सामग्री पर जाएँ

आईटीआई ट्रेड ज्ञान

विकिपुस्तक से
  • ए.सी./डी.सी. वोल्टता, डी.सी. एम्पियर तथा प्रतिरोध मापने वाला उपकरण मल्टीमीटर कहलाता है।
  • सामान्य प्रकार का वोल्टमापी ए.सी. का R.M.S. मान मापता है (शिखर मान नहीं)।
  • धारामापी को श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है।
  • किसी चालक/प्रतिरोधक का प्रतिरोध मापने वाले यंत्र को ओममापी (ओममीटर) कहते हैं।
  • बल्ब का प्रकाशित होना, विद्युत-धारा के उष्मीय प्रभाव का उदाहरण है।
  • DC को ज्यादा दूरी तक नहीं ले जा सकते हैं।
  • मरकरी वाष्प लैम्प की औसत आयु 3000 घण्टे होती है।
  • विद्युत स्टोव का उष्मक तन्तु चीनी मिट्टी की चकती में स्थापित किया जाता है।
  • ए.सी. को डी.सी.मे परिवर्तित करने के लिए कम से कम एक डायोड चाहिए।
  • 'होल्स' की बहुलता वाला अर्द्धचालक पदार्थ p–पदार्थ कहलाता है।
  • ’वोल्टता रैगुलेटर’ परिपथ में प्रयोग किया जाने वाला डायोड जेनर डायोड है
  • n-प्रकार का अर्द्धचालक ‘मुक्त इलैक्ट्रान्स’ की बहुलता वाला होता है।
  • पूरक सममिति प्रवर्द्धक (Complementry sysmmetry amplifire) परिपथ में दो ट्रांजिस्टर PNP एवं NPN प्रयोग किये जाते हैं।
  • दिक्परिवर्तक ब्रशों के लिए सामान्यतः कार्बन का प्रयोग किया जाता है।
  • विद्युत तापक के तार सामान्य रूप से नाइक्रोम के बने होते हैं।
  • चुम्बकीय गुंजन (हमिंग) चुम्बकीय बलों के कारण उत्पन्न होती है।
  • विद्युत उत्सर्जन बत्तियों में प्रकाश कैथोड किरण उत्सर्जन द्वारा होता है।
  • प्रकाश का रंग, तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है।
  • विद्युत वितरण प्रणाली में स्टार संयोजन (स्टार कनेक्शन) का प्रयोग किया जाता है।
  • किसी ट्रांसफार्मर की लपेटें प्रेरणिक विधि से सम्बंधित (कपल्ड) रहती हैं।
  • विद्युत रंजन प्रक्रिया में धनोद से नोबल धातु प्लेट जुड़ा होता है।
  • विद्युत रंजन प्रक्रिया में डी.सी. विद्युत सप्लाई होती है।
  • ताप वृद्धि से संधारित्र की धारिता बढ़ती है।
  • बंद डी.सी.परिपथ में किसी संगम पर धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है।
  • विद्युत उत्पादन केन्द्र से विद्युत शक्ति का प्रेषण अत्यधिक उच्च ए.सी. वोल्टता पर किया जाता है, क्योंकि उच्च वोल्टता पर धारा का मान कम होने के कारण शक्ति ह्रास कम होता है।
  • प्रतिरोध का मात्रक ओम होता है।
  • बड़े जनित्र में प्रयोग किये जाने वाले ब्रश तांबे के होते हैं।
  • बैट्री आवेषण (चार्जिंग) कार्य के लिए शंट जनित्र उपयुक्त होता है।
  • ओवर लोड क्वायल का कार्य ओवर लोड की स्थिति में मोटर को आफ (बन्द) करना होता है।
  • अल्टरनेटर द्वारा उत्पन्न वि.वा.ब. की आवृत्ति पोल्स की संख्या तथा घूर्णन गति पर निर्भर करती है।
  • विद्युत आर्क भट्टी का तापमान मापने के लिए पायरोमीटर का प्रयोग किया जाता है।
  • यदि सप्लाई के कोई दो फेज आपस में बदल दिए जाएं तो प्रेरण मोटर उल्टी दिशा मे चलेगी।
  • यदि उच्च गति की मोटर की जगह निम्न गति का मोटर खरीदा जाये तो, निम्न गति की मोटर का मूल्य अधिक होगा।
  • उच्च गति और उच्च स्टार्टिंग टार्क के लिए यूनिवर्सल मोटर की सिफारिश की जाती है।
  • पिस्टल टाइप ड्रिलिंग मशीनों के लिए यूनिवर्सल मोटर का प्रयोग होता है।
  • शून्य लोड रनिंग अवस्था में प्रेरित वोल्टेज और सप्लाई वोल्टेज के बीच का कोण शून्य होता है।
  • कुण्डली में धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएं हस्त नियम द्वारा ज्ञात की जा सकती है।
  • मशीन के ध्रुवों की समान संख्या के लिए लैप बाइंडिंग की तुलना में वेब बाइंडिंग में वि.वा.ब. अधिक होगा।
  • गति एवं फ्लक्स दोनों को परिवर्तित करके जेनरेटर का वि.वा.ब. नियंत्रित किया जा सकता है।
  • हेमरिंग एवं ओवर हीटिंग दोनों के कारण जेनरेटर अपनी अवशिष्ट चुम्बकत्व खो देती है।
  • जब दो जेनरेटर समांतर में चल रहे हों और एक जनरेटर हटा लिया जाये तो पहले की उत्तेजना धीरे–धीरे कम होगी और दूसरे की धीरे–धीरे बढेगी।
  • डी.सी. मोटरों की बनावट डी.सी.जेनरेटरों के समान होती है, केवल फ्रेम बनावट भिन्न होती है।
  • फील्ड फ्लक्स घटाने से मोटर की गति बढ़ती है।
  • यदि डी.सी. मोटर का फ्लक्स शून्य हो जाए तो इसकी गति शून्य हो जायेगी।
  • लिफ्टों के लिए सिरीज प्रकार की मोटर प्रयोग की जाती है।
  • डी.सी. शंट मोटर के फील्ड टर्मिनल और आर्मेचर टर्मिनल दोनों को आपस में बदल दिए जाएं तो मोटर समान दिशा में चलेगी।
  • यदि लोडेड शंट मोटर के फील्ड कनेक्शन अचानक डिस्कनेक्ट हो जाए तो फ्यूज उड़ जायेगा।
  • कमरे का इल्यूमिनेशन छत और दीवार दोनों के रंग पर निर्भर करता है।
  • टंगस्टन फिलामेंट लैम्प में निष्क्रिय गैस के प्रयोग का उद्देश्य हीटिंग एलीमेंट का गलनांक बढ़ाना होता है।
  • सोडियम वाष्प लैम्प के साथ श्रेणी में चोक का प्रयोग विसर्जन को स्थिर करने के लिए किया जाता है।
  • किसी लैम्प की दक्षता ल्यूमेन/वाट में मापी जाती है।
  • प्रतिरोधी हीटिंग ओवर का तापमान थर्मोस्टेट के प्रयोग द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • डी.सी.मोटर में लौह हानियां आर्मेचर में होती है।
  • आर्मेचर लेमिनेशन के लिए पीतल धातु का प्रयोग किया जाता है।
  • लैप वाइंडिंग में ब्रुशों की संख्या ध्रुवों की संख्या के बराबर होती है।
  • लेड एसिड बैट्री की धनात्मक प्लेट लैड पराक्साइड की बनी होती है।
  • शुष्क सिलिका जेल का रंग हल्का गुलाबी होता है।
  • नमी सोखने के बाद सिलिका जेल का रंग नीला हो जाता है।
  • ट्रांसफार्मर में अधिकतम भार की सीमा वोल्टता के अनुपात द्वारा निर्धारित होती है।
  • शुद्ध धातुओं का प्रतिरोध ताप बढ़ने पर बढ़ता है।
  • यदि चार प्रतिरोध, प्रत्येक का मान R ओम की समानांतर क्रम में जोड़ा जाए, तो कम्बीनेशन का कुल प्रतिरोध R/4 होगा।
  • ओम के नियमानुसार होता है।
  • सोल्डर वायर टिन तथा लैड का मिश्रण होता है।
  • वोल्ट मीटर को विभवांतर मापने के लिए समानांतर क्रम में जोड़ा जाता है।
  • चालक पदार्थों का तापक्रम बढ़ाने पर उनका प्रतिरोध मान बढ़ जाता है।
  • LED पी.एच.जंक्शन होता है।
  • श्रव्य फ्रिक्वेंसी एम्प्लीफायर की फ्रिक्वेंसी परास 30Hz से 15KHz होती है।
  • D.C. विद्युत धारा की प्रवाह दिशा और मान सदैव नियत रहता है।
  • A.C. विद्युत धारा की प्रवाह दिशा और मान नियत दर पर परिवर्तित होता है
  • विद्युत वाहक बल तथा विभवांतर की इकाई वोल्ट होती है।
  • नाइक्रोम 80% निकिल तथा 20% क्रोमियम की मिश्र धातु है।
  • निम्न प्रतिरोध, निम्न ताप–गुणांक तथा सुदृढ़ता एक अच्छे चालक के गुण होते हैं।
  • सबसे अच्छा चालक चांदी तथा उसके बाद तांबा होता है।
  • अच्छा फ्यूज 37% सीसा तथा 63% टिन का बना होता है।
  • पृथ्वी का प्रतिरोध लगभग 3000 ओम सेंटीमीटर होता है।
  • अर्थ में नमक, कोयला एवं जल आस पास की भूमि को नम रखने के लिए डाला जाता है।
  • लाइन वोल्टेज ‘दो फेजों के मध्य विद्यमान वोल्टेज’ होता है।
  • फेज वोल्टेज ‘एक फेज तथा न्यूट्रल के मध्य विद्यमान वोल्टेज’ होता है।
  • आर्मेचर प्रतिरोध का मान लगभग 1Ω होता है।
  • यदि एक धातु की तार को खींच कर लम्बा कर दिया जाये तो उसका प्रतिरोध बढ़ जायेगा।
  • ट्रांसफार्मर को डी.सी.वोल्टता से जोड़ने पर प्रधान जल जायेगा एवं गौड़ में कोई emf उत्पन्न नहीं होगा।
  • रासायनिक सेल में करेंट की चालकता केवल ऋणात्मक आयनों के द्वारा होती है।
  • यदि किसी श्रेणी परिपथ में एक उच्च मान प्रतिरोध और जोड़ दें,तो परिपथ की विद्युत धारा का मान घट जायेगा।
  • यदि किसी समानांतर परिपथ में एक प्रतिरोध और जोड़ दें, तो परिपथ की विद्युत धारा का मान बढ़ जायेगा।
  • 1 kWh = 1.34 H.P. होता है। (1 H.P. का मान 746 जूल/सेकेंड या 746 वाट्स होता है )।
  • एक एनालाग यंत्र राशि के मान को संकेतक के रूप में दर्शाता है।
  • L.C.D. का पूर्ण रूप 'Liquid Crystel Display' होता है।
  • वाट–मीटर वैद्युत परिपथ के शक्ति व्यय को मापने वाला यंत्र होता है।
  • स्टैप-अप ट्रांसफार्मर वह ट्रांसफार्मर होता है जो इनपुट वोल्टेज मान को बढ़ाकर दूसरे परिपथ को प्रदान करता है।
  • स्टैप-डाउन ट्रांसफार्मर वह ट्रांसफार्मर होता है जो इनपुट वोल्टेज मान को घटाकर दूसरे परिपथ को प्रदान करता है।
  • किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर विद्युत क्षेत्र तथा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
  • माइक्रोमीटर तार का व्यास 1 सेमी के हजारवें भाग तक शुद्ध मापने वाला यंत्र है।
  • स्थितिज ऊर्जा mgh के बराबर होता है।
  • गतिज ऊर्जा mv2 के बराबर होता है।
  • पदार्थ के छोटे-छोटे कण को अणु कहते हैं।
  • केवल एक ही प्रकार के परमाणुओं से बने पदार्थ को तत्व कहते हैं।
  • यूरेनियम –238 के नाभिक में न्यूट्रांस की संख्या 146 तथा प्रोटांस की संख्या 92 होती है।
  • विद्युत धारा का मान ऐम्पियर्स में व्यक्त किया जाता है।
  • जर्मेनियम एक अर्द्ध चालक होता है।
  • जिस धात्विक छड़ या प्लेट के माध्यम से विद्युत धारा विलयन में प्रवेश करती है उसे कैथोड कहते हैं।
  • जिस धात्विक छड़ या प्लेट के माध्यम से विद्युत धारा विलयन से बाहर निकलती है उसे एनोड कहते हैं।
  • बैट्री की चार्जिंग की अवस्था में धनात्मक प्लेट पर आक्सीजन गैस निकलती है।
  • एक ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग को इनपुट की तरह इलेक्ट्रिक सप्लाई दी जाती है।
  • वाट-मीटर किसी वैद्युतिक परिपथ के शक्ति व्यय को मापने वाला यंत्र होता है
  • ट्रांसफार्मर के सम्बंध में H.T. का मतलब 15000 वोल्ट्स से अधिक की सप्लाई होता है।
  • निम्न प्रतिरोध, अल्प मूल्य, निम्न ताप गुणांक, सुदृढ़ता ये एक अच्छे चालक के गुण होते हैं।
  • एक ट्रांसफार्मर की क्षमता लगभग 97% होती है।
  • थर्मल पावर स्टेशन में ऊर्जा का परिवर्तन ताप ऊर्जा से इलेक्ट्रिकल ऊर्जा में होता है।
  • ट्रांजिस्टर में तीन सिरे होते हैं।
