आयुर्वेद प्रश्नावली-०३
- शरीरक्रियाविज्ञान
(1) "आयुरस्मिन् विद्यते अनेन् वा आयुर्विन्दति इति आयुर्वेदः" - यह आयुर्वेद की ..... है।
- (क) निरूक्ति (ख) व्युत्पत्ति (ग) परिभाषा (घ) लक्षण
(2) आयुर्वेद की व्यवहारिक परिभाषा किस आचार्य ने दी है?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काष्यप (घ) भावप्रकाश
(3) आयुर्वेद का प्रयोजन है-
- (क) स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना (ख) रोगी के रोग का उन्मूलन करना (ग) अ, ब दोनों (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(4) निम्नलिखित में किसके संयोग को आयु कहते हैं?
- (क) शरीर, सत्व, बुद्धि, आत्मा (ख) सत्व, आत्मा, शरीर (ग) शरीर, बुद्धि, आत्मा (घ) शरीर, इन्द्रिय, सत्व, आत्मा
(5) ‘चेतनानुवृत्ति’ किसका पर्याय है।
- (क) मन (ख) आत्मा (ग) शरीर (घ) आयु
(6) निम्नलिखित में से कौनसा कथन सत्य हैं ?
- (क) ‘अनुबन्ध’ आयु का पर्याय है (ख) ‘अनुबन्ध’ हेतु का भेद है। (ग) दोनों (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(7) निम्नलिखित में से कौनसा मिलाप सत्य है ?
- (क) जीवितम् = आयु (ख) जीवसंक्षिणी = धमनी (ग) जीवितायन = स्रोत्रस (घ) उपर्युक्त सभी
(8) हितायु एवं अहितायु और सुखायु एवं दुःखायु के लक्षणों का वर्णन चरक संहिता में कहॉ मिलता है ?
- (क) दीर्घजीवितीयमध्याय (ख) अर्थेदषमहामूलीय अध्याय (ग) रसायन चिकित्सा अध्याय पाद 1 (घ) शरीरविचय शारीर अध्याय
(9) आचार्य चरक ने अष्टांग आयुर्वेद के क्रम में 'भूतविद्या' को किस स्थान पर रखा है।
- (क) 3 (ख) 4 (ग) 5 (घ) 6
(10) आचार्य सुश्रुत ने अष्टांग आयुर्वेद के क्रम में 'अगदतंत्र' को कौनसा स्थान दिया है।
- (क) तृतीय (ख) चतुर्थ (ग) पंचम् (घ) षष्टम्
(11) अगदतंत्र को 'विषगर वैरोधिक प्रशमन' की संज्ञा किसने दी है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश
(12) शालक्य तंत्र को 'ऊर्ध्वांग' की संज्ञा किसने दी है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश
(13) वाग्भट्ट ने अष्टांग आयुर्वेद में ‘अगद तंत्र’ का उल्लेख किस नाम से किया है ?
- (क) विषगर वैरोधिक प्रशमन (ख) विषतंत्र (ग) दंष्ट्रा चिकित्सा (घ) जांगुलि तंत्र
(14) दोष धातु मल मूलं हि शरीरम् - किसका कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) अष्टांग हृदय (घ) अष्टांग संग्रह
(15) शक्ति युक्त द्रव्य है -
- (क) दोष (ख) धातु (ग) मल (घ) उपर्युक्त सभी
(16) 'दूषयन्तीति दोषाः' - किसका कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) अष्टांग हृदय (घ) शारंर्ग्धर
(17) शारीरिक दोषों की संख्या है-
- (क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(18) शारीरिक दोषों में प्रधान होता है-
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) रक्त
(19) 'वात पित्त श्लेष्माण एव देह सम्भव हेतवः' - किस आचार्य का कथन है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(20) ‘वातपित्तकफा दोषाः शरीरव्याधि हेतवः।’ - किस आचार्य का कथन हैं।
- (क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(21) मानसिक दोषों की संख्या है।
- (क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(22) मानसिक दोषों में प्रधान होता है।
- (क) सत्व (ख) रज (ग) तम (घ) इनमें से कोई नहीं
(23) ‘दोषों की व्युत्पत्ति’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(24) ‘दोषों की उत्पत्ति’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(25) ‘दोषों के मनोगुणों’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(26) ‘दोषो की पांच्चभौतिकता’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(27) ’पित्तमाग्नेयं’ किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वृद्ध वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(28) ’आग्नेय पित्तम्’ किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वृद्ध वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(29) ’अग्निमादित्यं च पित्तं’ किस आचार्य का कथन है।
- (क) भेल (ख) हारीत (ग) काष्यप (घ) चक्रपाणि
(30) अष्टांग संग्रहकार के अनुसार ‘वात’ दोष का निर्माण कौनसे महाभूत से होता है ?
- (क) वायु (ख) आकाष (ग) वायु और आकाष (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(31) वृद्धावस्था में कौनसे दोष का प्रकोप होता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) रक्त
(32) वाग्भट्टानुसार हृदय और नाभि के ऊपर कौनसे दोष का स्थान रहता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त सभी
(33) पूर्वान्ह में कौनसे दोष का प्रकोप होता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोषश्
(34) भोजन परिपाक काल के मध्य में कौनसे दोष का प्रकोप होता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) इनमें से कोई नहीं
(35) दिन के अपरान्ह में किस दोष का प्रकोप होता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(36) मध्यरात्रि में किस दोष का प्रकोप होता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(37) भुक्तमात्रे अवस्था में कौनसे दोष का प्रकोप होता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त सभी
(38) दोष, धातु और मलों के आश्रय एवं आश्रयी भाव सम्बन्ध का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(39) ‘तत्रास्थानि स्थितो वायुः, असृक्स्वेदयोः पित्तम्, शेषेषु तु श्लेष्मा।’ - किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(40) कफ दोष का आश्रयी स्थान नहीं है।
- (क) रस (ख) रक्त (ग) मांस (घ) मेद
(41) ‘मूत्र’ कौनसे दोष का आश्रय स्थान है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त सभी
(42) शरीर में वात दोष की वृद्धि होने पर कौनसी चिकित्सा करनी चाहिए है।
- (क) लंघन (ख) बृंहण (ग) अपतर्पण (घ) संतर्पण
(43) वातशामक श्रेष्ठ रस होता है।
- (क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कषाय
(44) पित्तशामक श्रेष्ठ रस होता है।
- (क) मधुर (ख) तिक्त (ग) लवण (घ) कषाय
(45) कफशामक अवर रस होता है।
- (क) कटु (ख) तिक्त (ग) लवण (घ) कषाय
(46) किन रसों के सेवन से वात दोष का शमन होता है।
- (क) अम्ल-कटु-तिक्त (ख) अम्ल-तिक्त-कषाय (ग) मधुर-अम्ल-लवण (घ) कटु-कषाय-तिक्त
(47) किन रसों के सेवन से कफ दोष का प्रकोप होता है।
- (क) अम्ल-कटु-तिक्त (ख) अम्ल-तिक्त-कषाय (ग) मधुर-अम्ल-लवण (घ) कटु-कषाय-तिक्त
(48) ’वात’ का मुख्य स्थान ‘श्रोणिगुदसंश्रय’ किस आचार्य ने माना है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(49) वाग्भट्टानुसार ’पित्त’ का मुख्य स्थान है।
- (क) आमाशय (ख) पक्वामाशय मध्य (ग) नाभि (घ) उर्ध्व प्रदेश
(50) सुश्रुतानुसार ’कफ’ का मुख्य स्थान है।
- (क) आमाशय (ख) उरः प्रदेश (ग) नाभि (घ) उर्ध्व प्रदेश
(51) वात का स्थान ‘अस्थि-मज्जा’ किस आचार्य ने बतलाया है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(52) चरकानुसार ’पित्त’ का स्थान है ।
- (क) रूधिर (ख) रस (ग) लसीका (घ) उपरोक्त सभी
(53) पित्त का अन्य स्थान ‘हृदय’ किस आचार्य ने माना है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(54) वाग्भट्टानुसार ’क्लोम’ किसका स्थान है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(55) ’उत्साह’ किस दोष का कर्म है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(56) ’मेधा’ किस दोष का कर्म है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(57) ’क्षमाधृतिरलोभश्च’ किस दोष का कर्म है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(58) चरकानुसार ‘ज्ञान-अज्ञान’ में कौनसा दोष उत्तरदायी होता है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) आम
(59) आचार्य चरक ने वात के कितने गुण बतलाए हैं।
- (क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(60) वात का गुण ‘दारूण’ किसने माना है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) कुष
(61) वाग्भट्ट ने वात का कौनसा गुण नहीं माना है।
- (क) सूक्ष्म (ख) चल (ग) विषद (घ) खर
(62) वात को 'अचिन्त्यवीर्य' किस आचार्य ने कहा है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(63) वात को 'अमूर्त' संज्ञा किसने दी है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(64) आचार्य चरक ने 'भगवान्' संज्ञा किसने दी है।
- (क) आत्रेय (ख) वायु (ग) अ, ब दोनों (घ) काल
(65) वाग्भट्ट ने पित्त के कितने गुण बतलाए हैं।
- (क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(66) 'सर' कौनसे दोष का गुण हैं।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) रक्त
(67) वाग्भट्टानुसार 'लघु' किस दोष का गुण है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) अ, ब दोनों
(68) पित्त को 'मायु' की संज्ञा किसने दी है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) ऋग्वेद (घ) अर्थववेद
(69) शांरर्ग्धर के अनुसार ‘पित्त’ का प्राकृतिक रस होता है।
- (क) कटु (ख) तिक्त (ग) कटु, तिक्त (घ) अम्ल
(70) विदग्धावस्था में कफ का रस होता है।
- (क) कटु (ख) मधुर (ग) लवण (घ) अम्ल
(71) चरकोक्त वात के 7 गुणों एवं कफ के 7 गुणों में कितने समान है।
- (क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
(72) वाग्भट्टानुसार 'मृत्स्न' किस दोष का गुण है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) अ, ब दोनों
(73) शारंर्ग्धरानुसार 'तमोगुणाधिकः' किस दोष का गुण है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) अ, ब दोनों
(74) 'वेगविधारण' करने से किस दोष का प्रकोप है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोष
(75) 'क्रोध' करने से किस दोष का प्रकोप है।
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोष
(76) चरकानुसार वात का प्रकोप किस ऋतु में होता है।
- (क) बर्षा (ख) बसंत (ग) ग्रीष्म (घ) प्रावृट्
(77) सुश्रुतानुसार वात का प्रकोप किस ऋतु में होता है।
- (क) बर्षा (ख) बसंत (ग) ग्रीष्म (घ) प्रावृट्
(78) चरकानुसार कफ का संचय किस ऋतु में होता है।
- (क) शरद (ख) हेमन्त (ग) षिषिर (घ) बसंत
(79) वाग्भट्टानुसार कफ का संचय किस ऋतु में होता है।
- (क) शरद (ख) हेमन्त (ग) षिषिर (घ) बसंत
(80) चरकानुसार कफ का निर्हरण किस मास में करना चाहिए।
- (क) श्रावण मास (ख) आषाढ मास (ग) चैत्र मास (घ) अगहन मास
(81) चरक मतानुसार पित्त का निर्हरण विरेचन द्वारा किस मास में करना चाहिए ?
