भारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार का परिचय
- भारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार - एक प्रवेशिका
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)
अस्वीकरण
[सम्पादन]इस प्रवेशिका की विषयवस्तु केवल सामान्य जानकारी और मार्गदर्शन के प्रयोजनार्थ है इस प्रवेशिका के आधार पर की गई कार्रवाई/लिए गए निर्णयों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक उत्तरदायी नहीं है पाठकों को सूचित किया जाता है कि वे समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा विशिष्ट परिपत्रों का संदर्भ लें हालांकि इस दस्तावेज में दी गई जानकारी सही रूप में प्रस्तुत करने का हर संभव प्रयास किया गया है, तथापि भारतीय रिज़र्व बैंक इस दस्तावेज में दी गई सूचना के किसी भाग अथवा पूर्ण विषय वस्तु पर किसी भी की गई कार्रवाई, विश्वसनीयता अथवा इस दस्तावेज में किसी गलती अथवा छूट के लिए कोई दायित्व स्वीकार नहीं करता.
प्रस्तावना
[सम्पादन]भारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार में पिछले दशक में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं इलैक्ट्रॉनिक क्रीन आधारित कारोबार प्रणाली लागू करना, अमूर्त धारिता, सीधा प्रसंस्करण, तयशुदा समायोजन के लिए केद्रीय प्रतिरूप (सीसीपी) के रूप में भारतीय समाशोधन निगम लिमि. (सीसीआइएल) की स्थापना, नई लिखतों तथा कानूनी परिवेश में परिवर्तन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ हैं जिन्होने इस बाजार को तेजी से विकसित होने में सहयोग दिया है
ऐतिहासिक रूप से सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रमुख सहभागी बड़े संस्थागत निवेशक रहे हैं विकास हेतु विभिन्न उपायों के साथ बाजार में सहकारी बैंकों, छोटे पेंशन तथा अन्य निधियों इत्यादि जैसी अपेक्षाकृत छोटी संस्थाओं का प्रवेश भी हुआ है इन संस्थाओं को संबंधित विनियमों के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने का आदेश है तथापि, इन नए प्रवेशकों में से कुछ संस्थाओं के समक्ष सरकारी प्रतिभूति बाजार के विभिन्न पहलुओं को समझाने और आँकने में कठिनाई आई है अतः भारतीय रिज़र्व बैंक ने इन छोटे निवेशकों के बीच सरकारी प्रतिभूति बाजार के बारे में जागरूकता लाने के लिए कई कदम उठाए हैं इनमें स्थायी आय प्रतिभूतियों/बॉण्डों यथा सरकारी प्रतिभूतियों, वर्तमान कारोबारी और निवेश प्रक्रियाओं, संबंधित विनियामक पहलुओं और दिशानिर्देशों से संबंधित मूल पहलुओं पर कार्यशालाएँ आयोजित करना सम्मिलित है
यह प्रवेशिका, छोटे संस्थागत सहभागियों के साथ-साथ जनता के बीच सरकारी प्रतिभूति बाजार से संबंधित सूचना के प्रसार हेतु एक अन्य पहल है इस प्रवेशिका में बाजार के बारे में व्यापक ब्योरा प्रस्तुत करने के साथ-साथ विभिन्न प्रक्रियाओं और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश से संबंधित विभिन्न प्रक्रियागत और परिचालनगत पहलुओं को आसान और प्रश्न-उत्तर के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है इस प्रवेशिका में, अनुबंध के रूप में, प्राथमिक व्यापारियों (पीडी) की सूची, उपयोगी एक्सेल कार्य तथा महत्वपूर्ण बाजार शब्दावली दी गई है मुझो आशा है कि संस्थागत निवेशकों विशेष रूप से छोटे संस्थागत निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने का निर्णय लेने में ³en he´JesfMekee उपयोगी सिद्ध होगी भारतीय रिज़र्व बैंक इस प्रवेशिका को और अधिक उपयोगी बनाने में आपके सुझाावों का स्वागत करेगा
श्रीमती एस. गोपीनाथ
उप गवर्नर
- 1. सरकारी प्रतिभूति क्या है ?
1.1. सरकारी प्रतिभूति एक व्यापारयोग्य लिखत है जो केद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं ये सरकार का ऋण दायित्व दर्शाते हैं यह प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (सामान्यतः इन्हें खजाना बिल कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता 1 वर्ष से कम होती है) अथवा दीर्धावधि (सामान्यतः इन्हें सरकारी बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता एक वर्ष अथवा अधिक होती है) होती हैं भारत में केद्र सरकार, खजाना बिल तथा बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती है जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं जिन्हें राज्य विकास ऋण (एसडीएल) कहा जाता है सरकारी प्रतिभूतियों में, व्यावहारिक रूप से, चूक का कोई जोखिम नहीं होता है, तथा इस प्रकार इन्हें जोखिम मुक्त अथवा श्रेष्ठ प्रतिभूतियाँ कहा जाता है भारत सरकार बचत लिखत (बचत बॉण्ड, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), इत्यादि) अथवा विशेष प्रतिभूतियाँ (तेल बॉण्ड, भारतीय खाद्य निगम बॉण्ड, उर्वरक बॉण्ड, ऊर्जा बॉण्ड इत्यादि) भी जारी करती है ये पूर्णतया व्यापार योग्य नहीं होते हैं, अतः सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होते हैं
(क) खजाना बिल (टी-बिल्स)
1.2. खजाना बिल अथवा टी बिल्स, जो मुद्रा बाजार लिखत हैं, भारत सरकार द्वारा जारी अल्पावधि ऋण लिखत हैं तथा वर्तमान में तीन प्रकार के यथा 91 दिवसीय, 182 दिवसीय और 364 दिवसीय रूप में जारी किए जाते हैं खजाना बिल शून्य कूपन प्रतिभूतियाँ हैं तथा इन पर ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता वे बट्टे पर जारी किए जाते हैं तथा परिपक्वता पर इनका मोचन अंकित मूल्य पर किया जाता है उदाहरणार्थ, 100 रू. (अंकित मूल्य) का 91 दिवसीय खजाना बिल यदि 98.20 रू. पर जारी किया जाता है, जो 1.80 रू. के बट्टे पर है, उसका मोचन 100 रू. के अंकित मूल्य पर किया जाएगा निवेशकों को परिपक्वता मूल्य अथवा अंकित मूल्य (अर्थात 100 रू.) तथा जारी मूल्य के बीच अंतर आय के रूप में प्राप्त होगा (खजाना बिलों पर आय की गणना के लिए कृपया प्रश्न सं.26 का उत्तर देखें) रिज़र्व बैंक खजाना बिल जारी करने के लिए प्रत्येक बुधवार को नीलामी करता है खरीदे गए खजाना बिलों के लिए भुगतान आगामी शुक्रवार को किया जाता है 91 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी प्रत्येक बुधवार को की जाती है 182 दिवसीय तथा 364 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी वैकल्पिक बुधवार को होती है 364 दिवसीय अवधि वाले खजाना बिलों की नीलामी रिपो\टग शुक्रवार के पिछले बुधवार को होती है जबकि 182 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी गैर रिपो\टग शुक्रवार से पहले बुधवार को होती है रिज़र्व बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष के लिए खजाना बिल जारी करने का वार्षिक कैलेंडर पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंतिम सप्ताह में जारी किया जाता है भारतीय रिज़र्व बैंक खजाना बिल जारी करने का ब्योरा प्रत्येक सप्ताह में प्रैस विज्ञप्ति के माध्यम से करता है
(ख) दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ
1.3. दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ दीर्धावधि प्रतिभूतियाँ होती हैं और उन पर स्थायी अथवा अस्थायी कूपन (ब्याज दर) दिया जाता है जो एक निश्चित अवधि (सामान्यतया छमाही) पर अंकित मूल्य पर देय होता है दिनांकित प्रतिभूतियों की अवधि 30 वर्ष तक हो सकती है
रिज़र्व बैंक का लोक ऋण कार्यालय सरकारी प्रतिभूतियों की रजिस्ट्री/निक्षेपागार का कार्य करता है तथा उन्हें जारी करने, ब्याज अदा करने तथा परिपक्वता मूलधन की चुकौती संबंधी कार्य करता है अधिकांश दिनांकित प्रतिभूतियाँ स्थायी कूपन प्रतिभूतियाँ हैं
प्रतीकात्मक दिनांकित नियत कूपन सरकारी प्रतिभूतियों की नाम पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं - कूपन, जारीकर्ता का नाम, परिपक्वता और अंकित मूल्य उदाहरणार्थ : 7.49% जीएस 2017 का अर्थ होगा :-
कूपन
7.49% अंकित मूल्य पर भुगतान
जारीकर्ता का नाम
भारत सरकार
जारी करने की तारीख 16 अप्रैल 2007
परिपक्वता 16 अप्रैल 2017
कूपन भुगतान की तारीख छमाही (16 अक्तूबर और 16 अप्रैल) प्रत्येक वर्ष
जारी/बिक्री की न्यूनतम राशि 10,000 रू.
यदि एकसमान कूपन की दो प्रतिभूतियाँ हैं और एक ही वर्ष में परिपक्व हो रही हैं, तो एक प्रतिभूति के नाम में माह जुड़ जाएगा उदाहरणार्थ : 6.05% जीएस 2019 फरवरी का अर्थ होगा कि 6.05% कूपन वाली सरकारी प्रतिभूति, उसी कूपन वाली अन्य प्रतिभूति, जिसका नाम 6.05% 2019 है और जो जून 2019 को परिपक्व हो रही है, के साथ फरवरी 2019 को परिपक्व होगी
यदि कूपन भुगतान की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन है, तो कूपन भुगतान अगले कार्य दिवस को किया जाता है तथापि, यदि परिपक्वता की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन होती है तो शोधन की आय का भुगतान पिछले कार्य दिवस को किया जाता है
1.4. भारत सरकार द्वारा जारी सभी दिनांकित प्रतिभूतियों का ब्योरा भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट प्ूूज्://ैैै.ींi.दीु.iह/एम्ीiज्ूे/िiहaहम्iaत्स्aीवूेैaूम्प्.aेज्x . पर उपलब्ध हैं खजाना बिलों के समानही, भारत सरकार और राज्य सरकारों, दोनों की दिनांकित प्रतिभूतियाँ रिज़र्व बैंक के माध्यम से नीलामी द्वारा जारी कि जाती हैं रिज़र्व बैंक नीलामी की धोषणा प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से एक सप्ताह पहले करता है सरकारी प्रतिभूति की नीलामी की धोषणा प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों के माध्यम से विज्ञापनों द्वारा भी की जाती है इस प्रकार निवेशों को ऐसी नीलामी के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदने की योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाता है
दिनांकित प्रतिभूति का नमूना परिशिष्ट 1 में दिया गया है
1.5. लिखत
(i) स्थायी दर बॉण्ड - इन बॉण्डों पर बाँण्ड की पूरी अवधि के लिए कूपन दर स्थायी होती है अधिकांश सरकारी बॉण्ड स्थायी दर बॉण्डों के रूप में जारी किए जाते हैं
उदाहरण - 8.24 प्रतिशत जीएस 2018 दस वर्ष के अवधि के लिए 22 अप्रैल 2008 को जारी किया गया जिसकी परिपक्वता 22 अप्रैल 2018 को है इस प्रतिभूति पर कूपन प्रत्येक वर्ष छःमाही आधार पर 4.12 प्रतिशत की दर से अंकित मूल्य पर 22 अक्तूबर और 22 अप्रैल को अदा किया जाएगा
(ii) अस्थायी दर बॉण्ड - अस्थायी दर बॉण्ड वे प्रतिभूतियाँ हैं जिनकी कूपन दर स्थायी नहीं होती इनका कूपन, आधार दर पर स्पैड जमा करके पहले से धोषित अंतरालों पर (छःमाह/एक वर्ष) दुबारा निर्धारित किया जाता है अब तक भारत सरकार द्वारा जारी अधिकांश अस्थायी दर बॉण्डों के मामले में स्पैड नीलामी के दौरान निर्धारित किया जाता है जबकि आधार पर पिछले कूपन पुनःनिर्धारित करने की तारीख के पिछले तीन 364 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी की निर्धारित दर की भारित औसत होगी भारत में पहले अस्थायी दर बॉण्ड सितंबर 1995 में जारी किए गए थे
उदाहरणार्थ : एक अस्थायी दर बॉण्ड 15 वर्ष की अवधि के लिए 2 जुलाई 2002 को जारी किया गया जो 2 जुलाई 2017 को परिपक्व होगा कूपन भुगतान के लिए बॉण्ड पर आधार दर 6.50 प्रतिशत निर्धारित की गयी जो पिछली छः नीलामियों के दौरान 364 दिवसीय खजाना बिलों पर अंतर्निहित आय की भारित औसत दर थी बॉण्ड नीलामी में 34 आधार पाइंट (0.34%) का निर्दिष्ट अंतराल (चिन्हित दर से अधिक मूल्य) निर्धारित किया गया अतः पहले छःमाह के लिए कूपन 6.84% पर निर्धारित किया गया
(iii) शून्य कूपन बॉण्ड - शून्य कूपन बॉण्ड वे कूपन बॉण्ड हैं जिन पर कोई कूपन भुगतान नहीं किया जाता खजाना बिलों के समान ये अंकित मूल्य पर बट्टे पर जारी किए जाते हैं भारत सरकार ने ऐसी प्रतिभूतियाँ 90 के दशक में जारी की थी उसके बाद शून्य कूपन बॉण्ड जारी नहीं किए गए
(iv) पूंजी सूचकांक बॉण्ड - ये बॉण्ड, जिनका मूल धन मुद्रास्फीति के स्वीकार्य सूचकांक से सहलग्न हैं, मुद्रास्फीति से धारक का बचाव करता हैं पूंजी सूचकांक बॉण्ड, जिसके मूलधन की प्रतिरक्षा मुद्रास्फीति से की गयी थी, दिसंबर 1997 में जारी किए गए थे ये बॉण्ड 2002 में परिपक्व हो गये थे सरकार मुद्रस्फीति सूचकांक बॉण्डों के निर्गम पर कार्य कर रही है जिनमें बॉण्डों पर कूपन और मूलधन, दोनों, मुद्रस्फीति सूचकांक (थोक मूल्य सूचकांक) से सहलग्न होंगे
(v) मांग/विक्रय विकल्प वाले बाँण्ड - विकल्प की विशेषताओं वाले बॉण्ड भी जारी किये जा सकते हैं जहाँ जारीकर्ता के पास बाय बैक (मांग/विकल्प) का विकल्प होगा अथवा निवेशक के पास यह विकल्प होगा कि वह बॉण्ड की अवधि के दौरान जारीकर्ता को बॉण्ड बेच (विक्रय विकल्प) सकते हैं 6.72% जीएस 2012, 18 जुलाई 2002 को जारी किए गए थे जिनकी परिपक्वता अवधि दस वर्ष की है तथा परिपक्वता की तारीख 18 जुलाई 2012 है बॉण्ड पर विकल्प का प्रयोग उसके बाद आने वाली किसी कूपन तारीख को जारी करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि पूरा होने के बाद किया जा सकता है सरकार को सममूल्य पर (अंकित मूल्य के बराबर) बॉण्ड बाय बैक (मांग/विकल्प) करने का अधिकार है जब कि निवेशक को 18 जुलाई 2007 से आरंभ होने वाली किसी भी छमाही कूपन तारीखों में सममूल्य पर सरकार को बेचने का अधिकार होगा
(vi) विशेष प्रतिभूतियाँ - बाजार उधार के कार्यक्रम के अंतर्गत खजाना बिल और दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करने के साथ-साथ समय-समय पर तेल विपणन कंपनियों, उर्वरक कंपनियों, भारतीय खाद्य निगम इत्यादि को नकदी सब्सिडी के स्थान पर प्रतिपूर्ति के रूप में विशेष प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं ये प्रतिभूतियाँ सामान्यतः लंबित अवधि की होती है जिन पर तुलनात्मक परिपक्वता की दिनांकित प्रतिभूतियों के आय पर लगभग 20-25 आधार पाइंट का स्प्रैड होता है तथापि ये प्रतिभूतियाँ एसएलआर प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होती हैं लेकिन बाजार रिपो लेन-देनों के लिए संपाश्दिवक के रूप में पात्र होती हैं हिताधिकारी तेल विपणन कंपनियाँ इन प्रतिभूतियों को द्वितीय बाजार में बैंकों, बीमा कंपनियों/प्राथमिक व्यापारियों इत्यादि को नकदी जुटाने के लिए बेच सकती हैं
(vii) स्ट्रिप्स (प्रतिभूतियों के पंजीकृत ब्याज और मूलधन का पृथक कारोबार) जैसे नये स्वरूप के लिखत लागू करने के उपाय किये गए हैं स्ट्रिप्स वे लिखत हैं जिनमें स्थायी कूपन प्रतिभूति का प्रत्येक नकदी प्रवाह पृथक कारोबार योग्य शून्य कूपन बॉण्ड में परिवर्तित हो जाता है तथा उस पर कारोबार किया जाता है उदाहरणार्थ : जब 100 रू. के 8.24% जीएस 2018 को स्ट्रिप किया जाता है, तो कूपन (4.12 रू. प्रत्येक छमाही) स्ट्रिप का प्रत्येक नकदी प्रवाह कूपन स्ट्रिप बन जाता है तथा मूल भुगतान (परिपक्वता पर 100 रू.) मूल स्ट्रिप बन जाएगा द्वितीयक बाजार में इन नकदी प्रवाहों के संबंध में अलग प्रतिभूतियों के रूप में कारोबार होता है
(ग) राज्य विकास ऋण (एसडीएल)
1.6. राज्य सरकारें भी बाजार से ऋण जुटाती हैं एसडीएल दिनांकित प्रतिभूतियाँ होती हैं जो केद्र सरकार द्वारा दिनांकित प्रतिभूतियों के लिए की जाने वाली नीलामियों के समान नीलामी के माध्यम से जारी की जाती हैं (नीचे प्रश्न सं.3 देखें) ब्याज का भुगतान छमाही आधार पर किया जाता है तथा मूल की चुकौती परिपक्वता तारीख को होती है केद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों के समान राज्य सरकारों द्वारा जारी एसडीएल सांविधिक चलनिधि अनुपात के लिए गिनी जाएंगी ये बाजार रिपो के माध्यम से उधार के लिए संपाश्दिवक के रूप में तथा चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक से पात्र संस्थाओं द्वारा उधार लेने के लिए पात्र होंगी
2. सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश क्यों करना चाहिए ?