  • दो इलेक्ट्रोडों के बीच की न्यूनतम दूरी इलेक्ट्रोड की लम्बाई का दो गुना होती है।
  • यदि 100–100 ओम प्रतिरोध मान वाले पांच प्रतिरोधक श्रेणी क्रम में जुड़े हों, तो कुल प्रतिरोध मान 500 ओम होगा।
  • एनालाग ऐसा यंत्र होता है जो राशि के मान को संकेत के रूप में दर्शाता है।
  • डिस्चार्ज बैट्री का वि.वा. बल 2 वोल्ट्स होता है।
  • एक पूर्णतया चार्ज एसिड सेल का नामिनल वोल्टेज 2.2 वोल्ट होता है।
  • अर्द्ध आवेशित बैटरी का वि.वा. बल 2–1.15 वोल्ट होता है।
  • एक कार्बन जिंक सैल का नार्मल आउटपुट वोल्टेज 1.5 वोल्ट होता है।
  • पूर्ण आवेशित बैटरी का आ.घ. 1.25 से 1.28 के बीच होता है।
  • डिस्चार्ज बैटरी का आ.घ.1.18 होता है।
  • नाइक्रोम नामक कंडक्टर का प्रयोग हीटिंग ऐलिमेंट के रूप में किया जाता है।
  • 1 मीट्रिक अश्व शक्ति का मान 735.5 वाट्स होता है।
  • फेज वोल्टेज का अर्थ होता है एक फेज तथा न्यूट्रल के मध्य विद्यमान वोल्टेज।
  • ट्राई स्क्वायर समकोण नापने वाला औजार होता है।
  • पानी के हीटर की बाडी और कनेक्टिंग केबल के बीच 0.5 मेगा ओम से कम का रेजिस्टेंस नहीं होना चाहिए।
  • प्रकाश की तीव्रता का मात्रक ल्यूमेन होता है।
  • एक 24 ओम और एक 8 ओम रेजिस्टरों को पैरेलल (समांतर) में जोड़ा जाता है, तो संयुक्त रेजिस्टेंस 6 ओम होगा।
  • बैट्री में लीक्विड जो कि पानी और सल्फ्यूरिक एसिड का एक मिश्रण होता है इसे इलेक्ट्रोलाइट कहते हैं।
  • एक इलेक्ट्रिक सर्किट में शार्ट सर्किट के कारण करेंट का बहाव अधिक होने से फ्यूज उड़ जाता है।
  • लैड एसिड बैटरी की नेगेटिव प्लेट में Pb होता है। लैड एसिड बैटरी की पाजीटिव प्लेट में PbO2 होता है।
  • एम्पियर मीटर को सर्किट में सिरीज में जोड़ा जाता है।
  • फ्यूज का प्रारम्भिक कार्य अत्यधिक करेंट को रोकना होता है।
  • यदि किसी श्रेणी परिपथ में एक उच्च मान प्रतिरोध और जोड़ दिया जाये तो परिपथ की विद्युत धारा का मान घट जायेगा।
  • यदि एक समानांतर परिपथ में एक प्रतिरोध और जोड़ दें, तो परिपथ की विद्युत धारा का मान बढ़ जायेगा।
  • फ्रीक्वेंसी को वोल्ट में मापा जाता है।
  • 3 फेज एवं 1 फेज में प्रयोग किये जाने वाले वाट-मीटर्स एक जैसे होते हैं।
  • इलेक्ट्रिकल उपकरण में लगी आग को बुझाने के लिए हेलन टाइप एक्सटींग्युशर का प्रयोग किया जाता है।
  • भारत में सिंगल फेज घरेलू ए.सी. पावर सप्लाई वोल्टेज 230 वोल्ट होती है।
  • ट्रांजिस्टर के सिरों को इमीटर, वेस तथा कलेक्टर के नाम से जानते हैं।
  • एक बैट्री की क्षमता को प्लेटों की संख्या और प्लेटों की साइज द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • एक मैटीनेंस–फ्री बैटरी में लैड–कैल्सियम प्लेट ग्रिड होती है।
  • जब एक मल्टीमीटर के द्वारा कैपिसिटर की टेस्टिंग की जाती है तो सुई शुरू से ही जीरो पोजीशन को प्रकट करती है, इसका अर्थ है कि कैपेसिटर शार्ट सर्किटिड है।
  • वायरगेज स्टील की बनी वृत्ताकार प्लेट होती है, इन पर भिन्न –भिन्न नाप के खांचे बने होते हैं, इसका उपयोग तारों का व्यास नापने के लिए किया जाता है।
  • ट्रांसफार्मर डी.सी. पर कार्य नहीं करता है।
  • विद्युत धारा का मान ऐम्पियर में व्यक्त किया जाता है।
  • 1 जूल का मान 1 न्यूटन / मीटर होता है।
  • विद्युत वाहक बल की इकाई वोल्ट होती है।
  • बैटरी के डिस्चार्जिंग के दौरान दोनों प्लेटों में एंक्टिव मेटीरियल लैड सल्फेट में बदल जाता है।
  • अमीटर का प्रयोग करेंट मापने के किए किया जाता है।
  • वोल्ट मीटर का प्रयोग पोटेंशियल डिफ्रेंस मापने के लिए किया जाता है।
  • ऐल्युमीनियम के टुकड़े की फाइलिंग के लिए कर्व् ड फाइल अधिक उपयुक्त होगी।
  • ओपन सर्किट में कोई करेंट प्रवाहित नहीं होता है।
  • भारत में ए.सी. मेन सप्लाई फ्रीक्वेंसी 50 Hz होती है।
  • एक 12 वोल्ट लैड एसिड बैटरी में सिरीज में छ: सेल होते हैं।
  • 100 वाट्स का लैम्प 10 घण्टे में 1 यूनिट विद्युत खर्च करेगा।
  • एक कंडक्टर में कम निर्दिष्ट प्रतिरोध होना चाहिए।
  • एक ओपन सर्किट में रेजिस्टेंस असीमित और करेंट शून्य होते हैं।
  • यदि एक कायल का रेजिस्टेंस 15 ओम और इम्पिडेंस 25 ओम हो, तो उसका इंडक्टिव रिएक्टेंस 20 ओम होगा।
  • यदि एक मिलियन और एक मेगा ओम रेजिस्टरों को पैरेलल में जोड़ा जाता है तो संयुक्त रेजिस्टेंस मान 0.5 मेगा ओम होगा।
  • विभवांतर की इकाई वोल्ट होती है।
  • कार्य = बल x दूरी। शक्ति = कार्य/समय
  • पंखे की मोटर में प्रयोग किया जाने वाला कैपेसिटर को स्टार्ट वाइंडिंग के साथ सीरिज में जोड़ा जाता है।
  • पंखे के विपरीत दिशा में धीमे चलने का कारण केपेसिटर का शार्ट होना होता है।
  • एनालाग एवं डिजिटल यंत्रों में डिजिटल यंत्र अधिक शुद्ध होता है।
  • यदि 10–10 ओम प्रतिरोध वाले दो प्रतिरोधकों को समानांतर क्रम में जोड़ दें तो कुल प्रतिरोध 5 ओम होगा।
  • बड़े वृत्त या चाप की मार्किंग के लिए ट्रैमल का प्रयोग किया जाता है।
  • ओवर साइज ड्रिल होने का मुख्य कारण कटिंग ऐंगल का अक्ष के दोनों ओर बराबर न होना होता है।
  • इंडिया स्टैंडर्ड (B.I.S.) के अनुसार होल की उच्चतम विचलन का संकेत ES होता है।
  • कूलेंट का मुख्य कार्य कटिंग करते समय कटिंग टूल और कार्य को ठण्डा रखना होता है।
  • मशीन को पूर्णतया खोलकर साफ करना तेल देकर दोबारा फिट करना मशीन की ओवरहालिंग करना कहलाता है।
  • स्टेनलेस स्टील की वेल्डिंग के लिए आर्गन का प्रयोग किया जाता है क्योकि यह निष्क्रिय होता है।
  • हैमर का आई होल अण्डाकार होता है।
  • लेथ टूल के 6 भाग होते हैं।
  • रेतियों (फाइल) को प्राय: हार्ड कार्बन स्टील से बनाया जाता है।
  • दो धातुओं को पिघलाकर इकट्ठा जोड़ने की प्रक्रिया को ऐलाय कहते हैं।
  • साइन बार टेपर नापने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • जी.आई.शीट की सोल्डरिंग के लिए जिंक क्लोराइड को फ्लक्स के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • कठोर पदार्थ को फाइल करने के लिए सिंगल कट फाइल का प्रयोग किया जाता है।
  • लेथ ब्लेड ढलवा लोहा से बनाया जाता है।
  • लैथ बैड कास्ट आयरन का बना होता है।
  • तेल की विस्कासिटी गर्म करने पर घटती है।
  • गैल्वैनाइज्ड आयरन के साथ लैड कोटिड होता है।
  • रिविटिंग अर्ध स्थायी फास्टनिंग संक्रिया है।
  • वर्नियर कैलिपर द्वारा मापी गई नाप की एक्यूरेसी माइक्रोमीटर से नापे जाने की तुलना में कम होती है।
  • स्क्राइवर का प्रयोग जाब की मार्किंग के लिए किया जाता है।
  • कामन बियरिंग बुश गन मैटल की बनी होती है।
  • बेवेल प्रोट्रेक्टर का प्रयोग कोण नापने के लिए किया जाता है।
  • रफ सरफेस की मार्किंग करते समय कापर सल्फेट का प्रयोग किया जाता है।
  • बैंच वाइस के जबड़े कठोर स्टील से बनाये जाते हैं।
  • माइक्रोमीटर की लीस्ट काउण्ट 0.01 मिमी. होती है।
  • एल्युमीनियम की ड्रिलिंग के दौरान कूलैंट के रूप में सौल्यूविल आयल का प्रयोग किया जाता है।
  • धातुओं को बिना पिघलाये जोड़ने की विधि को सोल्डरिंग कहते हैं।
  • मैटल को मुलायम बनाने के लिए एनीलिंग की जाती है।
  • सभी मशीन टूल्स की जननी लेथ को कहते हैं।
  • नई फाइल का सबसे पहले प्रयोग मुलायम धातु पर करना चाहिए।
  • मीट्रिक वर्नियर केलिपर का अल्पतमांक 0.02 मिमी. होता है।
  • माइक्रोमीटर का प्रयोग करने से पहले माइक्रोमीटर की शून्य त्रुटि चेक कर लेनी चाहिए।
  • फाइल (रेती) को उत्तल आकार का बनाया जाता है।
  • फोर्जिंग शाप में छेद बनाने के लिए पंच का प्रयोग किया जाता है और ड्रिफ्ट का प्रयोग उन्हे बड़ा बनाने के लिए किया जाता है।
  • फास्ट पुली वह होती है जिसकी फास्टनिंग शाफ्ट के साथ होती है।
  • स्क्रू पिच गेज जांचने के लिए स्क्रू पिच का प्रयोग किया जाता है।
  • माइल्ड स्टील में कार्बन की मात्रा कास्ट आयरन से कम होती है।
  • सोल्डर सीसा और टिन का मिश्र धातु है।
  • पंच का संयुक्त कोण 90 होता है।
  • सबसे छोटी माप को वर्नियर कैलिपर से नापी जा सकती है उसे लीस्ट काउंट कहते हैं।
  • ड्रिल ग्राइंडिंग करते समय लिप क्लीयरेंस ऐंगल परिवर्तनशील नहीं होता है।
  • कास्ट आयरन में ड्रिलिंग करते समय कूलेंट की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • ट्राई स्क्वायर ब्लेड स्टाक के साथ 90 पर फिट रहता है।
  • हैमरिंग के बाद नौर्मेलाइजिंग आवश्यक होती है।
  • बड़े सर्किल अथवा आर्क खींचने के लिए ट्रेमल का प्रयोग किया जाता है।
  • धातु की कठोरता राक वैल द्वारा निर्धारित की जाता है।
  • एक माइक्रोन की क्षमता 0.001 मिमी. होती है।
  • हेक्सा ब्लेड पर टीथ सेटिंग कटिंग करते समय घर्षण कम करने के लिए होता है।
  • फाइल की लम्बाई प्वाइंट से हील तक मापी जाती है।
  • सेकेंड कट फाइल ग्रेड के अनुसार होती है।
  • फ्लैट फाइल के दोनों एजों पर सिंगल कट होता है।
  • मेगनिफाइंग ग्लास का प्रयोग तब किया जाता है, जब परिशुद्धता में माप की रीडिंग लेनी होती है।
  • डाट पंच का कोण 60 होता है।
  • ड्रिलिंग के समय बड़े छेद का कारण असमान लिप्स होता है।
  • हार्ड कार्बन स्टील का लोअर क्रिटिकल तापमान 723 होता है।
  • फोम एक्स्टींग्यूशर द्वारा आयल फायर को बुझाया जाता है।
  • सी.टी.सी. एक्स्टींग्यूशर द्वारा इलेक्ट्रिकल फायर को बुझाया जाता है।
  • गैस मास्क का प्रयोग जहरीली गैस के प्रभाव से बचाव के लिए किया जाता है
  • वर्नियर कैलीपर्स एवं माइक्रोमीटर से रेखीय माप की जाती है।
  • पंच प्राय: हार्ड कार्बन स्टील के बनाये जाते हैं।
  • हैमर प्राय: हार्ड कार्बन स्टील के बनाये जाते हैं।
  • बेंच वाइस के बाक्स नट कास्ट आयरन के बने होते हैं।
  • बेंच वाइस को पैरेलल जॉ वाइस भी कहते हैं।
  • चीजल हार्ड कार्बन स्टील की बनाई जाती है।
  • हैमर का भार चीजल की अपेक्षा दोगुना होना चाहिए।
  • ब्रांज में कॉपर व टिन मिश्रित होते हैं।
  • मैलिएबिलिटी का सबसे अधिक गुण सोना में होता है।
