नवंबर समसामयिकी/राजव्यवस्था एवं संविधान
गैर-सरकारी विधेयक को शुक्रवार के स्थान पर बुधवार को प्रस्तुत करने का दिन निर्धारित करने की मांग
[सम्पादन]- केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री से बाहर के सदस्यों को संसद का गैर-सरकारी सदस्य तथा इनके द्वारा पेश किया गया विधेयक गैर-सरकारी विधेयक कहलाता है।
- राज्यसभा और लोकसभा दोनों में पेश किया जा सकता है।
- किसी भी विषय से संबंधित हो सकता है,जिसमें संविधान संशोधन विधेयक भी शामिल है।
- सार्वजनिक मामलों पर विपक्षी दल के मंतव्य को प्रदर्शित करता है।
विधेयक प्रस्तुतीकरण प्रक्रिया:
- मसौदा सांसद या उनके कर्मचारियों द्वारा तैयार किया जाता है।इन विधेयकों के तकनीकी और कानूनी मामलों की जाँच संसद सचिवालय द्वारा की जाती है।
- इसको पेश करने के लिये एक माह के नोटिस के साथ विधेयक के उद्देश्य और कारणों के विवरण की एक प्रति होनी चाहिए।
- वर्ष 1997 तक प्रति सप्ताह 3 विधेयक प्रस्तुत किये जा सकते थे,जिनकी संख्या बाद में घटा कर प्रति सत्र 3 कर दी गई।
- गैर-सरकारी विधेयकों को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है।
- आँकड़े:-एक रिपोर्ट के अनुसार,वर्ष 2009-14 के बीच प्रस्तुत कुल 372 गैर सरकारी विधेयकों में से केवल 11 विधेयकों पर चर्चा की गई।
- स्वतंत्रता के बाद से आज तक केवल 14 ऐसे गैर-सरकारी विधेयक हैं जिन पर क़ानून बनाया गया है।
- वर्ष 1970 के बाद प्रस्तुत कोई भी गैर-सरकारी विधेयक क़ानून नहीं बन सका है।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित विधेयक को वर्ष 2014 में राज्यसभा द्वारा 45 वर्षों बाद पारित किया गया।
विधेयकों की असफलता के कारण:
- इनको स्वेच्छा या अनिच्छा से सत्ता पक्ष द्वारा नज़रअंदाज़ किये गए मुद्दों पर ध्यान देने के लिये अस्तित्व में लाया गया।
- इनका सफलतापूर्वक पारित होना,सरकार की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
- इसको अगर सदन में समर्थन मिल भी जाता है तो सत्ता पक्ष उसे सरकारी विधेयक की तरह पारित करवाने की कोशिश करता है।
हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (JJP) को राज्य स्तरीय दल का दर्जा
[सम्पादन]दिसंबर 2018 में इंडियन नेशनल लोक दल(INLD) के विभाजन के बाद गठित। 21 अक्टूबर 2019 को हरियाणा विधान सभा के 90 सीटों के लिए संपन्न चुनाव में इसने दस सीटों पर जीत हासिल की।
राज्य स्तरीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें द
- ल ने राज्य की विधानसभा के चुनाव में कुल सीटों का 3% या 3 सीटेंजो भी अधिक हो,प्राप्त किया हो।
- लोकसभा के लिये हुए आम चुनाव में दल ने राज्य के लिये निर्धारित प्रत्येक 25 लोकसभा सीटों में 1 सीट पर जीतदर्ज की हो।
- राज्य में हुए लोकसभा या विधानसभा के चुनावों मेंकुल वैध मतों के 6 प्रतिशत मत प्राप्त किये हों तथा उसने1 लोकसभा सीट या 2 विधानसभा सीटोंपर जीत दर्ज की हो।
- राज्य में लोकसभा या विधानसभा के लिये हुए चुनावों में दल ने कुल वैध मतों के 8 प्रतिशत मत प्राप्त किये हों।
राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें
- लोकसभा चुनावों में कुल लोकसभा सीटों की 2 %(11 सीट) सीटों पर जीत कम-से-कम तीन अलग-अलग राज्यों से हासिल करता हो।
- लोकसभा या राज्यों के विधानसभा चुनावों में 4अलग-अलग राज्यों से कुल वैध मतों के 6%मत प्राप्त करे तथा 4 लोकसभा सीटोंपर जीत दर्ज करे।
- यदि कोई दल चार या इससे अधिक राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करे।
- इस दर्जे को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि वह आगामी चुनावों में भी उपरोक्त अहर्ताओं को पूरा करे अन्यथा उससे वह दर्जा वापस ले लिया जाएगा।
लाभ
- राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दल को अपने राज्य में उम्मीदवारों के लिये सुरक्षित चुनाव चिन्ह आवंटित करने का विशेषाधिकार प्राप्त होता है।
- राष्ट्रीय दल को पूरे भारत में अपने उम्मीदवारों को दल के लिये सुरक्षित चुनाव चिन्ह आवंटित करने का विशेष अधिकार प्राप्त होता है।
- मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय उम्मीदवारों को नामांकन-पत्र दाखिल करते समय सिर्फ एक ही प्रस्तावक की ज़रूरत होती है।
- उन्हें मतदाता सूचियों में संशोधन के समय मतदाता सूचियों के दो सेट नि:शुल्क पाने का अधिकार होता है। आम चुनाव के दौरान उनके उम्मीदवारों को मतदाता सूची का एक सेट नि:शुल्क पाने का हक होता है।
- आम चुनाव के दौरान आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण की सुविधा।
- अपने स्टार-प्रचारक नामित करने की सुविधा भी प्राप्त होती है।
- मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल अधिकतम 40 स्टार-प्रचारक रख सकता है,जबकि एक गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल अधिकतम 20 स्टार-प्रचारक ही रख सकता है। इन स्टार प्रचारकों की यात्रा का खर्च उस उम्मीदवार या दल के खर्च में नहीं जोड़ा जाता जिसके पक्ष में ये प्रचार करते हैं।
जेल सुधार के तहत विचाराधीन कैदियों की रिहाई
[सम्पादन]- केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री ने राज्यसभा में बताया कि उन्होंने देश के सभी 25 उच्च न्यायालयों से अपील की है कि वे लंबित मामलों की तेजी से सुनवाई करने के साथ ही सजा की 50% अवधि पूरी कर चुके विचाराधीन कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करें।इनकी रिहाई भारत में जेल सुधार प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
- यदि कोई कैदी किसी गंभीर मामले में अपराधी नहीं है और उसने अपनी सजा की 50% अवधि एक विचाराधीन कैदी के रूप में पूरी कर ली है,उसे रिहा कर दिया जाना चाहिये।
- जमानत पर रिहाई का कार्य केवल न्यायपालिका द्वारा किया जा सकता है।
- जमानती बॉण्ड के न भरने तथा जाँच से भागने वाले कैदियों से संबंधित विषय एक जटिल मुद्दा है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’(NCRB)के अनुसार,भारतीय जेलों की क्षमता 3.91 लाख कैदियों को रखने की है परंतु इन जेलों में अभी भी लगभग 4.5 लाख कैदी रहते हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरोवर्ष 1986 में गृह मंत्रालय के अंतर्गत अपराध और अपराधियों की सूचना संग्रह करने के लिये स्धापित की गई थी।
- वर्ष 2009 से यह अपराध एवं अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (CCTNS)योजना की देख-रेख,समन्वय तथा लागू करने का कार्य कर रहा है।
- इसका उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारतीय पुलिस को अपराध तथा अपराधियों की जानकारी देकर कानून व्यवस्था बनाए रखने और लोगों की सुरक्षा करने में सक्षम बनाना है।
लोकसभा अध्यक्ष द्वारा दो सदस्यों को अनियंत्रित आचरण के कारण सदन से निलंबित
[सम्पादन]- लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के अंतर्गत नियम 378 के अनुसार,लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सदन में व्यवस्था बनाई रखी जाएगी तथा उसे अपने निर्णयों को प्रवर्तित करने के लिये सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
- नियम 373 किसी सदस्य का व्यवहार अव्यवस्थापूर्ण है तो अध्यक्ष उस सदस्य को लोकसभा से बाहर चले जाने का निर्देश दे सकता है
- नियम 374 (1),(2)तथा(3)किसी सदस्य ने अध्यक्ष के प्राधिकारों की उपेक्षा की है या वह जान बूझकर लोकसभा के कार्यों में बाधा डाल रहा है तो लोकसभा अध्यक्ष उस सदस्य का नाम लेकर उसे अवशिष्ट सत्र से निलंबित कर सकता है तथा निलंबित सदस्य तुरंत लोकसभा से बाहर चला जाएगा।
- नियम 374 (क) (1) के अनुसार, नियम 373 और 374 में अंतर्विष्ट किसी प्रावधान के बावजूद यदि कोई सदस्य लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट आकर अथवा सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से लोकसभा की कार्यवाही में बाधा डालकर जान बूझकर सभा के नियमों का उल्लंघन करते हुए घोर अव्यवस्था उत्पन्न करता है तो लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उसका नाम लिये जाने पर वह लोकसभा की पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये (जो भी कम हो) स्वतः निलंबित हो जाएगा।