2.1. बैंक द्वारा अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक नकदी रखने से उसे कुछ लाभ नहीं होता सोने में निवेश से बहुत सी समस्याएँ होती हैं जैसे उसकी शुद्धता, मूल्यांकन, सुरक्षित अभिरक्षा इत्यादि सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के निम्नलिखित लाभ हैं :-
- कूपन (ब्याज) के रूप में प्रतिफल मिलने के साथ-साथ सरकारी प्रतिभूतियों में अधिकतम सुरक्षा मिलती है क्योंकि उनमें ब्याज के भुगतान और मूल की चुकौती की सॉवेरन की प्रतिबद्धता होती है
- वे पुस्तक में प्रविष्टि के रूप में धारित की जा सकती हैं अर्थात डीमेट/क्रिप के रूप में, अतः उसके लिए सुरक्षित अभिरक्षा की आवश्यकता नहीं होती
- सरकारी प्रतिभूतियाँ 91 दिन से लेकर 30 वर्ष की लम्बी अवधि के लिए, जो भी बैंक की देयताओं के अनुरूप हों, उपलब्ध रहती हैं
- नकदी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए द्वितीयक बाजार में इन्हें आसानी से बेचा जा सकता है
- सरकारी प्रतिभूतियों का उपयोग रिपो बाजार से निधि उधार लेने के लिए संपाश्दिवक के रूप में प्रयोग में लाई जा सकती हैं
- सरकारी प्रतिभूतियों में ब्यापार के लिए समायोजन प्रणाली, जो सुपुर्दगी बनाम भुगतान (Dvझ) पर आधारित है, जो समायोजन की बहुत आसान, सुरक्षित और सक्षम प्रणाली है Dvझ तंत्र विक्रेता द्वारा प्रतिभूतियों के अंतरण के साथ-साथ क्रेता से निधि का अंतरण सुनिश्चित करके समायोजन जोखिम कम करता है
- सरकारी प्रतिभूति मूल्य तरल और सक्रिय द्वितीयक बाजार के कारण आसानी से उपलब्ध होते हैं तथा एक पारदर्शी प्रसारतंत्र है
- बैंकों के अतिरिक्त, बीमा कंपनियों और अन्य बड़े निवेशकों, छोटे निवेशकों जैसे सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, भविष्य निधि से भी अपेक्षा की जाती है कि वे नीचे निर्दिष्ट किए अनुसार सरकारी प्रतिभूतियाँ धारण करें :-
(क) प्राथमिक (शहरी सहकारी बैंक)
2.2. बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 24 (जैसा कि वह सहकारी समितियों पर लागू है) में प्रावधान है कि प्रत्येक प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक किसी भी दिन की समाप्ति पर, अपनी मांग और मीयादी देयताओं के 25% से अनधिक तरल आस्तियों का अनुरक्षण करेगा (न्यूनतम नकदी प्रारक्षित अपेक्षाओं के अतिरिक्त) ये तरल आस्तियाँ नकदी, सोने अथवा भाररहित सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में होनी चाहिए इन्हें सामान्यतया सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) अपेक्षा कहा जाता है
2.3. सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी एसएलआर धारिताओं का कुछ न्यूनतम स्तर सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में निम्नानुसार निवेश करें :-
(क) अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को अपनी एसएलआर अपेक्षा का 25 प्रतिशत सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए
(ख) गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को, जिनकी मांग और मीयादी देयताएँ 25 करोड रू. से अधिक हैं, अपनी एसएलआर अपेक्षाओं का 15% सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए
(ग) गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को, जिनकी मांग और मीयादी देयताएँ 25 करोड़ रू. से कम हैं, अपनी एसएलआर अपेक्षाओं का 10% सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए
(ख) ग्रामीण सहकारी बैंक
2.4. बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 24 के अनुसार राज्य सहकारी बैंकों और जिला केद्रीय सहकारी बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे एसएलआर अपेक्षा के भाग के रूप में नकदी, सोने अथवा भाररहित प्रतिभूतियों में धारित करें जिनका मूल्य वर्तमान बाजार मूल्य से अधिक न हो, अपनी मांग और मीयादी देयताओं के 25% से कम न हो डीसीसीबी को अनुमति है कि वे अपने संबंधित शहरी सहकारी बैंक में एसएलआर की अपेक्षा को पूरा करने के लिए नकदी शेष का अनुरक्षण कर सकता है
(ग) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
2.5. अप्रैल 2002 से सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी सारी एसएलआर का अनुरक्षण सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में करें वर्तमान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए एसएलआर अपेक्षा उनकी मांग और मीयादी देयताओं का 25% है
2.6 वर्तमान में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपनी एसएलआर प्रतिभूतियों के संबंध में उनके दैनिक बाजार cetu³e से छूट प्रदान की गई है तदनुसार, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को "परिपक्वता तक धारित" के अंतर्गत अपने पूरे निवेश संविभाग को वर्गीकृत करने तथा उन्हें उनके बही मूल्य पर मूल्यांकित करने की छूट दे दी गई है
(ध) भविष्य निधि और अन्य संस्थाएँ
2.7. केद्र सरकार की अपेक्षा के अनुसार गैर सरकारी भविष्य निधियों, पेंशन तथा उपदान निधियों को 24 जनवरी 2005 से अपनी क्रमिक आय का 40% केद्र और राज्य सरकार की प्रतिभूतियों तथा/अथवा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बौर्ड (सेबी) द्वारा विनियमित गिल्ट निधि की यूनिटों तथा केद्र/राज्य सरकारों द्वारा पूर्णतया तथा बिना किसी शर्त के अन्य परक्राम्य लिखत में निवेश करना अपेक्षित है तथापि, किसी एक गिल्ट निधि में न्यास का जोखिम किसी भी समय उसके कुल संविभाग के पाँच प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए गैर सरकारी भविष्य निधियों के लिए निवेश दिशानिर्देशों में हाल ही में सुधार किया गया है जिसके अनुसार अप्रैल 2009 से निवेशयोग्य निधि के 55% तक निवेश केद्र सरकार की प्रतिभूतियों, राज्य सरकार की प्रतिभूतियों तथा गिल्ट निधि की यूनिटों में निवेश करने की अनुमति है
- 3. सरकारी प्रतिभूतियाँ कैसे जारी की जाती हैं
3.1. सरकारी प्रतिभूतियाँ भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित नीलामियों के माध्यम से जारी की जाती हैं नीलामियाँ एनडीएस नीलामी मंच नामक इलैक्ट्रॉनिक मंच पर की जाती हैं वाणिज्य बैंक, अनुसूचित शहरी सहकारी बैंक, प्राथमिक व्यापारी (प्राथमिक व्यापारियों की सूची उनके संपर्क ब्योरे सहित परिशिष्ट 2 में दी गई है), बीमा कंपनियाँ और भविष्य निधियाँ जो भारतीय रिज़र्व बैंक के पास निधि खातों (चालू खातों) और प्रतिभूति खातों का अनुरक्षण करते हैं, इस इलैक्ट्रॉनिक मंच के सदस्य हैं पीडीओ-एनडीएस के सभी सदस्य इस इलैक्ट्रॉनिक मंच के माध्यम से अपनी बोलियाँ लगा सकते हैं सभी गैर एनडीएस सदस्य, गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों सहित, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों और प्राथमिक व्यापारियों के माध्यम से प्राथमिक नीलामी में भाग ले सकते हैं इस प्रयोजन के लिए शहरी सहकारी बैंकों को किसी बैंक/प्राथमिक व्यापारी के पास प्रतिभूति खाता खोलने की आवश्यकता है - ऐसे खाते को गिल्ट खाता कहा जाता है गिल्ट खाता किसी अनुसूचित वाणिज्य बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी द्वारा अपने ग्राहक (उदा. गैर अनुसूचित शहरी बैंक) के लिए अनुरक्षित किया जाता है जिसे डीमेट खाता कहते हैं
3.2. भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत सरकार के परामर्श से सांकेतिक छमाही कैलेंडर जारी करता है जिसमें उधार की राशि, प्रतिभूति की अवधि और वह अवधि जिसमें नीलामी हो सकती है इत्यादि संबंधी जानकारी होती है नीलामी की वास्तविक तारीख से लगभग एक सप्ताह पहले एक अधिसूचना और प्रेस विज्ञप्ति जारी की जाती है यथा नाम, राशि, निर्गम का स्वरूप और नीलामी की प्रक्रिया भारत सरकार द्वारा जारी की जाती है भारतीय रिज़र्व बैंक अपनी वेबसाइट (ैैै.ींi.दीु.iह) पर एक अधिसूचना और प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के साथ-साथ अंग्रेजी और हिंदी के प्रमुख समाचारपत्रों में विज्ञापन भी देता है सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों की चयनित शाखाओं तथा प्राथमिक व्यापारियों के पास भी नीलामी की जानकारी उपलब्ध होती है
- 4. प्रतिभूतियाँ जारी करने के लिए नीलामी के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?
नीलामियों के निर्गम जारी करने के तरीके के रूप में लागू करने से पहले सरकार द्वारा ब्याज दरें प्रशासनिक रूप से निर्धारित किए जाते थे नीलामी शुरू करने के साथ ब्याज दरें (कूपन दरें) बाजार आधारित मूल्य निर्धारण प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित किए जाते हैं
4.1. नीलामी आय आधारित अथवा मूल्य आधारित हो सकती है
(i) आय आधारित नीलामी : आय आधारित नीलामी सामान्यतया नई सरकारी प्रतिभूति जारी करने के समय आयोजित की जाती है निवेशक Dee³e kes Deôegmeej दो दशमलव स्थान तक बोली लगाते हैं (उदाहरणार्थ : 8.19 प्रतिशत, 8.20 प्रतिशत इत्यादि) बोलियाँ ऊध्र्वगामी रूप में व्यवस्थित की जाती हैं तथा नीलामी की अधिसूचित राशि के अनुरूप आय पर पहुँचने पर रोक दी जाती है इस (कट-ऑफ) आय को प्रतिभूति की कूपन दर के रूप में लिया जाता है सफल बोलीकर्ता वे होते हैं जिन्होंने "कट ऑफ" आय पर या उससे से नीचे बोली लगाई है इससे उच्चतर बोलियों को अस्वीकार कर दिया जाता है आय आधारित नीलामी का एक उदाहरण नीचे प्रस्तुत है :-
नई प्रतिभूति की आय आधारित बोली
नई प्रतिभूति की आय आधारित बोली •
परिपक्वता की तारीख : 8 सितंबर 2018
•
कूपन : यह नीलामी में निर्धारित किया जाता है (8.22% जैसा कि नीचे उदाहरण में दर्शाया गया है)
•
नीलामी की तारीख : 5 सितंबर 2008
•
नीलामी निपटान की तारीख : 8 सितंबर 2008*
•
अधिसूचित राशि : 1000 करोड़ रू.
6 और 7 सितंबर को छुट्टी होने के कारण टी+1 चक्र के अंतर्गत निपटान 8 सितंबर 2008 को किया जाएगा
बोली आय के बढ़ते हुए क्रम से प्राप्त बोलियों का ब्योरा
बोली सं.
बोली आय
बोली की राशि (रू.करोड़)
संचयी राशि (रू. करोड़)
8.22% के रूप में कूपन सहित मूल्य*
1.
8.79%
300
300
100.19
2.
8.20%
200
500
100.14
3.
8.20%
250
750
100.13
4.
8.21%
150
900
100.09
5.
8.22%
100
1000
100
6.
8.22%
100
1100
100
7.
8.23%
150
1250
99.93
8.
8.24%
100
1350
99.87
जारीकर्ता को क्रम सं.5 तक बोलियाँ स्वीकार करके अधिसूचित राशि प्राप्त होगी चूंकि बोली सं.6 की आय भी वही है, बोली सं.5 और 6 को यथानुपाती आबंटन प्राप्त होगा ताकि अधिसूचित राशि का अधिक न हो उपर्युक्त मामले में प्रत्येक को 50 करोड़ रू. मिलेंगे बोली सं.7 और 8 अस्वीकृत हो जाएंगी क्योंकि उनकी आय "कट ऑफ" आय से अधिक है
- आय का तदनुरूपी मूल्य प्रश्न सं.24 में वाइटीएम गणना के अंतर्गत दिए संबंध के अनुसार निर्धारित होगा
(ii) मूल्य आधारित नीलामी : भारत सरकार द्वारा पहले से जारी प्रतिभूतियों को दुबारा जारी करने पर मूल्य आधारित नीलामी की जाती है बोली लगाने वाले प्रतिभूति के अंकित मूल्य के प्रत्येक 100 रू. के लिए मूल्य के रूप में बोली लगाते हैं 102 रू., 101 रू., 100 रू., 99 रू. इत्यादि) बोलियाँ अधोगामी स्वरूप में व्यवस्थित की जाती हैं और सफल बोलीकर्ता वे होते हैं जिनकी बोली "कट ऑफ" मूल्य पर अथवा उससे अधिक होती है "कट ऑफ" मूल्य से नीचे की बोलियाँ अस्वीकृत हो जाती हैं मूल्य आधारित नीलामी का उदाहरण नीचे प्रस्तुत है :
वर्तमान प्रतिभूति 8.24% जीएस 2018 की मूल्य आधारित नीलामी • परिपक्वता की तारीख : 22 अप्रैल 2018 •
कूपन : 8.24%
•
नीलामी की तारीख : 5 सितंबर 2008
•
नीलामी निपटान की तारीख : 8 सितंबर 2008*
•
अधिसूचित राशि : 1000 करोड़ रू.
6 और 7 सितंबर को छुट्टी होने के कारण टी+1 चक्र के अंतर्गत निपटान 8 सितंबर 2008 को किया जाएगा
बोली मूल्य के धटते हुए क्रम से प्राप्त बोलियों का ब्योरा
बोली सं.
बोली का मूल्य
बोली की राशि (रू.करोड़)
अंतर्निहित आय
संचयी राशि
1.
100.31
300
8.1912%
300
2.
100.26
200
8.1987%
500
3.
100.25
250
8.2002%
750
4.
100.21
150
8.2062%
900
5.
100.20
100
8.2077%
1000
6.
100.20
100
8.2077%
1100
7.
100.16
150
8.2136%
1250
8.
100.15
100
8.2151%
1350
जारीकर्ता को क्रम सं.5 तक बोलियाँ स्वीकार करके अधिसूचित राशि प्राप्त होगी चूंकि बोली सं.6 का मूल्य भी वही है, बोली सं.5 और 6 को अनुपात में आबंटन प्राप्त होगा ताकि अधिसूचित राशि अधिक न हो उपर्युक्त मामले में प्रत्येक को 50 करोड़ रू. मिलेंगे बोली सं.7 और 8 अस्वीकृत हो जाएंगी क्योंकि उनकी मूल्य "कट ऑफ" आय से कम है
4.2. सफल बोलीकर्ताओं को आबंटन के तरीके के आधार पर नीलामी को एक समान मूल्य आधारित और बहुमुखी मूल्य आधारित के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है एकसमान मूल्य नीलामी में सभी सफल बोलीकर्ताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे एक ही दर पर प्रतिभूतियों की आबंटित मात्रा के लिए भुगतान करें अर्थात नीलामी की "कट ऑफ" दर, चाहे उन्होंने कोई भी दर उध्दृत की हो दूसरी ओर, बहुमुखी मूल्य नीलामी में सफल बोलीकर्ताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे, उन्हें प्रतिभूतियों की आबंटित मात्रा के लिए, भुगतान करें जिस मूल्य/आय के लिए उन्होंने बोली लगाई है ऊपर दिये गये उदाहरण ii में, यदि नीलामी एकसमान मूल्य आधारित होती, तो सभी बोलीकर्ताओं को "कट ऑफ" मूल्य अर्थात 100.20 रू. पर आबंटन किया जाएगा दूसरी ओर, यदि नीलामी बहुमुखी मूल्य आधारित होती तो प्रत्येक बोलीकर्ता को उसी मूल्य पर आबंटन मिलता जिसकी उसने बोली लगाई है अर्थात बोलीकर्ता 1 को 100.31 रू., बोलीकर्ता 2 को 100.26 रू. पर तथा इसी प्रकार
4.3. कोई निवेशक नीलामी में निम्नलिखित में से किसी भी श्रेणी में बोली लगा सकता है :-
(i) स्पर्धी बोली : स्पर्धी बोली में, निवेशक एक विशिष्ट मूल्य/आय पर बोली लगाता है और उध्दृत मूल्य कट-ऑफ मूल्य/आय के भीतर होने पर उसे प्रतिभूतियाँ आबंटित की जाती हैं स्पर्धी बोलियाँ जानकर निवेशकों द्वारा लगाई जाती हैं यथा बैंक, वित्तीय संस्थाएँ, प्राथमिक व्यापारी, पारस्परिक निधियाँ और बीमा कंपनियाँ न्यूनतम बोली की राशि 10,000 रू. और उसके बाद 10,000 रू. के गुणजों में होती है बहुमुखी बोली की भी अनुमति है अर्थात कोई निवेशक विभिन्न मूल्यों/आय स्तरों पर कई बोलियाँ लगा सकता है
(ii) गैर स्पर्धी बोली : खुदरा निवेशकों को, जिन्हें नीलामी में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने की जानकारी नहीं है, नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए एक अवसर देते हुए, जनवरी 2002 में दिनांकित प्रतिभूतियों में गैर स्पर्धी बोली लगाने की योजना लागू की गयी थी गैर स्पर्धी बोली आम जनता, हिन्दु अविभक्त परिवारों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों, फर्मो, कंपनियों, कार्पोरेट निकायों, संस्थाओं, भविष्य निधियों और न्यासों के लिए खुली है इस योजना के अंतर्गत, पात्र निवेशक विशिष्ट मूल्य/आय निर्दिष्ट किए बिना किसी राशि की प्रतिभूतियों के लिए आवेदन कर सकता है ऐसे बोलीकर्ताओं को नीलामी की भारित औसत मूल्य/आय पर प्रतिभूतियाँ आबंटित की जाती हैं ऊपर 4.1(ii) में दिए उदाहरण में, अधिसूचित राशि चूंकि 1000 करोड़ रू. है, गैर स्पर्धी बोली के लिए आरक्षित निधि 50 करोड़ रू. होगी (नीचे निर्दिष्ट किए अनुसार अधिसूचित राशि का 5 प्रतिशत) गैर स्पर्धी बोलीकर्ताओं को भारित औसत मूल्य पर आबंटित किया जाएगा जो उद्धरण में 100.26 रू.. है तथापि, गैर स्पर्धी बोली के भागीदारों से अपेक्षा की जाती है कि वे किसी बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी के पास गिल्ट खाता रखें जिन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों का एसजीएल और चालू खाता भारतीय रिज़र्व बैंक के पास है, वे भी बिना गिल्ट खाता रखे गैर स्पर्धी बोली की योजना के अंतर्गत भाग ले सकते हैं
4.4. दिनांकित प्रतिभूतियों की प्रत्येक नीलामी में, ऐसी गैर स्पर्धी बोलियों के लिए अधिकतम पांच प्रतिशत की अधिसूचित राशि प्रारक्षित की जाती है खजाना बिलों के लिए नीलामी के मामले में, गैर स्पर्धी बोलियों के लिए स्वीकार्य राशि अधिसूचित राशि को छोड़कर होती है और उसकी कोई सीमा नहीं है तथापि, खजाना बिलों में गैर स्पर्धी बोली केवल राज्य सरकारों और अन्य चयनित संस्थाओं को उपलब्ध है तथा सहकारी बैंकों के लिए उपलब्ध नहीं है किसी भी निवेशक को एक ही बोली किसी बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी के माध्यम से देने की अनुमति है योजना के अंतर्गत बोली लगाने के लिए निवेशक को किसी बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी के माध्यम से प्रतिभूतियों के आबंटन के लिए आवेदन के साथ वचनपत्र देना होगा दिनांकि प्रतिभूतियों की नीलामी के मामले में एक बोली के लिए न्यूनतम और अधिकतम राशि क्रमशः 10,000 रू. तथा 2 करोड़ रू. है बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी अपनी सेवाएँ देने के लिए प्रति 100 रू. की आवेदन राशि के लिए अधिकतम 6 पैसे कमीशन के रूप में प्रभारित कर सकता है यदि गैर स्पर्धी बोली के लिए प्राप्त कुल आवेदनों की बोली दिनांकित प्रतिभूतियों की नीलामी की अधिसूचित राशि के 5 प्रतिशत से अधिक होती हैं तो बोली लगाने वालों को यथानुपाती आधार पर प्रतिभूतियाँ आबंटित की जाएंगी
4.5. राज्य सरकार की प्रतिभूतियों में गैर स्पर्धी बोली योजना अगस्त 2009 से शुरू हुई है एसडीएल में इस प्रयोजन हेतु आरक्षित कुल राशि अधिसूचित राशि का 10% (1000 करोड़ रू. की अधिसूचित राशि पर 100 करोड़ रू.) है तथा किसी निवेशक द्वारा प्रत्येक नीलामी में 1% की बोली लगाई जा सकती है (केद्र सरकार की प्रतिभूतियों में 2 करोड़ रू. की तुलना में) बोली लगाने और आबंटन की प्रक्रिया केद्र सरकार की प्रतिभूतियों के समान है
5. खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) क्या हैं ?
खुले बाजार के परिचालन बाजार के वे परिचालन हैं जो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बाजार से/को सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद/बिक्री के लिए आयोजित किए जाते हैं ताकि लम्बी अवधि के लिए बाजार में रूपये की तरलता स्थितियों को समायोजित किया जा सके जब भारतीय रिज़र्व बैंक यह महसूस करता है कि बाजार में अधिक चलनिधि है तो यह प्रतिभूतियों की बिक्री दर्ज करता है तथा रूपये की चलनिधि को खींच लेता है इसी प्रकार जब चलनिधि की स्थिति कठोर है, भारतीय रिज़र्व बैंक बाजार से प्रतिभूतियाँ खरीद लेता है तथा बाजार में चलनिधि भेज देता है
- 6. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) क्या हैं ?
चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) को और प्राथमिक व्यापारियों को दी जाने वाली एक ऐसी सुविधा है जिसमें वे आवश्यकता पड़ने पर चलनिधि का उपयोग कर सकते हैं अथवा अधिक चलनिधि होने पर भारतीय रिज़र्व बैंक के पास राज्य सरकार की प्रतिभूतियों सहित सरकारी प्रतिभूतियों को संपाश्दिवक के रूप में एक दिन के लिए रख सकते हैं मूल रूप से चलनिधि समायोजन सुविधा दैनंदिन आधार पर चलनिधि प्रबंधन उपलब्ध कराता है एलएएफ का परिचालन बैंक के साथ पुनर्खरीद (रिपो और रिवर्स रिपो - कृपया प्रश्न सं.30 के अंतर्गत ब्योरे के लिए 30.4 से 30.8 देखें) करके, सभी लेन-देनों में भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ प्रति-पार्टी बन कर किए जा सकते हैं एलएएफ के अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरें समय-समय पर निर्धारित की जाती हैं वर्तमान में, एलएएफ के अंतर्गत रिपो पर ब्याज दर (भागीदारों द्वारा उधार लिए जाने पर) 4.75% है और रिवर्स रिपो (भारतीय रिज़र्व बैंक के पास निधि रखने के लिए) 3.25% है एलएएफ मौद्रिक नीति का एक महत्वपूर्ण उपकरण है तथा बाजार को ब्याज दर संकेत भेजने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को समर्थ बनाता है
- 7. सरकारी प्रतिभूतियाँ कैसे और किस रूप में धारित की जा सकती हैं ?
7.1. भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई का लोक ऋण कार्यालय सरकारी प्रतिभूतियों के लिए रजिस्ट्री और केद्रीय निक्षेपागार का कार्य करता है निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियाँ या तो भौतिक रूप में अथवा डीमैट रूप में रखी जाती हैं भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित सभी संस्थाओं के लिए 20 मई 2002 से सरकारी प्रतिभूतियों को केवल डीमैट (एसजीएल) रूप में रखना आवश्यक हो गया है तदनुसार, शहरी सरकारी बेंकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियाँ डीमैट रूप में रखना आवश्यक हो गया है
(क) भौतिक रूप में : सरकारी प्रतिभूतियों को स्टॉक प्रमाणपत्र के रूप में रखा जा सकता है स्टॉक प्रमाणपत्र को लोक ऋण कार्यालय की बहियों में पंजीकृत किया जाता है स्टॉक प्रमाणपत्रों में स्वामित्व का अंतरण परांकन और सुपुर्दगी के रूप में अंतरित नहीं किया जा सकता उन्हें स्वामित्व के रूप में अंतरण फार्म निष्पादित करके अंतरित किया जा सकता है तथा अंतरण का ब्योरा लोक ऋण कार्यालय की बहियों में दर्ज किया जाता है स्टॉक प्रमाणपत्र का अंतरण लोक ऋण कार्यालय की बहियों में पंजीकरण के बाद ही अंतिम और वैध होगा
(ख) डीमैट रूप में : सरकारी प्रतिभूतियों को डीमैट रूप में अथवा क्रिप रहित रूप में रखना सबसे अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक विकल्प है क्योंकि इससे सुरक्षित रूप से रखने की समस्याएँ यथा प्रतिभूति का गुम होना इत्यादि समाप्त हो जाती हैं साथ ही, इलैक्ट्रॉनिक रूप में अंतरण और सर्विसिंग परेशानी रहित होती है धारक अपनी प्रतिभूतियों को डीमैट रूप में दो प्रकार से रख सकता है :
(i) एसजीएल खाता : भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सहायक सामान्य लेजर खाते की सुविधा कुछ चयनित संस्थाओं को उपलब्ध कराई जाती है जो अपनी प्रतिभूतियाँ भारतीय रिज़र्व बैंक के लोक ऋण कार्यालय में एसजीएल खातों में अनुरक्षित कर सकते हैं
(ii) गिल्ट खाता : चूंकि भारतीय रिज़र्व बैंक के पास एसजीएल खाता खोलने और उसे अनुरक्षित करने की सुविधा प्रतिबंधित है, किसी भी निवेशक के पास किसी बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी के पास गिल्ट खाता खोलने का विकल्प है जो भारतीय रिज़र्व बैंक के पास ग्राहक का सहायक सामान्य लेजर खाता (सीएसजीएल खाता) खोल सकता है इस व्यवस्था में बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी, गिल्ट खाता धारक के अभिरक्षक के रूप में अपने ग्राहक की धारिताओं को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास सीएसजीएल खाते में रखेगा (जो एसजीएल II खाते के नाम से भी जाना जाता है) गिल्ट खाते में रखी प्रतिभूतियों की सर्विसिंग इलैक्टॉनिक रूप में की जाती है, बाधारहित व्यापार और प्रतिभूतियों का रखरखाव किया जाता है परिपक्वता आय और आवधिक ब्याज भी तेजी से आता है तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास प्राथमिक व्यापारी/ अभिरक्षक (सीएसजीएल खाताधारक) के चालू खाते में जमा हो जाती है तथा तत्काल अभिरक्षक द्वारा गिल्ट खाता धारकों के खाते में जमा कर दी जाती है
7.2. निवेशकों के पास सरकारी प्रतिभूतियाँ निक्षेपागार (एनएसडीएल/सीडीएसएल इत्यादि) के पास डीमैट खाते में रखने का विकल्प रहता है इससे स्टॉक एक्सचेंजों में सरकारी प्रतिभूतियों का कारोबार सुविधाजनक होता है
- 8. सरकारी प्रतिभूतियों में कारोबार कैसे होता है ?
8.1. सरकारी प्रतिभूतियों में एक सक्रिय द्वितीयक बाजार है द्वितीय बाजार में प्रतिभूतियों की खरीद/बिक्री (i) काउंटर पर (ओटीसी) अथवा (ii) तयशुदा लेन-देन प्रणाली (एनडीएस) अथवा (iii) तयशुदा लेन-देन प्रणाली - आदेश मैंचिंग (एनडीएस-ओएम) पर की जा सकती है
(i) काउंटर पर (ओटीसी)/टेलीफोन बाजार
8.2. इस बाजार में, कोई सहभागी, जो सरकारी प्रतिभूति खरीदने अथवा बेचने का इच्छुक है, किसी बैंक/प्राथमिक व्यापारी/वित्तीय संस्थान से सीधे ही अथवा सेबी के पास पंजीकृत किसी ब्रोकर से संपर्क करके किसी मूल्य पर एक विशेष प्रतिभूति की किसी राशि तक मोल-भाव कर सकता है ये मोलभाव अधिकांशतः फोन पर होते हैं और किसी दर पर दोनों पक्षों के तैयार होने पर सौदा तय हो जाता है क्रेता के मामले में, यथा एक शहरी सहकारी बैंक प्रतिभूति खरीदना चाहता है तो बैंक का व्यापारी (जे बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के लेन-देन के लिए प्राधिकृत है) अन्य बाजार सहभागियों से फोन पर संपर्क करेगा तथा दरें प्राप्त करेगा यदि कोई सौदा तय होता हे तो बैंक इस व्यापार का ब्योरा सौदा पर्ची में दर्ज करेगा (नमूना परिशिष्ट 3 में दिया गया है ) तथा प्रतिपक्ष को व्यापार की पुष्टि करेगा व्यापारी को उद्धृत मूल्य के संबंध में उपलब्ध ñाोतों से मूल्य की पुष्टि करनी चाहिए (सरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य सुनिश्चित करने के संबंध में प्रश्न सं.14 देखें) ओटीसी बाजार में किए गए सभी कारोबार एनडीएस के द्वितीयक बाजार मॉडîाूल में रिपोर्ट किए जाते हैं जिनका ब्योरा प्रश्न सं.15 में दिया गया है
(ii) तयशुदा लेन-देन प्रणाली
8.3. इलैक्ट्रॉनिक कारोबार तथा सरकारी प्रतिभूतियों में लेन-देन की रिपो\टग के लिए तयशुदा लेन-देन प्रणाली (एनडीएस) फरवरी 2002 में लागू हुई थी नीलामी होने पर इससे सदस्यों को अपनी बोली इलैक्ट्रानिक रूप से प्रस्तुत करने अथवा सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गम के लिए बोलियाँ अथवा आवेदन करने में सुविधा होती है एनडीएस से लोक ऋण कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई की प्रतिभूति समायोजन प्रणाली के समक्ष आकर द्वितीयक बाजार में आयोजित सरकारी प्रतिभूतियों (दोनों सीधे और रिपो) में लेन-देन के समायोजन को सुविधाजनक बनाता है एनडीएस की सदस्यता केवल उन सदस्यों तक सीमित है जिनके एसजीएल तथा/अथवा चालू खाते भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई में हैं
8.4. अगस्त 2005 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने एनडीएस मॉडîाूल में "ऑर्डर मैचिंग" आधारित नामरहित क्रीन लागू की जिसका नाम एनडीएस-ओएम है यह एक आदेश से चलने वाली इलैक्ट्रॉनिक प्रणाली है जहाँ सहभागी बिना नाम बताए सिस्टम पर आदेश दे सकते हैं अथवा अन्य सहभागियों के आदेश स्वीकार कर सकते हैं एनडीएस-ओएम का परिचालन भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से भारतीय समाशोधन निगम लिमि. (सीसीआइएल) द्वारा किया जाता है (कृपया सीसीआइएल के बारे में प्रश्न सं.19 का उत्तर देखें) वर्तमान में एनडीएस-ओएम प्रणाली तक केवल चयनित वित्तीय संस्थाओं की पहुँच है, यथा वाणिज्य बैंक, प्राथमिक व्यापारी, बीमा कंपनियाँ, पारस्परिक निधियाँ इत्यादि अन्य सहभागी अपने अभिरक्षक, अर्थात जिसके पास उनका गिल्ट खाता है, के माध्यम से इस प्रणाली तक पहुँच सकते हैं अभिरक्षक अपने ग्राहकों, जैसे शहरी सहकारी बैंकों की ओर से आदेश दे सकते हैं एनडीएस-ओएम का लाभ मूल्य पारदर्शिता के साथ-साथ बेहतर मूल्य मिलना है
8.5. गिल्ट खाता धारकों को अपने अभिरक्षक संस्थान के माध्यम से एनडीएस तक अप्रत्यक्ष पहुँच प्रदान की गई है कोई सदस्य (जिसकी सीधी पहुँच है) एनडीएस पर सरकारी प्रतिभूतियों में गिल्ट खाताधारक के लेन-देन रिपोर्ट कर सकता है इसी प्रकार, गिल्ट खाताधारकों को एनडीएस-ओएम तक अप्रत्यक्ष रूप से पहुँच उनके अभिरक्षकों के माध्यम से दी गई है तथापि, एक ही अभिरक्षक के दो गिल्ट खाताधारकों को आपस में रिपो लेन-देन की अनुमति नहीं हैं
(iii) स्टॉक एक्सचेंज
8.6. सरकारी प्रतिभूतियों में कारोबार की सुविधा स्टॉक एक्सचेंजों (एनएसई और बीएसई) में भी उपलब्ध है जो खुदरा निवेशकों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं
- 9. सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रमुख रूप से कौन भाग लेते हैं ?
सरकारी प्रतिभूति बाजार के प्रमुख सहभागी वाणिज्य बैंक और प्राथमिक व्यापारियों के साथ-साथ संस्थागत निवेशक यथा बीमा कंपनियाँ हैं सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्राथमिक व्यापारियों की भूमिका बाजार को संतुलित करने की है अन्य सहभागियों में सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, पारस्परिक निधियाँ, भविष्य और पेंशन निधियाँ शामिल हैं विदेशी संस्थागत निवेशकों को समय-समय पर निर्धारित मात्रात्मक सीमाओं में सरकारी प्रतिभूति बाजार में भाग लेने की अनुमति है कंपनियाँ भी अपने समग्र संविभाग जोखिम के प्रबंधन के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद/बिक्री करती हैं
- 10. सरकारी प्रतिभूतियों में कारोबार कर रहे सहकारी बैंकों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित "करने योग्य" और "न करने योग्य" बातें क्या हैं ?
प्रतिभूतियों का लेन-देन करते समय शहरी सहकारी बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए शहरी सहकारी बैंकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में लेन-देन पर दिशनिर्देशों को 1 जुलाई 2009 के मास्टर परिपत्र यूबीडी.बीपीडी(पीसीबी).एमसी.सं.12/16.20.000/2009-10 में कूटबद्ध किया गया है जिसे समय-समय पर अद्यतन किया जाता है यह परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट में "अधिसूचनाएँ" के अंतर्गत मास्टर परिपत्र खण्ड में (प्ूूज्://ींi.दीु.iह/ेम्ीiज्ूे/ँएण्iीम्ल्त्aीIहxDiेज्त्aब्.aेज्z?I्=3686) में देखा जा सकता है शहरी सहकारी बैंकों द्वारा ध्यान में रखे जाने वाले दिशानिर्देशों में उनके निदेशक मंडल द्वारा विधिवत अनुमोदित एक निवेश नीति तैयार करने से संबंधित है जिसमें नीति के उद्देश्य, प्राधिकरण और सौदों के लिए प्रक्रिया, ब्रोकरों के माध्यम से लेन-देन, ब्रोकरों का पैनल तैयार करना तथा वार्षिक आधार पर उसकी समीक्षा तथा प्रत्येक ब्रोकर के माध्यम से लेन-देन के लिए विवेकपूर्ण सीमा निर्धारण इत्यादि को परिभाषित किया गया हो
करने योग्य अथवा न करने योग्य महत्वूपर्ण बातें नीचे बाक्स 1 में प्रस्तुत हैं
बॉक्स 1
सरकारी प्रतिभूतियों में कारोबार के लिए करने योग्य तथा न करने योग्य बातें करने योग्य बातें
- कारोबारी और बैक अप कार्यो को अलग-अलग करना क्रय-विक्रय और लेन-देन के बारे में निर्णय करने वाले अधिकारी समायोजन तथा लेखांकन के लिए उत्तरदायी अधिकारियों से अलग होने चाहिए
- सभी लेन-देनों की निगरानी यह देखने के लिए करना कि सुपुर्दगी उसी दिन हो जाए निधि खाते और निवेश खाते का समायोजन उसी दिन कार्य समाप्ति से पहले होना चाहिए
- प्राप्त/जारी एसजीएल फार्मो का रिकार्ड रखना ताकि उनकी आंतरिक नियंत्रण प्रणाली/भारतीय रिजर्व बैंक निरीक्षकों/अन्य लेखा परीक्षकों को जांच करने में सुविधा हो
- एक अनुसूचित वाणिज्य बैंक (एससीबी), प्राथमिक व्यापारी (पीडी) अथवा एक वित्तीय संस्था (एफआइ) को लेन-देनों के लिए प्रतिपक्ष रखें
- प्रतिपक्षों के साथ प्रत्यक्ष सौदों को वरीयता दें
- प्रतिभूतियाँ रखने के लिए सीएसजीएल/गिल्ट खातों का उपयोग करें तथा ऐसे खाते उसी बैंक में रखें जहाँ नकदी खाता अनुरक्षित किया हो
- सभी लेन-देनों के लिए सुपुर्दगी बनाम लेन-देन पर जोर दें
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित प्राथमिक नीलामी में भारत सरकार की प्रतिभूतियों के अभिग्रहण के लिए गैर स्पर्धी बोली सुविधा का लाभ लें
- यदि सौदा ब्रोकर के माध्यम से किया जा रहा है तो तो उसकी भूमिका दोनों पक्षों को सौदा करने के लिए लाने तक ही सीमित रखें
- अनुमोदित ब्रोकरों की सूची रखें माध्यस्थों के रूप में काम करने के लिए एनएसई अथवा बीएसई अथवा ओटीसीईआइ के पास पंजीकृत ब्रोकरों का ही उपयोग करें
- प्रत्येक अनुमोदित ब्रोकर के लिए समग्र उच्चतर संविदा सीमा के रूप में वर्ष के दौरान किए जाने वाले कुल लेन-देनों की 5% सीमा रखें कारोबार के ऐसे भाग को केवल एक या कुछ ब्रोकरों के माध्यम से नहीं करना चाहिए जो अनुपात के अनुरूप न हो
- सीएसजीएल खाता धारक के पास अनुरक्षित एसजीएल खाते या गिल्ट खाते में डीमैट रूप में ही सरकारी प्रतिभूतियों को रखा जाए और लेन-देन किया जाए
- केवल एक गिल्ट अथवा डीमैट खाता खोलें
- जिस अनुसूचित वाणिज्य बैंक अथवा राज्य सहकारी बैंक के पास गिल्ट खाता अनुरक्षित है, उसी बैंक में प्रतिभूतियों के लेन-देन के लिए निधि खाता खोला जाए
- लेन-देन करने से पहले बिक्री के लिए गिल्ट खाते में पर्याप्त प्रतिभूतियाँ तथा क्रय के लिए नामित निधि खाते में पर्याप्त निधि उपलब्धता सुनिश्चित करें
- अनुमतिप्राप्त गैर एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश के लिए विवेकपूर्ण सीमा का पालन करें (राष्ट्रीयकृत बैंकों के बॉण्ड, सूचीबद्ध न की गई प्रतिभूतियाँ, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के सूचीबद्ध न किए गए शेयर तथा निजी रूप से जारी की गई ऋण प्रतिभूतियाँ)
- निदेशक मंडल को कम से कम माह में एक बार सभी निवेश लेन-देनों को ध्यान से पढ़ना चाहिए
न करने योग्य बातें
- किसी भी ब्रोकिंग फर्म अथवा अन्य मध्यस्थों से सीधे आधार पर कोई क्रय/विक्रय लेन-देन न करें
- समायोजन प्रक्रिया में ब्रोकरों का प्रयोग न करें अर्थात निधि का समायोजन और प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी केवल प्रति-पक्ष से सीधे ही करनी चाहिए
- मुद्रा और प्रतिभूति बाजारों में अपनी ओर से लेन-देन करने के लिए किसी भी स्थिति में ब्रोकरों/मध्यस्थों को मुख्तारनामा अथवा अन्य कोई प्राधिकार न दें
- किसी भी ब्रोकर के साथ भौतिक रूप से सरकारी प्रतिभूतियों का लेन-देन न करें
- सहकारी क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य किसी कंपनी अथवा निकाय द्वारा जारी गैर एसएलआर प्रतिभूतियों में (अर्थात कार्पोरेट बॉण्डों इत्यादि) लगातार निवेश न करें
- 11. डीलिंग डेस्क द्वारा डीलिंग लेन-लेन किस प्रकार दर्ज किए जाते हैं ?
11.1. कारोबारी डेस्क द्वारा किए गए प्रत्येक लेन-देन के लिए एक "डील स्लिप" का सृजन किया जाना चाहिए जिसमें डील के स्वरूप, प्रतिपक्ष का नाम, क्या ये सीधे डील की गई अथवा ब्रोकर द्वारा (ब्रोकर द्वारा होने पर ब्रोकर का नाम), प्रतिभूति का ब्योरा, राशि, मूल्य, संविदा की तारीख और समय तथा समायोजन की तारीख दी जाए डील स्लिपों को क्रम सं. दी जाए तथा यह सुनिश्चित करने के लिए सत्यापन किया जाए कि प्रत्येक डील स्लिप की गणना की गई है एक बार डील हो जाने पर डील स्लिप तुरंत ही बैक आफिस को (यह प्रंट ऑफिस से अलग होना चाहिए) रिकार्ड और प्रक्रिया के लिए भेज देनी चाहिए प्रत्येक डील के लिए प्रति पक्ष को पुष्टि करनी चाहिए प्रति पक्ष द्वारा अपेक्षित लिखित पुष्टि की रसीद की, जिसमें संविदा का आवश्यक ब्योरा दिया हो, बैक ऑफिस द्वारा निगरानी की जाए एनडीएस-ओएम पर मैच की गई डील की प्रति पक्ष पुष्टि की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एनडीएस-ओएम बेनाम स्वचलित ऑर्डर मैचिंग प्रक्रिया है तथापि, जिन कारोबारों को ओटीसी बाज़ार में अंतिम रूप दिया जाता है और एनडीएस पर रिपोर्ट किया जाता है, सिस्टम अर्थात एनडीएस में प्रतिपक्षों द्वारा पुष्टि भेजी जानी होती है कृपया प्रश्न सं.15 भी देखें
11.2. यदि कोई डील ब्रोकर के माध्यम से होती है, ब्रोकर द्वारा काउंटर पार्टी का स्थानापन्न नहीं होना चाहिए इसी प्रकार, किसी भी स्थिति में किसी डील में बेची/खरीदी गई प्रतिभूति को किसी अन्य प्रतिभूति से बदलना नहीं चाहिए किसी व्यक्ति द्वारा अपराध रोकने के लिए एक "मेकर-चैकर" ढाँचा लागू किया जाना चाहिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रणाली में मेकर (जो डेटा निविष्टियाँ करता है) और चैकर (जो सत्यापित करके आँकड़े प्राधिकृत करता है) का काम एक ही व्यक्ति न करे
11.3 बैक ऑफिस द्वारा पारित वाउचरों के आधार पर (जो ब्रोकर/प्रतिपक्ष से प्राप्त वास्तविक संविदा नोट के सत्यापन और प्रतिपक्ष द्वारा डील की पुष्टि के बाद करना चाहिए) लेखा बहियाँ स्वतंत्र रूप से बनानी चाहिए
- 12. प्रतिभूति लेन-देन करते समय महत्वपूर्ण बातें क्या हैं ?