  • कार्बन स्टील को हार्ड करने के लिए हार्डनिंग टेम्परेचर कार्बन की मात्रा पर निर्भर करता है।
  • आउटसाइड माइक्रोमीटर का प्रयोग बाहरी मापों के लिए किया जाता है।
  • इनसाइड माइक्रोमीटर का प्रयोग अंदरूनी मापों के लिए किया जाता है।
  • माइक्रोमीटर की प्रारम्भिक रीडिंग जीरो रीडिंग को कहते हैं।
  • गहराई की मापों को सूक्ष्मता से मापने के लिए वर्नियर डेप्थ गेज का प्रयोग किया जाता है।
  • गियर के दांतों की मापों को सूक्ष्मता से चेक करने के लिए गियर टूथ वर्नियर कैलिपर्स का प्रयोग किया जाता है।
  • बेबल गेज का प्रयोग जॉब का कोण चेक करने के लिए किया जाता है।
  • छोटे–छोटे सुराखों का साइज चेक करने के लिए स्मॉल होल गेज का प्रयोग करते हैं।
  • स्लिप गेज को ब्लॉक गेज भी कहते हैं।
  • टेलिस्कोपिक गेज का प्रयोग अंदरूनी साइजों को मापने के लिए किया जाता है।
  • लैप की धातु लैपिंग करने वाली धातु की अपेक्षा शॉफ्ट होनी चाहिए।
  • किसी जॉब की सरफेस पर टूल के कटिंग रेंज से जो महीन विषमताएं बनती हैं उसे रफनेस कहते हैं।
  • फ्रोस्टिंग ऐसी कार्य विधि है जिसमे किसी जॉब की बाहरी फ्लैट सरफेस को चमकदार बनाया जाता है।
  • गेल्वेनाइजिंग विधि में ब्लैक आयरन की चद्दरों पर जिंक की कोटिंग की जाती है।
  • लुब्रिकेंट की बहाव की माप को विस्कोसिटी कहा जाता है।
  • लुब्रिकेंट के उस गुण को जिस तापमान पर आग की लपटें पकड़ लेता है फायर प्वाइंट कहलाता है।
  • लुब्रिकेंट जिस तापमान पर बहना शुरू कर दे उसे पोर प्वाइंट कहते हैं।
  • मशीन को अधिक स्पीड पर चलाने के लिए सोडियम बेस ग्रीस प्रयोग में लाया जाता है।
  • मशीन को कम स्पीड पर चलाने के लिए कैल्शियम बेस ग्रीस का प्रयोग किया जाता है।
  • ग्रेफाइट सॉलिड लुब्रिकेंट का उदाहरण है।
  • ग्रीस सेमी लिक्विड लुब्रिकेंट है।
  • एक ही व्यास की दो पाइपों को सीधी लाइन में जोड़ने के लिए सॉकेट का प्रयोग किया जाता है।
  • पाइप लाइन के किसी सिरे को बंद करने के लिए प्लग का प्रयोग किया जाता है।
  • पाइप पर बाहरी चूड़ियां काटने के लिए पाइप डाइ का प्रयोग किया जाता है।
  • पाइप पर अंदरूनी चूड़ियां काटने के लिए पाइप टैप का प्रयोग किया जाता है
  • अलग-अलग व्यास की दो पाइपों को जोड़ने के लिए रिड्यूसिंग सॉकेट का प्रयोग किया जाता है।
  • 1 गज = 3 फुट, 1 गज = 0.914 मी., 1 मीटर = 39.37 इंच, 1 फुट = 12 इंच, 1 इंच = 25.4 मिमी. या 2.54 सेमी. , 1 रेडियन = 57.3 डिग्री,

1 = F होता है।

  • गुनिया, सरफेस प्लेट, सरफेस गेज सतह की जांच करने वाले औजार हैं।
  • डाट पंच का कोण 60 होता है।
  • सेंटर पंच का कोण 90 होता है।
  • धातु का वह गुण जिससे धातु को यदि बार बार मोड़ा जाये तो वह टूटता नहीं है उसे टफनेस कहते हैं।
  • स्टील में कार्बन की मात्रा बढ़ाने से उसकी हार्डनेंस बढ़ जाता है।
  • जॉब बनाते समय मापों को मापने और चैक करने के लिए स्टील रूल का प्रयोग किया जाता है।
  • हार्डनिंग की प्रक्रिया में धातु पर हार्डनेस का गुण बढ़ाया जाता है।
  • सिल्वर प्लेटिंग स्थायी कोटिंग है।
  • टिनिंग अस्थायी कोटिंग है।
  • साधारण सोल्डर का गलनांक 205 C होता है।
  • एक अच्छे लुब्रिकेंट में नॉन क्रोसिव तथा हाई स्पेसिफिक हीट का गुण होना चाहिए।
  • हाई स्पीड स्टील का मुख्य प्रयोग हाई स्पीड कटिंग टूल के लिए होता है।
  • यदि दो गियरों को आपस में मैश किया जाए,तो एक गियर के दांत के टॉप और दूसरी गियर के दांत के रूट के बीच में जो गैप बनता है उसे क्लीयरेंस कहते हैं।
  • गन मैटल में कॉपर 88 प्रतिशत होता है।
  • हार्ड कार्बन स्टील में कार्बन 0.7 से 1.5 प्रतिशत होना चाहिए।
  • गैस वैल्डिंग में ऑक्सीजन के साथ एसिटीलीन गैस का प्रयोग किया जाता है
  • फाइल (रेती) को उत्तल आकार का बनाया जाता है।
  • बैंच वाइस को फीट करते समय उसके ऊपरी फेस की ऊँचाई कारीगर के कोहनी के बराबर जबकि वह अपनी बाजू मोड़कर अँगुलियों को ठुड्डी से लगाकर खड़ा हो, होनी चाहिए।
  • साधारण हेक्सा ब्लेड की लम्बाई दोनों पिन होल्स के सेंटर से सेंटर की दूरी तक मापी जाती है।
  • ड्रिल द्वारा आसानी से न काटना और उनके कटिंग ऐज जल्दी खराब होने का मुख्य कारण लिप क्लीयरेंस ऐंगल का नहीं या कम होना होता है।
  • एल्बो का मुख्य प्रयोग पाइप लाइन को 90 में एक ओर मोड़ने के लिए होता है।
  • ग्रुवर का मुख्य प्रयोग जॉब पर ज्वाइंट को लॉक करने के लिए होता है।
  • स्टेनलेस स्टील की बेल्डिंग के लिए आर्गन का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह निष्क्रिय होता है।
  • रेडियो रिसीवर की इंटरमीडिएट फ्रिक्वेंसी 455 KHz होती है।
  • सर्किट जिसके द्वारा सूचना रेडियो सिग्नल पर लागू की जाती है, उसको मोडुलेटर कहते हैं।
  • इण्टेग्रेटेड सर्किट को पहचानने का एक मात्र तरीका इसके स्केमेटिक चित्र को चैक करना होता है।
  • एंटेना एरे अर्द्ध-तरंग एंटेनाज का एक समूह होता है।
  • सी.टी.सी. (कार्बन टेट्रा-क्लोराइड) अग्निशामक का प्रयोग विद्युत परिपथ में आग लगने पर करते हैं।
  • आवेश कणों की गति धारा कहलाती है।
  • ट्रांजिस्टर के चिन्ह में तीर का निशान एमीटर में इलेक्ट्रान करंट की दिशा को दर्शाता है।
  • एंटिना की ऊँचाई में घटाव करने से विकिरण कोण घटता है।
  • N प्रकार का अर्द्ध-चालक ‘मुक्त इलेक्ट्रांस’ की बहुलता वाला होता है।
  • डायोड का उपयोग रेक्टिफायर के रूप में होता है।
  • ट्रांसफार्मर की सेकंडरी वाइंडिंग के लिए 37 S.W.G तार का प्रयोग किया जाता है।
  • चुम्बकीय टेप पर संग्रहित कार्यक्रम को मिटाने की सर्वोत्तम तकनीक उच्च आवृत्ति ए.सी.वोल्टता का प्रयोग करना होता है।
  • लाउडस्पीकर के बड़े डायोमीटर और भारी कोण को वूफर कहते हैं।
  • ऐसा उपकरण जिससे ट्रांसफार्मर की आवृत्ति मापी जाती है तथा जो अनुनाद के सिद्धांत पर कार्य करता है, तरंग मापी कहलाता है।
  • डायोड वाल्व दिष्टकारक का कार्य करता है।
  • कैथोड किरण नली का वह भाग जो इलेक्ट्रानों का एक महीन बीम उत्पन्न करता है, उसे इलेक्ट्रान गन कहते हैं।
  • डबल डायोड में दो एनोड होते हैं।
  • उल्टे क्रम में एक-दूसरे से सटे दो P–N संधि को ट्रांजिस्टर कहते हैं।
  • ट्रांजिस्टर का मुख्य कार्य प्रवर्धन करना होता है।
  • धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रानों के कारण पॉजिटिव ऊर्जा होती है।
  • वोल्टेज रेगुलेटर परिपथ में प्रयुक्त होने वाले डायोड को जीनर डायोड कहते हैं।
  • दिष्ट धारा को प्रत्यावर्ती धारा में परिवर्तित करने वाला युक्ति इंवर्टर है।
  • अर्द्ध तरंग दिष्टकारी परिपथ की रिपिल आवृत्ति 50 हर्ट्ज होती है। इसकी दक्षता कम होती है।
  • पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ की रिपिल आवृत्ति 100 हर्ट्ज होती है। इसकी दक्षता अधिक होती है।
  • किसी चालक में विद्युत धारा के प्रवाह का कारण विद्युतीय विभव में अंतर होता है।
  • चालक के नेटवर्क में धारा के प्रवाह को समझने हेतु किरचौफ के नियम का प्रयोग किया जाता है।
  • किसी विद्युतीय परिपथ में किसी बिंदु पर धाराओं का बीजगणितीय योगफल शून्य होता है।
  • किरचाप का लूप नियम ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित है।
  • विभव मापी की सहायता से सेल का विद्युत वाहक बल मापा जाता है।
  • धातु के ताप को बढ़ाने से उसका प्रतिरोध बढ़ता है।
  • पोटेंशियल डिफरेंस को मापने के लिए वोल्टमीटर का प्रयोग किया जाता है।
  • किसी संधारित्र की धारिता का मात्रक फैराड होता है।
  • जब समानांतर प्लेट संधारित्र की प्लेटों के बीच की दूरी बढ़ती है, तो उसकी धारिता घटती है।
  • विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की घटना फैराडे के द्वारा खोजी गई।
  • लेंज का नियम ऊर्जा के संरक्षण सिद्धांत से सम्बद्ध है।
  • प्रेरण कुण्डली एक ऐसा यंत्र है जिससे उच्च वोल्टता उत्पन्न की जाती है।
  • अपनी ही धारा के कारण कुण्डली में विद्युत वाहक बल का उत्पन्न होना स्वप्रेरण कहलाता है।
  • ट्रॉन्सफॉर्मर का क्रोड परतदार होता है, जिससे भँवर धारा का मान कम हो जाता है।
  • ऐसी युक्ति जो उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता को निम्न वोल्टता में बदल देती है, उसे अपचायी ट्रॉन्सफॉर्मर कहते हैं।
  • ऐसी युक्ति जो निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टता निम्न धारा पर उच्च वोल्टता में बदल देती है, उसे उच्चायी ट्रॉन्सफॉर्मर कहते हैं।
  • A.C.परिपथ में शक्ति व्यय प्रतिरोधों में होती है।
  • वोल्टेज रेगुलेटर परिपथ में प्रयुक्त होने वाले डायोड को जीनर डायोड कहते हैं।
  • रिबन माइक्रोफोन का उपयोग ध्वनि रिकार्डिंग में किया जाता है।
  • तूफान की पूर्ण सूचना रडार से मिलती है।
  • दो तार A तथा B समान पदार्थों तथा लम्बाईयों के बने हैं। A का व्यास B के व्यास का दोगुना है, तो A का प्रतिरोध B की तुलना में ¼ गुना होगा।
  • धारा अदिश राशि है और धारा घनत्व सदिश राशि है।
  • एक तार की लम्बाई को खींचकर दो गुना कर दिया जाता है। यदि खींचने के पूर्व इसका प्रतिरोध R है, तो खींचने के बाद इसका प्रतिरोध 4R होगा।
  • 1Ω के तीन प्रतिरोधों के संयोजन से न्यूनतम Ω प्रतिरोध प्राप्त किया जा सकता है।
  • दो संधारित्र, जिसमे प्रत्येक की धारिता C है, श्रेणी क्रम में जुड़े हैं। उनकी तुल्य धारिता होगी।
  • ताप की वृद्धि से संधारित्र की धारिता बढ़ती है।
  • संधारित्रों का उपयोग ऊर्जा संचालक के रूप मे, विद्युत उपकरण मे, आवेशों के संचालक के रूप में होता है।
  • 20 किलो/हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति पर कार्य करने वाले सभी ट्रॉन्सफॉर्मर रेडियो आवृत्ति ट्रॉन्सफॉर्मर कहलाते हैं।
  • उच्चायी ट्रॉन्सफॉर्मर के प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डली में क्रमश: N1 एवं N2 लपेटे हैं, तो N1 N2 होगी।
  • एक चोक कुण्डली का व्यवहार A.C.परिपथ में धारा को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  • जीनर डायोड में दोनों P तथा heavily doped होते हैं।