निलंबन से संबंधित कुछ उदाहरण: जनवरी 2019 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने 45 सांसदों को लगातार कई दिनों तक लोकसभा की कार्यवाही बाधित करने के कारण निलंबित कर दिया था। फरवरी 2014 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अविभाजित आंध्र प्रदेश के 18 सांसदों को निलंबित किया था। ये सांसद तेलंगाना राज्य के निर्माण के निर्णय का समर्थन या विरोध कर रहे थे। दिसंबर 2018 में लोकसभा की नियम समिति ने सदन की वेल (Well) में प्रवेश करने वाले तथा पीठासीन के बार-बार मना करने के बावजूद नारे लगाकर लोकसभा के कार्य में बाधा डालने वाले सदस्यों के स्वतः निलंबन की सिफारिश की थी।
छत्तीसगढ़ पंचायतों में दिव्यांग कोटा
[सम्पादन]- प्रत्येक पंचायत में एक स्थान दिव्यांग सदस्य के लिये आरक्षित होगा।
- राज्य में दिव्यांगों की संख्या राज्य की कुल जनसंख्या का 6 प्रतिशत है।
- यदि दिव्यांग सदस्य का चयन चुनावी प्रक्रिया द्वारा नहीं होता,तो किसी एक पुरुष या महिला सदस्य को बतौर पंच नामित किया जाएगा।
- ब्लाक तथा ज़िला पंचायतों के लिये ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर राज्य सरकार दो दिव्यांग सदस्यों को नामित करेगी जिसमें एक महिला तथा एक पुरुष शामिल होगा।
- इस निर्णय के क्रियान्वयन के लिये छत्तीसगढ़ सरकार को राज्य पंचायती राज अधिनियम, 1993में संशोधन करना होगा।
निर्णय का महत्त्व: इस प्रावधान के लागू होने के बाद राज्य में लगभग 11,000 दिव्यांग सदस्य राज्य की पंचायती व्यवस्था का हिस्सा होंगे। इस निर्णय के माध्यम से राज्य के दिव्यांग वर्गों की न सिर्फ सामाजिक तथा राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी बल्कि वे मानसिक रूप से सशक्त होंगे। छत्तीसगढ़ ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य होगा। दिव्यांगों से संबंधित संवैधानिक तथा कानूनी उपबंध: राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अनुच्छेद-41 बेरोज़गार,रोगियों,वृद्धों तथा शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को काम,शिक्षा तथा सार्वजनिक सहायता का अधिकार दिलाने के लिये राज्य को दिशा निर्देश देता है। संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूचीके विषयों में दिव्यांगों तथा बेरोज़गारों के संबंध में प्रावधान दिये गए हैं। दिव्यांग अधिकार कानून, 2016 के तहत दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों में 4% तथा उच्च शिक्षा के संस्थाओं में 5% के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। वर्ष 1992 में 73वें संविधान संशोधन द्वारा भारत में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत की। पंचायती राज के संबंध में संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान का भाग-9 तथा 11वीं अनुसूची पंचायतों से संबंधित है। पंचायती राज से संबंधित प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-243 से 243(O) में दिये गए हैं। राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद-40 में स्थानीय स्वशासन की बात कही गई है।
जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन)विधेयक,2019
[सम्पादन]- राज्यसभा द्वारा 19 नवंबर 2019 को तथा लोकसभा द्वारा 2 अगस्त,2019 को पारित।
- विधेयक में प्रावधान:-जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम,1951 में संशोधन का प्रावधान करता है,जिसके अनुसार इस स्मारक के न्यासियों में निम्नलिखित शामिल हैं-
- अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष
- संस्कृति मंत्रालय का प्रभारी मंत्री
- लोकसभा में विपक्ष का नेता
- पंजाब का राज्यपाल
- पंजाब का मुख्यमंत्री
- केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन प्रतिष्ठित व्यक्ति
- इस विधेयक में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष को न्यास का स्थायी सदस्य बनाए जाने से संबंधित धारा को हटाकर गैर राजनीतिक व्यक्ति को इसके संचालन हेतु न्यासी बनाने का प्रयास किया गया है।
- लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अथवा विपक्ष का ऐसा कोई नेता न होने की स्थिति में सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को न्यास के सदस्य के रूप में शामिल किया जाए।
- केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन न्यासियों को पाँच वर्ष की अवधि के लिये नियुक्त किया जाएगा तथा इन्हें पुनः नामित भी किया जा सकता है।
केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने बिल पेश करते हुए कहा कि जलियांवाला बाग एक राष्ट्रीय स्मारक है तथा वर्ष 2019 में इस घटना के 100 साल पूरे होने के अवसर पर हम इस स्मारक को राजनीति से मुक्त करना चाहते हैं।
13 अप्रैल,1919 को बैशाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिये कॉन्ग्रेस ने मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की थी। जनता द्वारा वित्त पोषित,जलियांवाला बाग ट्रस्ट की स्थापना साल 1921 में की गई थी। इसके नए न्यास का गठन साल 1951 में किया गया।नए न्यास में व्यक्ति विशेष को सदस्य बनाया गया तथा किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को इसमें शामिल नहीं किया गया था।
संविधान दिवस की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर ‘संविधान से समरसता’ कार्यक्रम के तहत मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता फैलाने का निश्चय किया है।संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान के प्रारूप को पारित किया गया, इस दिन को भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय लोकतंत्र में चुनावी बॉण्ड योजना की प्रासंगिकता
[सम्पादन]RBI के तत्कालीन गवर्नर ने चुनावी बॉण्ड योजना में पारदर्शिता के संबंध में तत्कालीन कानून मंत्री को पत्र लिखा था,परंतु सरकार द्वारा RBI और EC की आपत्तियों को दरकिनार कर इस योजना को वित्त विधेयक के रूप में लोकसभा में पास कर दिया गया।
- RBI गवर्नर ने अपने पत्र में कहा था कि इस योजना में पारदर्शिता के अभाव में मनी लांड्रिंग बिल कमज़ोर होता है,साथ हीं इससे केंद्रीय बैंकिंग प्रथाओं के बुनियादी सिद्धांतों का भी उल्लंघन होता है।
- RBI ने यह भी आशंका जताई थी कि इस योजना से उन कंपनियों को भी बॉण्ड खरीदने की अनुमति मिल जाएगी जो घाटे में चल रही हैं,जो कि शेल कंपनियों की स्थापना की संभावनाओं को उत्पन्न करती है।
- वर्ष 2018 में चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायलय में हलफ़नामा दायर करते हुए बताया था कि इस योजना के दूरगामी खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।
- EC का मानना था कि इससे न केवल पारदर्शिता खत्म होगी बल्कि, इलेक्टोरल बॉण्ड फाइनेंस सिस्टम और कमज़ोर हो जाएगा।
- राजनीतिक फंडिंग या चुनावी फंडिंग को विनियमित करने से संबंधी प्रमुख प्रावधान।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29(C) के तहत राजनीतिक दलों के लिये यह अनिवार्य किया गया है कि वे 20, 000 रुपये से अधिक की फंडिंग की घोषणा करें।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 1976 की धारा 2(e) के अनुसार, किसी भी विदेशी स्रोत से योगदान स्वीकार करना पूरी तरह से निषिद्ध है। अधिनियम के तहत इस संदर्भ में दंड का भी प्रावधान किया गया है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 77 राजनीतिक दलों के चुनावी खर्चों को परिभाषित करती है और इसमें उस दल के उम्मीदवार या एजेंट द्वारा किये गए खर्चे भी शामिल किये जाते हैं।
- चुनावी बॉण्ड का जिक्र सर्वप्रथम वर्ष 2017 के आम बजट में किया गया था।
चुनावी बॉण्ड एक प्रॉमिसरी नोट की तरह होगा, जिस पर किसी भी प्रकार का ब्याज नहीं दिया जाएगा।चेक या ई-भुगतान के ज़रिये ही खरीदा जा सकता है।
- भारत के किसी भी नागरिक और कॉर्पोरेट निकाय को चुनावी बॉण्ड खरीदने की अनुमति है, वे सरकार द्वारा अधिसूचित शाखाओं से इस प्रकार के बॉण्ड खरीद सकते हैं जो कि जनवरी,अप्रैल,जुलाई और अक्तूबर में 10 दिनों के लिये बेचे जाते हैं।
चुनावी बॉण्ड योजना
[सम्पादन]- सरकार द्वारा वर्ष 2018 में अधिसूचित।स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को अधिकृत।
- भारत के प्रत्येक नागरिक द्वारा चुनावी बॉण्ड की खरीदारी की जा सकती है।
- किसी व्यक्ति द्वारा चुनावी बॉण्ड में निवेश की कोई सीमा नहीं है।
- चुनावी बॉण्ड में निवेश की गई राशि पर कोई ब्याज नहीं दिया जाएगा।
These electoral bonds will be available in the denomination of Rs. 1,000, Rs. 10,000, Rs. 1 lac, Rs. 10 lacs and Rs. 1 crore.
