गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC)

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एनबीएफसी के बारे में आपके जानने येाग्य संपूर्ण जानकारी

परिभाषा[सम्पादन]

1. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी किसे कहते हैं?

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस कंपनी को कहते हैं जो ए) कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत हो, बी) इसका मुख्य कारोबार उधार देना, विभिन्न प्रकार के शेयरों/स्टॉक/ बांड्स/ डिबेंचरों/प्रतिभूतियों, पट्टा कारोबार, किराया-खरीद(हायर-पर्चेज), बीमा कारोबार, चिट संबंधी कारोबार में निवेश करना, तथा सी) इसका मुख्य कारोबार किसी योजना अथवा व्यवस्था के अंतर्गत एकमुश्त रूप से अथवा किस्तों में जमाराशियां प्राप्त करना है। किंतु, किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिसका मुख्य कारोबार कृषि, औद्योगिक, व्यापार संबंधी गतिविधियां हैं अथवा अचल संपत्ति का विक्रय/क्रय/निर्माण करना है। ड भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 आइ(सी) ] एक महत्वपूर्ण पहलू जो ध्यान में रखा जाना है, यह है कि धारा 45 आइ(सी) में किए गए उल्लेख के अनुसार ऋण/अग्रिमों से संबंधित गतिविधियां स्वयं की गतिविधि से इतर की गतिविधियां हों। यदि यह प्रावधान न होता तो समस्त कंपनियां गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां होतीं।

2. प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां किसे कहते हैं?

जिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की परिसंपत्तियों का आकार पिछले लेखापरीक्षा किए गए तुलनपत्र के अनुसार 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक हो उन्हें प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां माना जाता है। इस प्रकार से वर्गीकरण किए जाने के लिए तर्क यह है कि इन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की गतिविधियों का हमारे देश की वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव पड़ेगा।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित संस्थाएं[सम्पादन]

3. क्या भारतीय रिज़र्व बैंक सभी वित्तीय कंपनियों का विनियमन करता है?

नहीं। कुछेक वित्तीय कारोबार के लिए विशेष विनियामक हैं जिनकी स्थापना क़ानून द्वारा, उन्हें विनियमित एवं उनका पर्यवेक्षण करने के लिए की गई है, जैसे- बीमा कपनियों के लिए इरडा(आइआरडीए), मर्चेंट बैंकिंग कंपनी, वेंचर कैपिटल कंपनी,स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी तथा म्युचुअल फंडों के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड(सेबी), आवास वित्त कपंनियों के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) निधि कंपनियों के लिए कंपनी कार्य विभाग(डीसीए) और चिट फंड कंपनियों के लिए राज्य सरकारें। ऐसी कंपनियां जो वित्तीय कारोबार करती हैं किंतु उनका विनियमन अन्य विनियामकों द्वारा किया जाता है, उन्हें रिज़र्व बैंक ने कई प्रकार की विनियामक अपेक्षाओं से विशेष छूट प्रदान की है जैसे – पंजीकरण, चलनिधि परिसंपत्तियां बनाए रखना, सांविधिक आरक्षित निधि आदि। नीचे दिए गए चार्ट में गतिविधियों के स्वरूप एवं संबंधित विनियामकों की जानकारी दी गई है।

4. भारतीय रिज़र्व बैंक किस प्रकार की विशेष वित्तीय कंपनियों का विनियमन करता है?

भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का विनियमन एवं पर्यवेक्षण करता है जो (i) उधार देने, (ii) शेयरों, स्टाक, बांडों को प्राप्त करने आदि, अथवा (iii) वित्तीय रूप से पट्टा कार्य या किराया खरीद करने का कारोबार कर रही हैं। रिज़र्व बैंक उन कंपनियों के विनियमन का कार्य भी करता है जिनका मुख्य कार्य जमाराशियां लेना है (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 आई(सी).

5. ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के पास क्या शक्तियां हैं, अर्थात् ऐसी कंपनियों के बारे में जो मुख्य कारोबार के 50-50 मानदंडों को पूरा करती हैं?

भारतीय रिज़र्व बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत ऐसी कंपनियों के बारे में जो मुख्य कारोबार के 50-50 मानदंडों को पूरा करती हैं, को पंजीकृत करने, नीति-निर्धारण करने, निर्देश देने, निरीक्षण करने, विनियमित करने, पर्यवेक्षण करने तथा उन पर निगरानी रखने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों, एवं अधिनियम के अंतर्गत जारी निदेशों अथवा आदेशों का उल्लंघन करने पर दंडित कर सकता है। दंड के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को जारी पंजीकरण प्रमाणपत्र निरस्त कर सकता है, उसे जमाराशियां लेने से मना कर सकता है तथा उनकी आस्तियों के स्वत्वाधिकार का अंतरण कर सकता है अथवा उसे बंद करने के लिए याचिका दायर कर सकता है। Mr. ONKAR PRASAD

संस्थाएं जिनका विनियमन भारतीय रिज़र्व बैंक नहीं करता है[सम्पादन]

6. भारतीय रिज़र्व बैंक, बीमा कंपनियों, स्टाक ब्रोकिंग एवं मर्चेंट बैंकिंग कंपनियों, निधि, आवास वित्त कंपनियों और चिट फंड कंपनियों को विनियमित क्यों नहीं करता है?

इन कंपनियों को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत करने एवं उसके द्वारा विनियमित किए जाने से छूट प्रदान की गई है ताकि उनका दुहरा विनियमन न हो क्योंकि उनका विनियमन वित्तीय क्षेत्र के अन्य विनियामकों द्वारा किया जाता है।

7. क्या भारतीय रिज़र्व बैंक के पास इन छूट प्राप्त गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के मामले में कोई सांविधिक शक्ति है?

यह इस बात पर निर्भर करता है कि छूट कितनी दी गई है। उदाहरण के लिए आवास वित्त कंपनियों को भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियमन से छूट प्राप्त है। अन्य संस्थाएं जैसे- चिट फंड, निधि कंपनियां, म्युचुअल लाभ कंपनियां, बीमा कंपनियां, मर्चेंट बैंकिंग कंपनियां, स्टाक ब्रोकिंग कंपनियां आदि को पंजीकरण, चलनिधि आस्तियों एवं सांविधिक आरक्षित चलनिधि की अपेक्षाओं से छूट प्रदान की गई है। भारतीय रिज़र्व बैंक कोई निर्देश इसलिए नहीं जारी करता है ताकि अन्य वित्तीय विनियामकों द्वारा जारी निर्देशों के साथ उनका कोई संघर्ष न हो, अन्य वित्तीय विनियामक इस प्रकार हैं जैसे - आवास वित्त कंपनियों का विनियमन राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा, बीमा कंपनियों का इरडा द्वारा, स्टाक ब्रोर्किंग, मर्चेंट बैंकिंग कंपनियों, वेंचर कैपिटल कंपनियों तथा सामूहिक निवेश योजना चलाने वाली कंपनियों एवं म्युचुअल फंडों का विनियमन सेबी द्वारा, निधि कंपनियों का विनियमन कंपनी कार्य मंत्रालय द्वारा और चिट फंड कंपनियां संबंधित राज्य सरकारों के विनियामक दायरे के अंतर्गत आती हैं।

8. क्या भारतीय रिज़र्व बैंक उन कंपनियों का विनियमन करता है जो अपने कारोबार के अंग के रूप में वित्तीय गतिविधियों में कार्यरत हैं ?

