जनपदीय साहित्य सहायिका/अवधी लोककथा

विकिपुस्तक से
          अवधी का परिचय

अवधी आज उत्तर प्रदेश एक विस्तृत रिश्वत की बोली तो है। यह मैं मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के भी बुंदेली और छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी के नाम से बोली जाती है। यदि इन मूल्यों को अलग-अलग करके देखना अनिवार्य लगे तो इनका अवधि से संबंध जुड़वा बहनों जैसा है अवधि के पूर्व में भोजपुरी तथा पश्चिमी में कन्नौजी बोली जाती है। उत्तर में नवेरी तथा अन्य नेपाली बोलियां है तो दक्षिण में बुंदेली और बुंदेली का क्षेत्र है। कन्नौजी और बुंदेली बोलियां ब्रिज से प्रभावित हुई है पर उनका मूल ढांचा अवधि का ही है। विद्वानों ने भाषा के तीन रूप माने भाषा भी भाषा और बोली अवधी यद्यपि एक लंबे समय तक बोली रही है। पर आने उत्कृष्ट साहित्य के कारण वह काव्य भाषा के रूप में सदियों से प्रतिष्ठित है। ज्ञातव्य है। यह कि इसमें गंदे अपेक्षित विस्तार नहीं हुआ इसलिए इसे एक विभाषा ऐसा माना कि उचित होगा। यद्यपि अवधि और अवध क्षेत्र की भी भाषा है। और इसके प्रसारण अवध के बाहर भी पाते हैं। तथा अवध के कभी वे शहरों में हमें अन्य बोलिए के दर्शन होते हैं। हरदा ई अवध का क्षेत्र है। पर उसकी सरीला तहसील और को छोड़कर सर्वत्र कन्नौजी बोली जाती है। इसी प्रकार फैजाबाद और जौनपुर में क्रमश टांडा और केराकत तहसील है। अवधी भाषा की कि नहीं मानी जाती है। अवध के बाहर सीतापुर इलाहाबाद जौनपुर में तो अवधि का प्रसार है। ही कानपुर के पूर्वी मिर्जापुर और पश्चिमी तथा बुंदेलखंड के बांदा जिले तक अवधि का प्रसारण देखने को मिलता है। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश की बुंदेली और छत्तीसगढ़ी की अवधि विभाग को उप गोलिया कहीं कहीं गई है। इसके इस प्रकार पूर्व में मिर्जापुर से लेकर पश्चिमी में सीतापुर और लखमीपुर की तक उत्तर में नेपाल की तराई से दक्षिण में बांधा था का अधिकार क्षेत्र है। विद्वानों ने अभी की 5 बोलियां कहीं है। जो पूर्वी पश्चिमी पैसों वाली गांजे और भांग खाई जाती है। कटी पर विद्वानों ने मध्य प्रति अवधि की कल्पना की है। पर भूल अवधि के दो ही भेज दिए जा सकते हैं। एक पूर्वी और दूसरा पश्चिमी। ईसा से लगभग 1000 वर्ष पूर्व कौशल जनपद की जो भाषा भारतीय साहित्य का गौरव ग्रंथ है। इसी युग में संन्त मीता दास का जन्म हुआ जो न केवल कबीर से प्रभावित है। वरन स्वयं को कबीर का अवतार भी मानते थे। अवधि में राम काव्य लिखने वालों में लाल दास राम प्रिया शरण जानकी रसिका चरण राम चरण मधुसूदन कृपा निवास जानकी कतरन पुराण चंद चौहान शिव प्रसाद रीवा नरेश विश्वनाथ सिंगला लगदा सहज राम तथा नवल सिंह प्रधान आदि के नाम लिए जा सकते हैं। अवधि में कृष्ण काव्य भी उपलब्ध है। जिसमें लाल का दास माधव कभी-कभी सिंह मुंशी गणेश प्रसाद काव्य संत रामजी शरण विद्या चरण प्रसाद और सरजू प्रसाद का विश्व आदि प्रमुख हैं। इन कवियों से इधर दोलन दास दो कान सिंह पहलवान दास शिवनाथ सिंह बाल दास आदि कवियों ने की अवधि काव्य परंपरा को आगे बढ़ाया है।