- (क) श्रावण मास (ख) आषाढ मास (ग) चैत्र मास (घ) मार्गशीर्ष मास
(82) दोषों के कोष्ठ से शाखा और शाखा से कोष्ठ में गमन के कारण सर्वप्रथम किस आचार्य ने बतलाए है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(83) चरक ने दोषों के कोष्ठ से शाखा में गमन के कितने कारण बताए है।
- (क) 3 (ख) 4 (ग) 5 (घ) इनमें से कोई नहीं
(84) चरक ने दोषों के शाखा से कोष्ठ में गमन के कितने कारण बताए है।
- (क) 3 (ख) 4 (ग) 5 (घ) इनमें से कोई नहीं
(85) चरक ने दोषों के शाखा से कोष्ठ में गमन का कारण नहीं है।
- (क) वृद्धि (ख) विष्यन्दन (ग) व्यायाम (घ) वायुनिग्रह
(86) बुद्धि, इन्द्रिय, हृदय और मन का धारण करना - कौनसी वायु का कर्म है ?
- (क) प्राण वायु (ख) उदान वायु (ग) व्यान वायु (घ) समान वायु
(87) ‘महाजवः’ कौनसी वायु के लिए कहा गया है।
- (क) प्राण वायु (ख) उदान वायु (ग) व्यान वायु (घ) समान वायु
(88) सार-किट्ट पृथक्करण किसका कार्य है।
- (क) पाचक पित्त (ख) व्यान वायु (ग) समान वायु (घ) अ, स दोनों
(89) चरकानुसार अपान वायु का स्थान नही है।
- (क) कटि (ख) श्रोणि (ग) नितम्ब (घ) उपर्युक्त सभी
(90) आचार्य सुश्रुत ने ’पवनोत्तम’ किसे कहा है ?
- (क) उदान वायु (ख) प्राण वायु (ग) समान वायु (घ) व्यान वायु
(91) सुश्रुतानुसार किस वायु के कारण जठराग्नि प्रदीप्ति होती है ?
- (क) प्राण वायु (ख) अपान वायु (ग) समान वायु (घ) उपरोक्त सभी
(92) शांरर्ग्धर के अनुसार पाचक पित्त का स्थान होता है।
- (क) पक्वामाशय मध्य में (ख) अग्नाशय में (ग) पक्वाशय में (घ) ग्रहणी में
(93) पाचकपित्त की मात्रा ‘तिल प्रमाण’ किस आचार्य ने मानी है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(94) रंजक पित्त का स्थान आमाशय किस आचार्य ने माना है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(95) आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार ‘रंजक पित्त’ का स्थान क्या है ?
- (क) यकृत प्लीहा (ख) आमाशय (ग) यकृत (घ) प्लीहा
(96) साधक पित्त का स्थान होता है ?
- (क) हृदय (ख) षिर (ग) नेत्र (घ) त्वचा
(97) ‘ओज एवं साधक पित्त’ एक ही किस आचार्य ने माना है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) डल्हण (घ) अरूणदत्त
(98) भेल के अनुसार ‘बुद्धिवैशेषिक’ आलोचक पित्त का स्थान होता है ?
- (क) हृदय (ख) मूर्धा (ग) श्रृंगाटक (घ) भ्रू मध्य
(99) तर्पक कफ का स्थान होता है ?
- (क) हृदय (ख) षिर (ग) उरू (घ) नाभि
(100) संधियों में स्थित कफ की संज्ञा है ?
- (क) साधक (ख) क्लेदक (ग) अवलम्बक (घ) श्लेष्मक
(101) आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार ‘बोधक कफ’ का स्थान क्या है ?
- (क) आमाषय (ख) रसना (ग) कण्ठ (घ) जिहृवामूल, कण्ठ
(102) चरकानुसार प्राकृत शरारस्थ वायु का कर्म नहीं है।
- (क) तन्त्रयंत्रधर (ख) सर्वेन्द्रियाणामुद्योजक (ग) समीरणोऽग्नेः (घ) सर्वशरीरव्यूहकर
(103) मन का नियंत्रण कौन करता है।
- (क) मस्तिष्क (ख) मन (ग) वायु (घ) आत्मा
(104) वायुस्तन्त्रयन्त्रधर - में ‘तंत्र’ का क्या अर्थ है।
- (क) मस्तिष्क (ख) शरीर (ग) शरीरवयव (घ) आत्मा
(105) आयुषोऽनुवृत्ति प्रत्ययभूतो - किसका कर्म है।
- (क) वायु का (ख) मन का (ग) आत्मा का (घ) मस्तिष्क का
(106) 'वातलाद्याः सदातुराः' - किसका कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(107) 'वातिकाद्याः सदाऽऽतुराः' - किसका कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(108) ‘सर्वा हि चेष्टा वातेन स प्राणः प्राणिनां स्मृतः। ’- सूत्र चरक संहिता के किस अध्याय में वर्णित है।
- (क) वातकलाकलीय (ख) वातव्याधिचिकित्सा (ग) दीर्घजीवतीय (घ) कियन्तःशिरसीय
(109) मन का निग्रह किसके द्वारा होता है।
- (क) मस्तिष्क (ख) आत्मा (ग) वायु (घ) स्वयं मन
(110) 'वाताद् ऋते नास्ति रूजा' - किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(111) ‘पित्तं पड्गु कफः पड्गुः पड्वो मलधातवः। वायुना यत्र नीयन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत।’- किसका कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(112) कामशोक भयद्वायुः क्रोधात् पित्तम् लोभात् कफम्। - किस आचार्य ने कहा है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काष्यप (घ) माधव
(113) वैदिक ग्रंथोक्त पांच वायु में से कूमल वायु का कार्य होता है ।
- (क) उदगार (ख) उन्मेष (ग) जृम्भा (घ) क्षुधा
(114) वैदिक ग्रंथोक्त पांच वायु में से कौनसी वायु सर्वव्यापी है और मरणोपरान्त भी रहती है।
- (क) नाग (ख) कूर्म (ग) देवदत्त (घ) धनंजय
(115) सुश्रुतानुसार ‘उद्वहन’ कौनसी वायु का कार्य है ?
- (क) प्राण वायु (ख) उदान वायु (ग) समान वायु (घ) व्यान वायु
(116) सुश्रुतानुसार ‘पूरण’ कौनसी वायु का कार्य है ?
- (क) प्राण वायु (ख) तर्पक कफ (ग) मज्जा धातु (घ) उपरोक्त सभी
(117) त्रिउपस्तम्भ है ?
- (क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) सत्व, आत्मा, शरीर (घ) हेतु, दोष, द्रव्य
(118) ‘आहार, स्वप्न तथा ब्रह्मचर्य’ - किस आचार्य के अनुसार त्रय उपस्तम्भ हैं।
- (क) चरकानुसार (ख) अष्टांग संग्रहानुसार (ग) सुश्रुतानुसार (घ) अष्टांग हृदयानुसार
(119) वाग्भट्टानुसार त्रिउपस्तम्भ है।
- (क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, अब्रह्मचर्य (ग) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (घ) सत्व, आत्मा, शरीर
(120) त्रिस्तम्भ है।
- (क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) सत्व, आत्मा, इन्द्रिय (घ) हेतु, दोष, द्रव्य
(121) स्कन्धत्रय है।
- (क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) सत्व, आत्मा, इन्द्रिय (घ) हेतु, दोष, द्रव्य
(122) त्रिस्थूण है।
- (क) हेतु, लिंग, औषध (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) वात, पित्त, कफ (घ) सत्व, रज, तम
(123) शरीरधारणात् धातव इत्युच्यन्ते। - किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) सुश्रुत (घ) डल्हण
(124) रस धातु के 2 भेद - (1) स्थायी रस और (2) पोषक रस - किस आचार्य ने बतलाए है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) सुश्रुत (घ) डल्हण
(125) आर्तव को अष्टम धातु किस आचार्य ने माना है।
- (क) भावप्रकाष (ख) चक्रपाणि (ग) काष्यप (घ) शारंर्ग्धर
(126) ओज को अष्टम धातु किस आचार्य ने माना है।
- (क) भावप्रकाष (ख) चक्रपाणि (ग) काष्यप (घ) शारंर्ग्धर
(127) रक्त को चतुर्थ दोष किसने माना है।
- (क) चक्रपाणि (ख) सुश्रुत (ग) अष्टांग संग्रह (घ) ब, स दोनों
(128) चरक मतानुसार रक्त का होता है ?