प्रतिभूति की खरीद में निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए :-
(i) किस प्रतिभूति में निवेश किया जाए - यह परिपक्वता और कूपन पर निर्भर करता है परिपक्वता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह निर्धारित करता है कि कोई शहरी सहकारी बैंक जैसे निवेशक को कितना जोखिम है - परिपक्वता उच्चतर होने पर ब्याज दर जोखिम अथवा बाजार जोखिम अधिक होगा यदि निवेश सांविधिक अपेक्षा को पूरा करने के लिए है तो अनावश्यक बाजार जोखिम न लेने तथा कम अवधि वाली प्रतिभूतियाँ खरीदने का परामर्श दिया जाता है न्यूनतर परिपक्वता अवधि में (5-10 वर्ष) ऐसी प्रतिभूतियाँ खरीदनी सुरक्षित होंगी जो तरल हैं अर्थात जिनका बाजार में अपेक्षाकृत बड़ी राशि में लेन-देन होता है ऐसी प्रतिभूतियों की जानकारी सीसीआइएल की वेबसाइट (प्ूूज्://ैैै.म्म्iत्iह्ia.म्दस्/ध्श्श्ेंण्उ.aेज्x) से प्राप्त की जा सकती है, जो एनडीएस-ओएम पर तुरंत द्वितीयक बाजार के व्यापार आँकड़े प्रदान करता है चूंकि तरल प्रतिभूतियों में मूल्यन अधिक पारदर्शी है, इन प्रतिभूतियों का मूल्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है जिससे इन मामलों में मूल्य के बारे में गलत जानकारी के अवसर कम हो जाते हैं प्रतिभूति की कूपन दर भी निवेशक के लिए उसी प्रकार महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रतिभूति से कुल वापसी को प्रभावित करती है यह निर्णय लेने के लिए कि कौन सी प्रतिभूति खरीदी जाए, निवेशक को प्रतिभूति की परिपक्वता पर आय (वाइटीएम) भी देखना चाहिए (वाइटीएम पर विस्तृत चर्चा के लिए पैरा 24.4 के अंतर्गत बॉक्स III देखें) अतः एक बार परिपक्वता और आय का निर्णय होने पर शहरी सहकारी बैंक एनडीएस-ओएम पर व्यापारित प्रतिभूति की मूल्य/आय संबंधी जानकारी देखने के बाद अथवा बैंक अथवा प्राथमिक व्यापारी अथवा ब्रोकर से मोल भाव करके प्रतिभूति का चयन करें
(ii) कहाँ से और किससे खरीदें - पारदर्शी मूल्यन के अनुसार एनडीएस-ओएम सबसे अधिक सुरक्षित है क्यों कि यह गतिशील और बेनामी मंच है जहाँ कारोबार का प्रसार होता है तथा व्यापार के प्रति-पक्ष सामने नहीं आते यदि ये व्यापार टेलीफोन बाजार पर आयोजित किए जाते हैं तो किसी बैंक अथवा पीडी से सीधे व्यापार करना सुरक्षित है यदि ब्रोकर का उपयोग करते हैं तो यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी बरतनी पड़ेगी कि ब्रोकर एनएसई, बीएसई अथवा भारत की ओटीसी एक्सचेंज में पंजीकृत है सामान्यतया सक्रिय ऋण बाजार ब्रोकर उन सौदों के इच्छुक नहीं होंगे जो बाजार के हिस्से से कम होंगे (सामान्यतया 5 करोड़) अतः किसी बैंक, पीडी अथवा एनडीएस-ओएम पर सौदा करना बेहतर होगा जिसमें विषम मात्रा के लिए भी क्रीन उपलब्ध है जहाँ भी ब्रोकर का उपयोग किया जाता है, वहाँ ब्रोकर के माध्यम से निपटान नहीं किया जाना चाहिए किसी बैंक, पीडी अथवा वित्तीय संस्था को छोड़कर किसी अन्य पार्टी से कारोबार नहीं किया जाना चाहिए ताकि विपरीत मूल्य के जोखिम से बचा जा सके
(iii) सही मूल्यन कैसे सुनिश्चित किया जाए - चूंकि शहरी सहकारी बैंक जैसे छोटे निवेशकों की अपेक्षाएँ कम होती हैं, उन्हें वह मूल्य मिल सकता है जो मानक बाजार माँग से खराब हो मूल्य की सुनिश्चितता देखते हुए खरीदने के लिए केवल तरल प्रतिभूतियों का चयन किया जाए कम अपेक्षा वाले निवेशकों के लिए सुरक्षित विकल्प गैर स्पर्धी मार्ग के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित प्राथमिक नीलामी में खरीदना होगा चूंकि बॉण्ड नीलामी प्रत्येक माह में दो बार होती है, खरीद को नीलामी के साथ जोड़ा जा सकता है कृपया सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्य सुनिश्चित करने पर ब्योरे के लिए प्रश्न सं.14 देखें
- 13. सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्य में परिवर्तन क्यों होता है ?
सरकारी प्रतिभूति का मूल्य, अन्य वित्तीय लिखतों के समान, द्वितीयक बाजार में परिवर्तित होता रहता है यह मूल्य प्रतिभूतियों की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है विशेष रूप से सरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों के स्तर और परिवर्तनों से प्रभावित होता है यथा मुद्रास्फीति अनुमानित दर, बाजार में चलनिधि की स्थिति इत्यादि अन्य बाजारों जैसे, मुद्रा, विदेशी मुद्रा, ऋण और पूंजी बाजारों की गतिविधियों से भी सरकारी प्रतिभूति का मूल्य प्रभावित होता है साथ ही, अन्तर्राष्ट्रीय बॉण्ड बाजारों, विशेष रूप से अमरीकी खजाने से भारत में सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्य प्रभावित होते हैं भारतीय रिज़र्व बैंक की नीति संबंधी कार्रवाई (यथा रिपो दर, नकदी प्रारक्षित अनुपात, खुले बाजार के परिचालन इत्यादि जैसे नीतिगत ब्याज दरों में परिवर्तन से संबंधित धोषणाओं से) से भी सरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य प्रभावित होता है
- 14. सरकारी प्रतिभूति के मूल्य के बारे में जानकारी कैसे प्राप्त होती है ?
14.1. किसी प्रतिभूति पर प्रतिफल दो धटकों का मिश्रण है (i) कूपन आय - अर्थात प्रतिभूति पर अर्जित ब्याज तथा (ii) मूल्य परिवर्तित होने प्रतिभूति पर लाभ/हानि तथा पुनःनिवेश लाभ अथवा हानि
14.2. सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदने और बेचने के इच्छुक किसी निवेशक के लिए मूल्य सूचना महत्वपूर्ण है प्रतिभूतियों के व्यापारित मूल्य संबंधी सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट प्ूूज्://ैैै.ींi.दीु.iह के तहत प्दस → इiहaहम्iaत् श्aीवू ेंaूम्प् → उदvाीहसहू एाम्ल्ीiूiो श्aीवू → NDए में उपलब्ध है इस तालिका में बाजार में किए गए अद्यतन व्यापार तथा मूल्य निहित है साथ ही, व्यापार संबंधी सूचना सीसीआइएल की वेबसाइट प्ूूज्://ैैै.म्म्iत्iह्ia.म्दस्/ध्श्प्दस.aेज्x पर देखी जा सकती है इस पेज को भारतीय रिज़र्व बैंक की साइट में उपलब्ध लिंक के माध्यम से भी देखा जा सकता है इस पेज में, प्रतिभूतियों की सूची और व्यापार का सारांश दर्शाया गया है उस दिन की कुल व्यापारित राशि (टीटीए) प्रत्येक प्रतिभूति के सामने दर्शायी गई है अधिकतम टीटीए वाली प्रतिभूतियों को तरल प्रतिभूतियाँ कहते हैं इन प्रतिभूतियों का मूल्यन सक्षम है तथा इस प्रकार शहरी सहकारी बैंक अपने लेन-देनों में इन प्रतिभूतियों का चयन कर सकते हैं चूंकि मूल्य क्रीन पर उपलब्ध हैं, वे अपने अभिरक्षक के माध्यम से चालू मूल्यों पर इन प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं इस प्रकार सहभागी व्यापारित मूल्यों पर तत्काल जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदते/बेचते समय सही निर्णय ले सकते हैं उक्त वेबसाइटों के क्रीनशॉट्स नीचे दिए गए है :-
एनडीएस बाजार
एनडीएस-ओएम बाजार
स्थायी आय, मुद्रा बाजार और डेरिवेटिव संध (फिमडा) की वेबसाइट (ैैै.िiस्स््a.दीु) भी मूल्य सूचना, विशेष रूप से उन प्रतिभूतियों पर, जिन पर लगातार व्यापार नहीं किया जाता का ñाोत है
- 15. सरकारी प्रतिभूति लेन-देन को कैसे रिपोर्ट किया जाता है ?
15.1. बाजार सहभागियों के बीच ओटीसी/टेलीफोन बाजार में हुए लेन-देनों से संबंधित सूचना टेलीफोन पर सौदा होने के 15 बाद एनडीएस मंच को देनी होती है यह अपेक्षित है कि सभी ओटीसी व्यापार समायोजन के लिए एनडीएस के द्वितीयक बाजार मॉडîाूल में आवश्यक रूप से सूचित किए जाने चाहिए एनडीएस पर रिपो\टग चार चरणों में की जाने वाली प्रक्रिया है जिसमें प्रतिभूति के विक्रेता द्वारा पुष्टि किए जाने पर क्रेता द्वारा रिपो\टग करनी होती है इसके पश्चात विक्रेता के बैक ऑफिस द्वारा प्रणाली पर पुष्टि जारी करने के बाद अंतिम चरण में सौदे की पुष्टि क्रेता के बैक ऑफिस द्वारा किए जानेपर पूरी होगी प्रणाली का ढाँचा "मेकर-चैकर" मॉडल से बना है जिससे व्यक्ति की गलतियों के साथ-साथ अपराधों को रोका जा सके
15.2. अभिरक्षकों के पास गिल्ट खाते रखने वाली संस्थाओं की ओर से रिपो\टग संबंधित अभिरक्षक द्वारा उसी प्रकार की जाती है जैसे कि वे अपने व्यापारों अर्थात मालिकाना व्यापारों के लिए करते हैं इन व्यापारों का प्रतिभूति चरण अभिरक्षक के सीएसजीएल खाते में समायोजित किया जाता है एक बार रिपो\टग पूरी होने पर एनडीएस प्रणाली व्यापार को स्वीकार कर लेती है इस प्रकार सभी सफल व्यापारों संबंधी सूचना समाशोधन गृह अर्थात सीसीआइएल को भेजी जाती है
15.3. एनडीएस-ओएम के संबंध में सहभागी प्रणाली पर आदेश (मूल्य और मात्रा) देते हैं सहभागी अपना आदेश संशोधित/निरस्त कर सकते हैं यह आदेश खरीद के लिए बोली अथवा बिक्री के लिए ऑफर हो सकता है इसके बाद प्रणाली आदेशों को मूल्य और समय की प्राथमिकता से मैच करेगी अर्थात यह बोली और उसी मूल्य के ऑफर को समय की प्राथमिकता से मैच करेगी एनडीएस-ओएम प्रणाली में केद्र सरकार, राज्य सरकार और खजाना बिलों के कारोबार के लिए अलग क्रीन है साथ ही, छोटे सहभागियों को व्यापार में सुविधा देने के लिए 5 करोड़ रू. (अर्थात मानक बाजार लॉट) से कम राशि के व्यापार की सुविधा भी है एनडीएस-ओएम मंच एक ऐसा मंच है जिसमें सहभागियों को कारोबार के प्रतिपक्ष की जानकारी नहीं होती है एक बार आदेश मैच होने पर डील टिकट स्वतः ही सृजित हो जाती है और कारोबार का ब्योरा सीसीआइएल को चला जाता है प्रणाली द्वारा नाम न बताए जाने के कारण मूल्य पर सहभागी के आकार और साख का प्रभाव नहीं पड़ता है
- 16. सरकारी प्रतिभूति लेन-देन किस प्रकार तय होते हैं ?
प्राथमिक बाजार
16.1. प्राथमिक नीलामी में एक बार आबंटन प्रक्रिया पूरी होने पर सफल सहभागियों को सरकार को अदा करने के लिए निमित्त राशि सूचित की जाती है जो उन्हें समायोजन के दिन देनी होती है दिनांकित प्रतिभूति नीलामी के लिए समायोजन चक्र टी+1 है जबकि खजाना बिलों के लिए टी+2 है समायोजन के दिन सहभागियों के निधि खाते उनकी निमित्त राशि से नामे डाले जाते हैं तथा उन्हें आबंटित की गई प्रतिभूतियों की राशि उनके प्रतिभूति खाते (एसजीएल खाते) में जमा कर दी जाती है
द्वितीयक बाजार
16.2. सरकारी प्रतिभूतियों से संबंधित लेन-देन भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अनुरक्षित सदस्य के प्रतिभूति/चालू खातों के माध्यम से प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी और भुगतान निवल आधार पर किया जाता है भारतीय समाशोधन निगम लिमि. (सीसीआइएल) निपटान की तारीख को दायित्व नवीयन की प्रक्रिया से प्रत्येक कारोबार के लिए केद्रीय प्रति पक्ष बन कर कारोबार का समायोजन करता है अर्थात वह क्रेता के लिए विक्रेता और विक्रेता के लिए क्रेता बन जाता है
16.3 सरकारी प्रतिभूतियों में प्रत्यक्ष रूप से द्वितीयक बाजार लेन-देन टी+1 आधार पर समायोजित किए जाते हैं तथापि सरकारी प्रतिभूतियों में रिपो लेन-देन के संबंध में बाजार सहभागियों के पास पहला चरण टी+0 अथवा टी+1 पर, उनकी आवश्यकता के अनुसार, समायोजित करने का विकल्प रहेगा
- 17. कामबंदी अवधि क्या है ?
"कामबंदी अवधि" का तात्पर्य उस अवधि से है जब प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी नहीं होती इस अवधि के दौरान उन प्रतिभूतियों के समायोजन/सुपुर्दगी की अनुमति नहीं होगी जो "कामबंदी" में है कामबंदी अवधि का मुख्य प्रयोजन प्रतिभूतियों की सर्विसिंग करना है जैसे कूपन के भुगतान और शोधन आय को अंतिम रूप देना तथा इस प्रक्रिया के दौरान प्रतिभूतियों के स्वामित्व में किसी परिवर्तन को रोकना है वर्तमान में एसजीएल में धारित प्रतिभूतियों के लिए कामबंदी अवधि एक दिन है उदाहरणार्थ प्रतिभूति 6.49% जीएस 2015 के लिए कूपन भुगतान की तारीख प्रत्येक वर्ष 8 जून और 8 दिसंबर है इस प्रतिभूति के संबंध में कामबंदी अवधि 7 जून और 7 दिसंबर होगी तथा इस प्रतिभूति के संबंध में समायोजन के लिए कारोबार की इन दो तारीखों को अनुमति नहीं होगी
- 18. सुपुर्दगी बनाम भुगतान (Dvझ) समायोजन क्या है?
प्रतिभूतियों के समायोजन का स्वरूप सुपुर्दगी बनाम भुगतान (Dvझ) है, जहाँ प्रतिभूतियों और निधि का अंतरण साथ-साथ होता है इससे यह सुनिश्चित होता है कि जब तक भुगतान नहीं होता, प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी नहीं होती तथा यह इसके विपरित भी लागू होता है Dvझ समायोजन से लेन-देन में समायोजन जोखिम समाप्त हो जाता है तीन प्रकार के Dvझ समायोजन हैं, यथा Dvझ I, II और III जो नीचे स्पष्ट किए गए हैं :-
(i) Dvझ I - प्रतिभूतियों और लेन-देन के चरण का समायोजन सकल आधार पर होता है, अर्थात समायोजन एक-एक लेन-देन पर, सहभागियों के भुगतान योग्य और प्राप्य राशि की नेटिंग किए बिना, होता है
(ii) Dvझ II - इस तरीके में प्रतिभूतियों का समायोजन सकल आधार पर होता है जबकि निधि का समायोजन नेट आधार पर होता है अर्थात किसी पार्टी के सभी देय और प्राप्य लेन-देनों की नेटिंग करके भुगतान अथवा प्राप्त करने की स्थिति पर पहुँच कर समायोजन किया जाता है
(iii) Dvझ III - इस तरीके में प्रतिभूतियों और निधि, दोनों चरणों को नेट आधार पर समायोजित किया जाता है तथा किसी सहभागी द्वारा किए गए सभी लेन-देनों की अंतिम निवल स्थिति पर ही समायोजन किया जाता है
सकल प्रणाली में तरलता अपेक्षा निवल प्रणाली से अधिक होती है क्योंकि निवल प्रणाली में देय और प्राप्य राशि एक दूसरे के साथ समायोजित हो जाती है
परिशिष्ट - 1
[सम्पादन]परिशिष्ट - 2
[सम्पादन]प्राथमिक व्यापारियों की सूची
(क)
बैंक पीडी फोन नं.
