भारत भूमि और उसके निवासी

विकिपुस्तक से

भारत मानव जाति के विकास का उद्गम स्थल तथा मानव बोली का जन्म स्थान है और साथ ही साथ यह देश गाथाओं एवमं् प्रचलित परंपराओं का कर्मस्थल तथा इतिहास का जनक है। केवल भारत में ही मानव इतिहास की हमारी सबसे मूल्यवान और शिक्षाप्रद सामग्री खजाने के रूप में सहेजी गई है।
-मार्क ट्वैन

संसार की प्राचीन एवं महान सभ्यता में भारतीय संस्कृति और सभ्यता बेमिसाल है। यह उत्तर में हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से लेकर दक्षिण के ऊष्णकटिबंधीय सघन वनों तक, पूर्व में उपजाऊ ब्रह्मपुत्र घाटी से लेकर पश्चिम में थार के मरूस्थल तक 32,87,2631 वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पिछले 62 वर्षों के दौरान हमारे देश ने सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से बहु आयामी प्रगति की है। भारत इस समय खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर है; तथा विश्व के औद्योगिक क्षेत्र में इसका दसवां स्थान है। जनहित के लिए प्रकृति पर विजय पाने हेतु अंतरिक्ष में जाने वाले देशों में इसका छठा स्थान है। विश्व के इस सातवें विशालतम् देश को पर्वत तथा समुद्र शेष एशिया से अलग करते हैं, जिससे इसका अलग भौगोलिक अस्तित्व है। इसके उत्तर में महान हिमालय पर्वत है, जहां से यह दक्षिण में बढ़ता हुआ कर्क रेखा तक जाकर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर के बीच हिंद महासागर से जा मिलता है।

यह पूर्णतया उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। इसकी मुख्य भूमि 804” और 3706” उत्तरी अक्षांश और 6807” और 97025” पूर्वी देशांतर के बीच फैली हुई है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक 2,933 कि.मी. है। इसकी भूमि सीमा लगभग 15,200 कि.मी. है। मुख्य भूमि, लक्षद्वीप समूह और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के समुद्र-तट की कुल लंबाई 7,516.6 कि.मी. है।

प्राकृतिक पृष्ठभूमि[सम्पादन]

भारत के सीमावर्ती देशों में उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं। उत्तर में चीन, नेपाल और भूटान हैं। पूर्व में म्यांमार और पश्चिम बंगाल के पूर्व में बंगलादेश स्थित है। मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य भारत को श्रीलंका से अलग करते हैं।

प्राकृतिक संरचना[सम्पादन]

मुख्य भूमि चार भागों में बंटी है- विस्तृत पर्वतीय प्रदेश, सिंधु और गंगा के मैदान, रेगिस्तानी क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप। हिमालय की तीन शृंखलाएं हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े-बड़े पठार और घाटियां हैं, इनमें कश्मीर और कुल्लू जैसी कुछ घाटियां उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्हीं पर्वत शृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना-जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्य हैं- चुंबी घाटी से होते हुए मुख्य भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग पर जेलप-ला और नाथू-ला दर्रे, उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग तथा कल्पा (किन्नौर) के उत्तर-पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी-ला दर्रा। पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्यांमार और भारत एवं बंगलादेश के बीच में पहाड़ी शृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडि़यां उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडि़यों की शृंखला से जा मिलती हैं।

सिंधु और गंगा के मैदान लगभग 2,400 कि.मी. लंबे और 240 से 320 कि.मी. तक चौड़े हैं। ये तीन अलग-अलग नदी प्रणालियों-सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के थालों से बने हैं। ये संसार के विशालतम सपाट कछारी विस्तारों और पृथ्वी पर बने सवार्धिक घने क्षेत्रों में से एक हैं। दिल्ली में यमुना नदी और बंगाल की खाड़ी के बीच लगभग 1,600 कि.मी. की दूरी में केवल 200 मी. की ढलान है।