- (क) 9 अंजलि (ख) 8 अंजलि (ग) 4 अंजलि (घ) 5 अंजलि
(129) मेद का अंजलि प्रमाण होता है।
- (क) 5 (ख) 4 (ग) 2 (घ) 3
(130) 'जीवन' किसका कर्म है।
- (क) रस धातु (ख) रक्त धातु (ग) स्तन्य (घ) ब और स दोनों
(131) 'प्रीति' किस धातु का कर्म है।
- (क) रस धातु (ख) मज्जा धातु (ग) शुक्र धातु (घ) ब और स दोनों
(132) 'शरीरपुष्टि' किस धातु का कर्म है।
- (क) रस धातु (ख) मांस धातु (ग) शुक्र धातु (घ) ओज
(133) ’दृढत्वम्’ किस धातु का कार्य है ?
- (क) अस्थि धातु (ख) मांस धातु (ग) मज्जा धातु (घ) मेद धातु
(134) भावप्रकाष के अनुसार ’रक्त’ धातु की पंचभौतिकता में शामिल है ?
- (क) अग्नि (ख) अग्नि + जल (ग) अग्नि + पृथ्वी (घ) पंचमहाभूत
(135) डल्हण के अनुसार ’अस्थि’ धातु की पंचभौतिकता है ?
- (क) पृथ्वी + वायु + आकाश (ख) पृथ्वी + वायु (ग) अग्नि + पृथ्वी (घ) पृथ्वी + आकाष
(136) 'अहरहर्गच्छति इति' किस धातु की निरूक्ति है।
- (क) रस धातु (ख) रक्त धातु (ग) मांस धातु (घ) शुक्र धातु
(137) तर्पयति, वर्द्धयति, धारयति, यापयति किसके कर्म है।
- (क) रस धातु (ख) रक्त धातु (ग) ओज (घ) वात
(138) रस धातु के 2 भेद - (1) स्थायी रस, (2) पोषक रस - किस आचार्य ने बतलाए है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) सुश्रुत (घ) डल्हण
(139) 'शब्दार्चिजलसंतानवद्' से किस धातु का ग्रहण किया जाता है।
- (क) रस (ख) रक्त (ग) मज्जा (घ) शुक्र
(140) सुश्रुतानुसार 'स्थौल्य और कार्श्य' विशेषतः किस पर निर्भर है।
- (क) रस (ख) रक्त (ग) स्वप्न और आहार (घ) मांस धातु
(141) सुश्रुतानुसार रस धातु का रंजन कहॉ पर होता है।
- (क) हृदय (ख) आमाषय (ग) यकृत प्लीहा (घ) इनमें से कोई नहीं
(142) सुश्रुतानुसार रक्त धातु ही एक मात्र धातु है जो पाच्चमहाभौतिक होती है उस रक्त धातु में ‘लघुता’ कौनसे महाभूत का गुण होता है।
- (क) जल (ख) अग्नि (ग) वायु (घ) आकाश
(143) रक्त की परिभाषा किस आचार्य ने बतलायी है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) हारीत (घ) माधव
(144) प्राणियों के प्राण किसका अनुवर्तन करते है।
- (क) शोणित (ख) ओज (ग) आहार (घ) वायु
(145) तपनीयेन्द्रगोपाभं पùालक्तक सन्निभम्। गुन्जाफल सवर्ण च - किसके लिए कहा गया है।
- (क) विषुद्ध शोणित (ख) विषुद्ध आर्तव (ग) दोनों (घ) इनमें से कोई नहीं
(146) रक्तज रोगों का निदान किससे होता है।
- (क) उपषय (ख) अनुपशय (ग) रूप (घ) पूर्वरूप
(147) देहस्य रूधिरं मूलं रूधिरेणैव धार्यते - किस आचार्य का कथान है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(148) सुश्रुतानुसार धातुओ की क्षीणता और वृद्धि में मूल कारण क्या है।
- (क) रस धातु (ख) रक्त धातु (ग) ओज (घ) आहार
(149) ‘मेद पुष्टि’ कौनसी धातु का कार्य है।
- (क) रस धातु (ख) रक्त धातु (ग) मांस धातु (घ) मेद धातु
(150) छोटी अस्थियों के मध्य में विषेष रूप से क्या होती है।
- (क) मज्जा (ख) रक्त (ग) मेद (घ) सरक्त मेद
(151) ‘देहधारण’ कौनसी धातु का कार्य है।
- (क) अस्थि धातु (ख) रक्त धातु (ग) मांस धातु (घ) मेद धातु
(152) स्थूलास्थियों के मध्य में विषेष रूप से क्या होती है।
- (क) मज्जा (ख) रक्त (ग) मेद (घ) सरक्त मेद
(153) 'विलीनघृताकारो' किसके लिए कहा गया है।
- (क) अस्थिगत मज्जा (ख) मस्तिष्क मज्जा (ग) दोनों (घ) इनमें से कोई नहीं
(154) आहार का परम धाम होता है।
- (क) शुक्र (ख) ओज (ग) रसधातु (घ) रक्त
(155) शुक्र का वर्ण ’घृतमाक्षिकं तैलाभ’ सम किसने माना है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(156) 'चरतो विष्वरूपस्य रूपद्रव्यं' - किसके लिए कहा गया है।
- (क) शुक्र (ख) ओज (ग) आत्मा (घ) रक्त
(157) रस धातुप्रदोषज विकारों की चिकित्सा है।
- (क) लंघन (ख) लंघन पाचन (ग) दोषावसेचन (घ) उपर्युक्त सभी
(158) 'रक्तपित्तहरी क्रिया' - किन रोगों में करनी चाहिए ?
- (क) पित्तज रोग (ख) रक्तजरोग (ग) संतर्पणजरोग (घ) रक्तपित्त
(159) 'पंचकर्माणि भेषजम्' किस धातुप्रदोष्ाज विकार की चिकित्सा में निर्देषित है।
- (क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा
(160) 'व्यवाय, व्यायाम, यथाकाल संशोधन' - किस धातुप्रदोषज विकार की चिकित्सा में निर्देषित है।
- (क) अस्थि (ख) मज्जा (ग) शु्क्र प्रदोषज (घ) मज्जा एवं शु्क्र प्रदोषज
(161) 'संशोधन, शस्त्र, अग्नि, क्षारकर्म' - किस धातुप्रदोषज विकार की चिकित्सा में निर्देषित हैं।
- (क) मांस प्रदोषज (ख) मेद प्रदोषज (ग) अस्थि प्रदोषज (घ) उपधातु प्रदोषज
(162) 'एककाल धातु पोषण न्याय' के प्रवर्तक है।
- (क) अरूणदत्त (ख) सुश्रुत (ग) दृढबल (घ) भावप्रकाष
(163) 'केदारीकुल्या न्याय' के प्रवर्तक है।
- (क) अरूणदत्त (ख) सुश्रुत (ग) दृढबल (घ) भावप्रकाष
(164) 'क्षीर दधि न्याय' के प्रवर्तक है।
- (क) अरूणदत्त (ख) सुश्रुत (ग) दृढबल (घ) भावप्रकाष
(165) 'खले कपोत न्याय' के प्रवर्तक है।
- (क) अरूणदत्त (ख) सुश्रुत (ग) दृढबल (घ) भावप्रकाष
(166) आचार्य चरक कौनसे न्याय के समर्थक है।
- (क) एककाल धातु पोषण न्याय (ख) केदारीकुल्या न्याय (ग) क्षीर दधि न्याय (घ) खले कपोत न्याय
(167) आचार्य सुश्रुत कौनसे न्याय के समर्थक है।
- (क) एककाल धातु पोषण न्याय (ख) केदारीकुल्या न्याय (ग) खले कपोत न्याय (घ) ब, स दोनों
(168) आचार्य वाग्भट्ट कौनसे न्याय के समर्थक है।
- (क) एककाल धातु पोषण न्याय (ख) केदारीकुल्या न्याय (ग) क्षीर दधि न्याय (घ) खले कपोत न्याय
(169) आचार्य भावप्रकाष कौनसे न्याय के समर्थक है।
- (क) एककाल धातु पोषण न्याय (ख) केदारीकुल्या न्याय (ग) क्षीर दधि न्याय (घ) खले कपोत न्याय
(170) 'अशांश परिणाम पक्ष' कहलाता है।
- (क) क्षीर दधि न्याय (ख) केदारीकुल्या न्याय (ग) खले कपोत न्याय (घ) एककाल धातु पोषण
(171) सुश्रुतानुसार रस से आर्तव के निमार्ण कितना समय लगता है ?
