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जनपदीय साहित्य सहायिका/ऋतुसंबंधी गीत

विकिपुस्तक से


                                         ऋतुसंबंधी गीत 
          ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है। भारत में कुल 6 ऋतुओं का वर्णन मिलता है - वसन्त,ग्रीष्म,वर्षा,शरद्,हेमन्त,शिशिर। सामान्यतः एक ऋतु में दो मास होते हैं। इन ऋतुओं से सम्बन्धित गीतों को ही ऋतुगीत अथवा ऋतुसंबंधी गीत कहते हैं। प्रत्येक ऋतु के अलग-अलग गीत होते हैं। जैसे- वसंत जो वसंत ऋतु के समय गाया जाता है, कजली जो वर्षा ऋतु के समय    गाया जाता है इत्यादि। कुछ प्रमुख ऋतुसंबंधी गीत निम्न हैं - 

• वसन्त

वसन्त ऋतु में गाए जाने वाले गीतों को 'वसन्त' कहते हैं। यह गीत बड़ा ही मादक और आकर्षक होता है। प्रेम, श्रृंगार और सौंदर्य के मृदुल रूपों का काव्यात्मक वर्णन इस गीत का प्रधान लक्षण होता है। वसन्त और वासंतिकता से परिपूर्ण इस गीत को सुनकर श्रोताओं का मन माधवी लतााओं के समान डोलने लगता है। इस मधुर गीतों को सुनकर सचमुच ह्रदय में वसंती बहार लोटने लगता है। इसमें संभोग और विप्रलंभ दोनो ही रुपों का अतिशय सुंदर वर्णन मिलता है। मिथिला के अधिकांश 'वसन्त' गीतों के अंत में -
                 मनहि विद्यापति रीतु बसंत 
                 ककरहु जनि होइ अमुरुख कंत।
 ये दो पंक्तियां जुटी रहती है, यद्यपि ये गीत महाकवि विद्यापति की रचना नहीं हैं।

• चैतावर

  चैत महिने में गाए जाने वाले गीतों को चैतावर कहते हैं। भोजपुरी में इसे 'चैती' कहते हैं। इसमें चैती बहार का वर्णन है। चैत में मधुमास के पदार्पण के कारण चराचर जगत में एक नवीन रस का जीवन में संचार हो जाता है। अत: इस महिने के गीत चैतावर में मधुमास की माधुरी का बड़ा उद्दीपक चित्रण मिलता है। पल्लवों, फूलों, मंजरियों एवं लताओं से जग का आंगन भर जाता है, फिर इस मादक बेला में भला कामदेव कैसे चूक सकते हैं? फलस्वरूप कामिनियाँ अपने कंत से मिलने को व्याकुल हो उठती हैं। अपने प्रियतम से जिनका मिलन हो जाता है, वे सुख के सागर में डुबकी लगाने लगती है, किन्तु प्रियतम से दूर रहने वाली चिर वियोगिनी का विरहानल तो और भी प्रज्वलित हो उठता है। उनके लिए तो 'चैतावर'मानो अंगार बन कर बरसता है। आम की डाल पर कुहुकने वाली कोइली मानो और आग में घृत डाल देती है।      
                                 तात्पर्य यह कि चैतावर मुख्यतः प्रेमगीत है, और इसमें प्रेम के दोनो पक्षों का उद्घाटन होता है। ऐसे फगुआ और चैतावर दोनों प्रेमगीत हैं किन्तु फाग में जहाँ संयोग के उल्लास की प्रधानता रहता है, वहाँ चैतावर में वियोग के उच्छ्वास की। आकार में लघु होने पर भी चैतावर गीत सहृदय श्रोताओं के मन पर करारी चोट करता है और उसे विह्वल कर देता है। यही कारण है कि बड़े-बड़े संगीतज्ञ से ले कर चरवाहे तक इस गीत की मादक ताने में विभोर हो जाते हैं।'हो' और 'हो रामा'इस गीत की प्रमुख टेक है।

• फागु

  फाल्गुन महिने में गाए जाने वाले गीत को 'फागु' अथवा 'फगुआ' कहते हैं। यह हर्ष, उल्लास तथा उमंग का गीत है। उसमें वसंत की सारी मादकता सिमट कर मानो संगीतमय हो उठती है। इसमें रंग, भंग तथा उमंग की त्रिवेणी प्रवाहित होती रहती है। अबीर-गुलाल से वायुमंडल तो रंगीन हो ही जाता है, इसके अलावा मानव के तन और मन भी रंगीन तथा रसमय हो जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि संपूर्ण संसार एक मधुशाला बन गया है, जहाँ पीने और पिलाने के सिवा किसी का और कोई काम नहीं। सचमुच यह गीत आपसी भेदभाव की दीवाल को तोड़कर सब को एक डोर में बांध देता है। यह गीत केवल पुरुषों का नहीं, नारियों का भी है, केवल फुलवारियों और महलों का ही नहीं, अपितु खेतों, खलिहानों और झोपड़ीयों का भी। प्रेम, अनुराग और सौंदर्य का रंगीन चित्र उपस्थित करना उसकी दूसरी विशेषता है।             

