चाँद का मुँह टेढ़ा है (गजानन माधव मुक्तिबोध)/भूल-ग़लती

विकिपुस्तक से
चाँद का मुँह टेढ़ा है (गजानन माधव मुक्तिबोध)
भूल-ग़लती

भूल-ग़लती

आज बैठी है ज़िरहबख़्तर पहनकर

तख़्त पर दिल के,

चमकते हैं खड़े हथियार उसके दूर तक,

आँखें चिलकती हैं नुकीले तेज़ पत्थर-सी;

खड़ी हैं सिर झुकाए

सब क़तारें

बेज़ुबाँ बेबस सलाम में,

अनगिनत खंभों व मेहराबों-थमे

दरबारे-आम में।


सामने

बेचैन घावों की अज़ब तिरछी लकीरों से कटा

चेहरा

कि जिस पर काँप

दिल की भाप उठती है...

पहने हथकड़ी वह एक ऊँचा क़द

समूचे जिस्म पर लत्तर

झलकते लाल लंबे दाग़

बहते ख़ून के

वह क़ैद कर लाया गया ईमान...

सुलतानी निगाहों में निगाहें डालता,

बेख़ौफ़ नीली बिजलियों को फेंकता

ख़ामोश!!

सब ख़ामोश

मनसबदार,

शाइर और सूफ़ी,

अल ग़जाली, इब्ने सिन्ना, अलबरूनी

आलिमो फ़ाज़िल सिपहसालार, सब सरदार

हैं ख़ामोश !!


नामंजूर,

उसको ज़िंदगी की शर्म की-सी शर्त

नामंजूर,

हठ इनकार का सिर तान... ख़ुद-मुख़तार।

कोई सोचता उस वक़्त—

छाए जा रहे हैं सल्तनत पर घने साये स्याह,

सुलतानी जिरहबख़्तर बना है सिर्फ़ मिट्टी का,

वो—रेत का-सा ढेर—शाहंशाह,

शाही धाक का अब सिर्फ़ सन्नाटा!!

(लेकिन, ना,

ज़माना साँप का काटा)

भूल (आलमगीर)

मेरी आपकी कमज़ोरियों के स्याह

लोहे का ज़िरहबख़्तर पहन, ख़ूँख़्वार

हाँ ख़ूँख़्वार आलीजाह;

वो आँखें सचाई की निकाले डालता,

सब बस्तियाँ दिल की उजाड़े डालता

करता हमें वह घेर

बेबुनियाद, बेसिर-पैर...

हम सब क़ैद हैं उसके चमकते तामझाम में,

शाही मुक़ाम में!!


इतने में, हमीं में से

अजीब कराह-सा कोई निकल भागा

भरे दरबारे-आम में मैं भी

सँभल जागा!!

क़तारों में खड़े ख़ुदग़र्ज़-बा-हथियार

बख़्तरबंद समझौते

सहमकर, रह गए,

दिल में अलग जबड़ा, अलग दाढ़ी लिए,

दुमुँहेपन के सौ तज़ुर्बों की बुज़ुर्गी से भरे,

दढ़ियल सिपहसालार संजीदा

सहमकर रह गए!!


लेकिन, उधर उस ओर,

कोई, बुर्ज़ के उस तरफ़ जा पहुँचा,

अँधेरी घाटियों के गोल टीलों, घने पेड़ों में

कहीं पर खो गया,

महसूस होता है कि यह बेनाम

बेमालूम दर्रों के इलाक़े में

(सचाई के सुनहले तेज़ अक्सों के धुँधलके में)

मुहैया कर रहा लश्कर;

हमारी हार का बदला चुकाने आएगा

संकल्प-धर्मा चेतना का रक्तप्लावित स्वर,

हमारे ही हृदय का गुप्त स्वर्णाक्षर

प्रकट होकर विकट हो जाएगा!!