        अवधी का गद्य साहित्य

हिंदी साहित्य के मंदिर काल की कई शताब्दियों में अवधी भाषा कदाचित आध्यात्मिक और धार्मिक नैतिकता की एक तांत्रिक विद्या अभिव्यक्ति करने के कारण आधुनिक चिंतन और जीवन के यथार्थ के साथ कदम मिलाकर चलने में असमर्थ हो गयी। ब्रज भाषा तो फिर भी संपूर्ण रीतिकाल और संपत्ति है।शक्ति छायाके तले नीति नीति चर्चा साहित्य चिंतन और टीका व्याख्या के निर्मित उसे गद्य लेखन का मध्यम मध्यम बनी जो भी हो राष्ट्रीय नजफगढ़ काल के खड़ी बोली को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के अभियान में वृद्धि और अब भी दोनों ही गद्य के क्षेत्र से सर्वथा अलग थलग हो गई बीच-बीच में क्षेत्रीय प्रतिभाओं की सक्रियता से जो साहित्य सर्जन हुई वह संभव है। आज की परी का स्टेट भाव बहुत संपन्न पाठकों को मात्रा और गुणवत्ता में नगरिया से से लगे किंतु वह अभी गधे की भावी विकास यात्रा में महत्वपूर्ण पीटी का बनेगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। अस्तु हम अवधि गद्य साहित्य के विविध विधाओं का संक्षिप्त सर्व विवेचन करना चाहेंगे।

     अवधी लोक कथाएं प्रारंभिक परिचय

भारतीय कथा साहित्य बहुत प्राचीन है। भारतीय लोक कथाओं की परंपरा वेदों से प्रारंभ हुई है। सबसे प्रथम ग्रंथ ऋग्वेद के स्मृतियों के स्वरूप में कथाओं के मूल तत्व पाए जाते हैं। अवधि की लोक कथाएं परिमाण और सर दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लोक कथाएं पद हाथ में थी। क्योंकि उस काल में गद्य का विकास नहीं हो पाया था। वस्तुत लोककथा वह है। जिसमें लोकमानस का तत्व निहित होता है। और साथ में परंपरा जुड़ी रहती है। लोक कथाओं का विषय अपना संस्कृति परंपरा को लिए हुआ रहता है। इनमें अधिकतर किसी ना किसी रूप में देवी देवताओं की पूजा और पीर की भावना की स्नेहित रहती है। रोचक और कुशलता लब्धि की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। जोश और उत्साह का संचार करते हुए तथा को आगे बढ़ाते हैं। अवध क्षेत्र में सर्वेक्षण द्वारा लोक कथा शैली में गण मन मुझे लगभग 270 लोग गधे प्राप्त हुई है इनमें प्रकाशित लोक कथाओं का विवरण इस प्रकार है। १. अवधी का लोक साहित्य २. अवधी व्रत कथाएं ३. अवधी कथा लोक ५. अवधी का विकास

