निवेश शिक्षा

विकिपुस्तक से

इक्विटी शेयर क्या है?[सम्पादन]

इक्विटी शेयर को साधारण भाषा में आर्डिनरी शेयर भी कहा जाता है। इससे किसी कंपनी में अमुक अंश की हिस्सेदारी व्यक्त होती है। इक्विटी शेयरधारक कंपनी की लाभ हानि में, अपने शेयरों की संख्या के अनुपात में व्यवसायिक हिस्सेदार होता है। इसे कंपनी के सदस्य का दर्जा प्राप्त होने के साथ कंपनी के प्रस्तावों पर अपना विचार व्यक्त करने तथा मत देने का अधिकार प्राप्त है।

राइट इश्यु/राइट शेयर किसे कहते है?[सम्पादन]

जब कोई कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को उनकी अंशधरिता के अनुपात में नयी सिक्युरिटीज प्रस्तावित करती है तो इसे राइट इश्यु या राइट शेयर कहा जाता है। शेयरधारकों को राइट शेयर खरीदने का अधिकार मिलता है परंतु यह उसकी इच्छा पर निर्भर है कि वह इसका उपयोग करे या न करे।

इक्विटी शेयर धारकों के अधिकार क्या हैं?[सम्पादन]

इक्विटी शेयरधारक कंपनी के हिस्सेदार ही कहलाते हैं इसलिए इन्हें कंपनी का वित्तीय कार्य परिणाम तथा आर्थिक व्यवहार जानने का अधिकार है। इसके लिए उसे प्रतिवर्ष सम्पूर्ण विवरण सहित बेलेंसशीट एवं वार्षिक रिपोर्ट प्राप्त करने का अधिकार है। कंपनी के अपने मुख्य कारोबार के दैनिक कामकाज के विवरण को छोडकर, किसी भी पॉलिसी में परिवर्तन करने, नए शेयर जारी करने तथा अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए शेयरधारकों की अनुमति लेनी पडती है। इसके लिए वर्ष में कम से कम एक बार वार्षिक सभा करनी आवश्यक है जिसमें निवेशक मंडल की बैठकों में पारित प्रस्ताव रखने पड़ते हैं। वार्षिक सभा की सूचना के साथ इन प्रस्तावों की प्रति भी शेयरधारकों को इस तरह भेजनी होती है ताकि वह उन्हें वार्षिक सभा से पहले मिल जाए। शेयरधारकों को इन प्रस्तावों के पक्ष में अथवा इनके विरूद्ध अपने विचार रखने का अधिकार है। कंपनी की लेखा पुस्तकों या अन्य जरूरी दस्तावेजों को जांचने का अधिकार भी शेयरधारकों को है।

बोनस शेयर अर्थात क्या?[सम्पादन]

कंपनी अपने वार्षिक लाभ को सम्पूर्ण रूप से लाभांश के रूप में वितरित नहीं करती है। इसका कुछ हिस्सा वह संचय खाते में जमा करती जाती है जो कुछ वर्षो में एक बड़ी राशि बन जाती है। कंपनी अपनी भावी विकास योजना या अन्य योजनाओं के लिए इस राशि को पूंजी खाते में हस्तांतरित करने के लिए इतनी ही राशि के शेयर बतौर बोनस अपने मौजूदा अंशधारकों को अनुपातिक आधार पर दे देती है। इन शेयरों का शेयरधारकों से कोई मूल्य नहीं लिया जाता।

प्रेफरेंस शेयर किसे कहते हैं?[सम्पादन]

इस प्रकार के शेयरधारकों को प्रतिवर्ष पूर्व निर्धारित दर से लाभांश दिया जाता है। यह लाभांश कंपनी के लाभ में से दिया जाता है परंतु इसका भुगतान इक्विटी शेयरधारकों को लाभांश देने से पहले किया जाता है। यदि कंपनी का दिवाला निकलता है तो प्रेफरेंस शेयरधारक को उसका हिस्सा इक्विटी शेयरधारकों से पहले परंतु बॉण्ड होल्डरों, डिबेंचरधारकों आदि लेनदारों को चुकाने के बाद, मिलने का अधिकार है।

क्युम्युलेटिव प्रेफरेंस शेयर क्या है?[सम्पादन]

ऐसे शेयरधारकों को पूर्व निर्धारित दर पर प्रतिवर्ष लाभांश नहीं दिया जाता बल्कि यह कंपनी के पास जमा होता रहता है। जब कभी भी कंपनी अपने इक्विटी शेयरधारकों को लाभांश देती है तो उससे पहले क्युम्युलेटिव प्रेफरंस शेयरधारकों को लाभांश दिया जाता है। ऐसी स्थिति में इनको उक्त अवधि तक का पूरा संचित लाभांश दिया जाता है।

क्युम्युलेटिव कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर किसे कहते हैं?[सम्पादन]

यह एक प्रकार का प्रेफरेंस शेयर ही है जिसमें निर्धारित दर पर लाभांश संचित होते हुए एक साथ ही चुकाया जाता है परंतु इसमें एक निर्धारित अवधि भी होती है जिसके पूरा होने पर उन्हें संचित लाभांश का भुगतान तो कर ही दिया जाता है साथ ही ये शेयर स्वतः इक्विटी शेयर में रूपांतरित हो जाते है।

मैं इक्विटी शेयर कैसे प्राप्त कर सकता हूं?[सम्पादन]

आप प्राइमरी मार्केट से सार्वजनिक निर्गम के दौरान आवेदन करके या फिर शेयर बाजार के मान्यता प्राप्त ब्रोकर के माध्यम से सेकेन्ड्री मार्केट में शेयर खरीद सकते हैं।

प्राइमरी मार्केट अर्थात क्या?[सम्पादन]

कोई कंपनी जब अपनी परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए सार्वजनिक निर्गम जारी करती है तो इस निर्गम के माध्यम से आवेदन करके शेयर पाने तथा कंपनी द्वारा शेयर आबंटित करके उनको सूचीबद्ध कराने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया/व्यवहार `प्राइमरी मार्केट' के कार्यक्षेत्र में आता है।

सेकेन्ड्री मार्केट किसे कहते हैं?[सम्पादन]

कंपनी सार्वजनिक निर्गम द्वारा आवेदकों को शेयर आबंटित करने के बाद उन्हें पंजीकृत शेयर बाजार में सूचीबद्ध करवाती है। सूचीबद्धता के बाद सार्वजनिक निर्गम के जरिए प्राइमरी मार्केट में आबंटित किए गये शेयरों की खरीद बिक्री की जा सकती है और इसी व्यवहार/कारोबार को सेकेन्ड्री मार्केट में सम्मलित किया गया है। साधारण भाषा में जब कोई व्यक्ति आवेदन करके कंपनी से सीधे शेयर लेता है तो यह प्राइमरी मार्केट का व्यवहार कहलाता है परंतु जब यही शेयर वह अन्य किसी शेयरधारक से खरीदता है या अन्य को बेचता है तो यह व्यवहार सेकेन्ड्री मार्केट का कहलाता है।

सेकंडरी मार्केट[सम्पादन]

सेकंडरी मार्केट का आशय क्या है?[सम्पादन]

प्राइमरी मार्केट में प्रारंभ में, निवेशकों को सिक्युरिटीज आफर की जाती है और स्टॉक एक्सचेंज में उसे सूचीबद्ध कराने के बाद उसकी ट्रेडिंग सेकंडरी मार्केट में होती है। सेकंडरी मार्केट के दो भाग हैः इक्विटी और डेब्ट मार्केट। सामान्य निवेशकों के लिए सेकंडरी मार्केट सिक्युरिटीज की ट्रेडिंग के लिए प्रभावशाली मंच देता है।

प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट के बीच क्या अंतर है?[सम्पादन]

प्राइमरी मार्केट में धन जुटाने के लिए लोगों को निर्गम द्वारा सिक्युरिटीज का आफर किया जाता है। सेकंडरी मार्केट इक्विटी ट्रेडिंग का ऐसा मार्ग है, जिसमें अस्तित्ववाली पहले जारी की गई सिक्युरिटीज की ट्रेडिंग होती है। सेकंडरी मार्केट आक्शन या डीलर मार्केट हो सकता है। स्टॉक एक्सचेंज आक्शन बाजार का हिस्सा है, जबकि ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) डीलर बाजार का हिस्सा है।

सेकंडरी मार्केट में किस प्रोडक्ट्स की ट्रेडिंग होती है?[सम्पादन]

सेकंडरी मार्केट में मुख्यतः इक्विटी शेयरों, राइट शेयरों, बोनस शेयर्स, प्रेफरंस शेयर्स, क्युम्युलेटिव प्रेफरेंस शेयर्स, क्युम्युलेटिव कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर्स, पार्टिसिपेंट प्रेफरेंस शेयर्स, सिक्युरिटीज रिसिप्ट, सरकारी प्रतिभूतियों (गवर्नमेन्ट सिक्युरिटीज), डिबेंचर्स, बांड्स, जीरो कूपन बांड्स, कन्वर्टिबल बांड्स, कामर्शियल पेपर्स, ट्रेजरी बिल्स आदि सिक्युरिटीज की ट्रेडिंग होती है।

शेयर बाजार में सौदा करने के लिए किससे संपर्क करना चाहिए?[सम्पादन]

पंजीकृत ब्रोकर अथवा सब-ब्रोकर से संपर्क करना चाहिए।

ब्रोकर का क्या मतलब है?[सम्पादन]

मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य हो और जिसे विभिन स्टाक एक्सचेंज की स्क्रीन आधारित ट्रेडिंग सिस्टम पर सौदा करने का अधिकार हो उसे ब्रोकर कहा जाता है।

सब-ब्रोकर किसे कहा जाए?[सम्पादन]

सेबी में दर्ज हो और मान्यता प्राप्त एक्सचेंज के सदस्य के साथ संलग्न व्यक्ति को सब-ब्रोकर कहा जाता है।

सब-ब्रोकर रजिस्टर्ड है या नहीं, इसका पता कैसे लगाएं?[सम्पादन]

सेबी द्वारा जारी की गई रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जांच कर आप विश्वास कर सकते हैं। ब्रोकर का रजिस्ट्रेशन नंबर `आईएनबी' से शुरू होता है। जबकि सब-ब्रोकर का नंबर `आईएनएस' से शुरू होता है और इस सेगमेंट में उप दलाल नहीं होता।

क्या ब्रोकर या सब-ब्रोकर के साथ हमें करार करना होता है?[सम्पादन]

शेयरों का सौदा करने के लिए आप को ब्रोकर के साथ एक करार `मेंबर क्लायंट एग्रीमेंट' करना पडता है। सीधे ब्रोकर के बदले सब-ब्रोकर के मार्फत काम करने को इच्छुक हों तो आपको त्रिपक्षीय करार-ब्रोकर-सब-ब्रोकर और निवेशक करार करना पडता है। यह करार नान-ज्युडिशियल स्टेम्प पेपर पर करना होता है।

यूनिक क्लायंट कोड का आशय क्या है?[सम्पादन]

ग्राहकों के डेटाबेस का रखरखाव करने के लिए सभी दलालों को यूनिक क्लायंट कोड का उपयोग करना लाजिमी है। इस क्लायंट कोड से ग्राहक की विशिष्ट पहचान बनी रहती है।

रिस्क डिस्क्लोजर डाक्युमेन्ट क्या है?[सम्पादन]

निवेशकों को स्टॉक मार्केट की ट्रेडिंग की विभिन जोखिमों से अवगत कराने के लिए एक्सचेंज के सदस्यों को अपने ग्राहकों के साथ रिस्क डिस्क्लोजर डाक्युमेंट पर सही करना पडता है। इस डाक्युमेंट में बाजार की घटबढ़, प्रवाहिता, नई घोषणाएं, अफवाह आदि संबंधित जोखिमों को दर्शाया जाता है।

मेरे सौदे का आर्डर दिया गया है या नहीं, यह कैसे जानें?[सम्पादन]

स्टॉक एक्सचेंज प्रत्येक सौदे को यूनिक आर्डर कोड नंबर देता है, जिसकी जानकारी ब्रोकर द्वारा ग्राहक को दी जाती है कि सौदा किया गया है। आर्डर कोड नंबर कांट्रेक्ट नोट में छपा रहता है। ब्रोकर आर्डर देता है तो उसका समय भी दर्ज होता है।

सौदा होने के बाद ब्रोकर से कौन सा दस्तावेज लेना चाहिए?[सम्पादन]

आप को एक्सचेंज में सौदा करने के बाद निम्नांकित दस्तावेज ब्रोकर से लेना चाहिए। फार्म ए में कांट्रेक्ट नोट। यदि कांट्रेक्ट नोट कम्प्यूटर सर्जित हो तो वह हस्ताक्षर युक्त हो, यह देखना चाहिए। ब्रोकर से कांट्रेक्ट नोट लेने का आग्रह करें, क्योंकि व्यापार के कराराधीन हक और दायित्व की पुष्टि उससे होती है। सौदे में विवाद खड़ा हो तो आर्बिट्रेशन के माध्यम से निपटान करने की व्यवस्था का लाभ लेने का प्रावधान भी कांट्रेक्ट नोट में है। सिर्फ ब्रोकर कांट्रेक्ट नोट जारी कर सकता है।

एसटीटी क्या है?[सम्पादन]

सिक्युरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी) स्टॉक एक्सचेंज में किये गये सभी सौदे पर लिया जाता है। यह केन्द्रीय कर है।

रोलिंग सेटलमेंट का क्या मतलब है?[सम्पादन]

रोलिंग सेटलमेंट में जिस दिन सौदा हुआ हो उसका वास्तविक लेनदेन उसी दिन बराबर करना होता है। फिलहाल रोलिंग सेटलमेंट टी + 2 के अनुसार होता है। यहां टी अर्थात सौदे का दिन। सोमवार को सौदा किया हो तो बुधवार को उसे सेटल करना होता है।

पे-इन डे और पे-आउट डे का क्या आशय है?[सम्पादन]

पे-इन डे यह वह दिन है जब दलालों को अपने सौदे की सिक्युरिटीज की डिलीवरी या भुगतान करना होता है। रोलिंग सेटलमेंट साइकिल टी + 2 है। पे-आउट के दिन ब्रोकरों को बेचे गए शेयरों का धन और खरीदे गए शेयरों की डिलीवरी मिलती है। एक्सचेंज को इसका ध्यान रखना पड़ता है कि पे-आउट के 24 घंटे के भीतर ग्राहक को भुगतान या सिक्युरिटीज की डिलीवरी हो जाए।

मेरे खाते में तुरंत शेयर्स की डिलीवरी आ जाए ऐसा कोई रास्ता है क्या?[सम्पादन]

ऐसा प्रावधान है। इसके लिए आप को अपने खाता और डीपी का डीपी-आईडी का ब्यौरा और डिलीवरी लेने के लिए स्थाई सूचना अपने डीपी को देनी पडती है। यह ब्यौरा देने पर क्लीयरिंग हाउस पे-आउट का आदेश डीपाजिटरी को भेजेगा इससे सिक्युरिटीज की डिलीवरी या भुगतान सीधे आप के खाते में होगा।

मार्जिन ट्रेडिंग फेसिलिटी (सुविधा) क्या है?[सम्पादन]

