कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/छीतस्वामी का जीवन परिचय

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छीतस्वामी की वल्लभ सम्प्रदाय के भक्त कवियों में गणना की जाती है। गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य होने के पूर्व ये मथुरा के पंडा थे। उस समय उन्हें पैसे का कोई आभाव न था। अतः ये स्वभाव से उद्दंड और अक्खड़ थे किन्तु विट्ठलनाथ से दीक्षा लेने के पश्चात् इनके स्वभाव में अत्यधिक परिवर्तन आ गया और वह नम्र और सरल हो गए। डा० दीनदयाल गुप्त ने इनका जन्म संवत १५६७ वि ० माना है। (अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय :पृष्ठ २७८ ).दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता में छीतस्वामी के विषय में जो कुछ लिखा गया है उसके अनुसार ये यदा कदा पद बनाकर विट्ठलनाथ जी को सुनाया करते थे। इन पदों से प्रसन्न होकर एक बार विट्ठलनाथ जी ने इन पर कृपा की,जिससे छीतस्वामी को साक्षात् कोटि कंदर्प लावण्य-मूर्ति पुरुषोत्तम के दर्शन हुए। इन दर्शनों से उनके पदों में मधुर भाव-धारा बह उठी।