बिहार का परिचय/मौर्य साम्राज्य
मौर्य राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी वह भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट था वह ऐसा पहला सम्राट था जिसने बेहतर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था उसने साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी उसने ही भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एक वध किया विशाखदत्त मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को नंद राज का पुत्र माना गया है मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को वृषण तथा कुल हिंदी कहा गया है धुंडीराज मुद्राराक्षस पर टीका लिखी थी मुद्राराक्षस के अतिरिक्त के नाम से अन्य रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है तथा दूसरा अभिसारिका
वंचित तक या अभिसारिका बंधी तक प्राप्त बृहटकथा मंजरी तथा सोमदेव कृत कथासरित्सागर में चंद्रगुप्त के शूद्र उत्पत्ति के विषय में विवरण मिलता है बौद्ध ग्रंथ का महाबोधि वंश के अनुसार चंद्रगुप्त स्कूल से संबंधित था तथा मूल्य नगर में उत्पन्न हुआ था हेमचंद्र के परिशिष्ट पर 1 में चंद्रगुप्त को मयूर को सकूं के ग्राम के मुखिया के पुत्र का पुत्र बताया गया है विलियम जोंस पहले विद्वान थे जिन्होंने सैंड्रोकॉटोस की पहचान मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य की एलियन तथा लूटने चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रू को टच के रूप में वर्णित किया है जस्टिस चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर महान का उल्लेख किया है ऋषि ने अपने पुत्र का नाम के रखा था अर्थशास्त्र के लेखक के रूप में इसी पुस्तक में उल्लिखित पटेल तथा एक प्रखंड में उल्लिखित विष्णुगुप्त नाम की सभ्यता चाणक्य से की जाती है चाणक्य के अन्य अनेक नाम भी प्रचलित है अंशुल अंशुल वात्सायन कात्यायन आदि नाम इन्हीं में से हैं पुराणों में उसे सड़क के द्वारा मौर्य काल में रचित अर्थशास्त्र शासन के सिद्धांतों की पुस्तक है जिसमें राज्य के सप्तांग सिद्धांत राजा जनपद दुर्ग को दंड एवं मित्र की सर्वप्रथम व्याख्या मिलती है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है अपितु राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है इसकी तुलना मैक्यावली के प्रिंस से की जाती है चंद्रगुप्त मौर्य के दक्षिण भारत की विजय प्राप्त की थी जैन एवं तमिल साक्षी चंद्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय की पुष्टि करते हैं राजनीतिक तौर पर समस्त भारत का एकीकरण चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में संभव हुआ प्रारंभिक विजय उनके फलस्वरूप चंद्रगुप्त का साम्राज्य से लेकर हो गया रुद्रदामन के अभिलेख से पश्चिमी भारत पर उसका अधिकार प्रमाणित होता है ग्रंथों के अनुसार सौराष्ट्र के साथ-साथ अवंती पर भी चंद्रगुप्त मौर्य का अधिकार था उसकी मृत्यु के समय उसके साम्राज्य का विस्तार पश्चिम से पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा उत्तर में हिमालय के दक्षिण में था। 150 ईसवी के रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में आना और सौराष्ट्र गुजरात प्रदेश में चंद्रगुप्त मौर्य के प्रांतीय राज्यपाल उस ग्रुप द्वारा सिंचाई के बांध के निर्माण का उल्लेख मिलता है जिससे यह सिद्ध होता है कि पश्चिम भारत का यह भाग मौर्य साम्राज्य में शामिल था चंद्रगुप्त मौर्य साम्राज्य के पूर्वी भाग के शासक से लेकर की आक्रमण कारी सेना को 305 पूर्व परास्त किया था।
