भारतीय अर्थव्यवस्था/अर्थ संपदा सृजन:विश्वास भरे अदृश्य हाथों की भूमिका
एक बाजार अर्थव्यवस्था में राज्य को अदृश्य हाथ की सहायता करने हेतु नैतिक हार सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है क्योंकि बाजार हर कीमत पर लाखों के अनुसरण में नैतिकता से विचलित हो सकते हैं वैश्विक वित्तीय संकट के संदर्भ में वर्ष 2011-13 की घटनाओं और उसके परिणामों ने अर्थव्यवस्था में विश्वास न्यूनता की स्थिति उत्पन्न की है। जिसने वर्ष 2011 के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में भारत को निम्नतम बिंदु के निकट पहुंचा दिया था आर्थिक समीक्षा में विश्वास को एक सार्वजनिक वस्तु के तौर पर प्रस्तुत किया गया है जिसके प्रयोग में वृद्धि होने से यह और परिष्कृत हो जाता है यदि विश्वास ज्यादा हो तो अवसरवादी बढ़ी हुई संभावना के बावजूद आर्थिक गतिविधियां फल फूल सकती हैं।
इस सार्वजनिक वस्तु में वृद्धि के लिए आर्थिक समीक्षा में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं प्रवर्तन प्रणाली को मानकीकृत कर और सार्वजनिक डेटाबेस के माध्यम से सूचना समिति को कम करना तथा पारदर्शिता में वृद्धि करना विभिन्न नियमों को यथा भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड