जनपदीय साहित्य सहायिका/श्रमसंबंधी गीत

विकिपुस्तक से

श्रम गीत की परिभाषा :-

श्रम गीत लोकगीत का एक प्रकार हैं। जिनमें पुरूष तथा स्त्री के कार्य करते समय जो मौखिक गीत रूप गाए जाते उन्हें श्रम गीत कहते हैं। जिनमें कटनी, जँतसर, दँवनी, रोपनी, ईख निराई के गीत शामिल हैं। यह श्रमिकों की रोजमर्रा की जिंदगी से संबंधित हैं।

¶ स्त्री वर्ग के श्रम गीत :- स्त्री वर्ग के मुख्य क्रिया - कलाप, जो लोक- जीवन में प्रचलित हैं - चक्की पीसना, चरखा कातना, ओखली कूटना, खेती करना, पानी भरना आदि। यह उनकी सामाजिक, पारिवारिक और दैनिक समस्याएं होती है।

निम्न समस्याएं जो अक्सर होता है जैसे बालविवाह, अनमेल विवाह, बंध्या का दुख तथा विवाहित जीवन में पति के अत्याचार आदि। इन गीतों में श्रम के साथ साथ अपने दुखों को व्यक्त करके वह कुछ अंशों में अपने मन के बोझिलपन को कम कर देती हैं। इनमें करूण रस का प्रधानाता रहती हैं लोक जीवन में स्त्रीयों में चक्की का विशेष महत्व है। चक्की के कर्म - चक्र प्रवर्तन का प्रतीक है।

चक्की के गीतों में सास के कटु- व्यवहारों का भी उल्लेख किया जाता हैं :-

ना इस घर में चक्की री ना चूल्हा ना चक्की में चूण बैहण मेरी बुरा है ससुर का देस

पनघट पर प्राय: युवतियाँ ही जाती हैं। जो या तो अविवाहित रहती हैं या नवविवाहित। पुरूषों की दुष्ट प्रमाण भी मिलते हैं। युवतियों को देख कर मन चले युवक फवतियाँ कसते हैं :-

काला जुत्ता ऊंचा रे, एडडा जल भरने को जाना रे घेरे में बैटठा एकयार, चलती को बोल्ली मार गया जिनके रे बालम घर में को ना उनका सिंगरना ठीक कोना

इसी प्रकार एक अन्य गीत :-

हे री सास्सू पाणी तो भरणे में चली हेरी सास्सू कूये पै खेल्ले काला नाग मुझे तो डस लेगा, हेरी मेरी बीबी मैंने तो जाणा देवता, ऐ री बीबी मावस की माँगे मुझसे खीर मुझे तो डस लेगा।

इसी प्रकार अन्य गीत :-

माली की ने दोघ्घड़ ठाई हाथ लई है चकडोर मण पै तो उन्हें घात दई है चकडोर घणी दूर का आया मुसाफिर तण सा नीर पिला दे।

ग्रामीण नारी के जीवन में पनघट का विशिष्ट स्थान है। ग्रामीण स्त्री के लिए यह स्थल विचार विनिमय के स्थान थे जिसको आजकल क्लब का रुप दे दिया गया है। यह मनोरंजन स्थल होते थे जहां वह अपनी अपनी घर गृहस्थी की सुख दुख की बातें सुनती थी। यह स्थल कई प्रेेेम गाथाओं के लिए भी प्रसिद्ध है।

¶ पुरूष वर्ग के श्रम गीत :- जिस प्रकार स्त्री वर्ग के क्रिया गीत स्त्रीयों के कार्यो से संबंधित होते हैं। दोनों के ही भिन्न - भिन्न कार्य क्षेत्र हैं। पुरूषों को अधिक शारीरिक श्रम करना पड़ता है, वह बलवान होते हैं। वह इस योग्य होते हैं और सफलता पूर्वक करते भी है। इसलिए श्रम का परिहार करने के लिए गीतों का निर्माण करते हैं। इनके वर्गों के गीतों ज्यादातर श्रृंगार रस की प्रधानता होती हैं।

खड़ीबोली - प्रदेश में ईख की पैदावार बहुत अधिकता से ही होती हैं और किसान बैलों के व्दारा खीचें जाने वाले कोल्हू से गन्ना का पिसाई कर उसके रस से गुड़, शक्कर तथा राव बनाते हैं।

कोल्हू चलाने का काम प्रायः रात भर होता हैं। कोल्हूओं पर चारों ओर जागरण रखने के लिए कोल्हू गीत गाने का प्रचलन है जिनको पल्हावे या मल्हौर कहते है। इस काम में थकान का अनुभव नहीं होने देते हैं और जीवन में सरसता बनाए रखते हैं।