मार्जिन ट्रेडिंग उधार लिए गए धन/सिक्युरिटीज द्वारा की जाने वाली ट्रेडिंग है। यह ऐसी व्यवस्था है कि जिसमें निवेशक अपने संसाधनों द्वारा जो जोखिम उठा सकता है उससे अधिक जोखिम वे ले सकते हैं। सेबी ने मार्जिन ट्रेडिंग फेसिलिटी (सुविधा) की पात्रता और प्रक्रिया का नियम बनाया है। कम से कम तीन करोड़ रू. की नेटवर्थ वाले कार्पोरेट ब्रोकर मार्जिन फेसिलिटी अपने क्लायंट को आफर कर सकते हैं। ग्राहक को यह फेसिलिटी लेने के वास्ते सेबी द्वारा निर्धारित की गई फार्मेट में ब्रोकर के साथ करार करना होता है। ग्राहकों को ऐसा आश्वासन देना पड़ता है कि वह इस सुविधा को एक समय में एक से अधिक ब्रोकर से नहीं लेगा।

सेबी की रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम क्या है?[सम्पादन]

सेबी का कार्य बाजार में विभिन जोखिमों को दूर करने पर केन्द्रित है। इसके लिए शेयर बाजार सेबी के साथ तालमेल रखकर उसकी नीतियों की पुनर्समीक्षा और रिस्क मैनेजमेंट नीतियां बनाता रहता है। इसे रिस्क मैनेजमेंट कहा जाता है। इन नीतियों के तहत भिन भिन मार्जिन और नियंत्रण अस्तित्व में है, जिसमें से मुख्य इस प्रकार हैंः प्रवाहिता और भाव के घटबढ़ की मात्रानुसार स्क्रिप्स का वर्गीकरण और तद्नुसार मार्जिन, वैल्यू एट रिस्क (वीएआर) मार्जिन, मार्क टू मार्केट मार्जिन और अन्य विभिन प्रकार की मार्जिन तय करने और वसूलने, मार्जिन के भुगतान की समय सीमा निर्धारित करने, मार्जिन वसूलना आदि।

यदि मेरा शेयर या धन परिपक्वता की तारीख को नहीं मिले तो क्या करना चाहिए?[सम्पादन]

यदि ब्रोकर सिक्यिरिटीज की डिलीवरी अथवा समय पर भुगतान करने में विफल हो तो आप संबंधित एक्सचेंज में ब्रोकर के विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकते हैं। एक्सचेंज सभी शिकायतें दूर करेगा। विवाद के समाधान के लिए निवेशक आर्बिट्रेशन का सहारा ले सकता है।

बीएसई इन्डोनेक्स्ट क्या है?[सम्पादन]

पिछले कुछ वर्षों में प्रादेशिक स्टॉक एक्सचेंज (आरएसई) में कामकाज अत्यंत घट गया है इसलिए छोटी और मध्यम वर्ग की कंपनियां नया संसाधन जुटाने में कठिनाई का अनुभव करती हैं, क्योंकि सेकंडरी बाजार में इन कंपनियों की सिक्युरिटीज में सौदा नहीं होता। परिणाम स्वरूप निवेशक ऐसी कंपनियों के शेयरों में किए गए पूंजी निवेश से बाहर नहीं निकल सकते। बीएसई इन्डोनेक्स्ट की रचना ऐसी छोटी और मध्यम वर्ग की कंपनियों, इन कंपनियों के निवेशक और पूंजी बाजार के लाभ के लिए की गई है। बीएसई आनलाइन ट्रेडिंग सिस्टम (बोल्ट) के तहत बीएसई और फेडरेशन ऑफ इंडियन स्टॉक एक्सचेंज (एफआईएसई) द्वारा बीएसई इन्डोनेक्स्ट की रचना की गई है। 18 प्रादेशिक एक्सचेंज उसके सदस्य हैं।

डेरिवेटिव्स मार्केट[सम्पादन]

निवेशकों के मन में डेरिवेटिव्स के विषय में जो सर्व सामान्य प्रश्न उठते हैं उसकी सूची और उत्तर हम प्रस्तुत करते हैं।

डेरिवेटिव्स मार्केट अर्थात क्या?[सम्पादन]

डेरिवेटिव्स शब्द डिराइव्स शब्द से आया है। डिराइव्स अर्थात किसी एक वस्तु आदि के आधार पर तैयार हुआ कोई मूल्य। शेयर बाजार में किसी भी शेयर स्टाक या इंडेक्स के आधार पर इसमें सौदा होने से इस मार्केट को डेरिवेटिव्स मार्केट कहा जाता है। यह एक तरह से वायदा ही है।

डेरिवेटिव्स मार्केट में सौदा कैसे होता है?[सम्पादन]

इसमें शेयर बाजार द्वारा तय किए गए और रखे गए शेयरों का पूर्व निर्धारित लाट में शेयर का एक, दो या तीन माह का कांट्रेक्ट जारी किया जाता है। यह कांट्रेक्ट इस्यूकर्ता के रूप में शेयर बाजार द्वारा नियुक्त किए गए कुछ दलाल होते हैं, जिसे कांट्रेक्ट राइटर कहा जाता है, जो बाजार में कांट्रेक्ट की मांग के आधार पर कांट्रेक्ट का भाव और प्रीमियम आफर करते हैं।

यह कांट्रेक्ट कितने प्रकार का होता है?[सम्पादन]

बीएसई पर दो तरह के कांट्रेक्ट इस्यू (जारी) किए जाते है। जिसमें से एक है प्युचर्स और दूसरा आप्श्न्स कांट्रेक्ट । प्युचर्स तथा आप्शन्स दोनों में पुनः दो तरह के कांट्रेक्ट जारी किए जाते हैं। प्युचर्स मार्केट में सेंसेक्स प्युचर्स और स्टाक प्युचर्स होते है। इसी तरह आप्शन्स मार्केट में भी सेंसेक्स आप्शन्स और स्टाक आप्शन्स होते हैं।

प्युचर्स कांट्रेक्ट किसे कहा जाता है?[सम्पादन]

प्युचर्स कांट्रेक्ट का अर्थ भविष्य में एक निर्दिष्ट तारीख को निश्चित सिक्युरिटीज (अंडरलाइंग सिक्युरिटीज) के क्रय-विक्रय करने का कांट्रेक्ट। अवधि पूरी होने पर इस सिक्युरिटीज के तत्कालीन भाव तथा कांट्रेक्ट में निर्धारित भाव के बीच के फर्क का भुगतान करके इसका निपटान किया जा सकता है।

आप्शन कांट्रेक्ट किसे कहा जाता है?[सम्पादन]

आप्शन कांट्रेक्ट, कांट्रेक्ट खरीदनेवाले/रखनेवाले को अंडरलाइंग एसेट एक निर्धारित समयावधि के अन्त में अथवा पूर्वनिर्धारति भाव पर खरीदने या बेचने का अधिकार दिलाता है, परन्तु वह उसकी जवाबदारी नही बन जाती। आप्शन कांट्रेक्ट को खरीदनेवाला या धारक कांट्रेक्ट राइटर से सिर्फ मूल्य का फर्क पाने का हकदार माना जाता है जिसके लिए उस कांट्रेक्ट राइटर को प्रीमियम चुकाना पडता है। जब खरीदनेवाला इस कांट्रेक्ट के तहत उसे प्राप्त करने के अधिकार का उपयोग करें तब कांट्रेक्ट की शर्त पूर्ण करने का दायित्व आप्शन राइटर का होता हैं।

सेंसेक्स प्युचर्स क्या हैं?[सम्पादन]

सेंसेक्स प्युचर्स, भविष्य की निश्चित तारीख को सेंसेक्स खरीदने या बेचने का कांट्रेक्ट है। आपके सेंसेक्स के शेयरों के पोर्टफोलियों की हेजिंग के लिए तथा बाजार के बारे में अपना मंतव्य व्यक्त करने के लिए भी यह साधन अत्यंत उपयोगी बन रहा है।

एक्सचेेंज में इसका सौदा कैसे होता हैं?[सम्पादन]

बीएसई में सेंसेक्स प्युचर्स में 50 सेंसेक्स का लाट होता है। यह कांट्रेक्ट एक से तीन महिने का होता है। उसकी टीक साइज 0.01 पाइंट रखी जाती है। सेंसेक्स का भाव सेंसेक्स का ही वैल्यू होता है। कांट्रेक्ट का अंतिम दिन महिने का अंतिम गुरूवार (यदि उस दिन छुट्टी हो तो अगले कामकाज के दिन) होता है एवं इस अंतिम दिन ही निपटान होता है।

स्टाक प्युचर्स किसे कहा जाता हैं?[सम्पादन]

स्टाक प्युचर्स एक ऐसा वित्तीय डेरिवेटिव्स प्रोडक्ट है जिसमें आपको किसी एक शेयर को आगे की तारीख में बाजार द्वारा कांट्रेक्ट तैयार करते समय ही निर्धारित किये गये भाव पर खरीदने या बेचने की सुविधा मिलती है।

एक्सचेंज पर स्टाक प्युचर्स का सौदा कैसे होता हैं?[सम्पादन]

इसमें कैश मार्केट से संबंधित शेयरों का अंडरलाइंग स्टाक के रूप में कांट्रेक्ट होता है। इसमें प्रत्येक शेयर के बारे में अलग अलग लाट हो सकता है। कांट्रेक्ट कम से कम दो लाख रू. या एक्सचेंज अथवा सेबी द्वारा निर्दिष्ट किसी निश्चित रकम से कम न रहे, उस ढ़ंग से यह लाट तय किया जाता हैं। इसमें कांट्रेक्ट एक, दो या तीन माह का भी हो सकता है। टीकसाइज कम से कम एक पैसा का हो सकता है। इसलिए कि कम से कम एक पैसे के फर्क पर भी कांट्रेक्ट के शेयर का सौदा हो सकता हैं। इसमें शेयर का वैल्यू उसके प्रति शेयर वैल्यू के समान ही होता है। इसमें भी कांट्रेक्ट का अंतिम दिन महिने का अंतिम गुरूवार (यदि उस दिन छुट्टी हो तो उसके अगले कामकाज का दिन) होता है और इस अंतिम दिन ही निपटान होता है।

सेंसेक्स आप्शन किसे कहा जाता है?[सम्पादन]

सेंसेक्स आप्शन्स में बाजार के घटकों द्वारा निर्धारित किया गया प्रीमियम चुका कर अंडरलाइंग शेयरों में कॉल या पुट आप्शन्स (जिसका भविष्य की तारीख पर अमल किया जा सके) खरीदने अथवा बेचने की सुविधा मिलती है।

एक्सचेंज पर इसका सौदा कैसे होता हैं?[सम्पादन]

इसमें अंडरलाइंग एसेट सेंसेक्स होता है और उसका लाट 50 सेंसेक्स का होता हैं तथा वैल्यू भी सेंसेक्स की प्रचलित वैल्यू ही मानी जाती है। इसमें भी टीकसाइज 0.01 सेंसेक्स पाइंट होती है और उसका कांट्रेक्ट के अंतिम दिन अर्थात महिने के अंतिम गुरूवार को नगद में निपटान किया जाता है।

स्टाक आप्शन्स क्या हैं?[सम्पादन]

स्टाक आप्शन्स में बाजार घटकों द्वारा तय शुद्ध प्रीमियम पर अंडरलाइंग स्टाक पर कॉल या पुट आप्शन्स की खरीदी या बिक्री करने का अधिकार मिलता है। इसमें अंडरलाइंग स्टाक एक्सचेंज द्वारा तय किए शेयर होते हैं। उसका लाट भी एक्सचेंज या मार्केट रेग्युलेटर द्वारा निर्दिष्ट न्यूनतम कांट्रेक्ट अनुसार प्रत्येक शेयर का अलग अलग होता है। यह कांट्रेक्ट एक, दो या तीन महिने का भी हो सकता है। इसमें प्रति शेयर रूपए में ही प्रीमियम बोला जाता है। इसमें भी टीकसाइज 0.01 का ही होता है। सेटलमेंट वैल्यू बीएसई के कैश सेगमेंट से संबंधित शेयरों के बन्द भाव के मुताबिक होती है। इसमें कांट्रेक्ट पूर्ण होने के अंतिम दिन महिने के अंतिम गुरूवार (यदि उस दिन छुट्टी हो तो उसके अगले कामकाज का दिन होता हैं) के ही उसका निपटान होता हैं। इसमें कांट्रेक्ट पूरा होने की तारीख को या उसके अमल की तारीख को उस दिन के कैश मार्केट के बंद भाव और कांट्रेक्ट वैल्यू के बीच के फर्क का निपटान करना होता है।

कॉल आप्शन्स और पुट आप्शन्स क्या हैं?[सम्पादन]

कोई अंडरलाइंग एसेट्स भविष्य में खरीदने के लिए जो कांट्रेक्ट प्राप्त किया गया हो उसे काल आप्शन्स कहा जाता है। जब कोई अंडरलाइंग एसेट्स भविष्य में बेचने के लिए जो कांट्रेक्ट प्राप्त किया गया हो उसे पुट आप्शन्स कहा जाता है।

फारवर्ड कांट्रेक्ट क्या हैं?[सम्पादन]

फारवर्ड कांट्रेक्ट अर्थात ऐसा करार कि जिसमें दो पार्टियां आज तय हुए भाव पर भविष्य की निश्चित तारीख को कांट्रेक्ट का सेटलमेंट करने को सहमत हों।

टीक साइज क्या है?[सम्पादन]

टीक साइज `0.01' रखी गयी है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि प्युचर के वाल्यूम में न्यूनतम भाव का अंतर 0.01 तक रहेगा तो रूपए के मूल्य में यह भाव फर्क न्यूनतम 0.50 रू. में रूपांतरित होता है। (टीक साइज गुणा कांट्रेक्ट मल्टिप्लायर बराबर 0.01 गुणा 50 रू.)

सेटलमेन्ट का अंतिम भाव कैसे तय होता है?[सम्पादन]

टीक साइज `0.01' रखी गयी है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि प्युचर के वाल्यूम में न्यूनतम भाव का अंतर 0.01 तक रहेगा तो रूपए के मूल्य में यह भाव फर्क न्यूनतम 0.50 रू. में रूपांतरित होता है। (टीक साइज गुणा कांट्रेक्ट मल्टिप्लायर बराबर 0.01 गुणा 50 रू.)

मार्जिन मनी क्या है?[सम्पादन]

यदि कोई पार्टी डिफाल्टर हो जाए तो ऐसे अवसरों के लिए जोखिम की मात्रा कम करने के लिए मार्जिन मनी ली जाती है। खड़े सौदों का अगले दिन निपटान करने के लिए, भाव में होने वाली घट-बढ़ की जोखिम को मर्यादित करने के लिए मार्जिन राशि का भुगतान, सुरक्षा प्रदान करता है। मार्जिन मनी भविष्य में होने वाली हानि अथवा सिक्युरिटीज डिपाजिट के रूप में बीमा की भूमिका निभाती है।

मार्जिन मनी के अलग अलग प्रकार क्या हैं?[सम्पादन]

य्मार्जिन के तीन अलग अलग प्रकार हैं। शुरूआत का मार्जिन, वेरिएशन मार्जिन (मार्क टू मार्केट अथवा एम टू एम), एक्सपोजर मार्जिन अथवा अतिरिक्त मार्जिन।

निवेश पूर्व जरूरी बातें[सम्पादन]

पूंजीनिवेश करने से पूर्व आप को उसमें संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। जानकारी हासिल करने के बाद ही आप भावी नुकसान से बच सकेंगे। हमने कुछ ऐसे प्रश्नों की सूची तैयार की है, जो आपको पूंजी निवेश करने से पूर्व अपने शेयर दलाल अथवा म्युच्युअल फंड एजेंट से पूछना चाहिए। अच्छा दलाल अथवा एजेंट आप के प्रश्नों का स्वागत करेगा क्योंकि वे जानते हैं कि शिक्षित-जागृत निवेशक ही उसकी संपत्ति है

निवेश करने से पूर्व आप स्वयं से पूछिए[सम्पादन]

  • मैं क्यों निवेश करता हूँ?
  • मुझे निवेश करना चाहिए?
  • मुझे कहां निवेश करना चाहिए?
  • यदि मैं यहां निवेश नहीं करूं तो कौन से अवसर खो दूंगा?
  • क्या यह मेरे लिए श्रेष्ठ निवेश होगा?

सिक्युरिटीज में निवेश करने से पूर्व आप स्वयं से पूछिए[सम्पादन]

  • मैं यह सिक्युरिटीज क्यों खरीद रहा हूं?
  • क्या यह सिक्युरिटीज मुझे लाभांश, ब्याज की आय या पूंजी वृद्धि देगी?
  • लाभ और निश्चित समय सीमा में क्या मेरा अनुमान पूरा होगा?
  • निवेश की खरीदी, बनाए रखना और बिक्री का कुल कितना खर्च होगा?
  • इन सभी खर्चों को ध्यान में रखने के बाद मुनाफे पर कब आएंगे?
  • धन की तात्कालिक जरूरत के समय क्या इस निवेश को सरलता से निकाला जा सकता है?
  • कौन से धारक मेरे निवेश के मूल्य को बढ़ाएगा / घटाएगा? (उदा. बदलती ब्याज दर / सरकारी नीति, बढ़ती     स्पर्धा,अर्थतंत्र की मंदी, शेयर बाजार की अस्थिरता, युद्ध, प्राकृतिक आपदा इत्यादि।
  • इस निवेश के साथ निश्चित कौन से जोखिम संलग्न है?
  • जिस कंपनी का शेयर खरीदा है वह कंपनी बिजनेस में कितने लम्बे समय से है?

उसके संचालक कितने अनुभवी हैं?

  • क्या कंपनी निवेशकों की हितैशी है?
  • अपने प्रतिस्पर्धी के मुकाबले कंपनी कैसा कामकाज करती है?
  • कंपनी या उसके संचालकों के विरूद्ध क्या कोई कानूनी / रेग्युलेटरी कदम उठाया गया है?
  • भूतकाल में कंपनी द्वारा दिखाया गया कार्य क्या भविष्य में बरकरार रहेगा?
  • कंपनी की सिक्युरिटी और कंपनी के विषय में अधिक जानकारी हमें कहां से मिलेगी?
  • हमें आफर डाक्युमेंट या वार्षिक रपट कहां से मिलेगी?
  • क्या सेबी में इस सिक्युरिटीज का आफर डाक्युमेंट दाखिल हुआ है?
  • क्या यह सिक्युरिटीज जेड कैटेगरी का शेयर है?

अपने ब्रोकर, सब-ब्रोकर से जानकारी लें[सम्पादन]

  • क्या आप सेबी में रजिस्टर्ड हैं?
  • सेबी का सर्टिफिकेट अथवा रजिस्ट्रेशन मुझे बताएंगे?
  • मुझे शेयर बाजार में से रजिस्ट्रेशन प्राप्त दस्तावेज बताएंगे?
  • आप किस शेयर बाजार के सदस्य हैं?
  • आप या आप की पीढ़ी / कंपनी कितने लम्बे समय से बिजनेस करती है?
  • आप और आपकी कंपनी का क्या अनुभव है और क्या प्रशिक्षण लिया है?
  • क्या कोई रेग्युलेटरी बॉडी / नियमन संस्था ने आप की किसी पीढ़ी या आप की *अन्य संबंधित पीढ़ी के विरूद्ध कारवाई की है?
  • यदि मैं आप का ग्राहक बनू तो, मुझे कितनी दलाली / दूसरा चार्ज देना होगा?
  • ब्रोकर-क्लायंट करार पर सही करने के लिए कौन सा दस्तावेज देना होगा?
  • मेरे किए गए सौदे की जानकारी कितने समय में दे सकोगे?
  • मेरा सौदा करने के बाद कितने समय में मुझे कांट्रेक्ट नोट्स मिलेगा?
  • शेयरों का क्रय-विक्रय का ट्रांजेक्शन पूर्ण करने के लिए कैसा डाक्युमेंट देना होगा और कितने समय में?
  • मुझे कब भुगतान / डिलीवरी करनी होगी? क्या मेरे द्वारा किए गए सौदे पर कोई मार्जिन है वह कैसे जाने और     भुगतान कर सकुं?
  • मैं कभी संकट ग्रस्त हो जाऊ तब उसका निराकरण करने की कैसी व्यवस्था है वह समझााओगे?

म्युच्युअल फंड में निवेश करने से पहले आप स्वयं से पूछिए[सम्पादन]

  • इस फंड का ट्रेक रिकार्ड क्या है?
  • फंड किस तरह की सिक्युरिटीज में निवेश करता है? वह कितनी अवधि घोषित करता है?
  • क्या म्युच्युअल फंड ऐसी सिक्युरिटीज में निवेश करता है, जो मेरी पूंजी को नुकशान पहुंचा सके?
  • इस प्रकार के अन्य फंड के मुकाबले इस फंड का कामकाज कैसा होता है?
  • जब मैं यूनिट खरीदूंगा तब फंड मुझे कितना चार्ज करेगा?
  • आज मैं सौदा करूं तो मुझे कौन सी एनएपी लागू होगी?
  • जब मैं यूनिट बेचूं तब फंड मुझे कितना चार्ज करेगा?
  • मेरी बेची गई यूनिट का पैसा कब मिलेगा?
  • फंड की तरफ से मुझे कितने समय में एकाउंट स्टेटमेंट मिलेगा?

म्युच्युअल फंड एजेन्ट/वितरक से पूछिए[सम्पादन]

  • क्या आप एसोसिएशन ऑफ म्युच्युअल फंड ऑफ इंडिया (एम्फी) के रजिस्टर्ड एजेन्ट है?
  • म्युच्युअल फंड की किस प्रोडक्ट का वितरण करते हैं?
  • आप और आप की पीढ़ी कब से कार्यरत है?
  • आप कितने अनुभवी हैं और प्रशिक्षण मिला है?
  • दूसरों की अपेक्षा यदि आप का म्युच्युअल फंड पसंद करूं तो आप क्या अधिक धन बनाएंगे? आपको यदि अधिक
  • धन लाभ नहीं मिले तो भी क्या आप उसी फंड की सिफारिश करेंगे?
  • इस फंड की खरीदी का क्या खर्च आएगा?
  • यदि यह फंड अभी बेचूं तो मुझे कितना लाभ मिलेगा?
  • इस निवेश के संदर्भ में मुझे शिकायत हो तो किससे संपर्क करें? ऐसे समय में आप मुझे कैसे सहायक बनेंगे?
  • एम्फी या अन्य कोई रेग्युलेटरी बॉडी / अधिकारी ने आपके विरूद्ध अनुशासन भंग की कारवाई की है?

म्युच्युअल फंड[सम्पादन]

म्युच्युअल फंड में निवेश करने के इच्छुक निवेशकों को म्युच्युअल फंड और उसके कामकाज के विषय में जो सामान्य प्रश्न उठते हैं उसकी सूची हम यहां प्रस्तुत करते हैं।

म्युच्युअल फंड क्या है?[सम्पादन]

म्युच्युअल फंड ऐसा तंत्र है जिसमे म्युच्युअल फंड कंपनियां निवेशकों को यूनिट जारी करके धन जुटाती हैं और फिर उस धन का आफर डाक्युमेंट में उल्लेखित नियमों के अनुसार विभिन सिक्युरिटीज में निवेश किया जाता हैं। विविध उद्योगों की सिक्युरिटीज में निवेश होने से जोखिम घटता है। म्युच्युअल फंड में निवेशकर्ताओं को यूनिट होल्डर कहा जाता है।

म्युच्युअल फंड का गठन कैसे किया जाता है?[सम्पादन]

म्युच्युअल फंड का गठन एक ट्रस्ट के रूप में किया जाता है जो स्पांसर (प्रायोजक), ट्रस्टी, एसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) और कस्टोडियन के अधीन होता है। ट्रस्ट की स्थापना एक या उससे अधिक स्पांसर द्वारा की जाती है। कंपनी में जिस तरह प्रमोटर होते हैं उसी तरह म्युच्युअल फंड में प्रायोजक होते हैं। म्युच्युअल फंड के ट्रस्टी लोग निवेशकों के लाभार्थ फंड की प्रापर्टी धारण कर रखते हैं। सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त एसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) विभिन सिक्युरिटीज में पूंजी निवेश द्वारा धन का प्रशासन करती है। सेबी द्वारा मान्य कस्टोडियन विविध स्कीमों की सिक्युरिटीज अपने कब्जे में रखता है। एएमसी पर सर्वसामान्य देखरेख और नियंत्रण की सत्ता ट्रस्टियों की होती है। वे फंड के कार्य का संचालन करते हैं और सेबी के नियमों का पालन हो, यह देखते हैं। सेबी के नियमानुसार ट्रस्टी कंपनी के डाइरेक्टर अथवा ट्रस्टी मंडल के दो तिहाई सदस्य स्वतंत्र होने चाहिए ताकि वे स्पांसर के साथ जुडे न हों। इसके अलावा एएमसी के 50 प्रतिशत डाइरेक्टर स्वतंत्र होने चाहिए। सभी म्युच्युअल फंडो को कोई भी स्कीम खोलने से पहले सेबी का रजिस्ट्रेशन प्राप्त करना पडता है।

योजना की नेट एसेट वैल्यू का आशय क्या है?[सम्पादन]

स्कीम के कामकाज का संकेत एनएवी द्वारा मिलता है। सरल शब्दों में कहें तो एनएवी अर्थात स्कीम द्वारा धारण की गई सिक्युरिटीज का प्रति यूनिट बाजार मूल्य। बाजार भाव रोजाना बदलता रहता है। इसलिए एनएवी भी रोजाना बदलती रहती है। एनएवी अर्थात स्कीम की सिक्युरिटीज के कुल बाजार मूल्य में कुल यूनिटों की संख्या का भाग देने पर प्राप्त राशि। म्युच्युअल फंड दैनिक या साप्ताहिक आधार पर एनएवी घोषित करता है।

म्युच्युअल फंड योजनाएं कितने प्रकार की होती हैं?[सम्पादन]

म्युच्युअल फंड योजनाओं को मुख्यतः दो प्रकारों में बांटा जा सकता है। ओपन एंडेड फंड स्कीम और क्लोज एंडेड स्कीम। ओपन एंडेड फंड ऐसी योजना है कि जिसमें सबस्क्रिप्शन भर कर पेश हो सकती हैं और उसकी लगातार पुनः खरीदी भी की जा सकती है। जबकि क्लोज एंडेड स्कीम पांच या सात वर्ष की निर्धारित योजना होती है। यह फंड खुलने के बाद निर्धारित अवधि तक सबस्क्रिप्शन के लिए खुला रहता है और उसके बाद निवेशकों को इस यूनिट की खरीदी या बिक्री शेयर बाजार से करनी होती है। निवेशकों को स्कीम में से निकल जाने का विकल्प देने के वास्ते कुछ क्लोज एंडेड फंड समय-समय पर एनएवी आधारित मूल्य पर पुनः खरीदी करते हैं। ये म्युच्युअल फंड सामान्यतः साप्ताहिक आधार पर एनएवी घोषित करते हैं। इसके अलावा निवेश उद्देश्य के आधार पर म्युच्युअल फंड योजनाएं निम्नानुसार प्रकार की होती हैं।

ग्रोथ इक्विटी स्कीम[सम्पादन]

ग्रोथ फंड का उद्देश्य मध्यम से दीर्घ काल की पूंजी वृद्धि का होता है। ऐसे फंड तुलनात्मक ढ़ंग से ऊँचे जोखिम वाले होते हैं। यह योजना निवेशक को डिविडंड या पूंजी वृद्धि का विकल्प देती हैं। निवेशक को आवेदन पत्र में अपनी पसंद का विकल्प दर्शाना होता है। निवेशक बाद में उस विकल्प को बदल भी सकता है। दीर्घकालीन पूंजी निवेश के लिए यह योजना बहेतर हैं।

इन्कम/डेट स्कीम[सम्पादन]

इन्कम फंड का उद्देश्य निवेशकों को नियमित और स्थिर आय उपलब्ध कराना है। यह स्कीम सामान्यतः बांड्स, कंपनी के डीबेंचर्स और सरकारी प्रतिभूति जैसी स्थिर आय दिलाने वाली सिक्युरिटीज में निवेश करती है। इसमें इक्विटी स्कीम की तुलना में जोखिम कम होती है परन्तु लाभ भी सीमित रहता है।

बैलेंस फंड[सम्पादन]

इस फंड का उद्देश्य निवेशकों की पूंजी वृद्धि और स्थिर आय दिलाने का है। आफर डाक्युमेंट में बताए अनुसार डेब्ट और इक्विटी में सामान्यतः 40ः60 के अनुपात में निवेश किया जाता है।

मनीमार्केट या लिक्विड फंड[सम्पादन]

यह फंड भी इन्कम फंड है। यह फंड प्रवाहिता, पूंजी की रक्षा और मध्यम आय दिलाता है। यह स्कीम अल्पावधि के धन साधनों जैसे कि ट्रेजरी बिल्स, सर्टिफिकेट आफ डीपाजिट, कामर्शियल पेपर्स और कॉलमनी, सरकारी प्रतिभूति आदि में निवेश करते हैं।

गिल्ट फंड[सम्पादन]

यह फंड सिर्फ सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करता है। सरकारी प्रतिभूतियों में डीफाल्ट की जोखिम नहीं होती।

इंडेक्स फंड[सम्पादन]

इंडेक्स फंड प्रमुख शेयर सूचकांक जैसे कि सेंसेक्स, निप्टी में समाविष्ट शेयरों में निवेश करते हैं। इंडेक्स में शेयरों का जितना वेटेज होता है उतना ही वेटेजवाला पोर्टफोलियों वे तैयार करते हैं। परिणाम स्वरूप इंडेक्स के घटने या बढ़ने के साथ इस फंड की एनएवी भी घटती या बढ़ती है। 5 टैक्स सेविंग स्कीम क्या हैं? टैक्स सेविंग स्कीम में निवेशकों को आयकर अधिनियम 1961 के प्रावधानों के तहत कर लाभ मिलता है। उदाहरणार्थ इक्विटी लिन्क सेविंग स्कीम और म्युच्युअल फंड द्वारा खुली पैंशन स्कीम। इस योजना का उद्देश्य एनएवी बढ़ाना है और मुख्यतः इक्विटी में निवेश करते हैं।

लोड या नो-लोड फंड अर्थात क्या?[सम्पादन]

लोड फंड अर्थात जिस फंड में निवेशक को प्रवेश करने या उससे बाहर आने के लिए एनएवी आधारित चार्ज चुकाना पड़ता है जबकि नो लोड फंड में इस तरह का चार्ज चुकाने की जरूरत नहीं पडती।

एस्योर्ड रिटर्न (भरोसेमंद प्रतिफल) स्कीम क्या है?[सम्पादन]

इस प्रकार के फंड में युनिट धारक को फंड के वितीय कार्य परिणाम से प्रभावित हुए बिना एक निश्चित प्रतिफल देने का विश्वास दिया जाता है। इसमें स्पांसर या एएमसी को इस बात की सम्पूर्ण गारंटी देनी होती है और इसका उल्लेख डाक्युमेंट आफ ऑफर में करना होता है।

ऑफर डाक्युमेंट में निवेशकों को क्या देखना चाहिए?[सम्पादन]

ऑफर डाक्युमेंट को ध्यान से पढ़ना चाहिए इसमें स्कीम की मुख्य विशेषताएं, जोखिम तत्त्व, प्रारंभिक खर्च, स्कीम के अन्य खर्च, प्रवेश या निकास लोड, स्पांसर का कार्य परिणाम, ट्रेक रिकार्ड, शैक्षणिक योग्यताएं, फंड मैनेजरों सहित मुख्य व्यक्तियों के अनुभव आदि का समावेश होता है। निवेशक को ये सारी बातें जाननी चाहिए।

म्युच्युअल फंड में निवेश के बाद निवेशक को सर्टिफिकेट अथवा स्टेटमेंट कब मिलेगा?[सम्पादन]

क्लोज एन्डेड स्कीम के मामले में प्रारंभिक जमा बंद होने के छः सप्ताह के भीतर तथा ओपन एन्डेड स्कीम के मामले में 30 दिनों के भीतर।

म्युच्युअल फंड आफर डाक्युमेंट में दर्शायी गई स्कीम का रूप बदल सकता हैं?[सम्पादन]

हां, लेकिन इसके लिए युनिट होल्डर को लिखित जानकारी देनी जरूरी है और यदि युनिट होल्डर को बदलाव पसंद न हो तो उसे एक्जिट लोड चुकाए बिना योजना से हट जाने का अधिकार है।

म्युच्युअल फंड का कार्य परिणाम कैसे जाना जाए?[सम्पादन]

योजना के वित्तीय परिणाम का प्रतिबिम्ब नेट एसेट वेल्यू (एनएवी) में प्रतिबिम्बित होता है जिसे ओपन एन्डेड योजनाओं के मामलों में दैनिक तथा क्लोज एन्डेड योजनाओं में साप्ताहिक अवधि पर समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाता है। म्युच्युअल फंड की वेबसाइट पर भी यह जानकारी उपलब्ध होती है। एसोसिएशन आफ म्युच्युअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) की वेबसाइट पर तमाम फंडों की एनएवी उपलब्ध कराना जरूरी है। इस तरह निवेशकों को एक ही स्थान पर अनेकों फंडों की एनएवी मिल जाती है।

म्युच्युअल फंड ने निवेशकों का धन कहां लगाया है इसका कैसे पता लगाया जाए?[सम्पादन]

म्युच्युअल फंड को अपनी स्कीम के पोर्टफोलियो की सूची हर छठे महिने समाचार पत्रों में प्रकाशित करनी होती है। इसके अलावा उन्हें अपने त्रिमासिक न्यूजलेटर में इसे प्रकाशित करना होता है।

यदि एक ही प्रकार की दो फंड योजनाएं हो तो इसमें से कम एनएवी वाली स्कीम में निवेश करना चाहिए?[सम्पादन]

ऐसा नहीं करना चाहिए। निवेशक को फंड के भूत काल के कार्य परिणाम, सर्विस के स्तर, व्यवसायिक संचालन आदि के आधार पर फंड का चुनाव करना चाहिए। ऊंची एनएवी वाला फंड, कम प्रतिफल दे, ऐसी स्थिति भी हो सकती है।

नाम से म्युच्युअल बेनिफिट शब्दोंवाली कंपनियां म्युच्युअल फंड है क्या?[सम्पादन]

नहीं।

स्पांसर की नेटवर्थ ऊँची होने पर अच्छा लाभ मिलेगा?[सम्पादन]

ऐसा कतई नहीं है।

म्युच्युअल फंड स्कीम समेट ली जाए तो निवेशक के धन का क्या होगा?[सम्पादन]

स्कीम समेट लिए जाने की स्थिति में म्युच्युअल फंड वर्तमान एनएवी आधारित रकम में से खर्चे की राशि काट कर बची हुई राशि निवेशकों को दे देते हैं।

निवेशक की शिकायत का समाधान कैसे होगा?[सम्पादन]

किसी भी प्रश्न या शिकायत की स्थिति में निवेशकों को ऑफर डाक्युमेंट में उल्लेखित व्यक्तियों से सम्पर्क करना चाहिए। म्युच्युअल फंड का संचालन ट्रस्टी करते हैं। एसेट मेनेजमेंट कंपनी और ट्रस्टियों का नाम ऑफर डाक्युमेंट में होता है। निवेशक शिकायतों के निपटान के लिए सेबी से भी सम्पर्क कर सकते हैं। निवेशक की शिकायत मिलने के बाद सेबी म्युच्युअलफंड के समक्ष शिकायत रखकर उसे दूर करती है। निवेशक नीचे लिखे पते पर अपनी शिकायतें भेज सकते हैं।

सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इंडिया,
मित्तल कोर्ट, बी विंग, पहली मंजिल,
224, नरीमन पाइंट, मुंबई - 400 021.
टे.क्र. 22850451-56, 22880962-70 


करन्सी प्युचर्स[सम्पादन]

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने भारतीय बाजार में एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी प्यूचर शुरू करने के लिए संयुक्त रूप से विश्वभर के करेंसी फारवर्ड एंड प्यूचर मार्केट का विश्लेषण करके मार्गदर्शिका बनाने के लिए एक स्थाई तकनीकी समिति का गठन किया था। कमेटी ने 29 मई 2008 को एक्सचेंज ट्रेडेड प्यूचर्स पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस संदर्भ में आरबीआई और सेबी ने भी 6 अगस्त 2008 में एक परिपत्र जारी किया है। वर्तमान समय में भारत के ओटीसी मार्केट में 34 अरब यूएस डॉलर का कारोबार होता है, जिसमें यूएस डॉलर, यूरो, येन, पाउंड, स्विस फ्रेंक आदि का समावेश है। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और प्रभावशाली जोखिम प्रबंधन प्रणाली की सहायता से एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी प्यूचर में पारदर्शिता के साथ मूल्य निर्धारण, काउंटर पार्टी क्रेडिट रिस्क, सभी प्रकार के बाजार भागीदारों का प्रवेश, मानकीकृत उत्पाद और पारदर्शी प्लेटफार्म उपलब्ध होगा। बैंक भी एक्सचेंज के इस सेंगमेंट में सदस्य बन सकेंगें, जिससे उन्हें इस बाजार में नये अवसर प्राप्त होंगे।

बीएसई अपने करेंसी डेरीवेटिव्स सेगमेंट के जरिए बीएसई -सीडीएक्स नाम से (वर्तमान में यूएस डॉलर - इंडियन रूपी) सेवा पेश करती है।

बीएसई - सीडीएक्स क्या है?[सम्पादन]

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लि. के करन्सी प्यूचर ट्रेडिंग सिस्टम को बीएसई - सीडीएक्स (बीएसई करन्सी डेरिवेटिव एक्सचेंज) कहा जाता है।

करन्सी प्यूचर्स क्या है?[सम्पादन]

बीएसई - सीडीएक्स पर ट्रेड किये जाने वाले करन्सी प्यूचर्स निर्धारित मात्रा के मानक कांट्रेक्ट एक मुद्रा का विनिमय दूसरी मुद्रा से भविष्य की निर्धारित तिथि, जिसे सेटलमेंट डेट कहा जाता है खरीद के दिन निर्धारित भाव प्यूचर्स प्राइस पर कहा जाता है

करन्सी प्यूचर में कारोबार क्यों?[सम्पादन]

करन्सी प्यूचर निवेशकों को दूसरी विदेशी मुद्राओं की तुलना में भारतीय रूपये के मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव पर अपना दृष्टिकोण निर्धारित करने की अनुमति देता है।

बीएसई- सीडीएक्स पर ट्रेड किये जाने वाले दूसरे करन्सी डेरिवेटिव क्या हैं?[सम्पादन]

वर्तमान में सेबी द्वारा सिर्फ करन्सी प्यूचर्स के कारोबार (ट्रेडिंग) की अनुमति दी गई है।

करन्सी फारवर्ड का क्या अर्थ है?[सम्पादन]

करन्सी फारवर्ड कांट्रेक्ट का कारोबार ओवर-द-काउंट मार्केट में किया जाता जो सामान्यतः दो वित्तीय संस्थाओं अथवा किसी वित्तीय संस्था और उसके ग्राहक के बीच संपन होता है।

भारतीय विदेशी मुद्रा (फोरेक्स) बाजार किस तरह कार्य करता है?[सम्पादन]

विदेशी मुद्रा बाजार का नियमन विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) द्वारा किया जाता है। भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार की नियामक संस्था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) है। एक्सचेंज द्वारा ट्रेड किये जाने वाले करन्सी प्यूचर्स मार्केट का नियमन सेबी द्वारा, मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेजों के माध्यम से किया जाता है। आरबीआई द्वारा अनुज्ञापत्र (लाइसेंस) प्राप्त अधिकृत डीलर विदेशी मुद्रा बाजार में सीधे तौर पर भाग ले सकते हैं। ये डीलर सामान्यतः अनुसूचित व्यावसायिक बैंक होते हैं। भागीदारों के समूह को फुल प्लेज्ड मनीचेंजर्स के रूप में लाइसेंस प्राप्त है जो सामान्य जनता के साथ मुद्रा विनिमय का कार्य करते हैं।

मुद्रा के अधिमूल्यन तथा मूल्य ह्रास का अर्थ क्या है?[सम्पादन]

मान लीजिए वर्तमान में एक अमेरिकी डॉलर की दर 43 भारतीय रूपये है। जब हम कहते हैं कि रूपये के मूल्य में डॉलर के मुकाबले वृद्धि हो रही है तो रूपये का मूल्य 42 रू. प्रति अमेरिकी डॉलर अथवा 43 रू. प्रति अमेरिकी डालर से कम कुछ भी हो सकता है। इसका अर्थ है कि अब हम 4300 रू. की जगह 4200 रू. में ही 100 अमेरिकी डॉलर की ख]रीद कर सकते है। इस तरह हमें कम भुगतान करना होता है। अब हम मान लेते हैं कि वर्तमान दर 43 रू. प्रति अमेरिकी डॉलर है। अब जब हम कहते हैं कि रू. का मूल्य अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिर रहा है तो रूपये का मूल्य 44 रू. प्रति अमेरिकी डॉलर अथवा 43 रू. प्रति अमेरिकी डॉलर से अधिक कुछ भी हो सकती है।

इसका अर्थ है अब हमें 100 अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 4300 रू. की जगह 4400 रू. चुकाने होते हैं, इस तरह हमें अधिक भुगतान करना होता है।

भारतीय फारेक्स बाजार में किस तरह की चंचलता रही है?[सम्पादन]

1993 में शुरू होने वाली अवधि निम्न मुद्रा चंचलता की अवधि थी। उसके बाद एशियाई संकट के समय उच्च मुद्रा चंचलता की अवधि आई इसके बाद फिर निम्न चंचलता की अवधि आई फिर पुनः उच्च चंचलता की अवधि आई।

काउंटर पार्टी अथवा क्रेडिट रिस्क क्या है?[सम्पादन]

बांबे स्टॉक एक्सचेंज का क्लियरिंग कार्पोरेशन, करन्सी डेरिवेटिव सेगमेंट में सभी क्लियरिंग मेंबरों के नेट सेटलमेंट आब्लीगेशनों की बिना शर्त गारंटी देता है। अतः क्लियरिंग मेंबर द्वारा उत्तरदायित्व से मुकरने की स्थिति में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लि. का क्लियरिंग कार्पोरेशन नेट सेटलमेंट आब्लीगेशनों के लिए काउंटर पार्टी (प्रति पक्ष) के रूप में काम करता है तथा दूसरे बाजार भागीदार इससे अप्रभावित रहते हैं।

ट्रेडिंग कौन कर सकता है?[सम्पादन]

विदेशी संस्थागत निवेशकों तथा आनिवासी भारतीयों को छोड़कर कोई भी व्यक्ति, कंपनी, संस्था तथा बैंक ट्रेडिंग के लिए अधिकृत है।

बीएसई - सीडीएक्स में किन मुद्राओं की ट्रेडिंग की अनुमति है?[सम्पादन]

प्रारंभ में भारतीय रूपये के सामने अमेरिकी डॉलर के प्यूचर्स कारोबार की अनुमति दी गई है। उदाहरण के लिए सितंबर माह से संबंधित कांट्रेक्ट को यूएसडी सेप 2008 कहा जायेगा।

बीएसई - सीडीएक्स में कारोबारी समयावधि क्या है?[सम्पादन]

वर्तमान में करन्सी प्यूचर्स की ट्रेडिंग सोमवार से शुक्रवार तक सवेरे 9 बजे से सांय 5 बजे के बीच की जा सकती है।

बीएसई-सीडीएक्स में कारोबार (ट्रेडिंग) के लिए कितने कांट्रेक्ट उपलब्ध हैं?[सम्पादन]

वर्तमान में हर कॉम्बीनेशन (समिश्रण) के लिए स्प्रेड कांट्रेक्ट के साथ ट्रेडिंग के लिए 12 नीयर कैलेंडर मंथ कांट्रेक्ट उपलब्ध है।

स्प्रेड कांट्रेक्ट क्या है?[सम्पादन]

स्प्रेड कांट्रेक्ट ऐसी पोजीशन है जिसमें कोई ट्रेडर एक ही ऑर्डर के माध्यम से एक महीने में एक लांग/ बाई पोजीशन लेता है तथा दूसरे महीने में शार्ट/ सेल पोजीशन लेता है।

बीएसई - सीडीएक्स में यूएडी / आईएनआर के भाव का निर्धारण तथा ट्रेडिंग कैसे होगी?[सम्पादन]

बीएसई - सीडीएक्स में भारतीय मुद्रा तथा विदेशी मुद्रा की एक इकाई के बीच की विनिमय दर अंडरलाइंग वैल्यू (समाविष्ट मूल्य) होती है।

  • अमेरिकी डॉलर (यूएसडी) आधार मुद्रा है तथा भारतीय मुद्रा (रूपया) वैरियेबल करेंसी (परिवर्तनशील मुद्रा) है।
  • अमेरिकी डॉलर की एक इकाई का मूल्य निर्धारण रूपये में किया जायेगा। उदाहरण * एक अमेरिकी डॉलर -- 41.8525/8550
  • टिक साइज अथवा निम्नतम अंतर 0.25 पैसा होगा जो 0.0025 रूपये है

उदाहरण - यदि आखिरी ऑर्डर 42.1525 तो अगला ऑर्डर या तो 42.1550 अथवा 42.1500 होगा।

बीएसई - सीडीएक्स में लॉट साइज/कांट्रेक्ट साइज क्या है?[सम्पादन]