यूनानी लेखकों ने बिंदुसार को मित्र चैट कहा है विद्वानों के अनुसार अमित क्रिकेट का संशोधित रूप है अमित्र घाट या अमित्र खाद शत्रुओं का नाश करने वाला जैन ग्रंथ उसे इंसान कहते हैं जैन ग्रंथ में बिंदुसार की माता का नाम दुर्धारा मिलता है दिव्या वरदान के अनुसार बिंदुसार के समय में तक्षशिला में विद्रोह था।
जिसको दबाने के लिए उसने अपने पुत्र अशोक को भेजा था उस टाइम के अनुसार बिंदुसार के समय में मिस्र के राजा इंटियोगा ने डायमीटर्स नामक राजदूत भेजा कुंडली के अनुसार मारे राज दरबार में मिस्र के राजा टॉलमी फिलाडेल्फिया डायनोसिस नामक राजदूत भेजा बिंदुसार ने सीरिया के साथियों का से तीन वस्तु की मांग की यह वसुमैथी सूखे अंजीर तथा दार्शनिक इंटियोगा ने दार्शनिक को छोड़कर शेष सभी वस्तुएं बिंदुसार के पास भिजवा दिया बादशाहों के अनुसार अशोक अपने पिता के शासनकाल में अवंती उज्जैनी का उप राजा वायसराय था असम और सुदूर दक्षिण को छोड़कर संपूर्ण भारत वर्ष अशोक के साम्राज्य के अंतर्गत था अशोक ने अपनी प्रजा के विशाल समूह को ध्यान में रखकर ही एक ऐसे व्यवहारिक धर्म का प्रतिपादन किया जिसका पालन आसानी से सब कर सकें सहिष्णुता उदारता एवं उसके विविध आयाम थे अशोक 269ई.पू. के लगभग मगध की राज यहां सन पर बैठा उसके अभिलेखों में सर्वत्र उसे देव नाम प्रिय देवा नाम प्रियदर्शी कहा गया है जिसका अर्थ है देवताओं का प्रिय या देखने में सुंदर पुराणों में उसे अशोक वर्धन कहा गया है दशरथ की अशोक की तरह देवा नाम की उपाधि धारण करता था। पीली अनुसूचियां दीपवंश तथा महावंश के अनुसार अशोक के राज्य काल में पाटलिपुत्र में बौद्ध धर्म की तृतीय संगति हुई इसकी अध्यक्षता मुंगावली पुत्र नामक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ने की थी दीपावली एवं महा वंश के अनुसार अशोक को उसके शासन के चौथे व विरोध नामक भी छूने बौद्ध मत में दीक्षित किया तत्पश्चात मोगली पुत्र के प्रभाव में वह पूर्णरूपेण बंद हो गया दिव्या विधान के अनुसार अशोक को उपयुक्त नामक बौद्ध भिक्षु ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
तत्पश्चात मोगली पुत्र के प्रभाव में वह पूर्णरूपेण बंद हो गया दिव्या वरदान के अनुसार अशोक को उपरोक्त नामक बौद्ध रजनी बौद्ध धर्म में दीक्षित किया और शासकों अशोक और उसका पुत्र दशरथ बौद्ध धर्म के अनुयाई थे। अशोक के अभिलेखों में रजत नामक अधिकारी का उल्लेख मिलता है रज्जू को की स्थिति आधुनिक जिलाधिकारी जैसी थी जिसे राजा तथा न्याय दोनों क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त है एग्रोनॉमी जिले के अधिकारियों को कहा जाता था मारे काल में व्यापारिक का फिल्म कारवां को सार्थवाह की संज्ञा दी गई थी बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत अशोक ने आखिर तथा बिहार यात्राएं रोकने तथा उसके स्थान पर धर्म यात्राएं प्रारंभ की सर्वप्रथम उसने बोधगया की यात्रा की थी उसकी यात्राओं का क्रम इस प्रकार है गया कुशीनगर लुंबिनी कपिलवस्तु सारनाथ तथा श्रावस्ती अशोक ने अपने राज्याभिषेक के दसवें वर्ष बोधगया की यात्रा की विश्व में वर्ष लुंबिनी की यात्रा की तथा वहां एक शीला स्तंभ स्थापित किया बुध की जन्मभूमि होने के कारण लोग ने ग्राम का धार्मिक कर माफ कर दिया तथा भू राजस्व 1 वर्ष से घटाकर 1 वर्ष कर दिया। कालसी गिरनार मेरठ के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है अशोक का इतिहास हमें मुख्यता उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है उसके अभिलेखों का विभाजन 3 वर्गों में किया जा सकता है पहला शिलालेख दूसरा स्तंभ लेख तीसरा अगले 14 लेखों का एक समूह है।
जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं यह अस्थान शाहबाजगढ़ी मान सेहरा काल से गिरनार भोले जुगाड़ एरागुड़ी तथा सोपरा है अशोक के अधिकार अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं केवल दो अभिलेखों शाहबाजगढ़ी एवं मान सेहरा की लिपि ब्राह्मी ना होकर खरोष्ठी है तक्षशिला से और मेक लिपि में लिखा गया एक भाग में अभिलेख सरे * नामक स्थान से यूनानी तथा आर्मी लिपियों में लिखा गया दीवार से यह यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंगवान नामक स्थान से आर्मी क्लिप में लिखा गया अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है ब्राह्मी लिपि का प्रथम बुधवार पत्थरों से किया गया था इस कार्य को संपादित करने वाले प्रथम विद्वान सर जेम्स प्रिंसेप थे जिन्होंने अशोक के अभिलेखों को पढ़ने का श्रेय हासिल किया भंडारकर अभिलेखों के आधार पर
अशोक का इतिहास लिखने का प्रशंसनीय प्रयास किया है प्राप्त अशोक ब्राह्मी लिपि का पता श्रीलंका स्थित अनुराधा पुर से चला कुछ और स्थानों के अभिलेखों से इस प्रकार की लिपि का साथ मिला है इसके नाम इस प्रकार हैं पुत्र हवा गौरा और वह स्थान प्राचीन भारत के खरोष्ठी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी इसे पढ़ने का श्रेय मैं सन प्रिंसेप टूरिस्ट प्लेस इन कनिंघम आदि विद्वानों को है यह मुख्यतः उत्तर पश्चिम भारत की लिपि जी अशोक का नाम उल्लेख करने वाला लघु शिलालेख मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है मस्ती में चूर एवं उड़ेगोलम के लेखों में भी अशोक का व्यक्तिगत नाम मिलता है। भाब्रू बैराट स्तंभ लेख में अशोक ने शाम को मगध का सम्राट बताया यह 10 दिन आजा धर्म संगम अभी वादे पूनम आहा अपीली धता च....)। यही अभिलेख अशोक को बौद्ध धर्मावलंबी प्रमाणित करता है अशोक के प्रथम शिलालेख में पशु बलि निषेध के संदर्भ में लेख इस प्रकार है यहां कोई जीव मारकर वली ना दिया जाए और ना कोई उत्सव किया जाए काले प्रिय 10 से राजा की पाठशाला में प्रतिदिन सैकड़ों जीव मांस के लिए मारे जाते थे लेकिन अब इस अभिलेख के लिखे जाने तक सिर्फ 3 पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं दो मोर एवं 11 इसमें भी मृत हमेशा नहीं मारा जाता भी भविष्य में नहीं मारे जाएंगे पांच में अष्टम लेख में भी अशोक द्वारा राज्याभिषेक के 26 वें वर्ष बाद विभिन्न प्रकार के प्राणियों के बाद को वर्जित करने का स्पष्ट उल्लेख है अशोक के राज्यपाल की पहली घटना कलिंग युद्ध और उसमें अशोक के लिए थी अशोक के 13वें शिलालेख से युद्ध के संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य मिलते हैं यह घटना अशोक के शासनकाल के 261 पूर्व में घटित हुई। इस शिलालेख उसने कलिंग युद्ध से हुए पूरा पर अपना दुख और पश्चाताप व्यक्त किया है अशोक के दुर्ग शिलालेख 12 में सभी संप्रदायों के सार के वृद्धि होने की कामना की गई है तथा धार्मिक सहिष्णुता हेतु कॉलोनी उपाय बताए गए हैं अशोक के दूसरे और 13वें शिलालेख में संगम राजू चोल पांडे पुत्र एवं पुत्र सहित ताम्रपर्णी श्रीलंका की सूचना मिलती है। मौर्य शासक अशोक के 13वें शिलालेख यह