कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/ध्रुवदास की माधुर्य भक्ति
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(धुवदास की माधुर्य भक्ति से अनुप्रेषित)
वृन्दावन घन-कुञ्ज में प्रेम -विलास करने वाले अपने उपास्य-युगल श्यामा-श्याम का परिचय ध्रुवदास जी ने निम्न कवित्त में दिया है :
- प्रीतम किशोरी गोरी रसिक रंगीली जोरी,
- प्रेम के रंग ही बोरी शोभा कहि जाति है।
- एक प्राण एक बेस एक ही सुभाव चाव,
- एक बात दुहुनि के मन को सुहाति है।
- एक कुंज एक सेज एक पट ओढ़े बैठे,
- एक एक बीरी दोउ खंडि खंडि खात हैं।
- एक रस एक प्राण एक दृष्टि हित ध्रुव
- हेरि हेरि बढ़े चौंप क्यों हू न अघात हैं।।
राधा-कृष्ण के पारस्परिक प्रेम का वर्णन निम्न कवित्त में दृष्टव्य है :
- जैसी अलबेली बाल तैसे अलबेले लाल,
- दुहुँनि में उलझी सहज शोभा नेह की।
- चाहनि के अम्बु दे-दे सींचत हैं छिन-छिन,
- आलबाल भई -सेज छाया कुञ्ज गेह की।।
- अनुदिन हरी होति पानिष वदन जोति,
- ज्यों ज्यों ही बौछार ध्रुव लागे रूप मेह की।
- नैननि की वारि किये हरैं सखी मन दियें,
- चित्र सी ह्वै रही सब भूली सुधि देह की।।
ध्रुवदास जी ने अपनी आराध्या राधा के स्वाभाव तथा सौन्दर्य का वर्णन कई कवित्त और सवैयों में किआ है। निम्न कवित्त उनकी काव्य-प्रतिभा एवं कल्पना शक्ति का पूर्ण परिचायक है।
- हँसनि में फूलन की चाहन में अमृत की,
- नख सिख रूप ही की बरषा सी होति है।
- केशनि की चन्द्रिका सुहाग अनुराग घटा,
- दामिनी की लसनि दशनि ही की दोति है।।
- हित ध्रुव पानिप तरंग रस छलकत,
- ताको मानो सहज सिंगार सीवाँ पोति है।
- अति अलबेलि प्रिये भूषित भूषन बिनु,
- छिन छिन औरे और बदन की जोति है।।