• जोगीरा

  दो दो पंक्तियाें का जोगीरा इतना फड़काने वाला होता है कि इसके गाने के समय एक समां बंध जाता है। राम अथवा अन्य फुटकर विषयों को प्रश्नोत्तर शैली में गाया जाता है। एक आदमी प्रश्न पूछता है और दूसरा उसका उत्तर देता है। कभी-कभी तो प्रश्न बड़ा ही अश्लील और तीखा होता है। हास्यरस का इससे उत्तम उदाहरण मिलना कठिन है। लोगों को हंसा कर लोट-पोट कर देने की अपूर्व क्षमता होती है जोगीरा में। 

• कजली

  सावन के मन भावन महिने में भोजपुरी प्रदेश में जो गाने गाए जाते है उन्हें कजली कहते हैं। सावन के महिने में प्रकृति सर्वत्र हरी दिखायी पड़ती है और मेघों के आगमन के साथ ही प्रकृति में एक विचित्र प्रकार की मादकता संचरित होती है, महाकवि कालिदास ने भी इसी मादकता और मस्तीपन की ओर संकेत किया है।
                                 कजली का नामकरण इन महिनों में घिरने वाले काले बादलों के कारण किया है जो काजल के समान काले-काले आकाश में घूमते दिखाई पड़ते हैं। काजल के समान वर्ण समता के कारण ही इसका नाम कजली है। भारतेन्दु ने इसे एक पौराणिक कथा से जोड़ कर देखा है, और लिखते हैं कि - मध्यभारत में दादू राय नामक राजा था जिसके राज्य में गंगा को कोई मुसलमान छू नहीं सकता था। एक बार उसके राज्य में अकाल पड़ा उस समय राजा ने अपनी देश भक्ति के बल पर पानी बरसाया। उसके राज्य में रहने वाली स्त्रियों ने अपने दु:ख को प्रकट करने के लिए नए राग का अविष्कार किया जिसे कजली तीज कहते हैं। श्रावण-भादों के शुक्ल पक्ष की तीज का नाम जिस दिन यह गाना खूब गाया जाता है, वही कजली तीज हैं। हिन्दी के प्रेमधन आदि अनेक कवियों ने कजरी लिखी है। 

• बारहमासा

  बारहमासा गीतों में बारह महीने का वर्णन रहता है। ऐसे तो वह साल भर गाया जा सकता है परन्तु पावस के रसीले दिनों में इस गीत को स्वर लहरी में जो जादू रहता है, वह अन्य समय में नहीं। अत:परंपरानुसार व्यवहारिक दृष्टि से यह भी पावस गीत ही बन चुका है। लोकप्रियता की दृष्टि से इसका स्थान शायद सर्वोपरि है। बारहमासा वस्तुत: सावन-भादों के उस उमड़ते-घुमड़ते, बल खाते मेघ की तरह है, जो रस की मूसलाधार वृष्टि कर जन जन को स्पंदित एवं प्रफुल्लित कर देता है।
                                 मिथिला में धान रोपने वाले कृषक-मजदूर जब बारहमासा की तान लगाते हैं, तो समग्र वातावरण उसकी गूंज से प्रतिध्वनित हो उठता है। ऊपर से झमाझम वर्षा, नीचे पानी की छप्छप ध्वनि और बारहमासा के मधुर गीत-मानो मधु को चार कोटियों में विभक्त किया जा सकता है -    

1- प्रथम कोटि में वे गीत हैं, जिनमें विरहिणी स्वयं अपनी वेदना का कथन कर अपने मन को हलका करने की चेष्टा करती है। ऐसे गीतों में वियोगिनी की वेदना, अभिलाषा, जिज्ञासा,खीझ,विवश्ता आदि का बड़ा मार्मिक वर्णन रहता है। 2- बारहमासों का दूसरा प्रकार वह है, जिसमें वियोगिनी अत्यंत कृशकाय हो गयी है और अपनी सखी से अपने मन की दशा का वर्णन करती है। 3- तीसरा प्रकार वह है, जिसमें विरहिणी उद्धव अथवा अन्य पथिक से प्रियतम के पास संदेश पहुँचा देने की प्रार्थना करती है। 4- और चौथा प्रकार वह है, जिसमें वियोगिनी के मिलन सुख का सुंदर चित्रण किया गया है। इस प्रकार के बारहमासों में कृष्ण-गोपिकाओं के नोक-झोंक, मान-मनुहार, रस-क्रीड़ा, हास्य-विनोद एवं हर्ष-उल्लास का वर्णन रहता है।

         अपने लालित्य और भावसौंदर्य के कारण बारहमासा मिथिला के अतिरिक्त देश के अन्य भागों में भी प्रचलित है। मैथिली बारहमासा की प्रमुख टेक हैं यो, है, रे, हे सखि आदि।