रेगिस्तानी क्षेत्रों को दो भागों में बांटा जा सकता है- विशाल रेगिस्तान और लघु रेगिस्तान। विशाल रेगिस्तान कच्छ के रण के पास से उत्तर की ओर लूनी नदी तक फैला है। राजस्थान-सिंध की पूरी सीमा रेखा इसी रेगिस्तान में है। लघु रेगिस्तान जैसलमेर और जोधपुर के बीच में लूनी नदी से शुरू होकर उत्तरी बंजर भूमि तक फैला हुआ है। इन दोनों रेगिस्तानों के बीच बंजर भूमि क्षेत्र है, जिसमें पथरीली भूमि है। यहां कई स्थानों पर चूने के भंडार हैं।

दक्षिणी प्रायद्वीप का पठार 460 से 1,220 मीटर तक के ऊंचे पर्वत तथा पहाडि़यों की शृंखलाओं द्वारा सिंधु और गंगा के मैदानों से पृथक हो जाता है। इसमें प्रमुख हैं- अरावली, विंध्य, सतपुड़ा, मैकाल और अजंता। प्रायद्वीप के एक तरफ पूर्वी घाट है, जहां औसत ऊंचाई 610 मीटर के करीब है और दूसरी तरफ पश्चिमी घाट, जहां यह ऊंचाई साधारणतया 915 से 1,220 मीटर है, कहीं-कहीं यह 2,440 मीटर से अधिक है। पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच समुद्र तट की एक संकरी पट्टी है, जबकि पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच चौड़ा तटीय क्षेत्र है। पठार का यह दक्षिणी भाग नीलगिरि की पहाडि़यों से बना है, जहां पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके पार फैली कार्डामम पहाडि़यां पश्चिमी घाट का विस्तार मानी जाती हैं।

भू-तत्वीय संरचना[सम्पादन]

भू-तत्वीय संरचना भी प्राकृतिक संरचना की तरह तीन भागों में बांटी जा सकती है- हिमालय तथा उससे संबद्ध पहाड़ों का समूह, सिंधु और गंगा का मैदान तथा प्रायद्वीपीय भाग। उत्तर में हिमालय पर्वत का क्षेत्र और पूर्व में नगा-लुशाई पहाड़, पर्वत निर्माण प्रक्रिया के क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र का बहुत-सा भाग, जो अब संसार में कुछ मनोरम पर्वतीय दृश्य प्रस्तुत करता है, लगभग 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्र था। लगभग सात करोड़ वर्ष पहले शुरू हुई पर्वत निर्माण प्रक्रिया के क्रम में तलछट और चट्टानों के तल बहुत ऊंचे उठ गए। उन पर मौसमी और कटाव तत्वों ने काम किया, जिससे वर्तमान उभार अस्तित्व में आए। सिंधु और गंगा के विशाल मैदान कछारी मिट्टी के भाग हैं, जो उत्तर में हिमालय को दक्षिण के प्रायद्वीप से अलग करते हैं। प्रायद्वीप अपेक्षाकृत स्थायी और भूकंपीय हलचलों से मुक्त क्षेत्र है। इस भाग में प्रागैतिहासिक भारत भूमि और उसके निवासी 3 काल की लगभग 380 करोड़ वर्ष पुरानी रूपांतरित चट्टानें हैं। शेष भाग में गोंडवाना का कोयला क्षेत्र तथा बाद में मिट्टी के जमाव से बना भाग और दक्षिणी लावे से बनी चट्टानें हैं।

नदियाँ[सम्पादन]

भारत की नदियां चार समूहों में वर्गीकृत की जा सकती हैं-(1) हिमालय की नदियां, (2) प्रायद्वीपीय नदियां, (3) तटीय नदियां और (4) अंतस्थलीय प्रवाह क्षेत्र की नदियां।

हिमालय की नदियां बारहमासी हैं, जिन्हें पानी आमतौर से बर्प पिघलने से मिलता है। इनमें वर्षभर निर्बाध प्रवाह रहता है। मानसून के महीनों में हिमालय पर भारी वर्षा होती है, जिससे नदियों में पानी बढ़ जाने के कारण अक्सर बाढ़ आ जाती है। दूसरी तरफ, प्रायद्वीप की नदियों में सामान्यत— वर्षा का पानी रहता है, इसलिए पानी की मात्रा घटती- बढ़ती रहती है। अधिकांश नदियां बारहमासी नहीं हैं। तटीय नदियां, विशेषकर पश्चिमी तट की, कम लंबी हैं और इनका जलग्रहण क्षेत्र सीमित है। इनमें से अधिकतर में एकाएक पानी भर जाता है। पश्चिमी राजस्थान में नदियां बहुत कम हैं। इनमें से अधिकतर थोड़े दिन ही बहती हैं।