- चुनावी बॉण्ड व्यापार योग्य नहीं,
- केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के योग्य हैं जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29(A) के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने बीते आम चुनाव में कम-से-कम 1% मत प्राप्त किया है।
- जारी होने की तारीख से पंद्रह कैलेंडर दिनों के लिये ही मान्य होगा।पंद्रह दिनों के भीतर चुनावी बॉण्ड को भुनाना (Encashed)आवश्यक।
शराबबंदी
[सम्पादन]हरियाणा सरकार ने ग्राम सभा को स्थानीय स्तर पर शराब पर प्रतिबंध लगाने संबंधी शक्तियाँ प्रदान करने का निर्णय लिया है। हरियाणा पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 31 में संशोधन का निर्णय लिया है। ग्राम सभा वर्ष 2019 से 1 अप्रैल से 31 दिसंबर के मध्य कभी भी अपने क्षेत्र में शराब की दुकान खोलने पर प्रतिबंध लगाने के लिये प्रस्ताव पारित कर सकती है। इस तरह के प्रस्ताव को पारित करने के लिये ग्राम सभा की बैठक का कोरम, इसके सदस्यों का 1/10 निर्धारित किया गया है। हरियाणा सरकार ने राज्य में वस्तु एवं सेवा कर के बेहतर क्रियान्वयन तथा नए नियम एवं कर की दरों को निर्धारण करने के लिये संबंधित प्राधिकरणों को 6 महीने का समय दिया है। शराबबंदी: भारत में गुजरात, बिहार, मिज़ोरम और नगालैंड राज्य में पूर्ण रूप से शराबबंदी है। भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्वों से संबंधित अनुच्छेद- 47 में मादक पेयों व हानिकारक नशीले पदार्थों का प्रतिषेध करने का प्रयास करने को कहा गया है। हरियाणा में वर्ष 1996 में शराबबंदी का प्रयोग किया था लेकिन 1998 में इसे हटा दिया गया था। पंचायती राज:
- वर्ष 1957 में योजना आयोग (जिसका स्थान अब नीति आयोग ने ले लिया है) द्वारा ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ और ‘राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम’ के अध्ययन के लिये ‘बलवंत राय मेहता समिति’ का गठन किया गया। नवंबर 1957 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था- ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर एवं ज़िला स्तर लागू करने का सुझाव दिया।
- वर्ष 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें स्वीकार की गई तथा 2 अक्तूबर, 1959 को नागौर ज़िले (राजस्थान) में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा देश की पहली त्रि-स्तरीय पंचायत का उद्घाटन किया गया।
- वर्ष 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन से भारत में पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्ज़ा प्राप्त हुआ।
- मूल संविधान में भाग-9 में ‘पंचायतें’ नामक शीर्षक के तहत अनुच्छेद 243-243ण (243-243O) में पंचायती राज से संबंधित उपबंध हैं।
ग्रामसभा:अनुच्छेद 243 (क) में चर्चा ग्रामसभा कोई निर्वाचित निकाय न होकर राज्यपाल द्वारा अधिसूचित गाँव या गाँवों का समूह है, जिसके अंतर्गत वे सभी सदस्य आते हैं जो वहाँ की मतदाता सूची में शामिल हैं।