- (क) 1 मास (ख) 1 सप्ताह (ग) 6 अहोरात्र (घ) 15 अहोरात्र
(172) चरकानुसार रस से शुक्र निमार्ण कितना समय लगता है ?
- (क) 1 मास (ख) 1 सप्ताह (ग) 6 अहोरात्र (घ) 15 अहोरात्र
(173) सुश्रुतानुसार रस से शुक्र धातु के निर्माण कितना समय लगता है।
- (क) 3015 कला (ख) 18090 कला (ग) 30015 कला (घ) 1890 कला
(174) 'गतिविवर्जिताः' किसके संदर्भ में कहा गया है ?
- (क) धातु (ख) उपधातु (ग) ओज (घ) मल
(175) शारंर्ग्धर के अनुसार 'केष, रोम' किसकी उपधातु है ?
- (क) अस्थि (ख) मज्जा (ग) मेद (घ) शुक्र
(176) 'स्नायु व वसा' यह क्रमषः किस धातु की उपधातुएॅं हैं ?
- (क) मांस, मज्जा (ख) मेद, मज्जा (ग) मांस, मेद (घ) मेद, मांस
(177) डल्हण के अनुसार 'संधि' किसकी उपधातु है ?
- (क) अस्थि (ख) मज्जा (ग) मेद (घ) शुक्र
(178) 'दोषधातुवहाः' किसके लिए कहा गया है ?
- (क) सिरा (ख) धमनी (ग) स्रोत्रस् (घ) कला
(179) वाग्भट्ट के अनुसार त्वचा का निमार्ण कौनसी धातु से होता है ?
- (क) रस (ख) रक्त (ग) मांस (घ) मेद
(180) कौनसी संहिता में 'उपधातु' का वर्णन नहीं किया गया है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(181) प्रथमं जायते ह्योजः शरीरेऽस्मन् शरीरिणाम्। - किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काष्यप (घ) वाग्भट्ट
(182) ओज को 'बल' संज्ञा किस आचार्य ने दी है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काष्यप (घ) अ, ब दोनों
(183) ओज को 'जीवशोणित' संज्ञा किस आचार्य ने दी है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) भावप्रकाष (घ) डल्हण
(184) ओज को ‘शुक्र की उपधातु’ किस आचार्य ने माना है।
- (क) भावमिश्र (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(185) ‘रसष्चौजः संख्यात’ - किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) वाग्भट्ट (ग) भावप्रकाष (घ) डल्हण
(186) ‘गर्भरसाद्रसः’ किसके लिए कहा गया है।
- (क) रस (ख) रक्त (ग) षुक्र (घ) ओज
(187) चरकानुसार गर्भस्थ ओज का वर्ण होता है।
- (क) सर्पिवर्ण (ख) मधुवर्ण (ग) रक्तमीषत्सपीतकम् (घ) श्वेत वर्ण
(188) चरकानुसार हदयस्थ ओज का वर्ण होता है।
- (क) सर्पिवर्ण (ख) मधुवर्ण (ग) रक्तमीषत्सपीतकम् (घ) श्वेत वर्ण
(189) ‘तन्नाशान्ना विनश्यति’ - चरक ने किसके संदर्भ में कहा गया है।
- (क) रक्त (ख) ओज (ग) शुक्र (घ) प्राणायतन
(190) ‘तद् अभावाच्च शीर्यन्ेते शरीराणि शरीरिणाम्’ - उक्त कथन किसके अभाव में संदर्भित है ?
- (क) रक्त (ख) ओज (ग) शुक्र (घ) मांस
(191) ओज का वर्ण ‘ष्वेत’ किसने बतलाया है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) डल्हण (घ) ब, स दोनों
(192) वाग्भट्टानुसार ओज का वर्ण होता है।
- (क) रक्तमीषत्सपीतकम् (ख) ईषत् लोहितपीत (ग) अश्याव रक्तपीतकम् (घ) सर्पिवर्ण
(193) ओज के पर ओज एवं अपर ओज ये 2 भेद किसने बतलाए है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) सुश्रुत (घ) डल्हण
(194) पर ओज की मात्रा 6 बिन्दु किसने मानी है।
- (क) अरूणदत्त (ख) चक्रपाणि (ग) भेल (घ) डल्हण
(195) ओज के 12 स्थानों का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) हारीत (ख) चक्रपाणि (ग) भेल (घ) डल्हण
(196) वर्णानुसार ओज के 3 भेद - 1. श्वेत वर्ण 2. तैल वर्ण 3. क्षौद्र वर्ण - किस आचार्य ने बतलाए है।
- (क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) सुश्रुत (घ) डल्हण
(197) चरकोक्त कफ के 7 गुणों एवं ओज के 10 गुणों में से कितने गुण समान है।
- (क) 7 (ख) 4 (ग) 1 (घ) कोई नहीं
(198) चरकोक्त गोदुग्ध के 10 गुणों एवं ओज के 10 गुणों में से कितने गुण समान है।
- (क) 7 (ख) 4 (ग) 10 (घ) कोई नहीं
(199) चरकोक्त ओज के 10 गुणों एवं सुश्रुतोक्त ओज के 10 गुणों में से कितने गुण समान है।
- (क) 7 (ख) 4 (ग) 10 (घ) कोई नहीं
(200) ओज में ‘पिच्छिल’ गुण किसने माना है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काष्यप (घ) अ, ब दोनों
(201) ओज में ‘विविक्तं’ गुण किसने माना है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काष्यप (घ) अ, ब दोनों
(202) सुश्रुतानुसार ’प्राणायतनमुत्तमम्’ है।
- (क) हृदय (ख) ओज (ग) वस्ति (घ) ब, स दोनों
(203) सुश्रुतानुसार ’सर्वचेष्टास्वप्रतिघात’ किसका कार्य है।
- (क) वायु (ख) ओज (ग) मन (घ) दोष
(204) ‘दोष च्यवनं व क्रियासन्निरोध’ - ओज की किस व्यापद् अवस्था का लक्षण है।
- (क) ओजक्षय (ख) ओज विस्स्रंस (ग) ओज व्यापत (घ) उर्पयुक्त में कोई नहीं
(205) सुश्रुतानुसार ’मूर्च्छा, मांसक्षय, मोह, प्रलाप, अज्ञान, मृत्यु’ किसका लक्षण है।
- (क) ओजक्षय (ख) बलक्षय (ग) दोनों (घ) कोई नहीं
(206) सुश्रुतानुसार ’अप्राचुर्य क्रियाणां च’ किसका लक्षण है।
- (क) ओजक्षय (ख) बलक्षय (ग) ओज विस्स्रंस (घ) बल विस्स्रंस
(207) वातशोफ, वर्णभेद लक्षण है।
- (क) वातवृद्धि (ख) ओजविस्स्रंस (ग) ओजव्यापत (घ) ओजक्षय
(208) ग्लानि, तन्द्रा, निद्रा लक्षण है।
- (क) वातवृद्धि (ख) ओजविस्स्रंस (ग) ओजव्यापत (घ) ओजक्षय
(209) 'बलभ्रंष' किसका लक्षण है ?
- (क) ओजक्षय (ख) ओजव्यापद् (ग) ओजविस्त्रंस (घ) साम दोष
(210) ओज की विकृतियॉ कितने प्रकार की होती है।
- (क) 5 (ख) 4 (ग) 2 (घ) 3
(211) सुश्रुत ने ओज क्षय के कितने का कारण बताए है।
- (क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(212) ओज की मात्रा कफ के समान किस आचार्य ने मानी है।
- (क) भावमिश्र (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(213) चरकानुसार पर ओज की मात्रा कितने बिन्दु होती है।
- (क) 5 बिन्दु (ख) 6 बिन्दु (ग) 7 बिन्दु (घ) 8 बिन्दु
(214) अरूणदत्त के अनुसार पर ओज की मात्रा कितने बिन्दु होती है।
- (क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8
(215) भेल के अनुसार ओज का स्थान है ?
- (क) स्वेद (ख) मूत्र (ग) पुरीष (घ) उर्पयुक्त सभी
(216) चरकानुसार 'व्यधितेन्द्रियः' किसका लक्षण है ?
- (क) ओजक्षय (ख) ओजव्यापद् (ग) ओजविस्त्रंस (घ) उर्पयुक्त सभी
(217) मेद धातु का मल है ?
- (क) स्वेद (ख) वसा (ग) त्वचा (घ) उर्पयुक्त सभी
(218) अक्षिविट् कौनसी धातु का मल है ?
- (क) मांस (ख) मेद (ग) मज्जा (घ) शुक्र
(219) ओज को ‘शुक्र धातु का मल’ किस आचार्य ने माना है।
- (क) भावमिश्र (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(220) ओज को ‘शुक्र की उपधातु’ किसने माना है।
- (क) भावमिश्र (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(221) शारंर्ग्धर के अनुसार शुक्र धातु का मल है ?
- (क) ओज (ख) श्मश्रु (ग) यौवन पीटिका (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(222) डल्हण के अनुसार शुक्र धातु का मल है ?
- (क) ओज (ख) ष्मश्रु (ग) यौवन पीटिका (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(223) वाग्भट्ट के अनुसार अस्थि धातु का मल है ?
- (क) केश, लोम (ख) केश, रोम (ग) नख, लोम (घ) नख, रोम
(224) सुश्रुत के अनुसार अस्थि धातु का मल है ?