  • बूलियन बीजगणित में Y = A + B का मतलब होता है, Y बराबर है A तथा B के।
  • OR तथा NOT द्वारों का संयोग NOR द्वार होता है।
  • बूलियन बीजगणित में सत्य के लिए 1 तथा असत्य के लिए 0 का प्रयोग करते हैं।
  • ON सत्य के लिए तथा OFF असत्य के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • 8 को बाइनरी में 1000 लिखते हैं।
  • 10 को बाइनरी में 1010 लिखते हैं।
  • लाउडस्पीकर मुख्यत: 2 प्रकार के होते हैं।
  • रीबन माइक्रोफोन का उपयोग ध्वनि रिकार्डिंग में किया जाता है।
  • ब्रिज रेक्टिफायर में 4 डायोड प्रयोग होते हैं।
  • इंटीग्रेटेड सर्किट का आविष्कार 1958 में हुआ।
  • सतह की स्क्वायरनैस की जाँच ट्राई एक्वायर द्वारा की जाती है।
  • फाइल का विभाजन उसकी लम्बाई के आधार पर किया जाता है।
  • फ्लैट सतह से धातु काटने में फ्लैट चीजल का प्रयोग किया जाता है।
  • सॉफ्ट सोल्डर का गलनांक 400 C होता है।
  • घर्षण को लुब्रीकेशन द्वारा कम किया जा सकता है।
  • स्टैनलेस स्टील में 18% क्रोमियम पाया जाता है।
  • स्टड बोल्ट के दोनों सिरे सपाट होते हैं।
  • टैम्पोरेरी ज्वाइंट बनाने के लिए रिविट का प्रयोग किया जाता है।
  • चिपिंग करते समय कास्ट आयरन का प्वाइंट एंगल 60 होता है।
  • हैक्सॉ ब्लेड की स्टैनडर्ड लम्बाई 250 मिमी. होती है।
  • ब्लेड में फाइन पिच की लम्बाई 1.8 मिमी. होती है।
  • चीजल एज तथा कटिंग लिप के बीच का कोण वैब एंगल कहलाता है।
  • दो जॉब के बीच का गैप देखने के लिए फीलर गेज का उपयोग किया जाता है
  • सीधे हाथ की चूड़ियों वाले वोल्ट पर नट खोलते समय स्पैनर ऐंटीक्लॉक वाइज घुमाया जाता है।
  • 1 मीटर में 1000 मिमी. होता है।
  • रास्प कट दाँते नर्म धातु की फाइलों पर बनाये जाते हैं।
  • जैनी कैलीपर्स का प्रयोग सतह के समांतर रेखा खींचने के लिए किया जाता है
  • पंच हार्ड कार्बन स्टील का बना होता है।
  • की मुख्यत: छ: प्रकार होती हैं।
  • हार्ड स्टील पर चिपिंग करते समय प्वाइंट एंगल 65 रखा जाता है।
  • ड्रिलिंग मशीन की मेन स्पिडल के चक्कर एण्टी क्लॉक वाइज होने चाहिए।
  • एक मिमी. में 1000 माइक्रोन होते हैं।
  • भारी हैमर को स्लैज हैमर के नाम से जाना जाता है।
  • ड्रिल का सामान्य प्वाइंट एंगल 118 रखा जाता है।
  • हेमेटाइट अयस्क में लोहा 70% होता है।
  • ड्रिल 1/20 इंच साइज में मिलता है।
  • फाइल का मुख्य कार्य धातु को काटना होता है।
  • ट्राइएंगुलर फाइल का प्रयोग तिकोन होल बनाने के लिए होता है।
  • चीजल की सेप अष्टभुजाकार होती है।
  • कटिंग एंगल विभिन्न धातुओं पर निर्भर करता है।
  • वाइस की साइज जॉब की लम्बाई से लेते हैं।
  • जॉब को पकड़ने वाला यंत्र वाइस होता है।
  • फाइल ब्लेड में 28–32 टीथ प्रति इंच होते हैं।
  • ड्रिल 1 से 30 नम्बर तक मिलते हैं।
  • बाह्य चूड़ियाँ वी टूल के द्वारा काटी जाती हैं।
  • प्रिंक पंच का प्रयोग हल्की मार्किंग के लिए की जाती है।
  • वर्नियर बैवल प्रोटेक्टर का प्रयोग एंगल की सूक्ष्मता देखने के लिए किया जाता है।
  • पिग आयरन में 93% लोहा होता है।
  • दो स्रोतों की प्रदीपन तीव्रता की तुलना करने में फोटोमीटर नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • विकिरण की माप के लिए रेडियोमीटर का प्रयोग किया जाता है।
  • इंजन द्वारा उत्पन्न की गई शक्ति को मापने के लिए डाइनेमोमीटर का प्रयोग किया जाता है।
  • विद्युत स्रोत से जोड़ी जाने वाली बाइंडिंग को प्राइमरी बाइंडिंग कहते हैं।
  • लोड से जोड़ी जाने वाली बाइंडिंग को सेकेंडरी बाइंडिंग कहते हैं।
  • स्टैनलेस स्टील क्रोमियम और निकिल का मिश्रण होती है।
  • धातु का वह गुण जिससे कि वह विभिन्न रूपों को ग्रहण कर लेता है प्लासिटी कहलाता है।
  • सिलिंडर कवर ढ़लवॉ स्पात का बनाया जाता है।
  • कार्य को सूक्ष्मता प्रदान करने के लिए मार्किंग ब्लॉक का प्रयोग किया जाता है
  • पतली धात्विक चादरों को काटने के लिए शीयर या स्निपर कैंची का प्रयोग करते हैं।
  • फाइल के मुख्य ग्रेड रफ, स्मूथ, बास्टर्ड, डैथ तथा सेकेंड कट हैं।
  • रेक्टिफायर का प्रयोग A.C. को D.C. में बदलने में किया जाता है।
  • डाई एक चूड़ी काटने वाला यंत्र होता है।
  • रिले अथवा कांटेक्टर के संदर्भ में NO का अर्थ Normally Open Contacts होता है।
  • जनरेटर D.C. पैदा करने वाली मशीन होती है।
  • किसी जॉच पर नम्बर डालने के लिए नम्बर पंच का प्रयोग करते हैं।
  • ट्रॉन्सफॉर्मर का क्रोड परतदार होता है, जिससे भँवर धारा का मान कम हो जाता है।
  • हेक्सा ब्लेड लो एलॉय स्टील तथा हाई स्पीड स्टील दोनों के बनाये जाते हैं।
  • एम्प्लीफायर में इनपुट + वैद्युत शक्ति = आउटपुट होता है।
  • स्क्रू ड्राइवर कार्बन स्टील के बनाये जाते हैं।
  • माइक्रोमीटर ब्रिटिश प्रणाली तथा मीट्रिक प्रणाली दोनों में उपलब्ध है।
  • नम्बर ड्रिल का नम्बर 1–80 तक होता है।
  • किसी चुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकत्व ग्रहण करने की योग्यता सस्सेप्टिबिलिटी कहलाती है।
  • चीजल का कटिंग एंगल 40 होता है।
  • चीजल का फोर्जिंग एंगल 30 होता है।
  • किसी चुम्बक की कुल चुम्बकीय बल रेखाओं के पुंज को चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं।
  • एम्प्लिफायर वोल्टेज, करंट एवं पॉवर के मान में वृद्धि करता है।
  • रिविट माइल्ड स्टील, रॉट आयरन तथा कॉपर से बनायी जाती है।
  • कैलीपर्स स्टील के बने होते हैं।
  • श्रेणी क्रम में जुड़े कैपेसिटर्स का कुल कैपेसिटेंस होगा
  • समांतर क्रम में जुड़े कैपेसिटर्स का कुल कैपेसिटेंस C = C1 + C2 + C3 + ….. होगा।
  • ओम का नियम ए.सी. परिपथों के लिए सत्य नहीं होता है।
  • यदि प्रतिरोधक पर रंग की चौथी पट्टी न हो, तो इसका अर्थ है कि इसकी सहनशीलता 20% है।
  • किसी चुम्बक के लिए चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करने वाला बल M.M.F. कहलाता है।
  • चीजल की शेप पंचभुजाकार होती है।
  • डाई कास्ट स्टील (हाई स्पीड स्टील) की बनी होती है।
  • ट्राई स्क्वायर जॉब के सर्फेस को लेवल करने, जॉब के साइड को लेवल करने तथा जॉब को 90 में चेक करने के काम आता है।
  • सैंटर पंच के नीचे के प्वाइंट का कोण 90 होता है।
  • वेल्डिंग जोड़ की सामर्थ्य 0.7af होती है।
  • प्रत्यास्था गुणांक ‘e’ सदैव एक से कम होता है।
  • मशीन टूल्स में लुब्रिकेंट प्रयोग करने का मुख्य उद्देश्य मेटिंग पार्ट्स के बीच घर्षण कम करना होता है।
  • जिग एक डिवाइस है जो कटिंग टूल को पकड़ता है।
  • टेपर होल करने के लिए टेपर प्लग नामक गेज का प्रयोग करते हैं।
  • बड़े साइज के सुराख को अधिक फीड देकर ड्रिलिंग करेंगे तो सुराख अण्डाकार बनेगा।
  • एल्युमिनियम पर थ्रेड काटने के लिए लुब्रिकेंट के रूप में मिट्टी के तेल का प्रयोग करते हैं।
  • प्रयोग में लाये जाने वाले दो प्रकार के लम्बाई के स्टैंडर्ड मीटर तथा गेज हैं।
  • हेक्सा ब्लेड के दाँतों के पिच कोर्स 1.8 मिमी. होते हैं।
  • मेटिंग पार्ट्स के बीच क्लीयरेंस को फीलर गेज द्वारा मापा जाता है।
  • कास्ट आयरन में ड्रिलिंग करते समय, उपयोग किया जाने वाला कुलेंट सूखी हवा होती है।
  • फाइल का विभाजन उसकी लम्बाई के आधार पर किया जाता है।
  • फ्लैट सतह से धातु काटने में फ्लैट चीजल का प्रयोग किया जाता है।
  • कुछ स्ट्रोकों के बाद कभी–कभी नया हेक्सा ब्लेड तनाव के कारण ढीला हो जाता है।
  • रॉट आयरन का मुख्य गुण इसकी भंगुरता होती है।
  • क्रॉस कट छैनी को केप छैनी कहते हैं।
  • सुग्राही या बैच बरमा मशीनों की चाल 3000 चक्कर प्रति मिनट से अधिक होती है।
  • टेम्परिंग पद्धति में धातु कि भंगुरता कम करके उसकी कठोरता बढ़ाई जाती है
  • ऐनल रिंच का प्रयोग खोखले सिर वाले या सॉकेट सिर वाले सैट स्क्रुओं को कसने या खोलने के लिए किया जाता है।
  • क्ला हथौड़े का प्रयोग बढ़ईगिरी व्यवसाय में होता है।
  • हेक्सा ब्लेड पर दाँतों की सेटिंग की जाती है, ताकि ज्यादा चौड़े और गहरे काट बनाये जा सकें।
  • रीमर का प्रयोग छेद बढ़ाने के लिए किया जाता है।
  • हेक्सा में ब्लेड की सेटिंग आगे की ओर करते हैं।
  • जॉब की फिनिश हुई सरफेसों को खराब होने से बचाने के लिए वाइस क्लेम्पों का प्रयोग करते हैं।
  • वी बेल्ट का नार्मल शीर्ष कोण 40 होता है।
  • लेथ पर कार्य करते समय कट की गहराई क्रॉस स्लाइड द्वारा ली जाती है।
  • सॉफ्ट सोल्डरिंग या ब्रेजिंग 450 पर की जाती है।
  • लेथ पर बैक गियर व्यवस्था से लेथ को कम स्पीड पर सेट किया जा सकता है।
  • धातु की हार्डनेस बढ़ने से ब्रिटलनैस का गुण बढ़ता है।
  • कास्टिंग, वेल्डिंग, ब्रेजिंग और सोल्डरिंग विधि में धातु के लिए फ्यूसीबिलिटी का गुण अत्यंत आवश्यक है।
  • मैलिएबिलिटी नामक गुण के कारण धातु को शीट के रूप में रोलिंग किया जा सकता है।
  • लेथ पर कटिंग चिप्स को ब्रुश के द्वारा साफ किया जाता है।
  • सबसे छोटा नम्बर साइज ड्रिल 0.343 मिमी. होता है।
  • सी.एन.सी. मशीन में जीरो ऑफसेट की माप लेते समय मशीन जोग मोड में होनी चाहिए।
  • फाइल की हार्डनैस 60 HRC होती है।
  • माइल्ड स्टील के जॉब पर ड्रिलिंग करते समय सोल्युबल आयल कुलेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • लेथ पर पतली प्लेट को पकड़ने के लिए मैग्नेटिक चक का प्रयोग किया जाता है।
  • लेथ की स्टेडी रेस्ट के पैड ब्रास के बनाये जाते हैं।
  • माइल्ड स्टील के वर्क पीस के होल में 10 मिमी. गहराई में टैब टूट गया है, इसे प्रत्यक्षत: ड्रिलिंग द्वारा बाहर निकाला जा सकता है।
  • लेथ लैड कास्ट आयरन की होती है।
  • सबसे बड़ा लैटर साइज ड्रिल 10.49 मिमी. होती है।
  • कोल्ड चीजल की लम्बाई 150–200 मिमी. होती है।
  • रेती चलाने के दो प्रकार क्रॉस फाइलिंग और ड्रा फाइलिंग होते हैं।
  • फीमेल जॉबों के अंदरूनी किनारों को रेतने के लिए पिलर फाइल का प्रयोग करते हैं।
  • शीट की मोटाई चेक करने के लिए वायर गेज का प्रयोग करते हैं।
  • गन मेटल कॉपर, जिंक तथा टिन का मिश्रण होता है।
