आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20/अर्थव्यवस्था की स्थिति

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वैश्विक अर्थव्यवस्था परिदृश्य (2019-20)[सम्पादन]

वैश्विक अर्थव्यवस्था परिदृश्य
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा जनवरी-2020 में प्रकाशित " वर्ल्ड इकॉनमिक आउटलुक(WEO)" के अनुसार वर्ष 2019 में वैश्विक उत्पादन वृद्धि (Globel GDP Groth Rate) 2.9% पर बनी रहेगी। वर्ष 2018 में यह 3.6% और वर्ष 2017 में 3.8 % थी।
  • वर्ष 2019 में वैश्विक उत्पादन में धीमी वृद्धि दर का कारण निर्माण संबंधी गतिविधियों और व्यापारिक कार्यकलापों में भौगोलिक रूप से आई व्यापक गिरावट को माना जा रहा है।वर्ष 2019 में वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था की किसी भी श्रेणी में सामान्य उत्पादन वृद्धि दर वर्ष 2014-18 की तुलना में कम रही है।
  • उपभोक्ता कीमत वृद्धि (Consumer Price Inflation-CPI) EDA देशों में वर्ष 2019 में सर्वाधिक रही है।
  • भारत में मुद्रास्फीति की दर वर्ष 2019 के अप्रैल-दिसंबर माह में 4.1% देखी गई जो वर्ष 2015 में 5.9% तथा वर्ष 2018 में 3.4% रही।वर्ष 2019 में मुद्रास्फीति दर में उछाल का कारण खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation) को माना गया है।

2019 में विश्व की अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट देखने को मिली है विशेष रूप से ऑटोमोबाइल उद्योग के वैश्विक उत्पादन में। गिरावट का प्रमुख कारण मांग में कमी का होना है तथा मांग में कमी के कारण बहुत से देशों में प्रौद्योगिकी और उत्सर्जन मानकों में कई तरह के बदलाव किये गए हैं। भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भी इसी तरह की गिरावट देखी गई है।

  • यह वर्ष 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से वैश्विक उत्पादन में सबसे धीमी वृद्धि दर को इंगित करता है जो कि विनिर्माण संबंधी गतिविधियों व्यापार और मांग में भौगोलिक रूप से आई व्यापक गिरावट के कारण उत्पन्न हुई है इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
  • चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य व्यापारिक तनाव के कारण उत्पन्न अनिश्चितता संयुक्त राज्य अमेरिका एवं ईरान के मध्य भू राजनीतिक तनाव तथा बढ़ती व्यापार बाधाएं उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में म्यूट मुद्रा स्थिति के कारण उपभोक्ता मांग में कमी।
  • मांग में कमी के कारण ऑटोमोबाइल उद्योग के वैश्विक उत्पादन में तीव्र गिरावट आई है अनेक देशों में प्रौद्योगिकी और उत्सर्जन मानकों में क्षेत्र में हुए परिवर्तन को इसका कारण बताया जा रहा है।
  • विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात की वृद्धि दर में गिरावट आई है।
  • भारत के ऑटो उद्योग और विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में भी गिरावट आई है।

भारतीय अर्थव्यवस्था (2019-20)[सम्पादन]

भारतीय अर्थव्यवस्था का बढ़ता आकार
  • IMF द्वारा अक्तूबर 2019 में प्रकाशित वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (WEO) रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिकी डाॅलर मूल्यों पर प्रचलित सकल घरेलू उत्पाद (GDP at Currunt Prices) के आधार पर विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अनुमान लगाया गया है। उपर्युक्त उपलब्धि को हासिल करते ही भारत, यूनाइटेड किंगडम (UK) और फ्राँस को पीछे छोड़ देगा।
  • वर्ष 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2.9 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर होने का आकलन किया गया है।
  • विगत 5 वर्षों वार्षिक औसत वृद्धि दर 7.5% और मुद्रास्फीति की वार्षिक औसत दर 4.5% थी अर्थशास्त्री घटना चक्र के चलते भारत की समृद्धि के रिकॉर्ड को देखते हुए,2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाए जाने संबंधी दृष्टिकोण पर स्पष्ट बल दिया गया है।

वर्ष 2019-20 में सकल मूल्य वर्धित(GVA) और सकल घरेलू उत्पाद(GDP) की वृद्धि दर[सम्पादन]

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वर्ष 2019-20 की प्रथम छमाही(अप्रैल-सितंबर) में भारतीय जीडीपी में 4.8% की वृद्धि होने का अनुमान लगाया है,जो 2018-19 की दूसरी छमाही (अक्टूबर-मार्च) में दर्ज की गई 6.2% की वृद्धि की अपेक्षा कम है।

  • आपूर्ति पक्ष के संबंध में कृषि और संबद्ध गतिविधियों और लोक प्रशासन और रक्षा और अन्य सेवाओं को छोड़कर सभी क्षेत्रों द्वारा सामान्य तौर पर जीडीपी वृद्धि में योगदान किया गया है।
  • मांग पक्ष के संबंध में रियल फिक्स इन्वेस्टमेंट(वास्तविक अचल निवेश) की वृद्धि में गिरावट के कारण GDP वृद्धि में गिरावट दर्ज की गई है जो वास्तविक उपभोग की धीमी वृद्धि से प्रेरित है।
प्रथम अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2019-20 के दौरान वास्तविक GDP में 5% की वृद्धि होना अनुमानित है,जबकि वर्ष 2018-19 में GDP वृद्धि दर 6.8% दर्ज की गई थी। वर्ष 2018-19 के लिए GDP के अनंतिम अनुमानों पर सांकेतिक GDP में 7.5% की वृद्धि अनुमानित है।
वर्ष 2018-19 की तुलना में वर्ष 2019-20 में अनुमानित रुझान

चालू कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में कुल उपभोग एवं

एवं निर्यात के योगदान में वृद्धि होने का अनुमान है चालू कीमतों पर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्थाई निवेश और मूल कीमतों पर वास्तविक जीबीए वृद्धि में कमी होने का अनुमान है कि लोक प्रशासन रक्षा और अन्य सेवाओं

को छोड़कर सभी क्षेत्रों में बीबीए वृद्धि में गिरावट होने का अनुमान है वृद्धि का सूचक है यह एक ऐसा चक्र है जिसमें आंचल निवेश की दर में वृद्धि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को तीव्र करती है जो उपभोग को अपेक्षाकृत उच्च वृद्धि की ओर प्रवृत्त करती है अपेक्षाकृत उच्च वृद्धि में निवेश परिदृश्य विस्तारित होता है जो क्रमिक रूप से पुनः अर्चन निवेश में परिणत हो जाता है और जीडीपी वृद्धि को तीव्र करता है तथा उपभोग अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि को प्रेरित करता है अपेक्षाकृत अधिक आंचल निवेश - जीडीपी वृद्धि वृद्धि के सूचक से देश में आर्थिक विकास होता है।

वृद्धि में हालिया गिरावट रियल सेक्टर पर वित्तीय क्षेत्र द्वारा अवरोध वृद्धि का मंडल चक्र जब वृद्धि का सूचक धीमी गति से खुलता है तो अचल निवेश में कमी से जीडीपी वृद्धि में भी कमी हो जाती है जो अंततः उपभोग वृद्धि में कमी का कारण बनती है भारत के मामले में अचल निवेश की दाल और जीडीपी वृद्धि के मध्य इस कम होते प्रभाव को 3 से 4 वर्ष तक देखा जा सकता है और उपभोग में वृद्धि पर गिरती वृद्धि का प्रभाव 1 से 2 वर्ष में परिलक्षित होता है वर्ष 2011 12 के पश्चात से आंचल निवेश दर में गिरावट होना शुरू हुई है और वर्ष 2016 17 के बाद से यह जल बनी हुई है जिसके कारण वर्ष 2018 के बाद वृद्धि में गिरावट आई है

आंचल निवेश दर में कमी वर्ष 2914 से वर्ष 2014 19 के मध्य अधिकांश परिवारों का समग्र जल निवेश 100.3% से कम होकर 10.5% हो गया सार्वजनिक क्षेत्र में आंशिक रूप से निवेश दो अवधि के दौरान जीडीपी के 7.2% से घटकर 1% हो गया है वर्ष 2011 और वर्ष 2018 के मध्य तक घरेलू उत्पाद के लगभग 5% तक निवेश में समृद्धि और विशेष रूप से, जीडीपी एवं भोग में हुई हालिया मंदी को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

निजी कारपोरेट निवेश पर वित्तीय क्षेत्र का अवरोध[सम्पादन]

अकस्मात रूप से ऋण का विस्तार विशुद्ध रूप से आपूर्ति से प्रेरित होता है इसके परिणाम स्वरूप अल्पकालिक उत्पादन और रोजगार वृद्धि हो सकती है किंतु दीर्घकाल में यह महत्वपूर्ण संकुचन का कारण बनता है अधिकांश मामलों में क्रेडिट चैनल के माध्यम से कार्य करता है यहां घरेलू ऋण की मांग लघु अवधि के लिए वृद्धि होती है और यह मांग चरण में अगले चरण में कम हो गई जिसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई भारतीय परिदृश्य में निवेश के माध्यम से कार्य करता है

कारपोरेट क्षेत्र में लाभ ऊपर आंतक और निम्न निवेश का चित्रण किया गया है जो अंततः जीडीपी वृद्धि में हालिया गिरावट का कारण रही है यहां पर यह कहना उपयोगी होगा की वृद्धि कम होने के चक्र का मूल कारण 21वीं सदी के प्रथम दशक के मध्य तथा उसके बाद दिनों में अत्यधिक वृद्धि रही है इस संबंध के माध्यम से देखा जा सकता है कि जिन्होंने वर्ष 2008 सात आठ से 11 12 की अवधि के मध्य उधार लिया था उन्होंने वर्ष 2012 से 2017 की अवधि के दौरान काफी कम निवेश किया

डिलीवरी जिंग किसी के असर को कम करने हेतु त्वरित रूप से उसकी संपत्ति को विक्रय करने की प्रक्रिया

निजी उपभोग में विलंब गिरावट वर्ष 2916 तक जीडीपी के अनुपात के संदर्भ में निजी उपभोग में वृद्धि हुई थी इसके बाद वर्ष 2017 अट्ठारह में गिरावट दर्ज की गई और वर्ष 2019 विश्व की प्रथम छमाही में तेजी से कमी आने से पहले दो हजार अट्ठारह उन्नीस में पुनः इसमें वृद्धि हुई थी एक-दो वर्ष की अवधि में गिरावट के बाद से उपभोग पर सकल घरेलू उत्पाद का प्रभाव कई गुना हो गया इसलिए वर्ष दो हजार सत्रह अट्ठारह से उपभोग में गिरते हुए रुझान पर जीडीपी वृद्धि में आंशिक गिरावट का प्रभाव प्रतिबिंबित होता है

संभावनाएं अपने वर्ल्ड इकोनामिक आउटलुक के जनवरी 2020 के अध्ययन में यह अनुमान व्यक्त किया है कि वर्ष 2021 में भारत की जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर 5.8% होगी ग्लोबल इकोनामिक प्रोस्पेक्ट्स में जनवरी 2020 में यह अनुमान व्यक्त किया कि वर्ष 2020 में भारत की जीडीपी

की वास्तविक वृद्धि दर 5.8% होगी किंतु जीडीपी में संभावित वृद्धि के संदर्भ में नकारात्मक और सकारात्मक दोनों हैं इसके बारे में चर्चा की गई है नकारात्मक वैश्विक व्यापार में निरंतर वृद्धि से उत्पादन वृद्धि में विलंब हो सकता है।

जो देश के निर्यात निष्पादन को बाधित करेगा अमेरिका ईरान कीमत व्याप्त बुराई नैतिक तनाव से कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होगी तथा रुपए में गिरावट होगी एवं प्रवाह

कम हो सकता है यदि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने हेतु उन्नत देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा अल्पकालिक ब्याज दरें बढ़ाई जाएंगी तो इसके परिणाम स्वरूप भारत सहित उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी का पलायन हो सकता है यदि वाला शोधन क्षमता संहिता का कार्यान्वयन तीव्र गति से नहीं होता है तो भविष्य में बैंकों के ऋण जोखिम कम नहीं होंगे जो मौद्रिक नीति को प्रभावित करेगा राष्ट्रीय संरचना पाइप लाइन के कार्यान्वयन से राजकोषीय घाटा होगा जिसे संभवत निजी क्षेत्र की समस्या उत्पन्न हो सकती है

ऐसे में यदि निजी क्षेत्र निवेश के लिए बाहर फंडिंग पर निर्भर होगा तो इससे चालू खाता घाटा में वृद्धि होगी और रुपए का अवमूल्यन होगा तथा इसके कारण उपभोग निवेश और समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा उत्पादकता लाभ और सकल घरेलू बचत दरों में वृद्धि ना होना एक चुनौती बनी हुई है

सकारात्मक जोखिम हालांकि आईएमएफ द्वारा जनवरी 2020 में प्रकाशित डब्लू अपडेट में यह भी अनुमान व्यक्त किया गया है कि वैश्विक उत्पादन वृद्धि में वर्ष 2020 में सुधार आएगा तथा यह 3.3% तक पहुंच जाएगा जो भारत के निर्यात को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है कि आवास पर सरकार के बल देने से परिवारों द्वारा आवास में उच्चतर निवेश में अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ेगा घोषणा और संरचना

एन आई पी की घोषणा ब्राउनफील्ड और ग्रीन फील्ड दोनों ऑप्शन रचनात्मक परियोजनाओं में देश में एफडीआई अंतर प्रवाह को और बढ़ेगी भारत इज ऑफ डूइंग बिजनेस में अपनी रैंक में सुधार करने हेतु निरंतर प्रगति कर रहा है नई विनिर्माण कंपनियों के लिए आधार कार्ड को रेट कर की दर को घटाकर 15% करने से निवेश संबंधी प्रतिफल दर में वृद्धि होगी 2020 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का अनुमान