सिंधु और गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदियों से हिमालय की मुख्य नदी प्रणालियां बनती हैं। सिंधु नदी विश्व की बड़ी नदियों में से एक है। तिब्बत में मानसरोवर के निकट इसका उद्गम स्थल है। यह भारत से होती हुई पाकिस्तान जाती है और अंत में कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सतलुज (जिसका उद्गम तिब्बत में होता है), व्यास, रावी, चेनाब और झेलम हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना अन्य महत्वपूर्ण नदी प्रणाली है भागीरथी और अलकनंदा जिसकी उप-नदी घाटियां हैं इनके देवप्रयाग में आपस में मिल जाने से गंगा उत्पन्न होती है। यह उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों से होती हुई बहती है। राजमहल पहाडि़यों के नीचे, भागीरथी बहती है, जो कि पहले कभी मुख्यधारा में थी, जबकि पद्मा पूर्व की ओर बहती हुई बंगलादेश में प्रवेश करती है। यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा और सोन नदियां गंगा की प्रमुख सहायक नदियां हैं। चम्बल और बेतवा महत्त्वपूर्ण उप-सहायक नदियां हैं जो गंगा से पहले यमुना में मिलती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बंगलादेश के अंदर मिलती हैं और पद्मा या गंगा के रूप में बहती रहती हैं। ब्रह्मपुत्र का उद्भव तिब्बत में होता है जहां इसे “सांगपो” के नाम से जाना जाता है और यह लंबी दूरी तय करके भारत में अरूणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है जहां इसे दिहांग नाम मिल जाता है। पासीघाट के निकट, दिबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती हैं; फिर यह नदी असम से होती हुई धुबरी के बाद बंगलादेश में प्रवेश कर जाती है।

भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों में सुबानसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, पगलादीया और मानस हैं। बंगलादेश में ब्रह्मपुत्र में तीस्ता आदि नदियां मिलकर अंत में गंगा में मिल जाती हैं। मेघना की मुख्यधारा बराक नदी का उद्भव मणिपुर की पहाडि़यों में होता है। इसकी मुख्य सहायक नदियां मक्कू, त्रांग, तुईवई, जिरी, सोनाई, रूकनी, काटाखल, धलेश्वरी, लंगाचीनी, मदुवा और जटिंगा हैं। बराक बंगलादेश में तब तक बहती रहती है जब तक कि भैरव बाजार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी में इसका विलय नहीं हो जाता। दक्कन क्षेत्र में प्रमुख नदी प्रणालियां बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती हैं। बहने वाली प्रमुख अंतिम नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि हैं। नर्मदा और ताप्ती पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियां हैं।

सबसे बड़ा थाला दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का है। इसमें भारत के कुल क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत भाग शामिल है। प्रायद्वीपीय भारत में दूसरा सबसे बड़ा थाला कृष्णा नदी का है और तीसरा बड़ा थाला महानदी का है। दक्षिण की ऊपरी भूमि में नर्मदा अरब सागर की ओर बहती है और दक्षिण में कावेरी बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इनके थाले बराबर विस्तार के हैं, यद्यपि उनकी विशेषताएं और आकार भिन्न-भिन्न हैं। कई तटीय नदियां हैं जो तुलनात्मक रूप से छोटी हैं। ऐसी गिनी-चुनी नदियां पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिल जाती हैं जबकि पश्चिम तट पर ऐसी करीब 600 नदियां हैं।

राजस्थान में कई नदियां समुद्र में नहीं मिलतीं। वे नमक की झीलों में मिलकर रेत में समा जाती हैं क्योंकि इनका समुद्र की ओर कोई निकास नहीं है। इनके अलावा रेगिस्तानी नदियां लूनी तथा अन्य, माछू, रूपेन, सरस्वती, बनांस तथा घग्घर हैं जो कुछ दूरी तक बहकर मरूस्थल में खो जाती हैं।