1. सिटि बैंक एनए., मुंबई शाखा (022) 40015453/40015378
2. स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (022) 622303/22652875/22683695
3. बैंक ऑफ अमरीका एन.ए. (022) 66323040/3140/3192
4. जे.पी. मॉरगन चेज़ बैंक एन.ए. (022) 6639 3084/66392944
5. एचएसबीसी बैंक (022) 22623329/22681031/34/33
6. बैंक ऑफ बड़ौदा (022) 66363682/83
7. केनरा बैंक (022) 22800101-105/22661348
8. कोटक महिद्रा बैंक लिमि. (022) 67836107 & 66596235/ 6454
9. कार्पोरेशन बैंक (022) 22832429/22022796/ 22871054
10. एचडीएफसी बैंक (022) 66521372/9892975232
11. एबीएन अमरो बैंक एन.वी. (022) 66386132/128
(ख) स्वतंत्र पीडी
1. आडीबीआइ गिल्ट्स (022) 66177900/911
2. आसीआसीआइ सिक्यू. पीडी लिमि. (022) 66377421/22882460/70
3. पीएनबी गिल्ट्स लिमि. (022) 22693315/17
4. एसबीआइ डीएफएचआइ लिमि. (022) 22610490/66364696
5. एसटीसीआइपीडी लिमि. (022) 66202261/2200
6. डîाूश सिक्यूरिटीज़ (इं.) प्रा. लिमि. (022) 67063068/3066/67063115
7. मॉरगन स्टेनले प्राइमरी डीलर प्रा. लिमि. (022) 22096600
8. नोमुरा फिक्स्ड इंकम सिक्यूरिटीज़ प्रा. लिमि. (022) 67855111/ 67855118
- बैंक पीडी वे हैं जो बैंक के भाग के रूप में पीडी कारोबार विभागीय रूप से करते हैं
- स्वतंत्र पीडी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (एनबीएफसी) हैं जो केवल पीडी करोबार ही करते हैं
भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट प्ूूज्://ैैै.ींi.दीु.iह/म्दस्स्दहस्aह/हिंुत्iेप्/एम्ीiज्ूे/झीiस्aीब्अaतीे.aेज्x पर प्राथमिक व्यापारियें की अद्यतनसूची उपलब्ध है
परिशिष्ट - 3
[सम्पादन]5
परिशिष्ट - 4
[सम्पादन]बॉण्ड संबंधी गणना के लिए महत्वपूर्ण एक्सेल कार्य
कार्य
रचनाक्रम
1. वर्तमान मूल्य
पीवी (रेट एनपीईआर, पीएमटी, एफवी, टाइप)
यह फंक्शन बट्टे की दी हुई दर से भविष्य में किए जाने वाले भुगतानों की श्रृंखला के वर्तमान मूल्य जानने के लिए प्रयोग में लाया जाता है
रेट - प्रत्येक अवधि की ब्याज दर है
एनपीईआर - एक वर्ष में भुगतान अवधियों की कुल संख्या है
पीएमटी - प्रत्येक अवधि में किया गया भुगतान है तथा वार्षिकी की अवधि में परिवर्तित नहीं हो सकती
एफवी - भविष्य में होने वाला मूल्य है अथवा अंतिम भुगतान के बाद आप नकदी शेष लेना चाहें यदि एफवी को हटा दिया जाए तो उसे 0 माना जाएगा (उदाहरणार्थ किसी ऋण का भविष्य में होने वाला मूल्य 0 है)
टाइप - 0 अथवा 1 संख्या है और ये निर्दिष्ट करते हैं कि भुगतान कब देय है
टाइप का अर्थ
यदि भुगतान देय है
0 अथवा छोड़ दिया
अवधि के अंत में
1
अवधि के आरंभ में
उदाहरण - तीन वर्ष के लिए प्रत्येक वर्ष के बाद 100 रू. के वर्तमान मूल्य को 9% की ब्याज दर से, इसका मूल्य निम्नानुसार होगा
रेट - 9% अथवा 0.09; एनपीईआर-3 (3 वर्ष); पीएमटी-100; एफवी-0 क्योंकि तीन वर्ष के बाद शेष शून्य होगा ; टाइप-0 (अवधिके अंत में) उत्तर - 253.13 होगा
2. भविष्य में होने वाला मूल्य
एफवी (रेट, एनपीईआर, पीएमटी, पीवी, टाइप)
इस फंक्शन का प्रयोग दी गई ब्याज दर पर किए गए निवेशों की श्रृंखला के भविष्य में मूल्य की गणना के लिए किया जाता है
दर - प्रत्येक अवधिक के लिए ब्याज दर है
एनपीईआर - एक वर्ष में भुगतान अवधियों की कुल संख्या है
पीएमटी - प्रत्येक अवधि में किया गया भुगतान है तथा वार्षिकी की अवधि में परिवर्तित नहीं हो सकती विष्टि रूप से पीएमटी में मूलधन और ब्याज होता है पर अन्य कोई शुल्क या कर नहीं होते यदि पीएमटी को हटा दिया जाए तो पीवी तर्क को शामिल किया जाना चाहिए
पीवी - वर्तमान मूल्य है या एकमुश्त राशि है अर्थात अभी भविष्य में किए जाने वाले भुगतानों की श्रृंखला यदि पीवी को हटा दिया जाए तो उसे 0 माना जाएगा(जीरो) और पीएमटी तर्क को शामिल किया जाना चाहिए
टाइप - 0 अथवा 1 संख्या है और ये निर्दिष्ट करते हैं कि भुगतान कब देय है यदि टाइप हटा दिया जाए तो यह 0 माना जाए
उदाहरण - प्रत्येक वर्ष अदा किए गए 100 रू. के भविष्य मूल्य की तीन वर्ष के लिए 9% की ब्याज दर गणना करने पर मूल्य निम्नानुसार होगा :
दर - 9% अथव 0.09, एनपीईआर-3 (3 वर्ष); पीएमटी-100; पीवी-0; क्योंकि शुरू में कोई एकमुश्त भुगतान नही है; टाइप-1 (अवधि के शुरू होने पर) उत्तर 357.31 होगा
3. कूपन दिवस
ण्ध्UझDAभ्ँए (समायोजन, परिपक्वता, अवधिकता, आधार)
यह फंक्शन कूपन अवधि के शुरू से अंत तक दिनों की संख्या की गणना के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसमें समायोजन तारीख होती है
समायोजन प्रतिभूति की समायोजन तारीख होती है प्रतिभूति समायोजन तारीख, जारी की तारीख के बाद की तारीख होती है जब प्रतिभूति क्रेता को बेची जाती है
परिपक्वता प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख होती है परिपक्वता तारीख वह होती है जिस दिन प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है
आवधिकता का अर्थ प्रति वर्ष कूपन भुगतानों की संख्या है वार्षिक भुगतान के लिए आवधिकता=1; अर्धवार्षिकी के लिए, आवधिकता=2; तिमाही के लिए आवधिकता=4
आधार प्रयोग के लिए गणना के आधार पर दिनों की गिनती होगा दिवस की गणना की परंपरा नीचे दर्शाए अनुसार उपलब्ध कराई जाए
आधार
दिनों की गिनती का आधार
आधार
दिनों की गिनती का आधार
0 अथवा हटाया गया
यूएस (एनएएसडी) 30/360
3
वास्तविक 365
1
वास्तविक/वास्तविक
4
यूरोपियन 30/360
2
वास्तविक/360
उदाहरण - 2 फरवरी 2019 को परिपक्व होने वाली प्रतिभूति जिसकी समायोजन तारीख 27 मई 2009; फार्मूला मूल्य निम्नानुसार होगा :
परिपपक्वता 2/2/2019; समायोजन-25/5/2009/आवधिकता-2 (छमाही कूपन) और आधार 4 (दिन गिनने की परंपरा 30/360)
परिणाम 180 होगा (कूपन अवधि में कूपन दिनें की सं.)
4. ईयरप्रैक
ईयरप्रैक (आरंभ-तारीख, समाप्ति-तारीख, आधार) (अवशेष परिपक्वता प्राप्त करने के लिए)
इस फंक्शन का प्रयोग प्रतिभूति की अवशिष्ट परिपक्वता वर्षो में जाने के लिए किया जाता है
आरंभ - तारीख वह तारीख हे जो आरंभ की तारीख बताती है
समाप्ति - तारी वह तारीख है जो अंत की तारीख बताती है
आधार प्रयोग के आधार पर दिनों की संख्या का स्वरूप है
उदाहरण - 6 फरवरी 2019 को परिपक्व होने वाली प्रतिभूति के लिए 27 मई 2009 को वर्षो में अवशिष्ट परिपक्वता की गणना निम्नानुसार होगी :
आरंभ की तारीख - 27 मई 2009, अंत की तारीख 2/2/2019, आधार-4
परिणाम 9.68 वर्ष होगा
5. मूल्य
मूल्य (समायोजन, परिपक्वता, दर, प्रतिप्ल, शोधन, आवधिकता, आधार)
इस फंक्शन का प्रयोग आवधिक ब्याज देने वाली प्रतिभूति का मूल्य जानने के लिए किया जाता है
समायोजन प्रतिभूति की समायोजन तारीख है प्रतिभूति समायोजन की तारीख वह तारीख होती है जिस तारीख को निधि और प्रतिभूति का आदान-प्रदान होता है
परिपक्वता प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है
दर प्रतिभूति की वार्षिक कूपन दर है
प्रतिपÌल प्रतिभूति की वार्षिक प्रतिप्ल है
शोधन प्रत्येक 100 रू. के अंकित मूल्य पर प्रतिभूति का शोधन मूल्य है
आवधिकता का अर्थ प्रति वर्ष कूपन भुगतानों की संख्या है वार्षिक भुगतान के लिए आवधिकता=1; अर्धवार्षिकी के लिए, आवधिकता=2; तिमाही के लिए आवधिकता=4
आधार प्रयोग के आधार पर दिन गिनने का स्वरूप है
उदाहरण - 6.05% 2019, 2 फरवरी 2019 को परिपक्व होने वाली प्रतिभूति है 1 जून 2009 को द्वितीयक बाजार में इसकी प्रतिप्ल 6.68% है समायोजन तारीख 2 जून 2009 है मूल्य फार्मूला में इसका मूल्य निम्नानुसार होगा
समायोजन - 2/6/2009; परिपक्वता-2/2/2009; दर 6.05%; प्रतिप्ल-6.68%; शोधन-100 (अंकित मूल्य); आवधिकता - 2 (छमाही कूपन); आधार-4
परिणाम 95.55 प्रतिशत होगा
6. प्रतिप्ल
प्रतिप्ल (समायोजन, परिपक्वता, दर, पीआर, शोधन, आवधिकता, आधार)
इस फंक्शन का प्रयोग प्रतिभूति का मूल्य दिए जाने पर प्रतिभूति की परिपक्वता पर प्रतिप्ल निकालने के लिए किया जाता है
समायोजन - प्रतिभूति की समायोजन तारीख है प्रतिभूति समायोजन की तारीख वह तारीख होती है जिस तारीख को निधि और प्रतिभूति का अदान-प्रदान होता है
परिपक्वता - प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है
दर - प्रतिभूति की वार्षिक कूपन दर है
पीआर - प्रति 100 रू. के अंकित मूल्य का प्रतिभूति मूल्य
शोधन - प्रत्येक 100 रू. के अंकित मूल्य पर प्रतिभूति का शोधन मूल्य है
आवधिकता का अर्थ प्रति वर्ष कूपन भुगतानों की संख्या है वार्षिक भुगतान के लिए आवधिकता=1; अर्धवार्षिकी के लिए, आवधिकता=2; तिमाही के लिए आवधिकता=4
आधार - प्रयोग के आधार पर दिन गिनने का स्वरूप है
ऊपर दिए गए उसी उदाहरण को लेते हुए तथा 95.55 रू. के मूल्य पर प्रतिप्ल का परिणाम 6.68% होगा
7. अवधि
अवधि (समायोजन, परिपक्वता, कूपन, प्रतिप्ल, आवधिकता, आधार)
इस फंक्शन का प्रयोग प्रतिभूति की अवधि वर्षो की संख्या में जानने के लिए किया जाता है
समायोजन प्रतिभूति की समायोजन तारीख है प्रतिभूति समायोजन की तारीख वह तारीख होती है जिस तारीख को निधि और प्रतिभूति का अदान-प्रदान होता है
परिपक्वता - प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है
कूपन - प्रतिभूति की वार्षिक कूपन दर है
प्रतिप्ल - प्रतिभूति की वार्षिक प्रतिप्ल है
आवधिकता का अर्थ प्रति वर्ष कूपन भुगतानों की संख्या है वार्षिक भुगतान के लिए आवधिकता=1; अर्धवार्षिकी के लिए, आवधिकता=2; तिमाही के लिए आवधिकता=4
आधार प्रयोग के आधार पर दिन गिनने का स्वरूप है
उदाहरण - 6.05% 2019, 2 फरवरी 2019 को परिपक्व होने वाली प्रतिभूति है 1 जून 2009 को द्वितीयक बाजार में इसकी प्रतिप्ल 6.68% है समायोजन तारीख 2 जून 2009 है अवधि फार्मूला में मूल्य निम्नानुसार होगा समायोजन-2-6-2009; परिपक्वता-2-2-2019; दर-6.05%; प्रतिप्ल-6.68%; आवधिकता-2 (छमाही कूपन); आधार-4
परिणाम 7.25 वर्ष होगा
8. संशोधित अवधि
संशोधित अवधि (समायोजन, परिपक्वता, कूपन, प्रतिप्ल, आवधिकता, आधार)
इस प्ंक्शन का प्रयोग प्रतिभूति की संशोधित अवधि जानने के लिए किया जाता है
समायोजन - प्रतिभूति की समायोजन तारीख है प्रतिभूति समायोजन की तारीख वह तारीख होती है जिस तारीख को निधि और प्रतिभूति का अदान-प्रदान होता है
परिपक्वता - प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है
कूपन - प्रतिभूति की वार्षिक कूपन दर है
प्रतिप्ल - प्रतिभूति की वार्षिक प्रतिप्ल है
आवधिकता का अर्थ प्रति वर्ष कूपन भुगतानों की संख्या है वार्षिक भुगतान के लिए आवधिकता=1; अर्धवार्षिकी के लिए, आवधिकता=2; तिमाही के लिए आवधिकता=4
आधार - प्रयोग के आधार पर दिन गिनने का स्वरूप है
ऊपर दिए अनुसार वही उदाहरण लेते हुए एक्सेल फंक्शन में उक्त अवधि और मूल्य देते हुए फार्मूले का परिणाम 7.01 होगा
परिशिष्ट-5
[सम्पादन]महत्वपूर्ण शब्दावली और सामान्यतया प्रयोग होने वाली बाजार शब्दावली
उपचित ब्याज
बॉण्ड पर उपचित ब्याज, ब्याज की वह राशि है जो पिछले कूपन भुगतान के बाद संचित हुई है ब्याज अर्जित किया गया है पर चूंकि कूपन का भुगतान केवल कूपन तारीखों को किया जाता है, अतः निवेशक को अभी धन का लाभ नहीं मिला है भारत में सरकारी प्रतिभूतियों की दिन गिनने की परंपरा 30/360 है
बोली मूल्य/प्रतिप्ल
प्रतिभूति के लिए संभाव्य क्रेता द्वारा लगाया जाने वाला मूल्य/प्रतिप्ल
विनिमय दर के पहले तीन अंक (बिग फिगर)
जब मूल्य 102.35 लगाया गया है, दशमलव से इतर भाग (102) को बिग फिगर कहते हैं
स्पर्धी बोली
नीलामी में बोलीकर्ता द्वारा लगाए गए मूल्य को स्पर्धी बोली कहा जाता है
कूपन
प्रतिभूति के अंकित मूल्य के आधार पर गणना किए गए अनुसार ऋण प्रतिभूति पर अदा की गई ब्याज की दर
कूपन अंतराल
ऋण प्रतिभूति की अवधि में लगातार नियमित अंतरालों पर किया गया कूपन भुगतान जो तिमाही, अध्र वार्षिक (वर्ष में दो बार) अथवा वार्षिक भुगतान हो सकता है
बट्टा
जब प्रतिभूति का मूल्य सम मूल्य से कम होता है, तो यह माना जाता है कि उसमें बट्टे पर कारोबार हो रहा है अंकित मूल्य और मूल्य के बीच का अंतर बट्टे का मूल्य कहलाता है उदाहरण के लिए यदि किसी प्रतिभूति पर 99 रू. में कारोबार हो रहा है तो बट्टा 1 रू. होगा
अवधि (मैकाले अवधि)
बॉण्ड की अवधि, बॉण्ड के आरंभिक निवेश की वसूली के लिए वर्षो की संख्या है इसकी गणना, नकदी प्रवाह प्राप्त करने के लिए वर्षो की भारित औसत संख्या, के रूप में की जाती है जिसमें नकदी प्रवाह के वर्तमान मूल्य को वर्षो से गुणा किया जाता है ऐसे मूल्य के जोड़ को, अवधि निकालने के लिए, प्रतिभूति के मूल्य से भाग किया जाता है प्रश्न सं.27 का बॉक्स IV देखें
अंकित मूल्य
प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख को किसी निवेशक को अदा किया जाने वाला अंकित मूल्य कहलाता है ऋण प्रतिभूतियाँ अलग-अलग अंकित मूल्य पर जारी की जाती है; तथापि भारत में, इन का अंकित मूल्य विशिष्ट रूप से 100 रू. होता है अंकित मूल्य को चुकौती राशि भी कहा जाता है इस राशि का शोधन मूल्य, मूल मूल्य (अथवा मूलधन), परिपक्वता मूल्य अथवा सम मूल्य भी कहा जाता है
अस्थायी दर बॉण्ड
वे बॉण्ड जिनकी कूपन दर पूर्व निर्धारित अंतरालों पर रिसेट की जाती है तथा पूर्व निर्धारित बाज़ार आधारित ब्याज दर है
गिल्ट/सरकारी प्रतिभूतियाँ
सरकारी प्रतिभूतियों को गिल्ट अथवा गिल्ट एज्ड प्रतिभूतियाँ कहा जाता है "सरकारी प्रतिभूति" का अर्थ है वह प्रतिभूति जो सरकार द्वारा लोक ऋण जुटाने अथवा सरकार के कार्यालयीन बजट में सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य किसी प्रयोजन हेतु तथा सरकारी प्रतिभूति अधिनियम 2006 में निर्दिष्ट रूप में से किसी एक रूप में सृजित और जारी की जा रही है
मार्केट लॉट
मार्केट लॉट का अर्थ उन व्यापारों के मानक मूल्य से है जो बाजार में किए जाते हैं सरकारी प्रतिभूति बाजार में मानक मार्केट लॉट 5 करोड़ रू. अंकित मूल्य के हैं
परिपक्वता तारीख
वह तारीख जब मूलधन (अंकित मूल्य) लोटाया जाता है ऋण प्रतिभूति का अंतिम कूपन और अंकित मूल्य निवेशक को परिपकवता की तारीख को लौटाया जाता है अवधि की सीमा अल्पावधि (1 वर्ष) से दीर्धावति (30 वर्ष) तक अलग-अलग होता है
गैर स्पर्धी बोली
गैर स्पर्धी बोली का अर्थ है कि बोलीकर्ता, मूल्य की बोली लगाए बिन, दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों की बोली में भाग ले सकता है गैर स्पर्धी धटक का आबंटन उस भारित औसत दर पर होगा जो स्पर्धी बोली के आधार पर नीलामी में आएगा यह एक आबंटन सुविधा है जिसमें कुल प्रतिभूतियों का एक भाग सफल स्पर्धी बोली के भारित औसत मूल्य पर बोलीकर्ताओ को आबंटित किया जता है (कृपया प्रश्न सं.4 के अंतर्गत पैराग्राफ 4.3 भी देखें)
विषम मात्रा (ऑड लॉट)
5 करोड़ रू. के मानक बाजार लॉट आकार के इतर अन्य किसी मूल्य के लेन-देनों को विषम मात्रा (ऑड लॉट) कहा जाता है सामान्यतया मूल्य 10,000 रू. के न्यूनतम मूल्य सहित 5 करोड़ रू. से कम होता है विषम मात्रा के लेन-देन सामान्यतया खुदरा और छोटे सहभागियों द्वारा किया जाता है
सममूल्य पर
प्रतिभूति का अंकित मूल्य ही सममूल्य हे जो सरकारी प्रतिभूतियों के लिए 100 रू. है जब प्रतिभूति का मूल्य उसके अंकित मूल्य के बराबर होता है प्रतिभूति को सममूल्य पर कहा जाता है
अधिमूल्य (प्रीमियम)
जब प्रतिभूति का मूल्य सममूल्य से अधिक होता हे तो कहा जाता हे कि प्रतिभूति पर कारोबार अधिमूल्य पर है प्रीमियम का मूल्य, अंकित मूल्य ओर मूल्य के बीच का अंतर है उदाहरण के लिए यदि किसी प्रतिभूति का कारोबार 102 रू. पर हो रहा है तो प्रीमियम 2 रू. है
मूल्य
100 रू. के अंकित मूल्य के लिए उद्धृत किया गया मूल्य किसी वित्तीय लिखत का मूल्य भविष्य में होने वाले नकदी प्रवाह के वर्तमान मूल्य के बराबर है ऋण प्रतिभूति के लिए दिया गया मूल्य कई कारकों पर आधारित है नई जारी की गई ऋण प्रतिभूतियाँ सामान्य तौर पर उनके अंकित मूल्य अथवा उनके आस-पास के मूल्य पर बेची जाती हैं द्वितीयक बाजार में जहाँ निवेशकों के बीच पहले से जारी ऋण प्रतिभूतियाँ खरीदी और बेची जाती हैं, बाँण्ड के लिए दिए जाने वाले मूल्य में बाजार ब्याज दरें, अर्जित ब्याज, आपूर्ति और मांग, ऋण गुणवत्ता, परिपक्वता की तारीख, जारी करने का तरीका, बाजार धटनाएँ तथा लेन-देन का आकार प्रभावित करने वाली मदों पर निभ्रर होता है
प्राथमिक व्यापारी
सरकारी उधार की आवश्यकताओं को यथासंभव सस्ते और सक्षम रूप से पूरा करने के उद्देश्य से विशेषकृत वित्तीय फर्मो/बैंकों के एक समूह को सरकारी प्रतिभूति बाजार और जारीकर्ता के बीच विशेषीकृत मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए नियुक्त किया जाता है इन संस्थाओं को सामान्यतया प्राथमिक व्यापारी अथवा मार्केट मेकर कहा जाता है लगातार बोली लगाने तथा विपणन योग्य बाजार प्रतिभूतियों में मूल्य लगाने अथवा नीलामी में बोली लगाने जैसे कार्यो के बदले में इन फर्मो को प्राथमिक/द्वितीयक बाजार में कुछ लाभ मिलते हैं
तत्काल सकल निपटान प्रणाली (आरटीजीएस)
आरटीजीएस प्रणाली एक बैंक से दूसरे को "तत्काल" और "सकल" आधार पर मुद्रा अंतरण करने का निधि अंतरण तंत्र है बैंकिंग चैनल के माध्यम से यह सबसे तेज मुद्रा अंतरण प्रणाली है "तत्काल" निपटान का अर्थ बिना किसी प्रतीक्षा अवधि के भुगतान निपटान प्रक्रिया होने पर लेन-देन तत्काल कर दिए जाते हैं "सकल निपटान" का अर्थ है कि लेन-देन एक पर एक आधार पर किए जाते हैं, इन्हें दूसरे लेन-देनों से जोड़ा नहीं जाता है चूंकि मुद्रा अंतरण रिज़र्व बैंक की बहियों में किया जाता है, भुगतान को अंतिम और अविकल्पी मान लिया जाता है
रिपो रेट
रिपो लेन-देन पर अर्जित राशि रिपो रेट है जिसे वार्षिक ब्याज दर के रूप में बताया गया है
रिपो/रिवर्स रिपो
रेपो, निधियों की प्राप्ति के लिए प्रतिभूतियों को इस करार के साथ बेचने के लिए एक प्रकार का लिखत है, जिसमें उक्त प्रतिभूतियों को आपस में सहमत तारीख और मूल्य पर पुनर्खरीद करनी पड़ती है जिसमें उधार ली गई निधियों पर ब्याज शामिल है
रेपो (पुनः खरीद) लेनदेन का विपरीत लेनदेन `रिवज़õ रेपो' (प्रति पुनर्खरीद) कहलाता है जिसमें प्रतिभूतियों की खरीदारी करके उधार दिया जाता है, जिसके लिए तय मूल्य पर पारस्परिक रूप से निर्धारित भावी तारीख को उक्त प्रतिभूतियों की पुनःबेचने का करार किया जाता है
अवशिष्ट परिपक्वता
प्रतिभूति की परिपकवता अवधि तक शेष अवधि उसकी अवशिष्ट परिपक्वता है उदाहरण के लिए 10 वर्ष की परिपकवता की मूल अवधि के लिए जारी प्रतिभूति की 2 वर्ष बाद अवशिष्ट परिपक्वता 8 वर्ष होगी
द्वितीयक बाजार
एक बाजार जिसमें बकाया प्रतिभूतियों का कारोबार किया जाता है ये प्राथमिक, अथवा प्रारंभिक बाजार से भिन्न है, जहां प्रतिभूतियाँ पहली बार बेची जाती हैं द्वितीयक बाजार का अर्थ है प्रतिभूतियों की आरंभिक साव्रजनिक ब्रिकी के बाद होने वाला क्रय और विक्रय
निरंतर बिक्री
निरंतर बिक्री के अंतर्गत कुछ राशि की प्रतिभूतियाँ सृजित की जाती हैं और बिक्री के लिए उपलबध होती है, सामान्यतया ये न्यूनतम मूल्य पर होती हैं तथा बाजार में बोली आने पर बेची जाती हैं ये प्रतिभूतियाँ दिन अथवा सप्ताहों तक बेची जा सकती है तथा मांग अधिक होने पर प्राधिकरण इसका मूल्य बढ़ाने (न्यूनतम) अथवा मांग कमजोर होने पर कम करने का लचीलापक अपना सकती हैं निरंतर बिक्री और (टैप सेल) लगभग एक समान है, तथापि टैपसेल में ऋण प्रबंधक को निरंतर बिक्री के लिए उपलब्धता और निर्देशक मूल्य के संबंध में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होती है निरंतर बिक्री आवश्यक रूप से बाजार की पहल पर होती है
खजाना बिल
सरकार की उधार देयताएँ जिनकी अवधि समाप्ति 1 वर्ष अथवा कम होती है सामान्यतया खजाना बिल अथवा टी बिल कहलाते हैं खजाना बिल, खजाने/सरकार की अल्पावधि देयताएँ होती हैं ये अंकित मूल्य पर बट्टे पर जारी लिखत हैं और मुद्रा बाजार का महत्वपूर्ण भाग हैं
हामीदारी
वह व्यवस्था जिसके द्वारा निवेश बैंकर प्रतिभूति के प्राथमिक निर्गम के उस अंश का अभिग्रहण करते हैं जिसके लिए अंशदान नहीं दिया गया
भारित औसत मूल्य/प्रतिप्ल
यह मूल्य/प्रतिप्ल का भारित औसत हिस्सा है जहाँ मूल्य/प्रतिप्ल पर प्रयोग की गई राशि भार है गैर स्पर्धी धारक को आबंटन भारित औसत मूल्य/प्रतिप्ल पर होगा जो स्पर्धी बोली के आधार पर नीलामी से उभर कर आएगा
प्रतिप्ल
किसी प्रतिभूति पर वार्षिक प्रतिशतता दर पर अर्जित प्रतिप्ल प्रतिप्ल प्रतिभूति के खरीद मूल्य तथा कूपन ब्याज दर का कार्य है प्रतिप्ल वैश्विक बाजारों तथा अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न कारणों से धटता-बढ़ता रहता है
परिपक्वता पर प्रतिप्ल (वाइटीएम)
परिपक्वता पर प्रतिप्ल वह प्रतिप्ल है जिसकी कोई व्यक्ति परिपक्वता तक प्रतिभूति रखने पर आशा करता है परिपक्वता पर प्रतिप्ल आवश्यक रूप से वह बट्टा दर हे जिस पर भविष्य के भुगतानों का वर्तमान मूल्य प्रतिभूति के मूल्य के बराबर होता है (निवेश प्रतिप्ल मूलधन पर प्रतिप्ल)
प्रतिप्ल वक्र
विभिन्न परिपक्वता अवधि तथा उसी ऋण गुणवत्ता के बॉण्डों के बीच प्रतिप्ल और परिपक्वता के बीच संबंध दर्शाने वाला ग्राफिक संबंध यह रेखा ब्याज दरों का अवधि ढाँचा दर्शाती है इससे निवेशक ऋण प्रतिभूतियों का विभिन्न परिपक्वता तथा कूपन से तुलना कर सकता है
- 19. भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सीसीआईएल) की क्या भूमिका है ?
सीसीआइएल सरकारी प्रतिभूतियों के लिए समाशोधन एजेंसी है सरकारी प्रतिभूतियों में होनेवाले समस्त लेनदेनों के लिए यह एक केंद्रीय प्रति पक्ष (सीसीपी) के रूप में कार्य करता हैं जो वह स्वयं को दो प्रतिपक्षों के बीच स्थापित करते हुए संपन्न करता है परिणामतः, निपटान के दौरान, सीसीपी वास्तविक लेनदेन के क्रेता के लिए विक्रेता और विक्रेता के लिए क्रेता बन जाता है ओटीसी मार्केट में तथा एनडीएस-ओएम प्लैटफार्म पर किए जानेवाले सभी एकमुश्त लेनदेनों को सीसीआइएल के जटिए समायोजिता किया जाता है एक बार सीसीआइएल के पास लेनदेन की सूचना पहुंच जाने पर वह प्रतिभूतियों तथा निधियों, इन दोनों पक्षों पर सहभागीवार निवल दायित्वों का हिसाब लगाता है ग्राहकों (गिल्ट खाता धारी) की देय/प्राप्य स्थिति उनके संबंधित अभिरक्षकों के सामने प्रदर्शित होती है सीसीआईएल सहभागियों की निवल स्थिति के साथ निपटान फाइल रिज़र्व बैंक को भेज देता है जहां "सुपुर्दगी बनाम भुगतान" प्रणाली के तहत निधियों एवं प्रतिभूतियों के साथ साथ अंतरण द्वारा निपटान संपन्न होता है सीसीआइएल सरकारी प्रतिभूतियों में किए जानेवाले सभी लेनदेनों के निपटान की भी गारंटी देता है अर्थात निपटान प्रक्रिया के दौरान यदि कोई सहभागी निधियां/प्रतिभूतियां उपलब्ध कराने में चूक जाता है तो सीसीआइएल उन्हें अपने स्वयं के संसाधनों में से उपलब्ध करायेगा इस प्रयोजन के लिए सीसीआइएल सभी सहभागियों से मार्जिन वसूल करता है और "निपटान गारंटी निधि" रखता है
- 20. `यदा जारी' बाजार क्या है ?
`यदा जारी' `जब, जैसे ही तथा यदि जारी किया जाए' का संक्षेप है जो जारी करने (निर्गम) के लिए अधिसूचित की गई परंतु अभी वास्तव में जारी न की गई किसी प्रतिभूति के सशर्त लेनदेन को इंगित करता है समस्त `यदा जारी' लेनदेन `यदि' आधारित लेनदेन होते हैं, जिन्हे यदि और जब प्रतिभूति वास्तव में जारी की जाती है तब निपटाया जाना होता है केंद्रीय सरकार की प्रतिभूतियों में `यदा जारी' लेनदेन करने की अनुमति सभी एनडीएस-ओएम सदस्यों को है और इन्हें केवल एनडीएस-ओएम प्लैटफार्म पर ही किया जाना होता है `यदा जारी' बाजार नीलामी की जानेवाली प्रतिभूति के मूल्य अन्वेषण तथा नीलाम की जानेवाली प्रतिभूति के बेहतर संवितरण में सहायक होता है शहरी सहकारी बैंकों के लिए 1 जुलाई 2009 के रिज़र्व बैंक मास्टर परिपत्र यूबीडी.बीपीडी (पीसीबी) एमसी सं.12/16.20.000/2009-10 में विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए गए है
- 21. बांड मूल्यों और प्रतिलाभों की गणना के संबंध में कौनसी मूलभूत गणितीय संकल्पनाओं का ज्ञान होना जरूरी है ?
वर्तमान मूल्य (पीवी), भावी मूल्य (एफवी) आदि की गणना से संबंधित `मुद्रा' का समय मूल्य बांड बाजार से संबंधित महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएं हैं इसकी उदाहरण सहित रूपरेखा नीचे दिए गए बॉक्स II में दी गई है
बॉक्स II
मुद्रा का समय मूल्य
धन का सामयिक मूल्य होता है क्योंकि आज के दिन का एक रूपया एक वर्ष बाद की अपेक्षा अधिक मूल्यवान तथा उपयोगी होता है
`मुद्रा के समय मूल्य' की संकल्पना उस ज्ीास्iेा पर आधारित हे कि एक निवेशकर्ता (भविष्य में कभी उसी राशि के भुगतान की बजाए), आज किसी निर्धारित राशि का भुगतान प्राप्त करने को वरीयता देता हैं शेष सभी बातें समान ही होती हैं विशेष रूप से, यदि किसी को आज ही भुगतान प्राप्त हो जाए तो वह निर्दिष्ट भावी तारीख तक उस धन पर ब्याज अर्जित कर सकता है साथ ही, किसी स्फीतिकारी परिवेश में आज के दिन एक रूपए की क्रय शक्ति एक वर्ष बाद की अपेक्षा काóफी अधिक होती है
किसी भावी राशि का वर्तमान मूल्य
वर्तमान मूल्य प्ार्मूला मुद्रा के अवधि मूल्य का एकमात्र प्ार्मूला है
वर्तमान मूल्य (पीवी) फाम्र्यूला के चार परिवर्ती होते हैं जिनमें से एक-एक को निम्नानुसार हल किया जा सकता है
वर्तमान मूल्य (पीवी)(झV) अर्थात् समय = 0 पर मूल्य
भावी मूल्य (एफवी) (इV) अर्थात समय = एन पर मूल्य
`आइ' ('i')वह दर है जिस पर राशि को हर अविध में चक्रवृद्धि किया जाएगा
`एन' ('ह') है अवधियों की संख्या
भावी नकदी प्रवाहों के संचयी वर्तमान मूल्य की गणना एफवी के अंशदान अर्थात् समय पर नकदी प्रवाह का मूल्य `टी' को जोड़कर की जा सकती है
उदाहरण
नकदी प्रवाह निम्नानुसार होने पर
अवधि (वर्षो में)
1
2
3
राशि
100
100
100
माना कि ब्याज दर 10% वार्षिक की है; हर वर्ष के लिए बट्टे की गणना 1/(1+ब्याज दर)^ वर्ष (संख्या में) के रूप में की जा सकती है
वर्तमान मूल्य का हिसाब राशि बट्टा धटक के रूप में लगाया जा सकता है
निम्न अवधि के बाद 100 रूपए का पीवी होगाः
वर्ष
राशि
बट्टा धटक
पीवी
1
100
0.9091
90.91
2
100
0.8264
82.64
3
100
0.7513
75.13
संचयी वर्तमान मूल्य = 90.91+82.64+75.13=रू.248.69
निवल वर्तमान मूल्य (एनपीवी)
निवल वर्तमान मूल्य (एनपीवी) या निवल वर्तमान संपत्ति (एनपीडब्ल्य) को निवल नकदी प्रवाह के वर्तमान मूल्य के रूप में परिभाषित किया गया है यह एक दीर्धावधिक परियोजनाओं का मूल्यांकन करने के लिए धन के समय मूल्य को प्रयुक्त करने संबंधी मानक पद्धति है पूंजी बजटीकरण के लिए प्रयुक्त तथा अर्थशाॉा में व्यापक रूप में प्रयुक्त होनेवाली इस पद्धति में नकदी प्रवाहों की अधिकता एवं कमी को, एक बार वित्तपोषण प्रभारों की पूर्ति हो जाने के बाद वर्तमान मूल्य (पीवी) के रूप में नापा जाता है इसमें उन्नत वित्तीय कैलक्युलेटरों का प्रयोग होता है 5
वर्तमान मूल्य के अधीन ऊपर किए गए उदाहरण में, यदि रू.240 की जमा राशि पर तीनों नकदी प्रवाह उपचित हो जाते हैं तो उस निवेश का एनपीवी 248.69-240= रू.8.69 है
22. किसी बांड के मूल्य का हिसाब किस प्रकार लगाया जाता है? किसी लेनदेन का कुल प्रतिफल क्या होगा और उपचित ब्याज क्या होता है?
उपचित ब्याज बांड का मूल्य बांड के समस्त भावी नकदी प्रवाहों का वर्तमान मूल्य ही है नकदी प्रवाहों को बट्टा देने के लिए प्रयुक्त ब्याज दर है बाँड की परिपक्वता पर आय (प्रश्न 24 में विस्तार से स्पष्ट किया गया है) इस मूल्य की गणना एक्सेल के `मूल्य' फंक्शन का प्रयोग करते हुए की जा सकती है (कृपया अनुबंध 4, क्रम सं. 5 देखें)
उपचित ब्याज पिछले कूपन दिवस से लेनदेन के दिवस के निपटान से एक दिन पूर्व तक की खंडित अवधि के लिए दिया जानेवाला ब्याज होता है चूंकि प्रतिभूतिधारी लेनदेन के निपटान की तारीख से एक दिन पूर्व तक की अवधि के लिए प्रतिभूति धारित करता है, अतः, वह उक्त धारित अवधि के लिए कूपन पाने का पात्र होता है लेनदेन के निपटान के दौरान प्रतिभूति का खरीदार सहमत मूल्य के अतिरिक्त उक्त उपचित ब्याज अदा करता है और `प्रतिफल राशि' का भुगतान करता है
नीचे उदाहरण दिया गया है -
6.49 प्रतिशत 2015 की प्रतिभूति के 5 करोड़ रूपये (अंकित मूल्य) के रू.96.95 के मूल्य पर 26 अगस्त 2009 की निपटान तारीख के लेनदेन के लिए प्रतिभूति के विक्रेता को देय प्रतिफल राशि का हिसाब निम्नानुसार किया गया है;
यहां लगाए गए मूल्य को `क्लीन मूल्य' कहा जाता है, क्योंकि उसमें उपचित ब्याज जुड़ा नहीं होता है
उपचित ब्याजः
78 दिनों के लिए रू.100 के अंकित = 6.49 X (78/360) मूल्य पर उपचित ब्याज = रू.1.4062
इस उपचित ब्याज धटक को `क्लीन मूल्य' में जोड़ने पर मिलनेवाले परिणाम मूल्य को `डर्टी मूल्य' कहा जाता है उक्त उदाहरण में यह है 96.95+1.4062 =रू.98.3562 कुल प्रतिफल राशि = लेनदेन का अंकित मूल्य डर्टी मूल्य
- = 5,00,00,000 X(98.3562/100)
- = रू. 4,91,78,083.33
23. किसी बॉण्ड की आय और मूल्य के बीच क्या संबंध है ?
यदि ब्याज दरें या बाजार आय बढ़ जाती है तो बांड के मूल्य में गिरावट आती है इस के विपरीत, यदि ब्याज दरें या बाजार आय में गिरावट आती है तो बांड का मूल्य बढ़ जाता है दूसरे शब्दों में, बांड की आय उसके अपने मूल्य से उलटे क्रम में संबंधित होती है
बॉण्ड की परिपक्वता पर आय और कूपन दर के बीच के संबंध को निम्नानुसार देखा जाए :
● यदि बॉण्ड का बाजार मूल्य अंकित मूल्य से कम है अर्थात् बॉण्ड एक बट्टे पर बिकता है, तो वाईटीएम > चालू आय > कूपन आय
● यदि बॉण्ड का बाजार मूल्य अंकित मूल्य से अधिक है अर्थात् बांड प्रीमियम पर बिकता है, तो कूपन आय > चालू आय > वाइटीएम
● यदि बॉण्ड का बाजार मूल्य अंकित मूल्य के समान है अर्थात् बांड सममूल्य पर बिकता है, तो वाईटीएम=चालू आय= कूपन आय
24. किसी बॉण्ड की आय की गणना किस प्रकार की जाती है ?
24.1. बॉण्ड खरीदनेवाला निवेशक निम्नलिखित एक या उससे अधिक ñाोतों से प्रतिलाभ पा सकता है
● जारीकर्ता द्वारा किए जानेवाला कूपन ब्याज भुगतान;
● बॉण्ड बेचे जाने पर मिलनेवाला किसी प्रकार का पूंजीगत लाभ (या पूंजी हानि); और
● उक्त ब्याज भुगतानों के पुनर्निवेश से होनेवाली आय अर्थात् ब्याज-पर-ब्याज
निवेशकों द्वारा किसी बांड में निवेश करने पर मिलनेवाले संभाव्य प्रतिलाभ को नापने के लिए आम तौर पर प्रयुक्त उक्त तीन आय मापनों को संक्षेप में निम्नानुसार वर्णित किया जाता है
(i) कूपन आय
24.2 कूपन आय अंकित मूल्य के प्रतिशत के रूप में कूपन भुगतान होता है कूपन आय से तात्पर्य सरकारी प्रतिभूति जैसी किसी निर्धारित आय प्रतिभूति पर देय सांकेतिक ब्याज है यह निवेशक को सरकार (अर्थात् जारीकर्ता) का एक निश्चित प्रतिलाभ अदा करने का वायदा है इस प्रकार, कूपन आय से सरकार द्वारा अदा किये जानेवाले सांकेतिक ब्याज पर ब्याज दर धट-बढ या मुद्रा स्प्ातिक होने वाले प्रभाव का पता नहीं चलता है
कूपन आय = कूपन भुगतान/अंकित मूल्य
उदाहरणः कूपन भुगतान : 8.24 अंकित मूल्य : रू.100 बाजार मूल्य : रू.103.00 कूपन आय : 8.24/100 = 8.24%
(ii) चालू आय
24.3. चालू आय बांड के खरीद मूल्य के प्रतिशत के रूप में मात्र एक कूपन भुगतान होता है; दूसरे शब्दों में, यह बांडधारक को उसके खरीद मूल्य पर मिलनेवाला प्रतिलाभ है जो कमोबेश अंकित मूल्य या सममूल्य होता है चालू आय में आवधिक रूप से प्राप्त होनेवाली ब्याज आय के पुनर्निवेश को हिसाब में नहीं लिया जाता है
चालू आय = (वार्षिक कूपन दर/खरीद मूल्य) X 100
उदाहरण : प्रति रू.100 के सम मूल्य पर रू.103.00 के लिए बेचे जानेवाले 10 वर्षीय 8.24% कूपन बांड के लिए चालू आय का हिसाब नीचे दिया गया है
वार्षिक कूपन ब्याज = 8.24% X रू.100=रू.8.24 चालू आय = (8.24/103)X100=8.00% चालू आय में केवल कूपन ब्याज पर विचार किया जाता है और निवेशक के प्रतिलाभ को प्रभावित करनेवाले प्रतिलाभ के अन्य ñाोतों को अनदेखा किया जाता है
(iii) परिपक्वता पर आय
24.4. परिपक्वता पर आय किसी बांड को उसकी परिपक्वता तक धारित रखने पर मिलनेवाले प्रतिलाभ की प्रत्याशित दर होती है बॉण्ड का मूल्य उसके शेष समस्त नकदी प्रवाहों के वर्तमान मूल्य का जोड़ मात्र होता है वर्तमान मूल्य की गणना हर नकदी प्रवाह को किसी दर पर बट्टा देते हुए की जाती है; यह दर होती है वाइटीएम इस प्रकार, वाइटीएम वह बट्टा दर होती है जो किसी बांड से मिलनवाले भावी नकदी प्रवाहों के वर्तमान मूल्य को उसके चालू बाजार मूल्य तक समीकृत कर देती है दूसरे शब्दों में यह बांड पर मिलनेवाली आंतरिक प्रतिलाभ दर होती है वाइटीएम की गणना में परख तथा चूक विधि शामिल है किसी बांड की परिपक्वता आय आसानी से प्राप्त करने के लिए एक कैलक्यूलेटर या सॉपÌटवेयर का प्रयोग किया जा सकता है ( कृपया बॉक्स III देखें)
बॉक्स III
वाइटीएम गणना
वाइटीएम की गणना मैन्युअल तथा एमएस एक्सेल जैसे किसी मानक स्प्रेडशीट के फंक्शन का प्रयोग करते हुए की जा सकती है
मैन्युअल (परख एवं चूक) पद्धति
मैन्युअल या परख एवं चूक पद्धति से हिसाब करना जटिल हो जाता है, क्योंकि सरकारी प्रतिभूतियों में भावी काल तक चलनेवाली कई सारी नकदी निहित होती है इसे एक उदाहरण द्वारा नीचे स्पष्ट करते हैं :-
एक 8% के कूपनवाली प्रति रू.100 के अंकित मूल्य के रू.102 के मूल्य वाली दो वर्षीय प्रतिभूति ली जाए; नीचे `आर' के लिए हल करते हुए वाइटीएम की गणना की जा सकती है विशिष्टतया, इस में `आर' के लिए एक मूल्य मान लिया गया है तथा इस समीकरण का हल निकालने में परख एवं भूल शामिल है, इसी में यह भी मान लिया गया है कि यदि दायी और की राशि 102 से अधिक हो तो `आर' के लिए एक उच्चस्तर का मूल्य दिया जाए तथा पुनः हल निकाला जाए लीनीयर इंटरपोलेशन तकनीक का भी एक बार `आर' के लिए `दो' मूल्य लेने पर सही `आर' का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि एक के लिए मूल्य कीमत 102 से अधिक और दूसरे मूल्य कीमत के लिए 102 से कम रहे 102=4/(1+ी/2)1 +4/(1+ी+2)2 +4/(1+ी/2)3 +104/(1+ी/2)4
एमएस एक्सेल के प्रयोग के साथ स्प्रेड शीट पद्धति
एमएस एक्सेल प्रोग्राम में आवधिक रूप में कूपन भुगतान करनेवाली प्रतिभूतियों की आय का हिसाब लगाने के लिए निम्नलिखित फंक्शन प्रयोग में लाया जाए आय (निपटान, परिपक्वता, दर, मूल्य,प्रति देय, बारंबारती, आधार)
जिसमें कि
निपटान - प्रतिभूति के निपटान की तारीख है प्रतिभूति निपटान तारीख-प्रतिभूति और निधियों को परस्पर विनिमय करने की तारीख है
परिपक्वता - प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख प्रतिभूति की अवधि समाप्ति की तारीख है
दर - प्रतिभूति की वार्षिक कूपन दर है
कीमत - प्रति रू..100 के अंकित मूल्य के लिए प्रतिभूति मूल्य है
प्रतिदेय - प्रति रू.100 के अंकित मूल्य के लिए प्रतिभूति का प्रतिदेय मूल्य है
बारंबारता - प्रति वर्ष के कूपन भुगतानों की संख्या है (भारत में सरकारी बाण्डों के लिए 2)
आधार - प्रयुक्त किये जानेवाली दिन गणना का प्रकार है (भारत में सरकारी बांडों के लिए 4 जिसमें 30/360 आधार का प्रयोग होता है
25. किसी बांड की आय में प्रयोग की जानेवाली दिन गिनने की परंपरा क्या है ?
