आर्थिक एवं सामाजिक विकास लोकसेवा अध्यायवार हल प्रश्नोत्तर/रोजगार एवं कल्याण योजनाएं

विकिपुस्तक से
  • किसी देश में कार्य करने की आयु 15 से 65 वर्ष वाले सभी व्यक्तियों को संयुक्त रूप से उस देश की श्रम शक्ति लेबर फोर्स कहा जाता है। इसमें रोजगार प्राप्त व्यक्ति एवं बेरोजगार व्यक्ति दोनों आते हैं।
  • रोजगार के संदर्भ में 273 दिनों तक प्रतिदिन 8 घंटे के बारे को मानक वर्ष कहा जाता है जो व्यक्ति इतने दिनों तक रोजगार में है उसे पूर्ण रोजगार में माना जाता है उन व्यक्तियों को कार्य करने की क्षमता तथा इच्छा रखते हैं एवं दूरी पर कार्य हेतु प्रस्तुत होते हैं परंतु उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता हो।
  • बेरोजगारी के प्रमुख स्वरूप चक्रीय बेरोजगारी ऐसी बेरोजगारी जो बाजार ऊंचा वचनों के कारण मांग में कमी से उत्पन्न होती है तथा मांग में वृद्धि होने से पुनः समाप्त हो जाती है चक्रीय बेरोजगारी या विकसित देशों में सामान्यतः देखी जाती है।
  1. घर्षणजनित बेरोजगारी:-वास्तव में एक रोजगार को छोड़कर दूसरे रोजगार की प्राप्ति के मध्य की अवधि की बेरोजगारी है तकनीक आदि में परिवर्तन के कारण नौकरियों में छंटनी इस बेरोजगारी का प्रमुख कारण है यह भी विकसित देशों की सामान्य विशेषता है।
  2. संरचनात्मक बेरोजगारी:-इस तरह की बेरोजगारी लोगों में कौशल के अभाव की स्थिति में उत्पन्न होती है।अर्थात जब लोग रोजगार के अनुरूप योग्यता आधारित कर पाने के कारण बेरोजगार बने रहें तो इस बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहा जाता है यह विकास एवं सामान्य विशेषता है भारत में भी संरचनात्मक बेरोजगारी का स्तर उच्च है।
  3. मौसमी बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में सर्वाधिक पाई जाने वाली कृषि क्षेत्र में वर्ष के महीनों में काम बढ़ जाता है,जिससे रोजगार की संख्या बढ़ जाती है परंतु शेष महीनों में बेरोजगारी बनी रहती है मौसमी बेरोजगारी विकासशील एवं देशों की सामान्य विशेषता है।
  4. प्रच्छन्न बेरोजगारी किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लगे हुए लोगों को तकनीकी रूप से बेरोजगार माना जाता है।अर्थात यदि किसी रोजगार में आवश्यकता से अधिक लोग लगे हुए हों,तो उस रोजगार से अतिरिक्त लोगों को निकाल देने पर भी उत्पादन का स्तर वही बना रहे,तो निकाले गए अतिरिक्त लोगों को प्रच्छन्न बेरोजगार माना जाता है। तकनीकी शब्दों में जिस व्यक्ति की सीमांत उपयोगिता शून्य हो।(अर्थात उसका उत्पादन में कोई अतिरिक्त योगदान ना हो)भले ही वह रोजगार में क्यों ना हो?

प्रच्छन्न बेरोजगारी प्राथमिक क्षेत्र (विशेषकर कृषि क्षेत्र)में बहुतायत में पाई जाती है। भारत में बेरोजगारी मापन की तीन विधियां प्रचलन में हैं-सामान्य स्थिति,चालू साप्ताहिक स्थिति तथा चालू दैनिक स्थिति।यदि कोई व्यक्ति वर्ष में आधे से अधिक दिनों (183)दिन तक रोजगार प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसे सामान्य स्थिति का बेरोज़गार बार माना जाता है।