जलवायु[सम्पादन]

भारत की जलवायु आमतौर से उष्णकटिबंधीय है। यहां चार ऋतुएं होती हैं— 1. शीत ऋतु (जनवरी-फरवरी), 2. ग्रीष्म ऋतु (मार्च-मई), 3. वर्षा ऋतु या “दक्षिण-पश्चिमी मानसून का मौसम” (जून-सितंबर) और 4. मानसून पश्चात् ऋतु (अक्तूबर-दिसंबर), जिसे दक्षिण प्रायद्वीप में “उत्तर-पूर्व मानसून का मौसम” भी कहा जाता है। भारत की जलवायु पर दो प्रकार की मौसमी हवाओं का प्रभाव पड़ता है- उत्तर-पूर्वी मानसून और दक्षिण-पश्चिमी मानसून। उत्तर-पूर्वी मानसून को आमतौर पर “शीत मानसून” कहा जाता है। इस दौरान हवाएं स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं, जो हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को पार करके आती हैं। देश में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से ही होती है।

पेड़-पौधे[सम्पादन]

उष्ण से लेकर उत्तर धु्रव तक विविध प्रकार की जलवायु के कारण भारत में अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो समान आकार के अन्य देशों में बहुत कम मिलती हैं। भारत को आठ वनस्पति क्षेत्रों में बांटा जा सकता है- पश्चिमी हिमालय, पूर्वी हिमालय, असम, सिंधु का मैदान, गंगा का मैदान, दक्कन, मालाबार और अंडमान।

पश्चिमी हिमालय क्षेत्र कश्मीर से कुमाऊं तक फैला है। इस क्षेत्र के शीतोष्ण कटिबंधीय भाग में चीड़, देवदार, शंकुधारी वृक्षों (कोनीफर्स) और चौड़ी पत्ती वाले शीतोष्ण वृक्षों के वनों का बाहुल्य है। इससे ऊपर के क्षेत्रों में देवदार, नीली चीड़, सनोवर वृक्ष और श्वेत देवदार के जंगल हैं। अल्पाइन क्षेत्र शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में ऊंचे स्थानों में मिलने वाले श्वेत देवदार, श्वेत भोजवृक्ष और सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय क्षेत्र सिक्किम से पूर्व की ओर शुरू होता है और इसके अंतर्गत दार्जिलिंग, कुर्सियांग और उसके साथ लगे भाग आते हैं। इस शीतोष्ण क्षेत्र में ओक, जायवृक्ष, द्विफल, बड़े फूलों वाला सदाबहार वृक्ष और छोटी बेंत के जंगल पाए जाते हैं। असम क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटियां आती हैं जिनमें सदाबहार जंगल हैं और बीच-बीच में घने बांसों तथा लंबी घासों के झुरमुट हैं। सिंधु के मैदानी क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के मैदान शामिल हैं। यह क्षेत्र शुष्क और गर्म है और इसमें प्राकृतिक वनस्पतियां मिलती हैं। गंगा के मैदानी क्षेत्र का अधिकतर भाग कछारी मैदान है और इनमें गेहूं, चावल और गन्ने की खेती होती है। केवल थोड़े से भाग में विभिन्न प्रकार के जंगल हैं। दक्कन क्षेत्र में भारतीय प्रायद्वीप की सारी पठारी भूमि शामिल है, जिसमें पतझड़ वाले वृक्षों के जंगलों से लेकर तरह-तरह की जंगली झाडि़यों के वन हैं। मालाबार क्षेत्र के अधीन प्रायद्वीप तट के साथ-साथ लगने वाली पहाड़ी तथा अधिक नमी वाली पट्टी है। इस क्षेत्र में घने जंगल हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण व्यापारिक फसलें, जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, काफी, चाय, रबड़ और काजू की खेती होती है। अंडमान क्षेत्र में सदाबहार, अर्द्ध-सदाबहार, कच्छ वनस्पति, समुद्रतटीय और अप्लावी जंगलों की अधिकता है। कश्मीर से अरूणाचल प्रदेश तक के हिमालय क्षेत्र (नेपाल, सिक्किम, भूटान, नगालैंड) और दक्षिण प्रायद्वीप में क्षेत्रीय पर्वतीय श्रेणियों में ऐसे देशी पेड़-पौधों की अधिकता है, जो दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं मिलते।