दैनिक गणना परिपाटी का तात्पर्य उपचित ब्याज की गणना करने के लिए किसी बाण्ड की धारण समयावधि (दिनों की संख्या) प्राप्त करने के लिए अपनाई गई विधि से है चूंकि भिन्न-भिन्न प्रकार की दैनिक गणना परिपाटी के प्रयोग से उपचित ब्याज की राशि में अंतर हो सकता है अतः यह उचित होता है कि बाजार के सभी प्रतिभागी एक समान दैनिक गणना परिपाटी का अनुसरण करें
उदाहरण के लिए - भारतीय बाजारों में अपनायी जाने वाली परिपाटी निम्नानुसार है :
बाण्ड बाजर - इसमें 30/360 की परिपाटी अपनायी जाती है, जिसका अर्थ यह है कि महीने वास्तविक दिनों की संख्या को ध्यान में न लेते हुए महीने में 30 दिनों की ही गणना की जाती है और एक वर्ष में 360 दिन ही गिने जाते हैं
मुद्रा बाजार - इसमें वास्तविक/365 की परिपाटी अपनायी जाती है अर्थात् दिनों की संख्या के लिए वास्तविक दिनों की संख्या (अंश के रूप में) ली जाती है जबकि वर्ष में दिनों की संख्या के रूप में 365 दिनों की गणना की जाती है इस प्रकार, खज़ाना बिलों के मामले में, जो मुद्रा बाजार की लिखत हैं, मुद्रा बाजार में प्रचलित परिपाटी अपनायी जाती है
26. खज़ाना बिल की प्रतिप्ल की गणना किस प्रकार की जाती है ? 8
उल्लेखनीय है कि खज़ाना बिल की शेष परिपक्वता समयावधि 50 दिन की है (91-41)
27. डîाूरेशन (समयावधि) क्या होती है ?
27.1. किसी बाण्ड की समयावधि (जिसे मैकाले समयावधि भी कहा जात है) वर्तमान कीमत के रूप में प्रारंभिक निवेश की वसूली में लगने वाले समय को नापने का पैमाना है सरल शब्दों में समयावधि का तात्पर्य किसी बाण्ड के ब्रेक इवेन पर पहूंचने में लगने वाली चुकौती समयावधि होती है अर्थात् किसी बाण्ड द्वारा अपना खरीद मूल्य अदा करने में लगने वाला समय होता है समयावधि को वर्षो की संख्या के रूप में निरूपित किया जाता है समयावधि निकालने के लिए अपनायी जाने वाली क्रमिक प्रक्रिया नीचे बॉक्स IV में दी गयी है
बॉक्स IV
समयावधि के लिए गणना करना
सर्वप्रथम - प्रत्येक समयावधि के लिए भविष्य के प्रत्येक नकद प्रवाह को इसकी तत्संबंधी वर्तमान कीमत से धटाना होगा चूंकि कूपन प्रत्येक छह माह की समयावधि में दिए जाते हैं अतः एक चक्र छह माह के बराबर होगा और दो वर्ष की परिपक्वता वाले बाण्ड में 4 चक्र होंगे
दूसरे - भविष्य के नकद प्रवाहों की वर्तमान कीमतों को उनकी संगत समयावधियों (इन्हें भार कहा जाता है) से गुणा करना होगा अर्थात्, पहले कूपन की वर्तमान कीमत (पीवी) को 1 से गुणा करना होगा और दूसरे कूपन की पीवी को 2 से और इसी प्रकार आगे भी
तीसरे - अभी नकद प्रवाहों की उक्त भारित पीवी (वर्तमान कीमतो) को जोड़ा जाता है और प्राप्त जोड़ को बाण्ड की वर्तमान कीमत (पहले चरण में दर्शायी गयी वर्तमान कीमतों को जोड़) से भाग दिया जाता है परिणामी कीमत चक्रों की संख्या में समयावधि होती है चूंकि एक चक्र छह माह के बराबर होता है अतः वर्षो की संख्या में समयावधि प्राप्त करने के लिए इसे दो से भाग दिया जाता है यह वह समयावधि होती है जिसके भीतर, ऐसी आशा की जाती है कि बाण्ड अपनी मूल कीमत लौटा देगा, यदि इसे परिपक्वता तक रखा जाए
उदाहरण -
10% कूपन दर पर 2 वर्ष की परिपक्वता वाला बाण्ड लेने पर और जिसकी वर्तमान कीमत 103/- रू. है, उसका नकद प्रवाह निम्नानुसार होगा (मौजूदा 2 वर्ष की प्रतिप्ल दर 9% पर -
समय समयावधि (वर्ष में)
1
2
3
4
जोड़
अंतर्वाह (करोड़ रू. में)
5
5
5
105
9% के प्रतिप्ल पर पीवी
4.78
4.58
4.38
88.05
101.79
पीवी* समय
4.78
9.16
13.14
352.20
379.28
चक्रों की संख्या में समयावधि = 379.28/101.79=3.73
वर्षो में समयावधि = 3.73/2=1.86 वर्ष
औपचारिक रूप में, समयावधि का तात्पर्य है -
(क) किसी बाण्ड के नकद प्रवाहों की भारित औसत समयावधि (इस समय से भुगतान तक की समयावधि) या संपृक्त नकद प्रवाहों की कोई श्रृंखला
(ख) बाण्ड की कूपन दर जितनी उच्चतर होगा, समयावधि उतनी ही कम होग (यदि बाण्ड का टर्म एक समान रखा जाये तो)
(ग) समयावधि बाण्ड की समग्र परिपक्वता से हमेशा कम या उसके समतुल्य होती है
(ध) केवल शून्य कूपन (कूपन रहित बाण्ड) बाण्ड की समयावधि उसकी परिपक्वता के बराबर होती है
(ý) बाण्ड की कीमत ब्याज दर (अर्थात् प्रतिप्ल के प्रति संवेदनशील है
समयावधि, ब्याज दर परिचालनों (अर्थात् प्रतिप्ल) के प्रति बाण्ड की बाजार कीमत की संवेदनशीलता नापने के रूप में प्राथमिक रूप से उपयोगी होती है यह प्रतिप्ल में आए किसी परिवर्तन हेतु कीमत में आए प्रतिशत परिवर्तन के लगभग समतुल्य होती है उदाहरण के लिए ब्याज दरों में हुए छोटे परिवर्तनों के लिए समयावधि लगभग वह प्रतिशत है जिससे बाण्ड की कीमत बाजार ब्याज दर में 1 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के लिए गिर जाएगी अतः ब्याज दरों में 1% वार्षिक की वृद्धि होने पर 7 वर्ष की समयवावधि वाले 15 वर्षीय बाण्ड की कीमत लगभग 7% गिर जाएगी दूसरे अर्थो में ब्याज दरों के संबंध में समयावधि बाण्ड की कीमत का लचीलापन है
संशोधित समयावधि क्या है ?
27.2. संशोधित समयावधि मैकाले समयावधि का संशोधित रूप है यह ब्याज दर (प्रतिप्ल) में हुए एक प्रतिशत परिवर्तन के प्रति प्रतिभूति की कीमत में आए अंतर को प्रदर्शित करती है इसका सूत्र इस प्रकार है - 5
उदाहरण -
बॉक्स IV में दिए गए उदाहरण में, संशोधित समयावधि = 1.86/(1+0.09/2)=1.78
पीवी 01 क्या है ?
27.3. पीवी 01 प्रतिप्ल में आए एक आधार बिंदु (एक प्रतिशत बिंदु के एक सौवें भाग के समतुल्या) के परिवर्तन के कारण बाण्ड की कीमत में हुआ वास्तविक परिवर्तन दर्शाता है यह ब्याज दर में हुए 1 आधार बिंदु (0.01%) के परिचालन के कारण कीमत पर पडने वाले वर्तमान प्रभाव को दर्शाता है इसे अक्सर समयावधि (समय मापन) के बजाय मूल्य विकल्प के रूप में प्रयुक्त किया जाता है पीवी 01 जितनी अधिक होगी उतार-चढ़ाव भी उतना ही अधिक होगा (प्रतिप्ल में परिवर्तन होने पर कीमत में संवेदनशीलता)
उदाहरण -
संशोधित समयावधि से (जो उदाहरण 27.2 में दिया गया है) हम यह जानते हैं कि प्रतिप्ल में 100 आधार बिंदुओं (1%) के परिवर्तन से प्रतिभूति की कीमत में 1.78 प्रतिशत का परिवर्तन होगा कीमत के रूप में जो 1.78*(102/100)=1.81 रू. है
अतः पीवी 01=1.81/100=0.018 रू. होगी जो 1.8 पैसे है इस प्रकार 1.78 वर्षो की संशोधित समयावधि वाले किसी बाण्ड का प्रतिप्ल 9% से 9.05% (5 आधार बिंदुओं) में परिवर्तित होता है तो बाण्ड की कीमत 102 रू. से 101.91 रू. में परिवर्तित होती है (9 पैसे की गिरावट अर्थात् 5 X 1.8 पैसे)
- कन्वेक्सिटी क्या है ?
27.4. समयावधि के आधार पर प्रतिप्ल में परिवर्तन के लिए कीमत में परिवर्तन की गणना केवल कीमत में आए छोटे परिवर्तनों के लिए कारगर होती है क्योंकि बाण्ड मूल्य और प्रतिप्ल के आपसी संबंध निश्चित रूप से सरल रेखीय नहीं हैं अर्थात् बाण्ड की कीमत में हुआ एक यूनिट का परिवर्तन प्रतिप्ल में हुए एक यूनिट परिवर्तन के समानुपातिक नहीं है कीमत में हुए भारी उतार-चढ़ाव का संबंध वक्ररेखीय है अर्थात् बाण्ड की कीमत में परिवर्तन, प्रतिप्ल में हुए परिवर्तन के समानुपात की तुलना में या तो कम होगा अथवा अधिक होगा इसे कान्वेक्सिटी नामक विचार से नापा जाता है जो बाण्ड के प्रतिप्ल में प्रति यूनिट परिवर्तन के लिए बाण्ड की समयावधि में परिवर्तन होता है
- 28. प्रतिभूतियों की मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश क्या हैं ?
28.1.
सहकारी बैंकों के लिए "परिपक्वता तक धारणीय" के तहत वर्गीकृत निवेशों के बाजार मूल्यों को बही में अंकित करना आवश्यक नहीं है और उन्हें अधिग्रहण लागत पर अग्रेषित करना चाहिए जब तक कि यह अंकित मूल्य से अधिक न हो यदि ऐसा है तो प्रीमियम को परिपक्वता की शेष समयावधि के लिए परिशोधित करना चाहिए सहकारी बैंकों की बहियों में "बिक्री के लिए उपलब्ध" श्रेणी में व्यक्तिगत क्रिप के बाजार मूल्यों को वर्ष के अंत में या और कम अंतरालों पर अंकित करना चाहिए "व्यापार के लिए धारणीय" श्रेणी में उपलब्ध व्यक्तिगत क्रिप के बाजार मूल्यों को माह के अंत में या और कम अंतरालों पर बहियों में अंकित करना चाहिए "बिक्री के लिए उपलब्ध" और "व्यापार के लिए उपलब्ध" श्रेणियों में व्यक्तिगत प्रतिभूतियों को बाजार मूल्यों पर बही में अंकित करने के बाद उनके बही मूल्यों के कोई परिवर्तन नहीं होगा
28.2 केंद्रीय सरकार की प्रतिभूतियों की कीमतों का निर्धारण निर्धारित आय मुद्रा बाजार और डेरिवेटिव्ज संध (प्मिडा) और भारतीय प्राथमिक व्यापारी संध द्वारा संयुक्त रूप से प्मिडा की वेबसाइट पर दी गई कीमतों/प्रतिप्लों को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए केंद्रीय सरकारी की सभी प्रतिभूतियों की कीमत प्रतिदिन दी जाती है जबकि मूल्यांकन के लिए कीमतों और प्रतिप्लों का वक्र प्रत्येक माह के अंत में दिया जाता है उदाहरण के लिए केंद्रीय सरकार की एक प्रतिभूति 7.46% 2007 का प्मिडा मूल्यांकन 31 मार्च 2009 को 101.69 रू. था यदि कोई सहकारी बैंक इसी प्रतिभूति को "बिक्री के लिए उपलब्ध" या "व्यापार के लिए उपलब्ध" श्रेणी के तहत 102 रू. के बही मूल्य पर रख रहा था तो बैंक के लिए यह अपेक्षित होगा कि प्रत्येक 100 रू. के अंकित मूल्य के लिए 0.31 रू. का बही में मूल्यहास नोट करे यदि कुल धारिता 1 करोड़ रू. की थी तो अंकित किया जाने वाला मुल मूल्यहास 31,000/- रू. होगा
28.3 राज्य सरकार और अन्य प्रतिभूतियों का मूल्यांन केंद्रीय सरकार की प्रतिभूति की तदनुरूपी शेष परिपक्वता समयावधि के प्रतिप्ल पर कीमत-लागत अंतर को जोड़कर करना चाहिए इस समय राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन करते समय 25 आधार अंकों (0.25%) का कीमत-लागत अंतर जोड़ा जाता है जबकि विशेष प्रतिभूतियों (तेल बाण्ड, उर्वरक बाण्ड, एसबीआई बाण्डों आदि) के कार्पोरेट बाण्डों के लिए प्मिडा द्वारा दिया गया कीमत-लागत अंतर जोड़ा जाता है राज्य सरकार के एक बाण्ड को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन का एक उदाहरण नीचे बॉक्स V में दिया गया है
बॉक्स V
प्रतिभूतियों का मूल्यांकन
राज्य सरकार के बाण्डों के लिए मूल्याकन
प्रतिभूति - 7.32% एपीएसडीएल 2014
जारी करने की तारीख - 10 दिसंबर 2004
परिपक्वता तिथि - 14 दिसंबर 2014
कूपन - 7.32%
मूल्यांकन की तारीख - 31 मार्च 2008
प्रक्रिया
उक्त बाण्ड के मूल्यांकन में निम्नलिखित स्तर शामिल हैं -
(1) मूल्यांकित बाण्ड की शेष परिपक्वता का पता लगाना
(2) उक्त शेष परिपक्वता के लिए केंद्रीय सरकार प्रतिभूति के प्रतिप्ल का पता लगाना
(3) प्रतिभूति के प्रतिप्ल का पता लगाने के लिए उक्त प्रतिप्ल में उचित कीमत-लागत अंतर जोड़ना
(4) उपर्युक्त प्राप्त प्रतिप्ल का प्रयोग करते हुए प्रतिभूति की कीमत की गणना करना
स्तर - 1
चूंकि मूल्यांकन 31 मार्च 2008 को किया जा रहा है अतः हमें इस तारीख से प्रतिभूति की परिपक्वता का तारीख अर्थात् 10 दिसंबर 2014 तक के बीच के वर्षो की संख्या का पता लगाना है ताकि प्रतिभूति की शेष परिपक्वता का पता लगाया जा सके इसे ceeôeJer³e रूप से वर्ष, महीने और दिन की गणना कर निकाला जा सकता है तथापि, इसके लिए का आसान तरीका एमएस एक्सेल में "इअरप्रैक" ("भaीिीaम्") प्रणाली से निकाला जा सकता है जिसमें दो तारीखे और आधार प्रदान करना होता है (अधिक जानकारी के लिए एक्सल प्ंक्शन पर अनुबंध 4 का संदर्भ लें) इस प्रतिभूति के लिए, यह 6.69 वर्षो की अवशेष परिपक्वता देता है
स्तर - 2
6.69 वर्षो के लिए केंद्रीय सरकारी प्रतिभूति प्रतिप्ल का पता लगाने के लिए हम 6 वर्ष और 7 वर्ष के बीच के प्रतिप्लों को आपस में संबद्ध करेंगे, ये प्रतिप्ल पिÌमडा द्वारा दिए गये हैं 31 मार्च 2008 की स्थिति के अनुसार, 6 और 7 वर्षो के लिए पिÌमडा द्वारा दिए गये प्रतिप्ल क्रमशः 7.73% और 7.77% हैं निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हुए 6.69 वर्षो के लिए प्रतिप्ल निकाला गया है
0.0773+ड (6.69-6)X(0.0777-0.0773) ] = 0.077577=7.7577% या 7.76%
- (7-6)
यहा हम 0.69 वर्षो के लिए प्रतिप्ल के अंतर का पता लगाकर और उसे 6 वर्षो के लिए लागू प्रतिप्ल में जोडते हैं ताकि 6.69 वर्षो के लिए प्रतिप्ल का पता लगाया जा सकें यह भी नोट करना हैं कि प्रतिप्ल का उपयोग दशमलव रूप में करना है (उदाहरण के लिए 7.73 प्रतिशत, 7.73/100 के बराबर है जिसका अर्थ है 0.0773)
स्तर - 3
विशिष्ठ अवशेष परिपक्वता के लिए केंद्रीय सरकार प्रतिप्ल का पता लगाने के बाद हमें उचित स्प्रेड को लोड करना है ताकि मूल्यांकन की जाने वाली प्रतिभूति के लिए प्रतिप्ल प्राप्त किया जा सके चूंकि प्रतिभूति राज्य सरकार की प्रतिभूति है अतः लागू स्प्रेड 25 आधार बिंदु है (0.25 प्रतिशत) अतः प्रतिप्ल 7.76%+0.25%=8.01% होगा
स्तर - 4
प्रतिभूति की कीमत गणना एमएस एक्सेल "कीमत" ("झRIण्िं") का उपयोग करके की जाएगी (विवरण के लिए कृपया अनुबंध 4 देखें) यहां हम मूल्यांकन की तारीख 31 मार्च 2008 डालेंगे, परिपक्वता की तारीख 10 दिसंबर 2014 है, दर 7.32% है जो की कूपन दर है, प्रतिप्ल के रूप में 8.01% है और परिपक्वता के रूप में 100 जो की अंकित मूल्य है, कूपन भुगतान की फ्रीक्वेन्सी के रूप में 2 और आधार के रूप में 4 उपयोग करेंगे (कृपया अनुबंध 4 में दिया गया उदाहरण 3 देखें) met°e के द्वारा हमें 96.47 रूपये की कीमत प्राप्त होती है जो प्रतिभूति की कीमत है
यदि बैंक अपने पोर्टप्ाटलियों में 10 करोड रूपये की इस प्रकार की प्रतिभूति भारीत करता है तो कुल कीमत 10*(96.47/100)=9.647 करोड रूपये होगी
28.4. कार्पोरेट बाण्डों के मामले में, मूल्यांकन की प्रक्रिया उपर्युक्त बॉक्स 5 में दिए गए उदाहरण के समान ही है इसमें केवल केंद्रीय सरकार की प्रतिभूति पर आने वाले तदनुरूपी प्रतिप्ल में जोड़े जाने वाले स्प्रेड का भेद राज्य सरकार की प्रतिभूतियों के लिए निश्चित 25 आधार अंको के बजाय है जो समय-समय पर प्मिडा द्वारा प्रकाशित स्प्रेड से अधिक होगी प्मिडा विभिन्न प्रकार की रेटिंग वाले कार्पोरेट बाण्डों के लिए स्प्रेड पर सूचना देता रहता है बाण्ड का मूल्यांकन करते समय केंद्रीय सरकार की प्रतिभूति के तदनुरूपी प्रतिप्ल में उचित स्प्रेड जोड़ी जानी चाहिए और बाण्ड का मूल्यांकन मानक "कीमत" सूत्र का प्रयोग करते हुए करना चाहिए
उदाहरण के लिए, यह मानते हुए कि "एएए" रेटिंग के किसी कार्पोरेट बाण्ड की परिपक्वता उतनी ही है जितनी कि बॉक्स 5 में दिए गए राज्य सरकार के बाण्ड की, इस स्थिति में मूल्यांकन के लिए लागू प्रतिप्ल 7.73+2.09% (प्मिडा द्वारा दिया गया स्प्रेड) होगा जो 9.82% है बॉक्स 5 में दिए गए मानदंडों को ही लागू करते हुए बाण्ड की कीमत 87.92 रू. बैठती है
29. सरकारी प्रतिभूतियां धारण करने में क्या जोखिम हैं ? इस प्रकार के जोखिमों को कम करने के क्या उपाय हैं ?