रिज़र्व बैंक उन कंपनियों का विनियमन व पर्यवेक्षण करता है जो अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में वित्तीय गतिविधियों से जुड़ी हैं। अत: वैसी कंपनियाँ जो प्रमुख व्यवसाय के रूप में कृषि प्रचालन, औद्योगिक गतिविधि, माल की खरीद और बिक्री, सेवाएँ प्रदान करने या अचल सम्पत्तियों की बिक्री या निर्माण से जुड़ी हैं और छोटे स्तर पर कोई वित्तीय व्यवसाय कर रही हैं तो वे रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं की जाएंगी।

9. ऐसी कंपनियाँ जो वित्तीय आस्तियों एवं उनसे प्राप्त आय के 50-50 प्रतिशत मानदंड को पूरा नहीं करती हैं, पर जमाराशियाँ प्राप्त कर रही हैं – क्या वे भारतीय रिज़र्व बैंक के दायरे में आती हैं ?

वह कंपनी जिसके पास उसकी कुल आस्तियों के 50% से अधिक की वित्तीय आस्तियां नहीं हैं और इन आस्तियों से होने वाली आमदनी कुल आमदनी के 50% से कम है, तो उसे एनबीएफसी नहीं कहा जाएगा। इसका प्रमुख व्यवसाय गैर –वित्तीय गतिविधि जैसे कृषि प्रचालन, औद्योगिक गतिविधि, माल की खरीद और बिक्री, या अचल सम्पत्तियों की बिक्री /निर्माण होगा और इन्हें गैर-बैंकिंग गैर –वित्तीय कंपनी माना जाएगा। एक गैर-बैंकिंग गैर वित्तीय कंपनी द्वारा जमा राशियाँ ग्रहण करना ’ कंपनी जमाराशियाँ स्वीकृति नियम, 1975’ द्वारा शासित है। राज्य सरकारों में कंपनियों के रजिस्ट्रार इन योजनाओं का प्रबंधन करते है।

प्रमुख व्यवसाय के मानदंड ( पी बी सी)[सम्पादन]

10. प्रमुख व्यवसाय के रूप में वित्तीय गतिविधि संचालन से क्या तात्पर्य है?

वित्तीय गतिविधि को ‘प्रमुख व्यवसाय’ का दर्जा तभी मिलेगा, जब कंपनी की वित्तीय आस्तियां कुल आस्तियों की 50 प्रतिशत से अधिक हों और वित्तीय आस्तियों से होने वाली आय कुल आय के 50 प्रतिशत से अधिक हो। वह कंपनी जो ये दोनों मानदंड पूरा करती है, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एनबीएफसी के रूप में पंजीकृत की जाएगी। 'प्रमुख व्यवसाय' शब्द को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है। रिज़र्व बैंक ने इसे इसलिए स्पष्ट किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल उन्हीं कंपनियों का उसके पास पंजीकरण, विनियमन और पर्यवेक्षण हो जो मुख्य रूप से वित्तीय गतिविधि से जुड़ी हैं और दूसरी ट्रेडिंग, मैन्यूफैक्चरिंग या इंड्स्ट्रियल कंपनीज् उसके विनियमन अधिकारक्षेत्र के दायरे में न लाई जाएं। दिलचस्प बात यह है कि, इस परीक्षण को आमतौर पर 50-50 परीक्षण के रूप में जाना जाता है और इसका प्रयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि कंपनी वित्तीय व्यवसाय में है या नहीं।

अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियाँ (आरएनबीसी)[सम्पादन]

11. अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी (आरएनबीसी) क्या है ? अन्य एनबीएफसी से यह किस प्रकार भिन्न है ?

अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी एनबीएफसी की एक श्रेणी है जिसका 'प्रमुख व्यवसाय ' किसी भी योजना, व्यवस्था या किसी अन्य तरीके से जमा राशियाँ प्राप्त करना है। ये कंपनियाँ निवेश , आस्ति वित्तपोषण या ऋण देने का कार्य नहीं करती। जमाराशियों के संग्रहण की पद्धति और जमाकर्ताओं की निधियों के विनियोजन के मामले में इन कंपनियों की कार्य प्रणाली एनबीएफसी से भिन्न है। इन कंपनियों को , हालांकि रिज़र्व बैंक द्वारा अब निर्देश दिया गया है कि कोई जमाराशि स्वीकार न करें और आरएनबीसी के रूप में अपना व्यवसाय बंद कर दें।

12. हमें मालुम है कि आरएनबीसी द्वारा जमाराशियाँ जुटाने की कोई उच्चतम सीमा नहीं है , ऐसे में उनके पास जमाराशि रखना कितना सुरक्षित है ?

यह सच है कि आरएनबीसी द्वारा जमाराशियाँ जुटाने की कोई उच्चतम सीमा नहीं है। फिर भी, प्रत्येक आरएनबीसी को यह सुनिश्चित करना है कि उसके पास जमा की गई राशियों का निवेश पूरी तरह से अनुमोदित निवेशों में किया जाए। दूसरे शब्दों में , जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए, ऐसी कंपनियों से यह अपेक्षित है कि वे अपनी जमा देयता का 100 प्रतिशत अत्यधिक तरल और सुरक्षित लिखतों उदाहरणार्थ केंद्रीय /राज्य सरकार की प्रतिभूतियों, अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों(एण्ँ) की सावधि जमाओं, अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों / वित्तीय संस्थानों के जमा प्रमाणपत्रों, म्युचुअल फण्ड्स की यूनिटों इत्यादि में निवेश करें।

13. यदि जमा-किस्तें नियमित रूप से न अदा की जाएं अथवा किस्तें जमा होना बंद हो जाए तो क्या आरएनबीसी जमाराशियों को जब्त कर सकती हैं?

नहीं, अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी जमाकर्ताओं द्वारा जमा की गई कोई राशि या कोई ब्याज, प्रीमियम, बोनस या उस पर अर्जित किसी भी लाभ को ज़ब्त नहीं कर सकती।

14. वह ब्याज दर क्या है जिसे आरएनबीसी को जमाराशियों पर अनिवार्य रूप से चुकाना चाहिए और उनके द्वारा ली गई जमाराशियों की परिपक्वता अवधि कितनी होनी चाहिए?