वन संपदा की दृष्टि से भारत काफी संपन्न है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत का विश्व में दसवां और एशिया में चौथा स्थान है। अब तक लगभग 70 प्रतिशत भू-भाग का सर्वेक्षण करने के पश्चात् भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्था ने पेड़-पौधों की 46 हजार से अधिक प्रजातियों का पता लगाया है। वाहिनी वनस्पति के अंतर्गत 15 हजार प्रजातियां हैं। देश के पेड़-पौधों का विस्तृत अध्ययन भारतीय सर्वेक्षण संस्था और देश के विभिन्न भागों में स्थित उसके 9 क्षेत्रीय कार्यालयों तथा कुछ विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संगठनों द्वारा किया जा रहा है।

वनस्पति नृजाति विज्ञान के अंतर्गत विभिन्न पौधों और उनके उत्पादों की उपयोगिता के बारे में अध्ययन किया जाता है। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण ने ऐसे पेड़ पौधों का वैज्ञानिक अध्ययन किया है। देश के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों में कई विस्तृत नृजाति सर्वेक्षण किए जा चुके हैं। वनस्पति नृजाति विज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पौधों की 800 प्रजातियों की पहचान की गई और देश के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों से उन्हें इकट्ठा किया गया है।

खेती, उद्योग और नगर विकास के लिए जंगलों की कटाई के कारण कई भारतीय पौधे लुप्त हो रहे हैं। पौधों की लगभग 1336 प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है तथा लगभग 20 प्रजातियां पिछले 60 से 100 वर्षों के दौरान दिखाई नहीं पड़ी हैं। संभावना है कि ये प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण रेड डाटा बुक नाम से लुप्त प्राय पौधों की सूची प्रकाशित करता है।

जीव-जंतु[सम्पादन]

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग, जिसका मुख्यालय कोलकाता में है, देश के विभिन्न हिस्सों में अपने 16 क्षेत्रीय केंद्रों के जरिए भारत में जीव-जंतुओं की विभिन्न जातियों के सर्वेक्षण का कार्य करता है। जलवायु और प्राकृतिक वातावरण की व्यापक भिन्नता के कारण भारत में 89 हजार से अधिक किस्म के जीव-जंतु पाए जाते हैं। इनमें 2,577 प्रोटिस्टा (आद्यजीव), 5,070 मोलस्क प्राणी, 68,389 एंथ्रोपोडा, 119 प्रोटोकॉर्डेटा, 2,546 किस्म की मछलियां, 209 किस्म के उभयचारी, 456 किस्म के सरीसृप, 1,232 किस्म के पक्षी, 390 किस्म के स्तनपायी जीव और 8,329 अन्य अकशेरूकी आदि शामिल हैं।

स्तनपायी जीवों में हिमालय की बड़े आकार वाली जंगली भेड़ें, दलदली मृग, हाथी, गौर या भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंगा मृग शामिल हैं। बिल्ली जाति के पशुओं में सिंह और शेर सर्वाधिक भव्य दिखते हैं। इनके अलावा, हिम तेंदुए, चित्ती वाले तेंदुए तथा चितकबरे तेंदुए जैसे अन्य विशिष्ट प्राणी भी पाए जाते हैं। स्तनपायी जीवों की कई अन्य प्रजातियां अपनी सुंदरता, रंग-बिरंगेपन, गरिमा और विशिष्टता के लिए उल्लेखनीय हैं। बड़ी संख्या में पाए जाने वाले रंग-बिरंगे पक्षी देश की अमूल्य धरोहरों में से एक हैं। अनेक किस्म के पक्षी, जैसे बत्तख, मैना, कबूतर, धनेश, तोते, तीतर, मुर्गियां और सुनहरे रंग वाले पक्षी जंगलों और दलदली भूमि में पाए जाते हैं।