मल्हौर रात के समय थकान से बचने के लिये ये एक दूसरे से कोल्हू के रुप में बात करते एक सवाल करता दूसरा उसी अंदाज़ में जवाब देता मल्होरों के लिए दोहा जैसा छंद अपनाया गया :-

जीवन तेरे कारण छोडडे भाई बाप सात्थन छोड्डी साथ की, हिरना बरणी नार मेरी बावलिया मल्होर जोवण चाल्या रूस के, पड़ लिया लम्बी राह कैसे पकडूं दौड़ के मेरे गोड्डो में दम नाय।

नीति -

जिनका ऊँचा बैठणा, जिनके खेत निवाण उनका बैरी क्या करे, जिनके मीत दिवाण मेरा बावलि या मल्होर।

धर्म -

माला मन से लड़ पड़ी, प्यारे का लड़कावे मोय भण निहचें कर राखिये मिला दयूंगी तोय।

मल्होरों में विनोदपूर्ण पद्म में कटाक्ष एंव उपालंभ भी सुनाई पड़ते हैं -

ढाई पाट का ओढ़ना, तले खड़ा मेरा जेठ ढाई पाट का ओढ़ना, मुढ ढकूं अक पेट।

इसमें पोराणिक कथाओं का सहारा भी लिया गया है जो इस प्रकार हैं -

लकड़ी इकली ना जलै, नाय उजाला होय लक्षमन सा बीरा मारकै, राम अकेला होय ।

जादू, टोना व तांत्रिक उपायों का सार्वजनिक जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए प्रयोग दर्शाने वाली इस प्रकार का एक मल्होर है -

बड़ बांधू बड़ वासनी, बड़ के बांधू पात तेरे गुरु की मसक, बांध ल्यूं तेरे दोणों हाथ

इन छोटे छोटे छन्दों में महान प्रेरणा सुत्र हैं। कबीर का एक दोहा लोकभाषा में इस प्रकार हैं-

उदाहरण के लिए - चालती चाक्की देख कै, प्यारे दिया कबीरा रोय । दो पाट्टो के बीच में साबित रहया ना कोय।

पल्हावे -

1) नदी किनारे रूखड़ा तीन तपस्सी उतर रहे सीता लछमन राम मेरे बावलये मलोर

2) नेड़े मुंह को टोकनी संवल दे पनहार गजब पड़ो तरे रूप पर दिया मुसाफिर मरवाय मेरे बावलये मल्होर।

इसी प्रकार अन्य गीत :-

जितनी खिड़की उतनी चंदन छिड़की बीच बिच्चे रख दी मोरी जी चै चै कर तो रैन गुजरगी पास खड़ी रही गोरी जी तु है रसिया बन का बसिया जो मैं होती बिरवै की लकड़ी गले से लगती गोरी जी तु है रसिया बन का बसिया तू क्या जाने चौरी जी चै चै कर तो रैन गुजरगी, पास खड़ी रही गोरी जी

¶ कुएं चलाने की क्रिया में दो व्यक्ति साथ काम करते हैं। कुएं के गीतों का विषय प्रायः भक्ति, मनोरंजन एंव विनोद होता हैं पर कभी-कभी इनमें व्यंग्य और उपांलभ भी स्थान पाते हैं।

भक्ति - भावना

भाई राम था धणी का, लीए नाम ऊ ऊ ऊ हर भर के ल्या, उठा, राम, ऊ ऊ ऊ ले ले नाम हरी का तुम कैसे बार लाई हे तणे बरधों कूं छोड़ दें भाई।

मनोरंजन एवं विनोद -

किलड़ी कू दे दे लगी देर प्यारे रे है बनजारी कू झौली, हिये त्याग भाई रे

¶ कष्ट निवारण के लिए यह लोग ये गीत गाते है -

कुओं के बारे

1) गुर गंगे, गुर बावरे, गुर देवन के देव गुर से चेला अन्त बड़ा, करै गुरु की सेवा।

2) ले राम का नाम, मेरी जोड़ी को दियो जोड़।

3) भजन में मगन रहो, माला हर की फेरों।

4) जोड़ कै चला जा और जोड़ी को दियौ न ढाल।

अन्य गीत :-

कोठे ऊपर कोठरी है, उसमें काला नाग काटे से तो बच गई रे, अपने पिया के भाग छोटी काया की किश्ती बनी रे, माया की हुनियार उठा भंवर गुंजार कै रै, नैया घेरी आय छोरी राम बढ़ाये सब बढ़े बल कर बढ़ा न कोय बल करके रावण बढ़ा, छिन मे दिये खोय छोरी गंग जमन की रेती रे, अरे ईखा बिना क्या खेती रे छोरी मेरा.......।

स्त्रोत :-

1) From my thoughts

2) book of Janpadiya sahitya

3) from Google some point etc.

Name - Imtyaz

Roll no. - 18/ 102

subject - janpadiya sahitya

college - pgdav eve college