भारत का भूगोल/जलवायु

विकिपुस्तक से

भारत के मानसून को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक:- एल नीनो और ला नीना: ये प्रशांत महासागर के पेरू तट पर होने वाली परिघटनाएँ है । एल नीनो के वर्षों के दौरान समुद्री सतह के तापमान में बढ़ोतरी होती है और ला नीना के वर्षों में समुद्री सतह का तापमान कम हो जाता है। सामान्यतः एल नीनो के वर्षों में भारत में मानसून कमज़ोर जबकि ला नीना के वर्षों में मानसून मज़बूत होता है। हिंद महासागर द्विध्रुव: हिंद महासागर द्विध्रुव के दौरान हिंद महासागर का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा ज़्यादा गर्म या ठंडा होता रहता है। पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने पर भारत के मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि ठंडा होने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

  1. मेडेन जुलियन दोलन (OSCILLATION): इसकी वजह से मानसून की प्रबलता और अवधि दोनों प्रभावित होती हैं। इसके प्रभावस्वरूप महासागरीय बेसिनों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता भी प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप जेट स्ट्रीम में भी परिवर्तन आता है। यह भारतीय मानसून के संदर्भ में एल नीनो और ला नीना की तीव्रता और गति के विकास में भी योगदान देता है।

मानसून को प्रभावित करने वाले कारक

  1. अल-नीनो वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका के निकट खासकर पेरु तट में यदि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द समुद्र की सतह अचानक गरम होनी शुरू हो जाए तो अल-नीनो की स्थिति बनती है।

यदि तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो यह मानसून को प्रभावित कर सकती है। इससे मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में हवा के दबाव में कमी आने लगती है। इसका असर यह होता कि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द चलने वाली व्यापारिक हवाएँ कमजोर पड़ने लगती हैं। यही हवाएँ मानसूनी हवाएँ होती हैं जो भारत में वर्षा करती हैं।

  1. ला-नीना

प्रशांत महासागर में उपरोक्त स्थान पर कभी-कभी समुद्र की सतह ठंडी होने लगती है। ऐसी स्थिति में अल-नीनो के ठीक विपरीत घटना होती है जिसे ला-नीना कहा जाता है। ला-नीना बनने से हवा के दबाव में तेजी आती है और व्यापारिक पवनों को रफ्तार मिलती है, जो भारतीय मानसून पर अच्छा प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2009 में मानसून पर अल-नीनो के प्रभाव के कारण कम वर्षा हुई थी, जबकि वर्ष 2010 एवं 2011 में ला-नीना के प्रभाव के कारण अच्छी वर्षा हुई थी।

  1. हिंद महासागर द्विध्रुव के दौरान हिंद महासागर का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा ज़्यादा गर्म या ठंडा होता रहता है। पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने पर भारत के मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि ठंडा होने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  2. मेडेन जुलियन ऑस्किलेशन की वजह से मानसून की प्रबलता और अवधि दोनों प्रभावित होती है। इसके प्रभावस्वरुप महासागरीय बेसिनों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता भी प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप जेट स्ट्रीम में भी परिवर्तन आता है। यह भारतीय मानसून के संदर्भ में एल-नीनो और ला-नीना की तीव्रता और गति के विकास में भी योगदान देता है।
  3. चक्रवात निर्माण

चक्रवातों के केंद्र में अति निम्न दाब की स्थिति पाई जाती है जिसकी वजह से इसके आसपास की पवनें तीव्र गति से इसके केंद्र की ओर प्रवाहित होती हैं। जब इस तरह की परिस्थितियाँ सतह के नज़दीक विकसित होती हैं तो मानसून को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। अरब सागर में बनने वाले चक्रवात, बंगाल की खाड़ी के चक्रवातों से अधिक प्रभावी होते हैं क्योंकि भारतीय मानसून का प्रवेश प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में अरब सागर की ओर होता है।

  1. जेट स्ट्रीम पृथ्वी के ऊपर तीव्र गति से चलने वाली हवाएँ हैं, ये भारतीय मानसून को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना वर्ष 1875 में की गई थी। स्वतंत्रता के बाद 27 अप्रैल, 1949 को यह विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य बना। यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक प्रमुख एजेंसी है। इसका प्रमुख कार्य मौसम संबंधी भविष्यवाणी व प्रेक्षण करना तथा भूकंपीय विज्ञान के क्षेत्र में शोध करना है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। IMD के छह प्रमुख क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र हैं, जो क्रमशः चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली में स्थित है। सामान्य मानसून के संभावित लाभ खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि वर्षा अच्छी होने का सबसे अच्छा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ता है। जहाँ सिंचाई की सुविधा मौजूद नहीं है, वहाँ बारिश होने से अच्छी फसल होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त ऐसे क्षेत्र जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं भी, तो ऐसे क्षेत्रों में समय पर अच्छी वर्षा होने से किसानों को नलकूप चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही उनकी उत्पादन लागत में कमी आयेगी। फलत: अच्छे उत्पादन से किसानों को फायदा होगा और खाद्यान्नों की मूल्यवृद्धि भी नियंत्रित रहेगी। जल की कमी दूर होगी अच्छे मानसून से पीने के पानी की उपलब्धता संबंधी समस्या का भी काफी हद तक समाधान होता है। एक तो नदियों, तालाबों में पर्याप्त मात्रा में पानी जमा हो जाता है। दूसरे, भूजल का भी पुनर्भरण होता है। बिजली संकट कम होगा मानूसन के चार महीनों में अच्छी वर्षा होने से नदियों, जलाशयों का जलस्तर बढ़ जाता है। इससे बिजली उत्पादन भी अच्छा होता है। यदि वर्षा कम हो और जलस्तर कम हो जाए तो बिजली उत्पादन भी प्रभावित होता है। गर्मी से राहत मानसून की वर्षा जहाँ एक ओर खेती-बाड़ी, जलाशयों, नदियों को पानी से लबालब कर देती हैं, वहीं दूसरी ओर भीषण गर्मी से तप रहे देश को भी गर्मी से राहत प्रदान करती है।

प्रश्न- मानसून से आप क्या समझते हैं? भारतीय मानसून की उत्पत्ति व उसे प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये।

अल-नीनो (El-Nino)[सम्पादन]

प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल-नीनो कहलाता है। दक्षिण अमेरिका के पश्चिम तटीय देश पेरू एवं इक्वाडोर के समुद्री मछुआरों द्वारा प्रतिवर्ष क्रिसमस के आस-पास प्रशांत महासागरीय धारा के तापमान में होने वाली वृद्धि को अल-नीनो कहा जाता था। वर्तमान में इस शब्द का इस्तेमाल उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में केंद्रीय और पूर्वी प्रशांत महासागर के सतही तापमान में कुछ अंतराल पर असामान्य रूप से होने वाली वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप होने वाले विश्वव्यापी प्रभाव के लिये किया जाता है। ला-नीना (La-Nina) भी मानसून का रुख तय करने वाली सामुद्रिक घटना है। यह घटना सामान्यतः अल-नीनो के बाद होती है। उल्लेखनीय है कि अल-नीनो में समुद्र की सतह का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है, जबकि ला-नीना में समुद्री सतह का तापमान बहुत कम हो जाता है। अल-नीनो से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र सामान्यतः प्रशांत महासागर का सबसे गर्म हिस्सा भूमध्य रेखा के पास का क्षेत्र है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण वहाँ उपस्थित हवाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं। ये हवाएँ गर्म जल को पश्चिम की ओर अर्थात् इंडोनेशिया की ओर धकेलती हैं। वैसे तो अल-नीनो की घटना भूमध्य रेखा के आस-पास प्रशांत क्षेत्र में घटित होती है लेकिन हमारी पृथ्वी के सभी जलवायु-चक्रों पर इसका असर पड़ता है। लगभग 120 डिग्री पूर्वी देशांतर के आस-पास इंडोनेशियाई क्षेत्र से लेकर 80 डिग्री पश्चिमी देशांतर पर मेक्सिको की खाड़ी और दक्षिण अमेरिकी पेरू तट तक का समूचा उष्ण क्षेत्रीय प्रशांत महासागर अल-नीनो के प्रभाव क्षेत्र में आता है। अल-नीनो का प्रभाव अल-नीनो के प्रभाव से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, इससे हवाओं के रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है जिसके चलते मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित होता है। मौसम में बदलाव के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है। इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है। जिस वर्ष अल-नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर उसका असर निश्चित रूप से पड़ता है। इससे पृथ्वी के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्सों में सूखे की गंभीर स्थिति भी सामने आती है। भारत भर में अल-नीनो के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि ला-नीना के कारण अत्यधिक बारिश होती है।

सिविल सेवा प्ररंभिक परिक्षा में पूछे गए प्रश्न[सम्पादन]

प्रश्न-भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर-पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर एल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:-(b) केवल 2

  1. पवनों का मौसमी उत्क्रमण किसका प्ररूपी अभिलक्षण है? (2014)

(c) मानसून जलवायु

प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. दक्षिणी भारत से उत्तरी भारत की ओर मानॅसून की अवधि घटती है।
  2. उत्तरी भारत के मैदानों में वार्षिक वृष्टि की मात्र पूर्व से पश्चिम की ओर घटती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?:-(c) 1 और 2 दोनों

संदर्भ[सम्पादन]