एक आरएनबीसी को एकमुश्त में या मासिक अथवा लंबे अंतरालों पर जमा की गई जमाराशियों पर न्यूनतम 5% ब्याज(वार्षिक रूप से चक्रवृद्धि) का भुगतान करना चाहिए; तथा दैनिक जमा योजना के अंतर्गत जमा की गई राशियों पर न्यूनतम 3.5% ब्याज का भुगतान करना चाहिए। ब्याज में प्रीमियम, बोनस या अन्य कोई लाभ शामिल है, जोकि आरएनबीसी जमाकर्ताओं को रिटर्न के रूप में चुकाने का वादा करती है। आरएनबीसी ऐसी जमाराशियों की प्राप्ति की तिथि कम से कम 12 महीनों तथा अधिकतम 84 महीनों की अवधि हेतु जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती हैं। वे मांग पर चुकौती योग्य जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकतीं। हालांकि, वर्तमान में, मौजूदा दो आरएनबीसी (पियरलेस तथा सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन लि.) को रिज़र्व बैंक द्वारा यह निर्देश दिया गया है कि वे जमाराशियां लेना बंद कर दें, जमाकर्ताओं को जमाराशियों की चुकौती करें और अपने आरएनबीसी व्यवसाय को समाप्त करें क्योंकि उनका व्यवसाय मॉडल स्वाभाविक रूप से अव्यवहार्य है।

इ. जमाराशियों की परिभाषा, जमाराशियां स्वीकार करने योग्य /अयोग्य संस्थाएं और उनसे संबंधित मामले

15. जमा राशि किसे कहते है?

किसी भी तरह से जमा किया गया पैसा जमा राशि होता है सिवाय शेयर पूंजी, भागीदारी कंपनी के शेयरों के लिए भागीदार से लिया गया अंशदान, प्रतिभूति जमा, बयाना जमा, माल की खरीद, सेवाएं या निर्माण हेतु अग्रिम, बैंको, वित्तीय संस्थाओ और साहूकारों से लिया गया ऋण, चिट फंडो के लिए दिया अभिदान। उपर्युक्त तरीकों को छोड़कर किसी तरह से जमा किए गए पैसे को जमाराशि कह सकते है।

16. वे कौन- कौन सी संस्थाएं है जो वैधानिक तौर पर जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अधिकृत हैं?

सहकारी बैंकों सहित सभी बैंक जमाराशियां स्वीकार कर सकते हैं। गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ, जिन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा जमाराशियाँ स्वीकार करने के विशिष्ट लाइसेंस के साथ पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किया गया है, जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने के लिए पात्र हैं। दूसरे शब्दों में, रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत सभी एनबीएफसीज़् जमाराशियाँ स्वीकार करने के लिए पात्र नहीं है, केवल वही एनबीएफसीज़् जमाराशियाँ स्वीकार करने के लिए पात्र हैं जिनके पास जमाराशि ग्रहण करने का पंजीकरण प्रमाणपत्र है। साथ ही, ये केवल अनुमत सीमा तक ही जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती हैं। आवास वित्त कंपनियां जिन्हें जमाराशियां जुटाने हेतु दुबारा विशेष रूप से अधिकृत किया गया है और वे कंपनियाँ जिन्हें कारपोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा केंद्र सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम के अधीन बनाए गए ‘कंपनी जमा ग्रहण नियम’ के तहत जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अधिकृत किया गया है, भी एक निश्चित सीमा तक जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती हैं। सहकारी साख समितियाँ अपने सदस्यों से जमाराशियां स्वीकार कर सकती है किंतु आम जनता से नहीं। भारतीय रिजर्व बैंक केवल बैंको, सहकारी बैंको और एनबीएफसी द्वारा स्वीकार की गई जमाराशियों को विनियमित करता है।

अन्य संस्थाओं को सार्वजनिक जमाराशियां स्वीकार करने की वैधानिक अनुमति नहीं है। अनिगमित निकायों यथा व्यक्ति, भागीदारी कंपनियाँ और व्यक्तियों के अन्य समूहों को उनके प्रमुख व्यवसाय के रूप में जनता से जमाराशियां स्वीकार करने की मनाही है। ऐसे अनिगमित निकाय अगर वित्तीय व्यवसाय चलाते भी हों तो भी उन्हें जमाराशियां स्वीकार करने की अनुमति नहीं है।

17. क्या भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकृत सभी एनबीएफसीज़् जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती हैं? क्या रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त होने का तात्पर्य है कि कंपनी जमाराशियाँ जुटा सकती है?

नहीं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत होने मात्र से किसी एनबीएफसी को जमाराशियाँ स्वीकार करने की स्वत: अनुमति नहीं मिल जाती। भारतीय रिजर्व बैंक एनबीएफसी को जमाराशियां स्वीकार करने के लिए विशेष रूप से प्राधिकृत करता है। यह अनुमति पंजीकृत एनबीएफसी के तीन वर्षों के कार्यनिष्पादन की जाँच के पश्चात दी जाती है। एनबीएफसी को जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने की अनुमति है इसका पंजीकरण प्रमाणपत्र में विशेष रूप से उल्लेख किया जाता है। वस्तुत:, एक लोक नीति के तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक ने निर्णय लिया है कि केवल बैंको को ही जनता से जमाराशियां स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत किया जाए और तदनुसार 1997 से किसी भी नई एनबीएफसी को जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु पंजीकरण प्रमाणपत्र (सीओआर) जारी नहीं किया है।

18. एनबीएफसीज़् को जनता से जमाराशियाँ जुटाने की अनुमति देने में भारतीय रिजर्व बैंक का रुख इतना प्रतिबंधात्मक क्यों है?

भारतीय रिजर्व बैंक किसी भी वित्तीय संस्था के पर्यवेक्षण में जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा को अत्यंत महत्व देता है। कोई निवेशक किसी कंपनी में निवेश इस आशय के साथ करता है कि वह प्रवर्तकों के साथ जोखिम और लाभ को शेयर करेगा जबकि एक जमाकर्ता किसी भी संस्था में अपनी जमाराशि केवल विश्वास के आधार पर जमा करता है। अतएव, वित्तीय विनियम में जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। बैंक अत्यधिक विनियमित वित्तीय संस्थाए होती हैं। बैंको के विफल होने की स्थिति में निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम जमाराशियों पर एक लाख रूपये तक की बीमा राशि का भुगतान करता है।

19. वे कौन सी एनबीएफसीज़् हैं जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विशेष रूप से जमा राशि स्वीकारने के लिए प्राधिकृत किया गया है?

भारतीय रिजर्व बैंक अपनी वेब साइट ैैै.ींi.दीु.iह → साइट मैप → एनबीएफसी की सूची → जमा राशियां स्वीकार करने के लिए प्रधिकृत एनबीएफसी, पर उन एनबीएफसीज़् के नामों की सूची प्रकाशित करता है जिनके पास जमाराशियां स्वीकार करने का वैध पंजीकरण प्रमाणपत्र है। कभी- कभी कुछ कंपनियों को अस्थायी तौर पर जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु प्रतिबंधित कर दिया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अस्थायी तौर पर प्रतिबन्धित की गई ऐसी एनबीएफसीज़् की सूची अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक इन दोनों सूचियों को अद्यतन रखता है। आम जनता को सूचित किया जाता है कि वे एनबीएफसीज़् के पास जमाराशियां रखने के पहले वे इन सूचियों की जांच कर लें।

20. क्या कोई को-ऑप. क्रेडिट सोसायटी जनता से जमाराशियां स्वीकार कर सकती है?

नहीं। को-ऑप. क्रेडिट सोसायटी जनता से जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकती। वह अपने उप नियमों के तहत निर्धारित सीमा तक ही अपने सदस्यों से जमाराशियां स्वीकार कर सकती हैं।

21. क्या वेतनभोगी व्यक्तियों की समिति जनता से जमाराशियां स्वीकार कर सकती है?

नहीं। इन समितियों का गठन वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए होता है और वे केवल अपने सदस्यों से ही जमाराशियां स्वीकार कर सकती है, न कि जनता।

22. भारतीय रिजर्व बैंक को कैसे पता चलता है कि कोई कंपनी जो उसके पास पंजीकृत नहीं है, अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार कर रही है अथवा कोई एनबीएफसी उससे पंजीकरण प्रमाणपत्र लिए बगैर उधार या निवेश की गतिविधियां चला रही है ?

भारतीय रिजर्व बैंक को मुख्यत: जनता से प्राप्त शिकायतों, उद्योग जगत से प्राप्त खबरों और कंपनियों के सांविधिक लेखा परीक्षकों की अपवाद रिपोर्टों से यह पता चलता है कि कोई एनबीएफसी उसके प्राधिकार के बगैर अनधिकृत रूप से जमाराशियां स्वीकार कर रही है अथवा उधार या निवेश की गतिविधियों में लिप्त है। भारतीय रिजर्व बैंक को समाचार पत्रों से प्राप्त मार्केट इंटेलीजेंस या अपने क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा एकत्रित सूचना अथवा अन्य स्रोतों के जरिए इसकी जानकारी मिलती है।

इसके अतिरिक्त, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सभी क्षेत्रीय कार्यालयों में वित्तीय क्षेत्रों के विनियामकों के मध्य समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से राज्य स्तरीय समन्वय समिति(एसएलसीसी) के रूप में एक संस्थागत पद्धति विकसित की है। राज्य स्तरीय समन्वय समिति के सदस्यों में राज्य सरकार के गृह और विधि विभागों के अधिकारी, कंपनी रजिस्ट्रार, कंपनी कार्य मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशालय के अधिकारी, राष्ट्रीय आवास बैंक, सेबी, रजिस्ट्रार ऑफ चिटस् और आईसीएआई के अधिकारी शामिल होते हैं। वित्तीय संस्थाओं की ऐसी अनधिकृत गतिविधियों की जानकारी साझा करने के लिए एसएलसीसी की बैठक प्रत्येक छ्ह माह में होती है।

23. क्या पंजीकृत एनबीएफसी से संबद्ध/असंबद्ध प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी कंपनियाँ जनता से जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती है?

नहीं। प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी कंपनियाँ अनिगमित निकाय हैं। अतएव उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत जनता से जमाराशियां स्वीकार करने से प्रतिबंधित किया है।

24. ऐसी कई ज्वैलरी शॉप है जो जनता से किस्तों में पैसा लेती हैं। क्या इसे जमाराशियाँ स्वीकार करना माना जायेगा?

यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या पैसा भविष्य में आभूषणों की आपूर्ति के लिए बतौर अग्रिम लिया जा रहा है या पैसा ब्याज के साथ वापस करने के वादे के साथ लिया गया है। ज्वैलरी शॉप द्वारा करार की अवधि के अंत में आभूषणों की आपूर्ति के लिए किस्तों में पैसा लेना जमाराशि लेना नहीं है। उसे जमाराशियां तभी माना जायेगा यदि ज्वैलरी शॉप द्वारा प्राप्त पैसे की वापसी के समय मूलधन के साथ-साथ ब्याज देने का वादा भी किया गया हो।

25. यदि ऐसे अनिगमित निकाय जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करते हैं तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है? यदि कोई एनबीएफसी जनता से जमाराशियां स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत नहीं है और वह अपने प्रवर्तकों द्वारा बनाई गई किसी प्रोप्राइटरशिप / भागीदारी फर्म का जमाराशियां संग्रह हेतु उपयोग करती है तो क्या कार्रवाई की जा सकती है?

ऐसे अनिगमित निकाय, यदि जनता से जमाराशियां लेते हुए पाए जाते है तो उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा एनबीएफसी के किसी भी अनिगमित निकाय से संबद्ध होने को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। यदि एनबीएफसी भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम का उल्लंघन करते हुए जमाराशियां स्वीकार करने वाली किसी प्रोप्राइटरशिप / भागीदारी फर्म से जुड़ाव रखती है, तो उसके खिलाफ आपराधिक कानून या जमाकर्ता हित संरक्षण (वित्तीय संस्थाओं में) अधिनियम, यदि राज्य सरकार द्वारा पारित हो, के तहत अभियोग चलाया जा सकता है।

26. भारतीय रिजर्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किए बिना वित्तीय कंपनियां यदि उधार देने या निवेश करने को प्रमुख व्यवसाय बनाती है तो उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई हो सकती है?

यदि ऐसी कंपनियाँ जिन्हें एनबीएफसी के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत होना अनिवार्य है, पंजीकरण प्रमाणपत्र लिए बगैर प्रमुख व्यवसाय के तौर पर गैर बैंकिंग वित्तीय गतिविधियां (जैसे उधार देना, निवेश करना या जमाराशियाँ स्वीकार करना) करती पाई जाती हैं तो भारतीय रिजर्व बैंक उन पर दंड या जुर्माना लगा सकता है या न्यायाधिकरण में उन पर अभियोग चला सकता है। यदि जनता को ऐसी किसी संस्था के बारे में पता चलता है जो गैर बैंकिंग वित्तीय गतिविधियां चला रही है किंतु भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर प्रदर्शित प्राधिकृत एनबीएफसी की सूची में शामिल नहीं है तो इस बारे में रिज़र्व बैंक के निकटतम क्षेत्रीय कार्यालय को सूचित किया जाना चाहिए ताकि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए उनके विरुद्ध समुचित कार्रवाई की जा सके।

27. एनबीएफसी द्वारा अपने उधारकर्ताओं से काफी अधिक ब्याज दर वसूल की जाती है। क्या एनबीएफसी द्वारा अपने उधारकर्ताओं से वसूल की जाने वाली ब्याजदर की कोई उच्चतम सीमा है?

भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफसी- माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन को छोड़कर) द्वारा उधारकर्ताओं से वसूल की जाने वाली ब्याजदर को नियंत्रण-मुक्त कर दिया है। कंपनी द्वारा प्रभारित ब्याज दर उधारकर्ता और एनबीएफसी के बीच हुए ऋण- करार की शर्तों से विनियमित (गवर्न) होती है। तथापि एनबीएफसी को पारदर्शी होना चाहिए और ब्याज दर एवं विभिन्न श्रेणियों के उधारकर्ताओं हेतु ब्याजदर तय करने के तरीके का उल्लेख उधारकर्ता अथवा ग्राहक के ऋण आवेदन पत्र में दर्शाया जाना चाहिए और ऋण मंजूरी पत्र आदि में इसके बारे में स्पष्ट रुप से इसे अवगत कराया जाना चाहिए।

28. भारतीय रिज़र्व बैंक से विनियमित होने का झूठा/गलत दावा करने वाले किसी व्यक्ति/वित्तीय कंपनी के विरूद्ध क्या कार्रवाई की जा सकती है?

भारतीय रिज़र्व बैंक से विनियमित होने का झूठा/गलत दावा कर किसी वित्तीय संस्था या अनिगमित निकाय द्वारा जनता को गुमराह करके जमाराशि स्वीकार करना गैर कानूनी है तथा भारतीय दण्ड संहिता के तहत उन पर दण्डात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस संबंध में सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक के निकटतम कार्यालय तथा पुलिस को दी जा सकती है।

29. चिट फंड द्वारा धन स्वीकार करने और जमाराशियाँ स्वीकार करने में क्या अंतर है?

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत जमाराशियों को ‘धन स्वीकार करने’ के रूप में परिभाषित किया गया है बशर्ते यह शेयर कैपिटल के रूप में जुटाया गया धन, बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त राशि, प्रतिभूति जमा के रूप में प्राप्त राशि, बयाना राशि, वस्तु तथा सेवाओं के सापेक्ष अग्रिम और चिट्स का अभिदान नहीं हो। अन्य सभी राशियां जो चाहे ऋण के रूप में अथवा किसी अन्य रूप में प्राप्त की गई हों उन्हें जमाराशि माना जाएगा। चिट फंड गतिविधि में सदस्यों द्वारा किस्तों में चिट में अंशदान किया जाता है और बारी-बारी से चिट के प्रत्येक सदस्य को चिट की राशि प्राप्त होती है। चिट्स में किए गए अंशदान को विशिष्ट रूप से जमा राशि की परिभाषा से बाहर रखा गया है और इसे जमाराशि नहीं माना जा सकता। हालांकि चिट फंड्स उपर्युक्त अभिदान संग्रहीत कर सकते हैं किंतु अगस्त 2009 से भारतीय रिज़र्व बैंक ने जमाराशियाँ स्वीकार करने से प्रतिबंधित कर दिया है।

30. जमा ग्रहण न करने वाली पंजीकृत एनबीएफसीज़् जो ऋण एवं निवेश गतिविधियों से जुड़ी हैं, उनकी सूची कहाँ प्राप्त होगी?

जमाराशि ग्रहण न करने वाली एनबीएफसीज़् जो वैध पंजीकरण प्रमाण पत्र धारित करती हैं तथा जिन्हें ऋण देने और निवेश करने की अनुमति है, की सूची, भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट ैैै.ींi.दीु.iह → साइट मैप→ एनबीएफसी सूची → जनता की जमाराशियाँ ग्रहण न करने वाली एनबीएफसीज़् की सूची, पर उपलब्ध है।

जमाकर्ता संरक्षण संबंधी मामले[सम्पादन]

31. एनबीएफसी में धन जमा करने से पूर्व जमाकर्ता द्वारा क्या सावधानियाँ बरती जानी चाहिए?

जो जमाकर्ता एनबीएफसी में पैसा जमा करना चाहते हैं उन्हें पैसा जमा करने के पहले निम्नलिखित की जाँच कर लेनी चाहिए:

  • यह कि एनबीएफसी भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हो तथा जमाराशि स्वीकार करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विशेषरूप से प्राधिकृत हो। जमाराशि स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत एनबीएफसी की सूची ैैै.ींi.दीु.iह →साइट मैप → एनबीएफसी सूची, पर उपलब्ध है। जमाकर्ताओं को जनता की जमाराशि स्वीकार करने वाली एनबीएफसीज़् की सूची जाँच लेनी चाहिए और यह भी देख लेना चाहिए कि कहीं इसका नाम उन कंपनियों की सूची में तो शामिल नहीं है जिन्हें जमाराशियाँ स्वीकार करने से प्रतिबन्धित किया गया है। जमाराशियाँ स्वीकार करने से प्रतिबन्धित की गई एनबीएफसीज़् की सूची रिज़र्व बैंक की वेबसाइट ैैै.ींi.दीु.iह → साइट मैप → एनबीएफसी सूची → एनबीएफसीज़् जिन्हें निषेधात्मक आदेश जारी किए गए हैं, समापन की याचिका दायर है और चैप्टर III बी, IIIसी और अन्य के तहत जिनके विरुद्ध कानूनी मामले हैं, पर उपलब्ध है।
  • एनबीएफसी को अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राथमिकता से प्रदर्शित करना है। यह प्रमाण पत्र यह भी दर्शाता है कि एनबीएफसी जमाराशि स्वीकार करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से विशेष रूप से प्राधिकृत है। जमाकर्ताओं को आवश्यक रूप से प्रमाण पत्र की संवीक्षा कर यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि एनबीएफसी जमाराशि स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत है।
  • एनबीएफसी जमाकर्ताओं को 12.5% वार्षिक से अधिक ब्याजदर अदा नहीं कर सकती। भारतीय रिज़र्व बैंक समष्टि आर्थिक परिदृश्य के मद्देनज़र ब्याज दरों में परिवर्तन करता रहता है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में परिवर्तन की सूचना ैैै.ींi.दीु.iह → साइट मैप → एनबीएफसी सूची → अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के अंतर्गत प्रकाशित की जाती है।
  • जमाकर्ता द्वारा कंपनी में प्रत्येक जमा राशि के लिए उचित रसीद की मांग अवश्य करनी चाहिए। जमा रसीद कंपनी के प्राधिकृत अधिकारी से विधिवत हस्ताक्षरित होनी चाहिए तथा उसमें जमा की तारीख, जमाकर्ता का नाम, राशि अंकों व शब्दों में, देय ब्याज दर, परिपक्वता की तारीख तथा परिपक्वता राशि का उल्लेख होना चाहिए।
32. आम जनता को क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए ताकि वे अधिक ब्याजदर की पेशकश वाली योजनाओं के फेर में पैसा गँवाने से पहले ही सतर्क हो जाएं?

