आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20/निजीकरण और धन सृजन

विकिपुस्तक से

यह अध्याय सरकार द्वार निजीकरण किए जाने से पूर्व-पश्चात् केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों(CPSEs) के निष्पादन का विश्लेषण करता है। निजीकरण से दक्षता प्राप्ति के महत्व को समझते हुए,इस समीक्षा में सरकार के लिए समान संसाधनों से अधिक अर्जित करने हेतु CPSEsके रणनीतिक विनिवेश पर बल दिया है।

परिचय(Introduction)

रणनीतिक विनिवेश इस आधारभूत आर्धिक सिद्धांत द्वारा निर्देशित होता है कि सरकार को उन विनिर्माण/उत्पादन और क्षेत्र में अपनी संलग्नता समाप्त कर देनी चाहिए जहां प्रतिस्पर्धी बाजारों ने विकास की पराकाष्ठा प्राप्त कर ली है।
ऐसी कंपनियां विभिन्न कारकों के चलते जैसे- प्रौद्योगिकी उन्नयन, कुशल प्रबंधन आदि के कारण निजी हाथों में बेहतर प्रदर्शन करेंगी। इससे धन का सृजन होगा और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
नवंबर 2019 में भारत ने एक दशक से अधिक समय में अपना सबसे बड़ा निजीकरण अभियान शुरू किया। चुनिंदा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSEs) में भारत सरकार की प्रदत्त पूंजी को 51% से कम करने के लिये सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दी गई।

चयनित केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों(CPSEs)में भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) में सरकार की 53.29% हिस्सेदारी की रणनीतिक विनिवेश को मंजूरी दी गई।

वित्त वर्ष 2019-20 के लिए सरकार ने विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। इस लक्ष्य को साधने में एयर इंडिया और भारत पेट्रोलियम सरकार की खासी मदद कर सकते हैं।[१]

भारत की विनिवेश नीति का क्रमिक विकास[सम्पादन]

प्रारंभिक चरण में नीलामी के माध्यम से सामूहिक रूप से छोटे-छोटे स्टेक की बिक्री कर यह कार्य किया गया था। यह प्रक्रिया 1999-2000 तक चली।
बिक्री के माध्यम से भारत ने 1999-2000 में एक नीतिगत उपाय के तौर पर बिक्री की प्रक्रिया शुरू की जिसके अंतर्गत कुछ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्रीय प्रतिष्ठानों में सरकार की 50% या इससे अधिक की हिस्सेदारी का काफी हिस्सा बेचा गया और साथ ही प्रबंधनपरक नियंत्रण का अंतरण किया गया। यह प्रकिया माॅडर्न फूड इंडस्ट्री लि. में सरकार की हिस्सेदारी के 74% की बिक्री से शुरू हुई थी।

विनिवेश की नीति में दूसरा प्रमुख बदलाव वर्ष 2004-05 में आया जब सरकार ने यह निर्णय लिया कि सरकार विनिवेश की प्रक्रिया को अपना सकती है। जिससे जनता की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके।

रणनीतिक विनिवेश में वर्ष 2014 के बाद एक नया मोड़ आया। 2016-17 से 2018-19 के दौरान औसतन विनिवेश से प्राप्त होने वाली कुल राशि का लगभग 28.2% की बिक्री हुई थी। इस दिशा में विनिवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) ने मई 2016 में एक व्यापक दिशा-निर्देश तैयार किया है। जिन्हें ‘CPSE का पूंजी पुनर्गठन’ के नाम से जाना जाता है।
CPEC में विनिवेश करते समय सरकार मुख्य हिस्सेदारी अर्थात् 51% और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का प्रबंधन नियंत्रण अपने पास रखेगी।

सरकार द्वारा अपनाये गए विनिवेश नीति के विभिन्न तरीके

  1. सूचीबद्ध CPSEs में अल्पांश हिस्सेदारी के विक्रय के माध्यम से विनिवेश,ताकि न्यूनतम 25% सार्वजनिक हिस्सेदारी के मानकों को प्राप्त किया जा सके।हालांकि,CPSEsका विनिवेश करते समय सरकार बहुसंख्यक हिस्सेदारी अर्थात् 51% शेयर और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का प्रबंधन व नियंत्रण कार्य अपने पास रखेगी।
  2. CPSEs की लिंस्टग:- लोगों को स्वामित्व की सुविधा देने हेतु और शेयरधारकों को जिाबदेही के माध्यम से कांपनियों की क्षमता बढ़ाने के लिए CPSEs की की लिस्टिंग की गई है। अब तक सार्वजनिक क्षेत्र के 57 उपक्रमों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। जिनका कुल बाजार पूंजीकरण 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
  3. रणनीतिक विनिवेश:-निवेश मामलों की देखरेख करनेवाला वित्त मंत्रालय के आधीन निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम)के अनुसार रणनीतिक विनिवेश की परिभाषा कुछ इस प्रकार है- "किसी सरकारी या केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में 50 फीसदी या उससे अधिक हिस्सेदारी, जो निर्धारित प्राधिकरण द्वारा तय की गई हो, और प्रंबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण रणनीतिक विनिवेश के दायरे में आता है."[२] नीति आयोग रणनीतिक विनिवेश के लिये सार्वजनिक उपक्रमों की पहचान करता है। इस प्रयोजन के लिये नीति आयोग ने राष्ट्रीय सुरक्षा,कम-से-कम सरकारी हस्तक्षेप, बाज़ार अपूर्णता एवं लोक प्रयोजन के आधार पर PSUs को उच्च प्राथमिकता और निम्न प्राथमिकता के आधार पर वर्गीकृत किया है।

निम्न प्राथमिकता वाले PSUs का ‘रणनीतिक विनिवेश किया जाता है।

  1. शेयरों की वापसी-खरीद(Buy-back of shares):- बड़े PSUs जिनका अधिशेष अधिक है उनके शेयरों का बायबैक।
  2. विलय और अधिग्रहण(Merger and acquisitions):- एक ही क्षेत्र में कार्यरत सार्वजनिक उपक्रमों का विलय और अधिग्रहण।
  3. एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) का आरंभ:-यह एक विशेष इंडेक्स को ट्रैक करने वाला इक्विटी इंस्ट्रूमेंट है। CPSE का एक्सचेंज ट्रेडेड फंड भारत की प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों जैसे- ONGC, REC, कोल इंडिया, कंटेनर कार्प, आयल इंडिया, पावर फाइनेंस, गेल, BEL, EIL, इंडियन ऑयल और NTPC में इक्विटी निवेश से बना है।
  4. मुद्रीकरण(Monetization):-CPSE की चयनित परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण किया जाए ताकि उनकी बैलेंस शीट को बेहतर किया जा सके और उनके ऋण को कम किया जा सके एवं उनके पूंजीगत व्यय की आवश्यकताओं के एक हिस्से को पूरा किया जा सके।

निजीकरण का प्रभाव: फर्म स्तर का विश्लेषण[सम्पादन]

भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) में रणनीतिक विनिवेश के हाल के अनुमोदन ने BPCL के शेयरधारकों की इक्विटी के मूल्य में 33,000 करोड़ रुपए की वृद्धि में मुख्य भूमिका निभाई है।
भारत सरकार के 38 विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के तहत लगभग 264 CPSEs हैं। चूँकि भारत सरकार ने वर्ष 1999-2000 में नीतिगत उपाय के रूप में रणनीतिक बिक्री को अपनाया था इसलिये 11 CPSEs का वर्ष 1999-2000 से वर्ष 2003-04 तक रणनीतिक विनिवेश किया गया। जिनमें बाल्को, मारुति, हिंदुस्तान जिंक आदि शामिल हैं।
सर्वेक्षण में इन CPSEs के पहले एवं बाद के प्रदर्शन का विश्लेषण करने पर निम्नलिखित परिणाम आए हैं-
  • निवल पूंजी में बढ़ोतरी हुई, निवल लाभ बढ़ा।
  • रिटर्न ऑन एसेट (RoA) और रिटर्न ऑन इक्विटी (RoE) का प्रदर्शन बेहतर हुआ।
  • निवल लाभ मार्जिन, बिक्री में वृद्धि और प्रति कर्मचारी सकल लाभ का प्रदर्शन बेहतर हुआ।

उदाहरण के लिये निजीकरण से पहले जिन फर्मों का शुद्ध मूल्य 700 करोड़ रुपए था, निजीकरण होने के बाद बढ़कर 2992 करोड़ रुपए हो गया।

व्यक्तिगत प्रदर्शन:प्रत्येक निजीकृत CPSE के निष्पादन में निवल मूल्य,निवल लाभ,सकल राजस्व,निवल लाभ मार्जिन,बिक्री वृद्धि के संदर्भ में निजीकरण के पूर्व की अवधि की तुलना में निजीकरण के पश्चात् की अवधि में सुधार देखा गया।
निजीकरण से पहले 10 वर्षों की अवधि के दौरान निजीकृत सीपीएसई(CPSEs) और उसके सहयोगी फर्मों का प्रदर्शन काफी समान है। जबकि निजीकरण के बाद, निजीकृत इकाईयों के प्रदर्शन में सहयोगी फर्मों के प्रदर्शन की तुलना में 10 वर्ष की अवधि में काफी सुधार हुआ है।

विभिन्न वित्तीय संकेतक[सम्पादन]

  1. निवल मूल्य (Net Worth):- एक कंपनी का निवल मूल्य वस्तुत: उसकी इक्विटी शेयरधारक द्वारा द्वारा धारित मूल्य होता है।इसमें शेयरधारकों द्वारा निवेशित इक्विटी पूंजी,कंपनी द्वारा सृजित लाभ और धारित रिजंर्व शामिल होता है। कंपनी के निवल मूल्य में वृद्धि वस्तुत: उससके वित्तीय स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण सुधार और शेयरधारकों के लिए वर्धित संपत्ति सृजन का संकेत होता है।
  2. निवल लाभ (Net Profit):- यह कंपनी द्वारा कर चुकाने के पश्चात शेष बचा लाभ होता है। सभी परिचालन खर्चों को मिलाने के बाद कंपनी के कुल लाभ में वृद्धि कंपनी से अत्यधिक प्रतिफल प्राप्ति को दर्शाती है।
  3. सकल राजस्व (Gross Revenue):- यह कंपनी की वस्तुओं की बिक्री से एवं अन्य गैर-वित्तीय गतिविधियों से प्राप्त आय को दर्शाता है।
  4. परिसंपत्तियों पर प्रतिलाभ(Return on Assets:RoA):- यह कंपनी की कुल औसत परिसंपत्तियोों के संदर्भ में कर चुकाने के पश्चात लाभ(profit)

प्रतिशत के रूप में व्यक्त की गई कंपनी की कुल औसत परिसंपत्तियों पर करों के अधिरोपण के बाद मुनाफे की दर को दर्शाता है।

  1. रिटर्न ऑन इक्विटी(RoE): इक्विटी पर रिटर्न औसत निवल मूल्य के रूप में कर पश्चात् प्राप्त लाभ है।
  2. निवल लाभ मार्जिन (Net proft Margin): किसी कंपनी का निवल लाभ मार्जिन उसकी कुल आय का करोत्तर (कर के बाद लाभ) प्रतिशत होता है।

आगे की राह[सम्पादन]

इस अध्याय में किया गया विश्लेषण स्पष्ट रूप से पुष्टि करता है कि CPSEs की रणनीतिक बिक्री के माध्यम से विनिवेश फर्म के प्रदर्शन और समग्र उत्पादकता में सुधार हुआ है और यह धन सृजन करने की उनकी क्षमता को बढ़ाता है। इसका अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर गुणात्मक प्रभाव पड़ता है।

इस प्रकार रणनीतिक बिक्री के माध्यम से अत्यधिक विनिवेश के संदर्भ में आसानी से हासिल किये जाने वाले लक्ष्य का उपयोग संभावित उच्च लाभ प्राप्त करने, दक्षता को बढ़ावा देने, प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने और चयनात्मक CPSEs के प्रबंधन में व्यवसायवाद को बढ़ावा देने के लिये किया जाना चाहिये।

रणनीतिक विनिवेश का ध्यान गैर-रणनीतिक व्यापार से हटाए जाने और पहचाने गए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में दक्षता और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देकर आर्थिक क्षमता का इष्टतम उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।

अतः राजकोषीय फंड के सृजन को सुविधाजनक बनाने और सार्वजनिक संसाधनों के कुशल आवंटन में सुधार के लिये उपरोक्त पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. https://economictimes.indiatimes.com/hindi/budget/budget-guide/what-is-strategic-sale-and-its-difference-from-disinvestment/articleshow/73324836.cms
  2. https://economictimes.indiatimes.com/hindi/budget/budget-guide/what-is-strategic-sale-and-its-difference-from-disinvestment/articleshow/73324836.cms