कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/सेवक (दामोदरदास) की माधुर्य भक्ति

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उनका नाम स्मरण करने वाले श्याम आराधक हैं। अपने इस उपास्य-युगल की छवि और स्वरुप का वर्णन सेवक जी ने अपने पदों में किया है। सेवक जी की राधा सर्वांग-सुन्दरी सहज माधुरी-युता तथा नित्य नई -नई केलि का विधान रचने वाली हैं :

सुभग सुन्दरी सहज श्रृंगार।
सहज शोभा सर्वांग प्रति सहज रूप वृषभानु नन्दिनी।
सहजानन्द कदंबिनी सहज विपिन वर उदित चन्दनी।।
सहज केलि नित-नित नवल सहज रंग सुख चैन।
सहज माधुरी अंग प्रति सु मोपै कहत बनेंन।।

विविध आभूषणों से भूषित रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण का सौन्दर्य भी अपूर्व अथच दर्शनीय है:

श्याम सुन्दर उरसि बनमाल।
उरगभोग भुजदण्ड वर ,कम्बुकण्ठमनि-गन बिराजत।
कुंचित कच मुख तामरस मधु लम्पट जनु मधुप राजत।।
शीश मुकुट कुण्डल श्रवन , मुरली अधर त्रिभंग।
कनक कपिस पट शोभि अति ,जनु घन दामिनी संग।।

उपास्य-युगल श्यामा-श्याम की प्रेम लीलाओं का गान एवं ध्यान ही इनकी उपासना है। इन लीलाओं के प्रति रूचि उपासक में तभी आती है जब उसके ह्रदय प्रीति का अंकुर फूट पड़ता है और इसका केवल हरिवंश कृपा है~~

सब जग देख्यो चाहि ,काहि कहौं हरि भक्त बिनु।
प्रीति कहूँ नहिं आहि , श्री हरिवंश कृपा बिना।।

श्री हरिवंश की कृपा हो जाने पर जीव सबसे प्रेम करने लगता है,शत्रुऔर मित्र में ,लाभ और हानि में,मान और अपमान में समभाव वाला हो जाता है। हरिवंश कृपा के परिणामस्वरूप वह सतत श्यामा-श्याम के नित्य विहार का प्रत्यक्ष दर्शन करता है और इस लीला दर्शन से उसे जिस आनन्द की की अनुभूति होती है वह प्रेमाश्रुओं तथा पुलक द्वारा स्पष्ट सूचित होता है :

निरखत नित्य विहार ,पुलकित तन रोमावली।
आनन्द नैन सुढार ,यह जु कृपा हरिवंश की।।