जनपदीय साहित्य सहायिका/जँतसर गीत
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NAME- KISHAN ROLL NO- 233
कुछ दशक पहले तक गांवों में गेहूं ‘हाथ चक्की’ से ही पीसा जाता था जिसे ‘जांता कहते हैं। जांता पीसते वक्त महिलाएं इन गानों को गाती हैं इसी कारण इन गीतों को जंतसार कहा जाता हैं।वह गीत जो जाँता में गेहूँ पीसते समय स्त्रियाँ गाती हैं; जाँते का गीत। जँतसार [सं-स्त्री.] वह स्थान जहाँ पर जाँता या चक्की गड़ी रहती है।
कुछ जँतसर गीत:- 1- आलू जलमैन डाकू पंढरीन ये ,
विठ्ठल भेटेन आय सोनेरी पीडिया , तुका भेटेन आये । वंदरी जवरनरी.माळ घाल मैली थे । पीकी पीताम्बर पैर मैली ये आकुडालमन जाळू पंढरीन विठ्ठल भेटेन आये ।
2- ‘ए राम हरि मोरे गइले बिदेसवा, सकल दु:खवा देइ गइले हो राम। ए सासु, ननदिया बिरही बोलेली, केकर कमइया खइबू हो राम।’
3-. आपक दीई जावा अबसरमेन
जीजा कज मत कररी जगेमाइये । बाई मारी पती ,
देव टहेमी कार्कमाई पौती बाई ,
खांदेपर धोती थे ।
काई मेमाई मुंभ रहेरी मातैपर घडिया , हातै भाई झारी जीजा चाली तुकारी शिदोरी थे ।
जीजा चाली अब भरेभा सरगरी सीढी चढमी , तुका महाराज ये
4-. हमारै तडि माई , जीमी आयौच ये काई करू बाई ,
काई घालू औन ।
सैर पसी लाबुच , फैरन बाबुच् ।
जोरि झोकीम काई घालू बाईये । जोगीन केरी ,
काई छोई देयेन पर जौरि बापुरे ।