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भारत का भूगोल/भौतिक भूगोल

विकिपुस्तक से

तापमान व्युत्क्रमण के लिये आदर्श दशाएँ:-

  1. सर्दियों की मेघ विहीन लंबी रातें एवं शांत वायु, तापमान व्युत्क्रमण हेतु आदर्श दशाएँ हैं। दिन में प्राप्त ऊष्मा का रात के समय निष्कासन होता है जिससे सुबह तक भूपृष्ठ के ऊपर की हवा अधिक ठंडी हो जाती है।
  2. शांत और स्थिर हवा, ताकि निचले स्तरों पर कोई ऊर्ध्वाधर मिश्रण न हो।
वायुमंडल की निचली परतों में तापमान का व्युत्क्रमण एक ऐसी स्थिति बनाता है जिससे भूतल के संपर्क में आने वाली हवा ठंडी और अधिक घनत्व वाली हो जाती है और ऊपर की परत गर्म एवं हल्की बनी रहती है। यह वायुमंडल के निचले स्तर में स्थिरता को बढ़ावा देता है।
पहाड़ों और पर्वतों पर रात में उत्पन्न ठंडी वायु गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में भारी एवं अधिक घनत्व वाली होने के कारण लगभग जल की तरह कार्य करती है तथा ढाल के साथ ऊपर से नीचे उतरती है। यह घाटी की तली में गर्म हवा को विस्थापित कर नीचे की ओर एकत्र हो जाती है। इसे वायु प्रवाह तापमान व्युत्क्रमण कहते हैं।
  • वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला ताप स्थानांतरण ‘’’अभिवहन’’’कहलाता है। लंबवत संचलन की अपेक्षा वायु का क्षैतिज संचलन सापेक्षिक रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

मध्य अक्षांशों में दैनिक तापांतर में आने वाली (दिन और रात) भिन्नताएँ केवल अभिवहन के कारण होती हैं। उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में विशेषतः भारत के उत्तरी भाग में गर्मियों के मौसम में चलने वाली स्थानीय पवन 'लू' इसी अभिवहन का ही परिणाम है।

  • पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन वायु की दिशा को प्रभावित करता है। पृथ्वी के घूर्णन से उत्पन्न बल को कॉरिऑलिस बल कहा जाता है।

जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त दिशा में घूमती है उसी प्रकार कॉरिऑलिस बल वायु को उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं तरफ विक्षेपित करता है।

कॉरिऑलिस बल दाब प्रवणता के समानांतर कार्य करता है। दाब प्रवणता बल, समदाब रेखाओं के समानांतर होता है। दाब प्रवणता जितनी अधिक होगी, पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा में उतना ही अधिक विक्षेपण होगा।

इन दो बलों के एक-दूसरे के समानांतर होने के कारण निम्न दाब क्षेत्रों में पवनें इसके इर्द-गिर्द बहती हैं। भूमध्य रेखा पर कॉरिऑलिस बल शून्य होता है और वायु समदाब रेखाओं के समानांतर प्रवाहित होती है। संक्षेप में, कॉरिऑलिस बल अक्षांशों के सीधे आनुपातिक है। इसलिये यह ध्रुवों पर अधिकतम है और विषुवत रेखा पर लगभग अनुपस्थित होता है।