परिरक्षण के सिद्धांत और विधियाँ

विकिपुस्तक से
खाद्य-पदार्थों के मौलिक आकार एवं रूप को परिवर्तित कर या अपरिवर्तित रखकर इनके पोषक तत्व एवं विटामिनें को यथा सम्भव बनाये रखते हुए बिना विकृति के दीर्घकाल तक सुरक्षित रखने की विधियों एवं तकनीकों को परिरक्षण (Preservation) कहा जाता है।

खाद्य-पदार्थों के मौलिक आकार एवं रूप को परिवर्तित करके ही हम अधिकांश परिरक्षित फलों एवं सब्जियों को लम्बे समय तक सुरक्षित उत्पादन करते हैं जैसे- जैम, जेली, कैचप, विभिन्न फल पेय, अचार, सॉस, चटनी आदि।

फल, सब्जी तथा उनके उत्पादों का परिरक्षण वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है।

परिरक्षण के सिद्धान्त[सम्पादन]

नमी को दूर करना[सम्पादन]

सूक्ष्मजीवी नमी की उपस्थिति में ही वृद्धि करते हैं, अतः इनकी वृद्धि को रोकने के लिए नमी को दूर करना आवश्यक होता है। नमी से फल-सब्जियों को खराब होने से बचाने के लिए उनमें उपलब्ध जल की अधिक मात्रा को निकालकर कम कर देते है। यह कार्य धूप में सुखाकर या कृत्रिम शुष्कीकरण यंत्रों की सहायता से संचालित गर्म हवा के कक्षों द्वारा किया जा सकता है। फल-सब्जियों तथा इनके परिरक्षित पदार्थो को शुष्क वातावरण में भण्डारित करना चाहिए। इनमें गीले हाथ नहीं लगाना चाहिए अन्यथा नमी उपलब्ध होने पर इन निर्जलित उत्पादों में पुनः रासायनिक प्रक्रिया आरम्भ होकर ये खराब होने लगते हैं।

संक्रमण से सुरक्षा[सम्पादन]

फल, सब्जियों एवं उनके उत्पाद मुख्य रूप से सूक्ष्म जीवों के आक्रमण/संक्रमण से खराब होते है, अतः यह आवश्यक है कि हम उनमें इनका प्रवेश नहीं होने दें। सावधानी से काटने, तोड़ने व सफाई से फल-सब्जियों को बचाया जा सकता है। लाने ले जाने तथा पैकिंग में इनके छिलके पर चोट नहीं लगनी चाहिए। इनके क्षतिग्रस्त होने पर फूफंद व जीवाणु प्रवेश कर इन्हें गला-सड़ा देते है।

वायु रोधक बनाना[सम्पादन]

वायु से सुक्ष्म जीवों का संक्रमण बढ़ता है, अतः परिरक्षित उत्पादों को वायुरोधक डिब्बों, बोतलों आदि पात्रों मे भरकर पिघले हुए मोम से बन्द कर देते है। अचार को तो हमेशा तेल में डुबोकर रखना चाहिए। ऐसी व्यवस्थाओं से वायु का प्रवेश नहीं हो पाता तथा सूक्ष्मजीवों की वृद्धि भी नहीं हो पाती।

खाद्य-पदार्थों से निर्मित सूक्ष्म जीव-प्रतिरोधक पदार्थों के उपयोग से परिरक्षण संभव कराना[सम्पादन]

कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिनके कारण परिरक्षित उत्पादों को सूक्ष्म जीव संक्रामित नहीं कर पाते हैं, अतः इन पदार्थो की निर्धारित मात्रा का प्रयोग करके उनको सूक्ष्म जीवों के संक्रमण से कुछ समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

चीनी, नमक, सिरका, तेल, राई जैसे मसालों के प्रयोग से सूक्ष्म जीवों के प्रकोप से बचा जा सकता है-

चीनी :-जिन पदार्थों में 66 प्रतिशत या इससे अधिक चीनी मिली हुई होती है, उनका स्थाई परिरक्षण हो सकता है।

नमक :- नमक का 15 प्रतिशत भाग फल-सब्जियों को खराब होने से बचाता है। नमक की इस मात्रा को सूक्ष्म जीव उत्पन्न नहीं हो पाते।

सिरका :-परिरक्षण में चीनी व नमक की अपेक्षा सिरका अधिक लाभदायक रहता है। सिरका सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकने का काम करता है। 2 प्रतिशत सिरका (एसिटिक एसिड) इन उत्पादों को स्थाई रूप से संरक्षित रख सकता है।

तेल :-कुछ उत्पादों विशेषकर अचार में तेल सूक्ष्म जीवों के प्रतिरोधक का काम करता है। अचार तेल मे डूबा रहना चाहिए।

राई :- अचारों में राई मसाले के अलावा एक परिरक्षक के रूप में भी प्रयोग में लाई जाती है। परिरक्षण के लिए राई को पीसना चाहिए तथा तुरन्त प्रयोग में लेना चाहिए।

रासायनिक परिरक्षक (केमिकल प्रिजरवेटिब्ज) द्वारा परिरक्षण कराना[सम्पादन]

चीनी, नमक तथा सिरके की अपेक्षा रासायनिक परिरक्षक अधिक प्रभावशाली होते है। इनकी थोडी मात्रा ही सूक्ष्म जीवों को परिरक्षित पदार्थों में वृद्धि रोकने में सफल रहती है। रसायन का आधा ग्राम प्रति किलोग्राम उत्पाद में प्रयोग किया जाता है। यदि उत्पादों का प्राकृतिक रंग बिगडने नहीं देना हो तो सोडियम तथा पोटेशियम मेटाबाई-सल्फेट का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जैसे-टमाटर, फालसा, जामुन, अंगूर, लाल मिर्च आदि के उत्पादों मे सोडियम बेंजोएट का प्रयोग किया जाता है। इसकी 750 मि.ग्रा. मात्रा एक कि.ग्रा. उत्पाद के लिए पर्याप्त है।

प्रशीतन करना तथा शीत-भण्डारों का प्रयोग[सम्पादन]

फल व सब्जियां गर्मी की अपेक्षा सर्दी में शीघ्र खराब नहीं होती हैं इसलिए यदि इन्हें 10 डिग्री से.ग्रे. से कम तापमान पर रखा जाये तो जीवाणु आदि सूक्ष्म जीवों की वृद्धि रूक जाती है तथा जैविक परिवर्तन बहुत धीमा पड़ जाता है। अतः इसके लिए घरों में रेफ्रिजरेटर तथा व्यावसायिक स्तर पर ठण्डे गोदामों का प्रयोग करना चाहिए।

परिरक्षण की विधियाँ[सम्पादन]

परिरक्षण विधियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :- 1. अस्थाई 2. स्थाई।

अस्थाई परिरक्षण[सम्पादन]

खाद्य परिरक्षण व्यवसाय में एक भाग अस्थाई परिरक्षण पर आधारित है। चाहे यह नियम असंसाधित माल पर हो या उसके संसाधित उत्पाद पर हो, लेकिन अस्थाई परिरक्षण विधि पर तैयार किये हुए उत्पादों का उतना स्थिर परिरक्षण सम्भव नहीं, जितना कि संसाधित खाद्य-पदार्थो में स्थिर परिरक्षण सम्भव है। अस्थाई परिरक्षण को सात भागों में विभाजित किया जा सकता है।

निरोगावस्था या आरोग्यावस्था (Asepsis)[सम्पादन]

मानव शरीर की तरह खाद्य-पदार्थो को भी निरोगावस्था में सूक्ष्म जीवों के प्रवेश से बचाया जावे, तो वे भी आरोग्यावसथा में रहेंगे तथा उन्हें सुक्ष्म जीवों के आक्रमण से भी बचाया जा सकेगा। जिस खाद्य-पदार्थ को हम खाने के काम में लेते है, उसे पूर्णतया शुद्ध तथा निरोग नहीं समझा जा सकता है क्योंकि वातावरण के द्वारा ही उसमें बहुत से जीव प्रवेश किये रहते है। अतः फल तथा सब्जियों को भी अन्य खाद्य पदार्थां की तरह साफ वातावरण में ही तैयार किया जाना चाहिए।

फल तथा सब्जी तोड़ने वाले तथा इकट्ठा करने वाले व्यक्ति किसी रोग या छूत की बीमारी से पीड़ित नहीं होने चाहिए। वह स्थान जहां फल इकट्ठे किये जाते हैं, साफ एवं शुद्ध होना चाहिए।

न्यून ताप परिरक्षण[सम्पादन]

यह बात हम अच्छी तरह से जानते हैं। सर्दियों में फल, सब्जियाँ लम्बे समय तक खराब नहीं होती, क्यों कि सर्दी में तापमान कम होने से सूक्ष्म जीवियों का विकास रूक जाता है। उनके विकास के लिए एक निश्चित तापमान तथा आर्द्रता की आवश्यकता होती है।

फल-सब्जी को तोड़ते ही थोडी देर जल में भिगोकर ठण्डे जल से धोया जाय तो उसकी गर्मी निकल जाती है। फलस्वरूप उसकी श्वसन दर में कमी आ जायेगी, साथ ही सूक्ष्मजीवियों की संख्या में भी कमी हो जायेगी। इन्हीं कारणों से होने वाली विकृतियाँ भी रूक जाती है। इस क्रिया की जानकारी हमारे पूर्वजों को भी भली प्रकार से थी, इसके अलावा शीत प्रदेश के लोग खाद्य पदार्थो (मांस, मछली, फल व सब्जी) का परिरक्षण हिम कोठरियों में रखकर करते थे। लेकिन आगे चलकर हमने प्रशीतियन्त्र (Regregerator), शीत गोदाम (cold storage) आदि का आविष्कार किया और उसमें आहार का संचयन करके परिक्षण करने लगे हैं।

आर्द्रता अपवर्जन परिरक्षण (Preservation by Exclusion of moisture)[सम्पादन]

सूक्ष्मजीवियों की बढ़ोत्तरी के लिए एक सिमित तापमान के साथ-साथ आर्द्रता या नमी की भी आवश्यकता होती है। यही कारण है कि सूखे फल और सब्जियों को खुला छोडने पर वातावरण से नमी पाकर वे फफूंदी ग्रस्त हो जाते है, क्योंकि सूखे फल और सब्जियां वायुमण्डल से नमी सोख लेती हैं, और उस नमी में उन पदार्था में पाई जाने वाली शर्करा भी घुल जाती है जिसको खाकर फफूंद, जीवाणु आदि आसानी से वृद्धि करने लगते है।

आर्द्रता संरक्षण या मोम-लेपन (Moisture Retension of waxing)[सम्पादन]

गर्मियों में पौधो से अधिक वाष्पीकरण तो होता ही है। इसे रोकने के लिए कुछ पौधों में प्रकृति द्वारा स्वयमवे मोम-लेपन किया जाता है। वनस्पति वैज्ञानिकों ने भी उसे अपनाया। उद्यान-विशेषज्ञों ने फल तथा सब्जियों पर मोम-लेपन करके सिद्ध कर दिया कि इस क्रिया से अस्थाई परिरक्षण किया जा सकता है। इस क्रिया द्वारा कच्चे फल तथा सब्जियों को मोम-लेपित कागजों में लपेटकर रखने से वे और भी सुरक्षित हो जाते है।

मोम-लेपन में मोम के साथ उचित अनुपात में सूक्ष्मजीवी नाशक दवा मिलाकर तैयार की जाती है जो पायसीकरण या इमल्सीकरण द्वारा सम्पन्न करते है। इस प्रकार तैयार किये हुए मोम मिश्रण में फल तथा सब्जियों को एक-एक करके डुबोया जाता है अथवा इस मिश्रण को फल-सब्जियों पर छिडका जाता है। इसके लिए विभिन्न यन्त्र काम में लिये जाते है।

वायु अपवर्जन क्रिया से[सम्पादन]

कुछ खाद्य पदार्थ वायु के सम्पर्क में आने से स्वतः ही खराब हो जाते है। चाहे वह पदार्थ आर्द्रता-अपवर्जित ही क्यों न हो। विभिन्न तेल, घी, मक्खन आदि वायु के सम्पर्क से विकृतगंधी (Rancidity) हो जाते है, लेकिन केनीकृत या डिब्बाबन्दी (canned) किए हुए तेल, घी आदि विकृतगंधी नहीं होते है। क्योंकि वे वायुरोधी डिब्बों में बन्द कर रखने से कई दिनों तक विकृतगंधी होने से बचाये जा सकते है। इसी प्रकार अचार, सूखे तथा निर्जलीकृत (क्मीलकतंजमक) उत्पादों को भी वायु से वंचित रखा जाये तो वे खराब नहीं होंगे।

मृदु प्रतिरोधियों द्वारा (By Mild antiseptics)[सम्पादन]

ऐसे रसायन, जिनका प्रयोग न्यून मात्रा में करने से मानव शरीर को हानि नहीं पहुंचती तथा कुछ खाद्य-पदार्थ जो कि मानव शरीर की वृद्धि के लिए अनिवार्य है जैसे- चीनी, तेल, नमक आदि उपयुक्त रसायन तथा खाद्य पदार्थ जो कि सूक्ष्मजीवों की बढ़ोतरी को रोकते हैं या उनका विनाश करते है, मृदु प्रतिरोधी कहलाते है। जिस प्रकार डिटोल नये घावों पर काम करता है उसी प्रकार प्रतिरोधी रसायन खाद्यों में कार्य करते है। इसमें सोडियम बेन्जोयट तथा सल्फर डाई-ऑक्साइड आदि रसायन भी आते हैं। चीनी, नमक, विभिन्न खाद्य तेल सिरका आदि खाद्य पदार्थ इस श्रेणी में आते है। फलों के विभिन्न पेयो चीनी तथा सिरका आदि में से एक या एक से अधक मिलाना उनके परिरक्षण के लिए ही किया जाता है।

पास्चूूरीकरण (Pasturization)[सम्पादन]

प्रायः यह देखा गया है कि अगर खाद्य-पदार्थो को 60 से 80 degree सेन्टीग्रेड तक ताप प्रदान किया जाता है तो नष्ट हो जायेंगे या निष्क्रिय (Inactive) हो जायेंगे जिससे खाद्य-पदाथों के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इसी क्रिया को पास्तुरीकरण कहा जाता है। फल तथा सब्जियों के सूप पास्तुरीकरण करके ही बाजरों में भेजे जाते है।

स्थाई परिरक्षण[सम्पादन]

असंसाधित या संसाधित (Raw or processed) खाद्य-पदार्थो को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए हम जो तकनीक प्रयोग में लाते है, उसे ही स्थाई परिरक्षण कहा जाता है। इस विधि द्वारा खाद्य-पदार्थो में प्रविष्ट सूक्ष्म जीवों को पूर्णतया नष्ट या निष्क्रिय बनाया जा सकता है।

उष्मा परिरक्षण[सम्पादन]

हम जानते हैं कि खाद्य पदार्थो में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवों तथा उनके किण्वकों (एन्जाइम) को ताप द्वारा नष्ट किया जा सकता है। प्रायः सभी सूक्ष्मजीव 65 degree से. (149 deg F) तापमान पर नष्ट हो जाते हैं तथा उनके बीजाणु (Spore) 115 से.(239 F) से अधिक ताप के प्रयोग से ही नष्ट हो पाते है। उष्मा प्रयोग विधि को सुखाकर परिरक्षित करते है।

