छायावादोत्तर हिंदी कविता/झाड़ू की नीतिकथा
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झाडू बहुत सुबह जाग जाती है
और शुरू कर देती है अपना काम
बुहारते हुए अपनी अटपटी भाषा में
वह लगातार बड़बड़ाती है,
’कचरा बुहारने की चीज है घबराने की नहीं
कि अब भी बनाई जा सकती हैं जगहें
रहने के लायक’