- (क) केश, लोम (ख) केश, रोम (ग) नख, लोम (घ) नख, रोम
(225) चरक के अनुसार अस्थि धातु का मल है ?
- (क) केश, लोम (ख) केश, रोम (ग) नख, लोम (घ) नख, रोम
(226) मल को दूष्य किसने माना है ?
- (क) अरूणदत्त (ख) सुश्रुत (ग) दृढबल (घ) भावप्रकाष
(227) मलिनीकरणाद् आहारमलत्वान्मलाः। - किस आचार्य ने माना है।
- (क) भावमिश्र (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(228) मलिनीकरणान्मलाः। - किस आचार्य ने माना है।
- (क) भावमिश्र (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(229) स्वेद का अंजली प्रमाण होता है ?
- (क) 9 अंजली (ख) 8 अंजली (ग) 7 अंजली (घ) 10 अंजली
(230) वाग्भट्टानुसार स्वेद की पंचमहाभैतिकता किस रस के समान है ?
- (क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कषाय
(231) पुरीष का अंजली प्रमाण होता है ?
- (क) 9 अंजली (ख) 8 अंजली (ग) 7 अंजली (घ) 10 अंजली
(232) मूत्र का अंजली प्रमाण होता है ?
- (क) 6 अंजली (ख) 5 अंजली (ग) 4 अंजली (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(233) वायु एवं अग्नि का धारण करना किसका कर्म है।
- (क) पुरीष (ख) मूत्र (ग) स्वेद (घ) उपरोक्त सभी का
(234) विक्लेदकृत - किसका कर्म है।
- (क) पुरीष (ख) मूत्र (ग) स्वेद (घ) उपरोक्त सभी का
(235) क्लेद विधृति - किसका कर्म है।
- (क) पुरीष (ख) मूत्र (ग) स्वेद (घ) उपरोक्त सभी का
(236) पुरीष को ’उपस्तम्भ’ किसने कहा है ?
- (क) सुश्रुत (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) चरक
(237) पुरीष को ’अवस्तम्भ’ किसने कहा है ?
- (क) सुश्रुत (ख) चक्रपाणि (ग) वाग्भट्ट (घ) चरक
(238) पुरीष निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन सर्वप्रथम किसने किया है ?
- (क) सुश्रुत (ख) भावप्रकाष (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(239) मूत्र निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन सर्वप्रथम किसने किया है ?
- (क) सुश्रुत (ख) भावप्रकाष (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(240) स्वेद निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन सर्वप्रथम किसने किया है ?
- (क) सुश्रुत (ख) भावप्रकाष (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(241) पुरीष की उत्पत्ति कहॉ होती है।
- (क) स्थूलान्त्र में (ख) क्षुद्रान्त्र में (ग) अमाशय में (घ) पक्वाशय में
(242) सुश्रुतानुसार मूत्र निर्माण प्रक्रिया कहॉ आरम्भ होती है।
- (क) वृक्क में (ख) वस्ति में (ग) अमाशय में (घ) पक्वाशय में
(243) मानुष मूत्र च विषापहम् - किसका कथन है।
- (क) सुश्रुत (ख) भावप्रकाष (ग) वृद्ध वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(244) मानुष मूत्र तु विषापहम् - किसका कथन है।
- (क) सुश्रुत (ख) भावप्रकाष (ग) वृद्ध वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि
(245) ‘उपवेषन’ किसका पर्याय है।
- (क) पुरीष (ख) मूत्र (ग) स्वेद (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(246) ‘मेह’ किसका पर्याय है।
- (क) पुरीष (ख) मूत्र (ग) स्वेद (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(247) ‘घर्म’ किसका पर्याय है।
- (क) पुरीष (ख) मूत्र (ग) स्वेद (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(248) ‘घर्मकाले’ कौनसी ऋतु के लिए कहा गया है।
- (क) गीष्म ऋतु (ख) प्रावृट् ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(249) ‘निदाघे’ कौनसी ऋतु के लिए कहा गया है।
- (क) गीष्म ऋतु (ख) प्रावृट् ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(250) ‘घर्मान्ते’ कौनसी ऋतु के लिए कहा गया है।
- (क) गीष्म ऋतु (ख) प्रावृट् ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(251) ‘निद्रानाष’ किसका लक्षण है।
- (क) वातवृद्धि (ख) पित्तवृद्धि (ग) कफवृद्धि (घ) कफक्षय
(252) ‘निद्राल्पता’ किसका लक्षण है।
- (क) वातवृद्धि (ख) पित्तवृद्धि (ग) कफवृद्धि (घ) कफक्षय
(253) ‘अतिनिद्रा’ किसका लक्षण है।
- (क) वातवृद्धि (ख) पित्तवृद्धि (ग) कफवृद्धि (घ) कफक्षय
(254) ‘प्रजागरण’ किसका लक्षण है।
- (क) वातवृद्धि (ख) पित्तवृद्धि (ग) कफवृद्धि (घ) कफक्षय
(255) वातवृद्धि का लक्षण नहीं है।
- (क) निद्रानाष (ख) कार्ष्य (ग) मूढ संज्ञता (घ) गात्र स्फुरण
(256) ‘अंगसाद’ किसका लक्षण है।
- (क) कफवृद्धि (ख) कफक्षय (ग) वातवृद्धि (घ) वातक्षय
(257) ‘अर्न्तदाह’ किसका लक्षण है।
- (क) कफवृद्धि (ख) कफक्षय (ग) पित्तवृद्धि (घ) पित्तक्षय
(258) ‘बलहानि’ किसका लक्षण है।
- (क) पित्तवृद्धि (ख) कफक्षय (ग) वातवृद्धि (घ) वातक्षय
(259) चरकानुसार निम्नलिखित मे कौनसा रस क्षय का लक्षण नहीं है।
- (क) शूल्यते (ख) घट्टते (ग) हृदयं ताम्यति (घ) हृदयोक्लेद
(260) ‘परूषा स्फिटिता म्लाना त्वग् रूक्षा’ किस क्षय के लक्षण है।
- (क) रसक्षय (ख) कफक्षय (ग) रक्तक्षय (घ) मज्जाक्षय
(261) चरकानुसार ’धमनी शैथिल्य’ किसका लक्षण है।
- (क) मांसक्षय (ख) मेदक्षय (ग) रक्तक्षय (घ) मज्जाक्षय
(262) ‘सन्धिवेदना’ किसका लक्षण है ?
- (क) रक्तक्षय (ख) कफक्षय (ग) मांसक्षय (घ) मेदक्षय
(263) चरकानुसार 'संधिस्फुटन' किसका लक्षण है।
- (क) मांसक्षय (ख) मेदक्षय (ग) मांसक्षय, मेदक्षय (घ) मज्जाक्षय
(264) 'संधिषैथिल्य' किसका लक्षण है।
- (क) मांसक्षय (ख) मेदक्षय (ग) अस्थिक्षय (घ) मज्जाक्षय
(265) निम्न धातुक्षय में ‘प्लीहावृद्धि’ होती है ?
- (क) रस (ख) रक्त (ग) मांस (घ) मेद
(266) अष्टांग हृदयाकार के अनुसार 'तिमिरदर्शन' किसका लक्षण है।
- (क) मज्जाक्षय (ख) शुक्रक्षय (ग) वातवृद्धि (घ) वातक्षय
(267) चरकानुसार ‘सर्वांगनेत्र गौरव’ं किसका लक्षण है।
- (क) मांसक्षय (ख) मांसवृद्धि (ग) मज्जाक्षय (घ) मज्जावृद्धि
(268) ’दौर्बल्यं मुखशोषश्च पाण्डुत्वं सदनं श्रमः’ - चरकानुसार कौनसी धातु के क्षय का लक्षण है।
- (क) रसक्षय (ख) शुक्रक्षय (ग) रक्तक्षय (घ) पित्तक्षय
(269) चरकानुसार ’शीर्यन्त इव चास्थानि दुर्बलानि लघूनि च। प्रततं वातरोगीणि’ - किसके क्षय का लक्षण है।
- (क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा
(270) चरकानुसार ’पिपासा’ किसके क्षय का लक्षण है।
- (क) रस (ख) शुक्र (ग) मूत्र (घ) रक्त
(271) सुश्रुतानुसार ‘आर्तव वृद्धि’ का लक्षण नहीं है।
- (क) अंगमर्द (ख) अतिप्रवृत्ति (ग) दौर्गन्ध्य (घ) योनि वेदना
(272) ‘वस्तितोद’ किसका लक्षण है ?
- (क) मूत्रक्षय (ख) मूत्रवृद्धि (ग) पुरीषवृद्धि (घ) अ, ब दोनों का
(274) अष्टांग हृदय के अनुसार 'कृतेऽप्यकृतसंज्ञ' किसका लक्षण है ?
- (क) मूत्रवृद्धि (ख) पुरीष वृद्धि (ग) कफज अतिसार (घ) अ, स दोनो
(275) 'त्वकषोष स्पर्षवैगुण्य' किसका लक्षण है ?
- (क) रसक्षय (ख) स्वेदक्षय (ग) कफक्षय (घ) रक्तक्षय
(276) षडक्रियाकाल निम्नलिखित में से किस आचार्य का योगदान माना जाता है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(277) षडक्रिया काल का वर्णन सुश्रुत ने किस व्याधि प्रकरण में किया है ?
