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प्रार्थना/हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी

विकिपुस्तक से

हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी, अम्ब विमल मति दे । अम्ब विमल मति दे ।। हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी, अम्ब विमल मति दे । अम्ब विमल मति दे ।। जग सिरमौर बनाएँ भारत, वह बल विक्रम दे । वह बल विक्रम दे ।। हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी, अम्ब विमल मति दे । अम्ब विमल मति दे ।।

साहस शील हृदय में भर दे, जीवन त्याग-तपोमय कर दे । साहस शील हृदय में भर दे, जीवन त्याग-तपोमय कर दे । संयम सत्य स्नेह का वर दे, स्वाभिमान भर दे । संयम सत्य स्नेह का वर दे, स्वाभिमान भर दे । हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी, अम्ब विमल मति दे । अम्ब विमल मति दे ।।

लव-कुश ध्रुव प्रहलाद बनें हम, मानवता का त्रास हरें हम । लव-कुश ध्रुव प्रहलाद बनें हम, मानवता का त्रास हरें हम । सीता सावित्री दुर्गा मां, फिर घर-घर भर दे । सीता सावित्री दुर्गा मां, फिर घर-घर भर दे । हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी, अम्ब विमल मति दे । अम्ब विमल मति दे । अम्ब विमल मति दे ।। <poem> हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ जग सिरमौर बनाएं भारत, वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥ हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ जग सिरमौर बनाएं भारत, वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥

साहस शील हृदय में भर दे, जीवन त्याग-तपोमर कर दे, संयम सत्य स्नेह का वर दे, स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1 हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ जग सिरमौर बनाएं भारत, वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥

लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम मानवता का त्रास हरें हम, सीता, सावित्री, दुर्गा मां, फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2 हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

       -prashant