बीएसई-सीडीएक्स में निम्नतम लॉट साइज/ कांट्रेक्ट साइज की निम्नतम सीमा 1000 अमेरिकी डॉलर और 1000 अमरिकी डॉलर के गुणांक है।

बीएसई-सीडीएक्स प्यूचर्स की ट्रेडिंग कैसे की जाती है?[सम्पादन]

इक्विटी तथा इक्विटी डेरिवेटिव्स - सेगमेंट के समान ही बीएसई - सीडीएक्स में भी सिर्फ करन्सी डेरिवेटिव सेगमेंट में पंजीकृत ब्रोकर मेंबर के माध्यम से ही करन्सी ट्रेडिंग की जा सकती है। इसके साथ ही बीएसई के मेंबर द्वारा उपलब्ध करवाये गये इंटरनेट ट्रेडिंग प्लेटफार्म के माध्यम से भी ट्रेडिंग की जा सकती है।

स्वामित्व हासिल होने के पहले प्यूचर्स कांट्रेक्ट की बिक्री कैसे संभव है?[सम्पादन]

प्यूचर्स कांट्रेक्ट करते वक्त आपके पास अंडर लाइंग करन्सी हो यह आवश्यक नहीं है। इस तरह का कांट्रेक्ट निर्धारित समाप्ति तिथि पर संपत्ति की बिक्री अथवा खरीद की प्रतिबद्धता को स्पष्ट करता है।

सेटलमेंट (निपटान)

क्या सभी प्यूचर्स कांट्रेक्टों में डिलीवरी की जाती है?[सम्पादन]

बीएसई - सीडीएक्स में करन्सी प्यूचर्स का नकद सेटलमेंट होता है।

सेटलमेंट प्राइस क्या होगी?[सम्पादन]

समाप्ति तिथि को रिजर्व बैंक की रिफरेंश रेट सेटलमेंट प्राइस होगी।

कौन सा दिन सेटलमेंट डे होगा?[सम्पादन]

करन्सी प्यूचर्स कांट्रेक्ट (शनिवार तथा एफईडीएआई अवकाशों को छोड़कर) हर माह के आखि]री कार्य दिवस को एक्सपायर (समाप्त) होगा।

जोखिम प्रबंधन

किस तरह के मार्जिनों का आरोपण किया जायेगा?[सम्पादन]

सेबी द्वारा स्वीकृत चार तरह के मार्जिन हैं - प्रारंभिक मार्जिन, एक्सट्रिम लॉस मार्जिन, कैलेंडर स्प्रेड मार्जिन तथा मार्क टू मार्केट मार्जिन।

इनीशियल मार्जिन कितना होगा?[सम्पादन]

करन्सी प्यूचर ट्रेडिंग के पहले दिन इनीशियल मार्जिन की दर 1.75 प्रतिशत होगी, उसके बाद यह 1 प्रतिशत की दर से लगेगी।

एक्सट्रीम लॉस मार्जिन की दर क्या होगी?[सम्पादन]

एक्सट्रीम लॉस मार्जिन ग्रॉस ओपेन पोजीशिन के मार्क-टू-मार्केट वैल्यू पर 1 प्रतिशत होती है।

कैलेंडर स्प्रेड मार्जिन कितना होगा?[सम्पादन]

कैलेंडर स्प्रेड, स्प्रेड के सभी महीनों के लिए 250 रू. होगा। कैलेंंडर स्प्रेड के लिए मिलने वाला लाभ नियर मंथ कांट्रेक्ट की समाप्ति तक मिलता रहेगा।

मार्क - टू - मार्केट मार्जिन क्या है?[सम्पादन]

बाजार में सदस्य के आउटस्टैंडिंग पोजीशन की माकि¥ग से प्राप्त दैनिक नफा या नुकसान को मार्कट - टू - मार्केट मार्जिन कहते हैं।

पोजीशन लिमिट

ग्राहक, टे्रेडिंग मेंबर तथा क्लियरिंग मेंबर के स्तर पर पोजीशन लिमिट क्या है?[सम्पादन]

ट्रेडिंग मेंबर स्तर - सभी कांट्रेक्टों में ट्रेडिंग मेंबर की ग्रॉस ओपेन पोजीशन कुल ओपेने इंटरनेट के 15 प्रतिशत अथवा 25 मिलियन डॉलर (इनमें से जो अधिक हो) से अधिक नहीं होनी चाहिए। किसी बैंक के ट्रेडिंग मेंबर होने की स्थिति में उसका ग्रॉस ओपने पोजीशन सभी कांट्रेक्टों में कुल ओपेने पोजीशन का 15 प्रतिशत अथवा 100 मिलियन डॉलर (इनमें से जो अधिक हो) से अधिक नहीं होना चाहिए।

ग्राहक - सभी कांट्रेक्टों में ग्राहक की ग्रॉस ओपने पोजीशन कुल ओपेन इंटररेस्ट का 6 प्रतिशत अथवा 5 मिलियन डॉलर (इनमें से जो अधिक हो) से अधिक नहीं होनी चाहिए। ग्राहक के ग्रॉस ओपने पोजीशन के कुल ओपेन इंटरेस्ट के 3 प्रतिशत से अधिक होने पर एक्सचेंज पिछले दिन की ट्रेडिंग के समाप्ति में चेतावनी जारी करेगी।

क्लियरिंग मेंबर - क्लियरिंग मेंबर के लिए किसी पृथक पोजीशन लिमिट का निर्धारण नहीं किया गया है।

एक्सचेंज ट्रेडेड करन्सी प्यूचर्स पर आरबीआई - सेबी टेक्निकल कमेटी की रिपोर्ट 
http://hindi.bseindia.com/downloads/rbirep_290508.pdf
आरबीआई सक्र्युलर, दिनांक 6 अगस्त, 2008
http://hindi.bseindia.com/downloads/rbi_circular060808.pdf
सेबी सक्र्युलर, दिनांक 6 अगस्त, 2008 
http://hindi.bseindia.com/downloads/sebi_060808.pdf


डेब्ट मार्केट[सम्पादन]

डेब्ट मार्केट के विषय में निवेशकों के मन में सामान्यत: जो प्रश्न उठते हैं उसकी सूची और उत्तर हम यहां प्रस्तुत करते हैं ।

डेब्ट मार्केट क्या है ?[सम्पादन]

डेब्ट मार्केट ऐसा बाजार है कि जिसमें स्थिर आयवाली विभिन प्रकार की सिक्युरिटीज का क्रय-विक्रय होता है। यह सिक्युरिटीज अधिकांशत: केन्द्र और राज्य सरकारें, महानगर पालिकाएं, सरकारी संस्थाएं, व्यापारी संस्थाएं जैसे कि वित्त संस्थाएं, बैंकें, सार्वजनिक इकाईयां पब्लिक लि. कंपनियां जारी करती हैं ।

मनी मार्केट क्या है ?[सम्पादन]

मनी मार्केट मूलतः अल्पावधि का सिक्युरिटीज मार्केट है । इस बाजार में सामान्यतः ट्रेजरी बिल्स, सर्टिफिकेट आफ डिपॉजिट (सीडी), कमर्शियल पेपर, बिल्स आफ एक्सचेंज और अन्य साधनों का समावेश होता है । इन साधनों की मूल अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं होती ।

व्यक्ति को स्थिर आय वाली सिक्युरिटीज में क्यों निवेश करना चाहिए ?[सम्पादन]

स्थिर आय वाली सिक्युरिटीज के मामले में परिपक्वता अवधि पर कितना लाभ मिलेगा इसका पहले से पता रहता है । डेब्ट सिक्युरिटीज पात्रता योग्य संस्थाओं द्वारा जारी की जाती हैं । ये संस्थाएं डेब्ट इंस्ट¦मेंट्स जारी करके धन जुटाती हैं । वे इन साधनों पर निर्धारित दर पर ब्याज देती हैैं और इस निवेश की उचित सुरक्षा भी होती है । स्थिर आय सिक्युरिटीज में निवेश की गई पूंजी सुरक्षित रहती है और इस में वृद्धि होती है साथ ही ब्याज की निश्चित आय भी होती है । निवेशक सरकारी प्रतिभूति में निवेश करके भुगतान की जोखिम से बच सकता है, क्योंकि सरकारी प्रतिभूति सार्वभौम गारंटी वाली होती है । ये प्रतिभूतियां सामान्यत: जोखिम मुक्त प्रतिभूतियां मानी जाती हैं । डेब्ट सिक्युरिटीज की कीमत अन्य सिक्युरिटीज की तुलना में कम चंचल होती है तथा अन्य पूंजी निवेश की अपेक्षा अधिक सुरक्षित होती है । डेब्ट सिक्युरिटीज में पर्याप्त विविधता है और इसमें निवेश के जोखिम को कम किया जा सकता है ।

गवर्नमेंट सिक्युरिटीज (जी-सेक) में निवेश करने का क्या लाभ है?[सम्पादन]

सरकारी प्रतिभूतियों में भुगतान की जोखिम शून्य होती है, यह एक बडा लाभ है । (जी-सेक) के अन्य लाभ इस प्रकार हैं-

  • अन्य वित्तीय इंस्ट्रुमेंटस की तुलना में अधिक सुरक्षा और भाव के भारी घटबढ़ का अभाव - जी-सेक के मामले में अधिक कर्ज सुलभ है ।
  • ब्याज के भुगतान पर टीडीएस नहीं कटाना पड़ता ।
  • इंस्टरुमेंट्स के ढ़ांचे में फेरफार सम्भव जैसे कि इंडेक्स लिंक्ड बॉन्ड्स आदि ।

स्थिर आय की सिक्युरिटीज कौन जारी कर सकता है ?[सम्पादन]

केन्द्र और राज्य सरकार, सार्वजनिक संस्थाएं, विशेष कानून के तहत गठित निगम और कार्पोरेट बाडीज जैसी किसी भी वैद्यानिक संस्था द्वारा फिकस्ड इन्कम सिक्युरिटीज इश्यू हो सकती है ।

विभिन प्रकार के इंस्ट्रुमेंट्स कौन से हैं ?[सम्पादन]

केन्द्र सरकार द्वारा जारी की जाने वाली सिक्युरिटीज में जीरो कूपन बांड्स, कूपन वाला बांड्स, ट्रेजरी बिल्स और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों द्वारा जारी बांड्स, डीबेंचर्स, राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला कूपन बियरिंग बांड्स, निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा जारी किया जाने वाला डीबेंचर्स, कमर्शियल पेपर्स, प्लोटिंग रेट बांड्स, जीरो कूपन बांड्स, इंटर कार्पोरेट डिपजिट सर्टिफिकेट्स, डिबेंचर्स, बैंकों द्वारा जारी सर्टिफिकेट्स आफ डिपाजिट, डिबेंचर्स, बांड्स और वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी किया जाने वाला बांड्स और डिबेंचर्स का समावेश है।

अर्थतंत्र में डेब्ट-मार्केट का क्या महत्त्व है ?[सम्पादन]

प्रभावशाली डेब्ट मार्केट से अर्थतंत्र में संसाधनों का सर्जन और आबंटन का कार्यकुशलता पूर्वक कामकाज होता है । विकास कार्यों के लिए सरकार को धन प्राप्त होता है । वित्तनीति को अमलीजामा पहनाने के संकेत मिलते हें । अल्प और दीर्धावधि के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए जरूरी प्रवाहिता उपलब्ध होती है । सरकारी प्रतिभूतियां सरकार की अल्प और दीर्धकालीन अवधि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आन्तरिक ऋण, वित्तीय प्रशासन और अल्पावधि प्रवाहिता की योजना सुचारू रूप से हो सकती है । सरकारी प्रतिभूतियों पर मिलते लाभ को दिशानिर्देशक माना जाता है और अन्य सिक्युरिटीज की कीमतों का आधार उसी पर रहता है ।

वित्त व्यवस्था और अर्थतंत्र के लिए कार्यकुशल डेब्ट मार्केट का क्या महत्त्व है ?[सम्पादन]

सरकार का कर्ज खर्च घटता है और वह उचित मूल्य पर संसाधनों को जुटा सकती है । सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के प्रोजेक्ट्स को ऋण के कई विकल्प मिलते हैं और संस्थागत ऋण पर दबाव घटता है । सोने में किए गए पूंजीनिवेश जैसे अप्रवाही पूंजी निवेश को निकाल कर अतिरिक्त संसाधन जुटाए जा सकते है । बाजार में खिलाæडियों के लिए विविधता विकसित होती है । विश्वसनीय यील्ड कर्व का और ब्याज दर के ढांचे का विकास होता है ।

डेब्ट सिक्युरिटीज संबंधित विभिन जोखिम क्या हैं ?[सम्पादन]

डेब्ट सिक्युरिटीज के साथ विभिन जोखिम इस प्रकार है-

  • डिफाल्ट रिस्क : इस्यूअर ब्याज अथवा पूंजी का समयानुकूल भुगतान न कर सके उसे डीफाल्ट रिस्क कहते है।
  • ब्याजदर जोखिम : बाजार में ब्याजदर में फेरबदल का जोखिम उत्पन होता है .कम ब्याज दर वाली सिक्युरिटीज में धन लगा रहे और ब्याज दर बढ़ती रहे तब परिपक्वता अवधि पर मिलने वाले लाभ में कमी होने का खतरा खड़ा होता है।

पुन: निवेश का जोखिम : ब्याज दर घटने पर यह जोखिम खड़ा होता है । ऐसे समय में नियमित ऊंची ब्याज दर मिले ऐसे पूंजीनिवेश के विकल्प में कमी होती है ।

  • काउंटर पार्टी रिक्स : यह जोखिम किसी भी सौदे के साथ संलग्न होती है, जिसमें प्रतिपक्ष निपटान के समय वचन के अनुसार सिक्युरिटी या बिक्री मूल्य के भुगतान में विफल हो जाता है ।
  • भाव का जोखिम : भाव में प्रतिकूल घटबढ़ के कारण अपेक्षित भाव मिलने में कठिनाई उत्पन होती है उसे भाव का जोखिम कहते हैं ।

डिपाजिटरी[सम्पादन]

डिपाजिटरी के विषय में निवेशकों को जो सर्वसामान्य प्रश्न है उसकी सूची एवं उत्तर यहां प्रस्तुत है।

डिपाजिटरी का क्या आशय है ?[सम्पादन]

डिपाजिटरी अर्थात् शेयर / सिक्युरिटिज को इलेक्ट्रानिक रूप में सुरक्षित रखने की एक सुविधा, जिसमें सिक्युरिटीज का व्यवहार बुक एंट्री द्वारा पूर्ण किया जा सकता है ताकि वह मात्र इलेक्ट्रानिक रेकार्ड के रूप में रह सके। भारत ने डीमटीरियलाइजेशन का मार्ग पसंद किया है । भार में डिपाजिटरीी ऐसी संस्था है जो निवेशकों (बेनिफिसियल ओनर) की सिक्युरिटीज को इलेक्ट्रोनिक रूप में रजिस्टर्ड डिपाजिटरीी पर्टिसिपेन्ट (डीपी) के माध्यम से रखता है । डिपाजिटरी की कार्यवाही कुछ हद तक बैंक जैसी है । डिपाजिटरीी द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का लाभ उठाने के लिए निवेशकों को रजिस्टर्ड डिपी के माध्यम से खाता खोलना जरूरी है।

डीमेटीरियलाइजेशन क्या है ?[सम्पादन]

डीमटीरियलाइजेशन यह ऐसी प्रक्रिया है, जिससे फिजिकल शेयर सर्टिफिकेट्स इलेक्ट्रोनिक रूप में रूपान्तर किया जाता है ।

बेनिफिसियल ओनर कौन होता है ?[सम्पादन]

बेनिफिसियल ओनर अर्थात वह व्यक्ति जो इलेक्ट्रोनिक रूप में सिक्युरिटीज रखने के लिए डिपाजिटरी पार्टिसिपेन्ट (डीपी) के साथ अपने नाम का एकाउंट खुलवाता है और जिसका नाम डिपाजिटरी में दर्ज रहता है।

डिपाजिटरी पार्टिसिपेन्ट कौन होता है ?[सम्पादन]

डिपाजिटरीी पार्टिसिपेंट यह डिपाजिटरीी का प्रतिनिधि होता है, जो यह सेवा निरेशकों को आफर करता है । वित्तीय संस्थाएं, बैंकें, कस्टोडियन और शेयर दलाल जैसी हस्तियां सेबी / डिपाजिटरी की निर्दिष्ट शर्तों के आधीन डीपी के रूपमें रजिस्टर्ड हो सकते है ।

इस्यूअर अर्थात क्या ?[सम्पादन]

इस्यूअर अर्थात सिक्युरिटीज इस्यू करनेवाली कोई भी कंपनी ।

आईएसआईएन अर्थात् क्या ?[सम्पादन]

आईएसआईएन (इन्टरनेशनल सिक्युरिटीज आइडेन्टिफिकेशन नम्बर) यह ऐसा परिचय क्रमांक है जो डिपाजिटरीी यन्त्र में सिक्युरिटीज दाखिल करते समय इस्यूअर की सिक्युरिटीज को आबंदित किया जाता है ।

इस्यूअर द्वारा जारी की जाने वाली विभिन सिक्युरिटीज को एक ही ईएसआईएन नंबर दिया जाता है ?[सम्पादन]

नहीं, एक ही इस्यूअर द्वारा विभिन प्रकार की सिक्युरिटीज इस्यू की जाती हो तो भी उसका आईएसआईएन अलग अलग होता है ।

डीपी द्वारा कौनसी सेवाए अर्पित की जाती है ?[सम्पादन]

डीपी द्वारा निम्नांकित सेवाएं दी जाती है-

  • डीमटीरियलाइजेशन अर्थात फिजिकल सिक्युरिटीज का इलेक्ट्रानिक रूपमें रूपान्तर ।
  • रीमेटीरियलाइजेशन अर्थात बीओ एकाउंट में रखी इलेक्ट्रानिक सिक्युरिटीज का फिजिकल रूपमें बदलना ।
  • इलेक्ट्रानिक रूप में सिक्युरिटीज का रेकार्ड बरकरार रखना, बीओ एकाउंट में सिक्युरिटीज लेकर या देकर सौदा का निपटान करना ।
  • आफ-मार्केट सौदे का निपटान, अर्थात शेयर बाजार के बाहर निवेशको के बीच हुए व्यवहार का निपटान ।
  • आईपीओ या अन्य माध्यम से इस्यूअर्स द्वारा आबंटित सिक्युरिटीज के संदर्भ में इलेक्ट्रानिक क्रेडिट देना ।
  • डीमेट खाता धारक की ओर से बोनस और राइट शेयर जैसी नकदी रकम के सिवाय कार्पोरेट लाभ इलेक्ट्रानिक रूप में प्राप्त करने अथवा एकत्रीकरण (कन्सोलिडेशन) स्टाक स्प्लिट (शेयर का विभाजन) अथवा कंपनियों का विलीनीकरण/ जुडाव के मामले में शेयर प्राप्ति।
  • सिक्युरिटीज गिरवी रखना (प्लेजिंग), सिक्युरिटीज में ऋण (लेडिंग) एवं कर्ज (बोरोइंग) की सुविधाएं डिपाजिटरीी देता है ।
  • सिक्युरिटीज के उधार और कर्ज की सुविधा के लिए संबंधित डीपी का `मान्य मध्यस्थी' के रूप में रजिस्टर्ड होना जरूरी है।

डीमेट खाता खुलवाने से क्या लाभ होता है ?[सम्पादन]

डीमेट खाता खुलवाने से निविशकों को निम्नानुसार लाभ होता है । सेबी ने प्राय: प्रत्येक लिस्टेड शेयरों में निपटान डीमेट के रूप में करना आवश्यक बना दिया है । 500 शेयरों तक के शेयरों का निपटान फिजिकल रूप में हो सकता है फिर भी हस्ताक्षर नहीं मिलने, गलत हस्ताक्षर करने या जाली सार्र्टिफिकेट आदि कारणों से उत्पन होने वाली बैड डीलिवरी की दहशत से फिजिकल रूप में सौदे का निपटान लगभग नहीं होता ।

फिजिकल स्वरूप की तुलना में सिक्युरिटीज रखने के लिए यह एक सुविधा जनक और सुरक्षित मार्ग है ।

डीमेटवाली सिक्युरिटीज के ट्रांसफर पर कोई स्टैम्प डîाूटी नहीं भरनी पडती। सिक्युरिटीज तत्काल ट्रांसफर होने से उसकी प्रवाहिता में वृद्धि होती है । इससे विलम्ब, चोरी, डीलिवरी में गड़बड़ और उसके सर्टिफिकेट का संभावित दुरूपयोग टाला जा सकता है ।

विभिन कंपनियों को अलग अलग सूचना देने की अपेक्षा डीपी को सिर्फ एक सूचना देकर पते में हेरफेर, पावर आफ एटार्नी की पंजीकरण और मृतक का नाम रद्द करना आदि हो सकता है ।

सौदे के उद्देश्य से मार्केट लाट एक शेयर का होने से ऑड लाट की समस्या ही नहीं रहती।

एकही डीलिवरी आर्डर से चाहे जितनी संख्या में सिक्युरिटीज ट्रांसफर की जा सकती है ।

कम मार्जिन और कम ब्याज पर सिक्युरिटीज के विरूद्द कर्ज लिया जा सकता है।

निवेशकों को डीपी के पास खाता खुलवाने के वास्ते क्या करना चाहिए ?[सम्पादन]

डीपी के माध्यम से डीमेट खाता खुलवाना काफी सरल और आसान है । यह प्रक्रिया बौंक एकाउंट खोलने जैसा ही है । इसके अलावा निवेशक को अपनी पहचान और पता का प्रमाण जैसे कि पेन (पर्मानेंट एकान्ट नंबर) कार्ड, पासपोर्ट, राशनकार्ड आदी डीपी के समक्ष पेश करना पड़ता है ।

डीमेट खाता खुलवाने से पूर्व निवेशक को डीपी के साथ स्टैम्प पेपर पर करार करना होता है । जिसमें निवेशको तथा डीपी के अधिकार और दायित्व की जानकारी दी जाती है ।

खाता खुलवाने के बाद एक विशिष्ट बीओ आईडी/ बेनिफिशियल ओनर आइडेन्टिफिकेश) क्रमांक दिया जाता है, जो भविष्य के प्रत्येक व्यवहार में होता है।

डीमेट खाता नामिनेशन की सुविधा प्रदान करता है ?[सम्पादन]

हां, प्रत्येक व्यक्तिगत बीओ डीमेट खाता के तहत नामिनेशन की सुविधा ली जा सकती है।

निवेशक मार्गदर्शन[सम्पादन]

सिक्युरिटीज में सौदा करने वाले निवेशकों के हितों की रक्षा करना एक्सचेंज का मुख्य उद्देश्य हैं। इस उद्देश्य को हासिल करने के वास्ते इन्वेस्ट्र्स सर्विसेस सेल (आई एस सी) का गठन किया गया है। एक्सचेंज की सूची में शामिल कंपनियों के विरूद्ध शिकायत दूर करने तथा उसके सदस्यों एवं निवेशकों के बीच पंचाट प्रक्रिया में भी एक्सचेंज सहायता करता है। पूंजी बाजार का विकास तभी हो सकता है जब निवेशकों को कैपिटल मार्केट में निवेश करना सुरक्षित लगे और उन्हें विश्वास हो कि मार्केट का नियमन न्यायपूर्ण और सभी खिलाडि़यों के लिए तटस्थ है। एक्सचेंज पारदर्शी सौदे की कार्यवाही के अलावा निवेशकों के हितों की रक्षा करने और अपनी वेबसाइट के माध्यम से निवेशकों को जानकारी से अवगत कराने में भी सहायक सिद्ध होता है। गैर सदस्यों और सदस्यों के बीच मतभेद और विवादों का त्वरित और प्रभावशाली तरीके से निपटान और उसके पंचाट की प्रक्रिया एक्सचेंज ने निर्धारित की है। यह प्रक्रिया एक्सचेंज के नियम, उपनियम और नियमन में समाहित कर ली गई है, जो भारत सरकार/सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इंडिया (सेबी) द्वारा मान्यता प्राप्त है।

अधिकार[सम्पादन]

मुंबई शेयर बाजार प्रत्येक निवेशक को कुछ निर्बाध अधिकार देता है जिसका निवेशक लाभ उठा सकते हैं।

1. कंपनी से जानकारी प्राप्त करना।

2. कंपनी की तरफ से कंपनी में होल्डिंग का ट्रांसफर , विभाजन और एकत्रीकरण जैसी जानकारी प्राप्त करना।

3. कंपनी द्वारा राइट निर्गम जारी करने पर शेयरधारकों के अधिकार जानना ।

4. कांट्रेक्ट भाव के 2.5 प्रतिशत से अधिक दलाली शेयर दलाल नहीं ले सकते।

5. शेयर दलाल से निर्दिष्ट स्वरूप में प्राप्त कोंट्रेक्ट नोट में सौदे का भाव और शेयर दलाली अलग से दर्शानी पडती है।

6. निवेशकों को निपटान अवधि के बाद अधिक में अधिक तीसरे दिन ही उसे खरीदे शेयरों की डीलीवरी अथवा बेचे गए शेयरों की कीमत प्राप्त हो जानी चाहिए।

7. शेयर दलाल के साथ विवाद के मामले में एक्सचेंज की आर्बिट्रेशन सुविधा प्राप्त करना।

8. लिस्टेड कंपनियों/शेयर दलालों के विरूद्ध शिकायत के लिए इन्वेस्टर सर्विस सेल, बोम्बे स्टाक एक्सचेंज लि., पी. जे. टावर्स, दलाल स्ट्रीट, फोर्ट, मुंबई-400001 से संपर्क किया जा सकता है।

निवेशकों की सुरक्षा[सम्पादन]

सिक्युरिटीज का सौदा करते समय निवेशकों की सामान्य सुरक्षा बरकरार रखने का भी बीएसई का उद्देश्य रहता है। इस विषय में बीएसई निवेशक वर्ग को हमेशा जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान करता है।

दलाल/उपदलाल का चयन[सम्पादन]

पूर्णरूपेण विश्वास प्राप्त कर और नियमों का पालन करने के बाद सिर्फ सेबी के साथ रजिस्टर्ड दलाल/उपदलाल के साथ काम करें। एक्सचेंज की वेबसाइट पर और एक्सचेंज द्वारा प्रकाशित की गई सदस्यों की सूची में से शेयर दलाल का चयन किया जा सकता है।

करार करना[सम्पादन]

शेयर दलाल/उप-दलाल-क्लायंट एग्रीमेंट करें। अपने शेयर दलाल/सब ब्रोकर के साथ एक क्लायंट रजिस्ट्रेशन फार्म फाइल करें

सौदा करते समय[सम्पादन]

अपने दलाल/उपदलाल तथा जिस पर सौदा हुआ हो उस संबंध में स्टाक एक्सचेंज का अलग एकाउंट तैयार करें। अपने दलाल से एक वैद्य कांट्रेक्ट नोट या सब ब्रोकर से कन्फर्मेशन (पुष्टिकरण) मेमो सौदा करने के 24 घंटे के भीतर लें लें।

कांट्रैक्ट नोट-फार्म-ए यह कांट्रैक्ट नोट तब जारी किया जाता है जब एक दलाल एक ब्रोकर या एजेंट के बतौर कार्य करता है।

कांट्रैक्ट नोट-फार्म-बी जब एक मुख्य दलाल स्वयं एक प्रिंसिपल के रूप में काम करे तब यह कांट्रैक्ट नोट जारी किया जाता है।

कांट्रैक्ट नोट-फार्म-सी जब एक दलाल सब-ब्रोकर के रूप में उसके ग्राहक /इन्स्टिट्îाूट के लिए काम करता हो तब सब-ब्रोकर द्वारा यह कांट्रैक्ट जारी किया जाता है।

इस कांट्रेक्ट नोट/कंफर्मेशन मेमो में आर्डर नं., सौदे का नं., सौदे का समय, शेयरों की संख्या, भाव, दलाली आदि लिखी गई है या नहीं तथा उस पर अधिकृत व्यक्ति का हस्ताक्षर है या नहीं, उसकी जांच कर लें ।

निपटान का भरोसा आपने जो शेयर खरीदा है उस संदर्भ में शेयरों की डीलिवरी तथा बेचा हो तो उसका भुगतान आप को पे-आउट के दो दिन के भीतर हुआ है या नहीं उसकी सच्चाई का पता लगा लें। पे-आउट के बाद एक्सचेंज तत्काल अखबारी सूची घोषित करता है। डीमेट शेयर की ही खरीदी और बिक्री पसन्द करें।

डीमेट खाता खुलवा कर रखें। पे-आऊट के बाद दलाल के पूल एकाउंट में से अपने एकाउंट में तत्काल शेयर ट्रांसफर करा लें।

यदि आपको वास्तविक स्वरूप में डीलिवरी प्राप्त हुई हो तो वह सेबी की गुड/बैड डीलिवरी मार्गदर्शिका के अनुसार प्राप्त हुई है या नहीं इसकी जांच कर लें। वास्तविक स्वरूप में शेयरों के स्वामित्व के लिए शेयरों का रजिस्ट्रेशन एक वैद्य, सम्पूर्ण भरे गए और स्टैम्प लगाए गए ट्रांसफर डीड के साथ प्रस्तुत करना होगा। बैड डीलिवरी के मामले में एक्सचेंज तंत्र के माध्यम से इसे तत्काल सुलझााना होगा।

क्या करें - क्या न करें[सम्पादन]

निवेश करने से पहले कृपया जांच लें। बढ़ते कारोबार के कारण अधिकाधिक निवेशक शेयर बाजार सूचकांक में निवेश/कारोबार कर रहे हैं। इसलिए निवेशकों के लिए जरूरी है कि वे शेयर बाजार में कारोबार करने के क्या करें और क्या न करें वाले पहलू जान लें, क्योंकि इसमें जोखिम भी है. शेयर बाजार से ताल्लुक रखने वाले निवेशकों के लिए नीचे क्या करें और क्या न करें की सूची दी गई है।

