गुल सनोबर/१० सनोबर बादशाह का निमंत्रण

विकिपुस्तक से

वाफाक शहर वास्तव में एक बहुत सुंदर और प्रभावशाली शहर था। वहाँ के मस्जिदों की लंबी मिनारें और ऊंचे मेहराब जैसे आसमान को छू रहे थे। शहर कि सडके खुली और साफ थी। उस पर छिड़का हुआ पानी ख़ुशबु से भरा था। बाजार कई मूल्यवान वस्तुओं से भरा लग रहा था।सड़क पर चलने वाले लोगों के चेहरे बहुत खुश और उत्साही थे। कुल मिलाकर, यह एक सुखी, संतुष्ट और समृद्ध शहर था।

वाकाफ शहर में प्रवेश करते ही शहजादेने एक सौदागर का वेष धारण कर लिया। उसने प्रसिद्ध व्यापारी कररुखफॉलसे पहचान बना ली। शहजादेके अच्छे व्यवहार की वजह से जल्द ही पहचान दोस्ती में बदल गई। कररुखफॉल का शहजादे के बिना मन नहीं लगने लगा।

एक दिन शाम को कररुखफॉलके बाग में आरामसे बाते करते वक्त शहजादे ने उससे पूछा,’आपको गुलने सनोबर के साथ क्या किया इसके बारे में कुछ पता है क्या’? उसका ये सवाल सुन कररुखफॉल बहुत सोच में पड़ गया। उसने पूछा कि ‘इस सवाल का जबाब तुझे क्यू चाहिये’? उसने थोड़े संशय से शहजादे की तरफ देखकर पूछा, ‘तुझे मैं मेरा अच्छा दोस्त मानता हूं इसीलिये मै तुझपे हात नहीं डाल सकता हूँ। लेकिन इस शहर का बादशहा सनोबर ने हुक्म दिया है कि, जो कोइ, ‘गुलने सनोबर के साथ क्या किया’? यह पूछेगा उसे उसी जगह खत्म कर दिया जाये!’।


‘ मुझे माफ़ कर दो मेरे दोस्त। मुझे ये बात मालुम नहीं थी, ‘शहजादे ने माफ़ी मांगी, ‘ एक देश का सफ़र करते वक्त एक यात्री से यह सवाल सुनने में आया इसीलिये ऐसेही मोह के काऱण मैने पूछा! लेकिन रहने दो। वह बात हम अब छोड़ देते हैं। और फिर उसने बिनती की, क्या मुझे सनोबर बादशाह से मिलने का मौका मिलेगा? करुखफॉल ने कहा- ‘दोस्त,वो काम तुम मुझपे छोड़ दो’ मैं कलही तुम्हे सनोबर बादशाहसे मिला देता हूं।’


अगले दिन सुबह करुखफॉल ने सौदागरके वेष में आये शहजादेको बादशाह के दरबार में ले गया। सनोबर बादशहा युवा और दिखने में बहुत अच्छा था। दरबार में प्रवेश करते ही शहजादेने सनोबर बादशहाको दुरसे ही प्रणाम किया और शाहमृग ने दिया हुआ मौल्यवान नीला मोती बादशहा को अर्पण करके वो अदब से कहने लगा, जहाँपन्हा मैं ईरान देश का सौदागर हूँ और कुछ व्यापार के लिये आपके वाफाक शहर में आया हूँ। इस गरीब की भेट का यह मोती स्विकार करे।

शहजादे का प्यार से बोलने का तरीका बादशाह को बहुत अच्छा लगा। उसका दिया हुआ निंबू के आकार वाला नीला मोती भी खूबसूरत था। उसके तेज से आँखे मूंद रही थी, बादशहाने उस अप्रतीम रत्न को ख़ुशी ख़ुशी स्विकार किया। सनोवर ने उससे कुशल मंगल पूछकर उसे रात को खाने का निमंत्रण दिया।

रात को शहजादा अच्छे कपडे पेहेनके बादशहा के खास महल में हाजिर हो गया। सनोबर बादशहा उसीकी राह देख रहा था।उसने हँसके शाहजादे का स्वागत किया।

उस खास महलमे कि हुई मेजबानी की व्यवस्था भी बेहद खास थी। एक सुंदर मेजपर हरी चादर बिछाई गई थी, कांचके बर्तन में फल और तरह तरह की पक्वाने रखी हुयी थी।

बादशाहने उसे सन्मान से बड़े आसन पर बिठाया औऱ खाने की शुरुवात करने को कहा, उस स्वादिष्ट खाने को फिर दोनों ने पेट भर के खाया। खाना होते ही अच्छी मदिरा कास्वाद लेते हुये शहजादा सनोबर बादशहा को धीरेसे बोला,’जहाँपनाह’, आपने मेरे प्रति जो स्नेहभाव दिखाया उससे में खुद को सचमे धन्य समझता हूँ। क्या में आपको एक सवाल पूछ सकता हूँ।’?