सुखाना

इस विधि द्वारा फल तथा सब्जियों के जल को बाहर निकाल दिया जाता है जिससे सूक्ष्म जीव नष्ट या निष्क्रिय हो जाते है। साथ ही सूक्ष्मजीवियों के किण्वकों का भी निष्क्रिय हो जाना स्वाभाविक है। सुखाने से उनका पुनः प्रवेश भी अवरूद्ध हो जाता है। इस क्रिया को दो विधियों द्वारा क्रियान्वित किया जा सकता है।

(i) धूप में सुखाना तथा (ii ) निर्जलीकरण करना।

(i) धूप में सुखाना :- खाद्य पदार्थो को धूप में सुखाने की विधि उतनी ही पुरानी है, जितनी की मानव संस्कृति। इसके अलावा यह क्रिया परिश्रम तथा खर्च रहित भी है। जो हमारे घरों में आदिकाल से शाक-सब्जियों तथा फलों को सुखानें में अपनाई जाती रही है। आलू, कैरी, आम, केला, मदली आदि आवश्यकतानुसार सुखाये जाते रहे है। यदि इन्हें मोमलेपित कागजों में या वायुरोधी डिब्बों में बन्द कर रखा जाय तो बहुत दिनों तक खराब हुए बिना प्रयोग में लाये जा सकते है।

(ii) निर्जलीकरण :-फल व सब्जियों को अंगीठी, स्टोव, बिजली की अंगीठी आदि की सहायता से बन्द वातावरण में एक निश्चित तापमान पर रखकर सुखाने की विधि को निर्जलीकरण कहते है। इस विधि में काम आने वाले यन्त्रों को निर्जलीकरण यंत्र (Dehydrtor) कहते है। इय यन्त्र में सुखाये गये फल तथा सब्जी धूप में सुखाये गये पदार्थो की अपेक्षा अधिक सुन्दर स्वरूप वाले तथा स्वादिष्ट होते है।

ऊष्मा रहित परिरक्षण ( Non-heat preservation)[सम्पादन]

इस प्रयोग में सूक्ष्म जीवों का नाश नहीं होगा, मगर उनके बाहय किण्वक (एक्सो एन्जाइम) निष्क्रिय हो जाते है। साथ ही वायुमण्डल में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवों का प्रवेश भी नहीं हो पाता।

(i) शर्करा द्वारा परिरक्षण  : लगभग 60 प्रतिशत शर्करा खाद्य तथा पेय पदार्थों में मिलाई जाये तो वे परिरक्षित हो जायेंगे, क्योंकि सूक्ष्मजीव तथा उनके किण्वक परासरण (Osmosis) क्रिया द्वारा 60 प्रतिशत शर्करा की मात्रा में निष्क्रिय हो जाते है। वहां जल स्वतंत्र रूप से नहीं पाया जायेगा। सूक्ष्मजीवों की बढ़ोत्तरी के लिए स्वतंत्र जल का होना अनिवार्य है। विभिन फलों के जैम , जैली , मार्मलट , क्रिस्टलीकृत फल, मुरब्बा, फलमिश्री (Fruit Candy) आदि उपर्युक्त निमयों के आधार पर ही बनाये जाते है।

(ii) लवण द्वारा परिरक्षण (Preservation by common salt) :- शर्करा परासरण द्वारा खाद्य-पदार्थो के परिसरण के अलावा लवण भी खाद्य-पदार्थो का परिरक्षण करता है। लवण, परासरण क्रिया के अलावा एक विष के रूप में भी सूक्ष्मजीवों पर प्रभाव डालकर खाद्य-पदार्थो का परिरक्षण करता है। इसलिए 15 से 20 प्रतिशत लवण की ही जरूरत पड़ती है। अचार का परिरक्षण भी इसी नियम पर ही आधारित है। यहाँ लवण का मतलब खोने योग्य नमक से है।

(iii) तेल द्वारा परिरक्षण :- सभी तेल स्नेहाम्लवर्ग (Fatty Acid) में आते है। यह भी सूक्ष्म जीवों का एक प्रतिरोधक है। शरीर के नये घाव पर तुरन्त तेल लगाते हुए आपने देखा ही होगा। तेल घाव पर इसलिए लगाया जाता है कि उस पर आक्रमण करने वाले रोगाणुओं का नाश हो साथ ही उनका पुनःप्रवेश भी सम्भव न हो सके। करीब-करीब सभी तेल फफूंद निरोधक भी होते है। अचार में तो तेल, लवण तथा अन्य मसाले आदि मिलाने से वह और परिरक्षित हो जाता है।

(iv) सिरका द्वारा परिरक्षण :- सिरका भी स्नेहाम्ल वर्ग का एक सूक्ष्मजीव प्रतिरोधक है, क्योंकि सिरके मे एसिटिक अम्ल पाया जाता है। यह अम्ल भी फफूंद रोधक है। अगर खाद्य-पदार्थों में 2 से 3 प्रतिशत तक एसिटिक अम्ल मिलाया जावे तो परिरक्षण सम्भव किया जा सकता है तथा यह सिरके के अचार के नाम से जाना जाता है। ये वस्तुये लम्बे समय तक परिरक्षित हो जाती है।

(v) किण्वनीकरण द्वारा परिरक्षण (By Fermentation) :- सूक्ष्मजीव तथा किण्वकी की प्रतिक्रिया से कार्बोहाइट्रेट का अपघटन (decompostion) अर्थात् सुयंक्त पदाथों का विघटन हो जाता है। इस क्रिया को ही किण्वन क्रिया कहा जाता है।

(vi) हिमीकरण द्वारा परिरक्षण (By freezing) :- संसाधित तथा असंसाधित खाद-पदार्थो के जलांश को, हिमकारी (By freezer) यन्त्रों द्वारा हिमतुल्य बनाकर रेफ्रिजरेटरों में रखा जाये तो अधिक काल तक उनका परिरक्षण सम्भव है। इस विधि को ही हिमिकरण कहते है। फल तथा सब्जियों में प्रायः 60 से 70 प्रतिशत जल की मात्रा होती है। शेष जैव व अजैव पदार्थ होते है। इस पदार्थ का कुछ भाग जल में तथा कुछ परमाणु के रूप में रहता है। फल तथा सब्जियों में पाये जाने वाला जल जल्दी हिमीकृत हो जाता है। उत्पादों को उचित रूप में बन्द करके 32 से. (9 एफ) में रखा जाना चाहिए। न्यून ताप से रसायन क्रिया या सूक्ष्मजीवों की वृद्धि नहीं होती। हिमीकरण-परिरक्षण इसी नियम पर आधारित है।

सारांश[सम्पादन]

परिरक्षण के लिये खाद्य पदार्थो के मौलिक स्वरूप में बदलाव करना आवश्यक रहता है। फलों एवं सब्जियों की अधिक से अधिक पैदावार होने पर परिरक्षण कर, इनको दूसरे स्थानों पर भेजना, लम्बे समय तक सुरक्षित रखना एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में इनका उपयोग करना मुख्य उद्देश्य रहता है। परिरक्षण करके फल एवं सब्जियों में उसकी नमी को कम करना, ब्राह्म संक्रमण से इनका बचाव करना एवं वायुरोधक बनाना ही मुख्य उद्देश्य रहता है जिससे लम्बे समय तक इनको रख सके। परिरक्षण करने के लिये अस्थाई एवं स्थाई विधियों का उपयोग किया जाता है। स्थाई परिरक्षण में ऊष्मा का उपयोग एवं खाद्य वस्तुओं को उपयोग कर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है। पेक्टिन युक्त फलों से जैली तैयार की जाती है जिससे उनका उपयोग लम्बे समय तक मनुष्य कर सके। इसी तरह जैम, स्कवैस, आचार, चटनी मुरब्बा आदि का बनाकर फल तथा सब्जियों की गुणवता को बनाये रखा जाता है।