अधिक ब्याजदर की पेशकश वाली योजनाओं में निवेश करने के पहले निवेशक यह जाँच लें कि ऐसे रिटर्न की पेशकश करने वाली कंपनी वित्तीय क्षेत्र के किसी नियामक के पास पंजीकृत हो और जमाराशि या अन्य रूप में धन स्वीकार करने के लिए अधिकृत हो। यदि निवेश पर पेश की जाने वाली ब्याजदर/रिटर्न की दर अधिक हो तो निवेशकों को प्राय: इस मामले में चौकस हो जाना चाहिए। जब तक धन ग्रहण करने वाली कंपनी वादा किए गए रिटर्न से अधिक कमा पाने में सक्षम नहीं होगी, वह निवेशक को वादा किया गया रिटर्न नहीं दे सकेगी। अधिक रिटर्न पाने के लिए कंपनी को अपने निवेश पर अधिक जोखिम उठाना होगा। यदि जोखिम अधिक होगा तो निवेश पर प्रत्याशित रिटर्न अटकलों पर आधारित होगा और ऐसे में कंपनी के लिए वादा किया गया रिटर्न चुका पाना संभव नहीं होगा। अतएव, जनता पहले से ही सतर्क रहे कि अधिक ब्याजदर की पेशकश वाली योजनाओं में पैसा डूबने की संभावना अधिक होती है।

33. क्या रिज़र्व बैंक एनबीएफसी द्वारा ग्रहण की गई जमाराशियों की अदायगी की गारंटी देता है ?

नहीं। रिज़र्व बैंक एनबीएफसी द्वारा स्वीकार की गई जमाराशियों की अदायगी की गारंटी नहीं देता, भले ही एनबीएफसी को जमाराशियाँ ग्रहण करने की अनुमति दी गई हो। अतएव, एनबीएफसी में पैसा जमा करते वक्त निवेशक और जमाकर्ता खूब सोच समझकर निर्णय लें।

34. यदि कोई एनबीएफसी मूलधन अथवा जमाराशियों का ब्याज चुकाने में असफल रहती है तो जमाकर्ता को क्या करना चाहिए?

यदि रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत कोई एनबीएफसी जमाकर्ता का धन लौटाने में असफल रहती है तो जमाकर्ता को उस एनबीएफसी के विरूद्ध रिज़र्व बैंक के नज़दीकी क्षेत्रीय कार्यालय में शिकायत दर्ज करानी चाहिए। अपने धन की उगाही के लिए जमाकर्ता कंपनी अधिनियम 1956 के तहत गठित कंपनी लॉ बोर्ड या सिविल कोर्ट अथवा उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम में जा सकता है। प्रभावित लोग राज्य पुलिस प्राधिकारियों अथवा राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में भी शिकायत कर सकते हैं। कुछ राज्यों ने जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण (वित्तीय संस्थानों में) अधिनियम पारित किया है जिसके फलस्वरूप राज्य सरकार को अधिकार है कि वह ऐसी कंपनियों की परिसंपत्तियों की कुर्की कर ले और उसकी बिक्री से अर्जित आय को जमाकर्ताओं के मध्य वितरित कर दे।

35. क्या एनबीएफसीस् का छूट प्राप्त वर्ग जमाराशियाँ ग्रहण कर सकता /रख सकता है?

नहीं। ऐसी एनबीएफसीस् जिन्हें रिज़र्व बैंक के प्रावधानों अथवा दिशानिर्देशों से छूट प्राप्त है, वे जनता से जमाराशियाँ न तो ग्रहण कर सकतीं और न ही रख सकतीं हैं क्योंकि उन्हें ऐसी छूट मिलने की एक शर्त जमाराशि ग्रहण न करना/न रखना ही है। तथापि, गृह वित्त कंपनियाँ राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा अनुमत सीमा तक जमाराशियाँ ग्रहण कर सकती हैं।

36. एनबीएफसी के जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु रिज़र्व बैंक क्या करता है?

एनबीफसीस् ठोस मानकों पर काम करें, इसके लिए रिज़र्व बैंक ने जमा ग्रहण करने के संबंध में विस्तृत विनियम जारी किए हैं जिसमें ग्रहण की जाने वाली जमाराशि का परिमाण, अनिवार्य क्रेडिट रेटिंग, जमाकर्ताओं के धन की अदायगी हेतु पर्याप्त तरलता की व्यवस्था, जमा-बहियों के रखरखाव का तरीका, पर्याप्त पूँजी की व्यवस्था सहित अन्य विवेकपूर्ण मानदण्ड, निवेश की सीमाएं और एनबीएफसीस् का निरीक्षण आदि शामिल है। यदि बैंक को अपने निरीक्षणों या लेखा परीक्षा अथवा शिकायत या मार्केट इंटेलीजेंस के जरिए यह पता चलता है कि कोई एनबीएफसी रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं कर रही है तो वह एनबीएफसी को आगे जमाराशियाँ ग्रहण करने से रोक कर सकता है और उसे परिसंपतियाँ बेचने से निषिद्ध कर सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि जमाकर्ता ने कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष शिकायत की है और कंपनी लॉ बोर्ड ने संबंधित एनबीएफसी को धन चुकाने का आदेश दिया है, ऐसे में एनबीएफसी द्वारा धन चुकाने संबंधी कंपनी लॉ बोर्ड के आदेश का अनुपालन न करने पर रिज़र्व बैंक एनबीएफसी पर अभियोग चला सकता है और दण्डात्मक कार्रवाही सहित कंपनी का समापन भी कर सकता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि रिज़र्व बैंक को मार्केट इंटेलीजेंस रिपोर्ट्स, शिकायतों, कंपनी के सांविधिक लेखापरीक्षकों की अपवादात्मक रिपोर्टों, एसएलसीसी की बैठकों आदि के जरिए जैसे ही यह खबर लगती है कि कंपनी रिज़र्व बैंक के अनुदेशों/मानकों का उल्लंघन कर रही है, तो वह जुर्माना लगाने और कानूनी कार्रवाई जैसे कई त्वरित कदम उठाता है। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठकों में ऐसी जानकारी को वित्तीय क्षेत्र के सभी नियामकों एवं प्रवर्तन एजेंसियों के मध्य बांटता है।

एक प्रमुख नीति-निर्माता संस्थान के तौर पर एवं अपने जनोपयोगी नीतिगत उपायों के अंग के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर ऐसे कई उपाय करने में आगे रहा है जिससे कि आम जनता को अपनी गाढ़ी कमाई निवेश करते समय सतर्कता बरतने की आवश्यकता के बारे में जागरूक किया जा सके। इन उपायों में प्रिंट मीडिया में चेतावनी सूचना जारी करना और सूचनापरक एवं शिक्षाप्रद ब्रोशर्स/पैम्पलेट्स का वितरण, जागरूकता/आउटरीच एवं टाउन हाल कार्यक्रमों में जनता से सीधे संपर्क, राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित व्यापार मेलों में सहभागिता एवं प्रदर्शनियाँ शामिल हैं। कई बार वह व्यापक सर्कूलेशन वाले समाचार पत्रों (अंग्रेजी और स्थानीय भाषा) से यह अनुरोध भी करता है कि वे जमा ग्रहण करने वाले अनिगमित निकायों से विज्ञापन लेने में परहेज करें।

37. राज्य सरकारों का ‘वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हित का संरक्षण संबंधी कानून’ लागू करने का उद्देश्य क्या है?

यह कानून लागू करने का उद्देश्य जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना है। रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों का मकसद रिज़र्व बैंक को विवेकपूर्ण विनियमन जारी करने हेतु सक्षम बनाना है ताकि वित्तीय संस्थान ठोस मानकों पर काम करें। रिज़र्व बैंक एक नागरिक निकाय(ण्iviत् ँद्ब्) है और रिज़र्व बैंक अधिनियम एक नागरिक अधिनियम(ण्iviत् Aम्ू) है। दोनों में ऐसा विशेष प्रावधान नहीं है जिससे कि चूककर्ता कंपनियों, निकायों अथवा उनके अधिकारियों की परिसंपत्ति की कुर्की अथवा बिक्री के जरिए वसूली की जा सके। इसे राज्य सरकार प्रभावी रूप से कर सकती है। वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम राज्य सरकार को पर्याप्त शक्तियाँ देता है जिससे कि वे चूककर्ता कंपनियों, निकायों अथवा उनके अधिकारियों की परिसंपत्ति की कुर्की अथवा बिक्री कर सकें।

38. क्या राज्य सरकारों द्वारा ‘वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम’ लागू किए जाने से अनिगमित निकायों एवं कंपनियों को अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करने से रोकने में मदद मिलेगी ?

हाँ, काफी हद तक। अधिनियम के तहत किसी संस्था, फर्म या कंपनी द्वारा अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करना एक संज्ञेय अपराध माना गया है और जो संस्थाएं अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करती हैं अथवा गैर-कानूनी वित्तीय गतिविधियों में शामिल हैं, को तत्काल गिरफ्तार किया जा सकता है और उन पर अभियोग चलाया जा सकता है। इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय के आदेश पर राज्य सरकार को इन संस्थाओं की परिसंपत्ति की कुर्की व बिक्री करने और उससे प्राप्त आय को जमाकर्ताओं के मध्य वितरित करने की व्यापाक शक्तियाँ प्राप्त हैं। राज्य सरकार/राज्य पुलिस का व्यापक तंत्र दोषियों के विरूद्ध त्वरित कार्रवाई करने में बखूबी सक्षम है। अतएव, रिज़र्व बैंक सभी राज्य सरकारों से यह अनुरोध करता रहा है कि वे अपने यहाँ ‘वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम’ पारित कराएं। आज की तारीख में जिन राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में यह कानून लागू हैं, वे हैं: आन्ध्र प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुज़रात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मिज़ोरम, नई दिल्ली, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखण्ड, सिक्किम, मेघालय, जम्मू एवं कश्मीर, और चण्डीगढ़ प्रशासन। कुछ राज्य सरकारों ने जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु इस अधिनियम को प्रभावी तरीके से लागू किया है।

39. क्या भारतीय रिज़र्व बैंक में कोई शिकायत निवारण तंत्र है?

यदि एनबीएफसी के खिलाफ शिकायत या शिकायतें भारतीय रिज़र्व बैंक के नज़दीकी कार्यालय में प्रस्तुत की जाती हैं, तो उस शिकायत/शिकायतों के समाधान हेतु संबंधित एनबीएफसी से संपर्क किया जाता है।

40. बेईमान वित्तीय संस्थाओं द्वारा जनता के साथ धोखा करने के मामले अभी भी हो रहे हैं। कंपनियों द्वारा अनधिकृत रूप से जमाराशियां स्वीकार करने / अनधिकृत रूप से एनबीएफआई कारोबार करने के विषय में अपना निगरानी तंत्र चुस्त करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक क्या योजना बना रहा है?

रिज़र्व बैंक विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों में अपने मार्केट इंटेलीजेंस व्यवस्था को मजबूत बना रहा है और उन कंपनियों की वित्तीय सूचनाओं की निरंतर जांच कर रहा है जिनके बारे में मार्केट इंटेलीजेंस या शिकायतों के जरिए जानकारी/संदर्भ प्राप्त हुए हैं। इस संदर्भ में, जनता सतर्क रहकर महान योगदान दे सकती और यदि उन्हें य़ह पता चलता है कि कोई वित्तीय संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम का उल्लंघन कर रही है तो वह तुरंत शिकायत दर्ज कराकर महान योगदान दे सकती है। उदाहरण के लिए, यदि वे अनधिकृत रूप से जमाराशि स्वीकार कर रहे हैं और / भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमति लिए बगैर एनबीएफसी गतिविधियां चला रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि जनता बुद्धिमानी से निवेश करे तो ये संस्थाएं चल ही नहीं पाएंगी। जनता को यह भी जानना चाहिए कि निवेश पर ऊँचे रिटर्न में जोखिम भी काफी अधिक रहता है। और अटकल आधारित गतिविधियों में कोई निश्चित रिटर्न नहीं होता। निवेश करने से पहले आम आदमी के लिए यह अनिवार्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि जिस संस्था में वह निवेश कर रहा है वह वित्तीय क्षेत्र के नियामकों में से किसी भी नियामक द्वारा विनियमित संस्था हो।

सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) और चिट फंड[सम्पादन]

41. क्या सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित हैं?

नहीं। सीआईएस ऐसी योजनाएं है जिसमें धन को इकाइयों में बदला जाता है, भले ही वह रिसोर्ट में भागीदारी हो, लकड़ी की बिक्री से प्राप्त लाभ अथवा किसी विकसित वाणिज्यिक भूखंड या भवन से प्राप्त लाभ के रूप में हो। सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं होतीं।

42. सामूहिक निवेश योजनाओं (सीआईएस) को कौन सा प्राधिकारी विनियमित करता है?

सामूहिक निवेश योजनाओं (सीआईएस) का विनियामक सेबी है। ऐसी योजनाओं के बारे में जानकारी तथा प्रवर्तकों के विरूद्ध शिकायत सेबी और राज्य सरकार के पुलिस विभाग/ आर्थिक अपराध शाखा को तत्काल भेजनी चाहिए।

43. क्या कानून के तहत चिट फंड कारोबार करने की अनुमति है?

चिट फंड कारोबार, चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत शासित है जो एक केंद्रीय अधिनियम है और जिसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। ऐसे चिट फंड जो इस अधिनियम के तहत पंजीकृत है, विधिक रूप से चिट फंड कारोबार कर सकते हैं।

44. यदि चिट फंड कंपनियाँ वित्तीय कंपनियाँ है तो भारतीय रिज़र्व बैंक इनका विनियमन क्यों नहीं करता?