‘तुम सवाल कर सकते हो, मद्य का प्याला नीचे रखते हुये बादशहाने थोड़े आश्चर्य के साथ कहा। ‘गुलने सनोबर के साथ क्या किया? यह जानने की मुझे बड़ी उत्सुकता है।‘ शहजादेने धीरेसे कहा क्या आप मेरी यह समस्या कम कर सकते हैं?


उसका वो सवाल सुनते ही बादशाह का ख़ुशी से भरा चेहरा दुखी हो गया। वह व्यथित होकर कहने लगा हे युवा आनन्द के समय में मुझसे ये सवाल पुछ कर तूने मुझे दुःखी क्यू किया? और फिर बादशाह बहुत क्रोधित हो गया।


वह खड़ा हुवा और अपनी तलवार निकालते हुये क्रोध में भरकर कहने लगा, तूने ये सवाल सीधे मेरे मुंह पर पूछा इसका मुझे आश्चर्य है! तेरी इस गलती का फल तुझे मिलना ही चाहिये। अपनी तलवार से तुझे मारने के सिवा और कोई चारा मेरे पास नहीं है। इसीलिये मरने के लिये तयार हो जाओ!’

अपने मरने की आज्ञा सुनकर शहजादा बेहद घबरा गया। समय कठिन है वह यह अच्छी तरह समझ गया! लेकिन उसने बुद्धिमानी से काम लिया। उसने कहा कि- ‘जहापनाह, मैं आपके मन को कोई ठेस लगी उसका कारण बना उसके लिये मुझे सचमे बेहद ही बुरा लग रहा है। इसके लिये आप मुझे मार डालें। ‘शहजादा नम्रता से कहने लगा’, लेकिन आप ऐसे भी मुझे मारने ही वाले हैं तो कम से कम मुझे मेरे इस सवाल का जवाब तो जान लेने दिजीये!’ जिससे मैं कम से कम खुशी से मर तो सकुंगा!।

सनोबर बादशाह को उसका कहना ठीक लगा, उसी क्षण उसने वहाँ की दीवार में गुप्त हात दबाया। आश्चर्य! वह दिवार धीरे धीरे खुलने लगी और वहाँ एक बड़ा रास्ता बन गया। सनोबर बादशाह ने इशारा कर कहा कि मेरे पीछे आओ। शहजादा उसके पीछे पीछे उस गुप्त दरवाजे से अंदर चला गया। उस खुपिया महल में एक भव्य दलान था। वहाँ जगह जगह पर सुंदर झूमर लगे हुए थे। बीच में एक सोने के सिंहासन पर एक कुत्ता बैठा था। जिसके बदन पर रेशमी कपडे थे। उसके आगे एक सोने की थाली में सुंदर पकवान रखे थे और वह कुत्ता उन्हें खा रहा था।

पास ही एक खंबे से एक जवान युवती को जंजीर में जखड़ कर रखा गया था। वह लड़की केतकी के जैसी सुंदर थी। उसकी हिरन के जैसी आंखे रो रही थी। उसकी सुंदर काया बहुत ही कृश हो गयी थी। उसका सुंदर नाजुक बदन सूखे हुए गुलाब की तरह हो गया था। बीच-बीच में कुछ सैनिक उसे चाबुक से फटके मारते थे। युवती के शरीर से लहू की धार निकल रही थी और वह विवशता में चिल्लाती थी।

उस बदकिस्मत युवती को भूक लगने पर पास के कुत्ते का जूठा खाना खाने को दिया जाता था।

यह हैरतअंगेज दृश्य देखकर शहजादा कांप उठा। उसने आश्चर्य के साथ बादशाह से पूछा, ‘जहापनाह यह लड़की कौण है? और उसे ये सजा क्यू दी जा रही है?’

‘नौजवान यह स्त्री मेरी पत्नी है और इसीका नाम गुल है। बादशाह ने स्पष्ट किया।

‘इनकी आपके साथ शादी कैसे हुई कृपया आप मुझे बताएँगे?।’ शहजादे ने घबराये हुये कहा।

आखिर में मैं तुझे मृत्यु दंड देने वाला हूँ इसीलिये तुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं है। बादशाह कहने लगा। तो सुन। एकबार मै हमेशा की तरह शिकार के लिए अकेले ही जंगल में गया था। दिन गर्मी के थे, दोपहर को मैं पानी के लिये व्याकुल हो गया और मैं पाणी की खोज में भटकने लगा। आखिर में मुझे एक टूटा हुआ कुआँ मिला। मैं पाणी की आशा में वहाँ देखने लगा तो मुझे आश्चर्य काठिकाना न रहा! उस कुएं में दो बुजुर्ग महिलाएं पड़ी हुयी थीं और वह मुझे उन्हें उपर निकालने के लिये विनती कर रही थीं। मुझे उनकी दुर्दशा पर दया आ गई और मैंने बडे कष्ट से उन्हें ऊपर निकाला। मैंने देखा की वो दोनों बुजुर्ग महिलाएं अंधी थीं।


