कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/स्वामी हरिदास की माधुर्य भक्ति

विकिपुस्तक से


स्वामी हरिदास के उपास्य युगल राधा-कृष्ण ,नित्य-किशोर ,अनादि एकरस और एक वयस हैं। यद्यपि ये स्वयं प्रेम-रूप हैं तथापि भक्त को को प्रेम का आस्वादन कराने के लिए ये नाना प्रकार की लीलाओं का विधान करते हैं। इन लीलाओं का दर्शन एवं भावन करके जीव अखण्ड प्रेम का आस्वादन करता है।

कुञ्ज बिहारी बिहारिनि जू को पवित्र रस

कहकर स्वामी जी स्पस्ट सूचित किया है कि राधा-कृष्ण का विहार अत्यधिक पवित्र है। उस विहार में प्रेम की लहरें उठती रहती हैं,जिनमें मज्जित होकर जीव आनन्द में विभोर हो जाता है। इस प्रेम की प्राप्ति उपासक विरक्त भाव से वृन्दावन-वास करते हुए भजन करने से हो सकती है। स्वामी हरिदास जी का जीवन इस साधना का मूर्त रूप कहा जा सकता है। राधा -कृष्ण की इस अद्भुत मधुर-लीला का वर्णन स्वामी हरिदास ने वन -विहार ,झूलन ,नृत्य आदि विभिन्न रूपों में किया है। इस लीला का महत्व संगीत की दृष्टि से अधिक है। नृत्य का निम्न वर्णन दृष्टव्य है :

अद्भुत गति उपजत अति नाचत,
दोउ मंडल कुँवर किशोरी।
सकल सुधंग अंग अंग भरि भोरी,
पिय नृत्यत मुसकनि मुखमोरि परिरंभन रस रोरी।।

रसिक भक्त होने के कारण राधा-कृष्ण की लीलाओं को ही वह अपना सर्वस्व समझते हैं और सदा यही अभिलाषा करते हैं ~~

ऐसे ही देखत रहौं जनम सुफल करि मानों।
प्यारे की भाँवती भाँवती के प्यारे जुगल किशोरै जानौं।।
छिन न टरौं पल होहुँ न इत उत रहौं एक तानों।
श्री हरिदास के स्वामी स्यामा 'कुंज बिहारी 'मन रानौं।।