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  • शून्य। ...ये गरजती, गूँजती, आंदोलिता गहराइयों से उठ रही ध्वनियाँ, अतः उद्भ्रांत शब्दों के नए आवर्त में हर शब्द निज प्रति शब्द को भी काटता, वह रूप अपने...
    ११ KB (८४२ शब्द) - १४:५९, ९ सितम्बर २०२२
  • शून्य। ...ये गरजती, गूँजती, आंदोलिता गहराइयों से उठ रही ध्वनियाँ, अतः उद्भ्रांत शब्दों के नए आवर्त में हर शब्द निज प्रति शब्द को भी काटता, वह रूप अपने...
    ११ KB (८४२ शब्द) - ०१:३२, २१ जून २०२०
  • का मुख जगत् के बिंब दिखते ही नहीं... जो दीखता है वह विकृत प्रतिबिंब है उद्भ्रांत ऐसा क्यों? उन्हें क्योंकर न साफ़ किया गया? कमरे न क्यों खोले गए? आश्चर्य...
    २३ KB (१,७२० शब्द) - ०८:४८, २७ मई २०२३
  • शून्य। ......ये गरजती, गूँजती, आन्दोलिता गहराईयों से उठ रही ध्वनियाँ, अतः उद्भ्रान्त शब्दों के नये आवर्त में हर शब्द निज प्रति शब्द को भी काटता, वह रूप अपने...
    ११ KB (८४४ शब्द) - ०७:११, २७ मई २०२३
  • भेदते हुए स्वयं उस धुन्ध का भाग बनते जा रहे हों। एक पगली-सी स्मृति, एक उद्भ्रान्त भावना-चैपल के शीशों के परे पहाड़ी सूखी हवा, हवा में झुकी हुई वीपिंग विलोज...
    १४८ KB (१२,१८८ शब्द) - ०९:०६, २४ सितम्बर २०२१
  • के 'उद्भ्रांत प्रेम' (चंद्रशेखर मुखोपाध्यायकृत) को देख कुछ लोग उसी प्रकार की रचना की ओर झुके, पीछे भावात्मक गद्य की कई शैलियों की ओर। 'उद्भ्रांत प्रेम'...
    १९३ KB (१४,४३२ शब्द) - १३:२९, २४ मार्च २०१७
  • भेदते हुए स्वयं उस धुन्ध का भाग बनते जा रहे हों। एक पगली-सी स्मृति, एक उद्भ्रान्त भावना-चैपल के शीशों के परे पहाड़ी सूखी हवा, हवा में झुकी हुई वीपिंग विलोज...
    १४८ KB (१२,१९० शब्द) - ०४:४४, २५ जुलाई २०२१