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गुल सनोबर/६ लतीफबानू जादूगरनी के जाल में

विकिपुस्तक से

सोनेरी महल के सुन्दर बाग़ मे जाते ही वहाँ से गुजरने वाले हिरन एकाएक शहजादे के आसपास भागने और कूदने लगे। वे चमत्कारी आवाज निकालकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे। जैसे वे हिरन शहजादे को वहाँ से निकल जाने को कह रहे थे। हिरणो का ऐसा बर्ताव देखकर शहजादे को अचभा होने लगा। तभी वहाँ एक औरत आयी और शहजादे को महल में चलने के लिए विनती करने लगी। शहजादा घोड़े से उतर कर उस महिला के साथ महल की तरफ चल पड़ा। कुछ सोचकर शहजादे ने पूछा यह महल कितना सुन्दर है। किसका महल है यह? क्या आप मुझे बताएंगी?

महिला ने कहा कि हुजूर यह महल महारानी लतीफबानु का है। उन्होंने खिड़की से आपको आते हुए देखा और आपको लेने के लिए मुझे भेजा। इतना कहकर दोनों ने लतीफाबानू के महल में प्रवेश किया। तभी शहजादे ने देखा की एक बेहद सुन्दर, अफसरा जैसी एक जवान लड़की मसनद पर आराम कर रही थी। वह कमाल की सुन्दर लग रही थी। उसने सोने, चांदी, मोती के कीमती जेवर पहन रखे थे इसीलिए वह और भी सुन्दर लग रही थी। शहजादे को आता देख वह उठ बैठी। लतीफबानु ने हँसते हुए उसका स्वागत किया और एक आसान पर बिठाया। शहजादे के आसन पर बैठते ही उसने पूछा- ‘हे इंसान,’तुम कौन हो? और इस प्रदेश से जाने का तुम्हारा मकसद क्या है?

लतीफबानु के पूछने पर शहजादे ने पूरी कहानी बयान की। । लतीफबानु ने कहा- ‘बहुत अच्छा हुवा आप इस तरफ से आये। मै भी बहुत दिनों से अकेले ही इतने बड़े महल में रह रही थी। इस कारन मेरा मन भी नहीं लग रहा था। इसी बहाने आपके साथ कुछ दिन मजे से गुजर जायेंगे। इतना कहकर लतिफबानु हसने लगी। लतीफबानु की बात पर शहजादे को भी हसी आ गई। वह हसते हुए बोला, ‘रस्ते में आपके जैसी हस्ती का महल हमें मिला यह हम हमारा सौभाग्य समझते हैं। थोड़ी ही देर में लतिफबनु ने दासी से खाने की व्यवस्था करने को कहा। उसने साथ में मदिरा भी मंगवायी। बहुत से अच्छे-अच्छे पकवान और मदिरा खा-पीकर शहजादा भी बेहद खुश हुआ। उसके मनोरंजन के लिए लतीफबानु ने नृत्य का भी आयोजन किया। इतना अच्छा नृत्य आज तक शहजादे ने नहीं देखा था।

लतिफबानु के सोनेरी महल में शहजादे के दो दिन बड़े मजे से गुजरे। लेकिन इस तरह कैसे चल सकता था? शहजादे ने जल्द ही वाफाक शहर की ओर निकलने का मन बनाया। तीसरे दिन शहजादे ने लतीफबानु से कहा, ‘हे सुन्दरी आपके यहाँ मेरे दो दिन कहाँ बीत गए मुझे पता ही नही चला। आपने मेरे मनपसंद खाना खिलाया, मदिरा पिलाई, जो आदर मेरा किया उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। अब मुझे आगे के सफ़र पर निकलना होगा।

शहजादे के जाने की बात करते ही लतिफबानु जादूगरनी के आख से पानी बहने लगा और दुःख भरे स्वर में बोली, हे सुन्दर शहजादे, मैं आपके हुस्न पर मोहित हो चुकी हूँ, तब आप वाफाक़ शहर की ओर जाने की जिद त्याग दीजिये। हम दोनोही इस सोनेरी महल में रहकर मजे से पूरा जीवन बिताएंगे। हमारे सुख में यहाँ किसी प्रकार की कोई कमी नही होगी। ‘क्या कह रही हैं आप लतीफबानु? यह नहीं हो सकता शहजादे ने कहा जब तक मै वाफाक शहर में जाकर गुल ने सनोबर के साथ क्या किया इस रहस्य को समझ न लूँ और उस दुष्ट मेहेरंगेज से बदला न ले लूँ, मेरे दिल को चैन नही आएगा। शहजादे के इस जवाब से लतिफबानु को बहुत गुस्सा आया। उसकी आँखे गुस्से से लाल हो गई। वह गुस्से से चिल्लाई- तुम्हारे जैसा मुर्ख इन्सान मैं आज पहली बार देख रही हूँ। मेरे जैसी सुन्दरी अपने आप तुम्हारे सहवास की अपेक्षा कर रही है और उसकी इच्छा ठुकराने वाले महामूर्ख हो तुम! लेकिन ध्यान रखो।। मैं भी लतिफबानु हूँ। मैं अपनी इच्छा पूरी किये बिना नहीं रहती! समझे? तुम यहाँ से जा नहीं सकते। इतना कहकर लतीफबानु ने अलमारी खोली और वहासे सांप के आकार की छड़ी निकाली। शहजादे को कुछ समझ में आये इससे पहले उसने चमत्कारिक छड़ी से उसके सर पर वार किया। उसने पास के लोटे से अभिमंत्रित पानी भी शहजादे पर फेंक दिया। उसी क्षण एक बड़ी विचित्र घटना घटी। तुरंत शहजादा एक सुन्दर हिरन के रूप में बदल गया। शहजादे की तरफ आसुरी दृष्टि से देखते हुए लतीफबानु जादूगरनी विलक्षण आनंद के साथ जोर-जोर से हँसने लगी। उसने कहा मेरे सहवास से दूर जाना चाहते थे ना शहजादे? बैठो अब जनमभर हिरन के रूप में। हा हा हा।। उस कपटी लतिफबानु की तरफ हिरन बना शहजादा देखता रह गया। शहजादा हिरन तो बन गया था लेकिन उसकी सोचने की शक्ति नष्ट नहीं हुयी थी। इसलिए हर क्षण उस महल से जाने के बारे में सोचते हुए वह महल के पास बाग़ में घुमने लगा। एक दिन शहजादे ने देखा की एक बड़ा पेड़ कांटो के ऊपर गिरा हुआ था। इसीलिए उस पेड़ का एक बड़ा दादरा बन चूका था।


तभी हिरन बने हुए शहजादे ने उस पेड़ से चलते हुए बाग़ के दूसरी तरफ छलांग लगाई। उस बाग़ और महल से बाहर आते ही हिरण इतना तेज भागने लगा की उसे पता ही नही चला की कब वह दुसरे बाग़ में आ पहुँचा। इस बार इस बाग़ में कोई महल नही था।