भारतीय दण्ड संहिता, अध्याय 1

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भारतीय दण्ड संहिता, 1860

(1860 का अधिनियम संख्यांक 45)1
[6 अक्तूबर, 1860]

प्रस्तावना[सम्पादन]

उद्देशिका[सम्पादन]

2[भारत] के लिए एक साधारण दण्ड संहिता का उपबंध करना समीचीन है; अत: यह निम्नलिखित रूप में अधिनियमित किया जाता है :--

धारा 1. संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार--[सम्पादन]

यह अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता कहलाएगा, और इसका 3[विस्तार 4[जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय] सम्पूर्ण भारत पर होगा ]।

धारा 2. भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड--[सम्पादन]

हर व्यक्ति इस संहिता के उपबन्धों के प्रतिकूल हर कार्य या लोप के लिए जिसका वह 5[भारत] 6।।। के भीतर दोषी होगा, इसी संहिता के अधीन दण्डनीय होगा अन्यथा नहीं।

धारा 3. भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड--[सम्पादन]

5[भारत] से परे किए गए अपराध के लिए जो कोई व्यक्ति किसी 7[भारतीय विधि] के अनुसार विचारण का पात्र हो, 8[भारत] से परे किए गए किसी कार्य के लिए उससे इस संहिता के उपबन्धों के अनुसार ऐसा बरता जाएगा, मानो वह कार्य 5[भारत] के भीतर किया गया था।

9[धारा 4. राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार--[सम्पादन]

इस संहिता के उपबंध-- 1[(1) भारत के बाहर और परे किसी स्थान में भारत के किसी नागरिक द्वारा ;

(2) भारत में रजिस्ट्रीकॄत किसी पोत या विमान पर, चाहे वह कहीं भी हो किसी व्यक्ति द्वारा, किए गए किसी अपराध को भी लागू है। ]

(3) किसी स्थान में भारत से बाहर और परे कोई अपराध, किसी व्यक्ति द्वारा भारत में स्थित कंप्यूटर साधन को लक्ष्य बनाते हुए कारित किया जाता है, को भी लागू है।

स्पष्टीकरण--इस धारा में- (क) शब्द “अपराध” के अन्तर्गत ऐसा प्रत्येक अपराध सम्मिलित है जो यदि 5[भारत] में किया जाता तो, इस संहिता के अंतर्गत दंडनीय होता; (ख) अभिव्यक्ति “कम्प्यूटर साधन” का वही अर्थ होगा जो उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) के खण्ड (ट) में समनुदेशित किया गया है।

3[दृष्टांत]

क जो भारत का नागरिक है उगांडा में हत्या करता है। वह भारत के किसी स्थान में, जहां वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्ध किया जा सकता है।


धारा 5. कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना--[सम्पादन]

इस अधिनियम में की कोई बात भारत सरकार की सेवा के आपिसरों, सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन को दाण्डित करने वाले किसी अधिनियम के उपबन्धों, या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबन्धों, पर प्रभाव नहीं डालेगी।

Footnotes[सम्पादन]

1 भारतीय दंड संहिता का विस्तार बरार विधि अधिनियम, 1941 (1941 का 4) द्वारा बरार पर किया गया है और इसे निम्नलिखित स्थानों पर प्रवॄत्त घोषित किया गया है :--

संथाल परगना एयवस्थापन विनियम (1872 का 3) की धारा 3 द्वारा संथाल परगनों पर ;

पंथ पिपलोदा, विधि विनियम, 1929 (1929 का 1) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा पंथ पिपलोदा पर ;

खोंडमल विधि विनियम, 1936 (1936 का 4) की धारा 3 और अनुसूची द्वारा खोंडमल जिले पर ;

आंगूल विधि विनियम, 1936 (1936 का 5) की धारा 3 और अनुसूची द्वारा आंगूल जिले पर ;

इसे अनुसूचित जिला अधिनियम, 1874 (1874 का 14) की धारा 3 (क) के अधीन निम्नलिखित जिलों में प्रवॄत्त घोषित किया गया है, अर्थात्:--

संयुक्त प्रान्त तराई जिले--देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1876, भाग 1, पॄ0 505, हजारीबाग, लोहारदग्गा के जिले [(जो अब रांची जिले के नाम से ज्ञात हैं,--देखिए कलकत्ता राजपत्र (अंग्रेजी), 1899, भाग 1, पॄ0 44 और मानभूम और परगना]। दालभूम तथा ासिंहभूम जिलों में कोलाहल—देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1881, भाग 1, पॄ0 504।

उपरोक्त अधिनियम की धारा 5 के अधीन इसका विस्तार लुशाई पहाड़ियों पर किया गया है--देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1898, भाग 2, पॄ0 345।

इस अधिनियम का विस्तार, गोवा, दमण तथा दीव पर 1962 के विनियम सं0 12 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा ; दादरा तथा नागार हवेली पर 1963 के विनियम सं0 6 की धारा 2 तथा अनुसूची 1 द्वारा ; पांडिचेरी पर 1963 के विनियम सं0 7 की धारा 3 और अऩुसूची 1 द्वारा और लकादीव, मिनिकोय और अमीनदीवी द्वीप पर 1965 के विनियम सं0 8 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा किया गया है।

2 “ब्रिटिश भारत” शब्द अनुक्रामशः भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, विधि अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अधिनियम सं0 3 को धारा 3 और अनुसूची द्वारा प्रतिस्थापित किए गए हैं।

3 मूल शब्दों का संशोधन अनुक्रामशः 1891 के अधिनियम सं0 12 की धारा 2 और अनुसूची 1, भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937, भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा किया गया है।

4 1951 के अधिनियम सं0 3 को धारा 3 और अनुसूची द्वारा “भाग ख राज्यों को छोड़कर” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

5 “उक्त राज्यक्षेत्र” मूल शब्दों का संशोधन अनुक्रामशः भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937, भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, विधि अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अधिनियम सं0 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा किया गया है।

6 1891 के अधिनियम सं0 12 की धारा 2 और अनुसूची 1 द्वारा “पर या 1861 की मई के उक्त प्रथम दिन के पश्चात्” शब्द और अंक निरसित।

7 भारतीय शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा “सपरिषद् भारत के गर्वनर जनरल द्वारा पारित विधि” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

8 “उक्त राज्यक्षेत्रों की सीमा” मूल शब्दों का संशोधन अनुक्रामशः भारत शासन (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937, भारतीय स्वतंत्रता (केन्द्रीय अधिनियम तथा अध्यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, विधि अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अधिनियम सं0 3 की धारा 3 और अनुसूची द्वारा किया गया है।

9 1898 का अधिनियम सं0 4 की धारा 2 द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित।