नवंबर समसामयिकी/सुरक्षा

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डेफकॉम इंडिया-2019(DEFCOM India- 2019)[सम्पादन]

  • दिल्ली स्थित मानेकशॉ सेंटर में दो दिवसीय (26-27 नवंबर,2019)इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
  • भारतीय सशस्त्र बलों,शिक्षा,अनुसंधान और विकास, संगठनों तथा उद्योगों के बीच सहयोग के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी से संबंधित पहलुओं पर एक ऐतिहासिक संगोष्ठी के रूप में विकसित हुई है।
  • थीम “संचार: एकता के लिये एक निर्णायक उत्प्रेरक”
  • आयोजन संयुक्त रुप से भारतीय सेना की सिग्नल कोर तथा भारतीय उद्योग परिसंघ CII द्वारा किया गया।
  • इस संगोष्ठी का उद्देश्य सेना के तीनों अंगों को एकता के लिये संचार माध्यमों का लाभ उठाने के लिये प्रेरित करना है।
  • इसके लिये संगोष्ठी में सेनाओं की संचार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उद्योग जगत के सहयोग का आह्वान किया गया।

मिलन (MILAN) नौसैनिक अभ्यास 2020 की मेज़बानी भारत के द्वारा[सम्पादन]

  • वर्ष 1995 में प्रारंभ द्विवार्षिक बहुपक्षीय अभ्यास।
  • वर्ष 2018 तक इसका आयोजन अंडमान एवं निकोबार कमान में किया जाता था।
  • परंतु अभ्यास की बढ़ती संभावना और जटिलता के कारण पहली बार इसका आयोजन विशाखापतनम कमान में किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य मित्र राष्ट्रों की नौसेनाओं के बीच व्यावसायिक संपर्कों को बढ़ाना एवं सामुद्रिक क्षेत्र में एक-दूसरे की शक्तियों तथा सर्वश्रेष्ठ प्रचलनों से ज्ञान प्राप्त करना है।
  • यह अभ्यास विदेशी नौसेनाओं के ऑपरेशनल कमांडरों के लिये आपसी हित के क्षेत्रों में एक-दूसरे से परस्पर संपर्क बनाए रखने के लिये भी एक उल्लेखनीय अवसर उपलब्ध कराएगा।
  • इसमें दक्षिण एशिया,दक्षिण-पूर्व एशिया,अफ्रीका और यूरोप के ऐसे 41 देशों को आमंत्रित किया गया है,जिनके साथ भारत के सैन्य संबंध हैं।

वैश्विक साइबर अपराध[सम्पादन]

भारत ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में रूस के साइबर अपराध संबंधी प्रस्ताव का समर्थन किया।

  • इस प्रस्ताव के तहत अगस्त 2020 में न्यूयॉर्क में स्थापित एक नई संधिके तहत सभी सदस्य राष्ट्र साइबर अपराध से जुड़े आंकड़ो को साझा कर सकेंगे।
  • राष्ट्रीय संप्रभुता के मुद्दे पर रूस और चीन बुडापेस्ट अभिसमय का विरोध करते रहे हैं,बुडापेस्ट अभिसमय के समकक्ष रूस ने अंतर्राष्ट्रीय साइबर अपराध से निपटने के लिए अपना प्रस्ताव पेश किया।
  • भारत ने बुडापेस्ट अभिसमय हस्ताक्षर नहीं किये हैं,हाल ही में हुए इसके एक सम्मेलन में भारत ने गैर-सदस्य के रूप में अपनी यथास्थिति बनाए रखी।
  • भारत लम्बे समय से डेटा सुरक्षा की समस्या से लड़ रहा है।

वर्तमान समय में भारत में डेटा सुरक्षा सम्बन्धी उपयुक्त क़ानून और नियमों का अभाव है।

  1. वर्ष 2018 में ने बी.एन. श्रीकृष्णा समिति की अनुशंसा के आधार पर पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (ड्राफ्ट) बिल पेश किया।
  2. वर्ष 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 अपनाई गई।
  3. सूचना तकनीक अधिनियम 2000डेटा सुरक्षा और संरक्षण संबंधी प्रावधान करता है।
  • यह ई-वाणिज्य,दस्तावेज़ों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर को मान्यता प्रदान करता है।
  • किसी भी व्यक्ति,चाहे वह किसी भी राष्ट्र का हो, द्वारा भारत के बाहर किये गए किसी भी साइबर अपराध पर यह अधिनियम लागू होता है।
  • इस अधिनियम के तहत कंप्यूटर हैकिंग, कंप्यूटर में उपलब्ध रिकार्ड्स से छेड़छाड़, आक्रामक संदेश भेजना, संचार यंत्रों की चोरी और दुरुपयोग, अश्लील सामग्री का प्रकाशन या प्रसार, जानकारी को अवरुद्ध करना, कानूनी अनुबंध की जानकारी का खुलासा करना आदि दंडात्म

क अपराधों की श्रेणी में आते हैं।

आँसू गैस- जिनेवा प्रोटोकॉल 1925[सम्पादन]

  • अमेरिका ने हाॅन्गकाॅन्ग में जारी सरकार विरोधी प्रदर्शनों के मद्देनजर एक विधेयक पारित किया है जो कुछ भीड़-नियंत्रण संबंधी सामानों जैसे- आँसू गैस आदि के निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगा।
  • आँसू गैस (Tear Gas) एक रासायनिक संघटक है जिसका इस्तेमाल अक्सर दंगा नियंत्रण के लिये किया जाता है।यह एक विषैली गैस है।
  • आँसू गैस के रूप में सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाला पदार्थ सिंथेटिक कार्बनिक हैलोजन यौगिक हैं।
  • इसे औपचारिक रूप से एक लैक्रिमेट्री एजेंट (Lacrimatory Agent) या लैक्रिमेटर (Lacrimator) के रूप में जाना जाता है यह आंखों में कॉर्निया की नसों को उत्तेजित कर देता है जिससे आँखों में आँसू, दर्द और यहाँ तक कि अंधापन भी हो सकता है।
  • पहली बार इसका प्रयोग प्रथम विश्व युद्ध में रासायनिक हथियार के रुप में किया गया था।
  • वर्ष 1925 का जिनेवा प्रोटोकॉल युद्ध में रासायनिक और जैविक हथियारों के इस्तेमाल पर रोक लगाता है।
  • यह प्रोटोकॉल 8 फरवरी, 1928 को लागू हुआ था।

एमके- 45 (MK- 45)[सम्पादन]

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को 13 एमके- 45 (MK- 45) नौसैनिक बंदूकें और संबंधित उपकरणों की बिक्री किये जाने के समझौते को मंज़ूरी दी है।
  • इसका इस्तेमाल तटों पर बमबारी, युद्धपोतों तथा युद्धक विमानों के खिलाफ किया जाता है।
  • इनका निर्माण बीएइ सिस्टम्स लैंड एंड आर्मामेंट्स (BAE Systems Land and Armaments) द्वारा किया जाएगा।
  • इसकी मारक क्षमता 20 समुद्री मील से भी अधिक है।
  • ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड के बाद भारत उन देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। जिन्हें अमेरिका ने इस बंदूक के नवीनतम संस्करण (MOD4) बेचने का फैसला किया है।