जनपदीय साहित्य सहायिका/हिंदी प्रदेश की जनपदीय बोलियाँ और उनका साहित्य (सामान्य परिचय)

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हिंदी प्रदेश की जनपदीय बोलियाँ और उनका सामान्य परिचय 


हिंदी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएं) है जिसमे अवधी,कन्नौज,बुंदेली,भोजपुरी,हरियाणवी,राजस्थानी,छत्तीसगढ़ी,मालवी,झारखंडी,ब्रजभाषा,खड़ी बोली,मारवाड़ी,गढ़वाली,मैथिली, आदि भाषाएं है

यह सभी भाषाएं अपना-अपना प्रमुख स्थान रखतीं है ! ऐसी बोलियों मे ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख है, इन भाषाओं मे ही उच्च कोटि के साहित्य की रचना की गई है! यह बोलियाँ हिंदी की विविधता ,विशेषता और उसकी शक्ति का प्रतीक है यही भाषाएँ हिन्दी की जड़ें मजबूत करने मे सहायक है !

हिंदी की बोलियों मे उपबोलिया ही है जो अपने भीतर एक बड़ी संस्कृति,परंपरा,इतिहास,रिति-रिवाज,संस्कार,सभ्यता को समेटे हुए है इसी कारण यह भाषा विश्व मे सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है! 


यहाँ पर हरियाणवी,ब्रज,अवधी,भोजपुरी बोलियों का परिचय दिया जा हा है - 


1. हरियाणवी 

हरियाणवी या हरियानी हिंदी के पश्चिमी वर्ग की बोली है! हिन्दी भाषाई क्षेत्र मे जो बोलियाँ पश्चिमी ओर मे प्रचलित होती है उन्हे "पश्चिमी बोलीं "कहते है! पश्चिम हिन्दी का क्षेत्र करनाल से होते हुए जबलपुर तक जाता है अर्थात करनाल से जबलपुर तक के गाँव,कस्बों,मौहल्लो मे इस बोलीं का प्रचलन है ! इसी कारण से हरियाणवी भाषा बोलने वालों की संख्या तकरीबन 35 लाख है ! यह भाषा बहुत ही सरल है जिसको कोई छोटा बच्चा भी आसानी से बोल सकता है , भाषा प्रणाली भी बहुत सुशोभित और सरल ज्ञात होती है ! हरियाणवी भाषा का अपने भीतर ही एक इतिहास है प्राचीन काल में एक जनपद था उसी जनपद के आधार पर इस भाषा का नामकरण हुआ है ! इस बोलीं को बोलने वाले लोग बहुत ही रोचक है जो हरियाणा को 'हरियाना' कहते है ! 


हरियाणवी बोलीं कि कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित है -:

ध्वनियों का मिश्रण हो जाता है ! 

'ण' शब्द का प्रयोग अधिक होता है जैसे पानी-पाणि, कहते है ! 

कुछ शब्द जिनके अर्थ बदल जाते है जैसे - दवाई (दुआई) हांडना (चलना-फिरना) चीकड़ (कीचड़)


2. ब्रजभाषा 

मध्यकाल मे ब्रज भाषा का प्रचलन और उसका दौर एक लंबी अवधि तक चला ! ज्यादातर काव्य ब्रज भाषा मे लिखे गए! ब्रज क्षेत्र में होने के कारण इस भाषा को ब्रज भाषा कहा जाता है ब्रजभाषा की राजधानी मथुरा को कहा जाता है , ब्रजभाषा आपको मथुरा,वृंदावन,आगरा,अलीगढ़,बुलंदशहर,रायबरेली,ग्वालियर,भरतपुर तक बोलने एवं सुनने मिलेगी ! इस भाषा मे वो सरल ,साहित्यिक भाव हमेशा देखने मिलता है जो सभी बोलियाँ मे नही होता ! सूरदास ब्रजभाषा के महानतम एवं उच्च कोटि के कवि है! ब्रजभाषा मे पद्माकर एवं भारतेंदु हरिश्चंद्र के एवं बिहारीकी रचनाएँ भी देखने मिलती है , जिस कारण यह पूरे भारत के कुछ ऐतिहासिक शहरो मे बोली जाती है ब्रजभाषा बोलने वालों की संख्या तकरीबन सवा लाख है!