- (क) गुल्म (ख) अतिसार (ग) व्रण (घ) पाण्डु
(278) षडक्रिया काल में रोगों का कारण है।
- (क) सोत्रोदुष्टि (ख) विमार्ग गमन (ग) षिरो ग्रन्थि (घ) संग
(279) ‘ख वैगुण्य’ का कारण है ?
- (क) दोष (ख) धातु (ग) मल (घ) निदान
(280) षडक्रियाकाल के कौनसे काल में व्याधि के पूर्वरूप प्रकट हो जाते है।
- (क) संचय (ख) प्रकोप (ग) प्रसर (घ) स्थानसंश्रय
(281) ‘विपरीत गुणै इच्छाः’ - षडक्रियाकाल के कौनसे काल का लक्षण है।
- (क) संचय (ख) प्रकोप (ग) प्रसर (घ) स्थानसंश्रय
(282) ‘अन्नद्वेष, ह्नदयोत्क्लेश’ षडक्रियाकाल में कफ की कौनसी अवस्था के लक्षण है।
- (क) संचय (ख) प्रकोप (ग) प्रसर (घ) स्थानसंश्रय
(283) षडक्रियाकाल के कौनसे काल में ‘दोष-दूष्य सम्मूर्च्छना’ पूर्ण हो जाती है।
- (क) स्थानासंश्रय (ख) व्यक्तावस्था (ग) भेदावस्था (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(284) कोष्ठ तोद संचरण लक्षण है।
- (क) संचय का (ख) प्रकोप का (ग) प्रसर का (घ) इनमें में कोई नहीं
(285) प्रकोपावस्था में दोष कहॉ रहते है।
- (क) स्व स्थान पर (ख) अपने स्थान से ऊपर (ग) आमाषय (घ) इनमें में कोई नहीं
(286) कुपित दोषों का प्रसरोत्तर संग किस कारण से होता है ?
- (क) अतिप्रवृत्ति (ख) वायु (ग) विमार्ग गमन (घ) ख वैगुण्य
(287) ‘प्रदोष काल’ में कौनसे दोष का प्रकोप होता है ?
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोष
(288) ‘प्रत्यूषा काल’ में कौनसे दोष का प्रकोप होता है ?
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोष
(289) चरकनुसार मनुष्य शरीर का प्रमाण होता है
- (क) 84 अंगुल पर्व (ख) 84 अंगुल (ग) 120 अंगुल (घ) 3) स्वहस्त
(290) अष्टांग संग्रहकार मनुष्य शरीर का प्रमाण होता है
- (क) 84 अंगुल पर्व (ख) 84 अंगुल (ग) 120 अंगुल (घ) 3) स्वहस्त
(291) चरक संहिता में अग्नि के भेदों का वर्णन किस अध्याय में है।
- (क) अन्नपान विधि (ख) रोगानिक विमान (ग) दोषविमान (घ) ग्रहणी चिकित्सा
(292) न खलु पित्तव्यतिरेकादन्योऽग्निरूपलभ्यते आग्नेयत्वात् पित्ते। - किस आचार्य का कथन हैं ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) भेल
(293) त्रिविध अग्नि - 1. ज्ञानाग्नि 2. दर्षनाग्नि 3. कोष्ठाग्नि - का वर्णन किस ग्रन्थ में है ?
- (क) हारीत संहिता (ख) गर्भोपनिषद् (ग) अष्टांग हृदय (घ) अष्टांग संग्रह
(294) पित्त दोष से अभिभूत अग्नि होती है।
- (क) विषमाग्नि (ख) तीक्ष्णाग्नि (ग) मन्दाग्नि (घ) समाग्नि
(295) चरकानुसार ’मध्य कोष्ठ’ किस दोष के कारण होता है ?
- (क) कफ (ख) पित्त (ग) सर्वदोष (घ) अ, स दोनों
(296) सुश्रुतानुसार ’क्रूर कोष्ठ’ किस दोष के कारण होता है ?
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) वात, कफ
(297) रसशेषाजीर्ण की चिकित्सा में ‘दिन में सोना’ किस आचार्य ने बताया है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट
(298) ‘दिनपाकी अजीर्ण’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है ?
- (क) माधव (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(299) धातु व धात्वाग्नि एवं जठराग्नि व धात्वाग्नि के सम्बन्धो का वर्णन मिलता है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) अष्टांग हृदय (घ) अष्टांग संग्रह
(300) आहार पाचक अग्नि है ?
- (क) जठराग्नि (ख) धातवाग्नि (ग) दोषाग्नि (घ) भूताग्नि
(301) आहारगुण पाचक अग्नि है ?
- (क) जठराग्नि (ख) धातवाग्नि (ग) दोषाग्नि (घ) भूताग्नि
(302) आहार पाक में अम्लपाक अवस्था कहॉ सम्पन्न होती है।
- (क) ग्रहणी (ख) आमाशय (ग) पक्वाशय (घ) अ, स दोनों में
(303) अच्छ पित्त का उल्लेख किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर
(304) आहार परिणामकर भाव नहीं है ?
- (क) वायु (ख) अग्नि (ग) कफ (घ) काल
(305) विदग्धजीर्ण की चिकित्सा है ?
- (क) वमन (ख) स्वेदन (ग) लंघन (घ) दिन में सोना
(306) आमाजीर्ण की चिकित्सा है ?
- (क) वमन (ख) स्वेदन (ग) लंघन (घ) दिन में सोना
(307) काष्यप अनुसार रसषेषाजीर्ण की चिकित्सा है ?
- (क) वमन (ख) स्वेदन (ग) परिशोषण (घ) दिन में सोना
(308) ‘प्राकृत अजीर्ण’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है ?
- (क) माधव (ख) काष्यप (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(309) ‘श्लेष्माजीर्ण’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है ?
- (क) माधव (ख) काष्यप (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर
(310) कौनसी अग्नि श्रेष्ठ होती है ?
- (क) जठराग्नि (ख) धातवाग्नि (ग) दोषाग्नि (घ) भूताग्नि
(311) द्वारकानाथ के अनुसार भूताग्नि का स्थान है।
- (क) यकृत (ख) अग्नाषय (ग) आमाषय (घ) पित्ताषय
(312) कुक्षि के 4 भागों का उल्लेख किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) वाग्भट्ट (ग) काश्यप (घ) ब, स दोनों ने
(313) ‘सप्ताहार कल्पना’ का वर्णन किस ग्रन्थ में है।
- (क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहिता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग हृदय
(314) चरकोक्त ‘अष्टविध आहारविशेषायतन’ में षामिल नहीं है।
- (क) उपयोग संस्था (ख) उपयोक्ता (ग) उपभोक्ता (घ) उपर्युक्त सभी
(315) सर्वग्रह और परिग्रह - किसके भेद है।
- (क) मात्रा (ख) राषि (ग) ग्रहरोग (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(316) ‘नित्यग’ के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही हैं ?
- (क) ‘नित्यग’ आयु का पर्याय है (ख) ‘नित्यग’ काल का भेद है (ग) दोनों (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(317) चरकानुसार कौनसा काल ‘ऋतुसात्म्य’ की अपेक्षा रखता है
- (क) नित्यग (ख) आवस्थिक (ग) वर्तमान (घ) भूतकाल
(318) आहार उपयोग करने के नियम किसके अंर्तगत आते है।
- (क) उपयोग संस्था (ख) उपयोक्ता (ग) उपयोगव्यवस्था (घ) उपरोक्त कोई नहीं
(319) चरकानुसार ‘ओकसात्म्य’ किसके अधीन रहता है।
- (क) उपयोग संस्था (ख) उपयोक्ता (ग) उपयोगव्यवस्था (घ) उपभोक्ता
(320) ‘अष्टविध आहारविशेषायतन’ का सर्वप्रथम वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(321) ‘अष्टविध परीक्षा’ किस आचार्य का अवदान है।
- (क) योग रत्नाकर (ख) चक्रपाणि (ग) शारंर्ग्धर (घ) डल्हण
(322) ‘अष्टविध परीक्षा’ में शामिल नहीं है।
- (क) शब्द परीक्षा (ख) स्पर्ष परीक्षा (ग) गंध परीक्षा (घ) आकृति परीक्षा
(323) ‘तैलबिन्दु मूत्र परीक्षा’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) योग रत्नाकर (ख) चक्रपाणि (ग) शारंर्ग्धर (घ) डल्हण
(324) मूत्र में तैल बिन्दु डालते ही न फैलकर एक स्थान पर स्थिर रहे तब वह रोग होगा ?
- (क) साध्य रोग (ख) कष्टसाध्य रोग (ग) याप्य रोग (घ) असाध्य रोग
(325) मूत्र में तैल बिन्दु डालते ही तैल बिन्दु डालते ही फैल जाये तब वह रोग होगा ?
- (क) साध्य रोग (ख) कष्टसाध्य रोग (ग) याप्य रोग (घ) असाध्य रोग
(326) मूत्र में तैल बिन्दु डालते ही ईशान कोण में तैल बिन्दु फैल जाए तब वह रोग का परिणाम क्या होगा ?
- (क) जीवन 1 माह केवल (ख) निश्चित रूप से आरोग्य (ग) मृत्यु निश्चित है (घ) असाध्य रोग है।
(327) मूत्र में तैल बिन्दु डालते ही उत्तर दिषा में तैल बिन्दु फैल जाए तब वह रोग का परिणाम क्या होगा ?
- (क) जीवन 1 माह केवल (ख) निश्चित रूप से आरोग्य (ग) मृत्यु निश्चित है (घ) असाध्य रोग है।
(328) मूत्र परीक्षा में यदि तैल बिन्दु का आकार सर्प सदृश्य बने तो उसी रोगी किस दोषज विकार से ग्रस्त है ?
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोष
(329) मूत्र परीक्षा में यदि तैल बिन्दु का आकार छत्र सदृश्य बने तो उसी रोगी किस दोषज विकार से ग्रस्त है ?
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोष
(330) मूत्र परीक्षा में यदि तैल बिन्दु का आकार मुक्ता सदृश्य बने तो तब रोगी किस दोषज विकार से ग्रस्त है ?
- (क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) त्रिदोष
(331) मूत्र में तैल बिन्दु की आकृति मनुष्य सदृश्य दिखे तब रोगी में कौनसा दोष होता है ?
- (क) कुल दोष (ख) प्रेत दोष (ग) भूत दोष (घ) त्रिदोष
(332) नाडी परीक्षा का सर्वप्रथम वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) कणाद ने (ख) रावण ने (ग) शारंर्ग्धर ने (घ) गंगाधर ने
(333) ‘नाडी विज्ञानम्’ नामक ग्रन्थ के रचेयिता है।
- (क) कणाद (ख) रावण (ग) शारंर्ग्धर (घ) गंगाधर
(334) शागंर्धर संहिता के कौनसे खण्ड में नाडी परीक्षा का वर्णन देखने को मिलता हैं।
- (क) पूर्व खण्ड (ख) मध्य खण्ड (ग) उत्तर खण्ड (घ) कोई नहीं
(335) नाडी परीक्षा का सही काल है।
- (क) प्रातः काल (ख) सायं काल (ग) मध्य काल (घ) रात्रि में
(336) सर्प, जलौका सम - नाडी की गति होती है।
- (क) वात दोष में (ख) पित्त दोष में (ग) कफ दोष में (घ) सर्व दोष में
(337) कुलिंग, काक, मण्डूक सम - नाडी की गति होती है।
- (क) वात दोष में (ख) पित्त दोष में (ग) कफ दोष में (घ) सर्व दोष में
(338) हंस, पारावत सम - नाडी की गति होती है।
- (क) वात दोष में (ख) पित्त दोष में (ग) कफ दोष में (घ) सर्व दोष में
(339) लाव, तित्तर, बत्तख सम - नाडी की गति किस दोष के कारण होती है ?
- (क) वात दोष में (ख) पित्त दोष में (ग) कफ दोष में (घ) सर्व दोष में
(340) आमदोष में नाडी की गति कैसी होती है।
- (क) गरीयसी (ख) कोष्णा गुर्वी (ग) सोष्ठा, वेगवती (घ) मन्दतरा
(341) वाग्भट्टानुसार कौनसी प्रकृति निन्दनीय है।
- (क) वातज (ख) द्वन्द्वज (ग) कफज (घ) सम
(342) ’रोषण’ किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(343) ’दन्तषूका’ किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(344) 'प्रभूताशनापाना' किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(345) ’परिनिष्चतवाक्यपदः’ किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(346) ’क्रोधी’ किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है ?
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(347) ’सदा व्यथितास्यगति’ किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(348) ’रक्तान्तनेत्रः’ किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सम
(349) मानस प्रकृति की संख्या 18 किस आचार्य ने बतलायी है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) चक्रपाणि
(350) ’आदेय वाक्यं’ किस सात्विक प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) ब्रह्म सत्व (ख) ऐन्द्र सत्व (ग) आर्ष सत्व (घ) याम्य सत्व
(351) ’असम्प्रहार्य’ किस सात्विक प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) ब्रह्म सत्व (ख) ऐन्द्र सत्व (ग) आर्ष सत्व (घ) याम्य सत्व
(352) ’अनुबन्धकोपं’ किस राजस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) आसुर सत्व (ख) राक्षस सत्व (ग) प्रेत सत्व (घ) पिशाच सत्व
(353) ’महाशन’ किस राजस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) आसुर सत्व (ख) राक्षस सत्व (ग) प्रेत सत्व (घ) पिशाच सत्व
(354) ’आहारलुब्धः’ किस तामस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) पाशव सत्व (ख) मात्स्य सत्व (ग) वानस्पत्य सत्व (घ) कोई नहीं
(355) सुश्रुतानुसार ’पैंगल्य’ निम्न में से किस मानस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) ब्राह्म काय (ख) गान्धर्व काय (ग) वारूण काय (घ) याम्य काय
(356) सुश्रुतानुसार ’तीक्ष्णमायासबहुलं’ निम्न में से किस मानस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) प्रेत काय (ख) पिषाच काय (ग) सर्प काय (घ) आसुर काय
(357) ’सततं शास्त्रबुद्धिता’ किस सात्विक प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) ब्राह्म काय (ख) ऐन्द्र काय (ग) आर्ष काय (घ) याम्य काय
(358) ’अलसं केवलमभिनिविष्टम् आहारे’ - किस तामस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है।
- (क) पाशव सत्व (ख) मात्स्य सत्व (ग) वानस्पत्य सत्व (घ) इनमें से कोई नहीं
(359) कौनसी प्रकृति श्रेष्ठ होती है।
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(360) कौनसी प्रकृति उत्तम होती है।
- (क) वातज (ख) पित्त ज (ग) कफज (घ) सम
(361) 'महत्' किसका पर्याय है।
- (क) वायु का (ख) मन का (ग) हृदय का (घ) आत्मा का
(362) सुश्रुतानुसार हृदय का प्रमाण होता है।
- (क) स्वपाणितल कुच्चित संमिताणि (ख) 4 अंगुल (ग) 2 अंगुल (घ) आत्मपाणितल
(363) पुण्डरीकेण सदृषं है।
- (क) हृदय (ख) मूर्धा (ग) बस्ति (घ) नाभि
(364) आचार्य सुश्रुत मतानुसार ‘उरस्यामाशयद्वारं’ प्रयोग किया गया है।
- (क) हृदय मर्म के लिए (ख) नाभि मर्म के लिए (ग) अपलाप मर्म के लिए (घ) स्तनमूल के लिए
(365) शांरर्ग्धर के अनुसार प्राण वायु का स्थान होता है।
- (क) हृदय (ख) मूर्धा (ग) उरः (घ) नाभि
(366) ‘श्वसन क्रिया’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है।
- (क) योग रत्नाकर (ख) चक्रपाणि (ग) शारंर्ग्धर (घ) डल्हण
(367) ’रस का संवहन’ कौनसी वायु द्वारा होता है।
- (क) प्राण वायु (ख) उदान वायु (ग) व्यान वायु (घ) समान वायु
(368) ’स्वेद का विस्रावण’ कौनसी वायु द्वारा होता है।
- (क) प्राण वायु (ख) उदान वायु (ग) व्यान वायु (घ) समान वायु
(369) सुश्रुतानुसार ‘मलाधार’ किसका पर्याय है।
- (क) पक्वाषय (ख) गुद (ग) बस्ति (घ) शरीर
(370) त्रिदोष हेतु ‘सर्वरोगाणां एककरणम्’ किसका कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) माधव
(371) षडचक्र का वर्णन निम्न में से कौनसे ग्रन्थ में है।
- (क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहिता (ग) गोरख संहिता (घ) हारीत संहिता
(372) अनाहत चक्र में दलों की संख्या होती है।
- (क) 4 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 12
(373) मणिपुर चक्र मिलता है।
- (क) हृदय में (ख) कण्ठ में (ग) नाभि में (घ) गुदा में
(374) प्राचीनतम नाडियों में समाविष्ट हैं ?
- (क) प्राची (ख) उदीची (ग) सरस्वती (घ) इन्द्रा
(375) प्राचीन तन्त्र शरीर में वर्णित है ?
- (क) षटचक्र (ख) सप्तचक्र (ग) अष्टचक्र (घ) इनमें से कोई नहीं
(376) योगषास्त्र में स्वाधिष्ठान चक्र को किस वर्ण का माना गया है ?