सामान्य रूप से सरकारी प्रतिभूतियों को जोखिम रहित लिखतें माना जाता है क्योंकि सरकार से अपने भुगतान में चूक अपेक्षित नहीं हैं तथापि, जैसा कि किसी भी वित्तीय लिखत के मामले में होता है वैसा ही जोखिम सरकारी प्रतिभूतियों के साथ भी होता है अतः इस प्रकार के जोखिमों की पहचान करना और उन्हें समझाना और उनको दूर करने के लिए उचित उपाय करना आवश्यक है सरकारी प्रतिभूतियों की धारिता के साथ निम्नलिखित प्रमुख जोखिम जुड़े होते हैं -
29.1. बाजार जोखिम - ब्याज दरों में परिवर्तन होने के कारण किसी निवेशक द्वारा धारित प्रतिभूतियों के मूल्यों में विपरीत परिचालन होने से बाजार जोखिम उत्पन्न होता है इसके परिणाम स्वरूप बाजार मूल्यों पर इसे बही में अंकित करने पर हानि उठानी पड़ेगी या प्रतिभूतियों को विपरीत मूल्या पर बेचने से धाटा उठाना पड़ सकता है कुछ हद तक छोटे निवेशक बाण्ड की परिपक्वता तक उसे धारण कर बाजार जोखिम को कम कर सकते हैं ताकि वे वह प्रतिप्ल प्राप्त कर सकें जिस पर उन्होनें प्रतिभूतियां वास्तव में खरीदी थी
29.2. पुनर्निवेश जोखिम - सरकारी प्रतिभूति के नकदी-प्रवाह में प्रत्येक छमाही में मीयादी कूपन और परिपक्वता पर मूलधन की वापसी शामिल होती है इन नकदी प्रवाहों को नकद प्राप्ति के पश्चात पुनर्निवेश करना होता है अतः यह जोखिम होता है ब्याज दर परिदृश्यों में बदलाव के कारण निवेशक इन प्राप्त राशियों को लाभकारी दरों पर पुनर्निवेश न कर पाए
29.3. चलनिधि जोखिम : चलनिधि जोखिम का आशय होता है कि जब निवेशक किसी प्रतिभूति के लिए खरीददार की अनुपलब्धता के कारण अपनी प्रतिभूति को बेच नहीं पाता है, अर्थात् उस विशेष प्रतिभूति में किसी भी प्रकार की खरीद बिक्री का न होना सामान्यतः, जब नियत परिपक्वता का अर्थसुलभ बांड खरीदा जाता है, तो समय के साथ इसके परिपक्वता की अवधि में कमी आती है उदाहरण के लिए, 10 वर्षीय एक प्रतिभूति 2 वर्षो के बाद 8 वर्ष क ा प्रतिभूति रह जाती है जिसके कारण उसे उस समय विशेष पर तरलता में कमी हो सकती है उस समय विशेष पर तरलता में कमी के कारण, निवेशक को निधियों की तत्काल आवश्यकता होने पर कम मूल्य पर प्रतिभूतियों बेचना पड़ सकता है हालांकि, ऐसे मामलों में, पात्र निवेशक बाजार रेपो में भाग ले सकता है और प्रतिभूतियों को संपार्श्विक के रूप में रखकर नकदी उधार ले सकता है
29.4. जोखिम कम करना : परिपक्वता तक प्रतिभूति को नहीं बेचना एक रणनीति हो सकती है जिसके द्वारा बाज़ार जोखिम से बचा जा सकता है जब प्रतिभूतियां अल्पावधि हो जाती हैं तो उन्हें बेच कर और दीर्धावधि की नई प्रतिभूतियां खरीद कर पोर्टफोलियो जोखिम को कम करने के लिए पोर्टफोलियो को पुनःप्रबंधित कर सकते हैं हालांकि पुनःप्रबंधन में लेन-देन से संबंधित तथा अन्य लागत शामिल होती हैं अतः विवेकपूर्ण ढंग से इसका प्रयोग किया जाना चाहिए बाज़ार जोखिम और पुनर्निवेश जोखिम को नकदी प्रवाहों के साथ देयताओं का मिलान कर परिसंपत्ति और देयता प्रबंधन (एएलएम) के माध्यम से कम किया जा सकता है एएलएम को नकदी प्रवाह के अंतराल का मिलान कर भी किया जा सकता है
उन्नत जोखिम प्रबंधन तकनीकों में ब्याज दर स्वॉप (आइआरएस) जैसे व्युत्पन्नियों का प्रयोग शामिल है जहाँ नकदी प्रवाह की प्रकृति में बदलाव किया जा सकता है हालांकि, ये जटिल साधन हैं जिसे समझाने के लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता की आवश्यकता पड़ती है अतः व्युत्पन्नी लेन-देन के वक्त पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए और ऐसे लेन-देन इससे संबंधित जोखिमों और जटिलताओं की पूरी जानकारी के बाद ही किया जाना चाहिए
- 30. मुद्रा बाज़ार क्या है ?
30.1. यद्यपि सरकारी प्रतिभूति बाज़ार सामान्यतः दीर्धावधि निवेश करनेवाले निवेशकों के लिए है, परन्तु मुद्रा बाज़ार अल्पावधि के लिए निवेश का विकल्प उपलब्ध करता है मुद्रा बाज़ार लेन-देन सामान्यतः सरकारी प्रतिभूति बाज़ार और अल्पावधि चलनिधि असंतुलन को ठीक करने सहित अन्य बाजारों में लेन-देनों के निधीयन के लिए प्रयुक्त होता है परिभाषा के अनुसार, मुद्रा बाज़ार अधिकतम एक वर्ष की अवधि के लिए होता है एक वर्ष के भीतर अवधि के आधार पर मुद्रा बाज़ार को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है
(i) एक दिवसीय बाज़ार ः लेन-देन की अवधि एक कार्य-दिवस होता है
(ii) नोटिस मुद्रा बाज़ारः लेन-देन की अवधि 2 दिन से 14 दिन तक होती है
(iii) मीयादी मुद्रा बाज़ार - लेन-देन की अवधि 15 दिन से एक वर्ष तक होती है
विभिन्न मुद्रा बाज़ार लिखत कौन-कौन से हैं ?
30.2. मुद्रा बाज़ार लिखतों में, मांग-मुद्रा, रेपो, खजाना बिल, वाणिज्यिक पत्र, जमा-प्रमाणपत्र और संपार्श्विकृत उधार और ऋणदायी बाध्यत (सीबीएलओ) शामिल है
मांग-मुद्रा बाज़ार :
30.3. मांग-मुद्रा बाज़ार निधियों के असंपार्श्विकृत उधार देने और उधार लेने के लिए बाज़ार है यह बाज़ार मुख्यतः एक दिवसीय होता है ओर इसमें केवल अनुसूचित बैंक और प्राथमिक व्यापारी भाग लेते हैं
रेपो या तैयार वायदा संविदा :
30.4. रेपो, निधियों की प्राप्ति के लिए प्रतिभूतियों को इस करार के साथ बेचने के लिए एक प्रकार का लिखत है, जिसमें उक्त प्रतिभूतियों को आपस में सहमत तारीख और मूल्य पर पुनर्खरीद करनी पड़ती है जिसमें उधार ली गई निधियों पर ब्याज शामिल है
30.5. रेपो (पुनः खरीद) लेनदेन का विपरीत लेनदेन `रिवज़õ रेपो' (प्रति पुनर्खरीद) कहलाता है जिसमें प्रतिभूतियों की खरीदारी करके उधार दिया जाता है, जिसके लिए तय मूल्य पर पारस्परिक रूप से निर्धारित भावी तारीख को उक्त प्रतिभूतियों की पुनःबेचने का करार किया जाता है
30.6.उक्त परिभाषा से यह मालूम पड़ता है कि रेपो/रिवज़õ रेपो के एक ही लेनदेन में दो चरण होते हैं दोनों चरणों के बीच की अवधि को `रेपो अवधि' कही जाती है मोटे तौर पर रेपो को ओवर नाइट आधार पर अंजाम दिया जाता है अर्थात् एक दिवसीय आधार पर रेपो लेनदेनों का निपटान सरकारी प्रतिभूतियों में एकमुश्त सौदा के साथ किया जाता है
30.7. प्रतिभूति के विक्रेता द्वारा उधार ली गई राशि रेपो लेनदेनों के पहले चरण में प्रतिफल राशि होती है तयशुदा `रेपो दर' पर ब्याज का परिकलन किया जाता है तथा उधारकर्ता द्वारा प्रतिभूति वापस खरीदते समय उसे लेनदेन के दूसरे चरण की प्रतिफल राशि के साथ-साथ लौटाया जाता है रेपो लेनदेन की समग्र परिणति सरकारी प्रतिभूतियों के समर्थन में उधारस्वरूप प्राप्त निधि में होती है
30.8. मुद्रा बाज़ार को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित किया जाता है मुद्रा बाज़ार संबंधी उपर्युक्त लेनदेनों की रिपोर्ट इलक्ट्रॉनिक व्यवस्था, जिसे तयशुदा लेनदेन प्रणाली (एनडीएस) के नाम से जाना जाता है, के माध्यम से भेजनी चाहिए
संपाश्र्वीकृत उधार और ऋणदायी बाध्यता (सीबीएलओ)
30.9. सीबीएलओ ऐसी संस्थाओं के लाभार्थ भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सीसीआईएल) द्वारा संचालित एक अन्य मुद्रा बाज़ार की लिखत है जिनकी अंतर बैंक-मांग-मुद्रा-बाज़ार तक कोई पहुंच नहीं हो या जिनकी पहुंच मांग उधार लेने और देने से संबंधित लेनदेनों पर उच्चतम सीमा के चलते अवरूद्ध हुई हो सीबीएलओ इलक्ट्रॉनिक बही प्रविष्टि रूप में उपलब्ध एक बट्टागत लिखत है जिसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से नब्बे दिनों (रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों के अनुसार एक वर्ष तक) तक होती है बाज़ार के सहभागियों को निधि के उधार लेने और देने में सक्षम बनाने की दृष्टि से सीसीआईएल भारतीय वित्तीय नेटवर्क (आईएनएफआईएनईटी), जोकि सीमित उपयोगकर्ता समूह है, के माध्यम से रिज़र्व बैंक के पास चालू खाता रखने वाले तयशुदा लेनदेन प्रणाली (एनडीएस) के सदस्यों को तयशुदा प्रणाली उपलब्ध कराता है जबकि जिन सदस्यों का रिज़र्व बैंक के पास चालू खाता न हो उन्हें इंटरनेट के माध्यम से उक्त प्रणाली मुहैया कराता है
30.10. रिज़र्व बैंक-एनडीएस सदस्यों, यथा- राष्ट्रीयकृत बैंकों, निजी बैंकों, विदेशी बैंकों, सहकारी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंडों, प्राथमिक व्यापारियों आदि को सीबीएलओ खंड की सदस्यता उपलब्ध कराई जाती है जो संस्थाएं रिज़र्व बैंक-एनडीएस की सदस्य नहीं हैं, यथा- सहकारी बैंक, म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियां, एनबीएफसी, कार्पोरेट, भविष्य/पेंशन निधि आदि, उन्हें सीबीएलओ खंड की सह-सदस्यता उपलब्ध कराई जाती है
30.11. सीसीआईएल सदस्य सीबीएलओ बाज़ार में शामिल होकर पात्र प्रतिभूतियों की संपार्श्विकता पर निधि उधारस्वरूप ले सकते हैं या दे सकते हैं पात्र प्रतिभूतियों के अंतर्गत खज़ाना बिल सहित केंद्र सरकारी प्रतिभूतियां तथा समय-समय पर सीसीआईएल द्वारा विनिर्दिष्ट अन्य प्रतिभूतियां शामिल हैं सीबीएलओ में उधारकर्ताओं को सीसीआईएल के पास पात्र प्रतिभूतियों की अपेक्षित राशि जमा करनी होती है जिसके आधार पर सीसीआईएल उधार की सीमा का निर्धारण करता है सीसीआईएल सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले उधार देने व लेने के आदेशों का मिलान करता है और उन्हें अधिसूचित करता है संपार्श्विक रूप से धारित प्रतिभूतियों को सीसीआईएल की अभिरक्षा में रखा जाता है तथा प्रतिभूतियों पर उधार देने वाले के लाभकारी हित की मान्यता समुचित प्रलेखन के माध्यम से दी जाती है
वाणिज्यिक पत्र (सीपी)
30.12. वाणिज्यिक पत्र (सीपी) एक प्रतिभूति-रहित मुद्रा बाज़ार की लिखत है जिसे प्रामिसरी नोट के रूप में जारी किया जाता है भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित अंब्रेला सीमा के अंतर्गत अल्पावधिक संसाधनों को जुटाने हेतु अनुमति प्राप्त कार्पोरेट, प्राथमिक व्यापार (पीडी) तथा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं (एफआई) वाणिज्यिक पत्र जारी करने की पात्रता रखती हैं वाणिज्यिक पत्रों को उसकी निर्गम-तारीख से न्यूनतम 7 दिनों से अधिकतम एक वर्ष तक की अवधि के लिए जारी किया जा सकता है
जमा प्रमाण-पत्र
30.13. जमा प्रमाण-पत्र (सीडी) एक परक्राम्य मुद्रा बाज़ार की लिखत है जिसे किसी बैंक में या अन्य पात्र वित्तीय संस्था में जमा की गई निधियों के लिए इलेक्ट्रानिक रूप में या मीयादी वचन-पत्र के रूप में निश्चित अवधि के लिए जारी किया जाता है बैंक 7 दिनों से एक वर्ष की परिपक्वता अवधि के लिए जमा प्रमाण-पत्र जारी कर सकते हैं, जबकि पात्र वित्तीय संस्थाएं 1 वर्ष से 3 वर्ष की परिपक्वता अवधि के लिए इसे जारी कर सकती हैं
31. प्मिडा की क्या भूमिका और कार्य-पद्धति है ?
31.1. द फिक्स्ड इन्कम मनी मार्किट एंड डेरिवेटिव्ज़ असोसिएशन ऑफ इंडिया (प्मिडा), जोकि अधिसूचित वाणिज्य बैंकों, सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं, प्राथमिक व्यापारियों और बीमा कंपनियों का एक संध है, को 3 जून 1998 को कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत एक कंपनी के रूप में निगमित किया गया प्मिडा बांड, मुद्रा और डेरिवेटिव बाज़ारों का एक स्वैच्छिक बाज़ार निकाय है प्मिडा के ऐसे सदस्य हैं, जो बाज़ार के समूचे प्रमुख संस्थागत खंडों का प्रतिनिधित्व करते हैं इसकी सदस्यता के अंतर्गत राष्ट्रीयकृत बैंक जैसे भारतीय स्टेट बैंक, उसके सहयोगी बैंक और अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक; निजी क्षेत्र के बैंक जैसे आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईडीबीआई बैंक; विदेशी बैंक जैसे बैंक ऑफ अमेरिका, एबीएन एम्रो, सिटी बैंक; वित्तीय संस्थाएं जैसे आईडीएफसी, एक्जि़म बैंक, नाबार्ड; बीमा कंपनियां जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी), आईसीआईसीआई प्रूडेन्शियल लाइफ इन्श्यूरेंस कंपनी, बिड़ला सन लाइफ इन्श्यूरेंस कंपनी और अन्य सभी प्राथमिक व्यापारी शामिल हैं
31.2. प्मिडा बाज़ार के सहभागियों का प्रतिनिधित्व करता है तथा बांड, मुद्रा और डेरिवेटिव बाज़ारों के विकासार्थ सहायता प्रदान करता है यह इन बाज़ारों के कार्य-संचालन को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों के संबंध में विनियामकों के साथ विचारों का आदान-प्रदान कराके एक सेतु का कार्य करता है विकास की दिशा में भी यह कई कार्य करता है, जैसे बेंचमार्क दरों और नई डेरिवेटिव लिखतों आदि की पहल करना प्मिडा मूल्यांकन की दृष्टि से बाज़ार के सहभागियों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न सरकारी प्रतिभूतियों की दरें जारी करता है प्मिडा अपने सदस्यों के लिए सर्वोत्तम बाज़ार प्रथा के विकास में भी एक सकारात्मक भूमिका अदा करता है ताकि बाज़ार का संचालन पूर्णतः पारदर्शी रूप से हो, साथ ही साथ प्रभावशाली हो
- 32. सरकारी प्रतिभूतियों पर विभिन्न वेबसाइटों में क्या-क्या जानकारी मुहैया कराई गई है ?
32.1. भारतीय रिज़र्व बैंक वित्तीय बाज़ार निगरानी - प्ूूज्://ैैै.ींi.दीु.iह/एम्ीiज्ूे/ िiहaहम्iaत्स्aीवूेैaूम्प्.aेज्x
इस साइट में एनडीएस (ओटीसी बाज़ार) में सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्य, एनडीएस-ओएम, मुद्रा बाज़ार संबंधी कई लिंक और सरकारी प्रतिभूतियों से संबंधित अन्य जानकारी जैसे अशोधित स्टाक आदि, उपलब्ध कराई गई है 5
32.2. एनडीएस-ओएम बाज़ार निगरानी http://www.ccilindia.com/OMHome.aspx
इस साइट में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त का मूल्य और साथ ही निर्दिष्ट मूल्य के संबंध में तात्कालिक जानकारी उपलब्ध कराई जाती है इसके अलावा, यदा जारी (डब्ल्यूआई) (जब भी सौदा होता हो) वाला खंड भी मुहैया कराया जाता है 6
32.3. एनडीएस बाज़ार निगरानी - http://www.rbi.org.in/Scripts/NdsUserXsl.aspx
इस साइट में ओटीसी बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्यों संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है इसमें निश्चित तारीखों के बीच की अवधि में विशिष्टि प्रतिभूतियों के मूल्यों की खोज करने की भी सुविधा है 8
32.4. प्मिडा - http://www.fimmda.org/
इस साइट में सरकारी प्रतिभूतियों सहित सभी नियत आय वाली प्रतिभूतियों संबंधी बाज़ार प्रथा की ढेर सारी जानकारी मुहैया कराई जाती है इस साइट में प्मिडा द्वारा अंगीकृत विभिन्न मूल्य-निर्धारण मॉडलों के ब्योरे दिए जाते हैं साथ ही, इस साइट के माध्यम से प्मिडा सरकारी प्रतिभूतियों, कार्पोरेट बांड स्प्रेडों आद के दैनिक, मासिक और वार्षिक के बंद भाव के ब्योरे मुहैया कराता है इस साइट में प्रवेश करके जानकारी प्राप्त करने के लिए वैध लॉग-इन और पासवर्ड ज़रूरी है, जिन्हें प्मिडा पात्र संस्थाओं को उपलब्ध कराता है