  • धातु को गर्म तथा ठण्डा करके उसके गुणों को बदलना हीट ट्रीटमेंट कहलाता है।
  • ड्रिलिंग करते समय ड्रिल प्रत्येक चक्कर में जॉब के अन्दर जितना प्रवेश करता है उसे फ़ीड कहते हैं।
  • चाबी घाट बनाते समय श्रिंक रूल का प्रयोग करते हैं।
  • बेंच वाइस की साइज जास् की चौड़ाई से लेते हैं।
  • कास्ट आयरन का तात्पर्य ढलवा लोहा होता है।
  • कास्ट आयरन में 4% कार्बन होता है।
  • गन मेटल धातु का रंग पीला होता है।
  • लौह अयस्क में 40 से 65% लौह कण पाये जाते हैं।
  • मैगनेटाइट अयस्क में 70% लौह कण पाये जाते हैं।
  • नट के नीचे स्प्रिंग वाशर कम्पन्न के कारण नट को ढीला होने से बचाने के लिए लगाया जाता है।
  • कम्बीनेशन सेट के स्क्वायर हैड से 90 एवं 45 कोण की मार्किंग व चेकिंग की जाती है।
  • B.S.W. चूड़ी का कोण 55 होता है।
  • चौकोर बनाने का कार्य लेथ पर नहीं किया जा सकता है।
  • सिंगल कट दाँते 60 होते हैं।
  • डबल कट दाँते 70 होते हैं।
  • सर्फेस गेज द्वारा जॉब की ऊँचाई ज्ञात किया जाता है।
  • ड्रिल हाई स्पीड स्टील का बना होता है।
  • वर्नियर हाइट गेज की अल्पतमांक 1 मिमी. होती है।
  • पंखे में बाल बियरिंग का प्रयोग किया जाता है।
  • कपलिंग का कार्य एक शाफ्ट से दूसरी शाफ्ट पर भार स्थानांतरण होता है।
  • हाई स्पीड स्टील में कार्बन की मात्रा 0.6 से 0.75% होती है।
  • एल्युमिनियम को काटने के लिए फ्लैट चीजल का कटिंग एंगल 35 होता है।
  • मार्किंग करते समय 125 ग्राम के हैमर का प्रयोग किया जाता है।
  • ब्रास के बियरिंग का प्रयोग हल्के लोड के साथ धीमी स्पीड पर किया जाता है
  • चिपिंग करते समय चीजल के कटिंग ऐज के फेस और वर्टिकल सरफेस के साथ लम्बवत लाइन के बीच के कोण को रेक ऐंगल कहते हैं।
  • सभी परिस्थितियों में वी ब्लॉक के वी ग्रुव का कोण 90 होता है।
  • आयरन और कार्बन के मिश्रण को स्टील कहते हैं।
  • स्टैप्ट पुली से विभिन्न स्पीड प्राप्त की जा सकती है।
  • एक सामान्य नियम के अनुसार बियरिंग का तापमान 60 –70 से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • सही साइज का ड्रिल तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक कि ड्रिल का प्वाइंट सही ग्राइंड न किया गया हो।
  • चौरस चूड़ियों की गहराई 0.5 पिच होती है।
  • फोर्जिंग तब की जाती है जब धातु प्लास्टिक कंडीशन में होती है।
  • हैमर का आई होल अण्डाकार व सेंटर की ओर टेपर होता है, क्योकिं इससे हैंडल और वैज को स्थान मिल जाता है जिससे चोट करते समय हैमर हैंडल से बाहर नहीं निकलने पाता है।
  • जिग की बॉडी माइल्ड स्टील की बनी होती है।
  • ड्रिल का हेलिक्स ऐंगल कोण परिवर्तित किया जा सकता है।
  • लेथ पर कार्य करते समय क्रॉस स्लाइड द्वारा कट की गहराई की जाती है।
  • जॉब की फिनिश के समय फीड कम होनी चाहिए।
  • जब स्टील में कार्बन की मात्रा बढ़ती है तो स्टील का गलनांक कम हो जाता है
  • गैस कटिंग एक रासायनिक क्रिया है।
  • जब स्टील में कार्बन की मात्रा बढ़ती है तो स्टील का ज्वलनांक बढ़ जाता है।
  • कास्ट आयरन को वेल्ड करने में सुपर सिलिकन कास्ट आयरन धातु का राड प्रयोग किया जाता है।
  • रॉट आयरन को वेल्ड करते समय ताँबा की परत चढ़ी माइल्ड स्टील का प्रयोग किया जाता है।
  • स्टैनलेस स्टील के लिए फिलर रॉड स्टैनलेस स्टील का होता है।
  • मीट्रिक प्रणाली में उष्मा की इकाई कैलोरी होती है।
  • ब्रिटिश प्रणाली में उष्मा की इकाई B.Th.U होती है।
  • वेल्डिंग आक्सीजन–हाइड्रोजन फ्लेम लाभदायक होता है, क्योकि यह धातुओं को आक्साइड नहीं बनने देती है।
  • बुलबुले के रूप में बड़े छिद्र जो वैल्ड धातु में इसके ठोस रूप में आते समय रह गई गैसों के कारण पैदा होते हैं, उन्हें ब्लो होल कहते हैं।
  • ताँबे की वेल्डिंग के लिए फ्लक्स के रूप में कॉपर सिल्वर का प्रयोग किया जाता है।
  • पाइप वेल्डिंग रॉड पाइपों के जोड़ बनाने में काम आता है।
  • स्टील में सल्फर की मात्रा बढ़ाने से उसमे भंगुरता का गुण बढ़ जाता है।
  • कॉसा ताँबा तथा टिन का मिश्रण होता है।
  • फ्लेम जलाने के लिए ऐसिटिलीन गैस को पहले छोड़नी चाहिए।
  • गैस वेल्डिंग समाप्त करने पर ब्लो पाइप में ऐसिटिलीन गैस को पहले बंद करना चाहिए।
  • वेल्डिंग सिम्बल द्वारा जोड़ के प्रकार और वेल्ड फिनिश का पता चलता है।
  • लैप जोड़ में प्लेटों के सिरों को एक दूसरे के ऊपर चढ़ाकर रखा जाता है।
  • बट ज्वाइंट में प्लेटों के किनारे एक–दूसरे के साथ समतल पर रखे जाते हैं।
  • टी ज्वाइंट में प्लेट समकोण पर रहती है।
  • डी.सी. वेल्डिंग में आर्क बनाने के लिए कम से कम 40 वोल्ट की जरूरत होती है।
  • ए.सी. आर्क वेल्डिंग की दक्षता 85% होती है।
  • डी.सी. वेल्डिंग की दक्षता 65% होती है।
  • इलेक्ट्रोड होल्डर ताँबा का बना होता है।
  • गर्म जॉब पकड़ने के लिए टोंग का प्रयोग किया जाता है।
  • एक पौंड पानी के ताप को 1 बढ़ाने के लिए प्रयोग की गई उष्मा की मात्रा को B.T.U. कहते हैं।
  • एक पौंड पानी के ताप को 1 बढ़ाने के लिए प्रयोग की गई उष्मा की मात्रा को C.H.U. कहते हैं।
  • एक ग्राम पानी के ताप को 1 बढ़ाने के लिए प्रयोग की गई उष्मा की मात्रा को कैलोरी कहते हैं।
  • आर्क वेल्डिंग करते समय धातु के छोटे–छोटे कण इधर उधर विखर जाते हैं जिसे स्पैटर्स कहते हैं।
  • आर्क वेल्डिंग में बीड को चलाने के लिए 60 का कोण प्रयोग किया जाता है।
  • आर्क वेल्डिंग में इलेक्ट्रोड का व्यास 10 मिमी. से कम होना चाहिए।
  • वेल्डिंग करते समय इलेक्ट्रोड का सही कोण न होने से ओवर लैप नामक दोष पैदा होता है।
  • मूल धातु का सही न होने से वेल्ड में क्रैक दोष उत्पन्न होता है।
  • गैस शील्ड आर्क वेल्डिंग अपेक्षाकृत महंगी होती है।
  • हाइड्रोजन तथा कोल गैस सिलिण्डर का रंग लाल होता है।
  • आर्गन गैस सिलेण्डर का रंग नीला होता है।
  • नाइट्रोजन गैस सिलेण्डर का रंग भूरा तथा इसकी नेक काली होती है।
  • ऑक्सीजन तथा कार्बन डाई आक्साइड दोनों का सिलेण्डर काला होता है।
  • रिवेटिंग अर्द्धस्थायी जोड़ होता है।
  • फिलर मैटल का गलनांक जोड़ी जाने वाली धातु के गलनांक से कम होता है।
  • व्रैजिंग के लिए सुहागा को फ्लक्स के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • वेल्डिंग एक स्थायी जोड़ है।
  • गीयर हार्ड कार्बन स्टील का बना होता है।
  • टॉग्स माइल्ड स्टील का बना होता है।
  • लम्बाई के अनुसार रेतियां 100 से 400 मिमी तक होती हैं।
  • धातु की सतह पर कठोर धातुओं की परत चढ़ाने को हाई फेसिंग कहते हैं।
  • फ्यूजन वेल्डिंग में धातु की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • कास्ट आयरन, तांबा, ऐल्युमिनियम आदि को कार्बन आर्क विधि से जोड़ा जाता है।
  • सबमज्र्ड आर्क वेल्डिंग विधि द्वारा पाइपों को जोड़ा जाता है।
  • आक्सीजन की रबर हौज का रंग काला होता है।
  • ऐसीटिलीन हौज पाइप का रंग मैरून होता है।
  • वेल्डिंग के लिए आर्गन में 10–20% आक्सीजन मिलाई जाती है।
  • आक्सी–हाइड्रोजन फ्लेम का तापमान 2400 होता है।
  • आक्सी–ऐसीटिलीन फ्लेम का तापमान 3200 होता है।
  • हाइड्रोजन नीला रंग की फ्लेम बनाती है।
  • गैस कटिंग नोजल प्लेट की सतह से 5 मिमी. की ऊचाई पर रखनी चाहिए।
  • गैस कटिंग से पहले प्री-हीटिंग के लिए न्यूट्रल फ्लेम का प्रयोग किया जाता है
  • प्लेट की कटिंग से पहले प्री-हीटिंग के लिए 900 ताप रखा जाता है।
  • ऐसिटिलीन सिलेण्डर में गैस की मात्रा भार द्वारा ज्ञात किया जाता है।
  • पीतल की वेल्डिंग के लिए ऑक्सीडाइजिंग का प्रयोग किया जाता है।
  • पीतल की सोल्डरिंग के लिए जिंक क्लोराइड का फ्लक्स प्रयोग होता है।
  • कास्ट आयरन तथा स्टेनलेस स्टील की वेल्डिंग के लिए न्यूट्रल फ्लेम का प्रयोग करते हैं।
  • स्मूथ रेती में दाँतों की संख्या 50–60 होती है।
  • यदि दो धातुओं को रासायनिक विधि द्वारा मिलाया जाये तो उसे अलॉय कहते हैं।
  • सोल्डर का गलनांक कम करने के लिए उसमे विस्मथ को मिलाया जाता है।
  • सोल्डर के गलनांक को अधिक करने के लिए उसमे एण्टीमनी को मिलाया जाता है।
  • ब्रैजिंग स्थायी जोड़ होता है।
  • सोल्डरिंग का प्रयोग पतली सीटों को जोड़ने के लिए किया जाता है।
  • नट और बोल्ट का प्रयोग अस्थायी जोड़ बनाने के लिए किया जाता है।
  • रेत, नमक तथा सुहागा का प्रयोग फ्लक्स के रूप में किया जाता है।
  • आक्सीजन, नाइट्रोजन, आर्गन के सिलेण्डर के वाल्व में दाएँ हाथ की चूड़ी होती है।
  • सिलेण्डर में हाइड्रोजन गैस 14 किग्रा/वर्ग सेमी दाब पर भरी जाती है।
  • सिलेण्डर में आक्सीजन गैस 125 किग्रा/वर्ग सेमी दाब पर भरी जाती है।
  • ऐसिटिलीन में कार्बन तथा हाइड्रोजन तत्व होते हैं।
  • वायु मुख्य रूप से नाइट्रोजन तथा आक्सीजन का मिश्रण है।
  • गैस सिलेण्डर का प्रेशर तापमान बढ़ने के साथ बढ़ता है।
  • ऐसिटिलीन पानी में घुलनशील नहीं होती है।
  • यदि कटिंग करते समय कटिंग आक्सीजन की मात्रा बढ़ा दें, तो धातु ठण्डी होगी तथा गैस की खपत अधिक होगी।
  • गैस फ्लेम कटिंग द्वारा 0.5 से 2000 मिमी. मोटी माइल्ड स्टील को काटा जा सकता है।
  • एसिटिलीन का ऑक्सीजन के साथ जब पूर्ण दहन होता है, तो कार्बन डाई आक्साइड तथा जल पैदा होता है।
  • स्टैनलेस स्टील को गैस वेल्डिंग, इनर्ट गैस वैल्डिंग तथा ब्रेजिंग एवं सोल्डरिंग द्वारा जोड़ा जा सकता है।
  • वैल्डिंग मशीन को 65 से 100 वाट वोल्टेज की जरूरत होती है।
  • गैल्वेनाइजिंग की क्रिया में जस्ता की परत चढ़ाई जाती है।
  • 5 मिमी.से अधिक मोटाई वाले पाइपों की वेल्डिंग राइटवार्ड विधि द्वारा की जाती है।
  • पाइप की वल्डिंग में फिक्सड वैल्डिंग तथा रोलिंग विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • ट्यूब का साइज अंदरूनी ब्यास से लिया जाता है।
  • प्रथम स्टेज की ड्राइंग और प्रेशर द्वारा H तथा 2H ग्रेड की पेंसिल का प्रयोग होता है।
  • मैटल के तार अपने डक्टिलिटी के गुण के कारण खिचे जा सकते हैं।
  • पेट्रोल इंजन ऑटो साइकिल पर कार्य करता है।
  • डीजल इंजन डीजल साइकिल पर कार्य करता है।
  • मैटल का वह गुण जिससे वह काटी जाती है व आसानी से मशींड होती है, उसे मशीनेविलिटी कहते हैं।
  • डीजल इंजन में स्ट्रोक के दौरान केवल हवा सोखी जाती है।
  • डीजल इंजन में कम्प्रेसन अनुपात 1 : 1 से 22 : 4 होता है।
  • लाल, हरा और नीला प्राथमिक रंग हैं।
  • जब दो रंग मिलकर श्वेत प्रकाश उत्पन्न करते हैं तो उन्हे पूरक रंग कहते हैं।
  • रंग में थिनर का प्रयोग रंग को पतला बनाने के लिए करते हैं।
  • लोहे की सतह को जंग से बचाने के लिए गैल्वेनाइजिंग करते हैं।
  • लाल, पीला और नारंगी गर्म रंगों की श्रेणी में आता है।
  • लकड़ी के फर्निचर पर फ्रेंच पालिस करते हैं।
  • लोहे की सतह से पुराने पेंट को छुड़ाने के लिए कास्टिक और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का प्रयोग करते हैं।
  • स्प्रे करते समय दाएँ से बाएँ विधि का प्रयोग करना चाहिए।
  • लाल एवं हरा रंग मिलकर पीला रंग बनाते हैं।
  • लाल रंग का कागज हरी किरणों में काला दिखाई देगा।
  • पीला रंग का कागज लाल किरणों में काला दिखाई देगा।
  • 1 एकड़ = 4840 वर्ग गज होता है।
  • आरी के दाँत की सेटिंग सरपेन टाइप होती है।
  • वृक्ष की उम्र का पता एनुअल रिंग से चलता है।
  • खुरचनी के किनारे पर बनी धार को बर कहा जाता है।
  • पिक्चर ट्यूब की आंतरिक सतह फॉस्फेट यौगिक से आलेपित होती है।
  • द्विध्रुवीय एंटिना का लाभ अधिक संख्या में वर्धक जोड़ कर बढ़ाया जा सकता है।
  • भारत में PAL रंगीन प्रसारण प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
  • उच्च शक्ति वाले टी.वी. प्रेषित्र का अभिग्रहण क्षेत्र 120 किमी. होता है।
  • डेल्टा-गन पिक्चर-ट्यूब में तीन इलेक्ट्रान-गनों को एक-दूसरे से 120 के कोण पर रखा जाता है।
  • रेडियो तरंगों को पैदा करने तथा और उन्हे संकेत तरंग से मॉडुलेट करके अंतरिक्ष में फैलाने वाला उपकरण ट्रांसमीटर कहलाता है।
  • ट्रांसफार्मर की दक्षता 95 से 98% तक होती है।
  • अल्टरनेटर ए.सी. जनित करता है।
  • ट्रांजिस्टर में P होल्स को सूचित करता है।
  • किसी चित्र का प्रभाव मानव नेत्र की दृष्टि पटल पर सेकेंड तक होता है।
  • कम्प्यूटर पर रेखा खींचकर चित्र बनाने की कला को ग्राफिक्स कहते हैं।
  • राडार प्रणाली में रेडियो पल्सेज की चाल 3x108 मीटर/सेकेण्ड होती है।
  • पृथ्वी की वक्रता से सामानांतर संचरित होने वाली रेडियो तरंगों के द्वारा रेडियो संचार स्थापित कर सकने की अधिकतम दूरी 400 किमी.होती है।
  • रेडियो तरंगों का अंतरिक्ष में फैलना संचरण कहलाता है।
  • रेडियो तरंगों को परावर्तित करने वाली परत को आयनमण्डल कहते हैं।
  • डायोड में पिन के पास बिंदु कैथोड को दर्शाता है।
  • ट्रांसफार्मर स्वत: एवं पारस्परिक इंडक्शन दोनो सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • एक टी.वी. रिसीवर का पावर बटन ऑन करते ही घर का फ्यूज उड़ जाता है, इसका अर्थ है कि रेक्टिफायर डायोड शार्ट-सर्किट है।
  • पोलरिटी के बदलाव से सुरक्षा हेतु अधिकाधिक उपयोग में लायी जाने वाली विधि ब्रिज रेक्टिफायर है।
  • ट्रांजिस्टर का मुख्य कार्य प्रवर्द्धन करना होता है।
  • जेनरेटर, जो रोटर को डी.सी. सप्लाई देता है, उसे उत्तेजक कहते हैं।
  • विद्युत चुम्बक स्थायी तथा अस्थायी दोनों प्रकार के चुम्बक होते हैं।
  • एक ऐसा रेक्टिफायर सर्किट, जो रेक्टिफिकेशन के साथ-साथ ही दिए गए वोल्टेज को दोगुना भी कर देता है, उसे वोल्टेज डबलर कहते हैं।
  • LED डायोड का प्रयोग डिस्प्ले के लिए किया जाता है।
  • भारत में प्रयुक्त टी.वी.प्रसारण पद्धति में विडियो सिग्नल का आवृत्ति परास 0 से 6.5MHz होता है।
  • किसी पदार्थ की चुम्बकत्व ग्रहण करने की योग्यता उसकी सस्सेप्टिबिलेटी कहलाती है।
  • ट्रांसफार्मर एक स्थैतिक युक्ति है।
  • टी.वी. ट्रॉसमीटर में माइक्रोफोन का कार्य ध्वनि तरंगों को वैद्युतिक संकेतों में परिवर्तित करना होता है।
  • टी.वी. रिसीवर परिपथ में सुपरहैटरोडाइन सिद्धांत प्रयुक्त होता है।
  • दिष्टकारी के रूप में प्रयोग की जाने वाली युक्ति SCR है।
  • रेडियो तरंगों की आवृत्ति परास 20kHz से 3x108MHz होती है।
  • A.C. जनरेटर की प्रति किलोवाट निर्माण लागत D.C. जनरेटर से कम होती है।
  • किसी चित्र को चल-चित्र के रूप में प्रदर्शित करने के लिए न्यूनतम छायांकन 16 चित्र प्रति सेकेण्ड होना चाहिए।
  • यदि किसी ट्रॉन्जिस्टर का तापमान 80 से अधिक हो जाये, तो वह चालक की भाँति व्यवहार करने लगता है।
  • रंगीन पिक्चर ट्यूब में इलेक्ट्रान-गन की संख्या तीन होती है।
  • CCTV का अर्थ है–क्लोज्ड सर्किट टी.वी.।
  • एक लेकलांची सेल का वि.वा.बल (e.m.f.) 1.5 वोल्ट होता है।
  • तापमान बढ़ने से कार्बन का प्रतिरोध घटता है।
  • घरेलू रेफ्रिजरेटर वाष्प कम्प्रेशन रेफ्रिजरेशन सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • घरेलू रेफ्रिजरेटरों का सबसे ठण्डा भाग एवापोरेटर होता है।
  • घरेलू रेफ्रिजरेटरों का कण्डेंसर रेफ्रिजरेटरों के पीछे लगा होता है।
  • एवैपोरेटर में प्रवेश करने वाला द्रव रेफ्रिजरेंट निम्न दाब और तापमान दोनों पर होता है।
  • निम्न वोल्टेज के कारण मोटर चलते समय गर्म हो जाती है।
  • ओवर लोड के कारण मोटर धीमे चलती है।
  • एयर कण्डीशनर की क्षमता टर्न के द्वारा मापी जाती है।
  • एयर कण्डीशनर तथा रेफ्रिजरेटर में प्रयोग होने वाला रेफ्रिजरेंट फ्रिऑन होता है।
  • वाटर कूलर की क्षमता लीटर में मापी जाती है।
  • स्टोरेज टाइप के वाटर कूलर में एवापोरेटर क्वायल स्टोरेज टैंक के चारो ओर रखी होती है।
  • फ्रियान–22 रेफ्रिजरेंट का फ्रीजिंग तापमान सबसे कम होता है।
  • अमोनिया रेफ्रिजरेंट की गुप्त उष्मा अधिकतम होती है।
  • फ्रियान–22 रेफ्रिजरेंट काफी महंगा होता है।
  • किसी मोटर से बाहर जुड़ा कम्प्रेशर ओपन टाइप कम्प्रेशर कहलाता है।
  • रेफ्रिजरेटिंग प्रभाव की इकाइ K.cal/min होती है।
  • प्रशीतक एवैपोरेटर में उबलता है।
  • रेफ्रिजरेशन सिस्टम उष्मागतिकी के द्वितीय नियम पर कार्य करता है।
  • नमी हटाने के लिए डिहाइड्रेटर का प्रयोग किया जाता है।
  • रेफ्रिजरेंट की गुप्त उष्मा उच्च होनी चाहिए।
  • फ्रिऑन रेफ्रिजरेंट प्रयुक्त ट्यूबें ताँबे की बनाई जाती हैं।
  • फर्श से 2.5 मीटर की ऊचाई पर उपकरण लगाया जाता है।
  • रेफ्रिजरेटिंग पिस्टन में हैलाइट टार्च का प्रयोग लीकेज डिटेक्शन के लिए किया जाता है।
  • ड्राई कूलिंग क्वायल उपकरण के मध्य में लगाया जाता है।
  • एक टन रेफ्रिजरेशन 210 किलो जूल/मिनट के बराबर होता है।
  • एक टन कूलिंग कैपेसिटी में 12000 ब्रिटिस थर्मल यूनिट/घंटा होती है।
  • रेफ्रिजरेशन का एक टन 3000 कि. कैलोरी/घण्टा के बराबर होता है।
  • पैकेज टाइप सेंट्रल एयर कण्डीशनर की कैपेसिटी 100 टन होती है।
  • एक आदर्श रेफ्रीजरेंट का उबाल बिंदु निम्न तथा गुप्त उष्मा उच्च होनी चाहिए
  • शुष्क बर्फ द्रव CO2 को ठोस करके बनायी जाती है।
  • विद्युत से ऑपरेट होने वाले स्वीच को रिले कहते हैं।
  • मोटर में कैपिसीटर टॉर्क बढ़ाने के लिए लगाया जाता है।
  • प्राकृतिक वायु कंडेंसर घरेलू रेफ्रिजरेटरों में प्रयोग किया जाता है।
  • रेफ्रिजरेटर में एक्सपेंशन वाल्व का कार्य रेफ्रिजरेंट प्रवाह को नियंत्रित करना होता है।
  • रेफ्रिजरेटर की मोटर चलती है परंतु शीतलन अपर्याप्त है, सम्भावित दोष रेफ्रिजरेंट की मात्रा का कम होना होता है।
  • कम्प्रैसर का कार्य रेफ्रिजरेंट वेपर को इवैपोरेटर से खींचकर कंडेंसर में भेजना होता है।
  • हाई प्रेशर और उच्च तापमान के रेफ्रिजरेंट को कम्प्रेसर से कंडेंसर को भेजने वाली लाइन डिस्चार्ज लाइन कहलाती है।
  • लिक्विड लाइन का कार्य द्रव रेफ्रिजरेंट से एक्सपैंशन वाल्व की ओर जाना होता है।
  • कम्प्रेशर तीन प्रकार रैसीप्रोकेटिंग, रोटरी और सेंट्रीफ्युगल के होते हैं।
  • घूमने वाले भागों की उष्मा को ठण्डा करने के लिए लुब्रिकेंट का प्रयोग किया जाता है।
  • रेफ्रिजरेंट प्राइमरी और सेकेंडरी दो प्रकार के होते हैं।
  • अमोनिया रेफ्रिजरेंट स्टील तथा लोहा के बर्तन में रखा जाता है।
  • फ्रीऑन–12 का पूरा नाम डाइक्लोरो डाइफ्लोरो मिथेन है।
  • अमोनिया वेपर को शुष्क करने वाला भाग रेक्टीफायर कहलाता है।
  • रेफ्रिजरेंट के बहाव की दर को ठीक अनुपात में नियंत्रित करने वाले को एक्सपैंशन वाल्व कहते हैं।
  • रेफ्रिजरेटर ए.सी. पॉवर सिस्टम पर कार्य करता है।
  • वायुमण्डलीय दाब से कम दाब को वैक्युम प्रेशर कहते हैं।
  • एयर कंडीशनर में डक्ट का कार्य वायु का विभाजन करना होता है।
  • वेपोराइजेशन का कार्य उष्मा की मात्रा को अवशोषित करना होता है।
  • डिस्चार्ज लाइन ताँबे की बनी होती है।
  • कंडेंसर का प्रयोग एयर व वॉटर कूल्ड टाइप में किया जाता है।
  • सेकेंडरी रेफ्रिजरेंट व्राइन होता है।
  • इलेक्ट्रानिक डिटेक्टर लीकेज फ्लेम के रंग परिवर्तन से देखा जाता है।
  • कम्प्रेशर में तेल अधिक होने पर कैपिसिटी कम हो जाती है।
  • कूलिंग क्वायल रेफ्रिजरेशन सिस्टम में वस्तु को ठण्डा करता है।
  • कूलिंग क्वायल पर बर्फ जमने से इंसुलेटर बन जाता है।
  • सेकेंडरी रेफ्रिजरेंट प्राइमरी रेफ्रिजरेंट को पाइपिंग करने में सहायक होता है।
  • आद्रता नापने वाला यंत्र स्लिंज साइक्रोमीटर होता है।
  • मानव आराम के लिए अच्छा तपमान 21 से 27 होता है।
  • इवेपोरेटर गुप्त उष्मा को शोषित करता है।
  • अधिक अमोनिया मिलाने पर घोल का भार कम हो जाता है।
  • अमोनिया पानी में बहुत अधिक मात्रा में घुलनशील है।
  • एयर कंडीशनर के चारो ओर 3 मीटर रिक्त स्थान होना चाहिए।
  • एलिमिनेटर वायु की अशुद्धियाँ दूर करता है।
  • कम दाब चिलर में रेसिप्रोकेटिंग कॉम्प्रेशर प्रयुक्त होता है।
  • सुपर हीटिंग के प्रभाव से कम्प्रेशर का कार्य बढ़ जाता है।
  • भिन्न-भिन्न प्रकार की गैस की गंध को समाप्त करने के लिए कार्बन फिल्टर का प्रयोग किया जाता है।