नदियों और झीलों में मगरमच्छ और घडि़याल पाए जाते हैं। घडि़याल सिर्प भारत में ही पाए जाते हैं। पूर्वी तट और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में खारे पानी के मगरमच्छ पाए जाते हैं। सन् 1974 में शुर की गई मगरमच्छ पालन योजना के जरिए मगरमच्छों की नस्ल को लुप्त होने से बचाया गया। विशाल हिमालय शृंखला में कई अत्यंत आकर्षक जीव-जंतु पाए जाते हैं, जिनमें जंगली भेड़ और बकरियां, मारखोर, साकिन, छछूंदर और टापिर शामिल हैं। पांडा और हिम तेंदुआ ऊंचे पहाड़ी स्थानों में पाए जाते हैं।

कृषि और आवास के लिए भूमि के विस्तार से वन संपदा नष्ट होती जा रही है। भूमि का अधिक- से-अधिक इस्तेमाल, प्रदूषण, कीटनाशकों के प्रयोग, सामुदायिक संरचना के असंतुलन, बाढ़, सूखा और तू$फान आदि के प्रकोप से भी पेड़-पौधों को काफी क्षति पहुंचती है। 39 से अधिक प्रजातियों के स्तनपायी जीवों, पक्षियों की 72, सरीसृप की 17, उभयचारी जीवों की तीन और मछलियों की दो प्रजातियां तथा बड़ी संख्या में तितलियों, पतंगों और कीड़े-मकोड़ों के लुप्त हो जाने का खतरा है।

जनसंख्या पृष्ठभूमि[सम्पादन]

जनगणना[सम्पादन]

भारत में जनगणना 2001 का कार्य अपने आप में एक युगांतरकारी एवं ऐतिहासिक घटना है क्याेंकि यह 21वीं शताब्दी तथा तीसरी सहस्राब्दी में होने वाली पहली जनगणना है। इससे हमारे देश में उपलब्ध भरपूर मानव संसाधन, उनकी आबादी, संस्कृति और आर्थिक स्वरूप के बारे में महत्त्वपूर्ण आंकड़ों का पता चलता है।

जनगणना 2001 के लिए गणना का कार्य 9 से 28 फरवरी, 2001 के दौरान किया गया। इसके पश्चात् एक से 5 मार्च, 2001 तक इसका संशोधनात्मक दौर चला। आबादी की गिनती के कार्य को जिस क्षण से शुरू किया गया, उसे एक मार्च, 2001 को 00.00 बजे माना गया है। वर्ष 1991 तक जनसंख्या की गिनती की शुरूआत एक मार्च को सूर्योदय के समय से की जाती थी। हमेशा की तरह बेघर लोगों की गणना 28 फरवरी, 2001 की रात्रि से शुरू की गई।

जनसंख्या[सम्पादन]

एक मार्च, 2001 को भारत की जनसंख्या एक अरब 2 करोड़ 80 लाख (532.1 करोड़ पुरूष और 496.4 करोड़ स्त्रियां) थी। भारत के पास 1357.90 लाख वर्ग कि.मी. भू-भाग है जो विश्व के कुल भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत है फिर भी विश्व की 16.7 प्रतिशत आबादी का भार उसे वहन करना पड़ रहा है।

बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में भारत की आबादी करीब 23 करोड़ 84 लाख थी जो बढ़कर इक्कीसवीं शताब्दी में एक अरब 2 करोड़ 80 लाख तक पहुंच गई। भारत की जनसंख्या की गणना 1901 के पश्चात् हर दस साल बाद होती है। इसमें 1911-21 की अवधि को छोड़कर प्रत्येक दशक में आबादी में वृद्धि दर्ज की गई। वर्ष 1901 से जनसंख्या में हुई वृद्धि के आंकड़े सारणी 1.1 में दर्शाए गए हैं।