ज्ञात होता है कि अशोक के 5 या 1 राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे जिनमें अंत योग योग अतिथियों सीरिया का शासक दूर में किया पूर्व माय टॉलमी फिलाडेल्फिया मिश्र का राजा अंत कीनिया एक एनी की नीति गुनगुनाता में सोनिया या मकदूनिया का राजा), मग मग माफिया मेगा रसायन का शासक अलिफ सुंदर या एल्लूरी सेंट्रो सिलेंडर पायरिया एमपी रस का राजा गोरखपुर जिले से प्राप्त सोहगौरा ताम्रपत्र अभिलेख और मोगरा जिले बांग्लादेश से प्राप्त महास्थान अभिलेख की रचना अशोक काले प्राकृत भाषा में हूं और उन्हें ईसा पूर्व तीसरी सदी की ब्राह्मी लिपि में लिखा गया यह अभिलेख अकाल के समय किए जाने वाले राहत कार्य के संबंध में है इसकी पुष्टि जैन स्रोतों से होती है मौर्य काल में न्यायालय मुख्यतः दो प्रकार के थे धर्म स्थानीय तथा कंटक शोधन धर्म स्थानीय दीवानी तथा कंडक्शन फौजदारी न्यायालय को अर्थशास्त्र में पुरुष कहा गया है अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुर्जरों का उल्लेख मिलता है संस्था अर्थात एक ही स्थान पर रहने वाले तथा संतरा अर्थात प्रत्येक स्थान पर भ्रमण करने वाले मेगास्थनीज की इंडिका में पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन का वर्णन मिलता है इसके अनुसार पाटलिपुत्र का प्रशासन की विभिन्न समितियों द्वारा होता था इसकी कुल 6 समितियां होती थी। तथा पढ़ते समिति में 5 सदस्य होते थे तीसरी समिति जनगणना का हिसाब रखते थे वर्तमान में भी यह कार्य नगर पालिका प्रशासन द्वारा किया जाता है कि समिति का कार्य विक्रीकर वसूल करना था विक्रय मूल्य का 10 में भाग के रूप में वसूल किया जाता था करो कि चोरी करने वालों को मृत्युदंड दिया जाता था वह नगर के पदाधिकारियों को एसटी 9 मई कहता है मेरा सेल्यूकस निकेटर द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज्यसभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था।
मर युग में नगरों का प्रशासन नगर पालिका द्वारा चलाया जाता था जिसका प्रमुख नागरिक किया पूर्व मुख्य मेरा सनी ने तत्कालीन भारतीय समाज को 7 श्रेणियों में विभाजित किया है जो इस प्रकार हैं दार्शनिक कृषक पशुपालक कारीगर योद्धा निरीक्षक एवं मंत्री भारतीय समाज में दास प्रथा के प्रचलित होने का उल्लेख नहीं करता है उसके अनुसार मौर्य काल में कोई व्यक्ति ना तो अपनी जाति से बाहर विवाह कर सकता था और न ही उससे भिन्न पोसा ही अपना सकता था।
इतिहासकार स्मिथ के अनुसार, हिंदुकुश पर्वत भारत के वैज्ञानिक सीमा थी अशोक के अभिलेखों में मौर्य साम्राज्य के 5 प्रांतों के नाम मिलते हैं उत्तरा पथ तक्षशिला तीरथ उज्जैनी कलिंग तो असली दक्षिणा पथ स्वर्ण नगरी प्रिया पूर्व पूर्वी प्रदेश पाटलिपुत्र
भाग एवं बली प्राचीन भारत में राजस्व के स्रोत थे अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि राजा भूमि का मालिक होता था वह भूमि से उत्पन्न उत्पादन के 1 भाग का अधिकारी था इस कार्य को भाग कहते थे इसी प्रकार बनी भी राजस्व का स्रोत था मौर्य मंत्रिपरिषद में राजस्व एकत्र करने का कार्य समाहर्ता के द्वारा किया जाता था सीमा सीमावर्ती दुर्गा की देखभाल करता था जबकि प्रदेश का विषयों का शासक था।
उपर्युक्त पदाधिकारियों के अतिरिक्त अन्य पदाधिकारी हैं पढ़ने अध्यक्ष वाणिज्य का अध्यक्ष अध्यक्ष अध्यक्ष बूचड़खाने का अध्यक्ष गणिका अध्यक्ष वेश्याओं का निरीक्षक सीता अध्यक्ष राज्य कृषि विभाग का अध्यक्ष अध्यक्ष खानों का अध्यक्ष मध्य छापेखाने का अध्यक्ष लोहा अध्यक्ष भादू विभाग का अध्यक्ष नवादा जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष तथा अध्यक्ष बंदरगाहों का अध्यक्ष गांव के शासन को स्वायत्तशासी पंचायतों के माध्यम से संचालित करने की व्यवस्था का सूत्रपात मौर्य ने किया इस काल में ग्रामसभा गांव से संबंधित किसी भी मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए थे अर्थशास्त्र में पति द्वारा परित्यक्त पत्नी के विवाह विच्छेद की अनुमति दी गई है।
मौर्यकालीन समाज में तलाक की प्रथा थी पति की बहुत समय तक विदेश में रहने या उसके शरीर में दोष होने पर पत्नी उसका त्याग कर सकती हैं इसी प्रकार पत्नी के व्यभिचारिणी होने या बंद होने जैसी दशाओं में पति उसका त्याग कर सकने का अधिकारी था मनुस्मृति के 38 में खंड में स्पष्ट उल्लेख है कि वह व्यक्ति जिसकी पत्नी मर गई हो पुनर्विवाह कर सकता है।
लेकिन विधवा को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं है विदेशियों को भारतीय समाज में मनु द्वारा प्राप्त क्षत्रिय का सामाजिक स्तर दिया गया था सारनाथ का स्तंभ का निर्माण अशोक ने कराया था इस स्तंभ के सिर पर सी की आकृति बनी है जो शक्ति का प्रतीक है इस प्रतिनिधि को भारत सरकार ने अपने प्रतीक चिन्ह के रूप में लिया है।
मारियो इन सभी एकता में चुनार केबल हुए पत्थरों से निर्मित है स्थापत्य कला के दृष्टिकोण से सांची के स्तूप को सर्वश्रेष्ठ माना गया है सांची मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है इसका निर्माण अशोक ने कराया था स्तूप का आरंभिक काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व था जबकि भारत का स्तूप मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है दूसरी शताब्दी के लगभग है।
सांची तथा भरहुत भारत के अस्तु कुंभ की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की की अमरावती का स्तूप आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है कर्नल कॉलिंग मैकेंजी ने 1797 ईस्वी में स्तूप का पता लगाया था सारनाथ का धमेख स्तूप गुप्तकालीन है जो बिना आधार के समतल भूमि पर बनाया गया है बिहार में पटना पाटलिपुत्र के समीप बुलंदी बाग एवं कुमरार में की गई खुदाई से मौर्य काल के लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष प्रकाश में आए हैं प्रकाश में लाने का श्रेय पुनर महोदय को है बुलंदी बाग से नगर के परकोटे के अवशेष तथा कुमरार से राज प्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए हैं बुलंदी बाग पाटलिपुत्र का प्राचीन स्थान था जिस महत्वकांक्षी व्यक्ति ने पूर्व में अंतिम मौर्य शासक वृद्ध की हत्या करके राजवंश की स्थापना की इतिहास में पुष्यमित्र शुंग के नाम से विख्यात है।
शुंग वंश का अंतिम राजा देव होती अत्यंत विनती था वह आपने अमित वासुदेव केंद्रों द्वारा मार डाला गया भाई पुराण के अनुसार अंतिम शासक सुषमा अपने आंध्र जातीय रितिक सिंधु द्वारा मार डाला गया था इस पूर्व की कुछ शताब्दियों में चंद्रगुप्त मौर्य एवं अशोक ने गिरनार क्षेत्र में जल संसाधन व्यवस्था की ओर ध्यान दिया उस क्षेत्र में चंद्रगुप्त मौर्य ने सुदर्शन झील
खुद हवाई तथा अशोक ने इसवी पूर्व तीसरी शताब्दी में इससे लहरें निकाली क्षत्रप रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख में इन दोनों के कार्यों का वर्णन है जूनागढ़ के शासक रुद्रदामन ने इस झील की मरम्मत कराई थी।