  • कंडेंसर में पानी के बहाव की दिशा और रेफ्रिजरेंट के बहाव की दिशा एक-दूसरे के विपरीत होती है।
  • अशुद्ध वायु को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाने के लिए डैम्पर प्रयोग किया जाता है।
  • शोषित विधि में अमोनिया रेफ्रिजरेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • ब्राइन का प्राइमरी रेफ्रिजरेंट अमोनिया होता है।
  • थर्मल वाल्व लिक्विड लाइन में लगाया जाता है।
  • पदार्थ के अधिकांश जीवाणु हिमांक पर मर जाते हैं।
  • पानी को ऊपर उठाने के लिए सेंट्रिफ्यूगल पम्प का प्रयोग करते हैं।
  • एयर वाशर का मुख्य कार्य धूल, धुआँ बैक्टिरिया को हटाना होता है।
  • सब कूलिंग के प्रभाव से रेफ्रिजरेशन की पॉवर खपत कम हो जाती है।
  • हैलाइट टार्च से फ्रीऑन-12 रैफ्रीजरेंट का लीकेज टेस्ट किया जाता है।
  • छत से वायु सप्लाई करने के लिए सीलिंग डिफ्यूजर का प्रयोग किया जाता है
  • एक्सपैंशन वाल्व रेफ्रिजरेंट को कंट्रोल करता है।
  • सर्दियों में आपेक्षिक आर्द्रता 40% होती है।
  • पैकेज यूनिट में सेफ्टी वाल्व प्रेशर, सीमा से अधिक होने को रोकता है।
  • पारे का क्वथनांक 357 होता है।
  • मानव विश्राम हेतु आपेक्षिक आर्द्रता का मान 45 से 50% होता है।
  • आइस कैन से पानी की वायु ब्लोअर मशीन से बाहर निकलती है।
  • आउट साइड कैलीपर पाइप की मोटाई मापने के काम आता है।
  • कोल्डस्टोरेज में रैफ्रीजरेंट के रूप में ब्रान का प्रयोग होता है।
  • एक बार यूनिट के ऑफ हो जाने पर पुन: 2 मिनट बाद ऑन करना चाहिए।
  • रूम एयर कण्डीशनर खिड़की या दरवाजे के ऊपर लगाया जाना चाहिए।
  • फलों के लिए आपेक्षिक आर्द्रता 85% होनी चाहिए।
  • कम्प्रेशर में 4 सिलेण्डर होरीजॉन्टली लगे होते हैं।
  • प्रशीतक एवापोरेटर में उबलता है।
  • वाष्प कम्प्रेशन रेफ्रिजरेटर की तुलना में एक वायु रेफ्रिजरेटर को चलाने के लिए 4 गुनी अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है।
  • फ्रोजन स्टोरेज का तापमान –17.8 होता है।
  • आइस कैन का साइज आयताकार होता है।
  • प्राकृतिक वायु कंडेंसर की कूलिंग क्षमता कम होती है।
  • रूम एयर कंडीशनर वायु की आर्द्रता तथा तापमान को नियंत्रित करता है।
  • शोषण विधि में रेफ्रीजरेंट के रूप में अमोनिया का प्रयोग किया जाता है।
  • जब वायु को गर्म करते हैं तो सम्बंधित आर्द्रता पर कोई अंतर नहीं पड़ता है।
  • एवैपोरेटर गुप्त उष्मा को शोषित करता है।
  • कैपिलरी ट्यूब के इनलेट पर फिल्टर धूल के कण हटाने के लिए लगाया जाता है।
  • ईंधन के आधार पर ऑटोमोबाइल गाड़ियाँ दो प्रकार की, पेट्रोल गाड़ियाँ तथा डीजल गाड़ियाँ होती हैं।
  • ऑटोमोबाइल स्वत: चलने वाली गाड़ी को कहते हैं।
  • अंतर्दहन इंजन में फ्यूल का कम्बसन सिलिंडर के अंदर होता है।
  • बहिर्दहन इंजन में सिंगल एक्टिंग तथा डबल एक्टिंग दोनों ही होता है।
  • अंतर्दहन इंजन में कंडेंसर की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
  • टू-स्ट्रोक साइकिल इंजन की मैकेनिकल क्षमता अधिक होती है।
  • पेट्रोल इंजन में स्पार्क प्लग होता है जो स्पार्किंग करता है।
  • इंजन के फ्यूल सप्लाई सिस्टम का मुख्य भाग कारबूरेटर होता है।
  • हवा-ईंधन का मिश्रण जलने से सिलिंडर के अंदर का तापक्रम 2500 तक हो जाता है।
  • वाटर कूलिंग सिस्टम में पानी के बहाव को नियंत्रित करने के लिए थर्मोस्टेट नामक वाल्व लगा होता है।
  • क्लच घर्षण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • ब्रेक-शू लोहे की पत्तियों से बनता है।
  • इंजन एक ऐसा यंत्र है जो हीट एनर्जी को मैकेनिकल एनर्जी में परिवर्तित करता है।
  • मोटर गाड़ियों में लैड एसिड बैटरी का प्रयोग किया जाता है।
  • लैड एसिड बैटरियों में प्रयुक्त इलेक्ट्रोलाइट में सल्फ्यूरिक एसिड 40% होता है।
  • लैड एसिड बैटरियों में प्रयुक्त इलेक्ट्रोलाइट में डिस्टिल्ड वाटर 60% होता है
  • कट आउट रिले को सर्किट ब्रेकर कहा जाता है।
  • स्पार्क प्लग सिलिंडर के शीर्ष पर लगा होता है।
  • कलर कोड में हॉर्न, कंट्रोल बाक्स, एमीटर, इग्नीशन स्विच के लिए भूरे रंग का प्रयोग करते हैं।
  • क्लच स्लिप करेगा तो फ्यूल की खपत अधिक होगी।
  • पिस्टन का मुख्य कार्य इंजन के स्ट्रोक पूरे करना होता है।
  • अंतर्दहन इंजन की पॉवर, बहिर्दहन इंजन की तुलना में कम होती है।
  • फोर स्ट्रोक साइकिल इंजन में पॉवर कम उत्पन्न होती है।
  • पेट्रोल इंजन में कार्बूरेटर होना जरूरी होता है।
  • 1 H.P. = 75m-kg/sec = 4500m-kg/min
  • कार्बूरेटर हवा तथा पेट्रोल को सही अनुपात में मिला कर दहनशील मिश्रण सप्लाई करता है। यह पेट्रोल को महीन कणों में तोड़ता है। यह इंजन को सभी परिस्थितियों में आवश्यकतानुसार हवा तथा पेट्रोल का मिश्रण सप्लाई करता है।
  • एयर कूलिंग की तुलना में वाटर कुलिंग की दक्षता अधिक होती है।
  • एक टायर पर 8.25 20 10 PR लिखा है। इसका अर्थ है–टायर की चौड़ाई या मोटाई, शोल्डर से शोल्डर तक 8.25 है। वीड वृत्त का व्यास, जोकि रिम पर फ़िट होता है 20 है। PR कम्पनी के नाम को सूचित करता है,10 PR का अर्थ है कि टायर में 10 प्लाई की ताकत है।
  • 6 वोल्ट बैट्री में प्रत्येक सेल में 15, 17, 19, 27 प्लेटें रहती हैं।
  • 12 वोल्ट बैट्री में प्रत्येक सेल में 7, 9, 11, 17 प्लेटें रहती हैं।
  • वह वेग जिस पर विशिष्ट ऊर्जा न्यूनतम होती है उसे क्रांतिक वेग कहते हैं।
  • जिस लोलक की प्रति सेकेंड एक वीट होती है, उसे सेकेंड लोलक कहते हैं।
  • फ्लैट वेल्ट ड्राइव की तुलना में V-वेल्ट ड्राइव की दक्षता अधिक होती है।
  • वेल्ट और पुली के बीच की आपेक्षिक गति स्लिप कहलाती है।
  • एक तैरती हुई वस्तु अस्थाई संतुलन में होगी, यदि गुरूत्व केंद्र आप्लव केंद्र के ऊपर होगा।
  • पानी में डूबी वस्तु स्थायी संतुलन में होगी यदि गुरूत्व केंद्र उत्प्लावकता केंद्र के नीचे हो।
  • लेजर बीम लाल दिखाई देती है।
  • ब्रेक इवन बिंदु वह बिक्री है, जहाँ कोई लाभ या हानि नहीं होता है।
  • मटके में जल का ठण्डा रहना वाष्प प्रशीतन का उदाहरण है।
  • उष्मीय तरंग की गति प्रकाश तरंग से कम होती है।
  • रिवेट छिद्र केंद्र से प्लेट के किनारे तक की न्यूनतम दूरी 1.5d होती है।
  • वात्या भट्टी द्वारा कच्चा लोहा प्राप्त होता है।
  • मोटरगाड़ी के रेडियेटर को ठण्डा करने के लिए पानी का व्यवहार किया जाता है,क्योंकि पानी की विशिष्ट उष्मा अधिक होती है।
  • वाष्प के द्रवण (संघनन) में उष्मा का उत्सर्जन होता है।
  • जल सभी तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव तथा गैस में एक ही ताप 273.16K पर रहते हैं।
  • जल सभी तीनों अवस्थाओं में एक ही दाब 0.46 सेमी. पर रहते हैं।
  • मीट्रिक प्रणाली में उष्मा की इकाई K.cal होती है।
  • पत्थर का कोयला विटुमिनस से बनाया जाता है।
  • एक किलो कार्बन के पूर्णत: दहन के लिए 8/3 किलो ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
  • प्राकृतिक यूरेनियम मुख्यत: तीन आइसोटोप का मिश्रण होता है।
  • एक किलो यूरेनियम से 3000 टन कोयले के समतुल्य ऊर्जा उत्पन्न होती है
  • नाभिकीय शक्ति संयंत्र में प्रयोग होने वाला कूलेंट भारी जल होता है।
  • जब किसी वस्तु को विषुवत रेखा से ध्रुओं की ओर ले जाया जाता है तो उसका भार बढ़ता है।
  • एक मीटर लोलक का आवर्तकाल लगभग 2 सेकेंड होता है।
  • यदि किसी लोलक की लम्बाई दोगुनी कर दी जाए तो उसका आवर्तकाल गुना हो जायेगा।
  • यदि किसी लोलक को पहाड़ की चोटी पर ले जाया जाये तो उसका आवर्तकाल बढ़ेगा।
  • यदि झूले पर बैठी लड़की खड़ी हो जाये, तो झूले का आवर्तकाल घट जायेगा
  • सेकेंड लोलक का आवर्तकाल 2 सेकेंड होता है।
  • खिंची हुई कमानी द्वारा लगाये गये बल को प्रत्यानयन बल कहते हैं।
  • वस्तु की स्थितिज ऊर्जा वस्तु की मात्रा पर निर्भर करता है।
  • दो बलों के परिणामी का मान अधिकतम होगा, जब उन बलों के बीच का कोण 0 होगा।
  • किसी गैस का ताप बढ़ने से उसकी श्यानता बढ़ती है।
  • पिस्टन पर लगी संपीडन रिंगों की न्यूनतम संख्या दो होती है।
  • पेट्रोल इंजन की तुलना में डीजल इंजन की विशिष्ट ईंधन खपत कम होती है।
  • दाब में बढ़ोतरी से वाष्पीकरण की गुप्त उष्मा घटती है।
  • भाप का क्रांतिक तापमान 374.15 होता है।
  • भाप इंजन की उष्मीय दक्षता लगभग 25% होती है।
  • सरल आवर्त गति में स्थितिज ऊर्जा दोनों छोरों पर महत्तम होती है।
  • लोहे का गलनांक 1539 होता है।
  • ढलवा लोहे में कार्बन की मात्रा 2 से 3.5% तक होती है।
  • स्पात में कार्बन की अधिकतम मात्रा 1.5% तक होती है।
  • कट की गहराई बढ़ने से टूल का कटिंग बल बढ़ता है।
  • हीलियम का प्रयोग नाभिकीय शक्ति संयंत्र में कूलेंट के रूप में किया जाता है।
  • नाभिकीय शक्ति संयंत्र में प्रयोग होनेवाला कूलएंट ऐसा होना चाहिए जिसमे न्यूट्रॉन अवशोषित करने प्रकृति जितनी सम्भव हो कम होनी चाहिए।
  • एक निश्चित सीमा तक के बल के लिए क्वार्ट्ज को पूर्ण प्रयास्थ माना जाता है
  • जड़त्व, बल और पृष्ठ तनाव बल के अनुपात का वर्गमूल वेबर संख्या कहलाता है।
  • I.C. इंजन उष्मागतिकी के प्रथम नियम पर कार्य करता है।
  • द्रव नोदक रॉकेट में प्रति शक्ति आउटपुट आपेक्षिक ईंधन खपत अधिक होती है।
  • रॉकेट इंजन को जब निर्वात् में प्रचलित किया जाता है, तो इसके द्वारा उत्पन्न क्षेप अधिकतम होता है।
  • हीटर द्वारा कमरे का तापन मुक्त परिवहन का उदाहरण है।
  • टेपर पिन के लिए मानक टेपर 48 में 1 होता है।
  • क्यूपला में पिघलाकर कच्चे लोहे को ढलवॉ लोहे में परिवर्तित किया जाता है
  • जिप्सम सीमेंट में जलने के पश्चात् मिलाया जाता है।
  • सीमेंट में चूने की मात्रा 60 से 65% होती है।
  • राष्ट्रीय राजमार्ग व राज्य महामार्गों पर गति सीमा व बहुत धीमी गति अनिवार्य संकेत 120 मी. पूर्व लगाये जाते हैं।
  • रासायनिक दृष्टि से प्लास्टिक ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन, फॉस्फोरस के यौगिक हैं।