उन बुजुर्ग महिलाओं की विनती करने के बाद मैंने वहाँ से नजदीक ही समुन्दर किनारे घूमने वाली जादुई गाय का गोबर लेके आया।और उन दोनों बुजुर्ग महिलाओँ की आंख को लगाया।अगले ही क्षण उनकी दृष्टि वापस आ गई। मैंने उनकी आपातकाल में मदत की इसीलिये वो मुझपे प्रसन्न हो गई और उन्होंने मुझे कहा, ‘हे नौजवान,’तुने हमारी बहुमुल्य सहयता की है। इसीलिये हम तुझे तेरी हित की बात बताते हैं उसे सुन! यहाँ से पास ही एक सुंदर परीकन्या का महल है। उसके माँ बाप ने उसे जानबूझकर ऐसे अकेले रखा है। वो किसी भी पुरुष को देख ना पाये ये उनका मकसद है। तू वहाँ गया तो वो तुझपर प्रसन्न होगी और तु उस महल में मजे से रह सकता है। लेकिन अगर ये बात उसके पिता को पता चली तो वो तुझे अग्नि में डाल कर मारने की सजा देंगे। लेकिन डरो मत तुम उसके पिता को तेल लगाकर अग्नि में डालने को कहना जिससे हम ही तुम्हे वहा आकर तेल लगायेंगे और उस तेल से तुम्हे अग्नि में कुछ नहीं होगा।!

‘उन बुजुर्ग महिलाओं का बोलना मैंने ध्यानसे सुना और फिर उन्हें धन्यवाद देते हुए मै उस परीकन्याकेँ महल की तरफ गया। ‘वो परिकन्या सही में रूपकी रानी थी। मैं तो उसे देखते ही पागल हो गया और वो सुंदरी भी मेरे रूपरंग पर फ़िदा हो गई। उसने पहली बार ही युवा पुरुष को देखा इसलिये उसे बहुत आनंद हो रहा था। उसने मन से हँसके मेरा स्वागत किया।’


मैं उस सुंदरी के सहवास में बहुत दिन रहा लेकिन एक दिन हमारे प्रेम संबंध का पता उसके पिता को लग ही गया। उन्होंने तत्काल मुझे ढूंढ़ निकाला और मुझे आग में जलाने की आज्ञा अपने सैनिकों को दी।’

यह आज्ञा सुनते ही मैंने उसके पिता से कहा, ‘महाराज मुझसे गलती हो गई है इसिलिए आप जो मुझे सजा दे रहे है वो योग्य ही है, बस आप मुझे आग में डालने से पहले तेल लगा दिजीये जिससे मैं पापी तत्काल जल जाऊंगा।!


मेरा बोलना उसके पिता को ठीक लगा उन्होंने तत्काल मेरे पुरे बदन में तेल लगाने का हुक्म दिया।’ उस वक्त उन बुजुर्ग महिलाये ने वहाँ आकार मुझे चमत्कारिक तेल लगाया। फिर मुझे भड़की हुयी आग में डाला गया लेकिन मुझे कुछ नहीं हुआ। आग बंद होते ही मैं ठीकठाक बाहर आ गया। यह देखकर उसके पिता को बड़ा आश्चर्य हुआ। आख़िरकार उन्होंने ये सोचा कि इस लड़के को भगवान ने मेरी कन्या के लिये ही बनाया होगा। यह सोचकर उन्होंने मेरी उससे शादी करदी।

उस परीकन्या के साथ मेरी शादी होते ही कुछ दिन मजे से गुजारने के बाद मैं अपनी भार्या के साथ शहर वापस आ गया!

सनोबर बादशाह ने अपनी हकीकत कहते हुये कहा। ‘हे युवक वह मेरी प्रिय पत्नी ये जंजीर में जकड़ी हुयी गुल ही है।

उसके ये आखरी शब्द सुन शहजादे को आश्चर्य का धक्का लगा। शहजादा सोच में पड़ गया कि आखिर सनोबर बादशाह की इस प्रिय गुल के इतने बुरे हाल क्यों किये जा रहे हैं? आखिर ऐसा क्या गुनाह किया था गुल ने जो इसे ऐसी सजा दि जा रही थी?