कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/वल्लभ रसिक की माधुर्य भक्ति

विकिपुस्तक से


वल्लभ रसिक के विचार में संसार के सभी नाते झूठे हैं। अतः इन सम्बन्धों तो तोड़कर हमें राधा-कृष्ण युगलवर से ही अपना सम्बन्ध छोड़ना चाहिए। ये उपास्य-युगल रस के सागर हैं इसलिए इनसे नाता हो जाने पर भक्त भी सदा रस-सिंधु में मग्न होकर आनन्द प्राप्त करते हैं। उनकी रूप माधुरी अपूर्व है जिसे देखकर उपासक के नेत्र कभी तृप्त नहीं होते। इसीलिए उन्होंने कहा है ~~

हम तो युगल रूप रस माते नाते के माने।
देही नाते नेक न माने ह्यांते हैं अलसाने।।
श्याम सनेही हिये सुहाते नाते तिन सों ठाने।
वल्ल्भ रसिक फिरें इतराते चितराते उमदाने।।

वल्लभ रसिक ने प्रेम क्षेत्र में राधा को भी उच्च स्थान दिया है।

यद्यपि दोउन की लगन सब मिलि कहें समान।
पै प्यारी महबूब है आशिक प्यारो जान।।

राधा-कृष्ण की विविध मधुर-लीलाओं का ध्यान करना ही वल्लभ रसिक की उपासना है राधा-कृष्ण का यह प्रेम जनित है। अतः इसमें आदि अन्त नहीं है। वह निजी सुख कामना से रहित है। इसीलिए उसे उज्जवल कहा गया है:

अहर पहर रस खेलत बीतें।
खेलनि में हारनि को जीतें।।
रसिकन चश्मो का चश्मा।
उज्जवल रस का जिन पर बसमा।।

वल्लभ रसिक ने राधा-कृष्ण की संयोग और वियोग सूचक दोनों प्रकार की लीलाओं का वर्णन अपनी वाणी में किया है। इनमें वियोग की अपेक्षा संयोग परक लीला के पदों,सवैयों की संख्या अधिक है। संयोग की लीलायें सभी प्रकार की हैं ~~ झूलन, रास,होरी, द्युत-क्रीड़ा, रथयात्रा ,जल-क्रीड़ा ,सूरत,विहार आदि। इन सभी का वर्णन कवि ने बहुत सुंदर दंग से किया है। झूलन के इस वर्णन में भक्त की भावुकता ,अलंकार तथा लाक्षणिक प्रयोग के कारण कवि की कव्य-प्रतिभा लक्षित होती है :

आज दोऊ झूलत रति रस साने।
ठाढ़े मचकें लचकि तरुनि के गहि फल फूलन आने।।
सूहे पट पहरें द्वै पटुली बैठे सामल गोरी।
अलिनु रंगीली तिय पद अंगुली पिय डोरी सों जोरी।।
श्याम काम बस झूल झूल पग मूलनि झूलिनि बढाहीं।
कामिनि चरण तामरस छुटि अलि काम लूटि मचि जाहीं।।
जोबन मधि जोवन मद झूलये झूलनि फंदनि जाने।
वल्लभ रसिक सखी के नैना एही झुलानि झुलाने।।