  • जो भार अस्थायी रूप से रहता है, उसे चल भार कहते हैं।
  • लम्बाई के सरल दोलन का आवर्त-काल होता है।
  • किसी मशीन से किया गया कार्य एवं उस पर लगाये गये बल का अनुपात लीवर लाभ कहलाता है।
  • यदि दो संगामी बल 20 किग्रा. व 15 किग्रा. समकोण पर कार्य करते हों,तो उनके परिणामी बल R का मान 25 किग्रा. होगा।
  • जिन बलों के सेट का परिणामी बल शून्य हो वह साम्यावस्था बल (संतुलित बल) कहलाता है।
  • जिन बलों की कार्य रेखा एक ही रेखा पर होती है उन्हे समरेख बल कहते हैं।
  • जल विद्युत पॉवर अन्य स्रोतों जैसे कोयले आदि की तुलना में सस्ती होती है
  • भारतीय रेल में वी.जी.ट्रैक के लिए रेलों की मानक लम्बाई 12.8 मीटर होती है।
  • भारतीय रेल में एम.जी.ट्रैक के लिए रेलों की मानक लम्बाई 11.89 मीटर होती है।
  • I.S.I. के अनुसार ईंट का मानक आकार 19 x 9 x 9 सेमी. होनी चाहिए।
  • शुद्ध चुने में जब पानी डाला जाता है, तो वह कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड बनाता है।
  • दाबमापियों में प्राय: पारा प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह बहुत भारी होता है।
  • साईकिल के पहिए की गति घूर्णन एवं स्थानांतरीय गति कहलाती है।
  • M.K.S. प्रणाली में एक अश्वशक्ति = 75 किग्रा. मीटर प्रति सेकेंड होता है।
  • यदि किसी M संहित की बंदूक से m संहित की गोली V वेग से निकलती है, तो बंदूक का वेग होगा।
  • एक डिग्री ढाल का अर्थ 57.3 मीटर में 1 मीटर का उठान या गिरावट होता है
  • सड़क पर स्कंध या पटरी की चौड़ाई 1.2 मीटर से 1.8 मीटर होनी चाहिए।
  • सड़क की अपेक्षा रेलवे पथ का कर्षण प्रतिरोध कम होता है।
  • बड़ी लाइन ट्रैक में पटरी की न्यूनतम लम्बाई 3.6 मीटर उपयोग की जा सकती है।
  • खाई में मृदा भराई करते समय प्राय: प्रत्येक परत की मोटाई 20 से 50 सेमी. होनी चाहिए।
  • लकड़ी के स्लीपरों की लाभदायक आयु 12 से 15 साल होती है।
  • ताप परिवर्तन के कारण रेल प्रसार के लिए प्राय: दो पटरियों के बीच 6 से 8 मिमी. अंतराल होता है।
  • भारत में बड़ी लाइन के लिए पटरी की मानक लम्बाई 13.0 मी. मानी जाती है
  • कंक्रीट की स्लीपरों की लाभदायक आयु 40 से 50 साल होती है।
  • किसी 30 सेमी. व्यास वाले पाइप में पानी का प्रवाह वेग 100 मी./से. हो, तो इस पाइप का व्यास 15 सेमी. कर दिया जाने पर प्रवाह का वेग 400 मी./से. होगा।
  • भारतीय मानक के अनुसार बड़ी लाइन में गिट्टी की गहराई 20 से 25 सेमी होनी चाहिए।
  • द्रवीय टरबाइन वह युक्ति है, जो जल ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
  • पटरी का 20% भार कम हो जाने पर उसे किसी भी लाइन पर उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • गहरे कुएँ से पानी उठाने के लिए वायु चालक पम्प उपयुक्त होता है।
  • यदि दो बल किसी बिंदु पर इस प्रकार कार्य करें कि यदि उनमें से एक की दिशा उल्टी कर दी जाये, तो परिणामी बल का मान 90 बदल जाता है, तो ये बल समान मात्रा में होंगे।
  • पानी में सकल घुले ठोस कणों की मात्रा 1200PPM से अधिक हो जाये तो वह पानी सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं होगा।
  • पानी के लड़ाकू जहाजों के आप्लव केंद्र की ऊँचाई 1 से 1.5 मी होती है।
  • मृदा की धारक क्षमता पाद की आकृति से प्रभावित होती है।
  • बड़ी लाइन में उपयोग की जाने वाली पटरी का भार प्राय: 55 किग्रा प्रति मीटर होता है।
  • भारतीय मानक के अनुसार पटरी की निचली परत के तल पर गिट्टी परिच्छेद की चौड़ाई 4.6 मीटर होनी चाहिए।
  • बड़ी लाइन के स्लीपर की चौड़ाई 25 सेमी होती है।
  • यदि W भार का कोई पिंड r त्रिज्या के वृत्ताकार पथ में v वेग से घुमाया जाये, तो अपकेंद्रीय बल का मान W.v2/g.r होगा।
  • चलती हुई ट्रेन में बैठे व्यक्ति में गतिज और स्थितिज दोनों ऊर्जा होती हैं।
  • विद्युतशीलता का मात्रक फैराड/मीटर होता है।
  • परिपथ का वह गुण जो विद्युतीय ऊर्जा को ताप में बदलता है, प्रतिरोध कहलाता है।
  • चुम्बकीय प्रेरण का मात्रक टेसला होता है।
  • चालक की लम्बाई बढ़ने से प्रतिरोध बढ़ता है।
  • चालक के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल बढ़ने से प्रतिरोध घटता है।
  • 1 किलोवाट-घण्टा 860 किलो कैलोरी के बराबर होताहै।
  • दो प्रत्यावर्ती परिमाण सदिश विधि से जोड़े जाते हैं।
  • विद्युत भट्टी की दक्षता 75 से 100% तक होती है।
  • वाटर कूलर में प्रयुक्त रेफ्रिजरेंट मिथाइल क्लोराइड होता है।
  • इलेक्ट्रोप्लेटिंग फैराडे के इलेक्ट्रोलाइसिस नियमों पर कार्य करती है।
  • जॉब की सतह से धूल और ग्रिस हटाने के लिए जॉब को एल्कली से धोया जाता है।
  • लोकोमोटिव को चलाने के लिए डी.सी.श्रेणी मोटर की सिफारिश की जाती है
  • यदि मल्टीमीटर की बैट्री कमजोर हो तो यह रीडिंग कम देगा।
  • इंटीग्रेटेड परिपथ प्रकार मल्टीमीटर अधिक संवेदनशील और शुद्ध होता है।
  • मल्टीमीटर का उपयोग A.C.तथा D.C.दोनों का परिमाण मापने के लिए किया जाता है।
  • मल्टीमीटर का मीटर D.C. सप्लाई पर कार्य करता है।
  • ऊर्जा मीटर की गति बेकिंग चुम्बक द्वारा नियंत्रित की जाती है।
  • डायोड का अग्रिम प्रतिरोध छोटा होता है।
  • सोडियम लैम्प 45 वॉट के बनाये जाते हैं।
  • SCR एक प्रकार का ट्रांजिस्टर होता है।
  • SWG का तात्पर्य स्टैंडर्ड वायर गेज होता है।
  • तापमान बढ़ने से इंसुलेशन प्रतिरोध घटता है।
  • प्रदीप्ति की माप के लिए फोटोमीटर का उपयोग किया जाता है।
  • A.C.को D.C. में बदलने की प्रक्रिया को परिशोधन कहते हैं।
  • ट्रॉजिस्टर में रंगीन बिंदु कलेक्टर को दर्शाता है।
  • बैट्री के डिस्चार्ज होने के बाद प्लेट का रंग भूरा हो जाता है।
  • किसी चालक में विद्युत धारा के प्रवाह का कारण विद्युत विभव में अंतर होता है।
  • स्थिर विद्युत घर्षण द्वारा उत्पन्न की जाती है।
  • आवेशित कंडेंसर की गतिज ऊर्जा होती है।
  • 1Ω, 2Ω और 3Ω के क्रमश: तीन प्रतिरोधों को 6 वोल्ट की बैटरी से श्रेणी क्रम में जोड़ा जाए तो कुल प्रतिरोध 6Ω होगा।
  • 12 वोल्ट की सप्लाई के साथ 4Ω और 6Ω के दो प्रतिरोधों को समांतर जोड़ा जाता है, तो परिपथ का कुल प्रतिरोध 2.4Ω होगा।
  • 8µF, 16µF, 32µF तथा 64µF के चार कैपिसिटरों के समानांतर क्रम में जुड़े होने पर परिणामी कैपेसिटी 120µF होगी।
  • समांतर परिपथ की दो शाखाओं में I1 और I2 धाराएँ हैं, तो कुल धारा I1 तथा I2 का सदिश योग होगी।
  • ट्रांसफॉर्मर की रेटिंग इकाई KVA होती है।
  • ट्रांसफॉर्मर दक्षता अधिक होती है, क्योंकि इसमें घर्षण और विंडेज क्षतियाँ नहीं होती हैं।
  • ट्रांसफॉर्मर को समांतर में चलाने के लिए इम्पीडैंस की प्रतिशतता समान होनी चाहिए।
  • जब अल्टरनेटर का लोड हटा दिया जाता है, टर्मिनल वोल्टेज बढ़ेगा।
  • दो अल्टरनेटरों को समांतर में चलाने के लिए वोल्टेज समान होने चाहिए।
  • जब दो अल्टरनेटर समांतर में चल रहे हों तो यदि एक अल्टरनेटर का प्राइम मूवर डिस्कनेक्ट कर दिया जाये, तो अल्टरनेटर सिंक्रोनस मोटर की तरह चलेगा।
  • सिंगल फेज यूनीवर्सल मोटर को A.C.तथा D.C.दोनों पर प्रयोग किया जा सकता है।
  • सिंक्रोनस मोटर A.C. 3 फेज और D.C. सप्लाई पर चलती है।
  • D.C. जनरेटर फैराडे के विद्युत चुम्बकीय इंडक्सन नियमों पर कार्य करती है
  • याँत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते समय लौह क्षति, घर्षण व विडेज क्षति तथा ताम्र क्षति होती है।
  • D.C. शंट मोटर आर्मेचर टर्मिनल के कनेक्शन आपस में बदल दिए जाएँ, तो आर्मेचर विपरीत दिशा में चलेगा।
  • D.C. मोटर का फ्लक्स और लोड धारा स्थिर रखे जाते हैं। यदि सप्लाई वोल्टेज 20% बढ़ जाती है, तो इसकी गति 20% बढ़ जायेगी।
  • सिरीज मोटर में शुरू में कोई यांत्रिक लोड जरूर होना चाहिए अन्यथा इनमें अत्यधिक गति पैदा हो जायेगी और यह अपने आप को क्षतिग्रस्त कर लेगा।
  • 40 वाट ट्यूब की लम्बाई 1.2 मीटर होती है।
  • निर्वात लैम्प की तुलना में गैस भरे लैम्प की दक्षता दो गुनी होती है।
  • सप्लाई में बाधा पड़ने के बाद, सोडियम विसर्जन लैम्प 3 से 5 मिनट बाद स्टार्ट होगा।
  • ताप दिप्त लैम्प की दक्षता 30 वाट होती है।
  • शीटों की वेल्डिंग के लिए सीम वेल्डिंग की सिफारिश की जाती है।
  • जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसमें उष्मा उत्पन्न होती है।
  • नाइक्रोम की तार का गलनांक 13080 होता है।
  • एक्सपैन्नशन वाल्व तापमान को नियंत्रित करता है, दाब को नियंत्रित करता है तथा रेफ्रिजरेंट को प्रवाहित करता है।
  • फ्रीजर के आस-पास बहुत अधिक फ्रस्टिंग का कारण गर्म खाद्य पदार्थों का संचयन होता है।
  • अगर मोटर चलती रहती है चाहे रेफ्रिजरेटर के अंदर तापमान बहुत निम्न हो, इसका अर्थ है कि थर्मोस्टेट में दोष है।
  • एयर कण्डीशनर पर लगा सेंट्रीफ्यूगल ब्लोअर कूलर के आंतरिक भाग से वायु को खींचता है।
  • तात्कालिक प्रकार का वाटर कूलर वहाँ प्रयोग किया जाता है, जहाँ पानी की सप्लाई 24 घण्टे उपलब्ध हो।
  • कंडेंसर क्वायल से उष्मा स्थानांतरण के लिए प्रयुक्त फैन मोटर एक गति वाली होती है।
  • धातु के निगेटिव टर्मिनल पर कैथोड जुड़ा होता है।
  • ऐसे आवेश युक्त कण जिन पर पाजिटिव चार्ज होता है उसे कैटायन कहते हैं।
  • दो विद्युत बल्ब जिनके प्रतिरोध का अनुपात 1 : 2 है, स्थिर विभवांतर पर किसी स्रोत के साथ समानांतर क्रम में जुड़े हैं। दोनों में उत्पन्न शक्ति का अनुपात 2 : 1 होगा।
  • इलेक्ट्रोप्लेटिंग, धातु की सतह को जंग से बचाती है।
  • 20 kV तक के लिए लकड़ी के खम्भे प्रयोग किये जा सकते हैं।
  • वोल्टमीटर की तुलना में अमीटर की लागत कम होती है।
  • प्रायः उपयोग किये जाने वाले वाटमीटर, डायनेमोमीटर प्रकार के होते हैं।
  • डायनेमोमीटर प्रकार के वाटमीटर A.C. व D.C. दोनों पर प्रयुक्त होते हैं।
  • फैराडे, आवेश का मात्रक है। 1 फैराडे = 96500 कूलॉम होता है।

इन्हें भी देखें

[सम्पादन]

आईटीआई ट्रेड ज्ञान (RRB Loco Pilot Machinist Shop Theory)