सारणी 1.2 में विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की जनसंख्या वृद्धि के चुने हुए आंकड़े दर्शाए गए हैं। वर्ष 1991-2001 की जनगणना अवधि के दौरान केरल में सबसे कम 9.43 और नगालैंड में सबसे अधिक 64.53 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। दिल्ली में अत्यधिक 47.02 प्रतिशत, चंडीगढ़ में 40.28 प्रतिशत और सिक्किम में 33.06 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। इसके मुकाबले केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में 1991-2001 के दौरान जनसंख्या वृद्धि काफी कम रही। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम, नगालैंड, मणिपुर, गुजरात, दमन और दीव तथा नगर हवेली आदि को छोड़कर शेष सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में वर्ष 1991-2001 के जनगणना दशक के दौरान पिछले जनगणना दशक की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर कम दर्ज की गई। जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनगणना दशक के दौरान जनसंख्या के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई, यह भारत की कुल आबादी का लगभग 32 प्रतिशत है। जनसंख्या घनत्व जनसंख्या की सघनता का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष आबादी का घनत्व है। इसे इस रूप में परिभाषित किया जाता है कि प्रति वर्ग कि.मी. क्षेत्र में लोगों की संख्या कितनी है। 2001 में देश में आबादी का घनत्व 324 प्रति वर्ग कि.मी. था। सन् 1991 से 2001 के बीच राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि हुई है। प्रमुख राज्यों में पश्चिम बंगाल अभी भी सबसे सघन आबादी वाला राज्य है। यहां 2001 में आबादी का घनत्व 903 था। बिहार अब दूसरे स्थान पर है जबकि आबादी के घनत्व के हिसाब से केरल का स्थान तीसरा है। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में आबादी के घनत्व की स्थिति सारणी 1.3 में दिखाई गई है।

स्त्री-पुरूष अनुपात[सम्पादन]

स्त्री-पुरूष अनुपात को इस रूप में परिभाषित किया जाता है कि प्रति 1000 पुरूषों के अनुपात में स्त्रियों की संख्या कितनी है। इससे एक निश्चित समय पर समाज में स्त्री-पुरूषों के बीच संख्यात्मक समानता का आकलन किया जाता है। देश में स्त्री-पुरूष अनुपात हमेशा स्त्रियों के प्रतिकूल रहा है। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में यह अनुपात 972 था और उसके बाद 1941 तक इसमें निरंतर कमी का रूख रहा। स्त्री-पुरूष अनुपात (1901-2001) को सारणी 1.4 में दर्शाया गया है।

साक्षरता[सम्पादन]

जनगणना 2001 में उस व्यक्ति को “साक्षर” माना गया है जिसकी उम्र सात वर्ष या उससे अधिक है तथा जो किसी भी भाषा मे समझकर उसे लिख-पढ़ सकता है। ऐसे व्यक्ति को साक्षर नहीं माना गया है जो केवल पढ़ सकता है परंतु लिख नहीं सकता। वर्ष 1991 से पूर्व हुई जनगणनाओं में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अनिवार्य रूप से निरक्षर माना जाता था। 2001 की जनगणना के परिणामों से पता चलता है कि देश में साक्षरता में वृद्धि हुई है। देश में साक्षरता दर 64.84 प्रतिशत है। पुरूषों की साक्षरता दर 75.26 प्रतिशत तथा महिलाओं की साक्षरता दर 53.67 प्रतिशत है। साक्षरता में हो रहे सुधार को सारणी 1.5 में दर्शाया गया है।

साक्षरता की दृष्टि से केरल सबसे ऊपर है जहां साक्षरता दर 90.86 प्रतिशत है। उसके बाद मिजोरम में 88.80 प्रतिशत और लक्षद्वीप 86.66 प्रतिशत से दूसरे और तीसरे स्थान पर है। बिहार में साक्षरता दर सबसे कम 47 प्रतिशत है। झारखंड में उससे अधिक 53.56 प्रतिशत और जम्मू-कश्मीर में 55.52 प्रतिशत है। केरल में पुरूष और स्त्रियों की अलग-अलग साक्षरता भी सबसे अधिक है। इसमें 94.24 प्रतिशत पुरूष और 87.72 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। इसके विपरीत सबसे कम साक्षरता दर राज्य बिहार में 59.68 प्रतिशत पुरूष और 33.12 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। देश के विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पुरूषों और स्त्रियों की साक्षरता दर सारणी 1.6 में दर्शाई गई है।