरदास जी को वात्सल्य रचना का प्रमुख कवि कहा है ।

उन्हों की रचना सूरसागर मे बाल लीला का वर्णन कुछ इस प्रकार है :

“जसोदा हरि पालनै झुलावै। हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।

मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै। तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै।।

कबहुं पलक हरि मुंदी लेत हैं कबहुं अधर फरकावै। सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै। इहि अंतर अकुलाइ उठे हरी जसुमति मधुरै गावै। जो सुख सुर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनी पावै।।”

अर्थ:

इस पद में सूरदास जी ने भगवान् बालकृष्ण की  शयनावस्था का सुंदर चित्रण किया हैं। वह कहते हैं की मैया यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झुला रही है। कभी तो वह पालने को हल्का सा हिला देती हैं, कभी कन्हैया को प्यार करने लगती हैं और कभी चूमने लगती हैं।

ऐसा करते हुए वह जो मन में आता हैं वही गुनगुनाने भी लगती हैं। लेकिन कन्हैया को तब भी नींद नहीं आती हैं। इसलिए यशोदा नींद को उलाहना देती हैं की आरी निंदिया तू आकर मेरे लाल को सुलाती क्यों नहीं? तू शीघ्रता से क्यों नहीं आती? देख, तुझे कान्हा बुलाता हैं। जब

यशोदा निंदिया को उलाहना देती हैं तब श्रीकृष्ण कभी पलकें मूंद लेते हैं और कभी होठों को फड़काते हैं। जब कन्हैया ने नयन मूंदे तब यशोदा ने समझा की अब तो कान्हा सो ही गया हैं। तभी कुछ गोपियां वहां आई। गोपियों को देखकर यशोदा उन्हें संकेत से शांत रहने को कहती हैं।

इसी अंतराल में श्रीकृष्ण पुन: कुनमुनाकर जाग गए। तब उन्हें सुलाने के उद्देश से पुन: मधुर मधुर लोरियां गाने लगीं। अंत में सूरदास नंद पत्नी यशोदा के भाग्य की सराहना करते हुए कहते है की सचमुच ही यशोदा बड़भागिनी हैं क्योंकि ऐसा सुख तो देवताओं और ऋषि-मुनियों को भी प्राप्त नहीं होता । सूरदासजी जी ने भगवान् कृष्ण की बालसुलभ चेष्टा का वर्णन किया हैं। श्रीकृष्ण अपने ही घर के आंगन में जो मन में आता हैं वो गाते हैं। वह छोटे छोटे पैरो से थिरकते हैं तथा मन ही मन स्वयं को रिझाते भी हैं।

खवावत।।इस पद मे सूरदास जी ने भगवान् कृष्ण की बालसुलभ चेष्टा का वर्णन किया हैं। श्रीकृष्ण अपने ही घर के आंगन में जो मन में आता हैं वो गाते हैं। वह छोटे छोटे पैरो से थिरकते हैं तथा मन ही मन स्वयं को रिझाते भी हैं।कभी वह भुजाओं को उठाकर कली श्वेत गायों को बुलाते है, तो कभी नंद बाबा को पुकारते हैं और घर में आ जाते हैं। अपने हाथों में थोड़ा सा माखन लेकर कभी अपने ही शरीर पर लगाने लगते हैं, तो कभी खंभे में अपना प्रतिबिंब देखकर उसे माखन खिलाने लगते हैं।श्रीकृष्ण की इन सभी लीलाओं को माता यशोदा छुप-छुपकर देखती हैं और मन ही मन में प्रसन्न होती हैं। सूरदासजी कहते हैं की इस प्रकार यशोदा श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं को देखकर नित्य हर्षाती हैं।इस पद में भी विद्धान कवि सूरदास जी ने श्री कृष्ण की बाललीला को मन को लुभाने वाला वर्णन किया है।इस पद मे उन्होंने इस दोहे में श्री कृष्ण के माखन चुराने की लीला का वर्णन किया है कि किस तरह नटखट कान्हा माखन खाने के लिए ग्वालिन के घर में जाकर माखन चोरी कर खा रहे हैं और पकड़े जाने पर बाल कृष्ण, ग्वालिन से इस  बात की गुहार लगा रहे हैं कि उनकी यह बात वो किसी से नहीं कहे।

इसके साथ ही इस दोे में सूरदास जी ने श्री कृष्ण की लीलाओं से ग्वालिनों को भी सुख की अनुभूति की बात कही है

“मैं नहीं माखन खायो मैया। मैं नहीं माखन खायो। ख्याल परै ये सखा सबै मिली मेरैं मुख लपटायो।।

देखि तुही छींके पर भजन ऊँचे धरी लटकायो। हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसे करि पायो।।

मुख दधि पोंछी बुध्दि एक किन्हीं दोना पीठी दुरायो। डारी सांटी मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो।।

बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो। सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो।।”

अर्थ:

श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में माखन चोरी की लीला सुप्रसिध्द है। वैसे तो कान्हा ग्वालिनों के घरो में जाकर माखन चुराकर खाया करते थे। लेकिन आज उन्होंने अपने ही घर में माखन चोरी की और यशोदा मैया ने उन्हें देख लिया।

सूरदासजी ने श्रीकृष्ण की चतुराई का जिस प्रकार वर्णन किया है वैसा कही नहीं मिलता। यशोदा मैया ने देखा की कान्हा ने माखन खाया हैं तो उन्होंने कान्हा से पूछा की क्यों रे कान्हा! तूने माखन खाया है क्या? तब बालकृष्ण ने अपना पक्ष किस तरह मैया के सामने प्रस्तुत करते हैं, यही इस दोहे की विशेषता हैं।

कन्हैया बोले ..मैया! मैंने माखन नहीं खाया हैं। मुझे तो ऐसा लगता हैं की ग्वाल – बालों ने ही बलात मेरे मुख पर माखन लगा दिया है। फिर बोले की मैया तू ही सोच, तूने यह छींका किना ऊंचा लटका रखा हैं मेरे हाथ भी नहीं पहुच सकते हैं। कन्हैया ने मुख से लिपटा माखन पोंछा और एक दोना जिसमें माखन बचा था उसे छिपा लिया।कन्हैया की इस चतुराई को देखकर यशोदा मन ही मन में मुस्कुराने लगी और कन्हैया को गले से लगा लिया। सूरदासजी कहते हैं यशोदा मैया को जिस सुख की प्राप्ति हुई वह सुख शिव व ब्रम्हा को भी दुर्लभ हैं।श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाले कवि ने अपनी रचनाओं में भगवान् श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर और भावभिवोर वर्णन कर यह सिध्द किया हैं कि भक्ति का प्रभाव कितना गहरा और महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ ही सूरदास जी ने समाज के सामने ईश्वर की गाथा का अत्यंत सुंदर बखान किया है।इसके साथ ही ईश्वर के प्रति शालीनता, सरलता और स्वभाविक रचना के कारण हिंदी साहित्य का कोई भी कवि इनके समकक्ष नहीं है। सूरदास जी की रचनाएं कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत हैं। जिसके जरिए वे भक्तों को कृष्ण के जीवन का ज्ञान देते हैं। वहीं इनकी रचनाओं से यह तो साफ है कि यह श्री कृष्ण के एक प्रचंड भक्त थे।

कृष्ण भक्ति का भाव उजागर होते हैं। वहीं उन्होंने अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं और उनके सुंदर रूप  का इस तरह वर्णन किया है कि मानो उन्होंने खुद अपनी आंखों से नटखट कान्हा की लीलाओं को देखा हो।