आधुनिक चिंतन और साहित्य/नवजागरण

विकिपुस्तक से

भारतीय नवजागरण का व्यापक परिप्रेक्ष्य[सम्पादन]

प्लासी के युद्ध (1757 ई.) में भारतीयों की पराजय के साथ ही विदेशी शासन को मजबूती मिली। साथ ही आधुनिकता की चेतना का भी विकास हुआ। ईसाई पादरियों के प्रलोभनवश धर्म-परिवर्तन किया गया। अंग्रेज़ी भाषा तथा साहित्य को महान बताकर अंग्रेजों ने भारतीय सांस्कृतिक विरासत को खोखला और दकियानूसी ठहराया। भारतीयों के मन में भारतीय संस्कृति के प्रति हीन-भावना को उत्पन्न किया गया।[१]

सन् 1800 ई. को कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की गई। 1825 ई. को दिल्ली में ओल्ड दिल्ली कॉलेज, 1864 को लाहौर में ओरिएंटल कॉलेज आदि शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित की गईं। इन संस्थानों में मिलने वाली पाश्चात्य शिक्षा से भारतीयों की चेतना अत्यधिक प्रभावित हुई, जिससे नवजागरण को दिशा मिली। 1820 में आई नई शिक्षा-पद्धति ने जिस चेतना का विकास किया उसके कारण प्राचीन रूढ़ियों तथा परंपराओं को तोड़ा गया। पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा लेखकों ने पाठकों को देश-दशा से परिचित कराया तथा स्त्री शिक्षा पर भी जोर दिया। नवजागरण के कारणों का उल्लेख करते हुए शांतिस्वरूप गुप्त अपने लेख-'साहित्यिक पुनर्जागरण' में लिखते हैं कि- "...नवजागरण का कारण केवल अँग्रेज़ी शिक्षा, साहित्य और पाश्चात्य विचारधारा न थे, जनता का दुःख-दर्द और उसकी पीड़ा से क्षुब्ध साहित्यकार भी थे जिन्होंने प्रलोभन ठुकराकर, आतंक से अडिग रह देश और जनता की वेदना को वाणी दी और उससे मुक्त होने के उपाय भी बताए।"[२] नवजागरण की चेतना के प्रभाववश विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की बात की गई। सरकार, कचहरी, प्रेस-एक्ट की निंदा की गई। परंपरागत काव्य-रूढ़ियों, विषयों, काव्य-भाषा को छोड़कर नए विषयों को अपनाया गया। नवजागरण की लहर बंगाल में 1850 तथा कश्मीर में 1930 के आसपास देखने को मिलती है। असमी तथा कन्नड़ में नवजागरण की प्रवृत्ति बांग्ला साहित्य के माध्यम से आई थी। मलयालम काव्य में रूढ़िवाद और कल्पनाशून्यता के विरोध में ए.आर.राजवर्मा ने आंदोलन प्रारंभ किया। उड़िया में राधानाथ राय ने अपनी रचनाओं में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक स्थिति तथा समस्याओं पर लिखकर जन चेतना को जगाने का काम किया। भारतीय नवजागरण का सशक्त स्वर कहे जाने वाले सुब्रह्मण्यम भारती ने तमिल में आधुनिक चेतना का प्रसार किया। तेलुगु में कंदुकूरी वीरेशलिंगम पंतुलु ने काव्य को सौंदर्यानुभूति तथा आनंद की वस्तु मानने के बजाय उसे सामाजिक-राजनीतिक बुराइयों के उन्मूलन का साधन माना।

हिन्दी नवजागरण[सम्पादन]

हिन्दी नवजागरण के संदर्भ में रामविलास शर्मा अपनी पुस्तक 'महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण' में विस्तार से चर्चा करते हैं। वे मानते हैं कि ‘हिन्दी प्रदेश में नवजागरण 1857 ई. के स्वाधीनता-संग्राम से शुरू होता है। गदर, सन् 57 का स्वाधीनता-संग्राम, हिन्दी प्रदेश के नवजागरण की पहली मंज़िल है। दूसरी मंज़िल भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का युग है। ‘हिन्दी नवजागरण का तीसरा चरण महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनके सहयोगियों का कार्यकाल है।’[३] हिन्दी साहित्य में नवजागरण पहले गद्य तत्पश्चात् पद्य में देखने को मिलता है। जुलाई 1857 ई. को 'फतहे इस्लाम' नाम से अवध में एक इश्तहार निकाला गया, जिसमें विभिन्न स्थानों के सिपाहियों से एकजुट होकर लड़ने तथा मिलकर अंग्रेज सिपाहियों को देश से बाहर निकालने की बात कही गई। नवंबर 1858 में अंग्रेजों ने जिस घोषणापत्र का जिक्र किया उसके प्रति भारतीय जनता को सचेत करते हुए अवध की बेगम ने कहा कि- "रानी के कानून वही हैं जो कंपनी के थे।"[४]

भारतेंदु युगीन हिन्दी नवजागरण[सम्पादन]

भारतेंदु युग वस्तुतः हर क्षेत्र में पुनर्जागरण का युग है। हिन्दी क्षेत्र में इस दौर के रचनाकारों ने स्वचेतना को जागृत किया तथा अपने समय और देश की सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों के प्रति लोगों का ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे शोषण का दबे स्वर में विरोध किया। भारतेंदुयुगीन पत्र-पत्रिकाएँ इसका सशक्त उदाहरण हैं जैसे- भारतेंदु हरिश्चंद्र की 'कविवचनसुधा', 'बालाबोधिनी', बालकृष्ण भट्ट की 'हिन्दी प्रदीप', प्रतापनारायण मिश्र की 'ब्राह्मण' तथा 'सारसुधानिधि' इत्यादि। अंग्रेज़ी शिक्षा के माध्यम से भारतजन अपने ऊपर हो रहे अत्याचार तथा शोषण से परिचित हुए तथा उसका विरोध किया। इस संबंध में भारतेंदु की मुकरी उल्लेखनीय है-

"भीतर-भीतर सब रस चूसै
हँसि-हँसि कै तन-मन-धन मूसै।
ज़ाहिर बातन में अति तेज
कौ सखि साजन? नहिं अँग्रेज।"[५]

भारतेंदु ने अंग्रेज़ी राज में भारत के आर्थिक हृास को विश्लेषित किया। उन्होंने 16 फरवरी 1874 की कविवचनसुधा के माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया कि- आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास के लिए भारत की स्वंतत्रता आवश्यक है।

द्विवेदी युगीन हिन्दी नवजागरण[सम्पादन]

हिन्दी नवजागरण को रामविलास शर्मा अपनी पुस्तक ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण’ में तीन चरणों में बाँटते हैं जिसका तीसरा चरण द्विवेदी युगीन है। वे हिन्दी नवजागरण की शुरुआत 1857 के स्वाधीनता संग्राम से मानते हैं।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. डॉ. नगेन्द्र(सं.)-भारतीय साहित्य का समेकित इतिहास, हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय: 2013, पृ.360
  2. डॉ. नगेन्द्र(सं.)-भारतीय साहित्य का समेकित इतिहास, हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय: 2013, पृ.361
  3. रामविलास शर्मा-महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, राजकमल प्रकाशनःनई दिल्ली-2015, पृ. 15
  4. रामविलास शर्मा-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ, राजकमल प्रकाशनःनई दिल्ली-2014, पृ. 15
  5. डॉ. नगेन्द्र(सं.)-भारतीय साहित्य का समेकित इतिहास, हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय: 2013, पृ.361