        करवा चौथ की कथा

एक भाई की दुलारी बहन थी विवाह हुआ पहला करवा चौथ का पर्व पड़ा। आज बहन उपवास रखी थी। मां ने कहा बिटिया निर्जला व्रत रखना तुम्हारा पहला करवाया रात जूनियर गने पर ही पूजा कर खाना पीना सारा दिन दुलारी बहन निर्जला व्रत रखी घर आने पर भाई दुखी हो जाए आज हमारी बहन की ने कुछ खाया पिया नहीं दिन व्यतीत हुआ गोधूलि की बेला आई भाई घर आया कहने लगा बहन जल्दी पूजा की तैयारी करो चंद्रमा उदय होने वाला है। मैंने सब तैयारी कर ली है। पन से करवा करवाई रंगा नए चावल कुटिया पिन्नी से करवा बाराबाती चौमुखी संजोया आंगन में चौक डाला सोलह सिंगार की एंकर वाले आंगन में रात्रि का प्रथम पर लगा था। कि भाई द्वारा पीपल के वृक्ष पर पीढ़ी लगा दिया और चीनी लेकर चडगया चलने लगा कर दिया दिखाने लगा और बुखार लगाई बैंजो धनिया पूजा करो बहन ने सोच-समझकर पूजा का आरंभ की चंद्रमा को अर्ध्य दिया और सुन लिया जैसे ही मौजूदा करने के लिए अपना कुछ से पानी लेकर चका एक हो गई मां का मंचन का में पड़ गया क्या बात है। आज हमारी बिटिया ने पहला करवा पूजा ठीक हो गई यह गणेश जी करवा माता सब भला करना। वह चौक पर से उठी उन्हें भोजन परोसा गया खड़ी बारा फरा भात सभी था। जैसे ही बिटिया ने पहला कौर फेरे का छीक हो गई घर में सभी चिंतित हो गए। दूसरा कौर तोड़ा फिर छींक तीसरा कौर तोड़ा फिर छीक। अब तो सारा घर चिंता में पड़ गया। इधर उनकी ससुराल से नवा खबर लेकर आया कि इनके पति नहीं रहे। हम खबर देने आए हैं। घर में रोना मच गया सभी परस्पर कहने लगे आज पहला करवा पड़ा इनको इनको फला नहीं। चीका असगुन तो पहले हुईगवा लड़की ने अपनी मां से कामा हम उनको देखेंगे हम हमें वही भेज दो मां ने पुत्री को ससुराल भेज दिया। जब मैं अपने ससुराल पहुंची तो वहां कोहराम मचा हुआ था। उन्होंने अपनी सांसे का माइन की चिता नाल लगाना ना प्रभाकर नाइन को जंगल में रखवा रखवा दो हम वहीं रहकर तब करेंगे सास ने वैसा ही किया जंगल में एक पीपल के वृक्ष के नीचे उनका पति का शव रखवा दिया गया। वह लड़की वहीं रहकर तब करने लगी प्रतिदिन संध्या समय उसकी सांस लेने जाती थी उस भोजन को वही पीपल के नीचे रख दिया करते थे। इस तरह से दिन बीतने लगे भोजन का ढेर लग गया साल पूरा होने को आया दूसरा करवा चौथ का पर्व की संध्या को भोजन लेकर आई तो बहू ने कहा कल करवा चौथ है। तुम नियम से पूजा की तैयारी करना सब दर्द होना चौक धरना करवा सजना एक हमारे लिए यह भेज देना हम पूजा करेंगे जो हमारे साथ हुई तो हमारा हमको मिलेगा सास ने उस उसके कथनअनुसार ही किया। करवा चौथ का दिन आया उसी जंगल में वह सारा श्रृंगार किया करवा चौथ पूछने लगी और जो नहीं हुई। जैसे जैसे वह करवा पूजने उनके पति का शरीर से शरीर में प्राण संचालित होने लगे जैसे ही चंद्रमा को अर्ध्य दिया कि उनके पति फनकार कर बैठ गए। कहने लगे अरे हम तो बहुत सो गए थे। बहु बहुत प्रसन्न हुई प्रसन्न मन से सुहाग लिया अपने पति के चरण छुए करवा पूजा कर बैठी हुई थी उनकी सास करवा का सारा भोजन लेकर आ गई। उन्होंने देखा कि हमारी बहू करवा हो चुकी है। आज तो हमारा लड़का उठा बैठा है। दोनों जने बैठे हैं सांस रोमांचित हो उठी। बहू के पैरों पर गिर पड़ी। कहने लगी बहू तुम तो हमारी लक्ष्मी हो। हमारे पुत्र को जीवित कर दिया। अपना सुहाग बनाए रखा। तुम्हारा अहिबात बना रहे। जडसे उनके दिन बहुरे,वडसे सबके बहुरे।