- (क) रक्त वर्ण (ख) पीत वर्ण (ग) श्वेत वर्ण (घ) नील वर्ण
(377) दिवास्वप्न जन्य विकार है।
- (क) हलीमक (ख) गुरूगात्रता (ग) इन्द्रिय विकार (घ) उपर्युक्त सभी
(378) ‘यदा तू मनसि क्लान्ते कर्माव्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा ..... मानवः।
- (क) निद्रा भवति (ख) स्वपिति (ग) स्वपनः (घ) निद्रा
(379) चरकानुसार ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतु में दिवास्वप्न से किसका प्रकोप होता है।
- (क) कफ (ख) कफपित्त (ग) त्रिदोष (घ) वात
(380) कौनसी निद्रा व्याधि को निर्दिष्ट नहीं करती है।
- (क) श्लेष्मसमुद्भवा (ख) मनःशरीरश्रमसम्भवा (ग) आगन्तुकी (घ) तमोभवा
(381) चरकानुसार अतिनिद्रा की चिकित्सा में निम्न में से किसका निर्देष किया है।
- (क) रक्तमोक्षण (ख) षिरोविरेचन (ग) कायविरेचन (घ) उपर्युक्त सभी
(382) रात्रौ जागरण रूक्षं स्निग्धं प्रस्वपनं दिवा। अरूक्षं अनभिष्यन्दि .....।
- (क) प्रजारण (ख) त्वासीनं प्रचलायितम् (ग) भुक्त्वा च दिवास्वप्नं (घ) सम निद्रा
(383) रस निमित्तमेव स्थौल्यं कार्श्य च। - किस आचार्य का कथन है।
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काष्यप
(384) ‘अनवबोधिनी’ कौनसी निद्रा को कहा गया है।
- (क) वैष्णवी (ख) वैकारिकी (ग) तामसी (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
(385) भावप्रकाष के अनुसार दिवास्वप्न का काल है।
- (क) 1 मूर्हूत (ख) 1 प्रहर (ग) अर्द्ध प्रहर (घ) 2 मूर्हूत
(386) सामान्य निद्राकाल है।
- (क) 4 मूर्हूत (ख) 2 याम (ग) 4 याम (घ) 2-3 याम
(387) तुरीयावस्था का संबध किससे है -
- (क) निद्रा से (ख) मन से (ग) आत्मा से (घ) ब, स दोनों से
(388) आयुर्वेदानुसार धमनी का लक्षण है।
- (क) हृदगामिनी (ख) ध्मानात् धमन्यः (ग) सरणात् धमन्यः (घ) शुद्ध रक्तवाहिनी
(389) किस संहिता में 'स्रोतसामेव समुदाय पुरूषः’ बताया गया है।
- (क) चरक संहिता (ख) काष्यप संहिता (ग) शारंर्ग्धर संहिता (घ) योग रत्नाकर
(390) शागंर्धर के अनुसार ’दृष्टि-क्षय’ किस आयु में होता है ।
- (क) 60 वर्ष (ख) 70 वर्ष (ग) 80 वर्ष (घ) 90 वर्ष
(391) शागंर्धर के अनुसार ’बुद्धि-क्षय’ किस आयु में होता है।
- (क) 60 वर्ष (ख) 70 वर्ष (ग) 80 वर्ष (घ) 90 वर्ष
(392) चरकानुसार स्वप्न के भेद होते है।
- (क) 4 (ख) 5 (ग) 7 (घ) 8
(393) चरकानुसार स्वप्न का भेद नहीं है।
- (क) दृष्ट (ख) श्रुत (ग) दोषज (घ) दिवास्वप्न
(394) चरकानुसार कौनसा स्वप्न निष्फल है।
- (क) प्रार्थित (ख) कल्पित (ग) अनुभूत (घ) उपर्युक्त सभी
(395) चरकानुसार ‘शुभ और अशुभ’ फल को देने वाला स्वप्न है।
- (क) दोषज (ख) भाविक (ग) दोनों (घ) उपर्युक्त कोई नहीं
(396) काष्यपानुसार फलदायी स्वप्न के भेद होते है।
- (क) 6 (ख) 5 (ग) 7 (घ) 10
(397) दोष साम्यावस्था में किसकी तरह व्यवहार करते है ?
- (क) दोष (ख) धातु (ग) मल (घ) इनमे से कोई नहीं
(398) क्लोम को पिपासा का मूल किसने है ?
- (क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) शारंर्ग्धर (घ) माधव
(399) सुश्रुतानुसार 'कृष्ण’ वर्ण की वर्णोत्पत्ति में कौन से महाभूत सहायक होते है।
- (क) तेज + पृथ्वी (ख) तेज, पृथ्वी, वायु (ग) तेज + जल (घ) तेज, पृथ्वी, आकाश
(340) चरकानुसार 'कृष्ण’ वर्ण की वर्णोत्पित्त में कौनसे महाभूत सहायक होते है।
- (क) तेज + पृथ्वी (ख) तेज, पृथ्वी, वायु (ग) तेज + जल (घ) तेज, पृथ्वी, आकाश
- उत्तरमाला
1. क | 21. ख | 41. ग | 61. ग | 81. घ |
2. घ | 22. ख | 42. ख | 62. ख | 82. क |
3. ग | 23. ख | 43. ग | 63. क | 83. ख |
4. घ | 24. ख | 44. ख | 64. ग | 84. ग |
5. घ | 25. घ | 45. घ | 65. ग | 85. ग |
6. ग | 26. ग | 46. ग | 66. ख | 86. क |
7. घ | 27. ख | 47. ग | 67. घ | 87. ग |
8. ख | 28. ग | 48. ख | 68. घ | 88. ग |
9. ग | 29. ग | 49. ग | 69. ग | 89. घ |
10. घ | 30. ग | 50. क | 70. ग | 90. क |
11. क | 31. क | 51. घ | 71. क | 91. घ |
12. ग | 32. ग | 52. घ | 72. ग | 92. ख |
13. ग | 33. ग | 53. ख | 73. ग | 93. घ |
14. ख | 34. ख | 54. ग | 74. क | 94. ग |
15. ख | 35. क | 55. क | 75. ख | 95. ख |
16. क | 36. ख | 56. ख | 76. क | 96. क |
17. ख | 37. ग | 57. ग | 77. घ | 97. ग |
18. क | 38. ग | 58. ग | 78. ख | 98. ग |
19. ख | 39. ग | 59. ग | 79. ग | 99. ख |
20. घ | 40. ख | 60. घ | 80. ग | 100. घ |
101. ख | 121. घ | 141. ग | 161. क | 181. क |
102. ग | 122. ग | 142. घ | 162. क | 182. घ |
103. ग | 123. ग | 143. ख | 163. ख | 183. घ |
104. ख | 124. ख | 144. क | 164. ग | 184. घ |
105. क | 125. क | 145. क | 165. घ | 185. क |
106. क | 126. ख | 146. ख | 166. ग | 186. घ |
107. घ | 127. घ | 147. ख | 167. ग | 187. क |
108. घ | 128. ख | 148. ख | 168. क | 188. ग |
109. घ | 129. ग | 149. ग | 169. ख | 189. ख |
110. ख | 130. घ | 150. घ | 170. ख | 190. ख |
111. घ | 131. घ | 151. क | 171. क | 191. घ |
112. घ | 132. ख | 152. क | 172. ग | 192. ख |
113. घ | 133. घ | 153. ख | 173. ख | 193. ख |
114. घ | 134. क | 154. क | 174. ख | 194. क |
115. ख | 135. ख | 155. ग | 175. ख | 195. ग |
116. घ | 136. क | 156. क | 176. घ | 196. घ |
117. ख | 137. क | 157. क | 177. ग | 197. क |
118. क | 138. ख | 158. ख | 178. क | 198. ग |
119. ख | 139. क | 159. ग | 179. ख | 199. ख |
120. क | 140. क | 160. घ | 180. ख | 200. क |
201. ख | 221. ग | 241. घ | 261. क | 281. क |
202. घ | 222. ख | 242. घ | 262. ग | 282. ख |
203. ख | 223. घ | 243. क | 263. ख | 283. ख |
204. ख | 224. घ | 244. ग | 264. ग | 284. ख |
205. ख | 225. क | 245. क | 265. घ | 285. ख |
206. घ | 226. क | 246. ख | 266. क | 286. घ |
207. ग | 227. ग | 247. ग | 267. घ | 287. क |
208. ग | 228. घ | 248. क | 268. ख | 288. क |
209. घ | 229. घ | 249. क | 269. घ | 289. क |
210. घ | 230. ग | 250. ख | 270. ग | 290. ख |
211. ग | 231. ग | 251. क | 271. घ | 291. ख |
212. घ | 232. ग | 252. ख | 272. घ | 292. ख |
213. घ | 233. क | 253. ग | 273. घ | 293. ख |
214. ख | 234. ख | 254. घ | 274. घ | 294. ख |
215. घ | 235. ग | 255. ग | 275. ख | 295. घ |
216. क | 236. क | 256. घ | 276. ख | 296. घ |
217. क | 237. ग | 257. ख | 277. ग | 297. ख |
218. ग | 238. ग | 258. क | 278. क | 298. क |
219. ग | 239. क | 259. घ | 279. क | 299. ग |
220. घ | 240. ख | 260. ग | 280. घ | 300. क |
301. घ | 321. क | 341. ख | 361. ग | 381. घ |
302. क | 322. ग | 342. ख | 362. क | 382. ख |
303. क | 323. क | 343. ख | 363. क | 383. ख |
304. ग | 324. ख | 344. ख | 364. क | 384. ग |
305. क | 325. क | 345. ग | 365. घ | 385. क |
306. ग | 326. क | 346. क | 366. ग | 386. घ |
307. ग | 327. ख | 347. ख | 367. ग | 387. ख |
308. क | 328. क | 348. ग | 368. ग | 388. ख |
309. ख | 329. ख | 349. ग | 369. ग | 389. क |
310. क | 330. ग | 350. ख | 370. ग | 390. क |
311. क | 331. ग | 351. घ | 371. ग | 391. घ |
312. घ | 332. ग | 352. ख | 372. घ | 392. ग |
313. ग | 333. क | 353. घ | 373. ग | 393. घ |
314. ग | 334. क | 354. ख | 374. ग | 394. घ |
315. ख | 335. क | 355. ग | 375. क | 395. ग |
316. ग | 336. क | 356. ग | 376. क | 396. क |
317. क | 337. ख | 357. ख | 377. घ | 397. ख |
318. क | 338. ग | 358. ग | 378. ख | 398. ग |
319. ख | 339. घ | 359. घ | 379. ख | 399. क |
320. क | 340. क | 360. ग | 380. घ | 400. ख |