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भाषा साहित्य और संस्कृति/'स्वतंत्रता का पल्लु' और 'पत्रः परलि सु. नेल्लैयप्प पिल्लै को'

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स्वतंत्रता का पल्लु

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पत्रः परलि सु. नेल्लैयप्प पिल्लै को

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मेरे मुँह बोले छोटे भाई श्री नेल्लैयप्प पिल्लै की पराशक्ति सदा रक्षा करें।

भाई, हर महीने हर दिन तुम्हारा ज्ञान जो विकसित होता जा रहा है, उसे देखकर मैं प्रसन्न हूँ। मुझे विश्वास है कि तुम्हारा मन-मस्तिष्क रूपी कमल चेतना रूपी अंतः सूर्य से प्रस्फुटित होगा और इस प्रकार तुम्हें सभी तरह से प्रसन्नता मिलेगी।

मन जैसे-जैसे, आर्द्र होकर विशाल से विशालतर होता जाएगा, वैसे-वैसे ज्ञान की ज्योति और तीव्र होगी। अपने से दीन पर दया करके उन्हें अपने समान सक्षम बनाने के लिए कार्य करना ही अपने को शक्तिशाली बनाने का एकमात्र उपाय है। इसका और कोई चारा नहीं है।

अरे! अगर तुम हिन्दी, मराठी, आदि उत्तरी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर, यह सीधे जान सको कि उन भाषाओं की पत्रिकाओं ने कितनी अद्भुत नवीनता प्राप्त की है, तो तमिलनाडु को कितना लाभ मिलेगा! तमिल, तमिल, तमिल-हमेशा तमिल का विकास करना ही कर्त्तव्य समझो। लेकिन, नये-नये विषय, नई-नई योजना, नव-नव विचार, नव-नव आनंद-तमिल में आते ही रहने चाहिए।

तमिलनाडु में एक ही जाति है। उसका नाम है तमिल जाति। यह लिखो कि वह आर्य जाति नाम के परिवार में ज्येष्ठ संतान है।

यह भी लिखो कि पुरुष और स्त्री दोनों एक ही प्राण के दो अंश हैं।

यह लिखो कि वे परस्पर एक दूसरे से कम नहीं हैं।

लिखो कि जिसने स्त्री का अपमान किया है, उसने अपनी आँख को फोड़ लिया है।

लिखो कि जिसने स्त्री को बन्दी किया, उसने अपनी आँखों को बंद किया।

उद्योग, उद्योग कहकर पुकारो।

कहो कि वेद का गलत उच्चारण करने वाले से, उच्चतर कुल का वह है, जो हजामत अच्छी तरह कर सकता है।

व्यापार और वाणिज्य फलें-फूलें, मशीनों की संख्या में वृद्धि हो। प्रयास बढ़े। संगीत, मूर्त्तिकला, इंजीनियरी, भूमिशास्त्र, खगोल-शास्त्र, प्रकृतिशास्त्र की हज़ारों शाखाओं का तमिलनाडु में बाहुल्य हो जाए।

शक्ति, शक्ति, शक्ति कहकर गाओ।

भाई, तुम जीते रहो।

तुम्हारा, सुब्रह्मण्यम भारती। 'आनन्दम्'[]

संदर्भ

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  1. भाषा, साहित्य और संस्कृति-(सं.) विमलेश कान्ति वर्मा, मालती, ओरियंट ब्लैकस्वॉन, नई दिल्ली, २०१५, पृ.२२७