दलित आंदोलन/'दलित' शब्द का अभिप्राय
आज हम बोलचाल में, दलित अधिकांशतः प्रशासनिक स्तर पर गढ़े गए शब्द 'अनुसूचित जनजाति (SC) तक ही सीमित है, जबकि आधिकारिक रूप से इसमें अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियां भी सम्मिलित है। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार भारत के अस्पृश्यों के लिए 1935 में एससी शब्द का उपयोग करती थी। इसके पहले 1919 में वह उन्हें शोषित-पीड़ित जातियां कहती थी।
समान रूप से, दलित शब्द का उपयोग समाज के हाशिये पर पड़े उन तमाम गरीब, भूमिहीन किसान, महिलाएं, आदिवासी, कामगारों के लिए किया जाता है। इसके साथ-साथ, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिकत तथा आर्थिक रूप से शोषित लोगों के लिए भी दलित शब्द का उपयोग किया जाता है। इस तरह से दलित का मतलब समाज में निम्न जाति का व्यक्ति है। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि दलित शब्द उस प्रक्रिया को विश्लेषक करता है, जिसके जरिए दलित स्वयं इसकी पहचान करते हैं कि उनके साथ हर एक स्तर पर भेदभाव किया जाता है और इस खातिर हुए खुद के लिए एक अलग पहचान की मांग करते हैं।
आश्चर्य की बात है कि मराठी लेखकों ने 1960 के दशक में ही अछूत या हरिजन के बदले दलित शब्द का प्रस्ताव दिया था, जिसका मराठी में मतलब होता है टूटा हुआ/बिखरा हुआ।