चिट फंड कंपनियों को चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत विनियमित किया जाता है जो एक केंद्रीय अधिनियम है तथा इसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2009 में चिट फंड कंपनियों को जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करने पर पाबंदी लगा दी है। यदि कोई चिट फंड जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसे चिट फंडों पर अभियोग चला सकता है।

मनी सर्कुलेशन/ बहुस्तरीय विपणन (एमएलएम) / पोन्जी स्कीम/ अनिगमित निकाय (यूआईबी)[सम्पादन]

45. मनी सर्कुलेशन/ बहुस्तरीय विपणन(एमएलएम)/ पोन्जी स्कीम/अनिगमित निकाय (यूआईबी) क्या हैं?

मनी सर्कुलेशन, बहुस्तरीय विपणन(एमएलएम)/श्रृंखलाबद्ध विपणन या पोन्जी स्कीम ऐसी योजनाएं हैं जो सदस्यों को नामांकित होने पर आसान या त्वरित धन का वादा करती हैं। बहु स्तरीय विपणन या पिरामिड आकार की योजनाओं में उत्पादों की बिक्री से उतनी आमदनी नहीं होती जितनी कि नामांकित सदस्यों से भारी सदस्यता शुल्क लेने से। सभी सदस्यों पर अधिक से अधिक सदस्य नामांकित करने का दायित्व होता है क्योंकि संग्रहीत सदस्यता राशि को पिरामिड के उच्चक्रम से सदस्यों के मध्य वितरित किया जा सके। इस श्रृंखला के टूटने से पिरामिड टूट जाता है और इससे पिरामिड से जुड़ा सबसे निचला सदस्य अधिकतम प्रभावित होता है। पोन्जी योजनाएं वे योजनाएं हैं जो जनता से अत्यधिक लाभ का वादा कर धन एकत्रित करती हैं। इनमे आस्तियों का निर्माण न होने के कारण जमाकर्ताओं से संग्रहीत राशि को अन्य जमाकर्ताओं को प्रतिलाभ के रूप में बांट दिया जाता है। चूकि इन योजनाओं में कोई ऐसी अन्य गतिविधि नहीं होती जिससे कि रिटर्न आ सके, अतएव योजना अलाभकारी हो जाती है और योजनाओं के प्रवर्तकों के लिए वादा किया गया रिटर्न एवं एकत्रित की गई मूलराशि को लौटा पाना असंभव हो जाता है। ऐसी योजनाएं अनिवार्य रूप से विफल हो जाती है तथा अपराधकर्ता धन लेकर भाग जाते हैं।

46. क्या मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाओं के तहत धन स्वीकार करने की अनुमति है?

नहीं। मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाओं के तहत धन स्वीकार करने की अनुमति नहीं है। इन योजनाओं के तहत धन स्वीकार किया जाना प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन(प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत संज्ञेय अपराध है।

47. क्या भारतीय रिज़र्व बैंक मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाओं को विनियमित करता है?

नहीं। प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन(प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन योजनाएं प्रतिबंधित हैं। इस अधिनियम के क्रियान्वयन में भारतीय रिज़र्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है। इस अधिनियम के अंतर्गत नियमों को बनाने में भारतीय रिज़र्व बैंक केंद्र सरकार को सहयोग एवं परामर्श प्रदान करता है।

48. ऐसी योजनाओं को चलाने वाली कंपनियों को कौन विनियमित करता है?

मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाएं, प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन(प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत अपराध हैं। यह अधिनियम किसी व्यक्ति या निकाय को किसी प्राइज़ चिट या मनी सर्कुलेशन स्कीम को प्रवर्तित करने अथवा इन योजनाओं में किसी को सदस्य के रूप में नामित करने या ऐसी चिट या योजना के अनुसरण में धन प्राप्ति/प्रेषण के द्वारा किसी को सहभागी बनाने से रोकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर निगरानी और आवश्यक कार्रवाई राज्य सरकारों द्वारा की जाती है।

49. यदि कोई ऐसी योजनाएं चलाता है तो क्या करना चाहिए?

ऐसी योजनाओं के बारे में कोई जानकारी/शिकायत संबद्ध राज्य सरकार की पुलिस/आर्थिक अपराध शाखा(ईओडब्लू) अथवा कार्पोरेट कार्य मंत्रालय के पास भेजी जानी चाहिए। यदि रिज़र्व बैंक के संज्ञान में ऐसी जानकारी आती है तो वह राज्य सरकार के संबंधित प्राधिकारियों को उसकी सूचना देगा।

50. शिकायत की स्थिति में जमाकर्ता/ निवेशकर्ता किसके पास जाएं?

अनुलग्नक I एवं II के रूप में दिए गये दो चार्ट यह दर्शाते हैं कि कौन सा विनियामक कौन सी गतिविधि देख रहा है। तदनुसार शिकायत को संबद्ध विनियामक को संबोधित किया जाए। यदि गतिविधि वर्जित कार्य के अंतर्गत आती है तो भुक्तभोगी राज्य पुलिस/ राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा के पास समुचित शिकायत दर्ज करा सकता है।

51. जमाराशियाँ ग्रहण करनेवाली अनिगमित इकाइयों (यूआईबी) के विरूद्ध कार्रवाई करने का अधिकार किसे है?

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 45 टी के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक और राज्य सरकार के पास संयुक्त अधिकार हैं। अपराधकर्ता के विरूद्ध तत्काल कार्रवाई करने के लिए, राज्य पुलिस अथवा संबंधित राज्य की आर्थिक अपराध शाखा के पास जानकारी तुरंत पहुँचानी चाहिए, जिससे वे समुचित कार्रवाई कर सकें। चूंकि राज्य सरकार का तंत्र व्यापक है और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के तहत राज्य सरकार को कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त है अतएव जमाग्रहण करनेवाली ऐसी कंपनियों के बारे में किसी भी जानकारी को संबंधित राज्य सरकार के पुलिस विभाग/आर्थिक अपराध शाखा को तत्काल उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

कई राज्य सरकारों ने वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ता हित संरक्षण अधिनियम को लागू किया है, जिससे राज्य सरकार को समय से और समुचित कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त होता है।

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45एस में अनिगमित निकायों जैसे व्यक्तियों, फर्म और व्यक्तियों के अनिगमित संगठन को, यदि वे वित्तीय गतिविधियाँ करते हैं अथवा उनके मूल कारोबार के लिए जमाराशियां ग्रहण करते है, तो उन्हें सार्वजनिक जमाराशियां स्वीकार करने के लिए विशेष रूप से निषेध किया गया है।

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत रिज़र्व बैंक और राज्य सरकार को संयुक्त रूप से न्यायालय से सर्च वारंट प्राप्त करने का अधिकार है जिससे ऐसी अनिगमित इकाइयों द्वारा जमाराशिययाँ ग्रहण करने के मामलों की जाँच की जा सके।

रिज़र्व बैंक अथवा राज्य सरकार से प्राधिकृत कोई अधिकारी अनिगमित निकायों और संबंधित व्यक्तियों के विरूद्ध न्यायाधिकरण में अपराध के लिए शिकायत दर्ज कर सकता है।