कार्यालयी हिंदी/प्रतिवेदन

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प्रतिवेदन(Report)[सम्पादन]

आधुनिक युग में सरकारी और गैर-सरकारी कार्य प्रणाली में 'प्रतिवेदन' का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जा रहा है। 'प्रतिवेदन' अंग्रेजी के रिपोर्ट (Report) अथवा रिपोटिंग (Reporting) शब्दों के पर्याय के रूप में प्रयोग में लाया जा रहा है। विभिन्न सरकारी कार्यालयों, संस्थानों, संगठनों, कम्पनियों, मंत्रालयों तथा विभागों आदि के कार्याकलापों का लैखा-जोखा वार्षिक रिपोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है। इन कार्यालयों में अनेक समितियाँ नियुक्त होती हैं और उनकी नियमित बैठकें होती रहती हैं। इन बैठकों की कार्यवाही का ब्योरा प्रतिवेदन अथवा रिपोर्ट में दिया जाता है। किसी महत्वपूर्ण घटना के तथ्यों की छानबीन करने के लिए सरकार द्दारा उच्चाधिकार प्राप्त समितियाँ तथा आयोग स्थापित किए जाते हैं। ये समितियाँ और आयोग वांछित छानबीन करके उसका तथ्य शोधक प्रतिवेदन सरकार को प्रस्तुत करते हैं। कभी-कभी अत्यन्त महत्वपूर्ण राष्टीय मामलों के सम्बन्ध में सरकार स्वयं जनता की जानकारी हेतु 'श्वेत पत्र' (White Paper) के रूप में प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है जिसमें घटनाओं और मामलों की यथातथ्य स्थिति दर्शायी जाती है। इस प्रकार, सरकारी कार्य प्रणाली के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में प्रतिवेदन का प्रयोग किया जाता है। कोशग्रंथों के अनुसार Report से तात्पर्य है--

१) Some thing which gives information

२) Formal account of the results of an investigation given by a person authorised to make investigation.

इस प्रकार के मामले की छानबीन के पश्चात तथ्यों का ब्योरा देने, गम्भीर मामले और घटनाओं के बारे में सही जानकारी प्रस्तुत करने, समितियों की बैठकों में लिए गए निर्णयों को कार्यवृत के रूप में देने, सरकार द्दारा नियुक्त आयोग की कार्य प्रणाली, विचार-विमर्श तथा तथ्यों की खोजबीन करके निष्कर्ष को प्रस्तुत करने तथा प्रशासनिक कार्याविधि, आँकडे़, एवं अन्य तथ्य आदि का विवरण देने के लिए 'प्रतिवेदन' तैयार कर प्रस्तुत किया जाता है। हिन्दी पत्रकारिता तथा दूरसंचार आदि में भी घटनाओं की जानकारी तथा मामलों की खोजबीन आदि को प्रस्तुत करने के लिए 'रिपोर्टिंग' का सहारा लिया जाता है। हिन्दी साहित्य में 'रिपोर्ताज' के रूप में एक स्वतंत्र विधा ही मौजूद है जिसके अंतर्गत घटनाओं के यथातथ्य वर्णन के सहारे कहानियाँ, नाटक या उपन्यास लिखे जाते हैं। साहित्य क्षेत्र में 'रिपोर्ट' के साहित्यिक एवं कलात्मक रूप को ही 'रिपोर्ताज' शैली कहा जाता है।

प्रतिवेदन की प्रक्रिया[सम्पादन]

विभिन्न सरकारी मंत्रालयों, विभागों, संस्थानों,संस्थाओं तथा कम्पनियों आदि के प्रशासन में सामान्यत: प्रतिवेदन का प्रयोग और प्रचलन हो रहा है। सरकार द्दारा नियुक्त विशेष जाँच समिति अथवा आयोग को अपना प्रतिवेदन तैयार करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों की ओर ध्यान देना होता है।

(अ) समिति अथवा आयोग का गठन सरकार ने किस उद्देश्य से किया है और उन्हें कौन से कार्य पूरे करने हैं।

(आ) आयोग या समिति ने सम्बन्धित मामले की किस-किस तथ्य की जाँच या खोजबीन का है।

(इ) तथ्य खोजने के लिए किन-किन व्यक्तियों से साक्ष्य लिया ।

(ई) समिति या आयोग की बैठकों में किन-किन मुद्दों पर चर्चा हुई । प्रत्येक सदस्य का मत क्या रहा।

(उ) निष्कर्ष के रूप में कौन-कौन सी सिफारिशें प्रस्तुत की गई।

(ऊ) सामान्यत: सभी सदस्य प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर करते हैं। कभी-कभी केवल अध्यक्ष एवं सचिव हस्ताक्षर करते हैं।

प्रतिवेदन की विशेषताएँ[सम्पादन]

१) प्रतिवेदन का स्वरूप आवेदन, अभ्यावेदन तथा पुररावेदन से एकदम भिन्न होता है। ( कुछ लोग प्रतिवेदन और अभ्यावेदन को एक मानकर बहुत बडी़ भूल करते हैं; दोनों में काफी और स्पष्ट अन्तर है।

२) प्रतिवेदन में किसी घटना, जानकारी , निरीक्षण तथा सर्वेक्षण आदि का तथ्यान्वेषी प्रस्तुतीकरण रहता है।

३) प्रतिवेदन में उद्देश्य के अनुरूप साक्षात्कार, सर्वेक्षण तथा अनुसन्धान आदि के माध्यम से अनुषंगी जानकारी एकत्रित कर उसका सटीक विश्लेषण किया जाता है और तदनंतर उसे विशिष्ट पध्दति से प्रस्तुत किया जाता है।

४) प्रतिवेदन की भाषा अत्यन्त स्पष्ट , सार्थक तथा एकार्थी होना अपेक्षित है। प्रतिवेदन में अलंकारिक एवं मुहावरेदार भाषा सर्वथा वर्जित है।

५) प्रतिवेदन विषयानुरूप एवं उद्देश्य की पूर्ति करने वाला एक सारगर्भित प्रलेख (Document) होता है।

६) प्रतिवेदन में संक्षिप्तता, सारगर्भितता एवं गम्भीरता का होना नितांत आवश्यक है।

७) प्रतिवेदन में केवल जानकारी , समस्या अथवा घटनाओं का विवरण और विश्लेषण ही नहीं होता अपितु सत्य एवं तथ्यों के अन्वेषण के साथ समस्या का समाधान एवं उपाय भी प्रस्तुत किये जाते हैं।

संर्दभ[सम्पादन]

१.प्रयोजनमूलक हिन्दी: सिध्दान्त और प्रयोग -- --- दंगल झाल्टे,पृष्ठ-- २२७-२३०