3. अवधी

अवधी बोली का स्वरूप हिंदी भाषा से ही है ! यह पूर्वी हिन्दी बोली ही है! इसी बोलीं के माध्यम से विश्व का सबसे बड़े एवं श्रेष्ठ ग्रंथ की रचना हुई जिसे हम 'रामचरितमानस 'कहते है! अवधी बोलने वालो की संख्या तकरीबन ढाई करोड़ है!कानपुर,प्रतापगढ़,बहराइच,गोंडा,सुल्तानपुर एवं अन्य प्रदेशो मे इस बोलीं का प्रचलन है ! जिस कारण यह हिन्दी की महत्वपूर्ण बोलियों मे अपना स्थान श्रेष्ठ रखती है! अवधी,अवध जनपद की बोली है! मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित काव्य 'पद्मावत ' भी अवधी भाषा मे निर्मित है! अवधी के लोक साहित्य की सीमा समृद्ध एवं विशाल है जिसका इतिहास खंडन बहुत पेचीदा और प्रभावशाली है

4. भोजपुरी

यह बोलीं बिहार मे ज्यादातर प्रचलित हैं जिस कारण इसे भोजपुरी कहते है! यह सम्पूर्ण बिहार एवं बिहार के उत्तर-पूर्वी इलाको में बोली जाने वाली भाषा है! बिहार की बोलीं मे एक अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की गई है जो 'मैथिली 'भोजपुरी साहित्य कहा जाता है! वैसे तो भोजपुरी बोली बोलने की कोई संख्या नही है फिर भी यह देवरिया ,गाजीपुर,सहारनपुर,कानपुर,बनारस,वाराणसी,गोरखपुर,रांची तक बोलीं जाती है! भोजपुरी भाषा मे कई विशाल नाटक,फिल्मे इत्यादि बन चुके है ! फिल्मो की मूल भाषा भोजपुरी ही होती है कलाकार भी भोजपुरी मे ही डायलाग देते है एवं फिल्म के गीत संगीत भी भोजपुरी मे ही होते हैं! भोजपुरी का साहित्य बहुत समृद्ध एवं विशाल है

5. गढ़वाली

गढ़वाली भारत के उत्तराखंड राज्य में बोले जाने वाली प्रमुख भाषा है! गढ़वाली बोली का क्षेत्र 'गढवाल 'होने के कारण इसका यह नामकरण हुआ है! पहले इस क्षेत्र को केदारखंड कहते थे बाद मे यह नाम बदलकर गढवाल हो गया! भाषा-सर्वेक्षण के अनुसार गढ़वाली भाषा छः लाख,सत्तर हजार लोग गढ़वाली भाषा बोलते है! यह देहरादून से बिजनौर मुरादाबाद तक के इलाको मे बोली जाती है!गढ़वाली बोली की बहुत सी उपबोलिया प्रचलित हुई है जैसे-: राठी,लोहब्या,श्रीनगरीय,टेहरी आदि! गढ़वाली बोली मे 'नागरी' लिपि का प्रयोग किया गया है,जिसका साहित्य प्रायः बराबर व उचित मात्रा में प्रयुक्त नही है! यहाँ पर अनेक जाति वर्ग के समूह भाईचारे से जीवन बिताते है मुख्य तौर पर यहाँ निम्न समुदाय निवास करते हैं जैसे-: कोल ,राजपूत,ब्राह्मण!

1. कोल - इस समुदाय की उत्पत्ति द्रविड़ो से मानी जाती है! यह सामान्यत: काले रंग के हुआ करते थे,ये पहले गढवाल के जंगलो मे रहते थे और वहीं शिकार एवं भोजन तलाश किया किया करते थे! यह खेती भी करते है और भूत-पिशाच एवं नरसिंह अवतार की पूजा करते हैं!

2. राजपूत - गढ़वाल के राजपूतों को आर्य प्रवृत्ति का माना जाता है! यह लोग कश्मीर के रास्ते हिन्दूकुष से आए थे ,एवं हिमाचल के कुछ छोटे-बड़े इलाकों से आए थे! गढ़वाल में बसने वाले ये लोग राजस्थान से भागकर आए है जिसका कारण मुगलो का आक्रमण था! यह लोग अन्य व्यवसायिक कार्यो के साथ खेती करना पसंद करते हैं! <himalayilog.com http://himalayilog.com/2017/03/30/%E0%A4%97%E0%A5%9D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8/>


6. खड़ी बोली


खड़ी बोली को 'कौरवी भाषा 'भी कहा जाता है! अर्थात यह एक सरल एवं सधूक्कड बोली है ,जिसे सभी भाषाओं मे अधिक महत्वपूर्ण दिया जाता है ! सभी भाषाओं मे खड़ी बोली हो सकती है किंतु हिन्दी मे खड़ी बोली सहारनपुर,मेरठ,बुलंदशहर,मुजफ्फरनगर,कौशाम्बीआदि प्रदेशो मे बोली जाती है गिर्यसन ने इसे हिन्दुस्तानी बोली कहा है ! लगभग 1:30 करोड़ लोग खड़ी बोली बोलते है जो एक बड़ा आकड़ा साबित होता है!

खड़ी बोली की कुछ विशेषताएँ -;

1. खड़ीबोली मे 'ल' शब्द का प्रयोग अधिक किया जाता है जिसका मानक आभाव है जैसे-"बाल,जंगल

2. खड़ी बोली आक्रान्तरूपी है!

3. खड़ीबोली में काव्यात्मक प्रस्तुति सरल होता है!

4. खड़ीबोली के पहले कवि हरिओध माने जाते हैं !


          नाम - मानव राठी 
          विश्वविद्यालय- पीजीडीएवी महाविद्यालय सांध्य,नेहरू नगर दिल्ली