क्या करें? 1. हमेशा सेबी/एक्सचेंज में पंजीकृत बाजार/संस्थाओं के साथ संबंध रखें।

2. अपने ब्रोकर/एजेंट/डिपॉजीटरी पार्टिसिपेंट को स्पष्ट और सटीक निर्देश दें।

3. हमेशा अपने ब्रोकर से अनुबंध (कांट्रेक्ट) कागजात ले लें। सौदों के बारे में संदेह होने पर, एक्सचेंज की वेबसाइट पर उसकी वास्तविकता की पुष्टि करें।

4. बाजार मध्यस्थियों के बकाया भुगतान हमेशा सामान्य बैंकिंग माध्यमों से करें।

5. बाजार मध्यस्थियों को कोई आदेश जारी करने से पहले कंपनी, उसके प्रबंधन, फंडामेंटल्स और उनके द्वारा की गई हालिया घोषणाओं, विभिन्न नियमों के तहत किये गये विभिन्न खुलासों की जांच परख कर लें।जानकारी के ðाोत हैं : एक्सचेंज एवं कंपनियों के वेबसाइट और व्यवसायिक पत्रिकाएं आदि।

6. कारोबार/निवेश नीतियां अपनाते समय जोखिम उठाने की अपनी क्षमता का खयाल रखें क्योंकि सभी निवेशों में जोखिम रहती है, उसकी मात्रा अलग अलग होती है जो अपनाई गई निवेश नीति पर निर्भर करती है।

7. किसी भी मध्यस्थी का ग्राहक बनने से पूर्व पूरी सावधानी बरतें।इसके अलावा निवेशकों से अनुरोध किया जाता है कि वह 'रिस्क डिस्क्लोजर डाक्यूमेंट' यानी जोखिम का खुलासा करने वाला दस्तावेज ध्यान से पढ़ें, जो शेयर बाजार में ब्रोकर के जरिये कारोबार करने वाले निवेशकों की आधारभूत आवश्यकताओं का एक हिस्सा है।

8. उन शेयरों के प्रति सावधानी भरा रूख अपनाएं, जिनकी कीमत या कारोबार में अचानक उछाल आये, खासकर कम कीमत वाले स्टॉक के प्रति।

9. कृपया यह जान लें कि शेयर बाजार में निवेश पर कोई गारंटीशुदा रिटर्न/ प्रतिफल नहीं होता।

क्या न करें? 1. गैर पंजीकृत ब्रोकर/सब ब्रोकर/बिचौलिये से कारोबार न करें।

2. `अफवाहों', जिन्हें आम तौर पर 'टिप्स' कहा जाता है, के आधार पर कारोबार न करें।

3. गारंटीशुदा रिटर्न के वायदों के बहकावे में न आएं।

4. सरकारी संस्थाओं से मंजूरी/पंजीकरण दर्शाने वाली कंपनियों द्वारा गुमराह न हों क्योंकि मंजूरियां अन्य उद्देश्यों के लिए हो सकती हैं, उन प्रतिभूतियों के लिए नहीं जो आप खरीद रहे हैं।

5. किसी मध्यस्थी के हाथ में अपने डीमैट कारोबार की रसीद बुक न दें।

6. प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन के बारे में विज्ञापन बाजी के बहकावे में न आएं।

7. कार्पोरेट गतिविधियों पर मीडिया की खबरों पर आंखें मूंदकर विश्वास न करें, क्योंकि वह गुमराह करने वाली भी हो सकती हैं।

8. निवेश का फैसला लेते समय आंखें मूंदकर उन अन्य निवेशकों की नकल न करें, जिन्होंने अपने निवेश से मुनाफा कमाया हो।

निवेशकों के लाभ के लिए, एक्सचेंज ने टॉल प्री लाइन 1800 22 6663 लगाई है, जहां वह किसी भी स्क्रिप में अवांछनीय कारोबारी गतिविधि या किसी भी बाजार विसंगति के बारे में सूचना या संकेत दे सकते हैं. निवेशकों से अनुरोध किया जाता है कि अपने संदेश वे अंग्रेजी या हिंदी में रिकार्ड करवाएं। निवेशक की पहचान गुप्त रखी जाएगी।

जनहित में जारी
इन्वेस्टर प्रोटेक्शन फंड,
बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड,
पी जे टॉवर्स, दलाल स्ट्रीट,
मुंबई. टेलीफोन क्रमांकः 22721233/34 
टॉलप्री नंबर 1800 22 6663
कृपया हमारी वेबसाइट http://www.bseindia.com/ देखें। 

इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन फंड[सम्पादन]

स्थापना[सम्पादन]

केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देश के अनुसार बीएसई ने डिफाल्टर सदस्यों के विरूद्ध निवेशकों के दावों का भुगतान करने के लिए इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन फंड का गठन 10 जुलाई, 1987 को किया था।

संचालन[सम्पादन]

इस फंड का संचालन एक्सचेंज द्वारा नियुक्त किए गए ट्रस्टियों द्वारा किया जाता है।

धन का श्रोत[सम्पादन]

सदस्य लोग फिलहाल अपने कारोबार के प्रति एक लाख रू. पर 0.15 रू. इस खाते में देते हैं। स्टाक एक्सचेंज की तिमाही आधार पर लिस्टिंग फीस का ढाई प्रतिशत इस फंड में जमा किया जाता है। कंपनियों द्वारा पब्लिक/राइट निर्गम के समय एक्सचेंज में रखी गई एक प्रतिशत की सिक्युरिटी डीपाजिट पर ब्याज की जो आय होती है वह इस फंड में जमा की जाती है। कुछ मामलों में भाव की कृत्रिम घटबढ़ करने की आशंका होने पर, ऐसे मामलों में नीलामी से मिली रकम को सेबी के आदेशानुसार जप्त कर लिया जाता है और इस फंड में ट्रांसफर कर दिया जाता है। एक्सचेंज की देनदारी का भुगतान करने के बाद डिफाल्टर के खाते में यदि बचत रहे तो उसका पांच प्रतिशत इस फंड में ट्रांसफर किया जाता है।

निवेशकों के दावों का भुगतान[सम्पादन]

एक्सचेंज का डिफाल्टर घोषित हुआ सदस्य यदि भुगतान में विफल हो जाए तो ऐसे मामले में इस फंड में से फिलहाल निवेशक को ज्यादा से ज्यादा 10 लाख रू. का भुगतान किया जाता है जो देश के शेयर बाजारों में सर्वाधिक रकम है। डिफाल्टर विरूद्ध निवेशक विवाद का फैसला मिले, इसकी जांच एक्सचेंज द्वारा गठित स्टैंडिंग कमिटी-डिफाल्टर कमिटी द्वारा की जाती है। डिफाल्टर कमिटी को निवेशक के दावे की सत्यता का भरोसा होने के बाद दावे की रकम अथवा 10 लाख रू. इन दोनों में से जो राशि कम हो, उसकी सिफारिश ट्रस्टियों द्वारा की जाती है।

शेयर बाजार की कार्यपद्धति[सम्पादन]

शेयर बाजार शेयर-सिक्योरिटीज में सौदे करने का मंच उपलब्ध कराता है। जिसमें सम्पूर्ण प्रणाली और व्यापक यंत्रणा का समावेश है। बीएसई ने शेयर बाजार में ऐसी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया है ताकि सभी कारोबारियों को समान सुविधाएं मिलने के साथ सौदों में अंतर्राष्ट्रीय मापदण्डों के अनुरूप प्रणाली अपनाकर बीएसई निवेशकों के हितार्थ कार्यरत रहे। बीएसई अपनी प्रणाली के अनुसार निवेशकों के शेयर सौदों का मिलान कराता है और यहां शेयर दलालों के माध्यम से निवेशकवर्ग को सौदे करने की सुविधा उपलब्ध है।

शेयर बाजार में ट्रेडिंग के लिए समुचित श्रेष्ठ प्रणाली के अलावा सेटलमेंट के लिए निर्धारित दिशा-निर्देश हैं। जिससे न केवल बाजार सुरक्षित रहता है बल्कि कारोबारियों को सुविधा भी रहती हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि बीएसई का सर्वेलन्स (निगरानी) विभाग बाजार की समस्त क्रिया-कलापों पर नजर रखता है और शेयरों के भाव तथा सौदों की मात्रा में अचानक भारी परिवर्तन आने पर इसे अपने संदेह के घेरे में लेे लेता है। कृत्रिम भाववृद्धि, प्राइस मेनीप्युलेशन या इसी प्रकार की किसी गैर व्यवहारिक गतिविधियों की स्थिति में बीएसई का सर्वेलन्स विभाग एक्सचेंज को तुरंत चेतावनी दे देता हैं। बाजार में निवेशकों के हितों के विपरीत किसी भी प्रकार की शंकास्पद घटना पर अपना ध्यान केंद्रित करके तुरंत इसकी जांच में लग जाता है और नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करता है। इन सारे कार्यो में बीएसई की Þोष्ठ टेक्नोलॉजी भरपूर सहायक है। इतना ही नहीं परिस्थितीनुसार एवं आवश्यकतानुसार बीएसई अपनी टेक्नोलॉजी और प्रणाली में यथोचित सुधार करता रहता है।

बीएसई के सर्वेलन्स विभाग को अपने कार्य में तत्परता एवं सक्रियता के कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणपत्र मिला है। आज बाजार की कार्य पद्धति और सुरक्षा व्यवस्था काफी सुदृढ़ है जो निवेशकों एवं बाजार के सदस्यों में विश्वास प्रगाढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

टेक्नोलॉजी[सम्पादन]

अंतर्राष्ट्रीय शेयर बाजारों मे अपना विशिष्ठ स्थान स्थापित कर चुका बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) अब अपने कारोबार को और अधिक सुरक्षित, गतिमान, सरल तथा पारदर्शी बनाने के लिए सूचना प्रद्योगिकी (इन्फ्रोमेशन टेक्नोलोजी) को अत्यधिक महत्त्व दे रहा है। बीएसई का सूचना व्यवस्था विभाग, हार्ड वेअर, साप्ट वेअर और नेटवर्किंग की आधुनिकतम तकनीक अपनाकर इसे विश्व स्तर पर श्रेष्ठ बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील है। सोदों की सुगमता के लिए इसने शोर शराबे भरी प्रणाली के स्थान पर सम्पूर्ण बीएसई आन लाईन ट्रेडिंग (बोल्ट) प्रणाली अपनायी। बीएसई को 7799 के अनुरूप होने के बदले डीएनबी की तरफ से बोल्ट-प्रमाण पत्र हासिल हुआ है। ऐसा प्रमाण पत्र प्राप्त करनेवाला बीएसई विश्व का दूसरा शेयर बाजार है। यह प्रमाण पत्र उच्चतम गुणवक्ता का प्रतीक है।

बीएसई विश्व का सर्व प्रथम एक्सचेंज है जिसने एक्सचेंज आधारित इंटरनेट पर सौदा करने की सुविधा उपलब्ध कराने वाली प्रणाली `बीएसई वेबेक्स' भी शुरू की है। इस सुविधा के कारण निवेशक किसी भी स्थान से इंटरनेट के माध्यम से बीएसई प्लेटफार्म से काम काज कर सकता है।

बीएसई में डेरीवेटिव्स ट्रेडिंग एंड सेटलमेंट सिस्टम (डीटीएसएस), इलेक्ट्रोनिक कान्ट्रेक्ट नोट्स (ईसीएन), स्ट्रेट थ्रू प्रोसेस (एसटीपी), यूनिक क्लाइंट कोड (यूसीसी), रीयल टाइम जानकरी की प्रसार-व्यवस्था-सीडीबी/आईडी बी/ बुक बिल्डींग सिस्टम (बीबीएस) और रिवर्स बुक बिल्डींग सिस्टम (आरबीबीएस) इत्यादि सुविधाओं का समावेश है।

बीएसई की वेबसाईट शेयर बाजार संबंधी सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती है। बीएसई ने चेनई, राजकोट, जयपुर और बैंग्लोर में प्रादेशिक टेक्नोलॉजी हब्स भी शुरू किये हैं।

बीएसई ऑनलाईन सर्वेलन्स सिस्टम (बोस) के रूप में प्रचलित ऑनलाईन रीयल टाईम सिस्टम के जरिए सौदों की कार्यवाही पर सतत नजर रखती है। इस व्यवस्था से बाजार में गैर व्यवहारिक तरीके से होने वाले कारोबार की जोखिम कम करने तथा स्व-नियमन कार्य पद्धति को सुदृढ बनाने में सहायता मिलती है।

बाजार की सुरक्षा[सम्पादन]

एक्सचेंज के विभिन उद्देश्यों में से एक मूल उद्देश्य सिक्युरिटीज के कामकाज में सौदे की उचित एवं न्यायपूर्ण प्रथा को प्रोत्साहित करने, विकसित करने और कुरीतियों को दूर करना है।

सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इंडि़या (सेबी) (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोड़&) के निर्देशानुसार बीएसई ने शेयरों के भाव के घटबढ़ पर नजर रखने, भाव कृत्रिम घटबढ़ न हो, तथा ऐसी कोई प्रवृत्ति हुई हो तो उसे खोज निकालने, भाव में असाधारण वृद्धि और वाल्यूम पर नजर रखने के लिए, धन के भुगतान में कोई डिफाल्ट न हो उसकी निगरानी करने, दलाल सदस्यों की पोजिशन पर नजर रखने के लिए एक महाप्रबंधक (जनरल मैनेजर) के नेतृत्व में सर्वेलंस डिपार्टमेंट का गठन किया है। इस विभाग को सीधे मैनेजिंग ड़ायरेक्टर के पास रिपोर्ट देना होता है ।

सर्वेलंस विभाग नियमित रूप से सदस्यों की सीमा पर और शेयरों के भाव एवं वाल्यूम पर भी नजर रखता है। बीएसई ने एक सक्षम सर्किट फिल्टर की सीमा की व्यवस्था तैयार की है। जिससे इस बात की निगरानी की जाती हैं कि शेयरों के भाव प्रतिदिन तय सीमा से अधिक न बढ़े अथवा न घटे । शेयरों के भाव में असाधारण घटबढ़ और वाल्यूम पर लगातार नजर रखी जाती है। यदि ऐसी कोई प्रवृत्ति दिखाई दे तो एक्सचेंज द्वारा सर्किट फिल्टर के माध्यम से भाव पर नियंत्रण लगाया जाता है। भाव में कृत्रिम वृद्धि करने की आशंका होने पर वैसे मामले में शेयरों पर एक्सचेंज द्वारा विशेष मार्जिन लादी जाती है, फिर भी ऐसी प्रवृत्ति जारी रही तो स्क्रिप को ट्रेड़-टू-ट्रेड़ सेगमेंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। जिसमें इस शेयर में नेटिंग या स्क्वेयर आफ की सुविधा सुलभ नहीं होती और आवश्यक रूप से उसी दिन डीलिवरी देनी पड़ती है। इसके बाद भी यदि असाधारण घटबढ़ जारी रही तो एक्सचेंज द्वारा उस शेयर को सस्पेंड़ (स्थगित) करने का भी कदम उठाया जाता है। ऐसी प्रवृत्ति करनेवालों के विरूद्ध जांच भी शुरू की जाती है और दोषियों के विरूद्ध अनुशासन भंग करने की कारवाई की जाती है।

एक्सचेंज ने आनलाइन रीयल टाइम (ओएलआरटी) सर्वेलंस प्रणाली भी विकसित की हैं। जिसके तहत शेयरों के भाव में घटबढ़, वित्तीय स्थिति, जरूरत से ज्यादा पोजिशन लेना अथवा निश्चित शेयरों में जरूरत से ज्यादा पोजिसन खड़ा किया गया हो तो कुछ मापदंड़ो के आधार पर रीयल टाइम आनलाइन सिस्टम द्वारा एलर्ट भी घोषित किया जाता हैं। उसमें सघन जांच पड़ताल कर सुधार का कदम भी उठाया जाता है।  

सौदा ओर निपटान[सम्पादन]

सौदा बीएसई आनलाइन ट्रेडिंग सिस्टम (बोल्ट) के माध्यम से सोमवार से शुक्रवार तक सुबह 9.55 से अपराÚ 3.30 बजे के बीच सौदे होते हैं। एक्सचेंज पर लिस्टेड सिक्युरिटीज को ए, बी1, बी2, टी, टीएस, सीएफजी और जैड ग्रुप की सिक्युरिटीज में वर्गीकरण किया गया है जो निर्धारित गुणवत्ता तथा एक्सचेंज पर होनेवाले सौदे की मात्रा आदि के आधार पर किया जाता है।

इसमें एक ग्रुप में फिक्स्ड इनकम सिक्युरिटी का समावेश है। टी ग्रुप में सर्वेलंस के कदम के रूप में ट्रेड-टू-ट्रेड के आधार पर जिसका निपटान करना हो उस स्क्रिप्स का समावेश होता है। एस ग्रुप बीएसई-इन्डोनेक्स्ट सेगमेंट का एक हिस्सा है, इसमें भी ट्रेड-टू-ट्रेड के आधार पर ही निपटान होता है।

रिटेल ट्रेडर सरकारी सिक्युरिटीज में सौदा कर सकें, इसके लिए `जी' ग्रुप की रचना की गई है।

जो कंपनियां एक्सचेंज के किसी भी नियम का पालन करने में या निवेशकों की शिकायतों का निवारण करने में विफल हुई हो या फिर डीपाजिटरी-एनएसडीएल या सीडीएसएल के साथ करार करने में विफल हुई हों तो उन कंपनियों के शेयरों को जैड कैटेगरी में डाल दिया जाता है।

31 दिसम्बर, 2001 से प्रभावी, एक्सचेंज पर लिस्टेड प्रत्येक सिक्युरिटीज के लिए आवश्यक रोलिंग सेटलमेंट लागू किया गया है। डीमेट सिक्युरिटीज में एक शेयर का लाट होता है, परन्तु जिन कंपनियों के शेयर अभी फिजिकल स्वरूप में हैं तो उसका मार्केट लाट सामान्यतः 50 या 100 का होता है।

लिस्टेड सिक्युरिटीज एक्सचेंज के साथ लिस्टिंग करार (अनुबंध) करनेवाली और जिनके शेयर बीएसई पर लिस्टेड हों उसे लिस्टेड सिक्युरिटीज कहा जाता है।

टीक साइज टीक साइज अर्थात् किसी एक निश्चित शेयर में खरीदी या बिक्री के लिए एक ही समय में यदि दो आर्डर दिए गए हों तब वह दो भाव के बीच अपेक्षित न्यूनतम भाव फर्क। एक्सचेंज पर लिस्टेड शेयरों में यह टीक साइज पांच पैसे की होती है हालांकि म्युच्युअल फंड के यूनिट के लिए, महीने के अन्त में 15 रू. से नीचे बंद हुए शेयर के लिए और ए ग्रुप की सिक्युरिटीज के लिए यह टीक साइज पांच पैसे से घटा कर एक पैसा कर दी जाती है। महीने के प्रारंभ में यह फेरबदल करने के बाद संपूर्ण महीने में उसमें कोई फेरबदल नहीं किया जाता।

शेयरों के बंद भाव की गणना एक्सचेंज द्वारा शेयरों के बंद भाव की गणना संबंधित शेयरों के अंतिम आधे घंटे में हुए प्रत्येक सौदे का वेटेड औसत भाव के आधार पर किया जाता है और उसे अधिकृत बंद भाव के रूप में घोषित किया जाता है।

रोलिंग सेटलमेंट सेबी के आदेशानुसार प्रत्येक ग्रुप की सिक्युरिटीज का टी-प्लस-2 के आधार पर सेटलमेंट (निपटान) किया जाता है ताकि एक्सचेंज पर जिस तारीख को सौदा हुआ हो उस दिन से दूसरे कामकाज के दिन (शनिवार और एक्सचेंज के छुट्टी के दिन को छोड़कर) उन सौदों के नेट बेसिस पर निपटान किया जा सके । यद्यपि टी ग्रुप और टीएस ग्रुप में प्रत्येक सौदे का अलग निपटान करना होता है। इसमें नेटिंग की अर्थात् एक ही दिन में सौदा बराबर कर सिर्फ अंतर की राशि चुकाने की सुविधा नहीं मिलती।

निपटान रोलिंग सेटलमेंट में एक ही दिन में धन और सिक्युरिटीज दोनों का पे-इन और पे-आउट होता है, इस निपटान के दिन प्रत्येक सिक्युरिटीज की डीलिवरी और धन का भुगतान बोल्ट/एक्सचेंज के सदस्यों द्वारा करना पड़ता है।

डीमेट पे-इन सदस्य, दोनो डीपाजिटरी में से किसी भी डीपाजिटरी के माध्यम से क्लियरिंग हाउस में डीमेट सिक्युरिटीज का पे-इन कर सकता है। सदस्य डीपाजिटरी के माध्यम से अपने ग्राहक के बेनिफिसियरी खातों में से भी सीधे पे-इन कर सकते हैं।

ब्रोकर्स कंटिजेन्सी फंड जो शेयरदलाल समय पर अपनी वित्तीय जवाबदारी पूरा करने में असमर्थ हो तो एक्सचेंज ने उनके लिए कामचलाऊ वित्तीय व्यवस्था करने और निवेशकों के हित को क्षति न पहुंचे इसके लिए एक ब्रोकर्स कंटिजेन्सी पँड (बीसीएफ) की रचना भी की है।

कमी (शार्टेज) धन की तरह कुछ दलाल सिक्युरिटीज की डीलिवरी देने में विफल हो जाएं तो ऐसे मामले में निपटान के समय क्लियरिंग हाउस में कमी आती है। यह जो कमी होती है उसकी एक्सचेंज द्वारा नीलामी से डीलिवरी हासिल की जाती है। इस कमी और नीलाम की रकम को एक्सचेंज के उस संबंधित सदस्य से वसूल किया जाता है जो डीलिवरी देने में विफल रहा हो ।

नीलाम सौदों के निपटान के दूसरे दिन अर्थात् टी-प्लस-3 दिन जो सदस्य डीलिवरी देने में विफल हुआ हो उसके नाम की प्रत्येक सदस्य को जानकारी दी जाती है और बोल्ट के नीलामी सत्र में कम पड़ी सिक्युरिटीज की नीलामी होती है। नीलाम के दूसरे दिन अर्थात् टी-प्लस-4 को नीलाम के शेयरों की डीलिवरी और धन का निपटान किया जाता है।

क्लोज आउट जब नीलाम में भी किसी शेयर का आफर न आए तब वैसे मामले में सौदा क्लोज आउट कर दिया जाता है अर्थात् वह बराबर कर दिया जाता है। ए, बी1, बी2, एस और एफ ग्रुप के लिए नीलाम के दिन के अगले दिन के बन्द भाव से 20 प्रतिशत अधिक भाव पर क्लोज आउट कर दिया जाता है।

यह रकम डीलिवरी देने में विफल हुए सदस्य के खाते से निकाली जाती है और जिसने वह शेयर खरीदा है उनके खाते में जमा कर दी जाती है।

बास्केट ट्रेडिंग सिस्टम बास्केट ट्रेडिंग सिस्टम में निवेशक सेन्सेक्स में शामिल हर एक स्क्रिप्स को उसके वेटेज के अनुसार एक ही साथ खरीद सकते हैं। उसे सेन्सेक्स की स्क्रिप की मात्रा की गणना नहीं करनी होती। निवेशक सेन्सेक्स की 30 किस्मों में से अपनी पसंदगी के अनुसार पोर्टफोलियो भी तैयार कर सकते हैं और अपनी मर्जी के मुताबिक किसी भी स्क्रिप का वेटेज बढ़ा या घटा सकते हैं।

निवेशकों को सिर्फ इतना ही बताना होता है कि कितने सेन्सेक्स की बास्केट खरीदनी या बेचनी है। सेन्सेक्स की मौजूदा वैल्यु की अपेक्षा 50 गुनी रकम एक बास्केट की वैल्यू मानी जाती है अर्थात् सेन्सेक्स के एक सूचकांक का 50 रू. के हिसाब से संपूर्ण बास्केट का मूल्य तय किया जाता है। मानलो सेन्सेक्स 10,000 हो तो एक बास्केट का मूल्य 10,000 गुणे 50 बराबर 5 लाख रू. होता है।

निवेशक हालांकि प्रत्येक आर्डर के लिए न्यूनतम 50,000 रू. की कीमत के साथ सेन्सेक्स पोर्टफोलियो खरीदने या बेचने का आर्डर भी दे सकता है।

निगरानी[सम्पादन]

सर्वेलंस (निगरानी) का मुख्य उद्देश्य बाजार की अखंडिता को बरकरार रखना है। यह कार्य दो तरह से किया जाता है। एक, भाव और कामकाज की मात्रा (वाल्यूम) की घट-बढ़ पर नजर रखकर एवं दूसरा भुगतान संकट को दूर करने के लिए समयानुकूल आवश्यक कदम उठा कर। कैश और डेरिवेटिव्स बाजार में किसी सार्थक जानकारी के अभाव में स्क्रिप/सिरीज का भाव/वाल्यूम की विसंगतियों को प्रारंभिक चरण में ही ढ़ूंढ़ कर बाजार के खिलाडि़यों की भाव पर असर ड़ालने की क्षमता में कमी लाने का कदम उठाया जाता हैं। कैश और प्युचर-आप्शन्स बाजार के इक्विटी संबंधी सभी इंस्ट¦मेंट की ट्रेडि़ंग सर्वेलंस के तहत आती है।

सर्वेलंस के कामकाज के मुख्यतः तीन भाग हैं : भाव पर देखरेख, सदस्यों के सौदों (पोजिशन) पर निगरानी और जांच पड़ताल, भाव/वाल्यूम में असामान्य घटबढ़, कृत्रिम सौदे; गलत अथवा अनुचित व्यवहार तथा इन्साइडर ट्रेडिंग। इन सभी अनियमितताओं को यह विभाग दूर करता है। बीएसई की प्रणाली में ऐसी सुव्यवस्था है कि कही भी अनियमितता की शुरूआत हो तो तत्काल उसकी चेतावनी आनलाइन मिल जाती है। आवश्यकता पड़ने पर ऐसे मामलों में जांच शुरू की जाती है। इसके अतिरिक्त यह विभाग आफलाइन सर्वेलंस भी करता है जो अलग अलग मापदंडों के अनुसार, की गई जांच की रिपोर्ट के आधार पर अनियमितताओं का पता लगा लेते हैं। यह मापदंड निश्चित अवधि में भाव में हुए हेरफेर, शायद ही ट्रेडि़ंग होती हो वैसे शेयरों में हुई ट्रेडिंग, नया ऊँचा या नीचा भाव, अफवाहों के कारण बढ़ा शेयर इत्यादि हो सकते हैं।

जिस स्क्रिप के ट्रेडि़ंग वाल्यूम या भाव में असाधारण घट-बढ़ प्रतीत हो उस पर स्पेशल मार्जिन लादी जाती है। यह मार्जिन केस टू केस 25 या 50 या विभिन प्रतिशत हो सकती है तथा वह ग्राहक की खरीदी या बिक्री के खड़े सौदों पर लगाई जाती है।

सर्वेलंस विभाग अपने कार्य के एक भाग के रूप में उचित परिस्थिती में स्क्रिप्स को ट्रेड टू ट्रेड सूची में ट्रांसफर करता है। यह ऐसे शेयरों की सूची है जिसमें बा¿ाकारी कुल क्रय-विक्रय (लेवाली-बिकवाली) का लेना/देना करना पड़ता है एवं दिवस में या निपटान के अन्त में सौदा बराबर करने नहीं दिया जाता। जेड़ ग्रुप के शेयरों के व्यापार का निपटान आवश्यक रूप से ट्रेड टू ट्रेड के आधार पर करना होता है। इसके अलावा सर्वेलंस डिपार्टमेंट भाव की असाधारण घट-बढ़ या असामान्य वाल्यूम को नियंत्रण में रखने के लिये समय समय पर विभिन शेयरों को इस सूची में डालता रहता है। सर्वेलंस के भागरूप में अपवाद स्वरूप मामले में कुछ शेयरों में ट्रेडिंग निलंबित भी कर दी जाती है। ये ऐसे शेयर होते हैं जिन कंपनियों के विरूद्ध मामले की जांच बाकी रहती है।

यदि किसी शेयर में कुरीति की आशंका हो तो सर्वेलंस विभाग सदस्यों को मौखिक/लिखित चेतावनी भी देता है। बाजार का अनुचित लाभ उठाने की जांच में जिस सदस्य/सदस्यों को दोषी ठहराया गया हो उनके टर्मिनलों को सेबी के आदेशानुसार निष्क्रिय कर दिया जाता है या दंड़ लगाया जाता है। बारबार दोषी होने वाले विरूद्ध अनुशासन भंग करने का कदम भी उठाया जाता है।

अनेकों बार शेयरों के भाव को प्रभावित करने वाली अफवाहें जंगल की आग की तरह फैलती रहती हैं। तब सर्वेलंस विभाग संबंधित कंपनी से संपर्क कर उसकी सही हकीकत की जानकारी हासिल करता है और निर्वेशकों को उसकी जानकारी देता है। जो कंपनी तत्काल जवाब नहीं देती उन्हें शो-काज (कारण बताओ) नोटिस भेजी जाती है।

शेयरों के भाव और कामकाज में असाधारण घटबढ़, अनुचित सौदा, गलत और अनुचित व्यवहार प्रवृत्ति, इन्साइडर ट्रेडिंग आदि जैसे कामकाज और शेयर बाजार के नियमोलंघन करनेवालों पर नजर रखने के लिए एक्सचेंज भाव और खड़े सौदों पर सतत नजर रखता है तथा जरूरी जांच भी करता है। इसके लिए एक्सचेंज का सर्वेलंस विभाग निम्नांकित पहलुओं का अनुसरण करता है।

  • भाव का निरीक्षण
  • ऑनलाइन सर्वेलंस
  • ऑफलाइन सर्वेलंस
  • प्युचर्स और ऑप्शन्स सर्वेलंस
  • सर्वेलंस एक्शन
  • अफवाहों की जांच पड़ताल
  • सावधानी बरतने का कदम
  • खड़े सौदे का निरीक्षण
  • शीर्ष की 100 खरीदी/बिक्री का स्टेटमेंट
  • खरीदी/बिक्री पर पैनी नजर रखना
  • मामूली सौदेवाली स्क्रिप्स की खरीदी/बिक्री
  • बी वन, बी टू और जेड़ ग्रुप की स्क्रिप्स का सौदा